31 Surah Luqman

31 Surah Luqman

31 सूरए लुक़मान – 31 Surah Luqman

सूरए लुक़मान मक्के में उतरी, सिवाए दो आयतों के जो “वलौ अन्ना मा फ़िल अर्दें” से शुरू होती हैं. इस सूरत में चार रूकू, चौंतीस आयतें, पाँच सौ अड़तालीस कलिमें और दो हज़ार एक सौ दस अक्षर हैं.

31 सूरए लुक़मान – पहला रूकू

31 सूरए लुक़मान – पहला रूकू

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ الم

تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ الْحَكِيمِ
هُدًى وَرَحْمَةً لِّلْمُحْسِنِينَ
الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُم بِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ
أُولَٰئِكَ عَلَىٰ هُدًى مِّن رَّبِّهِمْ ۖ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ
وَمِنَ النَّاسِ مَن يَشْتَرِي لَهْوَ الْحَدِيثِ لِيُضِلَّ عَن سَبِيلِ اللَّهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَيَتَّخِذَهَا هُزُوًا ۚ أُولَٰئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ مُّهِينٌ
وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِ آيَاتُنَا وَلَّىٰ مُسْتَكْبِرًا كَأَن لَّمْ يَسْمَعْهَا كَأَنَّ فِي أُذُنَيْهِ وَقْرًا ۖ فَبَشِّرْهُ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ جَنَّاتُ النَّعِيمِ
خَالِدِينَ فِيهَا ۖ وَعْدَ اللَّهِ حَقًّا ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
خَلَقَ السَّمَاوَاتِ بِغَيْرِ عَمَدٍ تَرَوْنَهَا ۖ وَأَلْقَىٰ فِي الْأَرْضِ رَوَاسِيَ أَن تَمِيدَ بِكُمْ وَبَثَّ فِيهَا مِن كُلِّ دَابَّةٍ ۚ وَأَنزَلْنَا مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَنبَتْنَا فِيهَا مِن كُلِّ زَوْجٍ كَرِيمٍ
هَٰذَا خَلْقُ اللَّهِ فَأَرُونِي مَاذَا خَلَقَ الَّذِينَ مِن دُونِهِ ۚ بَلِ الظَّالِمُونَ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ

सूरए लुक़मान मक्का में उतरी, इसमें 34 आयतें, 4 रूकू हैं.
– पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए लुक़मान मक्के में उतरी, सिवाए दो आयतों के जो “वलौ अन्ना मा फ़िल अर्दें” से शुरू होती हैं. इस सूरत में चार रूकू, चौंतीस आयतें, पाँच सौ अड़तालीस कलिमें और दो हज़ार एक सौ दस अक्षर हैं.

अलिफ़ लाम मीम{1}यह हिकमत वाली वाली किताब की आयतें हैं {2} हिदायत और रहमत हैं नेकों के लिये {3} वो जो नमाज़ क़ायम रखें और ज़कात दें और आख़िरत पर यक़ीन लाएं {4} वही अपने रब की हिदायत पर हैं और उन्हीं का काम बना {5}और कुछ लोग खेल की बातें खरीदते हैं(2)
(2) लहब यानी खेल हर उस बातिल को कहते हैं जो आदमी को नेकी से और काम की बातों से ग़फ़लत में डालें, कहानियाँ अफ़साने इसी में दाख़िल है. यह आयत नज़र बिन हारिस बिन कल्दह के हक़ में उतरी जो व्यापर के सिलसिले में दूसरे मुल्कों में सफ़र किया करता था, उसने अजमियों की किताबें ख़रीदीं जिनमें क़िस्से कहानियाँ थीं. वह क़ुरैश को सुनाता और कहता कि मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) तुम्हें आद और समूद के क़िस्से सुनाते हैं और मैं रूस्तम और इस्फ़न्दयार और फ़ारस के बादशाहों की कहानियाँ सुनाता हूँ. कुछ  लोग उन कहानियों में लीन हो गए और क़ुरआने पाक सुनने से रह गए. इसपर यह आयत उतरी.

कि अल्लाह की राह से बहका दें बे समझे(3)
(3) यानी जिहालत के तौर पर लोगों को क़ुरआने पाक सुनने और इस्लाम में दाख़िल होने से रोकें और अल्लाह की आयतों के साथ ठ्ठा करें.

और उसे हंसी बनालें, उनके लिये ज़िल्लत का अज़ाब है{6} और जब उस पर हमारी आयतें पढ़ी जाएं तो घमण्ड करता हुआ फिरे(4)
(4) और उनकी तरफ़ तवज्जोह न करे.

जैसे उन्हें सुना ही नहीं जैसे उसके कानों में टैंट (रूई का फाया) है (5)
(5)  और वह बेहरा है.

तो उसे दर्दनाक अज़ाब का मुजदा (ख़ुशख़बरी) दो {7} बेशक जो ईमान लाए और अच्छे काम किये उनके लिये चैन के बाग़ हैं, {8} हमेशा उनमें रहेंगे, अल्लाह का वादा है सच्चा, और वही इज़्ज़त व हिकमत वाला है {9} उसने आसमान बनाए बे ऐसे सुतूनों के जो तुम्हें नज़र आएं(6)
(6) यानी कोई सुतून नहीं है, तुम्हारी नज़र ख़ुद इसकी गुनाह है.

और ज़मीन में डाले लंगर (7)
(7) ऊंचे पहाड़ों के.

तुम्हें लेकर न कांपें और उसमें हर क़िस्म के जानवर फैलाए और हमने आसमान से पानी उतारा(8)
(8) अपने फ़ज़्ल से बारिश की.

तो ज़मीन में हर नफ़ीस जोड़ा उगाया(9){10}
(9) उमदा क़िस्मों की वनस्पति, पेड़ पौधे पैदा किये.

यह तो अल्लाह का बनाया हुआ है(10)
(10) जो तुम देख रहे हो.

मुझे वह दिखाओ(11)
(11) ऐ मुश्रिकों!

जो इसके सिवा औरों ने बनाया (12)
(12) यानी बुतों ने, जिन्हें तुम इबादत के लायक़ क़रार देते हो.
बल्कि ज़ालिम खुली गुमराही में हैं {11}

31 सूरए लुक़मान – दूसरा रूकू

31 – सूरए लुक़मान – दूसरा रूकू

وَلَقَدْ آتَيْنَا لُقْمَانَ الْحِكْمَةَ أَنِ اشْكُرْ لِلَّهِ ۚ وَمَن يَشْكُرْ فَإِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهِ ۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ حَمِيدٌ
وَإِذْ قَالَ لُقْمَانُ لِابْنِهِ وَهُوَ يَعِظُهُ يَا بُنَيَّ لَا تُشْرِكْ بِاللَّهِ ۖ إِنَّ الشِّرْكَ لَظُلْمٌ عَظِيمٌ
وَوَصَّيْنَا الْإِنسَانَ بِوَالِدَيْهِ حَمَلَتْهُ أُمُّهُ وَهْنًا عَلَىٰ وَهْنٍ وَفِصَالُهُ فِي عَامَيْنِ أَنِ اشْكُرْ لِي وَلِوَالِدَيْكَ إِلَيَّ الْمَصِيرُ
وَإِن جَاهَدَاكَ عَلَىٰ أَن تُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا ۖ وَصَاحِبْهُمَا فِي الدُّنْيَا مَعْرُوفًا ۖ وَاتَّبِعْ سَبِيلَ مَنْ أَنَابَ إِلَيَّ ۚ ثُمَّ إِلَيَّ مَرْجِعُكُمْ فَأُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
يَا بُنَيَّ إِنَّهَا إِن تَكُ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِّنْ خَرْدَلٍ فَتَكُن فِي صَخْرَةٍ أَوْ فِي السَّمَاوَاتِ أَوْ فِي الْأَرْضِ يَأْتِ بِهَا اللَّهُ ۚ إِنَّ اللَّهَ لَطِيفٌ خَبِيرٌ
يَا بُنَيَّ أَقِمِ الصَّلَاةَ وَأْمُرْ بِالْمَعْرُوفِ وَانْهَ عَنِ الْمُنكَرِ وَاصْبِرْ عَلَىٰ مَا أَصَابَكَ ۖ إِنَّ ذَٰلِكَ مِنْ عَزْمِ الْأُمُورِ
وَلَا تُصَعِّرْ خَدَّكَ لِلنَّاسِ وَلَا تَمْشِ فِي الْأَرْضِ مَرَحًا ۖ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُورٍ
وَاقْصِدْ فِي مَشْيِكَ وَاغْضُضْ مِن صَوْتِكَ ۚ إِنَّ أَنكَرَ الْأَصْوَاتِ لَصَوْتُ الْحَمِيرِ

और बेशक हमने लुक़मान को हिकमत (बोध) अता फ़रमाई(1)
(1) मुहम्मद बिन इस्हाक़ ने कहा कि लुक़मान का नसब यह है लुक़मान बिन बाऊर बिन नाहूर बिन तारिख़. वहब का क़ौल है कि हज़रत लुक़मान हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम के भान्जे थे. मक़ातिल ने कहा कि हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम की ख़ाला के बेटे थे. वाक़िदी ने कहा बनी इस्राईल में क़ाज़ी थे. और यह भी कहा गया है कि आप हज़ार साल  ज़िन्दा रहे और हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम का ज़माना पाया और उनसे इल्म हासिल किया और उनके ज़माने में फ़तवा देना छोड़ दिया, अगरचे पहले से फ़तवा देते थे. आपकी नबुव्वत में इख़्तिलाफ़ है. अक्सर उलमा इसी तरफ़ हैं कि आप हकीम थे, नबी न थे. हिकमत अक़्ल और समझ को कहते हैं और कहा गया है कि हिकमत वह इल्म है जिसके मुताबिक़ अमल किया जाए. कुछ ने कहा कि हिकमत मअरिफ़त और कामों के सम्बन्ध में भरपूर समझदारी को कहते हैं और यह भी कहा गया है कि अल्लाह तआला इसको जिसके दिल में रखता है, उसके दिल को रौशन कर देता है.

कि अल्लाह का शुक्र कर(2)
(2)  इस नेअमत पर कि अल्लाह तआला ने हिकमत अता की.

और जो शुक्र करे वह अपने भले को शुक्र करता है(3)
(3) क्योंकि शुक्र से नेअमत ज़्यादा होती है और सवाब मिलता है.

और जो नाशुक्री करे तो बेशक अल्लाह बेपर्वाह है सब ख़ूबियों सराहा {12} और याद करो जब लुक़मान ने अपने बेटे से कहा और वह नसीहत करता था(4)
(4) हज़रत लुक़मान अला नबिय्यिना व अलैहिस्सलाम के उन सुपुत्र का नाम अनअम या अश्कम था. इन्सान का आला मरतबा यह है कि वह ख़ुद कामिल हो और दूसरे की तकमील करे. तो हज़रत लुक़मान अला नबिय्यिना व अलैहिस्सलाम का कामिल होना तो “आतैनल लुक़मानल हिकमता” में बयान फ़रमा दिया और दूसरे की तकमील करना “व हुवा यईज़ुहू” (और वह नसीहत करता था) से ज़ाहिर फ़रमाया, और नसीहत बेटे को की, इससे मालूम हुआ कि नसीहत में घर वालों और क़रीबतर लोगों को पहले रखना चाहिये और नसीहत की शुरूआत शिर्क से मना करके की गई इससे मालूम हुआ कि यह अत्यन्त अहम है.

ऐ मेरे बेटे, अल्लाह का किसी को शरीक न करना, बेशक शिर्क बड़ा ज़ुल्म है(5){13}
(5) क्योंकि इसमें इबादत के लायक़ जो न हो उसको इबादत के योग्य जो है उसके बराबर क़रार देना है और इबादत को उसके अर्थ के ख़िलाफ़ रखना, ये दोनों बातें, बड़ा भारी ज़ुल्म हैं.

और हमने आदमी को उसके माँ बाप के बारे में ताक़ीद फ़रमाई (6)
(6)  कि उनका फ़रमाँबरदार रहे और उनके साथ नेक सुलूक करे (जैसा कि इसी आयत में आगे इरशाद है)

उसकी माँ ने उसे पेट में रखा कमज़ोरी पर कमज़ोरी झेलती हुई(7)
(7) यानी उसकी कमज़ोरी दम ब दम तरक़्क़ी पर होती है, जितना गर्भ बढ़ता जाता है, बोझ ज़्यादा होता है और कमज़ोरी बढ़ती है. औरत को गर्भवती होने के बाद कमज़ोरी और दर्द और मशक़्क़ते पहुंचती रहती हैं. गर्भ ख़ुद कमज़ोर करने वाला है. ज़चगी का दर्द कमज़ोरी पर कमज़ोरी है. और बच्चा होना इसपर और अधिक सख़्ती है. दूध पिलाना इन सब पर और ज़्यादा है.

और उसका दूध छूटना दो बरस में है यह कि हक़ मान मेरा और अपने माँ बाप का (8)
(8) यह वह ताकीद है जिसका ज़िक्र ऊपर फ़रमाया था. सुफ़ियान बिन ऐनिय्या ने इस आयत की तफ़सीर में फ़रमाया कि जिसने पाँचों वक़्त की नमाज़ें अदा कीं  वह अल्लाह तआला का शुक्र बजा लाया और जिसने पाँचों वक़्त की नमाज़ों के बाद माँ बाप के लिये दुआएं कीं उसने माँ बाप की शुक्रगुज़ारी की.

आख़िर मुझी तक आना है {14} और अगर वो दोनों तुझ से कोशिश करें कि मेरा शरीक ठहराए ऐसी चीज़ को जिसका तुझे इल्म नहीं(9)
(9) यानी इल्म से तो किसी को मेरा शरीक ठहरा ही नहीं सकते क्योंकि मेरा शरीक असंभव है, हो ही नहीं सकता, अब जो कोई भी कहेगा तो बेइल्मी ही से किसी चीज़ के शरीक ठहराने को कहेगा. ऐसा अगर माँ बाप भी कहे.

तो उनका कहना न मान(10)
(10) नख़ई ने कहा कि माँ बाप की फ़रमाँबरदारी वाजिब है लेकिन अगर वो शिर्क का हुक्म करें तो उनकी फ़रमाँबरदारी न कर क्योंकि ख़ालिक़ की नाफ़रमानी करने में किसी मख़लूक़ की फ़रमाँबरदारी रवा नहीं.

और दुनिया में अच्छी तरह उनका साथ दें(11)
(11) हुस्ने अख़्लाक़ और हुस्ने सुलूक और ऐहसान और तहम्मुल के साथ.

और उसकी राह चल जो मेरी तरफ़ रूजू (तवज्जूह) लाया(12)
(12) यानी नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और आपके सहाबा की राह, इसी को सुन्नत व जमाअत का मज़हब कहते हैं.

फिर मेरी ही तरफ़ तुम्हें फिर आना है तो मैं बतादूंगा जो तुम करते थे(13){15}
(13) तुम्हारे कर्मों की जज़ा देकर. ‘व वस्सैनल इन्साना’ (यानी और हमने आदमी को उसके माँ बाप में ताकीद फ़रमाई) से यहां तक जो मज़मून है यह हज़रत लुक़मान अला नबिय्यिना व अलैहिस्सलाम का नहीं है बल्कि उन्होंने अपने सुपुत्र को अल्लाह तआला की नेअमत का शुक्र करने का हुक्म दिया था और शिर्क से मना किया था तो अल्लाह तआला ने माँ बाप की फ़रमाँबरदारी और उसका महत्व इरशाद फ़रमाया. इसके बाद फिर लुक़मान अलैहिस्सलाम का क़ौल बयान किया जाता है कि उन्होंने अपने बेटे से फ़रमाया.

ऐ मेरे बेटे बुराई अगर राई के दाने बराबर हो फिर वह पत्थर की चट्टान में या आसमानों में या ज़मीन में कहीं हो(14)
(14) कैसी ही पोशीदा जगह हो, अल्लाह तआला से नहीं छुप सकती.

अल्लाह उसे ले आएगा(15)
(15) क़यामत के दिन, और उसका हिसाब फ़रमाएगा.

बेशक अल्लाह हर बारीकी (सुक्ष्मता) का जानने वाला ख़बरदार है(16) {16}
(16) यानी हर छोटा बड़ा उसके इल्म के घेरे में है.

ऐ मेरे बेटे नमाज़ क़ायम रख और अच्छी बात का हुक्म दे और बुरी बात से मना कर और जो उफ़ताद तुझ पर पड़े(17)
(17) अच्छाई का हुक्म देने और बुराई से मना करने से.

उस पर सब्र कर, बेशक ये हिम्मत के काम हैं (18) {17}
(18) उनका करना लाज़िम है. इस आयत से मालम हुआ कि नमाज़ और नेकी के हुक्म और बुराई की मनाही और तकलीफ़ पर सब्र ऐसी ताअतें है जिनका तमाम उम्मतों में हुकम था.

और किसी से बात करने में (19)
(19) घमण्ड के तौर पर.

अपना रूख़सारा कज (टेढ़ा) न कर(20)
(20) यानी जब आदमी बात करें तो उन्हें तुच्छ जान कर उनकी तरफ़ से मुंह फेरना, जैसा घमण्डियों का तरीक़ा है, इख़्तियार न करना. मालदार और फ़क़ीर के साथ विनम्रता से पेश आना.

और ज़मीन में इतराता न चल, बेशक अल्लाह को नहीं भाता कोई इतराता फ़ख्र करता {18} और बीच की चाल चल(21)
(21) न बहुत तेज़, न बहुत सुस्त, कि ये दोनों बुरी हैं. एक में घमण्ड है, और एक में छिछोरापन. हदीस शरीफ़ में है कि बहुत तेज़ चलना मूमिन का विक़ार खोता है.

और अपनी आवाज़ कुछ पस्त (नीची) कर(22)
(22) यानी शोर ग़ुल और चीख़ने से परहेज़ करे.

बेशक सब आवाज़ों में बुरी आवाज़ गधे की(23){19}
(23)  मतलब यह है कि शोर मचाना और आवाज़ ऊंची करना मकरूह और ना पसन्दीदा है और इसमें कुछ बड़ाई नहीं हैं. गधे की आवाज़ ऊंची होने के बावुजूद कानों को बुरी लगने वाली और डरावनी है. नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को नर्म आवाज़ से कलाम करना पसन्द था और सख़्त आवाज़ से बोलने को नापसन्द रखते थे.

31 सूरए लुक़मान – तीसरा रूकू

31 – सूरए लुक़मान- तीसरा रूकू

أَلَمْ تَرَوْا أَنَّ اللَّهَ سَخَّرَ لَكُم مَّا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَأَسْبَغَ عَلَيْكُمْ نِعَمَهُ ظَاهِرَةً وَبَاطِنَةً ۗ وَمِنَ النَّاسِ مَن يُجَادِلُ فِي اللَّهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَلَا هُدًى وَلَا كِتَابٍ مُّنِيرٍوَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّبِعُوا مَا أَنزَلَ اللَّهُ قَالُوا بَلْ نَتَّبِعُ مَا وَجَدْنَا عَلَيْهِ آبَاءَنَا ۚ أَوَلَوْ كَانَ الشَّيْطَانُ يَدْعُوهُمْ إِلَىٰ عَذَابِ السَّعِيرِ۞ وَمَن يُسْلِمْ وَجْهَهُ إِلَى اللَّهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ فَقَدِ اسْتَمْسَكَ بِالْعُرْوَةِ الْوُثْقَىٰ ۗ وَإِلَى اللَّهِ عَاقِبَةُ الْأُمُورِوَمَن كَفَرَ فَلَا يَحْزُنكَ كُفْرُهُ ۚ إِلَيْنَا مَرْجِعُهُمْ فَنُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُوا ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِنُمَتِّعُهُمْ قَلِيلًا ثُمَّ نَضْطَرُّهُمْ إِلَىٰ عَذَابٍ غَلِيظٍوَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ لَيَقُولُنَّ اللَّهُ ۚ قُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَلِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ إِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُوَلَوْ أَنَّمَا فِي الْأَرْضِ مِن شَجَرَةٍ أَقْلَامٌ وَالْبَحْرُ يَمُدُّهُ مِن بَعْدِهِ سَبْعَةُ أَبْحُرٍ مَّا نَفِدَتْ كَلِمَاتُ اللَّهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌمَّا خَلْقُكُمْ وَلَا بَعْثُكُمْ إِلَّا كَنَفْسٍ وَاحِدَةٍ ۗ إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ بَصِيرٌأَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ كُلٌّ يَجْرِي إِلَىٰ أَجَلٍ مُّسَمًّى وَأَنَّ اللَّهَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌذَٰلِكَ بِأَنَّ اللَّهَ هُوَ الْحَقُّ وَأَنَّ مَا يَدْعُونَ مِن دُونِهِ الْبَاطِلُ وَأَنَّ اللَّهَ هُوَ الْعَلِيُّ الْكَبِيرُ

क्या तुने न देखा कि अल्लाह ने तुम्हारे लिये काम में लगाए जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है(1)
(1) आसमानों में, सूरज चांद तारों की तरह, जिनसे नफ़ा उठाते हो. और ज़मीनों में दरिया, नेहरें, खानें, पहाड़, दरख्त, फल, चौपाए, वग़ैरह जिन से तुम फ़ायदे हासिल करते हो.

और तुम्हें भरपूर दीं अपनी नेअमतें ज़ाहिर और छुपी (2)
(2) ज़ाहिरी नेअमतों से शरीर के अंगों की दुरूस्ती और हुस्न व शक्ल सूरत मूराद हैं और बातिनी नअमतों से इल्मे मअरिफ़त वग़ैरह. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि नेअमतें ज़ाहिर तो इस्लाम और क़ुरआन है और नेअमते बातिन यह है कि तुम्हारे गुनाहों पर पर्दे डाल दिये. तुम्हारा हाल न खोला. सज़ा में जल्दी न फ़रमाई. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि ज़ाहिरी नेअमत बदन का दुरूस्त होना और अच्छी शक्ल सूरत है और बातिनी नेअमत दिल का अक़ीदा. एक क़ौल यह भी है कि ज़ाहिरी नेअमत रिज़्क़ है और बातिनी नेअमत अच्छा अख़लाक़. एक क़ौल यह है कि ज़ाहिरी नेअमत इस्लाम का ग़लबा और दुश्मनों पर विजयी होना है और बातिनी नेअमत फ़रिश्तों का मदद के लिये आना. एक क़ौल यह है कि ज़ाहिरी नेअमत रसूल का अनुकरण है और बातिनी नेअमत उनकी महब्बत. अल्लाह तआला हम सब को अपने रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की महब्बत दे और उनका अनुकरण करने की तौफ़ीक़.

और कुछ आदमी अल्लाह के बारे में झगड़ते हैं यूं कि न इल्म न अक़्ल और न कोई रौशन किताब (3) {20}
(3) तो जो कहेंगे, जिहालत और नादानी होगी और अल्लाह की शान में इस तरह की जुरअत और मुंह खोलना अत्यन्त बेजा और गुमराही है. यह आयत नज़र बिन हारिस और उबई बिन ख़लफ़ वग़ैरह काफ़िरों के बारे में उतरी जो बेइल्म और ज़ाहिल होने के बावुजूद नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से अल्लाह तआला की ज़ात और सिफ़ात के बारे में झगड़े किया करते थे.

और जब उनसे कहा जाए उसकी पैरवी करो जो अल्लाह ने उतारा तो कहते हैं बल्कि हम तो उसकी पैरवी करेंगे जिसपर हमने अपने बाप दादा को पाया(4)
(4) यानी अपने बाप दादा के तरीक़े पर ही रहेंगे, इसपर अल्लाह तआला फ़रमाता है.

क्या अगरचे शैतान उनको दोज़ख़ के अज़ाब की तरफ़ बुलाता हो (5){21}
(5) जब भी वो अपने बाप दादा ही की पैरवी किये जाएंगे.

तो जो अपना मुंह अल्लाह की तरफ़ झुका दे (6)
(6) दीन ख़ालिस उसके लिये क़ुबूल करे, उसकी इबादत में लगे, अपने काम उस पर छोड़ दे, उसी पर भरोसा रखे.

और हो नेकी करने वाला तो बेशक उसने मज़बूत गांठ थामी और अल्लाह ही की तरफ़ है सब कामों की इन्तिहा {22} और जो कुफ़्र करे तो तुम (7)
(7) ऐ नबियों के सरदार सल्लल्लाहो अलैका वसल्ल्म.

उसके कुफ़्र से ग़म न खाओ उन्हें हमारी ही तरफ़ फिरना है हम उन्हें बता देंगे जो करते थे(8)
(8) यानी हम उन्हें उनके कर्मों की सज़ा देंगे.

बेशक अल्लाह दिलों की बात जानता है {23} हम उन्हें कुछ बरतने देंगे (9)
(9) यानी थोड़ी मोहलत देंगे कि वो दुनिया के मज़े उठाएं.

फिर उन्हें बेबस करके सख़्त अज़ाब की तरफ़ ले जाएंगे (10){24}
(10) आख़िरत में और वह दोज़ख़ का अज़ाब है जिससे वो रिहाई न पाएंगे.

और अगर तुम उनसे पूछो किसने बनाए आसमान और ज़मीन तो ज़रूर कहेंगे अल्लाह ने, तुम फ़रमाओ सब ख़ूबियां अल्लाह को(11)
(11)  यह उनके इक़रार पर उन्हें इल्ज़ाम देना है कि जिसने आसमान ज़मीन पैदा किये वह अल्लाह वहदहू ला शरीका लहू है तो वाजिब हुआ कि उसकी हम्द की जाए, उसका शुक्र किया जाए और उसके सिवा किसी और की इबादत न की जाए.

बेशक उनमें अक्सर जानते नहीं {25} अल्लाह ही का है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में हैं (12)
(12) सब उसके ममलूक मख़लूक और बन्दे हैं तो उसके सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं.

बेशक अल्लाह ही बेनियाज़ है सब ख़ूबियों सराहा {26} और अगर ज़मीन में जितने पेड़ हैं सब क़ल्में हो जाएं और समन्दर उसकी सियाही हो उसके पीछे सात समन्दर और (13)
(13) और सारी ख़ल्क़ अल्लाह तआला के कलिमात को लिखे और वो तमाम क़लम और उन तमाम समन्दरों की स्याही ख़त्म हो जाए.

तो अल्लाह की बातें ख़त्म न होंगी(14)
(14) क्योंकि अल्लाह तआला का इल्म असीम है. जब सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम हिजरत करके मदीनए तैय्यिबह तशरीफ़ लाए तो यहूदियों के उलमा और पादरियों ने आपकी ख़िदमत में हाज़िर होकर कहा कि हम ने सुना है कि आप फ़रमाते हैं “वमा ऊतीतुम मिनल इल्मे इल्ला क़लीलन” (यानी तुम्हें थोड़ा इल्म दिया गया) तो उससे आपकी मुराद हम लोग हैं या सिर्फ़ अपनी क़ौम फ़रमाया, सब मुराद हैं. उन्होंने कहा, क्या आपकी किताब में यह नहीं हैं कि हमें तौरात दी गई है, उसमें हर चीज़ का इल्म है. हुज़ूर ने फ़रमाया कि हर चीज़ का इल्म भी अल्लाह के इल्म के सामने थोड़ा है और तुम्हें तो अल्लाह तआला ने इतना इल्म दिया है कि उसपर अमल करो तो नफ़ा पाओ. उन्होंने कहा, आप कैसे यह ख़याल फ़रमाते हैं. आपका क़ौल तो यह है कि जिसे हिकमत दी गई उसे बहुत भलाई दी गई. तो थोड़ा इल्म और बहुत सी भलाई कैसे जमा हो. इसपर यह आयत उतरी. इस सूरत में यह आयत मदनी होगी. एक क़ौल यह भी है कि यहूदियों ने क़ुरैश से कहा था कि मक्के में जाकर रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से इस तरह का कलाम करें. एक क़ौल यह है कि मुश्रिकों ने यह कहा था कि क़ुरआन और जो कुछ मुहम्मद (मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) लाते हैं, यह बहुत जल्द तमाम हो जाएगा. फिर क़िस्सा ख़त्म. इसपर अल्लाह तआला ने यह आयत उतारी.

बेशक अल्लाह इज़्ज़त व हिकमत वाला है  {27} तुम सब का पैदा करना और क़यामत में उठाना ऐसा ही है जैसा एक जान का (15)
(15) अल्लाह पर कुछ दुशवार नहीं. उसकी क़ुदरत यह है कि एक कुन से सब को पैदा कर दे.

बेशक अल्लाह सुनता देखता है {28} ऐ सुनने वाले क्या तूने न देखा कि अल्लाह रात लाता है दिन के हिस्से में और दिन करता है रात के हिस्से में(16)
(16) यानी एक को घटा कर, दूसरे को बढ़ाकर और जो वक़्त एक में से घटाता है, दूसरे में बढ़ा देता है.

और उसने सूरज और चांद काम में लगाए (17)
(17) बन्दों के नफ़े के लिये.

हर एक, एक मुक़र्रर (निश्चित) मीआद तक चलता है (18)
(18) यानी क़यामत के दिन तक या अपने अपने निर्धारित समय तक. सूरज आख़िर साल तक और चांद आख़िर माह तक.

और यह कि अल्लाह तुम्हारे कामों से ख़बरदार है {29} यह इसलिये कि अल्लाह ही हक़ है(19)
(19) वही इन चीज़ों पर क़ादिर है, तो वही इबादत के लायक़ है.

और उसके सिवा जिनको पूजते हैं सब बातिल (असत्य) हैं(20) और इसलिये कि अल्लाह ही बलन्द बड़ाई वाला है {30}
(20) फ़ना होने वाले. इन में से कोई इबादत के लायक़ नहीं हो सकता.

31 सूरए लुक़मान – चौथा रूकू

31 – सूरए लुक़मान – चौथा रूकू

أَلَمْ تَرَ أَنَّ الْفُلْكَ تَجْرِي فِي الْبَحْرِ بِنِعْمَتِ اللَّهِ لِيُرِيَكُم مِّنْ آيَاتِهِ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ
وَإِذَا غَشِيَهُم مَّوْجٌ كَالظُّلَلِ دَعَوُا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ فَلَمَّا نَجَّاهُمْ إِلَى الْبَرِّ فَمِنْهُم مُّقْتَصِدٌ ۚ وَمَا يَجْحَدُ بِآيَاتِنَا إِلَّا كُلُّ خَتَّارٍ كَفُورٍ
يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوا رَبَّكُمْ وَاخْشَوْا يَوْمًا لَّا يَجْزِي وَالِدٌ عَن وَلَدِهِ وَلَا مَوْلُودٌ هُوَ جَازٍ عَن وَالِدِهِ شَيْئًا ۚ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ ۖ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِاللَّهِ الْغَرُورُ
إِنَّ اللَّهَ عِندَهُ عِلْمُ السَّاعَةِ وَيُنَزِّلُ الْغَيْثَ وَيَعْلَمُ مَا فِي الْأَرْحَامِ ۖ وَمَا تَدْرِي نَفْسٌ مَّاذَا تَكْسِبُ غَدًا ۖ وَمَا تَدْرِي نَفْسٌ بِأَيِّ أَرْضٍ تَمُوتُ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٌ

क्या तूने न देखा कि किश्ती दरिया में चलती है अल्लाह के फ़ज्ल (कृपा) से(1)
(1) उसकी रहमत और उसके एहसान से.

ताकि वह तुम्हें अपनी(2)
(2) क़ुदरत के चमत्कारों की.

निशानियाँ दिखाए, बेशक इसमें निशानियाँ हैं हर बड़े सब्र करने वाले शुक्रगुज़ार को (3){31}
(3) जो बलाओं पर सब्र करे और अल्लाह तआला की नेअमतों का शुक्र गुज़ार हो. सब्र और शुक्र ये दोनों गुण ईमान वाले के है.

और जब उनपर(4)
(4) यानी काफ़िरों पर.

आ पड़ती है कोई मौज़ पहाड़ों की तरह तो अल्लाह को पुकारते हैं निरे उसपर अक़ीदा रखते हुए(5)
(5) और उसके समक्ष गिड़गिड़ाते हैं और रोते हैं और उसी से दुआ और इल्तिज़ा. उस वक़्त सब को भूल जाते हैं.

फिर जब उन्हें ख़ुश्क़ी की तरफ़ बचा लाता है ता उनमें कोई ऐतिदाल (मध्यमार्ग) पर रहता है(6)
(6) अपने ईमान और सच्चाई पर क़ायम रहता, कुफ़्र की तरफ़ नहीं लौटता. कहा गया है कि यह आयत अकरमह बिन अबू जहल के बारे में उतरी. जिस साल मक्कए मुकर्रमा की फ़त्ह हुई तो वह समन्दर की तरफ़ भाग गए. वहाँ मुख़ालिफ़ वा ने घेरा और ख़तरे में पड़ गए, तो अकरमह ने कहा अगर अल्लाह तआला हमें इस ख़तरें से छुटकारा दे तो मैं ज़रूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर हाथ में हाथ दे दूंगा यानी इताअत करूंगा. अल्लाह तआला ने करम किया. हवा ठहर गई और अकरमह मक्कए मुकर्रमा की तरफ़ आ गए और इस्लाम लाए और बड़ी सच्चाई के साथ इस्लाम लाए. कुछ उनमें ऐसे थे जिन्होंने एहद पूरा किया. उनकी निस्बत अगले जुमले में इरशाद होता है.

और हमारी आयतों का इन्कार न करेगा मगर हर बड़ा बेवफ़ा नाशुक्रा {32} ऐ लोगों (7)
(7) यानी ऐ मक्का वालों.

अपने रब से डरो और उस दिन का ख़ौफ़ करो जिसमें कोई बाप अपने बच्चे के काम न आएगा, और न कोई कामी (कारोबारी) बच्चा अपने बाप को कुछ नफ़ा दे (8)
(8)  क़यामत के दिन हर इन्सान नफ़्सी नफ़्सी करता होगा और बाप बेटे के और बेटा बाप के काम न आ सकेगा. न काफ़िरों की मुसलमान औलाद उन्हें फ़ायदा पहुंचा सकेगी, न मुसलमान माँ बाप काफ़िर औलाद की.

बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है (9)
(9) ऐसा दिन ज़रूर आना और दोबारा उठाए जाने और हिसाब और जज़ा का वादा ज़रूर पूरा होना है.

तो हरगिज़ तुम्हें धोखा न दे दुनिया की ज़िन्दगी (10)
(10) जिसकी तमाम नेअमतें और लज़्ज़तें मिटने वाली कि उन पर आशिक़ होकर ईमान की नेअमत से मेहरूम रह जाओ.

और हरगिज़ तुम्हें अल्लाह के इल्म पर धोखा न दे वह बड़ा फ़रेबी (धुर्त) (11){33}
(11) यानी शैतान दूर दराज़ की उम्मीदों में डालकर गुनाहों में न जकड़ दें.

बेशक अल्लाह के पास है क़यामत का इल्म(12)
(12) यह आयत हारिस बिन अम्र के बारे में उतरी जिसने नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर क़यामत का वक़्त पूछा था और यह कहा था कि मैंने खेती बोई है ख़बर दीजिये मेंह कब आएगा और मेरी औरत गर्भ से है, मुझे बताईये कि उसके पेट में क्या है, लड़का या लड़की. यह तो मुझे मालूम है कि कल मैं ने क्या किया, यह मुझे बताइये कि आयन्दा कल को क्या करूंगा. मैं यह भी जानता हूँ कि मैं कहाँ पैदा हुआ मुझे यह बताइये कि कहाँ मरूंगा. इसके जवाब में यह आयत उतरी.

और उतारता है मेंह, और जानता है जो कुछ माओ के पेट में है, और कोई जान नहीं जानती कि कल क्या कमाएगी, और कोई जान नहीं जानती कि किस ज़मीन में मरेगी, बेशक अल्लाह जानने वाला बताने वाला है(13){34}
(13) जिसको चाहे अपने औलिया और अपने प्यारों में से, उन्हें ख़बरदार करदे. इस आयत में जिन पांच चीज़ों के इल्म की विशेषता अल्लाह तआला के साथ बयान फ़रमाई गई उन्हीं की निस्बत सूरए जिन्न में इरशाद हुआ “आलिमुल ग़ैबे फ़ला युज़हिरो अला ग़ैबिही अहदन इल्ला मनिर तदा मिर रसूलिन” (यानी ग़ैब का जानने वाला, तो अपने ग़ैब पर किसी को मुसल्लत नहीं करता, सिवाए अपने पसन्दीदा रसूलों के – सूरए जिन्न, आयत 26-27) ग़रज़ यह कि बग़ैर अल्लाह तआला के बताए इन चीज़ों का इल्म किसी को नहीं और अपने पसन्दीदा रसूलों को बताने की ख़बर ख़ुद उसने सूरए जिन्न में दी है. ख़ुलासा यह कि इल्मे ग़ैब अल्लाह तआला के साथ ख़ास है और नबियों वलियों को ग़ैब का इल्म अल्लाह तआला की तालीम से चमत्कार के तौर पर अता होता है. यह उस विशेषता के विरूद्ध नहीं है जो अल्लाह के इल्म के साथ है. बहुत सी आयतें और हदीसें इस को साबित करती है. बारिश का वक़्त और गर्भ में क्या है और कल को क्या करे और कहाँ मरेगा. इन बातों की ख़बरें बहुतात से औलिया और नबियों ने दी हैं और क़ुरआन और हदीस से साबित हैं. हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को फ़रिश्तों ने हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम के पैदा होने की और हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम को हज़रत यहया अलैहिस्सलाम के पैदा होने की और हज़रत मरयम को हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के पैदा होने की ख़बरें दीं तो उन फ़रिश्तों को भी पहले से मालूम था कि इन गर्भों में क्या है और उन हजरात को भी जिन्हें फ़रिश्तों ने सूचनाएं दी थीं और उन सब का जानना क़ुरआने करीम से साबित हैं तो आयत के मानी बिल्कुल यही है कि बग़ैर अल्लाह तआला के बताए कोई नहीं जानता. इसके मानी यह लेना कि अल्लाह तआला के बताए से भी कोई नहीं जानता केवल बातिल और सैंकड़ों आयतों और हदीसों के ख़िलाफ़ है (ख़ाज़िन, बैज़ावी, अहमदी, रूहुल बयान वगै़रह).

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating / 5. Vote count:

No votes so far! Be the first to rate this post.

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top