35 Surah Fatir

35 Surah Fatir

35  सूरए फ़ातिर- पहला रूकू

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35  सूरए फ़ातिर – पहला रूकू

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

الْحَمْدُ لِلَّهِ فَاطِرِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ جَاعِلِ الْمَلَائِكَةِ رُسُلًا أُولِي أَجْنِحَةٍ مَّثْنَىٰ وَثُلَاثَ وَرُبَاعَ ۚ يَزِيدُ فِي الْخَلْقِ مَا يَشَاءُ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
مَّا يَفْتَحِ اللَّهُ لِلنَّاسِ مِن رَّحْمَةٍ فَلَا مُمْسِكَ لَهَا ۖ وَمَا يُمْسِكْ فَلَا مُرْسِلَ لَهُ مِن بَعْدِهِ ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
يَا أَيُّهَا النَّاسُ اذْكُرُوا نِعْمَتَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ ۚ هَلْ مِنْ خَالِقٍ غَيْرُ اللَّهِ يَرْزُقُكُم مِّنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ ۚ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ فَأَنَّىٰ تُؤْفَكُونَ
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدْ كُذِّبَتْ رُسُلٌ مِّن قَبْلِكَ ۚ وَإِلَى اللَّهِ تُرْجَعُ الْأُمُورُ
يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ ۖ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا ۖ وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِاللَّهِ الْغَرُورُ
إِنَّ الشَّيْطَانَ لَكُمْ عَدُوٌّ فَاتَّخِذُوهُ عَدُوًّا ۚ إِنَّمَا يَدْعُو حِزْبَهُ لِيَكُونُوا مِنْ أَصْحَابِ السَّعِيرِ
الَّذِينَ كَفَرُوا لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ ۖ وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ كَبِيرٌ

सूरए फ़ातिर मक्का में उतरी, इसमें 46 आयतें 5 रूकू हैं.
-पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए फ़ातिर मक्के में उतरी – इसमें पाँच रूकू, पैंतालीस आयतें, नौ सौ सत्तर कलिमे,  तीन हज़ार एक सौ अक्षर है.

सब ख़ूबियाँ अल्लाह को जो आसमानों और ज़मीन का बनाने वाला फ़रिश्तों को रसूल करने वाला(2)
(2) अपने नबियों की तरफ़.

जिनके दो दो तीन तीन चार चार पर हैं, बढ़ाता है आफ़रीनश में जो चाहे(3)
(3) फ़रिश्तों में और उनके सिवा और मख़लूक़ में.

बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर (सक्षम) है {1} अल्लाह जो रहमत लोगों के लिये खोले(4)
(4) जैसे बारिश, रिज़्क़ और सेहत वग़ैरह.

उसका कोई रोकने वाला नहीं और जो कुछ रोक ले तो उसकी रोक के बाद उसका कोई छोड़ने वाला नहीं, और वही इज़्ज़त हिकमत वाला है {2} ऐ लोगों अपने ऊपर अल्लाह का एहसान याद करो(5)
(5) कि उसने तुम्हारे लिये ज़मीन को फ़र्श बनाया, आसमान को बग़ैर किसी सुतून के क़ायम किया, अपनी राह बताने और हक़ की दावत देने के लिये रसूलों को भेजा रिज़्क़ के दरवाज़े खोले.

क्या अल्लाह के सिवा और भी कोई ख़ालिक़ (सृष्टा) है कि आसमान और ज़मीन से(6)
(6) मेंह बरसाकर और तरह तरह की वनस्पति पैदा करके.

तुम्हें रोज़ी दे उसके सिवा कोई मअबद नहीं तो तुम कहाँ औंधे जाते हो(7){3}
(7) और यह जानते हुए कि वही ख़ालिक़ और रिज़्क़ देने वाला है. ईमान और तौहीद से क्यों फिरते हो. इसके बाद नबिये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली के लिये फ़रमाया जाता है.

और अगर ये तुम्हे झुटलाएं(8)
(8) ऐ मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम और तुम्हारी नबुव्वत और रिसालत को मानें और तौहीद और दोबारा उठाए जाने और हिसाब और अज़ाब का इन्कार करें.

तो बेशक तुम से पहले कितने ही रसूल झुटलाए गए(9)
(9) उन्होंने सब्र किया, आप भी सब्र फ़रमाइये. काफ़िरों का नबियों के साथ पहले से यह दस्तूर चला आता है.

और सब काम अल्लाह ही की तरफ़ फिरते हैं (10){4}
(10) वह झुटलाने वालों को सज़ा देगा और रसूलों की मदद फ़रमाएगा.

ऐ लोगों बेशक अल्लाह का वादा सच है(11)
(11) क़यामत ज़रूर आनी है, मरने के बाद ज़रूर उठना है, कर्मों का हिसाब यक़ीनन होगा. हर एक को उसके किये की जज़ा बेशक मिलेगी.

तो हरगिज़ तुम्हें धोखा न दे दुनिया की ज़िन्दग़ी (12)
(12) कि उसकी लज़्ज़तों में मश्ग़ूल होकर आख़िरत को भूल जाओ.

और हरगिज़ तुम्हें अल्लाह के हुक्म पर फ़रेब न दे वह बड़ा फ़रेबी(13){5}
(13) यानी शैतान तुम्हारे दिलों में यह वसवसा डाल कर कि गुनाहों से मज़ा उठालो. अल्लाह तआला हिल्म फ़रमाने वाला है वह दर गुज़र करेगा. अल्लाह तआला बेशक हिल्म वाला है लेकिन शैतान की फ़रेबकारी यह है कि बन्दों को इस तरह तौबह और नेक अमल से रोकता है और गुनाह और गुमराही पर उकसाता है, उसके धोखे से होशियार रहो.

बेशक शैतान तुम्हारा दुश्मन है तो तुम भी उसे दुश्मन समझो(14)
(14) और उसकी इताअत न करो और अल्लाह तआला की फ़रमाँबरदारी में मश्ग़ूल रहो.

वह तो अपने गिरोह को(15)
(15) यानी अपने अनुयाइयों और उसके विरोधियों का हाल तफ़सील के साथ बयान फ़रमाया जाता है.

इसीलिये बुलाता है कि दोज़ख़ियों में हो(16) {6}
(16) अब शैतान के अनुयाइयों और उसके विरोधियों का हाल तफ़सील के साथ बयान फ़रमाया जाता है.

काफ़िरों के लिये(17)
(17) जो शैतान के गिरोह में से हैं.

सख़्त अज़ाब है, और जो ईमान लाए और अच्छे काम किये (18)उनके लिये बख़्शिश और बड़ा सवाब है {7}
(18) और शैतान के धोखे में न आए और उसकी राह न चले.

35  सूरए फ़ातिर – दूसरा रूकू

35  सूरए फ़ातिर – दूसरा रूकू

أَفَمَن زُيِّنَ لَهُ سُوءُ عَمَلِهِ فَرَآهُ حَسَنًا ۖ فَإِنَّ اللَّهَ يُضِلُّ مَن يَشَاءُ وَيَهْدِي مَن يَشَاءُ ۖ فَلَا تَذْهَبْ نَفْسُكَ عَلَيْهِمْ حَسَرَاتٍ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ بِمَا يَصْنَعُونَ
وَاللَّهُ الَّذِي أَرْسَلَ الرِّيَاحَ فَتُثِيرُ سَحَابًا فَسُقْنَاهُ إِلَىٰ بَلَدٍ مَّيِّتٍ فَأَحْيَيْنَا بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ كَذَٰلِكَ النُّشُورُ
مَن كَانَ يُرِيدُ الْعِزَّةَ فَلِلَّهِ الْعِزَّةُ جَمِيعًا ۚ إِلَيْهِ يَصْعَدُ الْكَلِمُ الطَّيِّبُ وَالْعَمَلُ الصَّالِحُ يَرْفَعُهُ ۚ وَالَّذِينَ يَمْكُرُونَ السَّيِّئَاتِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ ۖ وَمَكْرُ أُولَٰئِكَ هُوَ يَبُورُ
وَاللَّهُ خَلَقَكُم مِّن تُرَابٍ ثُمَّ مِن نُّطْفَةٍ ثُمَّ جَعَلَكُمْ أَزْوَاجًا ۚ وَمَا تَحْمِلُ مِنْ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلْمِهِ ۚ وَمَا يُعَمَّرُ مِن مُّعَمَّرٍ وَلَا يُنقَصُ مِنْ عُمُرِهِ إِلَّا فِي كِتَابٍ ۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ
وَمَا يَسْتَوِي الْبَحْرَانِ هَٰذَا عَذْبٌ فُرَاتٌ سَائِغٌ شَرَابُهُ وَهَٰذَا مِلْحٌ أُجَاجٌ ۖ وَمِن كُلٍّ تَأْكُلُونَ لَحْمًا طَرِيًّا وَتَسْتَخْرِجُونَ حِلْيَةً تَلْبَسُونَهَا ۖ وَتَرَى الْفُلْكَ فِيهِ مَوَاخِرَ لِتَبْتَغُوا مِن فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ كُلٌّ يَجْرِي لِأَجَلٍ مُّسَمًّى ۚ ذَٰلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ لَهُ الْمُلْكُ ۚ وَالَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِهِ مَا يَمْلِكُونَ مِن قِطْمِيرٍ
إِن تَدْعُوهُمْ لَا يَسْمَعُوا دُعَاءَكُمْ وَلَوْ سَمِعُوا مَا اسْتَجَابُوا لَكُمْ ۖ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكْفُرُونَ بِشِرْكِكُمْ ۚ وَلَا يُنَبِّئُكَ مِثْلُ خَبِيرٍ

तो क्या वह जिसकी निगाह में उसका बुरा काम आरास्ता किया गया कि उसने उसे बला समझा, हिदायत वाले की तरह हो जाएगा (1)
(1) हरगिज़ नहीं, बुरे काम को अच्छा समझने वाला राह पाए हुए की तरह क्या हो सकता है. वह बदकार कई दर्जे बेहतर है जो अपने ख़राब अमल को बुरा जानता हो, सच को सच और बातिल को बातिल समझता हो. यह आयत अबू जहल वग़ैरह मक्के के मुश्रिकों के बारे में नाज़िल हुई जो अपने कुफ़्र और शिर्क जैसे बुरे कर्मों को शैतान के बहकाने और भला समझाने से अच्छा समझते थे. और एक क़ौल यह भी है कि यह आयत बिदअत और हवा वालों के बारे में उतरी जिनमें राफ़ज़ी और ख़ारिजी वगै़रह दाख़िल हैं जो अपनी बदमज़हबियों को अच्छा जानते हैं और उन्हीं के ज़ुमरे में दाख़िल हैं तमाम बदमज़हब, चाहे वहाबी हों या ग़ैर मुक़ल्लिद या मिर्ज़ाई या चकड़ालवी. और बड़े गुनाह वाले, जो अपने गुनाहों को बुरा जानते हैं और हलाल नहीं समझते, इसमें दाख़िल नहीं.

इसलिये अल्लाह गुमराह करता है जिसे चाहे और राह देता है जिसे चाहे, तो तुम्हारी जान उनपर हसरतों में न जाए (2)
(2) कि अफ़सोस वो ईमान न लाए और सच्चाई को क़ुबूल करने से मेहरूम रहे. मुराद यह है कि आप उन कुफ़्र और हलाकत का ग़म न फ़रमाएं.

अल्लाह ख़ूब जानता है जो कुछ वो करते हैं {8} और अल्लाह है जिसने भेजीं हवाएं कि बादल  उभरती हैं फिर हम उसे किसी मुर्दा शहर की तरफ़ रवाँ करते हैं(3)
(3) जिसमें सब्ज़ा और खेती नहीं और ख़ुश्क साली से वहाँ की ज़मीन बेजान हो गई है.

तो उसके कारण हम ज़मीन को ज़िन्दा फ़रमाते हैं उसके मरे पीछे (4)
(4) और उसको हरा भरा कर देते हैं. इससे हमारी क़ुदरत ज़ाहिर है.

यूं ही हश्र में उठना हैं (5) {9}
(5) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से एक सहाबी ने अर्ज़ किया कि अल्लाह तआला मुर्दे किस तरह ज़िन्दा फ़रमाएगा. ख़ल्क़ में उसकी कोई निशानी हो तो इरशाद फ़रमाईये. फ़रमाया कि क्या तेरा किसी ऐसे जंगल में गुज़र हुआ है जो दुष्काल से बेजान हो गया हो और वहाँ हरियाली का नामो निशान न रहा हो, फिर कभी उसी जंगल में गुज़र हुआ हो और उसको हरा भरा लहलहाता पाया हो. उन सहाबी ने अर्ज़ किया, बेशक ऐसा देखा है. हुज़ूर ने फ़रमाया ऐसे ही अल्लाह मुर्दों को ज़िन्दा करेगा और ख़ल्क़ में यह उसकी निशानी है.

जिसे इज़्ज़त की चाह तो इज़्ज़त तो सब अल्लाह के हाथ है(6)
(6) दुनिया और आख़िरत में वही इज़्ज़त का मालिक है, जिसे चाहे इज़्ज़त दे. तो जो इज़्ज़त का तलबगार हो वह अल्लाह तआला से इज़्ज़त तलब करे क्योंकि हर चीज़ उसके मालिक ही से तलब की जाती है. हदीस शरीफ़ में है कि अल्लाह तआला हर रोज़ फ़रमाता है जिसे दारैन की इज़्ज़त की इच्छा हो, चाहिये की वह इज़्ज़त वाले रब की इताअत करे और इज़्ज़त की तलब का साधन ईमान और अच्छे कर्म हैं.

उसी की तरफ़ चढ़ता है पाकीज़ा कलाम(7)
(7) यानी उसके क़ुबूल और रज़ा के मक़ाम तक पहुंचता है. और पाक़ीज़ा कलाम से मुराद कलिमए तौहीद व तस्बीह और तहमीद व तकबीर वग़ैरह हैं जैसा कि हाकिम और बेहिक़ी ने रिवायत किया और हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने कलिमए तैय्यिबह की तफ़सीर ज़िक्र से फ़रमाई और कुछ मुफ़स्सिरों ने क़ुरआन और दुआ भी मुराद ली है.

और जो नेक काम है वह उसे बलन्द करता है (8)
(8) नेक काम से मुराद वो अमल और इबादत है जो सच्चे दिल से हो और मानी ये हैं कि कलिमए तैय्यिबह अमल को बलन्द करता है क्योंकि अमल तौहीद और ईमान के बिना मक़बूल नहीं, या ये मानी हैं कि नेक अमल को अल्लाह तआला मक़बूलियत अता फ़रमाता है या ये मानी हैं कि अमल नेक अमल करने वाले या दर्जा बलन्द करते हैं तो जो इज़्ज़त चाहे उसको लाज़िम है कि नेक काम करे.

और वो जो बुरे दाँव करते हैं उनके लिये सख़्त अज़ाब है(9)
(9) मुराद इन कपट करने वालों से वो क़ुरैश हैं जिन्होंने दारून-नदवा में जमा होकर नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की निस्बत क़ैद करने और क़त्ल करने और जिला वतन करने के मशवरे किये थे जिसका तफ़सीली बयान सूरए अनफ़ाल में हो चुका है.

और उन्हीं का मक्र (कपट) बरबाद होगा (10){10}
(10) और वो अपने दाँव और धोखे में कामयाब न होंगे. चुनांन्चे ऐसा ही हुआ. हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उनके शर और आतंक से मेहफ़ूज़ रहे और उन्होंने अपनी मक्कारियों की सज़ाएं पाई कि बद्र में क़ैद भी हुए. क़त्ल भी किये गए और मक्कए मुकर्रमा से निकाले भी गए.

और अल्लाह ने तुम्हें बनाया(11)
(11) यानी तुम्हारी अस्ल हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को.

मिट्टी से फिर (12)
(12) उनकी नस्ल को.

पानी की बूंद से फिर तुम्हें किया जोड़े जोड़े(13)
(13) मर्द और औरत.

और किसी मादा के पेट नहीं रहता और न वह जनती है मगर उसके इल्म, और जिस बड़ी उम्र वाले को उम्र दी जाए या जिस किसी की उम्र कम रखी जाए यह सब एक किताब में है(14)
(14) यानी लौहे मेहफ़ूज़ में. हज़रत क़तादह से रिवायत है कि जिसकी उम्र साठ साल पहुंचे और कम उम्र वाला वह जो उससे पहले मर जाए.

बेशक यह अल्लाह को आसान है (15) {11}
(15) यानी अमल और मौत का लिखना.

और दोनो समन्दर एक से नहीं(16)
(16) बल्कि दोनों में फ़र्क़ है.

यह मीठा है, ख़ूब मीठा पानी ख़ुशगवार और यह खारी है, तल्ख़ और हर एक में से तुम खाते हो ताज़ा गोश्त (17)
(17) यानी मछली.

और निकालते हो पहनने का एक गहना (18)
(18) गौहर यानी मोती और मर्जान यानी मूंगा.

और तू किश्तियों को उसमें देखे कि पानी चीरती हैं(19)
(19) दरिया में चलते हुए और एक ही हवा में आती भी हैं जाती भी हैं.

ताकि तुम उसका फ़ज्ल (कृपा) तलाश करो(20)
(20) तिजारत में नफ़ा हासिल करके.

और किसी तरह हक़ मानो (21) {12}
(21) और अल्लाह तआला की नेअमतों की शुक्रगुज़ारी करो.

रात लाता है दिन के हिस्से में (22)
(22) तो दिन बढ़ जाता है.

और दिन लाता है रात के हिस्से में  (23)
(23) तो रात बढ़ जाती है यहाँ तक कि बढ़ने वाली दिन या रात की मिक़दार पन्द्रह घण्टे तक पहुंचती है और घटने वाला भी घण्टे का रह जाता है.

और उसने काम में लगाए सूरज और चांद हर एक एक निश्चित मीआद तक चलता है (24)
(24) यानी क़यामत के दिन तक, कि जब क़यामत आ जाएगी तो उनका चलना बन्द हो जाएगा और यह निजाम बाक़ी न रहेगा.

यह है अल्लाह तुम्हारा रब उसी की बादशाही है, और उसके सिवा जिन्हे तुम पूजते हो (25)
(25) यानी बुत.

खु्र्मा के दाने के छिलके तक के मालिक नहीं {13} तुम उन्हें पुकारो तो वो तुम्हारी पुकार न सुनें(26)
(26) क्योंकि पत्थर बेजान हैं.

और फ़र्ज़ करो सुन भी लें तो तुम्हारी हाजत रवा (पूरी) न कर सकें(27)
(27) क्योंकि कुछ भी क़ुदरत और इख़्तियार नहीं रखते.

और क़यामत के दिन वो तुम्हारे शिर्क से इन्कारी होंगे (28)
(28) और बेज़ारी का इज़हार करेंगे और कहेंगे तुम हमें पूजते थे.

और तुझे कोई न बताएगा उस बताने वाले की तरह (29) {14}
(29) यानी दोनों जगत के हालात और बुत परस्ती के परिणाम की जैसी ख़बर अल्लाह तआला देता है और कोई नहीं दे सकता.

35  सूरए फ़ातिर – तीसरा रूकू

35  सूरए फ़ातिर – तीसरा रूकू

۞ يَا أَيُّهَا النَّاسُ أَنتُمُ الْفُقَرَاءُ إِلَى اللَّهِ ۖ وَاللَّهُ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ
إِن يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ وَيَأْتِ بِخَلْقٍ جَدِيدٍ
وَمَا ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ بِعَزِيزٍ
وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَىٰ ۚ وَإِن تَدْعُ مُثْقَلَةٌ إِلَىٰ حِمْلِهَا لَا يُحْمَلْ مِنْهُ شَيْءٌ وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَىٰ ۗ إِنَّمَا تُنذِرُ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُم بِالْغَيْبِ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ ۚ وَمَن تَزَكَّىٰ فَإِنَّمَا يَتَزَكَّىٰ لِنَفْسِهِ ۚ وَإِلَى اللَّهِ الْمَصِيرُ
وَمَا يَسْتَوِي الْأَعْمَىٰ وَالْبَصِيرُ
وَلَا الظُّلُمَاتُ وَلَا النُّورُ
وَلَا الظِّلُّ وَلَا الْحَرُورُ
وَمَا يَسْتَوِي الْأَحْيَاءُ وَلَا الْأَمْوَاتُ ۚ إِنَّ اللَّهَ يُسْمِعُ مَن يَشَاءُ ۖ وَمَا أَنتَ بِمُسْمِعٍ مَّن فِي الْقُبُورِ
إِنْ أَنتَ إِلَّا نَذِيرٌ
|إِنَّا أَرْسَلْنَاكَ بِالْحَقِّ بَشِيرًا وَنَذِيرًا ۚ وَإِن مِّنْ أُمَّةٍ إِلَّا خَلَا فِيهَا نَذِيرٌ
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدْ كَذَّبَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ جَاءَتْهُمْ رُسُلُهُم بِالْبَيِّنَاتِ وَبِالزُّبُرِ وَبِالْكِتَابِ الْمُنِيرِ
ثُمَّ أَخَذْتُ الَّذِينَ كَفَرُوا ۖ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ

ऐ लोगो तुम सब अल्लाह के मोहताज (1)
(1) यानी उसके फ़ज़्ल व एहसान के हाजतमन्द हो और तमाम ख़ल्क़ उसकी मोहताज़ है. हज़रत ज़ुन-नून ने फ़रमाया कि ख़ल्क़ हर दम हर क्षण अल्लाह तआला की मोहताज़ है और क्यों न होगी उनकी हस्ती और उनकी बक़ा सब उसके करम से है.

और अल्लाह ही बेनियाज़ (बेपर्वाह) है सब ख़ूबियों सराहा {15} वह चाहे तो तुम्हें ले जाए(2)
(2) यानी तुम्हें मअदूम करदे क्योंकि वह बेनियाज़ और अपनी ज़ात में ग़नी है.

और नई मख़लूक़ ले आए(3) {16}
(3) बजाय तुम्हारे जो फ़रमाँबरदार हो.

और यह अल्लाह पर कुछ दुशवार (कठिन) नहीं {17} और कोई बोझ उठाने वाली जान दूसरे का बोझ न उठाएगी(4)
(4) मानी ये हैं कि क़यामत के दिन हर एक जान पर उसी के गुनाहों का बोझ होगा जो उसने किये हैं और कोई जान किसी दूसरे के बदले न पकड़ी जाएगी अलबत्ता जो गुमराह करने वाले हैं उनके गुमराह करने से जो लोग गुमराह हुए उनकी तमाम गुमराहियों का बोझ उन गुमराहों पर भी होगा और उनके गुमराह करने वालों पर भी जैसा कि कलामे मजीद में इरशाद हुआ”वला यहमिलुन्ना अस्क़ालहुम व अस्क़ालम मआ अस्क़ालिहिम” यानी और बेशक ज़रूर अपने बोझ उठाएंगे और अपने बोझों के साथ और बोझ-(सूरए अन्कबूत, आयत13).और वास्तव में यह उनकी अपनी कमाई है, दूसरे की नहीं.

और अगर कोई बोझ वाली अपना बोझ बटाने को किसी को बुलाए तो उसके बोझ में से कोई कुछ न उठाएगा अगरचे क़रीबी रिश्तेदार हो  (5)
(5) बाप या माँ,बेटा,भाई, कोई किसी का बोझ न उठाएगा. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया माँ बाप, बेटे को लिपटेंगे और कहेंगे ऐ हमारे बेटे हमारे कुछ गुनाह उठा ले. वह कहेगा मेरे बस में नहीं, मेरा अपना बोझ क्या कम है.

ऐ मेहबूब तुम्हारा डर सुनाना उन्हीं को काम देता है जो बे देखे अपने रब से डरते हैं और नमाज़ क़ायम रखते हैं, और जो सुथरा हुआ (6)
(6) यानी बदियों से बचा और नेक अमल किये.

तो अपने ही भले को सुथरा हुआ (7)
(7) इस नेकी का नफ़ा वही पाएगा.

और अल्लाह ही की तरफ़ फ़िरना है {18} और बराबर नहीं अंधा और अंखियारा (8){19}
(8)यानी जाहिल और आलिम या काफि़र और मूमिन.

और न अंधेरियां(9)
(9)यानी कुफ़्र.

और उजाला (10){20}
(10) यानी ईमान.

और न साया (11)
(11) यानी हक़ या जन्नत.

और न तेज़ धूप (12) {21}
(12) यानी बातिल या दोज़ख़.

और बराबर नहीं ज़िन्दे और मुर्दे (13)
(13) यानी मूमिनीन और कुफ्फ़ार या उलमा और जाहिल लोग.

बेशक अल्लाह सुनाता है जिसे चाहे(14)
(14) यानी जिसकी हिदायत मन्ज़ूर हो उसको क़ुबूल की तौफ़ीक़ अता फ़रमाता है.

और तुम नहीं सुनाने वाले उन्हें जो क़ब्रों में पड़े हैं (15) {22}
(15) यानी काफ़िरों को,इस आयत में काफ़िरों को मुर्दों से तश्बीह दी गई कि जिस तरह मुर्दे सुनी हई बात से नफ़ा नहीं उठा सकते और नसीहत हासिल नहीं करते, बदअंजाम काफ़िरों का भी यही हाल है कि वह हिदायत और नसीहत से नफ़ा नहीं उठाते. इस आयत से मुर्दों के सुनने पर इस्तिदलाल करना सही नहीं है क्योंकि आयत में क़ब्र वालों से मुराद काफ़िर हैं न कि मुर्दे और सुनने से मुराद वह सुनना है जिस पर राह पाने का नफ़ा मिले. रहा मुदों का सुनना, वह कई हदीसों से साबित है. इस मसअले का बयान बीसवें पारे के दूसरे रूकू में गुज़र चुका.

तुम तो यही डर सुनाने वाले हो(16) {23}
(16) तो अगर सुनने वाला आपके डराने पर कान रखे और मानने की नियत से सुने तो नफ़ा पाए और अगर इन्कार पर डटे रहने वालों में से हो और आपकी नसीहत न माने तो आपका कुछ हर्ज नहीं, वही मेहरूम है.

ऐ मेहबूब बेशक हमने तुम्हें हक़ के साथ भेजा ख़ुशख़बरी देता (17)
(17) ईमानदारों को, जन्नत की.

और डर सुनाता (18)
(18) काफ़िरों को, अज़ाब का.

और जो कोई गिरोह था सब में एक डर सुनाने वाला गुज़र चुका (19) {24}
(19) चाहे वह नबी हो या दीन का आलिम जो नबी की तरफ़ से ख़ुदा के बन्दों को अल्लाह तआला का ख़ौफ़ दिलाए.

और अगर ये (20)
(20) मक्के के काफ़िर.

तुम्हें झुटलाएं तो इनसे अगले भी झुटला चुके हैं(21)
(21)  अपने रसूलो को, काफ़िरों का पहले से नबियों के साथ यही बर्ताव रहा है.

उनके पास उनके रसूल आए रौशन दलीलें (22)
(22) यानी नबुव्वत पर दलालत करने वाले चमत्कार.

और सहीफ़े (धर्मग्रन्थ) और चमकती किताब(23)
(23) तौरात व इन्ज़ील व ज़ुबूर.

लेकर {25} फिर मैंने काफ़िरों को पकड़ा (24)
(24) तरह तरह के अज़ाबों से उनके झुटलाने के कारण.

तो कैसा हुआ मेरा इन्कार (25) {26}
(25) मेरा अज़ाब देना.

35  सूरए फ़ातिर – चौथा रूकू

35  सूरए फ़ातिर – चौथा रूकू

أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ أَنزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجْنَا بِهِ ثَمَرَاتٍ مُّخْتَلِفًا أَلْوَانُهَا ۚ وَمِنَ الْجِبَالِ جُدَدٌ بِيضٌ وَحُمْرٌ مُّخْتَلِفٌ أَلْوَانُهَا وَغَرَابِيبُ سُودٌ
وَمِنَ النَّاسِ وَالدَّوَابِّ وَالْأَنْعَامِ مُخْتَلِفٌ أَلْوَانُهُ كَذَٰلِكَ ۗ إِنَّمَا يَخْشَى اللَّهَ مِنْ عِبَادِهِ الْعُلَمَاءُ ۗ إِنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ غَفُورٌ
إِنَّ الَّذِينَ يَتْلُونَ كِتَابَ اللَّهِ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَأَنفَقُوا مِمَّا رَزَقْنَاهُمْ سِرًّا وَعَلَانِيَةً يَرْجُونَ تِجَارَةً لَّن تَبُورَ
لِيُوَفِّيَهُمْ أُجُورَهُمْ وَيَزِيدَهُم مِّن فَضْلِهِ ۚ إِنَّهُ غَفُورٌ شَكُورٌ
وَالَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ مِنَ الْكِتَابِ هُوَ الْحَقُّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ بِعِبَادِهِ لَخَبِيرٌ بَصِيرٌ
ثُمَّ أَوْرَثْنَا الْكِتَابَ الَّذِينَ اصْطَفَيْنَا مِنْ عِبَادِنَا ۖ فَمِنْهُمْ ظَالِمٌ لِّنَفْسِهِ وَمِنْهُم مُّقْتَصِدٌ وَمِنْهُمْ سَابِقٌ بِالْخَيْرَاتِ بِإِذْنِ اللَّهِ ۚ ذَٰلِكَ هُوَ الْفَضْلُ الْكَبِيرُ
جَنَّاتُ عَدْنٍ يَدْخُلُونَهَا يُحَلَّوْنَ فِيهَا مِنْ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبٍ وَلُؤْلُؤًا ۖ وَلِبَاسُهُمْ فِيهَا حَرِيرٌ
وَقَالُوا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي أَذْهَبَ عَنَّا الْحَزَنَ ۖ إِنَّ رَبَّنَا لَغَفُورٌ شَكُورٌ
الَّذِي أَحَلَّنَا دَارَ الْمُقَامَةِ مِن فَضْلِهِ لَا يَمَسُّنَا فِيهَا نَصَبٌ وَلَا يَمَسُّنَا فِيهَا لُغُوبٌ
وَالَّذِينَ كَفَرُوا لَهُمْ نَارُ جَهَنَّمَ لَا يُقْضَىٰ عَلَيْهِمْ فَيَمُوتُوا وَلَا يُخَفَّفُ عَنْهُم مِّنْ عَذَابِهَا ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِي كُلَّ كَفُورٍ
وَهُمْ يَصْطَرِخُونَ فِيهَا رَبَّنَا أَخْرِجْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا غَيْرَ الَّذِي كُنَّا نَعْمَلُ ۚ أَوَلَمْ نُعَمِّرْكُم مَّا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَن تَذَكَّرَ وَجَاءَكُمُ النَّذِيرُ ۖ فَذُوقُوا فَمَا لِلظَّالِمِينَ مِن نَّصِيرٍ

क्या तूने न देखा कि अल्लाह ने आसमान से पानी उतारा(1)
(1) बारिश उतारी.

तो हमने उससे फल निकाले रंग बिरंगे(2)
(2) सब्ज़, सुर्ख़, ज़र्द वग़ैरह, तरह तरह के अनार सेब, इन्जीर, अंगूर वग़ैरह बे शुमार.

और पहाड़ों में रास्ते हैं सफ़ेद और सुर्ख़ रंग के और कुछ काले भुजंग{27} और आदमियों और जानवरों और चौपायों के रंग यूंही तरह तरह के हैं(3)
(3) जैसे फलों और पहाड़ों में, यहाँ अल्लाह तआला ने अपनी आयतें और अपनी क़ुदरत की निशानियाँ और ख़ालिक़ीयत (सृजन-शक्ति) के निशान जिन से उसकी ज़ात व सिफ़ात पर इस्तिदलाल किया जाए, ज़िक्र कीं इसके बाद फ़रमाया.

अल्लाह से उसके बन्दों में वही डरते हैं जो इल्म वाले हैं(4)
(4) और उसकी सिफ़ात को जानते और उसकी अज़मत को पहचानते हैं, जितना इल्म ज़्यादा, उतना ख़ौफ़ ज़्यादा. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि मुराद यह है कि मख़लूक़ में अल्लाह तआला का ख़ौफ़ उसको है जो अल्लाह तआला के जबरूत और उसकी इज़्ज़त व शान से बाख़बर है. बुख़ारी व मुस्लिम की हदीस में है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया क़सम अल्लाह तआला की कि मैं अल्लाह तआला को सबसे ज़्यादा जानने वाला हूँ और सब से ज़्यादा उसका ख़ौफ़ रखने वाला हूँ.

बेशक अल्लाह बख़्शने वाला इज़्ज़त वाला है {28} बेशक वो जो अल्लाह की किताब पढ़ते हैं और नमाज़ क़ायम रखते हैं और हमारे दिये से कुछ हमारी राह में ख़र्च करते हैं छुपवां और ज़ाहिर वो ऐसी तिजारत के उम्मीदवार हैं(5){29}
(5) यानी सवाब के.

जिसमें हरगिज़ टोटा नहीं ताकि उनके सवाब उन्हें भरपूर दे और अपने फ़ज़्ल से और ज़्यादा अता करे बेशक वह बख़्शने वाला क़द्र फ़रमाने वाला है {30} और वह किताब जो हमने तुम्हारी तरफ़ वही भेजी (6)
(6) यानी क़ुरआने मजीद.

वही हक़ (सत्य) है अपने से अगली किताबों की तस्दीक़(पुष्टि) फ़रमाती हुई, बेशक अल्लाह अपने बन्दों से ख़बरदार देखने वाला है (7){31}
(7) और उनके ज़ाहिर व बातिन का जानने वाला.

फिर हमने किताब का वारिस किया अपने चुने हुए बन्दों को(8)
(8) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की उम्मत को यह किताब अता फ़रमाई जिन्हें तमाम उम्मतों पर बुज़ुर्गी दी और नबियों के सरदार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ग़ुलामी और नियाज़मन्दी की करामत और शराफ़त से मुशर्रफ़ फ़रमाया. इस उम्मत के लोग मुख़्तलिफ़ दर्जे रखते हैं.

तो उनमें कोई अपनी जान पर ज़ुल्म करता है, और उनमें कोई बीच की चाल पर है, और उनमें कोई वह है जो अल्लाह के हुक्म से भलाइयों में सबक़त ले गया(9)
(9) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि सबक़त ले जाने वाला सच्चा मूमिन है और बीच का रास्ता चलने वाला वह जिसके कर्म रिया से हों और ज़ालिम से मुराद यहाँ वह है जो अल्लाह की नेअमत का इन्कारी तो न हो लेकिन शुक्र बजा न लाए. हदीस शरीफ़ में है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि हमारा पिछला तो पिछला ही है और मध्यमार्गी निजात पाया हुआ ज़ालिम मग़फ़ूर. एक और हदीस में है हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया नेकियों में सबक़त लेजाने वाला जन्नत में बेहिसाब दाख़िल होगा और बीच की राह चलने वाले से हिसाब में आसानी की जाएगी और ज़ालिम हिसाब के मक़ाम में रोका जाएगा उसको परेशानी पेश आएगी फिर जन्नत में दाख़िल होगा. उम्मुल मूमिनीन हज़रत आयशा रदियल्लाहो अन्हा ने फ़रमाया कि साबिक़, एहदे रिसालत के वो मुख़लिस लोग हैं जिनके लिये रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने जन्नत की बशारत दी और बीच के रस्ते चलने वाले वो सहाबा हैं जो आपके तरीक़े पर चलते रहे और ज़ालिम हम तुम जैसे लोग हैं. यह हद दर्जे की विनम्रता थी हज़रत उम्मुल मूमिनीन रदियल्लाहो अन्हा की कि अपने आपको इस तीसरे तब्क़े (वर्ग) में शुमार फ़रमाया. इस बुज़ुर्गी और बलन्दी के बावुजूद जो अल्लाह तआला ने आपको अता फ़रमाई थी और भी इसकी तफ़सीर में बहुत क़ौल हैं जो तफ़सीरों में तफ़सील से आए हैं.

यही बड़ा फ़ज़्ल है {32} बसने के बाग़ों में दाख़िल होंगे वो(10)
(10) तीनों गिरोह.

उनमें सोने के कंगन और मोती पहनाए जाएंगे, और वहाँ उनकी पोशाक रेशमी है {33} और कहेंगे सब ख़ूबियाँ अल्लाह को जिसने हमारा ग़म दूर किया (11)
(11) इस ग़म से मुराद या दोज़ख़ का ग़म है या मौत का या गुनाहों का या ताआतों के ग़ैर मक़बूल होने का या क़यामत के हौल का. ग़रज़ उन्हें कोई ग़म न होगा और वो उसपर अल्लाह की हम्द करेंगे.

बेशक हमारा रब बख़्शने वाला क़द्र फ़रमाने वाला है(12) {34}
(12)  कि गुनाहों को बख़्शता है और ताअतें क़ुबूल फ़रमाता है.

वह जिसने हमें आराम की जगह उतारा अपने फ़ज़्ल से, हमें उसमें कोई तकलीफ़ न पहुंचे और न हमें उसमें कोई तकान लाहिक़ हो {35} और जिन्हों ने कुफ़्र किया उनके लिये जहन्नम की आग है न उनकी क़ज़ा (मौत) आए कि मर जाएं (13)
(13) और मर कर अज़ाब से छूट सकें.

और न उनपर उसका (14)
(14) यानी जहन्नम का.

अज़ाब कुछ हल्का किया जाए, हम ऐसी ही सज़ा देते हैं हर बड़े नाशुक्रे को {36} और वो उसमें चिल्लाते होंगे (15)
(15) यानी जहन्नम में चीख़ते और फ़रियाद करते होंगे कि—

ऐ हमारे रब, हमें निकाल (16)
(16) यानी दोज़ख़ से निकाल और दुनिया में भेज.

कि हम अच्छा काम करें उसके ख़िलाफ़ जो पहले करते थे (17)
(17) यानी हम बजाय कुफ़्र के ईमान लाएं और बजाय गुमराही और नाफ़रमानी के तेरी इताअत और फ़रमाँबरदारी करें, इस पर उन्हें जवाब दिया जाएगा.

और क्या हम ने तुम्हें वह उम्र न दी थी जिसमें समझ लेता जिसे समझना होता और डर सुनाने वाला (18)
(18)

तुम्हारे पास तशरीफ़ लाया था (19)
(19) तुमने उस रसूले मोहतरम की दावत क़ुबूल न की और उनकी इताअत व फ़रमाँबरदारी बजा न लाए.

तो अब चखो(20) कि ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं {37}
(20) अज़ाब का मज़ा.

35  सूरए फ़ातिर – पाँचवां रूकू

35  सूरए फ़ातिर – पाँचवां रूकू

إِنَّ اللَّهَ عَالِمُ غَيْبِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ
هُوَ الَّذِي جَعَلَكُمْ خَلَائِفَ فِي الْأَرْضِ ۚ فَمَن كَفَرَ فَعَلَيْهِ كُفْرُهُ ۖ وَلَا يَزِيدُ الْكَافِرِينَ كُفْرُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ إِلَّا مَقْتًا ۖ وَلَا يَزِيدُ الْكَافِرِينَ كُفْرُهُمْ إِلَّا خَسَارًا
قُلْ أَرَأَيْتُمْ شُرَكَاءَكُمُ الَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِ اللَّهِ أَرُونِي مَاذَا خَلَقُوا مِنَ الْأَرْضِ أَمْ لَهُمْ شِرْكٌ فِي السَّمَاوَاتِ أَمْ آتَيْنَاهُمْ كِتَابًا فَهُمْ عَلَىٰ بَيِّنَتٍ مِّنْهُ ۚ بَلْ إِن يَعِدُ الظَّالِمُونَ بَعْضُهُم بَعْضًا إِلَّا غُرُورًا
۞ إِنَّ اللَّهَ يُمْسِكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ أَن تَزُولَا ۚ وَلَئِن زَالَتَا إِنْ أَمْسَكَهُمَا مِنْ أَحَدٍ مِّن بَعْدِهِ ۚ إِنَّهُ كَانَ حَلِيمًا غَفُورًا
وَأَقْسَمُوا بِاللَّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ لَئِن جَاءَهُمْ نَذِيرٌ لَّيَكُونُنَّ أَهْدَىٰ مِنْ إِحْدَى الْأُمَمِ ۖ فَلَمَّا جَاءَهُمْ نَذِيرٌ مَّا زَادَهُمْ إِلَّا نُفُورًا
اسْتِكْبَارًا فِي الْأَرْضِ وَمَكْرَ السَّيِّئِ ۚ وَلَا يَحِيقُ الْمَكْرُ السَّيِّئُ إِلَّا بِأَهْلِهِ ۚ فَهَلْ يَنظُرُونَ إِلَّا سُنَّتَ الْأَوَّلِينَ ۚ فَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ اللَّهِ تَبْدِيلًا ۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ اللَّهِ تَحْوِيلًا
أَوَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ وَكَانُوا أَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً ۚ وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيُعْجِزَهُ مِن شَيْءٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْضِ ۚ إِنَّهُ كَانَ عَلِيمًا قَدِيرًا
وَلَوْ يُؤَاخِذُ اللَّهُ النَّاسَ بِمَا كَسَبُوا مَا تَرَكَ عَلَىٰ ظَهْرِهَا مِن دَابَّةٍ وَلَٰكِن يُؤَخِّرُهُمْ إِلَىٰ أَجَلٍ مُّسَمًّى ۖ فَإِذَا جَاءَ أَجَلُهُمْ فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِعِبَادِهِ بَصِيرًا

बेशक अल्लाह जानने वाला है आसमानों और ज़मीन की हर छुपी बात का, बेशक वही दिलों की बात जानता है{38} वही है जिसने तुम्हें ज़मीन में अगलों का जानशीन किया(1)
(1) और उनके इमलाक और क़ब्ज़े वाली चीज़ों का मालिक और मुतसर्रिफ़ बनाया और उनके मुनाफ़े तुम्हारे लिये मुबाह किये ताकि तुम ईमान और इताअत इख़्तियार करके शुक्रगुज़ारी करो.

तो जो कुफ़्र करे(2)
(2) और उन नेअमतों पर अल्लाह का शुक्र अदा न किया.

उसका कुफ़्र उसी पर पड़े(3)
(3) यानी अपने कुफ़्र का वबाल उसी को बर्दाश्त करना पड़ेगा.

और काफ़िरों को उनका कुफ़्र उनके रब के यहाँ नहीं बढ़ाएगा मगर बेज़ारी(4)
(4) यानी अल्लाह का ग़ज़ब.

और काफ़िरों को उनका कुफ़्र न बढ़ाएगा मगर नुक़सान(5){39}
(5) आख़िरत में.

तुम फ़रमाओ भला बताओ तो अपने वो शरीक(6)
(6) यानी बुत.

जिन्हें अल्लाह के सिवा पूजते हो, मुझे दिखाओ उन्होंने ज़मीन में से कौन सा हिस्सा बनाया आसमानों में कुछ उनका साझा है(7)
(7) कि आसमान के बनाने में उन्हें कुछ दख़ल हो, किस कारण उन्हें इबादत का मुस्तहिक़ क़रार देते हो.

या हमने उन्हें कोई किताब दी है कि वो उसकी रौशन दलीलों पर हैं(8)
(8) इनमें से कोई भी बात नहीं.

बल्कि ज़ालिम आपस में एक दूसरे को वादा नहीं देते मगर धोखे का(9){40}
(9) कि उनमें जो बहकाने वाले हैं वो अपने अनुयाइयों को धोखा देते हैं और बुतों की तरफ़ से उन्हें बातिल उम्मीदें दिलाते हैं.

बेशक अल्लाह रोके हुए है आसमानों और ज़मीन को कि जुंबिश (हरकत) न करें(10)
(10) वरना आसमान और ज़मीन के बीच शिर्क जैसा गुनाह हो तो आसमान और ज़मीन कैसे क़ायम रहें.

और अगर वो हट जाएं तो उन्हें कौन रोके अल्लाह के सिवा, बेशक वह हिल्म वाला बख्शने वाला है{41} और उन्होंने अल्लाह की क़सम खाई अपनी क़समों में हद की कोशिश से कि अगर उनके पास कोई डर सुनाने वाला आया तो वो ज़रूर किसी न किसी गिरोह से ज़्यादा राह पर होंगे(11)
(11)  नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को तशरीफ़ आवरी से पहले क़ुरैश ने यहूदियों और ईसाइयों के अपने रसूलों को मानने और उनको झुटलाने की निस्बत कहा था कि अल्लाह तआला उनपर लअनत करे कि उनके पास अल्लाह तआला की तरफ़ से रसूल आए और उन्हों ने उन्हें झुटलाया और न माना. ख़ुदा की क़सम अगर हमारे पास कोई रसूल आए तो हम उनसे ज़्यादा राह पर रहेंगे और उस रसूल को मानने में उनके बेहतर गिरोह पर सबक़त ले जाएंगे.

फिर जब उनके पास डर सुनाने वाला तशरीफ़ लाया(12)
(12) यानी नबियों के सरदार हबीबे ख़ुदा मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की रौनक़ अफ़रोज़ी और जलवा आराई हुई.

तो उसने उन्हें न बढ़ाया मगर नफ़रत करना (13){42}
(13) हक़ व हिदायत से और.

अपनी जान को ज़मीन में ऊंचा खींचना और दाँव (14)
(14) बुरे दाव से मुराद या तो शिर्क व कुफ़्र है या रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के साथ छलकपट करना.

और बुरा दाँव अपने चलने वाले पर ही पड़ता है(15)
(15) यानी मक्कार पर, चुनांन्चे फ़रेबकारी करने वाले बद्र में मारे गए.

तो काहे के इन्तिज़ार में हैं मगर उसी के जो अगलों का दस्तूर (तरीक़ा) हुआ(16)
(16) कि उन्होंने तकज़ीब की और उनपर अज़ाब उतरे.

तो तुम हरगिज़ अल्लाह के दस्तूर को बदलता न पाओगे और हरगिज़ अल्लाह के कानून को टलता न पाओगे {43} और क्या उन्होंने ज़मीन में सफ़र न किया कि देखते उनसे अगलों का कैसा अंजाम हुआ(17)
(17) यानी क्या उन्होंने शाम और इराक़ और यमन के सफ़रों में नबियों को झुटलाने वालों की हलाकत और बर्बादी और उनके अज़ाब और तबाही के निशानात नहीं देखे कि उनसे इब्रत हासिल करते.

और वो उनसे ज़ोर में सख़्त थे (18)
(18) यानी वो तबाह हुई क़ौमें इन मक्का वालों से ज़्यादा शक्तिशाली थीं इसके बावुजूद इतना भी न हो सका कि वो अज़ाब से भाग कर कहीं पनाह ले सकतीं.

और अल्लाह वह नहीं जिसके क़ाबू से निकल सके कोई चीज़ आसमानों और ज़मीन में बेशक वह इल्म व क़ुदरत वाला है{44} और अगर अल्लाह लोगों को उनके किये पर पकड़ता(19)
(19) यानी उनके गुनाहों पर.

तो ज़मीन की पीठ पर कोई चलने वाला न छोड़ता लेकिन एक मुक़र्रर (निश्चित) मीआद(20)
(20) यानी क़यामत के दिन.

तक उन्हें ढील देता है फिर जब उनका वादा आएगा तो बेशक अल्लाह के सब बन्दे उसकी निगाह में हैं(21){45}
(21) उन्हें उनके कर्मों की जज़ा देगा. जो अज़ाब के हक़दार हैं उन्हें अज़ाब फ़रमाएगा और जो करम के लायक़ हैं उनपर रहमो करम करेगा.

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