EID Ki Namaz Ka Tarika

EID Ki Namaz Ka Tarika

EID Ki Namaz Ka Tarika

 

  1. Ghusl Ka Tarika
  2. Namaz Ka Tarika

ईद की नमाज़ की नियत का तरीका

नमाजे ईद का तरीका :- यह है कि दो रकआत वाजिब ईदुल फित्र या ईदे अज़हा की नियत करके कानों तक हाथ उठाए और ‘अल्लाहु अकबर’ कह कर हाथ बांध ले फिर सना पढ़े

SANA In Arabic

EID Ki Namaz Ka Tarika

SUBHANA KALLA HUMMA WA BI HAMDI KA WAT TABARA KASMOOKA WA TA-AALA JADDU KA WA LAA-I-LAAHA GHAIROOK

सना हिन्दी में

सुभानाका अल्लाहुम्मा व बिहाम्दिका व
ताबराकस्मुका वत आला जद्दुका वाला इलाहा
गैरुका

सना का तर्जुमा हिन्दी में

तर्जुमा :- ए अल्लाह में तेरी पाकी बयां करता हु और
तेरी तारीफ़ करता हु और तेरा नाम बर्कात्वाला
है बुलंद है तेरी शान और नहीं हैं 



 

फिर कानों तक हाथ उठाए और ‘अल्लाहु अकबर‘ कहता हुआ हाथ छोड़ दे फिर हाथ उठाए और ‘अल्लाहु अकबर‘ कहकर हाथ छोड़ दे फिर हाथ उठाए और ‘अल्लाहु अकबर‘ कहकर हाथ बांध ले यानी पहली तकबीर में हाथ बांधे उसके बाद दो तकबीरों में हाथ लटकाए फिर चौथी तकबीर में बांध ले (इसको यूँ याद रखें कि जहाँ तकबीर के बाद कुछ पढ़ना है वहाँ हाथ बांध लिये जायें और जहाँ पढ़ना नहीं वहाँ हाथ छोड़ दिये जायें) फिर इमाम ‘अऊजुबिल्लाह‘ और ‘बिस्मिल्लाह‘ आहिस्ता पढ़कर जहर (यानी बलन्द आवाज़) के साथ सूरए फातिहा

Surah Fatiha in Arabic

EID Ki Namaz Ka Tarika

Surah Fatiha in English

‘AL-HAMDU LILLAAHI RABBIL-‘ALAMEEN. AR-RAHMAN, IR-RAHIM. MAALIKI YAWMID-DEEN. ‘IYYAAKA NA’BUDU WA ‘IYYAAKA NASTA’EEN. ‘IHDINAS-SIRATAL-MUSTAQEEM. SIRAATAL-LADHEENA ‘AN-‘AMTA ‘ALAYHEEM GHAYRIL MAGHDHUBI ALAYHEEM WA LAD-DHAAALEEN. AMEEN.

सूरए फातिहा हिन्दी में

अल्हम्दुलिल्लहि रब्बिल आलमीन, अर रहमा निर रहीम, मालिकि यौमिद्दीन, इय्याक न अबुदु व इय्याका नस्तईन, इहदिनस् सिरातल मुस्तक़ीम,सिरातल लज़ीना अन अमता अलय हिम, गैरिल मग़दूबी अलय हिम् व लद दाालीन,  (आमीन)

सूरह फातिहा का तर्जुमा, कन्जुल ईमान हिंदी में

1. सब खू़बियाँ अल्लाह को जो मालिक सारे जहान वालों का
2. बहुत मेहरबान रहमत वाला
3. रोज़े जज़ा (इन्साफ के दिन) का मालिक
4. हम तुझी को पूजें और तुझी से मदद चाहें
5. हमको सीधा रास्ता चला
6. रास्ता उनका जिन पर तूने एहसान किया
7. न उन का जिन पर ग़ज़ब (प्रकोप) हुआ और न बहके हुओं का



 

और सूरत पढ़े फिर रुकू करे और दूसरी रकअत में पहले सूरए फ़ातिहा और सूरत पढ़े फिर तीन बार कान तक हाथ ले जा कर ‘अल्लाहु अकबर‘ कहे और हाथ न बांधे और चौथी बार बगैर हाथ उठाए ‘अल्लाहु अकबर‘ कहता हुआ रुकू में जाए इस से मालूम हो गया कि ईदैन में जाइद तकबीरें छह हुईं तीन पहली में किरात से पहले और तकबीरे तहरीमा के बाद और तीन दूसरी में किरात के बाद और तकबीरे रुकू से पहले और इन सभी छः तकबीरों में हाथ उठाए जायेंगे और हर दो तकबीरों के दरमियान तीन तसबीह

ईद की नमाज़ में कौनसी सूरह पढ़े

मसअला :- की कद्र ठहरे और ईदैन में मुस्तहब यह है कि पहली में ‘सूरए जुमा‘ दूसरी में ‘सूरए मुनाफ़िकून‘ पढ़े या पहली में ‘सूरए अल-अला‘ और दूसरी में ‘सूरए गाशिया‘।

(दुर्रे मुख़्तार वगैरह)

Mp3 Quran

  1. सूरए जुमा
  2. सूरए मुनाफ़िकून
  3. सूरए अल-अला
  4. सूरए गाशिया

इमाम नें 6 तकबीरों से ज्यादा कहीं तो

मसअला :- इमाम ने छह तकबीरों से ज्यादा कहीं तो मुक़तदी भी इमाम की पैरवी करे मगर तेरह से ज्यादा में इमाम की पैरवी नहीं।

(रद्दुल मुहतार)

पहली रकअत में देर से शामिल होना

पहली रकअत में इमाम के तकबीर कहने के बाद मुक़तदी शामिल हुआ तो उसी वक्त तीन तकबीरें कह ले अगर्चे इमाम ने किरात शुरू कर दी हो और तीन ही कहे अगर्चे इमाम ने तीन से ज्यादा कही हों और अगर इसने तकबीरें न कहीं कि इमाम रुकू में चला गया तो खड़े खड़े न कहे बल्कि इमाम के साथ रुकू में और रुकू में तकबीर कह ले और अगर इमाम को रुकू में पाया और गालिब गुमान है कि तकबीरें कह कर इमाम को रुकू में पा लेगा तो खड़े-खड़े तकबीरें कहे फिर रुकू में जाए वरना ‘अल्लाहु अकबर’ कह कर रुकू में जाए और रुकू में तकबीरें कहे फिर अगर इसने रुकू में तकबीरें पूरी न की थीं कि इमाम ने सर उठा लिया तो बाकी साकित हो गईं और अगर इमाम के रुकू से उठने के बाद शामिल हुआ तो अब तकबीरें न कहे बल्कि जब अपनी पढ़े उस वक़्त कहे और रुकू में जहाँ तकबीर कहना बताया गया उसमें हाथ न उठाए और अगर दूसरी रकअत में शामिल हुआ तो पहली रकअत की तकबीरें अब न कहे बल्कि जब अपनी फौत शुदा (छूटी हुई) पढ़ने खड़ा हो उस वक्त कहे और दूसरी रकअत की तकबीरें अगर इमाम के साथ पा जाए तो बेहतर वरना इसमें भी वही तफ़सील है जो पहली रकअत के बारे में जिक्र की गई।

(आलमगीरी, दुर्रे मुख़्तार वगैरहुमा)



 

नमाज़ में सो जाना या वुजू टुट जाना

मसअला :- जो शख़्स इमाम के साथ शामिल हुआ फिर सो गया या उसका वुजू जाता रहा अब जो पढ़े तो तकबीरें उतनी कहे जितनी इमाम ने कहीं अगर्चे उसके मजहब में उतनी न थीं ।

(आलमगीरी)

इमाम तकबीर कहना भूल गया

मसअला :- इमाम तकबीर कहना भूल गया और रुकू में चला गया तो कियाम की तरफ़ न लौटे न रुकू में तकबीर कहे।

(दुई मुख्तार)

मसअला :- पहली रकअत में इमाम तकबीरें भूल गया और किरात शुरू कर दी तो किरात के बाद कह ले या रुकू में और किरात का इआदा न करे यानी लौटाए नहीं।

(गुनिया, आलमगीरी)

इमाम 6 तकबीराते जादा कहेंतो

मसअला :- इमाम ने तकबीराते जवाइद (यानी वह छ: तकबीरें जा ईदैन की नमाज़ में ज्यादा हैं) में हाथ न उठाए तो मुक़तदी उसकी पैरवी न करें बल्कि हाथ उठायें।

(आलमगीरी वगैरा)

नमाज़ के बाद इमाम दो खुतबे पढ़े

मसअला :- नमाज़ के बाद इमाम दो खुतबे पढ़े और ख़ुतबए जुमा में जो चीजें सुन्नत हैं इसमें भी सुन्नत हैं और जो वहाँ मकरूह यहाँ भी मकरूह सिर्फ दो बातों में फर्क है एक यह कि जुमे के पहले खुतबे से पहले ख़तीब का बैठना सुन्नत था और इसमें न बैठना सुन्नत है। दूसरी यह कि इसमें पहले खुतबे से पहले नौ बार और दूसरे के पहले सात बार और मिम्बर से उतरने के पहले चौदह बार ‘अल्लाहु अकबर’ कहना सुन्नत है और जुमे में नहीं।

(आलमगीरी, दुर्रे मुख़्तार)

मसअला :- ईदुल फित्र के खुतबे में सदकए फ़ित्र के अहकाम की तालीम करे वह पाँच बातें हैं। 1. किस पर वाजिब है। 2. किस के लिए वाजिब है 3. कब वाजिब है 4. कितना वाजिब है 5. और किस चीज़ से वाजिब है, बल्कि मुनासिब यह है कि ईद से पहले जो जुमा पढ़े उसमें भी यह अहकाम बता दिये जायें कि पहले से लोग वाकिफ़ हो जायें और ईदे अजहा के खुतबे में कुर्बानी के अहकाम और तकबीराते तशरीक की तालीम की जाए।

(दुरै मुख्तार, आलमगीरी)

तकबीराते तशरीक किन तकबीरों को कहते है

नोट : तकबीराते तशरीक उन तकबीरों को कहते है जो बक़रईद के महीने में नौ तारीख़ की फज्र से तेरह तारीख की अस्र तक हर फर्ज नमाज़ के बाद तीन मरतबा कही जाती हैं।



 

नमाज़ में कोई शख्स बाकी रह गया

मसअला :- इमाम ने नमाज़ पढ़ ली और कोई शख्स बाकी रह गया ख्वाह वह शामिल ही न हुआ था या शामिल तो हुआ था मगर इसकी नमाज़ फ़ासिद हो गई तो अगर दूसरी जगह मिल जाए पढ़ ले वरना नहीं पढ़ सकता। हाँ बेहतर यह है कि यह शख्स चार रकआत चाश्त की नमाज़ पढ़े।

(दुर्रे मुख्तार)

किसी वज़ह से ईद के दिन नमाज़ नहीं पढ़ी

मसअला :- किसी उज़ के सबब ईद के दिन नमाज़ न हो सकी (मसलन सख़्त बारिश हुई या बादल के सबब चाँद नहीं देखा गया और गवाही ऐसे वक्त गुज़री कि नमाज न हो सकी या बादल था और नमाज़ ऐसे वक्त ख़त्म हुई कि ज़वाल हो चुका था) तो दूसरे दिन पढ़ी जाए और दूसरे दिन भी न हुई तो ईदुल फित्र की नमाज़ तीसरे दिन नहीं हो सकती, और दूसरे दिन भी नमाज़ का वही वक्त है जो पहले दिन था यानी एक नेज़ा आफ़ताब बलन्द होने से निसफुन्नहारे शरई तक और बिला उज़ ईदुल फित्र की नमाज़ पहले दिन न पढ़ी तो दूसरे दिन नहीं पढ़ सकते।

(आलमगीरी, दुर्रे मुख़्तार वगैरहुमा)

ईदुल अज़हा और ईदुल फ़ित्र

मसअला :- ईदे अज़हा तमाम अहकाम में ईदुल फ़ित्र की तरह है. सिर्फ बाज़ बातों में फर्क है (इसमें मुस्तहब यह है कि नमाज़ से पहले कुछ न खाए अगर्चे कुर्बानी न करे और खा लिया तो कराहत नहीं और रास्ते में बलन्द आवाज़ से तकबीर कहता जाए और ईदे अज़हा की नमाज़ उन की वजह से बारहवीं तक बिला कराहत मुअख्खर कर सकते हैं यानी बारहवीं तक पढ़ सकते हैं, बारहवीं के बाद फिर नहीं हो सकती और बिला उन दसवीं के बाद मकरूह है।

(आलमगीरी वगैरा)

कुर्बानी करनी हो तो मुस्तहब यह है

मसअला :- कुर्बानी करनी हो तो मुस्तहब यह है कि पहली से दसवीं ज़िलहिज्जा तक न हजामत बनवाए न नाखून तरशवाए।

(रद्दुल मुहतार)

अर्फे के दिन यानी 9 जिलहिज्जा

मसअला :- अर्फे के दिन यानी नवीं जिलहिज्जा को लोगों का किसी जगह जमा होकर हाजियों की तरह वुकूफ़ करना और ज़िक्र व दुआ में मशगूल रहना सही यह है कि कुछ मुज़ाएका (हरज) नहीं जबकि लाज़िम व वाजिब न जाने और अगर किसी दूसरी ग़रज़ से जमा हुए मसलन नमाजे इस्तिसका पढ़नी है जब तो बिला इख़्तिलाफ़ जाइज़ है और असलन (बिल्कुल) हरज नहीं।

(दुर्रे मुख़्तार)



 

ईद की नमाज़ के बाद मुसाफ़हा

मसअला :- ईद की नमाज़ के बाद मुसाफ़हा व मुआनका यानी गले मिलना जैसा उमूमन मुसलमानों में रिवाज है बेहतर है कि इसमें अपनी ख़ुशी का इज़हार है।

(वशाहुलजीद)

9 ज़िलहिज्जा

मसअला :- नवीं ज़िलहिज्जा की फज्र से तेरहवीं की अम्र तक हर नमाजे फर्जे पंजगाना के बाद जो जमाअत मुस्तहब्बा के साथ अदा की गई एक बार तकबीर बलन्द आवाज़ से कहना वाजिब है और तीन बार अफ़ज़ल, इसे तकबीरे तशरीक कहते हैं वह यह है

Eid Ki Takbeer Arabi, English, Hindi

.اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ لَا إلَهَ إلَّا اللَّهُ وَاَللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ وَلِلَّهِ الْحَمْد

Takbeer-E-Tashreeq IN English

Allahu Akbar, Allahu Akbar, La Ilaha Ilallahu Wallahu Akbar, Allahu Akbar, Wa Lillahil Hamd.

तकबीरे तशरीक़ हिन्दी में

अल्लाहो अकबर अल्लाहो अकबर लाइलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहू अकबर, अल्लाहु अकबर व लिल्लाहिल हम्द !

तकबीरे तशरीक़ का तर्जुमा हिन्दी में

अल्लाह बड़ा है, अल्लाह बड़ा है, अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं अल्लाह बड़ा है, अल्लाह बड़ा है ! सारी तारीफें अल्लाह के लिए हैं !

(तनवीरुल अबसार)



 

मसअला :- तकबीरे तशरीक सलाम फेरने के बाद फौरन वाजिब है यानी जब तक कोई ऐसा फेल न किया हो कि उस नमाज़ पर बिना न कर सके। अगर मस्जिद से बाहर हो गया या कसदन (जानबूझ कर) वुजू तोड़ दिया या कलाम किया अगः सहवन (भूलकर) तो तकबीर साकित हो गई और बिला कस्द यानी बिला इरादा वुजू टूट गया तो

(दुरै मुख़्तार, रद्दुल मुहतार)

मसअला:- तकबीरे तशरीक उस वाजिब है जो शहर में मुकीम हो या जिसने उसकी इक्तिदा की अगर्चे औरत या मुसाफ़िर या गांव का रहने वाला और अगर उसकी इक्तिदा न करें तो इन पर वाजिब नहीं।

(दुर्रे मुख़्तार)

मसअला :- नफ़्ल पढ़ने वाले ने फ़र्ज़ वाले की इक्तिदा की तो इमाम की पैरवी में इस मुकतदी पर भी वाजिब है अगर्चे इमाम के साथ इसने फ़र्ज़ न पढ़े और मुकीम ने मुसाफ़िर की इक्तिदा की तो मुकीम पर वाजिब है अगर्चे इमाम पर वाजिब नहीं।

(दुर्रे मुख़्तार, रद्दुल मुहतार)

तकबीरे तशरीक औरतों पर वाजिब नहीं

मसअला :- गुलाम पर तकबीरे तशरीक वाजिब है और औरतों पर वाजिब नहीं अगर्ने जमाअत से नमाज़ पढ़ी। हाँ अगर मर्द के पीछे औरत ने पढ़ी और इमाम ने उसके इमाम होने की नियत की तो औरत पर भी वाजिब है मगर आहिस्ता कहे। यूँही जिन लोगों ने बरहना नमाज़ पढ़ी उन पर भी वाजिब नहीं अगर्चे जमाअत करें कि उनकी जमाअत जमाअते मुस्तहब्बा नहीं।

(दुर्रे मुख़्तार, जौहरा वगैरहुमा)

नफ़्ल व सुन्नत व वित्र के बाद तकबीर

मसअला :- नफ़्ल व सुन्नत व वित्र के बाद तकबीर वाजिब नहीं और जुमे के बाद वाजिब है और नमाजे ईद के बाद भी कह ले।

(दुर्रे मुख़्तार)

जिसकी शुरू से रकअत छूट गई

मसअला :- मसबूक (जिसकी शुरू से रकअत छूटे) व लाहिक (जिसकी दरमियान से रकअत छुटे) पर तकबीर वाजिब है मगर खुद सलाम फेरें उस वक़्त कहें और अगर इमाम के साथ कह ली तो नमाज़ फ़ासिद न हुई और नमाज़ ख़त्म करने के बाद तकबीर का इआदा भी नहीं यानी लैटाना भी नहीं।

(रद्दुल मुहतार)

नमाज़ कज़ा हो गई

मसअला :- और दिनों में नमाज़ कज़ा हो गई थी अय्यामे तशरीक में उसकी क़ज़ा पढ़ी तो तकबीर वाजिब नहीं। यूहीं इन दिनों की नमाजें और दिनों में पढ़ें जब भी वाजिब नहीं। यूहीं गुजरे हुए साल के अय्यामे तशरीक की क़ज़ा नमाजें इस साल के अय्यामे तशरीक में पढ़े जब भी वाजिब नहीं हाँ अगर इसी साल के अय्यामे तशरीक की कज़ा नमाजें इसी साल के इन्हीं दिनों में जमाअत से पढ़े तो वाजिब है।

(रद्दुल मुहतार)

नोट : वह दिन जिनमें तकनीरे तशरीक कही जाती है उन्हें अय्यामे तशरीक कहते हैं।



 

तन्हा नमाज़ पढ़ने वाला

मसअला :- मुनफ़रिद यानी तन्हा नमाज़ पढ़ने वाला जो जमाअत में शामिल नहीं था उस पर तकबीर वाजिब नहीं (जौहरा नय्यिरा) मगर मुनफ़रिद भी कह ले कि साहिबैन के नज़दीक इस पर भी वाजिब है।

इमाम ने तकबीर न कही

मसअला :- इमाम ने तकबीर न कही जब भी मुकतदी पर कहना वाजिब है अगर्चे मुक़तदी मुसाफ़िर या देहाती या औरत हो।

(दुर्रे मुख़्तार)

बाजारों में एलान के साथ तकबीरें

मसअला :- इन तारीखों में अगर आम लोग बाजारों में एलान के साथ तकबीरें कहें तो उन्हें मना न किया जाए।

(दुर्रे मुख़्तार)

( 📚 बहारे शरीअत – चौथा हिस्सा 126/131 )



 
  1. रमजान में पूरे महीने रोजे रखने के बाद ईद-उल फित्र मनाई जाती है !
  2. ईद अल्लाह से इनाम लेने का दिन है !
  3. ईद दुनिया भर के मुसलमानों के लिए खुशी का दिन है ! इस्लाम में दो ही खुशी के दिन हैं,  
  4. 1. ईद-उल फित्र – Eid Ul  Fitr  
  5. 2. ईद उल अज़्हा  Eid Ul Adha
  6. ईद के दिन सुबह जल्दी उठकर फ़ज़्र नमाज़ पढ़ना चाहिए ! 
  7. सुबह जल्दी उठकर फजर की नमाज अदा करने के खुद की सफाई और कपड़े वगैरह तैयार रखना।
  8. नाख़ून काटना 
  9. सर के बाल बनवाना 
  10. गुस्ल (नहाना)
  11. करनामिस्वाक (दांत साफ़ ) करना 
  12. सबसे उम्दा और साफ कपड़े पहनना। ( कपडे नए हो या पुराने, लेकिन साफ होना चाहिए )
  13. इत्र लगाना ( ख़ुश्बू सिर्फ मर्द लगाए )
  14. सूरमा लगाना 
  15. ईदगाह जाने से पहले कुछ खाना !
  16. मुँह मीठा करके जाना सुन्नत तरीका है खाने ख़ज़ूर हो तो अच्छा !
  17. ईद-उल-फ़ित्र है तो 3 ya 5 ya 7 ख़जूर खाना सुन्नत है 


 
  1. नमाज से पहले फितरा, जकात अदा करना ! 
  2. फितरे के घर के हर एक इंसान के हिसाब से पौने दो किलो अनाज या उसकी कीमत गरीबों को दी जाती हैइसका मकसद यह है कि गरीब भी ईद की खुशी मना सकें !
  3. यानी घर में पांच इंसान है तो पौने दो किलो 1.75 x 5 = 8.75 ईदगाह में जल्दी पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए ईद की नमाज़ नमाज़ के लिए पैदल जाना चाहिए !
  4. कोई मज़बूरी हो या ईदगाह दूर हो तो कोई बात नहीं हम सबके प्यारे नबीये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नते करीमा थी की वह एक रास्ते से ईदगाह जाते थे और दूसरे रास्ते से वापस आते थे लिहाज़ा ईदगाह आने-जाने के लिए अलग-अलग रास्तों का इस्तेमाल करना ! 
  5. ईद की नमाज़ खुले मैदान में अदा करना ( बारिश या बर्फ गिरने की स्थिति में नहीं )
  6. ईदगाह जाते वक्त यह तकबीर पढ़ना ‘अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, लाइलाहा इल्ललाहु, अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, वलिल्लाहिलहम्द ‘ ( अल्लाह बड़ा है, अल्लाह बड़ा है, अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं अल्लाह बड़ा है, अल्लाह बड़ा है ! सारी तारीफें अल्लाह के लिए हैं ! )


 
  1. ईद के दिन का रोज़ा नहीं रख सकते है और ईद की नमाज़ से पहले कोई भी नफ़्ल नमाज़ नहीं होगी 
  2. जब तक मर्दो की ईद की नमाज़ न हो जाए तब तक घर की औरते कोई भी नफ़्ल या चास्त की नमाज़ अदा नहीं कर सकती 
  3. ईद की नमाज़  मुसाफिर पर बीमार पर अपाहिज पर बहुत ज्यादा बूढ़े आदमी पर औरतो पर वाजिब नहीं होती है 
  1. ईद की नमाज़ वाजिब नमाज़ है लिहाजा ईद की नमाज़ औरतों पर वाजिब नहीं है ! 
  2. औरतो के लिए ये मसअला है की ईदगाह में नमाज़ का अलग से इंतज़ाम हो तो वो वहा जाकर जमाअतसे नमाज़ पढ़ सकती है परदे की हालत में हो और फ़ितने वगैरह का अंदेशा नहीं हो तो जमाअत में शामिलहो सकती है ! बहरहाल अफजल यही है की वह घर पर ही रहकर नफ़्ल नमाज़ या चास्त की नमाज़ अदा करे !
  3. अल्लाह करीम है इसी से ख्वातिइन को कसीर तादात में सवाब हासिल हो जाएगा ! इंशा-अल्लाह !
  4. ईद की नमाज़ के बाद गले मिले !
  5. किसी से बोलचाल बंद है तो मुआफी मांगे !
  6. मुआफी मांगने कोई छोटा नहीं हो जाता !
  7. लिहाज़ा गले मिलकर माँ और बाप से जरूर मुआफी माँगना चाहिए !
  8. सबको ईद की मुबारक बाद दे वे !
  9. छोटे बच्चो को इस दिन ईदी का इंतज़ार रहता है लिहाज़ा बच्चो को खुश रखे माँ को बहनो को और बीवी को भी ईदी या गिफ़्ट देकर जरूर खुश करे ! 

अल्लाह तआला सभी को ज्यादा से ज्यादा ईद की खुशियाँ अता फ़रमाए !  आमीन  ! 

 

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