Roze Ka Bayan – रोजे का बयान
अल्लाह तआला फ़रमाता है
तर्जमा :- ऐ ईमान वालो! तुम पर रोज़ा फ़र्ज किया गया जैसा उन पर फर्ज हुआ था जो तुम से पहले हुए ताकि तुम गुनाहों से बचो चन्द दिनों का फिर तुम में जो कोई बीमार हो या सफ़र में हो वह और दिनों में गिनती पूरी करे और जो ताक़त नहीं रखते वह फ़िदया दें एक मिस्कीन का खाना फिर जो ज्यादा भलाई करे तो यह उसके लिए बेहतर है और रोज़ा रखना तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम जानते हो। माहे रमज़ान जिस में कुरान उतारा गया लोगों की हिदायत को और हिदायत हक व बातिल में जुदाई बयान करने के लिए तो तुममे जो कोई यह महीना पाये उसका रोज़ा रखे और जो बीमार या सफ़र में हो यह दूसरे दिनों में गिनती पूरी करे अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी का इरादा करता है सख़्ती का इरादा नहीं फ़रमाता और तुम्हें चाहिए कि गिनती पूरी करा और अल्लाह की बड़ाई बोलो कि उसने तुम्हें हिदायत की और इस उम्मीद पर कि उसके शुक्रगुज़ार हो, जाओ और ऐ महबूब! जब मेरे बन्दे तुमसे मेरे बारे में सवाल करें तो मैं नज़दीक हूँ दुआ करने वाले की दुआ सुनता हूँ जब वह मुझे पुकारे तो उन्हें चाहिए कि मेरी बात कबूल करें और मुझ पर ईमान लायें इस उम्मीद पर कि राह पायें। तुम्हारे लिए रोजे की रात में औरतों से जिमा (हमबिस्तरी) हलाल किया गया वह तुम्हारे लिए लिबास हैं और तुम उनके लिए लिबास। अल्लाह को मालूम है कि तुम अपनी जानों पर खियानत करते हो तो तुम्हारी तौबा कबूल की और तुमसे माफ़ फ़रमाया तो अब उनसे जिमा करो और उसे चाहो जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिखा और खाओ और पियो उस वक़्त तक कि फज्र का सफ़ेद डोरा सियाह डोरे से मुमताज़ हो जाये फिर रात तक रोज़ा पूरा करो और उनसे जिमा न करो उस हाल में कि तुम मस्जिद में मोतकिफ़ हो यह अल्लाह की हदें हैं इनके करीब न जाओ अल्लाह अपनी निशानियाँ यूँही बयान फरमाता है कि कहीं वह बचें
रोज़ा बहुत उमदा इबादत है उसकी फजीलत में बहुत हदीसें आर्य ‘ उनमें से बाज़ जिक्र की जाती हैं।
हदीस न. 1 :- सही बुख़ारी व सही मुस्लिम में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं जब रमज़ान आता है आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते हैं एक रिवायत में है जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और एक रिवायत में है कि रहमत के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और जहन्नम के दरवाजे बन्द कर दिये जाते हैं और शैतान जन्जीरों में जकड़ दिये जाते हैं और इमाम अहमद और तिर्मिज़ी व इब्ने माजा की रिवायत में है जब माहे रमज़ान की पहली रात होती है तो शैतान और सरकश जिन्न कैद कर लिये जाते हैं और जहन्नम के दरवाजे बन्द कर दिये जाते हैं तो इनमें से कोई दरवाजा खोला नहीं जाता और जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते हैं तो इनमें से कोई दरवाज़ा बन्द नहीं किया जाता और मुनादी पुकारता है, ऐ खैर तलब करने वाले। मुतवज्जेह हो, और ऐ शर के चाहने वाले! बाज़ रह और कुछ लोग जहन्नम से आजाद होते हैं और यह हर रात में होता है इमाम अहमद व नसई की रिवायत उन्हीं से है कि हजूर अकदस सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया रमज़ान आया यह बरकत का महीना है अल्लाह तआला ने इसके रोजे तुम पर फ़र्ज़ किये इस में आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और दोजख के दरवाजे बन्द कर दिये जाते हैं और सरकश शैतानों के तौक डाल दिये जाते हैं और इसमें एक रात ऐसी है जो हज़ार महीनों से बेहतर है जो उसकी भलाई से महरूम रहा बेशक महरूम है।
हदीस न. 2 :- इब्ने माजा हज़रते अनस रदियल्लाहु तआला अन्हू से रावी कहते हैं रमज़ान आया तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया यह महीना आया इसमें एक रात हज़ार महीनों से बेहतर है जो इससे महरूम रहा हर चीज़ से महरूम रहा और उसकी खैर से वही महरूम होगा जो पूरा महरूम है।
हदीस न. 3 :- बैहकी शोअबुल ईमान में इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कहते हैं जब रमज़ान का महीना आता रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम कैदियों को रिहा फरमा देते और साइल को अता फरमाते।
हदीस न. 4 :- बैहक़ी शोअबुल ईमान में इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जन्नत इब्तिदाए साल यानी शुरू साल से साले आइन्दा (आने वाले साल) तक रमज़ान के लिए आरास्ता की जाती है (सजाई जाती है) जब रमजान का पहला दिन आता है तो जन्नत के पत्तों से अर्श के नीचे एक हवा हूरों पर चलती है वह कहती हैं, ऐ रब! तू अपने बन्दों से हमारे लिए उनको शौहर बना जिनसे हमारी आँखें ठण्डी हों और उनकी आँखें हम से ठण्डी हों।
हदीस न. 5 :- इमाम अहमद अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं रमजान की आखिर शब में उम्मत की मगफिरत होती है। अर्ज की गयी क्या वह शबे कद्र है। फरमाया नही लेकिन काम करने वाले को उस वक़्त मज़दूरी पूरी दी जाती है जब वह काम पूरा कर ले।
हदीस न. 6 :- बैहक़ी शोअबुल ईमान में सलमान फ़ारसी रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कहते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने शाबान के आख़िर दिन में वाज़ फ़रमाया, फ़रमाया ऐ लोगो! तुम्हारे पास अज़मत वाला बरकत वाला महीना आया वह महीना जिसमें एक रात हज़ार महीनों से बेहतर है उसके रोजे अल्लाह तआला ने फ़र्ज़ किये और उसकी रात में कियाम (नमाज़) व ततव्वोअ जो इसमें नेकी का कोई काम करे तो ऐसा है जैसे और किसी महीने में फ़र्ज़ अदा किया और इसमें जिसने फ़र्ज़ अदा किया तो ऐसा है जैसे और दिनों में सत्तर फ़र्ज़ अदा किए। यह महीना सब्र का है और सब्र का सवाब जन्नत है और यह महीना मुवासात (हमदर्दी) का है और इस महीने में मोमिन का रिज्क बढ़ाया जाता है जो इसमें रोज़ादार को इफ्तार कराये उसके गुनाहों के लिए मगफिरत है और उसकी गर्दन आग से आज़ाद कर दी जायेगी और इस इफ़्तार कराने वाले को वैसा ही सवाब मिलेगा जैसा रोज़ा रखने वालों को मिलेगा बगैर इसके कि उसके अज्र में से कुछ कम हो। हमने अर्ज की या रसूलल्लाह! हममें का हर शख्स वह चीज़ नहीं पाता जिससे रोजा इफ्तार कराये। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अल्लाह तआला यह सवाब उस शख़्स को देगा जो एक घूंट दूध या एक खुरमा (छुआरा) या एक घूंट पानी से इफ्तार कराए या जिसने रोज़ादार को भरपेट खाना खिलाया उसको अल्लाह तआला मेरे हौज़ से पिलायेगा कि कभी प्यासा न होगा यहाँ तक कि जन्नत में दाखिल हो जाए। यह वह महीना है कि इसका अव्वल (शुरू के दस दिन) रहमत है और इसका औसत (दरमियान के दस दिन) मग़फ़िरत है और इसका आख़िर जहन्नम से आज़ादी है। जो अपने गुलाम पर इस महीने में तख़फ़ीफ़ करे यानी काम में कमी करे अल्लाह तआला उसे बख़्श देगा और उसे जहन्नम से आज़ाद फ़रमायेगा।
हदीस न. 7 :- सहीहैन व सुनने तिर्मिज़ी व नसई व सही इब्ने खुञ्जमा में सहल इब्ने सअद रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं जन्नत में आठ दरवाजे हैं उनमें एक दरवाजे का नाम रय्यान है उस दरवाजे से वही जायेंगे जो रोजे रखते हैं।
🎁 तरावीह की नमाज का बयान
हदीस न. 8 :- बुख़ारी व मुस्लिम में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है जो ईमान की वजह से और सवाब के लिए रोज़ा रखेगा उसके अगले गुनाह बख़्श दिये जायेंगे और जो ईमान की वजह से और सवाब के लिए रमज़ान की रातों का कियाम करेगा यानी नमाज़ पढ़ेगा उसके अगले गुनाह बख़्श दिये जायेंगे और जो ईमान की वजह से और सवाब के लिए शबे कद्र का कियाम करेगा उसके अगले गुनाह बख़ा दिये जायेंगे।
हदीस न. 9 :- इमाम अहमद व हाकिम व तबरानी कबीर ने और इब्ने अबिदुनिया और बैहकी शोअबुल ईमान में अब्दुल्लाह इब्ने अम्र रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं रोज़ा व कुरान बन्दे के लिए शफाअत करेंगे। रोजा कहेगा ऐ रब! मैंने खाने और ख्वाहिशों से इसे दिन में रोक दिया मेरी शफाअत इसके हक में कबूल फ़रमा। कुरान कहेगा ऐ रब! मैंने इसे रात में सोने से बाज़ रखा मेरी शफाअत इसके बारे में कबूल कर। दोनों की शफाअतें कबूल होंगी।
हदीस न. 10 :- सहीहैन में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं आदमी के हर नेक काम का बदला दस से सात सौ तक दिया जाता है, अल्लाह तआला ने फरमाया मगर रोजा कि वह मेरे लिए है और उसकी जज़ा मैं दूंगा बन्दा अपनी ख्वाहिश और खाने को मेरी वजह से तर्क करता है रोज़ादार के लिए दो खुशियाँ हैं एक इफ्तार के वक़्त और एक अपने रब से मिलने के वक्त और रोज़ादार के मुँह की बू अल्लाह तआला के नज़दीक मुश्क से ज्यादा पाकीज़ा है और रोज़ा सिपर (ढाल) है और जब किसी के रोजे का दिन हो तो न बेहूदा बके और न चीखे फिर अगर उससे कोई गाली-गलौच करे या लड़ने पर अमादा हो तो कह दे मैं रोज़ादार हूँ, इसी के मिस्ल इमाम मालिक व अबू दाऊद व तिर्मिज़ी व नसई व इब्ने खुजैमा ने रिवायत की।
हदीस न. 11 :- तबरानी औसत में और बैहकी इब्ने उमर रदियल्लाहु अन्हुमा से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अल्लाह तआला के नज़दीक आमाल सात किस्म के हैं दो अमल वाजिब करने वाले और दो का बदला उनके बराबर है और एक अमल का बदला दस गुना और एक अमल का मुआवज़ा सात सौ है और एक वह अमल है जिसका सवाब अल्लाह ही जाने। वह दो जो वाजिब करने वाले हैं उनमें एक यह कि जो ख़ुदा से इस हाल में मिले कि खालिस उसी की इबादत करता था किसी को उसके साथ शरीक न करता था उसके लिए जन्नत वाजिब। दूसरा यह कि जो खुदा से मिला इस हाल में कि उसने शरीक किया है तो उसके लिये जहन्नम वाजिब और तीसरा यह कि जिसने बुराई की उसको उसी क़द्र सज़ा दी जायेगी और चौथा यह कि जिसने नेकी का इरादा किया मगर अमल न किया तो उसको एक नेकी का बदला दिया जायेगा और पांचवों यह कि जिसने नेकी की उसे दस गुना सवाब मिलेगा और छटा यह कि जिसने अल्लाह की राह में खर्च किया उसको सात सौ का सवाब मिलेगा एक दिरहम का सात सौ दिरहम एक दीनार का सवाब सात सौ दीनार और सातवाँ रोज़ा अल्लाह तआला के लिए है उसका सवाब अल्लाह तआला के सिवा कोई नहीं जानता।
हदीस न. 12 से 15 :- इमाम अहमद और बैहकी रिवायत करते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया रोज़ा सिपर (ढाल) है और दोज़ख़ से हिफाज़त का मज़बूत किला, इसी के करीब-करीब जाबिर व उस्मान इब्ने अबिलआस व मआज इब्ने जबल रदियल्लाहु तआला अन्हुम से मरवी।
हदीस न. 16 से 17 अबू याला व बैहक़ी सलमा इब्ने कैस और अहमद व बज्जाज़ अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिसने अल्लाह तआला की रज़ा के लिए एक दिन का रोज़ा रखा अल्लाह तआला उसको जहन्नम से इतना दूर कर देगा जैसे कि कौआ कि जब * बच्चा था उस वक्त से उड़ता रहा यहाँ तक कि बूढ़ा होकर मरा।
हदीस न. 18 :- अबू याला व तबरानी अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अगर किसी ने एक दिन नफ़्ल रोज़ा रखा और जमीन भर उसे सोना दिया जाये जब भी उसका सवाब पूरा न होगा उसका तो सवाब कियामत के दिन मिलेगा।
हदीस न. 19 :- इब्ने माजा अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया हर शय के लिये ज़कात है और बदन की ज़कात रोज़ा है और रोजा निस्फ़ (आधा) सब्र है।
हदीस न. 20 :- नसई व इब्ने खुञ्जमा व हाकिम अबू उमामा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी अर्ज की, या रसूलल्लाह! मुझे किसी अमल का हुक्म फ़रमायें। इरशाद फ़रमाया रोजे को लाज़िम कर लो कि इसके बराबर कोई अमल नहीं। उन्होंने फिर वही अर्ज की, वही जवाब इरशाद हुआ।
हदीस न. 21 से 26 :- बुख़ारी व मुस्लिम व तिर्मिज़ी व नसई अबू सईद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जो बन्दा अल्लाह की राह में एक रोजा रखे अल्लाह तआला उसके मुँह को दोज़ख़ से सत्तर बरस की राह दूर फ़रमा देगा और इसी के मिस्ल नसई, तिर्मिज़ी व इब्ने माजा अबू हुरैरा रट्रियल्लाहु तआला अन्हु से रावी और तबरानी अबू दरदा और तिर्मिज़ी अबू उमामा रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत करते हैं फरमाया कि उसके और जहन्नम के दरमियान अल्लाह तआला इतनी बड़ी ख़न्दक कर देगा जितना आसमान व जमीन के दरमियान फासिला है और तबरानी की रिवायत अम्र इब्ने अबसा रदियल्लाहु तआला अन्हु से है कि दोज़ख़ उससे सौ बरस की राह दूर होगी और अबू याला की रिवायत मआज़ इब्ने अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से है कि रमज़ान के दिनों के अलावा अल्लाह तआला की राह में रोज़ां रखा तो तेज़ घोड़े की रफ्तार से सौ बरस की मसाफ़त (दूरी) पर जहन्नम से दूर होगा।
हदीस न. 27 :- बैहकी अब्दुल्लाह इब्ने अम्र इब्ने आस रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं रोज़ादार की दुआ इफ्तार के वक्त रद नहीं की जाती।
हदीस न. 28 :- इमाम अहमद व तिर्मिज़ी व इब्ने माजा व इब्ने ख़ुजैमा व इब्ने हब्बान अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं तीन शख्स की दुआ रद नहीं की जाती रोज़ादार जिस वक्त इफ्तार करता है और बादशाहे आदिल और मज़लूम की दुआ इसको अल्लाह तआला अब्र से ऊपर बलन्द करता है और इसके लिए आसमान के दरवाजे खोले जाते हैं और रब तआला फरमाता है अपनी इज्जत व जलाल है की कसम ज़रूर तेरी मदद करूंगा अगर्चे थोड़े ज़माने बाद।
हदीस न. 29 :- इब्ने हब्बान व बहकी अबू सईद खुदरी रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं जिसने रमज़ान का रोज़ा रखा और उसकी हदों को पहचाना और जिस चीज़ से बचना चाहिए उससे बचा तो जो पहले कर चुका है उसका कफ्फारा हो गया।
हदीस न. 30 :- इब्ने माजा इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि हुजूर अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं जिसने मक्के में माहे रमज़ान पाया और रोजा रखा और रात में जितना मुयस्सर आया कियाम किया तो अल्लाह तआला उसके लिए और जगह के एक लाख रमज़ान का सवाब लिखेगा और हर दिन एक गर्दन आज़ाद करने का सवाब और हर रोज़ जेहाद में घोड़े पर सवार कर देने का सवाब और हर दिन में हसना (नेकी) और हर रात में हसना लिखेगा।
हदीस न. 31 :- बैहकी जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं मेरी उम्मत को माहे रमजान में पाँच बातें दी गईं कि मुझसे पहले किसी नबी को न मिली अब्बल यह कि जब रमज़ान की पहली रात होती है अल्लाह तआला उनकी तरफ़ नज़रे रहमत फ़रमाता है दूसरी यह कि शाम के वक़्त उनके मुँह की बू अल्लाह तआला के नज़दीक मुश्क से ज्यादा अच्छी है। तीसरी यह कि हर दिन और रात में फ़रिश्ते उनके लिए इस्तिगफार करते हैं। चौथी यह कि अल्लाह तआला जन्नत को हुक्म फरमाता है कहता है तैयार हो जा और मेरे सख्ती से यहाँ आकर आराम करें। पाँचवी यह कि जब आख़िर रात होती मुज़य्यन हो जा (सज जा), करीब है कि दुनिया की है तो उन सब की मगफिरत फरमा देता है। किसी ने अर्ज़ की क्या वह शबे कद्र है। फ़रमाया नहीं क्या तू नहीं देखता कि काम करने वाले काम करते हैं जब काम से फ़ारिग होते हैं उस वक्त मज़दूरी पाते हैं।
हदीस न. 32 से 34 :- हाकिम ने कअब इब्ने अजरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया सब लोग मिम्बर के पास हाज़िर हों। हम हाज़िर हुए जब हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मिम्बर के पहले दर्जे पर चढ़े कहा आमीन, दूसरे पर चढ़े कहा आमीन, तीसरे पर चढ़े कहा आमीन। जब मिम्बर से तशरीफ़ लाये हमने अर्ज की आज हमने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से ऐसी बात सुनी कि कभी न सुनते थे। फ़रमाया जिब्रील ने आकर अर्ज की वह शख़्स दूर हो जिसने रमज़ान पाया और अपनी मगफ़िरत न कराई। मैंने कहा आमीन। जब मैं दूसरे दर्जे पर चढ़ा तो कहा वह शख़्स दूर हो जिसके पास मेरा ज़िक्र हो और मुझ पर दुरूद न भेजे। मैंने कहा आमीन। जब मैं तीसरे दर्जे पर चढ़ा कहा वह शख़्स दूर हो जिसके माँ-बाप दोनों या एक को बुढ़ापा आये और उनकी ख़िदमत करके जन्नत में न जाये मैंने कहा आमीन। इसी के मिस्ल अबू हुरैरा व हसन इब्ने मालिक इब्ने हुवैरस रदियल्लाहु तआला अन्हुम से इब्ने हब्बान ने रिवायत की।
हदीस न. 35 :- अस्बहानी ने अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जब रमज़ान की पहली रात होती है अल्लाह तआला अपनी मखलूक की तरफ़ नज़रे रहमत फ़रमाता है और जब अल्लाह किसी बन्दे की तरफ़ नज़रे रहमत फ़रमाये तो उसे कभी अज़ाब न देगा और हर रोज़ दस लाख को जहन्नम से आज़ाद फ़रमाता है और जब उन्तीसवीं रात होती है तो महीने भर जितने आज़ाद किये उनके मजमुए के बराबर उस एक रात में आज़ाद करता है। फिर जब ईदुल फित्र की रात आती है मलाइका (फ़रिश्ते) ख़ुशी करते हैं और अल्लह तआला अपने नूर की ख़ास तजल्ली फ़रमाता है, फ़रिश्तों से फ़रमात है ऐ गिरोहे मलाइका उस मज़दूर का क्या बदला है जिसने काम पुरा कर लिया। फ़रिश्ते अर्ज करते हैं उसको पूरा अज्र दिया जाये। अल्लाह तआला फ़रमाता है तुम्हें गवाह करता हूँ कि मैंने उन सब को बना दिया
हदीस न. 36 :- इब्ने खुजैमा ने अबू मसऊद गिफ़ारी रदियल्लाहु तआला अन्हु से एक तवील हृदीस रिवायत की उसमें यह भी है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया अगर बन्दों के मालूम होता कि रमज़ान क्या चीज़ है तो मेरी उम्मत तमन्ना करती कि पूरा साल रमज़ान ही हो।
हदीस न. 37 :- बज्जाज़ व इब्ने खुजमा व इब्ने हुब्बान अम्र इब्ने मुर्रा जोहनी रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि एक शख्स ने अर्ज की, या रसूलल्लाह! फ़रमायें तो अगर मैं इसकी गवाही दूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं और पाँचों नमाजें पढूँ और ज़कात अदा करूँ और रमज़ान के रोजे रखू और उसकी रातों का कियाम करूँ तो मैं किन लोगों में से होऊँगा। फ़रमाया सिद्दीक़ीन और शोहदा में से।