Ghusl Ki Dua

Ghusl ki Dua | ग़ुस्ल की दुआ

Ghusl ki Dua | ग़ुस्ल की दुआ

गुस्ल के 3 फ़र्ज़ ये हैं

1. ग़रारा करना  मुंह भर कर गरारा करना, इस तरह कि हलक का आखिरी हिस्सा, दाँतों की खिड़कियाँ, मसूढ़े वगैरा सब से पानी बह जाए । Ghusl ki Dua दाँतों में अगर कोई चीज़ अटकी हुई हो तो उसे निकालना ज़रूरी है। अगर वहाँ पानी न लगा तो गुस्ल न होगा। अगर रोज़ा हो तो ग़रारा न करे सिर्फ कुल्ली करे कि गलती से पानी हलक़ के नीचे चला गया तो रोज़ा टूट जाएगा।

कोई शख़्स पान, कत्था वगैरा खाता है और चूना व कत्था दाँतों की जड़ों में ऐसा जम गया कि उसका छुड़ाना बहुत ज़्यादा नुक्सान का सबब है तो मआफ है और अगर बगैर किसी के नुक्सान छुड़ा सकता है तो छुड़ाना वाजिब है बगैर उसके छुड़ाए गुस्ल न होगा।
(फतावा रिज़विया जिल्द- 2 किताबुलतहारत बाबुलगुस्ल | सफ़्हा – 18 )

2. नाक में पानी डालना नाक के आख़िरी हिस्सा तक पानी पहुंचाना फ़र्ज़ है। नाक की गंदगी को उंगली से अच्छी तरह से निकाले, पानी नाक की हड्डी तक लगना चाहिए और नाक में पानी महसूस होने लगे ।

3. तमाम बदन पर पानी बहाना तमाम बदन पर पानी बहाना कि बाल बराबर भी बदन का कोई हिस्सा सूखा न रहे, बग़ल, नाफ़ कान के सूराख वगैरा तक पानी बहना ज़रूरी है।

( बहारे शरीअत जिल्द – 1 हिस्सा – 2 सपहा – 18+ कानून शरीअत जिल्द – 1 सफ़्हा – 37 )

गुस्ल की सुन्नतें

  1. गुस्ल की नियत करना ।
  2. पहले दोनों हाथों को गट्टों तक तीन-तीन बार धोना ।
  3. चाहे नजासत हो या न हो पेशाब, पाख़ाने की जगह का धोना ।
  4. बदन पर जहाँ कहीं नजासत हो उसको दूर करना ।
  5. फिर नमाज़ की तरह वुज़ू करना मगर पांव नहीं धोना चाहिये हाँ अगर चौकी या पत्थर या तख्ते पर नहाये तो पांव भी धो ले।
  6. फिर बदन पर तेल की तरह पानी चुपड़ ले ख़ास कर जाड़े के मौसम में।
  7. फिर तीन बार दाहिने मोंढे पर पानी बहायें ।
  8. फिर बायें मोंढे पर तीन बार ।
  9. फिर सर और तमाम बदन पर तीन बार पानी बहाये ।
  10. फिर नहाने को जगह से अलग हट कर अगर पांव नहीं धोये थे तो धो लें।
  11. नहाने में किब्ला रुख न हो।
  12. तमाम बदन पर हाथ फेरे ।
  13. तमाम बदन को मले।
  14. ऐसी जगह नहाये कि उसे कोई न देखे और अगर यह न हो सके तो नाफ से घुटने तक का छिपाना ज़रूरी है अगर इतना भी न हो सके तो तयम्मुम करे मगर ऐसा कम होता है।
  15. गुस्ल में किसी तरह की बात न करे ।
  16. और न कोई दुआ पढ़े। नहाने के बाद तौलिया या रूमाल से बदन पोंछ डालें तो कोई हरज नहीं।
  17. औरतों को बैठ कर नहाना बेहतर है।

Ghusl Ki Dua

आग्तसिलु मिन गुस्लिल लिरफ़ईल ह-द-सि,

ग़ुस्ल की दुआ

नीयत करने वाले को चाहिए कि जिस क़िस्म का गुस्ल हो उस का नाम भी ले, जैसे अगर एहतलाम का ग़ुस्ल हो तो यों कहेः

अतसिलु मिन गुस्लिल एहतलामि ( स्वप्न दोष ) लिरफ़ईल ह-द-सि,

Ghusl Ki Dua After Periods

अतसिलु मिन गुस्लिल हैज़ ( MC, Periods, माहवारी )  लिरफ़ईल ह-द-सि,

Nahane Ki Dua

और अगर उर्दू में कहना चाहे तो भी ठीक है। नहाने से पहले यों कहे।

नीयत करता हूं मैं गुस्ल की तमाम नापाकियों से पाक होने के लिए

गुस्ल की ख़ास बातें

1. सर के बाल गंधे न हों तो हर बाल पर जड़ से नोंक तक पानी बहना और गुंधे हों तो मर्द पर फर्ज़ है कि उनको खोलकर जड़ से नोक तक पानी बहाये और औरत पर सिर्फ जड़ तर कर लेना ज़रूरी है खोलना ज़रूरी नहीं। हाँ अगर चोटी इतनी सख़्त गुंधी हो कि बे खोले जड़े तर न होंगी तो खोलना ज़रूरी है।
2. कानों में बाली वग़ैरह ज़ेवरों के सूराख़ का वही हुक्म है जो नाक में नथ के सुराख़ का हुक्म वुज़ू में बयान हुआ।
3. भवों और मूछों और दाढ़ी के बाल का जड़ से नोक तक और उनके नीचे की खाल का धुलना ज़रूरी है।
4. कान का हर पुर्ज़ा और उसके सूराख़ का मुँह धोना ज़रूरी है।
5. कानों के पीछे के बाल हटा कर पानी बहायें ।
6. ठोड़ी और गले का जोड़ कि बे मुँह उठाये न धुलेगा।

7. बग़लें बे हाथ उठाये न धुलेंगी।
8. बाज़ू का हर पहलू ।
9. पीठ का हर ज़रा ।
10. और पेट की बलटें उठाकर धोये ।
11. नाफ़ को उंगली डाल कर धोये जब कि पानी बहने में शक हो ।
12. जिस्म का हर रोंगटा जड़ से लेकर नोक तक ।
13. रान और पेडू का जोड़ ।
14. रान और पिंडली का जोड़ जब बैठ कर नहाये ।
15. दोनों चूतड़ के मिलने की जगह ख़ास कर जब खड़े होकर नहाये ।
16. रानों की गोलाई ।
17. पिंडलियों की करवटें धोये ।
18. ज़कर और फोतों के मिलने की जगहें बे जुदा किये न धुलेंगी । 19. फ़ोतों की निचली सतह जोड़ तक धोये ।
20. फोतों के नीचे की जगह जोड़ तक ।
21. जिसका ख़तना न हुआ हो तो अगर खाल चढ़ सकती हो तो चढ़ाकर धोये और खाल के अन्दर पानी चढ़ाये । औरतों को ख़ास कर यह इहतियात जरूरी है।
22. ढलकी हुई पिस्तान को उठाकर धोना ज़रूरी है।
23. पिस्तान और पेट के जोड़ की धारी पर पानी बहाना ।
24. औरतें अपने पेशाब के बाहर की हर जगह, हर कोनें, हर टुकड़े, नीचे ऊपर ध्यान से धोयें, अन्दर उंगली डाल कर धोना वाजिब नहीं, मुस्तहब है। ऐसे ही औरत अगर हैज़ और निफास से फारिग होकर गुस्ल करती है तो एक पुराने कपड़े से अन्दर के ख़ून का असर साफ़ कर लेना मुस्तहब है।
25. माथे पर अफ़शा लगाई हो तो उसका छुड़ाना ज़रूरी है।

गुस्ल की हदीस

हदीस न. 1 :- बुख़ारी और मुस्लिम में उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत है कि अन्सार की एक औरत ने रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से हैज़ के बाद नहाने का सवाल किया हुज़ूर ने उसको गुस्ल का तरीका बताया फिर फरमाया कि मुश्क लगा हुआ कपड़े का एक टुकड़ा लेकर उससे तहारत कर। उसने अर्ज़ किया कैसे उससे तहारत करूँ। फरमाया सुब्हान अल्लाह उससे तहारत करन उम्मुल मोमिनीन फ़रमाती हैं कि मैंने उसे अपनी तरफ खींच कर कहा कि उससे ख़ून के असर को साफ़ कर

हदीस न. 2 :- इमाम मुस्लिम ने उम्मुल मोमिनीन उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत की फरमाती हैं कि मैंने अर्ज की या रसूलल्लाह मैं अपने सर की चोटी मज़बूत गूंधती हूँ तो क्या गुस्ले जनाबत के लिये उसे खोल डालूँ। फरमाया नहीं तुझको यही किफायत करता है कि सर पर तीन लप पानी डाल ले फिर अपने ऊपर पानी बहा ले पाक हो जायेगी यानी जब कि बालों की जड़ें तर हो जायें और अगर इतनी सख़्त गंधी हों कि जड़ों तक पानी न पहुँचे तो खोलना फ़र्ज़ है।

हदीस न. 3 :- अबू दाऊद इब्ने माजा और तिर्मिज़ी अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि हर बाल के नीचे जनाबत है तो बाल धोओ और जिल्द को साफ करो ।

हदीस न. 4 :- और अबू दाऊद ने हज़रते अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि जो शख़्स गुस्ले जनाबत में एक बाल की जगह बे धोये छोड़ देगा आग से ऐसा- ऐसा किया जायेगा (यानी अज़ाब दिया जायेगा) हज़रते अली फरमाते हैं कि इसी वजह से मैंने अपने सर के साथ दुश्मनी कर ली तीन बार यही फरमाया यानी सर के बाल मुंडा डाले कि बालों की वजह से कोई जगह सूखी न रह जाये।

हदीस न. 5 :- असहाबे सुनने अरबआ ने उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत की है कि नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम गुस्ल के बाद वुज़ू नहीं फ़रमाते ।

हदीस न. 6 :- अबू दाऊद ने हज़रते याला रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक आदमी को मैदान में नहाते देखा फिर मिम्बर पर तशरीफ ले जाकर अल्लाह की हम्द और सना के बाद फरमाया कि अल्लाह तआला हया फरमाने वाला और पर्दापोश है हया और पर्दा करने को दोस्त रखता है, जब तुम में कोई नहाये तो उसे पर्दा करना लाज़िम है।

हदीस न. 7 :- बहुत सी किताबों में बहुतेरे सहाबए किराम से रिवायत है कि हुज़ूर अकदस अलैहिस्सलातु वस्सलाम फरमाते हैं कि जो अल्लाह और पिछले दिन (क़ियामत) पर ईमान लाया हम्माम में बगैर तहबन्द के न जाये और जो अल्लाह और पिछले दिन पर ईमान लाया अपनी बीवी को हम्माम में न भेजे।

हदीस न. 8 :- उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अन्हा ने हम्माम में जाने के बारे में सरकारे मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला • अलैहि वसल्लम से पूछा, फ़रमाया औरतों के लिये हम्माम में ख़ैर नहीं। अर्ज़ की तहबन्द बाँध कर जाती हैं, फ़रमाया अगचें तहबन्द कुर्ते और ओढ़नी के साथ जायें ।

हदीस न. 9 :- बुख़ारी और मुस्लिम में रिवायत है कि उम्मुल मोमिनीन उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फ़रमाती हैं कि उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु तआला अन्हा ने अर्ज़ की कि या रसूलल्लाह! अल्लाह तआला हुक बयान करने से हुया नहीं फ़रमाता तो क्या जब औरत को इहतिलाम हो तो उस पर नहाना है? फ़रमाया हाँ जबकि पानी ( मनी ) देखे। उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा ने मुँह ढाँक लिया और अर्ज़ कि या रसूलल्लाह! क्या औरत को इहतिलाम होता है? फ़रमाया हाँ, ऐसा न हो तो किस वजह से बच्चा माँ की तरह होता है।

फाइदा :- उम्महातुल मोमिनीन को अल्लाह तआला ने हुजूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमते आलिया में हाजिरी से पहले भी इहतिलाम से महफ़ूज़ रखा था इसलिये कि इहतिलाम में शैतान दख़ल देता है और शैतान की मुदाख़िलत से अज़वाजे मुतहहरात पाक हैं इसी लिये उनको हज़रते उम्मे सुलैम के इस सवाल पर तअज्जुब हुआ।

हदीस न. 10 :- अबू दाऊद और तिर्मिज़ी हज़रते आइशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल हुआ कि मर्द तरी पाये और इहतिलाम याद न हो। फ़रमाया गुस्ल करे और उस आदमी के बारे में पूछा गया कि ख़्वाब का यकीन है और तरी ( असर) नहीं पाता । फ़रमाया उस पर गुस्ल नहीं। उम्मे सुलैम ने अर्ज़ की कि औरत तरी को देखे तो उस पर गुस्ल है ? फ़रमाया हाँ औरतें मर्दों की तरह हैं।

हदीस न. 11 :- तिर्मिज़ी में उन्हीं से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जब मर्द के ख़तने की जगह (हशफा) औरत के मकाम में गायब हो जाये तो गुस्ल वाजिब हो जायेगा ।

हदीस न. 12 :- सहीह बुख़ारी और मुस्लिम में अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि हज़रते उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्ल्म से पूछा कि उनको रात में नहाने की ज़रूरत हो जाती है। फ़रमाया वुज़ू कर लो और उज्वे तनासुल ( लिंग ) को धो लो फिर सो रहो।

हदीस न. 13 :- बुख़ारी और मुस्लिम में आइशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत है कि फरमाती हैं कि नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को जब नहाने की ज़रूरत होती और खाने या सोने का इरादा करते तो नमाज़ की तरह वुज़ू करते

हदीस न. 14 :- मुस्लिम में अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि जब तुम में कोई अपनी बीवी के पास जाकर दोबारा जाना चाहे तो वुज़ू कर ले ।

हदीस न. 15 :- तिर्मिज़ी इब्ने उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि हैज़ वाली और जुनुबी औरतें कुर्यान में से कुछ न पढ़ें। हदीस न. 18 :- अबू दाऊद ने उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत की कि हुज़ूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि उन घरों का रुख़ मस्जिद से फेर दो कि मैं मस्जिद को हैज़ वाली और जुनुबी (जिनको नहाने की ज़रूरत हो) औरतों के लिये हुलाल नहीं करता ।

हदीस न. 16 :- अबू दाऊद ने हज़रते अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि मलाइका उस घर में नहीं जाते जिस घर में तस्वीर, कुत्ता और जुनुबी हों।

हदीस न. 17 :- अम्मार इब्ने यासिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि फ़रिश्ते तीन शख़्सों से करीब नहीं होते 1. काफ़िर का मुर्दा 2. खुलूक (यह एक तरह की खुशबू जाफरान से बनाई जाती है) जो मर्दों पर हराम है 3. और जुनुबी मगर यह कि वुजू कर ले ।

हदीस न. 18 :- इमामे मालिक ने रिवायत की के रसूलुल्लाह | सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जो ख़त अम्र इब्ने हज़्म को लिखा था उसमें यह था कि कुर्बान न छुये मगर पाक शख़्स ।

हदीस न. 19 :- इमाम बुख़ारी और इमामे मुस्लिम ने इब्ने उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो जुमे को आये चाहिये कि वह ग़ुस्ल कर ले।

ग़ुस्ल किन चीज़ों से फ़र्ज़ होता है ?

1 मनी का अपनी जगह से शहवत ( सम्भोग की ख़्वाहिश की हालत को शहवत में होना कहते हैं) के साथ जुदा होकर उज़्व से निकलना गुस्ल के फ़र्ज़ होने का सबब है ।

मसअला :- अगर मनी शहवत के साथ जुदा न हुई बल्कि बोझ उठाने या ऊँचाई से गिरने की वजह से निकली तो नहाना वाजिब नहीं हाँ वुज़ू जाता रहेगा ।

मसअला :- अगर मनी अपनी जगह से शहवत के साथ निकली मगर उस आदमी ने अपने आले (लिंग) को ज़ोर से पकड़ लिया कि बाहर न हो सकी फिर शहवत ख़त्म होने के बाद उसने छोड़ दिया। अब मनी बाहर हुई तो अगर्चे मनी का बाहर निकलना शहवत से न हुआ दूसरा हिस्सा मगर चूँकि अपनी जगह से शहवत के साथ निकली है लिहाजा गुस्ल वाजिब है इसी पर अमल है ।

मसअला :- अगर मनी कुछ निकली और पेशाब करने या सोने या चालीस कदम चलने से पहले नहा लिया और नमाज़ पढ़ ली अब बाकी मनी निकली तो नहाना ज़रूरी है क्योंकि यह उसी मनी का हिस्सा है जो अपनी जगह से शहवत के साथ जुदा हुई थी और पहले जो नमाज़ पढ़ी थी वह हो गई उसके लौटाने की ज़रूरत नहीं और अगर चालीस क़दम चलने या पेशाब करने या सोने के बाद गुस्ल किया फिर मनी बिला शहवत के निकली तो गुस्ल ज़रूरी नहीं और यह पहली या बकिया नहीं कही जायेगी ।
मस अला :- अगर मनी पतली पड़ गई कि पेशाब के वक़्त या वैसे ही कुछ क़तरे बिला शहवत निकल आये तो ग़ुस्ल वाजिब नहीं अलबत्ता वुज़ू टूट जायेगा

2 इहतिलाम यांनी सोते से उठा औद बदन या कपड़े पर तरी पाई और उस तरी के मनी या मज़ी होने का यकीन या इहतिमाल ( शक ) हो तो गुस्ल वाजिब है अगर्चे ख़्वाब याद न हो और अगर यकीन है कि यह न मनी है और न मज़ी बल्कि पसीना या पेशाब या वदी या कुछ और है तो अगर्चे इहतिलाम याद हो और इन्जाल ( यानी मनी के निकलना ) का मज़ा ध्यान में हो गुस्ल वाजिब नहीं और अगर मनी न होने पर यकीन करता है और मज़ी का शक है तो अगर ख़्वाब में इहतिलाम होना याद नहीं तो गुस्ल नहीं करना है।

मसअला :- अगर इहतिलाम याद है मगर उसका कोई असर कपड़े वग़ैरह पर नहीं तो गुस्ल वाजिब नहीं होगा ।

मसअला :- अगर सोने से पहले शहवत थी और ज़कर खड़ा था अब जागा और इहतिलाम का असर पाया और मज़ी होने का ज्यादा गुमान है और इहतिलाम याद नहीं तो गुस्ल वाजिब नहीं जब तक उसके मनी. होने का यकीन न हो जाये और अगर सोने से पहले शहवत ही न थी या थी मगर सोने से पहले दब चुकी थी और जो निकला उसे साफ कर चुका था तो मनी के यक़ीन की ज़रूरत नहीं बल्कि मनी के इहतिमाल ( शक ) से ही गुस्ल वाजिब हो जायेगा। यह मसअला ज्यादा वाके होता है और लोग इससे बे ख़बर हैं इसलिये इस चीज़ का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। मसअला :- बीमारी वग़ैरह से बेहोशी आई या नशे में बेहोश हुआ और होश आने के बाद कपड़े या बदन पर मज़ी मिली तो वुज़ू वाजिब दूसरा हिस्सा होगा गुस्ल नहीं और सोने के बाद ऐसा देखा तो गुस्ल वाजिब है मगर उसी शर्त पर कि सोने से पहले शहवत न थी ।

मसअला :- किसी को ख़्वाब हुआ और मनी बाहर न निकला थी कि आँख खुल गई और आले को पकड़ लिया कि मनी बाहर न हुई फिर जब तुन्दी यानी तेज़ी जाती रही छोड़ दिया अब निकली तो गुस्ल वाजिब हो गया ।

मसअला :- नमाज़ में शहवत थी और मनी उतरती मालूम हुई मगर अभी बाहर न निकली थी कि नमाज़ पूरी हो गई अब निकली तो गुस्ल वाजिब होगा मगर नमाज़ हो गई।
मसअला :- खड़े बैठे या चलते हुये सो गया जब आँख खुली तो मज़ी पाई ऐसी सूरत में गुस्ल वाजिब है।

मसअला :- रात को इहतिलाम हुआ जागा तो कोई असर न पाया वुज़ू करके नमाज़ पढ़ ली अब उसके बाद मनी निकली तो गुस्ल वाजिब हो गया लेकिन नमाज़ हो गई।

मसअला :- औरत को ख़्वाब हुआ तो जब तक मनी फ़र्ज (औरत के पेशाब की जगह ) के अन्दर से न निकले गुस्ल वाजिब नहीं ।

मसअला :- मर्द और औरत एक चारपाई पर सोये और उठने के बाद बिस्तर पर मनी पाई गई और उनमें से हर एक इहतिलाम का इन्कार करता है तो मुनासिब यही है कि दोनों गुस्ल कर लें और यही सही है । मसअला :- अगर लड़का इहतिलाम के साथ बालिग़ हुआ तो उस पर गुस्ल वाजिब है ।

3 हरफा यानी ज़कर का सर औरत के आगे या पीछे या मर्द के पीछे दाखिल हुआ तो दोनों पर गुस्ल वाजिब है चाहे शहवत के साथ हो या बग़ैर शहवत । इन्जाल हो या न हो (यानी मनी निकली हो या न निकली हो) शर्त यह है कि दोनों मुकल्लफ यानी आकिल बालिग़ हों और अगर एक बालिग़ हो तो उस बालिग़ पर फ़र्ज़ है और नाबालिग पर फ़र्ज़ नहीं फिर भी गुस्ल का हुक्म दिया जायेगा जैसे मर्द बालिग़ है और लड़की नाबालिगा तो मर्द पर गुस्ल फर्ज़ है और नाबालिगा लड़की को भी नहाने का हुक्म है और लड़का नाबालिग है और औरत बालिग़ा है तो और पर फर्ज़ है और लड़के को भी नहाने का हुक्म दिया जायेगा ।

मसअला :- अगर हश्फा काट डाला हो तो बाकी उज्व में का अगर हश्फे की मिकदार दाखिल हो गया जब भी वही हुक्म है जो हश्फा दाखिल होने का है।

मसअला :- अगर औरत पर नहाना ज़रूरी हो और उसने अभी गुस्ल नहीं किया है और इसी बीच उसे हैज़ शुरू हो गया तो चाहे अब नहा ले या हैज़ ख़त्म होने के बाद नहाये उसे इख़्तियार है ।

मसअला :- अगर किसी पर गुस्ल वाजिब हो और वह जुमा या ईद के दिन नहाया और जुमा और ईद वग़ैरा की नियत कर ली तो सब अदा हो गये और उसी गुस्ल से जुमे और ईद की नमाज़ पढ़ सकता है।

मसअला :- औरत को नहाने या वुज़ू के लिये पानी मोल लेना पड़े तो उसकी कीमत शौहर के ज़िम्मे है जबकि औरत पर गुस्ल और वुज़ू वाजिब हो या बदन से मैल दूर करने के लिये नहाये ।

मसअला :- जिस पर गुस्ल वाजिब है उसे चाहिये कि नहाने में देर न करे हदीस शरीफ़ में है कि जिस घर में जुनुबी हो उसमें रहमत के फ़रिश्ते नहीं आते और अगर इतनी देर कर चुका कि नमाज़ का आखिरी वक्त आ गया तो अब फ़ौरन नहाना फ़र्ज़ है क्यूँकि अगर देर करेगा तो गुनाहगार होगा ।

और अगर खाना खाना चाहता है या औरत से जिमा करना चाहता है तो वुज़ू कर ले या हाथ मुँह धो ले या कुल्ली कर ले और अगर वैसे ही खा पी लिया तो गुनाह नहीं मगर मकरूह है और मुहताजी लाता है और बे नहाये या बे वुज़ू किये जिमा कर लिया तो भी गुनाह नहीं मगर जिसको इहतिलाम हुआ हो बे नहाये उसे औरत के पास न जाना चाहिये ।

मसअला :- कोई रमज़ान में अगर रात को जुनुब हुआ तो अच्छा यही है कि फज्र तुलू होने से पहले नहा ले ताकि रोज़े का हर हिस्सा जनाबत से ख़ाली हो और अगर नहीं नहाया तो भी रोज़ा तो हो ही जायेगा मगर अच्छा यह है कि ग़रारा कर ले और नाक में जड़ तक पानी चढ़ा ले। यह दोनों काम फज्र से पहले कर ले कि रोज़े में न हो सकेंगे और अगर नहाने में इतनी देर की कि दिन निकल आया और नमाज़ क़ज़ा कर दी तो यह और दिनों में भी गुनाह है और रमज़ान में तो और ज़्यादा ।

मसअला :- जिसको नहाने की ज़रूरत हो उसको मस्जिद में जाना, तवाफ़ करना, कुआन शरीफ छूना, अगर्चे उसका सादा हाशिया या जिल्द या चोली छुये, या बे छुये देख कर, या ज़बानी पढ़ना, या किसी आयत का लिखना या आयत का तावीज़ लिखना या ऐसा तावीज़ छूना या ऐसी अंगूठी पहनना जिसमें हुरूफ़े मुक़त्तयात हों, हराम है।

मस अला :- अगर कुआन शरीफ़ जुज़दान में हो तो जुज़दान पर हाथ लगाने में हरज नहीं ऐसे ही रुमाल वग़ैरा किसी ऐसे कपड़े से पहनना जो न अपना ताबे हो न कुआन मजीद का तो जाइज़ है कि कुर्ते की आस्तीन, दुपट्टे के आँचल से यहाँ तक कि चादर का एक कोना उसके मोंढे पर है तो दूसरे कोने से छूना हराम है क्योंकि यह सब उसके ताबे हैं और जैसे चोली कुआन शरीफ़ के ताबे है तो उसका छूना भी हराम है।

मसअला :- अगर कुआन की आयत दुआ की नियत से या तबर्रुक के लिए पढ़े जैसे :- बिस्मिल्लाह ए रहमान ए रहीम

तर्जमा : अल्लाह के नाम से शुरू जो निहायत मेहरबान रहमत वाला ।

या अल्लाह तआला का शुक्र अदा करने या छींक आने के बाद अल्हम्दुलिल्लाह रब्बिल आलमीन पढ़े।

तर्जमा :- सब खूबियाँ अल्लाह को जो मालिक सारे जहान वालों का ।

या परेशानी की ख़बर पर यह आयत पढ़े इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलैही राजिऊन

तर्जमा : हम अल्लाह के लिए हैं और हमको उसी की तरफ़ फिरना है।

या अल्लाह की तारीफ़ की नियत से पूरी सूरए फ़ातिहा या आयतल कुर्सी या सूरए हश्र की पिछली तीन आयतें पढ़ें।

और सब सूरतों में कुआन शरीफ़ पढ़ने की नियत न हो तो कुछ हरज नहीं । ऐसे ही तीनों कुल बग़ैर कुल के लफ़्ज़ के सना या तारीफ़ की नियत से पढ़ सकता है और कुल का लफ़्ज़ शामिल करके नहीं पढ़ सकता है अगर्चे सना ही की नियत से हो क्यूँकि इस सूरत में उनका कुआन होना तय है इसमें नियत को कुछ दख़ल नहीं ।

मसअला :- बे वुज़ू को कुआन मजीद या उसकी किसी आयत का छूना हराम है बिना छुये जुबानी देख कर पढ़े तो कोई हरज नहीं ।

मसअला :- रुपये पर आयत लिखी हो तो उन सबको यानी बे वुज़ू वालों जिन पर नहाना ज़रूरी है और हैज़ और निफास वालियों को उसका छूना हराम है। हाँ अगर थैली में हों तो थैली उठाना जायज़ है । ऐसे ही जिस बर्तन या गिलास पर सूरत या आयत लिखी हो उसका छूना भी उनको हराम है और उसका इस्तेमाल सब को मकरूह मगर जबकि ख़ास शिफा की नियत हो ।

मसअला :- कुआन शरीफ़ का फारसी, उर्दू, हिन्दी या और किसी जुबान में तर्जमा हो तो उसके छूने और पढ़ने में भी वही हुक्म है जो कुआन शरीफ़ का है।

मसअला :- क़ुआन शरीफ़ देखने में उन सब पर कुछ हरज नहीं अगरचे हुरूफ़ पर नज़र पड़े और अल्फाज़ सूझ में आयें और ख़्याल में पढ़े जायें।

Conclusion

दोस्तों ये रही Ghusl ki Dua जिसको अच्छी तरह से करने पर पाक और साफ़ साथ इसे सुन्नत के मुताबिक करने से बहुत ज्यादा सवाब मिलता है।

इस पोस्ट में गुस्ल की दुआ बताई गई है जो हदीसो से साबित है इसमें कही भी किसी किस्म की गलती हो या कुछ और जानकारी चाहिए तो निचे कमेंट जरुर करे।

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