Fajr Ki Namaz Ka Tarika

Fajr Ki Namaz Ka Tarika

Fajr Ki Namaz Ka Tarika

फजर की नमाज में कितनी रकात होती है

फज्र की नमाज में 4 रकात होती है

  1. सुन्नते मोअक्केदा. 2
  2. फ़र्ज़ 2
  3. कुल संख्या 4

फज्र की नमाज़ की नियत का तरीका

नमाजे फज्र की फजीलत



 

१. हज़रत आएशा सिद्दीका रदीय्यल्लाहो तआला अन्हा से रिवायत है कि

हुजूरे-अकदस सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते हैं, कि:

फज्र की दो (२) रकअतें दुनिया-व-माफीहा (जो कुछ दुनिया में हैं) उससे बहेतर हैं.

(मुस्लिम, तिरमिजी)

२. हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रदीय्यल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है. कि हुजूरे-अकदस सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि;

‘फज्र की दोनों रकअतों को लाज़िम कर लो कि उसमें बड़ी फजीलत है.’

(तिब्रानी)

३. हुजूरे-अकदस सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि;

फज्र की सुन्नतें न छोड़ो, अगरचे तुम पर दुश्मन के घोड़े आ पडे.’

(अबू दाउद)

फज्र की नमाज़ का वक़्त सुब्ह सादिक से तुलूअ आफताब (सूर्योदय) तक

सुब्ह सादिक एक रौशनी (प्रकाश) है,जो जहां से आज आफताब तुलूअ होने वाला है उसके उपर आसमान के किनारे में पूरब की जानिब (पूर्व , दिशा) में

नज़र आती है और आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ती जाती है,यहां तक :कि तमाम आसमान में फैल जाती है और उजाला हो जाता है.

फजर की नमाज का टाइम कब तक रहता है

फज्र की नमाज़ का वक्त



 

कम से कम (Minimum) १ घंटा १८ मिनट होता है.
ज्यादा से जयादा (Maximum). १ घंटा ३५ मिनट होता है.

फज्र की नमाज का वक्त साल भर में नीचे निर्देश किए गए नक्शे (Chart) के मुताबिक घटता बढ़ता रहेता है :

Fajr Ki Namaz Ka Tarika
हवाला बहारे-शरीअत हिस्सा नं. ३, सफहा नं. १८.

ज़रूरी नोट : परोक्त नक्शा बरैली और बरैली के आसपास के विस्तारो के लिये बनाया गया है. बहारे शरीअत में फज्र की नमाज़ में उपरोक्त समय उन विस्तारो के लिये हैं, जो बरैली के अर्जे बलद (अक्षांसLatitude) और तूले बलद(रेखांश-Longitude)पर आए हुए हैं. जो विस्तार इन अक्षांस-रेखांस के इलावा पर आए हुए हैं. उन में थोड़ा सा फर्क आएगा.

नमाज़े-फज्र के तअल्लुक से ज़रूरी मसाइल

मसला

‘मर्दो के लिये अव्वल वक़्त में फज्र की नमाज़ पढ़ने के बजाए (बदले) ताख़ीर करना मुस्तहब है या’नी इतनी दैर करना कि ‘अस्फार’ हो जाए या’नी इतना उजाला फैल जाए कि ज़मीन रौशन (स्पष्ट) हो जाए और आदमी आसानी से एक दूसरे को पहचान सके.’

(रद्दुल मोहतार)

मसला

‘फज्र की नमाज़ अस्फार में पढ़ने की बहुत फजीलत है.अहादीसे-करीमा में इस की बहुत फजीलतें बयान की गई हैं.चंद हदीसें पैशे ख़िदमत है.

हदीस

‘इमाम तिरमिजी ने हज़रत राफेअ बिन ख़दीज रदीयल्लाहो तआला अन्होसे रिवायत की कि हुजूरे-अकदस सल्लल्लाहो तआला अलैसे वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि; ‘फज्र की नमाज़ उजाले मे पढ़ो कि उस में बहुत अजीम सवाब है.’

हदीस



 

हदीस ‘दैलमी की रिवायत हज़रत अनस रदीयल्लाहो तआला अन्हो से है कि, इससे तुम्हारी मगफिरत हो जाएगी.’ और दैलमी की दूसरी रिवायत में हज़रत अनस रदीयल्लाहो अन्हो से है कि; जो फज्र को रोशन करके पढ़ेगा, अल्लाह तआला. उसकी कब्र और दिल को मुनव्वर करेगा और उसकी नमाज़ कुबूल करेगा.’

हदीस

‘तिबरानी ने मो’जमे-औसत में हज़रत अबू हुरैरा रदीयल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत की है कि हुजूरे-अकदस सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि; ‘मेरी उम्मत हमेंशा फिरत या’नी दीने-हक़ पर रहेगी जब तक फज्र को उजाले में पढ़ेगी.’

मसला

मर्दो के लिये नमाजे फज्र ‘अस्फार’ में ऐसे वक्त पढ़ना मुस्तहब है कि चालीस (४०) से साठ (६०)आयतें तरतील(ठहेर-ठहेर कर-Reciting Slowly) से पढ़ सके और सलाम फैरने के बाद इतना वक्त बाकी रहे कि अगर नमाज़ में फसाद (भंग होना) वाकेअ हो, तो तहारत कर के तरतील के साथ चालीस से साठ आयतों तक दोबारा पढ़ सके.’

(दुर्रे मुख़्तार, फतावा रज़वीया, जिल्द न. २, सफहा नं. ३६५)

मसला

‘औरत के लिये हमेशा फज्रकी नमाज़ ‘गलस’ या’नी अव्वल वक्त में पढ़ना मुस्तहब है. बाकी सब नमाजों में बेहतर है कि मर्दो की जमाअत का इन्तिज़ार करें. जब जमाअत पूरी हो जाए तब पढ़ें.’
(दुर्रे मुख़्तार, फतावा रज़वीया, जिल्द नं. २, सफहा नं. ३६६)



 

मसला

‘नमाजे-फज्र में इतनी ताख़ीर करना मकरूह है कि आ अ (सूर्योदय) हो जाने का शक हो जाए.’
(आलमगीरी, बहारे-शरीअत)*

मसला

‘सब सुन्नतों में कवी तर (महत्वपूर्ण) सून्नते-फज्र है. यहां तक कि बा’ज़ (चंद) अइम्म-ए-दीन ने इसको वाजिब कहा है. फज्र की सुन्नतों की मशरूइयत का दानिस्ता इन्कार करनेवाले की तकफीर की जाएगी. (काफिर कहा जाएगा). लिहाज़ा येह सुन्नतें बिला उज्र बैठकर नहीं हो सकतीं. इलावा अज़ी येह सुन्नतें सवारी पर या चलती गाड़ी पर नहीं हो सकतीं. इन बातों में सुन्नते-फज्र काहुक्म मिस्ल वाजिब के है. या’नी वाजिब की तरह है.’

( फतावा रज़वीया, जिल्द नं. ३, सफहा न. ४४)

मसला

‘सुन्नते-फज्र की पहली रकअत में सूर-ए-फातेहा के बाद ‘सूर-ए-काफेरून’ (कुल-या-अय्युहल-काफेरून) और दूसरी रकअत में सूर-ए-फातेहा के बाद ‘सूर-ए-इखलास’ (कुल-हो-वल्लाहो-अहद) पढ़ना सुन्नत है.’

मसला

‘फर्ज़ नमाज़ की जमाअत कायम (शुरू) हो जाने के बाद किसी भी नफ्ल और सुन्नत का शुरू करना जाइज़ नहीं, सिवाए फज्र की सुन्नत के. फज्र की सुन्नत में यहां तक हुक्म है कि अगर येह मा’लूम है या’नी यकीन (विश्वास) है कि सुन्नतें पढ़ने के बाद जमाअत मिल जाएगी, अगरचे का’दा में ही शामिल होगा, तो जमाअत से हटकर मस्जिद के किसी हिस्से में अकैला सुन्नत पढ़ ले. और फिर जमाअत में शामिल हो जाए.’

(बहारे शरीअत, फतावा रज़वीया, जिल्द नं. ३, सफहा नं. ६१४)



 

मसला

‘अगर फज्र की जमाअत कायम हो चुकी है और येह जानता है कि अगर सुन्नत पढ़ता हूं तो जमाअत जाती रहेगी, तो सुन्नत न पढ़े और जमाअत मे शरीक हो जाए. क्योंकि सुन्नत के लिये जमाअत तर्क करना नाजाइज और गुनाह है.’

(आलमगीरी, फतावा रज़वीया, जिल्द नं. ३, सफहा नं. ३७०/६१३)

मसला

‘सुन्नते-फज्र पढ़ने में अगर जमाअत फौत हो जाने का खौफ (भय) हो तो नमाज़ के सिर्फ वही अरकान अदा करे जो फर्ज़ और वाजिब हैं. सुनन और मुस्तहब्बात को तर्क कर दे. या’नी सना, तअव्वुज़, तस्मीया को तर्क करदे और रूकू और सुजूद में सिर्फ एक मतरबा तस्बीह पढ़ने पर इकतिफा (सन्तुष्टContentment ) करे.

(रद्दुल मोहतार, बहारे-शरीअत)

मसला

‘अगर फर्ज़ से पहले सुन्नते-फज्र नहीं पढ़ी है और फर्ज़ की जमाअत के बाद तुलूअ आफताब तक अगरचे वसीअ (विस्तृत) वक्त बाकी है और अब, पढ़ना चाहता है, तो जाइज़ नहीं.’

(आलमगीरी, फतावा रज़वीया, जिल्द नं. ३, सफहा नं.६२०)

मसला

‘नमाजे- -फज्र के फर्ज़ से पहले सुन्नते-फज्र शुरू करके फासिद कर दी थी, और अब फर्ज के बाद उसको पढ़ना चाहता है, येह भी जाइज़ नहीं.’

(आलमगीरी)

मसला

‘सुन्नतों को आफताब तुलूअ होने के बाद, आफताब, बुलन्द होने के बाद कज़ा करे. फर्ज़ के बाद, तुलूअ आफताब से पहले पढ़ना जाइज़ नहीं.’

(फतावा रज़वीया, जिल्द नं. ३, सफहा नं. ४६२/६१६)



 

नोट : सुन्नतों की कज़ा तुलूअ आफताब के बीस (२०) मिनट के बाद पढ़े.

मसला

‘अगर फज्र की नमाज़ कज़ा हो गई और अगर उसी दिन निस्फुन्नेहार (मध्याहन) से पहले कज़ा पढ़ता है, तो फर्ज़ के साथ-साथ सुन्नत भी कज़ा करे. सुन्नते-फज्र के इलावा अन्य किसी सुन्नत की कज़ा नहीं हो सकती.’

(रहुल मोहतार)

मसला

‘अगर फज्र की नमाज़ की कज़ा निस्फुन्नेहार के बाद (दोपहर सूरज ढलने)या , उस दिन के बाद करता है,तो अब सुन्नत की कज़ा नहीं हो सकती. सिर्फ फर्ज़ – की क़ज़ा करे.’

(फतावा रज़वीया, जिल्द नं. ३, सफहा नं. ६२०) *

मसला

‘सुन्नते-फज्र पढ़ ली और फर्ज़ पढ़ रहा था कि सूरज तुलूअ होने की वजह से फर्ज़ कज़ा हो गए, तो कज़ा पढ़ने मे सुन्नत का एआदा न करे बल्कि सिर्फ कजा करे.’

(गुन्या शरहे मुन्या, बहारे शरीअत)

मसला

‘तुलूअ फज्र (सुब्हा सादिक) से ले कर तुलूअ आफताब (सूर्योदय) के बाद आफताब (सूरज) बुलन्द होने तक कोई भी नफल नमाज़ जाइज़ नहीं.

(बहारे शरीअत)

मसला

‘तुलूअ फज्र(सुब्हे-सादिक)से तुलूअ आफताब तक कज़ा नमाज पढ़ सकता है ( Qaza Namazo Ka Bayaan ) लेकिन उस वक्त मस्जिद में कज़ा न पढ़े क्योंकि लोग नफल पढ़नेका गुमान करेंगे और अगर किसी ने टोक दिया तो बताना पड़ेगा कि नफल नहीं बल्कि कज़ा पढ़ रहा हूं और कज़ा का ज़ाहिर करना मना है लिहाज़ा उस वक़्त घर में कज़ा पढ़े.’

(फतावा रज़वीया, जिल्द नं. ३, सफहा नं. ६२४)

मसला

फज्र की नमाज़ का पूरा (समग्र) वक़्त अव्वल से आखिर तक बिला किराहत है. या’नी फज्र की नमाज़ अपने वक्त के जिस हिस्से में पढ़ी जाएगी हरगिज़ मकरूह नहीं.’

(बहरूर राइक, बहारे-शरीअत, फतावा रज़वीया, जिल्द नं. २, सफहा नं. ३५१)

मसला

‘एक शख्स को गुस्ल की हाजत है, ( Ghusl Ka Tarika ) अगर वोह गुस्ल (स्नान) करता है तो फज्र की नमाज़ कज़ा हो जाती है, तो वोह शख्स ‘तयम्मुम’ करके ( Tayammum Ka Tariqa ) नमाज़ पढ़ ले और गुस्ल करने के बाद नमाज़ का एआदा करे.’

(फतावा रज़वीया, जिल्द नं. ३, सफहा नं. ३७१)

मसला

‘तुलूअ आफताब के वक़्त कोई भी नमाज़ जाइज़ नहीं. न फर्ज, न वाजिब, न सुन्नत, न नफ्ल, न कज़ा बल्कि तुलू आफताब के वक्त सजद-ए-तिलावत और सजद-ए-सह्व भी नाजाइज़ है. लेकिन अवामुन्नास (आम जनता केलोग) से कोई शख्स तुलूअ आफ्ताब के वक़्त फज्र की नमाज़ कज़ा करता हो तो उसे नमाज़ पढ़ने से नहीं रोकना चाहिये बल्कि नमाज़ के बाद उसको मसला समझा देना चाहिये कि तुम्हारी नमाज़ न हुई, लिहाज़ा आफ्ताब बुलन्द होने के बाद या’नी तुलूअ आफताब के बीस (२०) मिनट के बाद फिर से नमाज़ पढ़ लें.’

(बहारे शरीअत, दुर्रे-मुख्तार,फ्तावा रज़वीया, जिल्द नं. ३, सफ्हा नं.७१४)

मसला

लैकिन अगर तुलूअ आफताब के वक़्त ही आयते सज्दा पढ़ी और उसी वक्त सज्द-ए-तिलावत किया तो जाइज़ है.

(आलमगीरी, जिल्द १, सफहा, ४८, बहारे शरीअत)

मसला

तुलूए-फज्र (सुब्हे सादिक) से तुलूअ आफताब तक के वक्त में ज़िक्रेइलाही के सिवा हर दुन्यवी काम मकरूह है.

(दुर्रे-मुख्तार, रद्दुल मोहतार, फतावा रज़वीया, जिल्द नं. १, सफहा नं.१९७)

मसला

‘आफताब तुलूअ होने के वक्त कुरआन शरीफ की तिलावत बेहतर नहीं, लिहाज़ा बेहतर येह है कि तुलूअ आफताब के वक़्त (२० मिनट तक) तिलावतेकुरआन के बदले ज़िक्र और दरूद शरीफ में मश्गूल रहे.’

(दुर्रे-मुख्तार)

‘तुलूअ आफताब के वक्त तिलावते-कुरआन मकरूह है.

(फतावा रज़वीया, जिल्द २, सफहा नं. ३५९) मअला

 



 

मसला

‘फज्र की नमाज़ में सलाम फैरने से पहले आफताब (सूर्य) का एक ज़रा सा किनारा तुलूअ हुवा, तो नमाज़ न होगी.’

(फतावा रज़वीया, जिल्द २, सफहा नं. ३६०)

मसला

‘सुन्नते फज्र, वाजिब और फर्ज़ नमाज़ चलती ट्रेन में नही हो सकतीं अगर ट्रेन न ठहेरे और नमाज़ का वक्त निकल जाता हो तो चलती ट्रेन पर पढ़ ले और जब ट्रेन ठहेरे (रूके) तो नमाज़ का एआदा कर ले.’

(फतावा रज़वीया, जिल्द ३, सफहा नं. ४४)

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating / 5. Vote count:

No votes so far! Be the first to rate this post.

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top