Roza kab Nahi tutata he

Roza kab Nahi tutata he

Roza kab Nahi tutata he – रोजा कब नहीं टूटता है

हदीस न. 1 : सही बुख़ारी मुस्लिम में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं रोज़ादार ने भूलकर खाया या पिया वह अपने रोजे को पूरा करे कि उसे अल्लाह ने खिलाया और पिलाया।

हदीस न. 2 : अबू दाऊद व तिर्मिज़ी व इब्ने माजा व दारमी अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जिस पर कै ने ग़लबा किया उस पर कज़ा नहीं और जिसने कसदन कै की उस पर रोज़ा क़ज़ा है।

🎁 Roze Ke Jaruri Masail – रोज़े के जरूरी मसाइल



 

हदीस न. 3 : तिर्मिज़ी अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि एक शख्स ने ख़िदमते अकदस में हाज़िर होकर अर्ज की मेरी आँख में मरज़ है क्या रोजे की हालत में सुर्मा लगाऊँ। फ़रमाया हाँ।

हदीस न. 4 : तिर्मिज़ी अबू सईद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया तीन चीजें रोज़ा नहीं तोड़ती पछना (खून निकलवाना) और कै और एहतिलाम।

तम्बीह : इस बाब में उन चीज़ों का बयान है जिन से रोज़ा नहीं टूटता रहा यह अम्र (बात) कि उनसे रोज़ा मकरूह भी होता है या नहीं उससे इस बाब को तअल्लुक नहीं न यह कि वह फेल जाइज़ है या नाजाइज़।

मसअला : भूलकर खाया या पिया या जिमा किया रोज़ा फ़ासिद न हुआ ख़्वाह वह रोज़ा फ़र्ज़ हो या नफ्ल और रोजे की नियत से पहले ये चीजें पाई गयीं या बाद में मगर जब याद दिलाने पर भी याद न आया कि रोज़ादार है तो अब फासिद हो जायेगा ब-शर्ते कि याद दिलाने के बाद यह अफ़आल वाके हुए हों मगर इस सूरत में कफ़्फ़ारा लाज़िम नहीं।

(दुर्रे मुख़्तार, रद्दुल मुहतार)

🎁 Roze Ka Bayan – रोजे का बयान

मसअला : किसी रोज़ादार को इन अफ़आल में देखे तो याद दिलाना वाजिब है याद न दिलाया तो गुनाहगार होगा मगर जबकि वह रोज़ादार बहुत कमजोर हो कि याद दिलायेगा तो वह खाना छोड़ देगा और कमज़ोरी इतनी बढ़ जायेगी कि रोज़ा रखना दुशवार होगा और खा लेगा तो रोज़ा भी अच्छी तरह पूरा कर लेगा और दीगर इबादतें भी ब-खूबी अदा कर लेगा तो इस सूरत में याद न दिलाना बेहतर है। बाज़ मशाइल ने कहा जवान को देखे तो याद दिला द और बूढ़े को देखे तो याद दिलाने में हरज नहीं मगर यह हुक्म अक्सर के तिहाज़ से है कि जवान अक्सर कवी होते हैं और बूढ़े अक्सर कमज़ोर और अस्ल हुक्म यह है कि जवानी और बुढ़ापे को कोई दखल नहीं बल्कि कुव्वत व जुअफ़ (कमज़ोरी) का लिहाज है। लिहाजा अगर जवान इस क़द्र कमज़ोर हो तो याद न दिलाने में हरज नहीं और बूढ़ा कवी हो तो याद दिलाना वाजिब।

(रद्दुल मुहतार)



 

मसअला : मक्खी या धूल या गुबार हल्क में जाने से रोज़ा नहीं टूटता ख्वाह वह गुबार आटे का हो कि चक्की पीसने या आटा छानने में उड़ता है या गल्ले का गुबार हो या हवा से ख़ाक उड़ी या जानवरों के खुर या टाप से गुबार उड़ कर हल्क में पहुँचा अगर्चे रोज़ादार होना याद था और अगर खुद कसदन धूल पहुँचाया तो फ़ासिद हो गया जबकि रोज़ादार होना याद हो ख्वाह वह किसी चीज़ का धुआँ हो और किसी तरह पहुँचाया हो यहाँ तक कि अगर की बत्ती वगैरा ख़ुशबू सुलगती थी उसने मुँह करीब करके धुंए को नाक से खींचा, रोज़ा जाता रहा। यूँही हुक्का पीने से भी रोज़ा टूट जाता है अगर रोज़ा याद हो और हुक्का पीने वाला अगर पीये तो कफ्फारा भी लाज़िम आयेगा।

(दुर्रे मुख़्तार, रद्दुल मुहतार वगैरहुमा)

मसअला : भरी सिंगी लगवायी या तेल या सुर्मा लगाया तो रोज़ा न गया अगर्चे तेल या सुर्मे का मज़ा हल्क में महसूस होता हो बल्कि थूक में सुर्मे का रंग भी दिखाई देता हो जब भी नहीं टूटा।

(जौहरा, रद्दुल मुहतार)

मसअला : बोसा लिया मगर इन्जाल न हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा। यूहीं औरत की तरफ़ बल्कि उसकी शर्मगाह की तरफ़ नज़र की मगर हाथ न लगाया और इन्जाल हो गया अगर्चे बार-बार नज़र करने या जिमा वगैरा के ख्याल करने से इन्जाल हुआ अगर्चे देर तक ख्याल जमाने से ऐसा हुआ हो उन सब सूरतों में रोज़ा नहीं टूटा।

(जौहरा, दुरै मुख़्तार)

मसअला : गुस्ल किया और पानी की खुनकी अन्दर महसूस हुई या कुल्ली की और पानी बिल्कुल फेंक दिया सिर्फ कुछ तरी मुँह में बाकी रह गयी थी थूक के साथ उसे निगल गया या दवा कूटी और हल्क़ में उसका मज़ा महसूस हुआ या हड़ चूसी या थूक निगल गया मगर थूक के साथ हड़ का कोई जुज़ हल्क में न पहुँचाया या कान में पानी चला गया या तिनके से कान खुजाया और उस पर कान का मैल लग गया फिर वही मैल लगा हुआ तिनका कान में डाला अगर्चे चन्द बार किया हो या दांत या मुँह में ख़फ़ीफ़ (बहुत । थोड़ी) चीज़ मामूली सी रह गई कि लुआब के साथ खुद ही उतर जायेगी और वा उतर गई या दांतों से खून निकलकर हल्क़ तक पहुँचा मगर हल्क से नीचे न उतरा तो इन सब सूरतों में रोजा न गया।



 

(दुर्रे मुख़्तार, फ़तहुल कदीर)

मसअला : रोज़ादार के पेट में किसी ने नेजा या तीर भोंक दिया अगर्चे उसकी भाल या पैकान (फल) पेट के अन्दर रह गई या उसके पेट में झिल्ली तक जख्म था किसी ने कंकरी मारी कि अन्दर चली गयी तो रोज़ा नहीं टूटा और अगर खुद उसने यह सब किया और भाल या पैकान या कंकरी अन्दर रह गयी तो जाता रहा।

(दुर्रे मुतार, रद्दुल मुहतार)

मसअला : बात करने में थूक से होंट तर हो गये और उसे पी गया, मुँह से राल टपकी मगर तार टूटा न था उसे चढ़ा कर पी गया, नाक में रेंठ आ गयी बल्कि नाक से बाहर हो गई मगर मुनकता (अलग) न हुई थी कि उसे चढ़ा कर निगल गया या खंकार मुँह में आया और खा गया अगर्चे कितना ही हो रोज़ा न जायेगा मगर इन बातों से एहतियात चाहिये।

(आलमगीरी, दुर्रे मुख़्तार, रद्दुल मुहतार)

मसअला : मक्खी हल्क में चली गयी रोज़ा न गया और कसदन निगली तो जाता रहा।

(आलमगीरी)

मसअला: भूले से जिमा कर रहा था याद आते ही अलग हो गया या सुबहे सादिक़ से पहले जिमा में मशगूल था सुबह होते ही जुदा हो गया अगर्चे दोनों सूरतों में जुदा होने के बाद इन्जाल हो गया हो अगरर्चे दोनों सूरतों में जुदा होना याद आने और सुबह होने पर हुआ कि जुदा होने की हरकत जिमा नहीं और अगर याद आने या सुबहे सादिक़ होने पर फौरन अलग न हुआ अगर्चे सिर्फ ठहर गया और हरकत न की रोज़ा जाता रहा।

मसअला : भूले से खाना खा रहा था याद आते ही फ़ौरन लुकमा फेंक दे या सुबहे सादिक़ से पहले खा रहा था और सुबहे सादिक़ होते ही उगल दिया रोज़ा न गया औः निगल लिया तो दोनों सूरतों में जाता रहा।

(आलमगीरी)

मसअला : गैरे सबीलैन में जिमा किया (यानी पेशाब या पाख़ाने के मक़ाम के अलावा मर्द्र ने मर्द या औरत से जो मज़ा हासिल किया) तो जब तक इन्जाल न हो रोज़ा न टूटेगा। यूँही हाथ से मनी निकालने में अगर्चे यह सख़्त हराम है कि हदीस में उसे मलऊन फ़रमाया।

(दुर्रे मुख्तार)



 

मसअला : चौपाया या मुर्दा से जिमा किया और इन्जाल न हुआ तो रोज़ा न गया और इन्जाल हुआ तो जाता रहा मादा जानवर का बोसा लिया या उसकी फ़र्ज़ (पेशाब की जगह) को छुआ तो रोज़ा न गया अगर्चे इन्जाल हो गया।

(दुर्रे मुख़्तार)

🎁 Ghusl Ka Tarika

मसअला : एहतिलाम हुआ या गीबत की तो रोज़ा न गया अगर्चे गीबत बहुत सख़्त कबीरा गुनाह है। कुरान मजीद में गीबत करने की निसबत फ़रमाया जैसे अपने मुर्दा भाई का गोश्त खाना और हदीस में फ़रमाया गीबत जिना से भी सख्ततर है अगर्चे गीबत की वजह से रोजे की नूरानियत जाती रहती है।

(दुर्रे मुख़्तार वगैरा)

मसअला : जनाबत की हालत में सुबह की बल्कि अगः सारे दिन जुनुब रहा रोज़ा न गया मगर इतनी देर तक कसदन (जानबूझ कर) गुस्ल न करना कि नमाज़ क़ज़ा हो जाए गुनाह व हराम है। हदीस में फ़रमाया कि जुनुब (बे-गुस्ला) जिस घर में होता है उसमें रहमत के फ़रिश्ते नहीं आते।

(दुर्रे मुख़्तार वगैरा)

🎁 कजा नमाजों का बयान | Qaza Namazo Ka Bayaan

मसअला : जिन्न यानी परी से जिमा किया तो जब तक इन्जाल न हो रोज़ा न टूटेगा।

(रद्दुल मुहतार)

यानी जबकि इन्सानी शक्ल में न हो और इन्सानी शक्ल में हो तो वही हुक्म है जो इन्सान से जिमा करने का है।



 

 

मसअला : तिल या तिल के बराबर कोई चीज़ चबाई और थूक के साथ हल्क से उतर गई तो रोज़ा न गया मगर जबकि उसका मज़ा हल्क में महसूस होता हो तो रोज़ा जाता रहा।

(फ़तहुल कदीर)

( 📚 बहारे शरीअत – पाँचवा हिस्सा 118/121 )

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