Zakat

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Zakat ज़कात

अल्लाह तआला फ़रमाता है :

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तर्जमा : और मुत्तकी वह है कि हमने जो उन्हें दिया है उसमें से हमारी राह में खर्च करते हैं।

और फ़रमाता है :

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तर्जमा : उनके मालों में से सदक़ा लो उसकी वजह से उन्हें पाक और सुथरा बना दो।

और फ़रमाता है:

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तर्जमा : और फलाह पाते वह हैं जो ज़कात अदा करते हैं।

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और फ़रमाता है

तर्जमा : और जो कुछ तुम ख़र्च करोगे अल्लाह तआला उसकी जगह और देगा और वह बेहतर रोजी देने वाला है।

और फ़रमाता है

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तर्जमा : जो लोग अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं उनकी कहावत उस दाने की है जिस से सात बालें निकलीं, हर बाल में सौ दाने और अल्लाह जिसे चाहता है ज्यादा देता है और अल्लाह वुसअत वाला और बड़ा इल्म वाला है। जो लोग अल्लाह की राह में अपने माल को ख़र्च करते हैं फिर ख़र्च करने के बाद न एहसान जताते न अजियत देते हैं उनके लिए उनका सवाब उनके रब के हुजूर है और न उन पर कुछ ख़ौफ़ है और न वह ग़मगीन होंगे अच्छी बात और मगफिरत उस सदके से बेहतर है जिसके बाद अज़ियत देना हो और अल्लाह बेपरवाह हिल्म वाला है।

और फरमाता है :

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तर्जमा : हरगिज़ नेकी हासिल न करोगे जब तक उस में से न खर्च करो जिसे महबूब रखते हो और जो कुछ ख़र्च करोगे अल्लाह उसे जानता है।

और फरमाता है :

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तर्जमा : नेकी इसका नाम नहीं कि मशरिक व मग़रिब की तरफ़ मुँह कर दो नेकी तो उसकी है जो अल्लाह और पिछले दिन और मलाइका व किताब व अम्बिया पर ईमान लाया और माल को उसकी महब्बत पर रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों और मुसाफ़िर और साइलीन (मांगने वाले) को और गर्दन छुटाने में दिया और नमाज़ काइम की

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और ज़कात दी और नेक वह लोग हैं कि जब कोई मुआहदा करें तो अपने अहद को पूरा करें और तकलीफ़ व मुसीबत और लड़ाई के वक़्त सब्र करने वाले वह लोग सच्चे हैं और वही लोग मुत्तकी हैं

और फरमाता है :

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तर्जमा : जो लोग बुख़्ल (कंजूसी) करते हैं उसके साथ जो अल्लाह ने अपने फ़ज़्ल से उन्हें दिया वह यह गुमान न करें कि यह उनके लिए बेहतर है बल्कि यह उनके लिए बुरा है उस चीज़ का कियामत के दिन उनके गले में तौक़ डाला जाएगा जिसके साथ बुख़्ल किया।

और फरमाता है :

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तर्जमा : जो लोग सोना और चाँदी जमा करते और उसे अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते हैं उन्हें दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी सुना दो जिस दिन आतिशे जहन्नम में वह तपाए जायेंगे और उनसे उन की पेशानियाँ और करवटें और पीठे दागी जायेंगी (और उन से कहा जाएगा) यह वही है जो तुमने अपने नफ्स के लिए जमा किया था तो अब चखो जो जमा करते थे।

(हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया कोई रुपया दूसरे रुपये पर न रखा जाएगा न कोई अशर्फी दूसरी अशर्फी पर बल्कि जकात न देने वाले का जिस्म इतना बड़ा कर दिया जाएगा कि लाखों करोड़ों जमा किये हों तो हर रुपया जुदा दाग देगा।)

नीज़ ज़कात के बयान में ब-कसरत आयात वारिद हुईं जिनसे उसका मोहतम बिश्शान होना ज़ाहिर है यानी जिससे ज़कात की शान की अज़मत ज़ाहिर होती है। अहादीस इसके बयान में बहुत हैं बाज़ उनमें से यह हैं।

हदीस न. 1 व 2 :- सही बुख़ारी शरीफ में अबू हुरैरह रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं जिसको अल्लाह तआला माल दे और वह उसकी ज़कात अदा न करे तो क़ियामत के दिन वह माल गन्जे साँप की सूरत में कर दिया जाएगा जिसके सर पर दो चित्तियाँ होंगी वह साँप उसके गले में तौक बनाकर डाल दिया जाएगा फिर उसकी बाछे पकड़ेगा और कहेगा मैं तेरा माल हूँ मैं तेरा ख़ज़ाना हूँ। उसके बाद हुजूर ने इस आयत की तिलावत की :

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इसी के मिस्ल तिर्मिज़ी व नसई व इब्ने माजा ने अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की।

हदीस न. 3 :- इमाम अहमद की रिवायत अबू हुरैरह रदियल्लाह तआला अन्हु से यूँ है जिस माल की ज़कात नहीं दी गई कियामत के दिन वह गंजा साँप होगा मालिक को दौड़ाएगा वह भागेगा यहाँ तक कि अपनी उंगलियाँ उसके मुँह में डाल देगा। नोट : साँप जब हजार बरस का होता है तो उसके सर पर बाल निकलते हैं और जब दो हज़ार बरस का होता है वह बाल गिर जाते हैं और वह गंजा हो जाता है और जो साँप जितना पुराना होता है उतना ही उसका जहर तेज़ होता है।



 

हदीस न. 4 व 5 :- सही मुस्लिम शरीफ़ में अबू हुरैरह रदियल्लाह तआला अन्हु से मरवी फ़रमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जो शख्स सोने चाँदी का मालिक हो और उसका हक अदा न करे तो जब कियामत का दिन होगा उसके लिए आग के पत्तर बनाये जायेंगे और उन पर जहन्नम की आग भड़काई जाएगी और उनसे उसकी करवट और पेशानी और पीठ दागी जाएगी जब ठन्डे होने पर आयेंगे फिर वैसे ही कर दिये जायेंगे। यह मामला उस दिन का है जिसकी मिक़दार पचास हज़ार बरस है यहाँ तक कि बन्दों के दरमियान फैसला हो जायेगा और अब वह अपनी राह देखेगा ख़्वाह जन्नत की तरफ़ जाए या जहन्नम की तरफ़ और ऊँट के बारे में फ़रमाया जो उसका हक़ नहीं अदा करता कियामत के दिन हमवार (सपाट) मैदान में लिटा दिया जाएगा और वह ऊँट सब के सब निहायत फरबा (मोटे) होकर आयेंगे पाँव से उसे रौंदेगे और मुँह से काँटेंगे। जब उनकी पिछली जमाअत गुज़र जाएगी पहली लौटेगी और गाय और बकरियों के बारे में फ़रमाया कि उस शख्स को हमवार मैदान में लिटायेंगे और वह सब की सब आयेंगी न उनमें मुड़े हुए सींग की कोई होगी न बे-संग की न टूटे सींग की और सींगो से मारेंगी और खुरो से रौंदेगी और इसी के मिस्ल सहीहैन में ऊँट और गाय और बकरियों की ज़कात न देने में अबूज़र रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी। (यह हदीस बहुत तवील यानी लम्बी है मुख़्तसर नक़ल की गई)

हदीस न. 6 :- सही बुख़ारी व मुस्लिम में अबू हुरैरह रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बाद जब सिद्दीके अकबर रदियल्लाह तआला अन्हु खलीफ़ा हुए देहात में कुछ लोग काफ़िर हो गए (कि ज़कात की फ़र्जियत से इन्कार कर बैठे) सिद्दीके अकबर ने उन पर जेहाद का हुक्म दिया। अमीरुल मोमिनीन फ़ारूके आज़म रदियल्लाह तआला अन्हु ने कहा उनसे आप क्यूँ कर क़िताल (जंग) करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने तो यह फ़रमाया है मुझे हुक्म है कि लोगों से लड़ो यहाँ तक कि ‘लाइला-ह इल्लल्लाह कहें और जिसने लाइला-ह इल्लल्लाह’ कह लिया उसने अपनी जान और माल बचा लिया मगर हक इस्लाम में और उसका हिसाब अल्लाह के जिम्मे है (यानी यह लोग ‘लाइला-ह इल्लल्लाह’ कहने वाले हैं इन पर कैसे जेहाद किया जाएगा) सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया ख़ुदा की कसम मैं उससे जेहाद करूँगा जो नमाज़ व ज़कात में तफ़रिका करे (कि नमाज़ को फ़र्ज़ माने और ज़कात की फ़र्जियत से इन्कार करे) ज़कात हक्कुल माल है यानी माल का हक़ है कि उसमें से ख़ुदा की राह में ख़र्च करे। ख़ुदा की कसम बकरी का बच्चा जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास हाजिर किया करते थे अगर मुझे देने से इन्कार करेंगे तो उस पर उनसे जेहाद करूँगा। फारूके आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं वल्लाह (खुदा की कसम) मैंने देखा कि अल्लाह तआला ने सिद्दीक़ का सीना खोल दिया है उस वक़्त मैंने भी पहचान लिया कि वही हक़ है। (इस हदीस से मालूम हुआ कि सिर्फ कलिमागोई इस्लाम के लिए काफी नहीं जब तक तमाम ज़रूरीयाते दीन का इकरार न करे और अमीरुल मोमिनीन फ़ारूके आजम का बहस करना इस वजह से था कि उनके इल्म में पहले यह बात नहीं थी कि वह फ़र्जियत के मुन्किर हैं यह ख्याल था कि जकात देते नहीं इसकी वजह से गुनाहगार हुए काफ़िर तो न हुए कि उन पर जेहाद काइम किया जाए मगर जब मालूम हो गया तो फ़रमाते हैं मैंने पहचान लिया कि वही हक है जो हज़रते सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु तआला अन्हु ने समझा और किया।)



 

हदीस न. 7 :- अबू दाऊद ने अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत की कि जब यह आयते करीमा नाज़िल हुई,

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मुसलमानों पर शाक हुई (समझे कि चाँदी सोना जमा करना हराम है तो बहुत दिक्कत का सामना होगा) फारूके आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा मैं तुम से मुसीबत दूर करूँगा। ख़िदमते अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम में हाज़िर हुए अर्ज की या रसूलल्लाह! यह आयत हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के असहाब पर गिरौं मालूम हुई। फरमाया कि अल्लाह तआला ने ज़कात तो इसलिए फ़र्ज़ की कि तुम्हारे बाकी माल को पाक कर दें और मवारीस (यानी मीरास) इस लिए फ़र्ज़ किये कि तुम्हारे बाद वालों के लिए हो (यानी मुतलकन माल जमा करना हराम हो तो ज़कात से माल की तहारत न होती बल्कि ज़कात किस चीज़ पर वाजिब होती और मीरास काहे में जारी होती बल्कि जमा करना हुराम वह माल है कि जिसकी ज़कात न दे) इस पर फ़ारूके आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु ने तकबीर कही।

हदीस न. 8 :- बुख़ारी अपनी तारीख में और इमाम शाफ़िई व बज्जाज़ व बैहकी उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं जकात किसी माल में न मिलेगी मगर उसे हलाक कर देगी। बाज़ इमामों ने इस हदीस के यह मअना बयान किये कि जकात वाजिब हुई और अदा न की और अपने माल में मिलाए रहा तो यह हराम उस हलाल को हलाक (बरबाद) कर देगा और इमाम अहमद ने यह फ़रमाया कि इस हदीस के मअना यह हैं कि मालदार शख़्स माले जकात ले तो यह माले जकात उसके माल को हलाक कर देगा कि ज़कात तो फकीरों के लिए है और दोनों मअना सही हैं।



 

हदीस न. 9 :- तबरानी ने औसत में बुरीदा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं जो कौम ज़कात न देगी अल्लाह तआला उसे कहत में मुबतला फ़रमाएगा।

हदीस न. 10 :- तबरानी ने औसत में फ़ारूके आज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं खुश्की व तरी में जो माल तलफ (बरबाद) होता है वह जकात न देने से तलफ होता है।

हदीस न. 11 :- सहीहैन में अहनफ इब्ने कैस से मरवी सय्येदिना अबूज़र रदियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया उनके सरे पिस्तान पर जहन्नम का गर्म पत्थर रखेंगे कि सीना तोड़ कर शाने से निकल जाएगा और शाने की हड्डी पर रखेंगे कि हड्डियाँ तोड़ता सीने से निकलेगा और सही मुस्लिम शरीफ़ में यह भी है कि मैंने नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को फ़रमाते सुना कि पीठ तोड़ कर करवट से निकलेगा और गुद्दी तोड़ कर पेशानी से।

हदीस न. 12 :- तबरानी अमीरुल मोमिनीन अली रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फ़रमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़कीर हर्गिज़ नंगे भूखे होने की तकलीफ़ न उठायेंगे मगर मालदारों के हाथों, सुन लो ऐसे तवंगरों (मालदारों) से अल्लाह तआला सख़्त हिसाब लेगा और उन्हें दर्दनाक अज़ाब देगा।

हदीस न. 13 :- नीज़ तबरानी अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फ़रमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम कियामत के दिन तवंगरों के लिए मुहताजों के हाथों से ख़राबी है मुहताज अर्ज करेंगे हमारे हुकूक जो तूने इन पर फर्ज किए थे इन्होंने जुल्मन न दिये अल्लाह तआला फ़रमाएगा मुझे कसम है अपनी इज्जत व जलाल की कि तुम्हें अपना कुर्ब अता करूँगा और इन्हें दूर रखूगा।

हदीस न. 14 :- इब्ने खुज़ैमा व इब्ने हब्बान अपनी सही में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फ़रमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम दोज़ख़ में सबसे पहले तीन शख़्स जायेंगे इनमें एक वह तवंगर है कि अपने माल में अल्लाह तआला का हक़ अदा नहीं करता।



 

हदीस न. 15 :- इमाम अहमद मुसनद में अम्मारा इब्ने हज्म रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं अल्लाह तआला ने इस्लाम में चार चीजें फर्ज की हैं जो इनमें से तीन अदा करे वह उसे कुछ काम न देंगी जब तक पूरी चारों न बजा लाए। नमाज़, जकात, रोज़ा रमज़ान, हज्जे बैतुल्लाह।

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हदीस न. 16 :- तबरानी कबीर में रावी अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाह तआला अन्हु फ़रमाते हैं हमें हुक्म दिया गया कि नमाज़ पढ़ें और ज़कात दें और जो जकात न दे उसकी नमाज़ कबूल नहीं।

हदीस न. 17 :- सहीहैन व मुसनदे अहमद व सुनने तिर्मिज़ी में अबू हुरैरह रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी फ़रमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम सदका देने से माल कम नहीं होता और बन्दा किसी का कुसूर माफ़ करे तो अल्लाह तआला उसकी इज्जत ही बढ़ाएगा और जो अल्लाह के लिए तवाज़ो करे अल्लाह उसे बलन्द फ़रमाएगा।

हदीस न. 18 :- बुख़ारी व मुस्लिम उन्हीं से रावी फरमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जो शख्स अल्लाह की राह में जोड़ा ख़र्च करे वह जन्नत के सब दरवाज़ों से बुलाया जाएगा और जन्नत के कई दरवाज़े हैं जो नमाज़ी है दरवाज़ए नमाज़ से बुलाया जाएगा जो अहले जेहाद से है दरवाज़ए जेहाद से बुलाया जाएगा जो अहले सदक़ा से है दरवाज़ए सदका से बुलाया जाएगा जो रोज़ादार है बाबुरैय्यान से बुलाया जायेगा। सिद्दीके अकबर रदियल्लाहु तआला अन्हु ने अर्ज की इसकी तो कुछ ज़रूरत नहीं कि हर दरवाज़े से बुलाया जाए (यानी मक़सूद जन्नत में दाखिल होना है वह एक दरवाजे से हासिल है) मगर कोई है ऐसा जो सब दरवाज़ों से बुलाया जाए। फ़रमाया हाँ और मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम उनमें से हो। नोट : अम्बियाए किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम का उम्मीद करना यकीन है तो अब मतलब यह हुआ कि हज़रते सिद्दीके. अकबर रदियल्लाहु तआला अन्हु यकीनन जन्नत के तमाम दरवाज़ों से बुलाये जायेंगे। अल्लाहु अकबर कबीरा!

हदीस न. 19 :- बुख़ारी व मुस्लिम व तिर्मिज़ी व नसई व इब्ने माजा व इब्ने ख़ुज़ैमा अबू हुरैरह रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं जो शख्स खजूर बराबर हलाल कमाई से सदक़ा करे और अल्लाह नहीं कबूल फ़रमाता मगर हुलाल को तो उसे अल्लाह तआला दस्ते रास्त (यानी दस्ते कुदरत) से कबूल फ़रमाता है फिर उसे उसके मालिक के लिए परवरिश करता है जैसे तुम में कोई अपने बछेरे की तरबियत करता है यहाँ तक कि वह सदका पहाड़ बराबर हो जाता है।



 

हदीस न. 20 व 21 :- नसई व इब्ने माजा अपनी सुनन में व इब्ने ख़ुञ्जमा व इब्ने हब्बान अपनी सही में और हाकिम ने अबू हुरैरह व अबू सईद रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खुतबा पढ़ा और यह फ़रमाया कि कसम है उसकी जिसके हाथ में मेरी जान है। इसको तीन बार फ़रमाया फिर सर झुका लिया तो हम सब ने सर झुका लिये और रोने लगे, यह नहीं मालूम कि किस चीज़ पर कसम खाई फिर हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सरे मुबारक उठा लिया और चेहरए अकदस में खुशी नुमाया (जाहिर) थी तो हमें यह बात सुर्ख ऊँटों से ज्यादा प्यारी थी और फ़रमाया जो बन्दा पाँचों नमाजें पढ़ता है और रमज़ान के रोजे रखता है और ज़कात देता है और सातों कबीरा गुनाहों से बचता है उसके लिए जन्नत के दरवाजे खोल दिये जायेंगे और उससे कहा जायेगा कि सलामती के साथ दाखिल हो।

हदीस न. 22 :- इमाम अहमद ने अनस इब्ने मालिक रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं अपने माल की जकात निकाल कि वह पाक करने वाली है तुझे पाक कर देगी और रिश्तेदारों से सुलूक कर और मिस्कीन और पड़ोसी और साइल (मांगने वालों) का हक़ पहचान।

हदीस न. 23 :- तबरानी ने औसत व कबीर में अबू दरदा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जकात इस्लाम का पुल है।

हदीस न. 24 :- तबरानी औसत में अबू हुरैरह रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं जो मेरे लिए छह चीज़ों की किफ़ायत करे तो मैं उसके लिए जन्नत का ज़ामिन (जमानती) हूँ। मैंने अर्ज कि वह क्या हैं या रसूलल्लाह। फ़रमाया नमाज़ व ज़कात व अमानत व शर्मगाह व शिकम (पेट) व ज़बान।

हदीस न. 25 :- बज्जाज़ ने अलकमा से रिवायत की कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया तुम्हारे इस्लाम का पूरा होना यह है कि अपने अमवाल (मालों) की ज़कात अदा करो।



 

हदीस न. 26 :- तबरानी ने कबीर में इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत की कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जो अल्लाह व रसूल पर ईमान लाता है वह अपने माल की ज़कात अदा करे और जो अल्लाह व रसूल पर ईमान लाता है वह हक बोले या सुकूत करे यानी बुरी बात ज़बान से न निकाले और जो अल्लाह व रसूल पर ईमान लाता है वह अपने मेहमान का इकराम (इज्जत) करे।

हदीस न. 27 :- अबू दाऊद ने हसन बसरी से और तबरानी व बैहकी ने सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम की एक जमाअत से रिवायत की कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि ज़कात देकर अपने मालों को मजबूत किलों में कर लो और अपने बीमारों का इलाज सदके से करो और बला नाज़िल होने पर दुआ व तज़रों (गिरिया व जारी) से इस्तिआनत करो यानी मदद मांगो।

हदीस न. 28 :- इब्ने खुजै़मा अपनी सही और तबरानी औसत और हाकिम मुस्तदरक में जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं जिसने अपने माल की ज़कात अदा कर दी बेशक अल्लाह तआला ने उससे शर दूर फ़रमा दिया।

( 📚 बहारे शरीअत – पाँचवा हिस्सा 5/14 )

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