NAMAZ KI NIYAT

Namaz Ki Niyat

Namaz Ki Niyat

नमाज़ पढ़ने के लिए नियत सबसे अव्वल चीज है जो मुकम्मल होनी चाहिए। नमाज़ में सबसे पहले Namaz Ki Niyat की जाती है उसके बाद सना पढ़ी जाती है फिर सुर : फातिहा पढ़ी जाती है उस के बाद कोई और सूरत पढ़ी जाती है जैसे के सूरे इखलास, सूरे फ़लक, सूरे नास या क़ुरआन शरीफ की कोई और सूरत भी पढ़ी जा सकती है जो आप को याद हो क़ुरआन शरीफ में कुल 114 सूरत है  और फिर रुकू में चले जाते हैं।

नियत बहुत ही आसान है क्योंकि यह सभी नमाज़ में same होती है कुछ जयादा अंतर नहीं होता है। आप गौर से इस पोस्ट को धयान से पढ़े अगर अल्लाह ने चाहा तो आप जल्द ही नियत करना सीखा जायेंगे।हर कोई सर्च करता है की नमाज़ की नियत कैसे करें पर उन्हें कोई सही साइट नहीं मिल पाती और वो मायूस हो जाते हैं। मगर हम आपकी हर मुमकिन सहायता करेंगे। हर इस्लाम के बन्दे पर नमाज़ पढ़ना फ़र्ज़ है और नमाज़ को जितना सही पढ़ा जाए उतना ही बेहतर है।

मुसलमानों को तमाम इबादतों की तरह NAMAZ KI NIYAT करना फर्ज़ है। अगर आप NAMAZ KI NIYAT किए बग़ैर नमाज़ पढ़ लेंगे, तो नमाज़ न होगी और उस नमाज़ को दोहराना भी आपके लिए लाज़िमी होगा। मक़्सद यह है। कि आपके ज़ेहन में यह बात साफ हो कि आप किस वक़्त की कौन-सी, कितनी रकूअतोंवाली और किसके लिए नमाज़ पढ़ रहे हैं, जैसे, पाँचों वक़्त के फर्ज़ NAMAZ KI NIYAT आपके ज़ेहन और ध्यान में हो, जुबान से अदा करना ज़रूरी नहीं है-

पांचो टाइम NAMAZ KI NIYAT-

  1. फ़र्ज़ की नमाज़ की नियत– मैं नीयत करता हूँ दो रक्अत नमाज़ फ़र्ज़ फज़्र की  वास्ते अल्लाह के, रुख़ मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़ अल्लाहु अकबर।
  2. जुहर की नमाज़ की नियत – मै नीयत करता हूँ चार रकअंत नमाज़ फ़र्ज़ जुहूर, वास्ते अल्लाह के, रुख़ मेरा कारबा शरीफ की तरफ अल्लाहु अकबर।
  3. असर की नमाज़ की नियत– मैं नीयत करता हूँ चार रक्अत नमाज़ फर्ज़ असर । वास्ते अल्लाह के, रुख़ मेरा काबा शरीफ की  तरफ अल्लाहु अकबर।
  4. मग़रिब की नमाज़ की नियत– मैं नीयत करता हूँ तीन रकअत नमाज़ फर्ज़ मग़रिब, वास्ते अल्लाह के, रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ अल्लाहु अकबर।
  5. इशा की नमाज़ की नियत– मैं नीयत करता हूँ च्रार रकात नमाज़ फर्ज़ इशा, वास्ते अल्लाह के, रुख़ मेरा काबा. शरीफ की तरफ अल्लाहु अकबर।

फ़र्ज़ NAMAZ KI NIYAT-

मैं नीयत करता हूँ 2 या 4 रक्अत नमाज़ फ़र्ज़, वक्त फजर, जुहर, असर, मगरिब या इशा, वास्ते अल्लाह के, रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ।

वाजिब NAMAZ KI NIYAT-

मैं नीयत करता हूँ, तीन रक्अत नमाज़ वित्र वाजिब, वास्ते अल्लाह के, रुख मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़।

दिन-रात में सिर्फ तीन रक्अत वित्र वाजिब हैं, जो इशा के बाद पढ़े जाते हैं। अगर आप जमाअत से नमाज़ पढ़ रहे हैं तो आपके ज़ेहन में यह भी होना चाहिए कि मैं इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ रहा हूँ।

सुन्नत NAMAZ KI NIYAT-

अब हम सुन्नत नमाज़ की नियत पर गौर करेंगे इसमें कुछ अलग नहीं है बस फ़र्ज़ की जगह सुन्नत का नाम लेना है।

मैं नीयत करता हूँ 2 या 4 रक्अत नमाज़ सुन्नत, वक्त फजर, जुहर, असर, मगरिब या इशा, वास्ते अल्लाह के, रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ।

नफ़्ल NAMAZ KI NIYAT–

सुन्नत नमाज़ ही की तरह नफ़्ल नमाज की नीयत भी की जाती है, सिर्फ नमाज़ सुन्नत के बजाय नमाज़ नफ्लकहा जाता है।
जैसे – मैं नीयत करता हूँ दो रकात नमाज़ नफ़्ल इशा, वास्ते अल्लाह के, रुख़ मेरा काबा. शरीफ की तरफ।

Qaza Namaz

यहाँ पर उन लोगों के लिए जिनकी तमाम उम्र में कई बरस की नमाजें कज़ा हुई और अब अल्लाह तआला ने तौफीक दी कि अदा करें तो उनके लिए कज़ाए उम्री और उसका आसान तरीका हम आलाहज़रत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत मौलाना शाह इमाम अहमद रजा खाँ रदियल्लाहु तआला अन्हु के हवाले से लिख रहे हैं। हुजूर आलाहज़रत फ़रमाते हैं कि अजकार व अशगाल में मशगुली से पहले अगर कज़ा नमाजें या रोज़े हों उनका अदा कर लेना जिस कद्र जल्द मुमकिन हो निहायत जरूरी है जिस पर फर्ज़ बाकी हों उसके नफ़्ल व आमाले मुसतहब्बा काम नहीं देते बल्कि कबूल नहीं होते जब तक फ़राइज़ अदा न कर ले।

कज़ा नमाज़ें जल्दी से जल्दी अदा करना लाज़िम हैं मालूम नहीं कि किस वक्त मौत आ जाये, क्या मुश्किल है एक दिन की बीस रक अतें होती हैं यानी फ़र्ज़ के फ़र्ज़़ों की दो रकआत और जोहर की चार रकआत और अस्र की चार और मगरिब की तीन और इशा की सात यानी चार फर्ज़ तीन वित्र । इन नमाज़ों को सिवा तुलू व गुरूब व जवाल (कि इस वक़्त सजदा हराम है) हर वक़्त अदा कर सकता है और इख़्तियार है कि पहले फ़र्ज़ की सब नमाजें अदा कर ले फिर जोहर फिर अम्र फिर मग़रिब फिर इशा की या सब नमाजें साथ अदा करता जाये और उनका ऐसा हिसाब लगाये कि तख्मीना (हिसाब) में बाकी न रह जायें ज्यादा हो जायें तो हरज नहीं और वह सब बकद्रे ताकत रफ़्ता-रफ़्ता जल्दी-जल्दी अदा कर ले काहिली न करे कि जब तक फर्ज़ ज़िम्मे बाकी रहता है कोई नफ़्ल कबूल नहीं किया जाता।

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Qaza Namaz Ki Niyat

नियत इन तमाम नमाज़ों की इस तरह हो मसलन सौ बार की फ़र्ज़ कजा है तो हर बार यूँ कहे कि सब से पहले जो फ़र्ज़ मुझ से कज़ा हुई, हर दफा यही कहे यानी जब एक अदा हुई तो बाकियों में जो सब से पहले है। इसी तरह जोहर वग़ैरा हर नमाज़ में नियत करे जिस पर बहुत सी नमाजें कजा हों।

Jumma Ki Namaz

जो तीन जुमे सुस्ती की वजह से छोड़े अल्लाह तआला उसके दिल पर मुहर कर देगा इसको अबू दाऊद व तिर्मिजी व नसई व इब्ने माजा व दारमी व इब्ने खुज़ैमा व इब्ने हब्बान व हाकिम अबू जअद जमरी से और इमाम मालिक ने सफ़वान इब्ने सुलैम से और इमाम अहमद ने अबू कृतादा रदियल्लाहु तआला अन्हुम से रिवायत किया। तिर्मिज़ी ने कहा यह हदीस हसन है और हाकिम ने कहा सही है। मुस्लिम शरीफ की शराइत के मुताबिक और इब्ने खुज़ैमा व इब्ने हब्बान की एक रिवायत में है जो तीन जुमे बिला उज छोड़े वह मुनाफिक है और रजीन की रिवायत में है वह अल्लाह से बेइलाका है और तबरानी की रिवायत उसामा रदियल्लाहु तआला अन्हु से है वह मुनाफिकीन में लिख दिया गया और इमाम शाफिई रदियल्लाहु तआला अन्हु की रिवायत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से है वह मुनाफिक लिख दिया गया उस किताब में जो न महव हो (न मिटे) न बदली जाए और एक रिवायत में है जो तीन जुमे पै-दर-पै छोड़े उसने इस्लाम को पीठ के पीछे फेंक दिया इसको अबू याला ने इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से बइस्नादे सही रिवायत किया।

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Jumma Ki Namaz Ki Niyat

नियत की मैंने 2 रकात फ़र्ज़ नमाज ए जुम्मा वास्ते अल्लाह तआला के रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ अल्लाहु अकबर।

Tahajjud Ki Namaz

Tahajjud Ki Namaz: सुन्नत मुअक्कदा अलल किफ़ाया है। इस में दो रकअत से बारह रकअत तक पढ़ना नकल किया जाता है। अफज़ल वक़्त रात का तिहाई हिस्सा है, लेकिन मौजूदा दीनी कमज़ोरीयों की वजह से जो लोग उस वक्त जागने या पढ़ने से मजबूर हैं, वे वित्र के बाद ऊपर बतायी रकअतें यानी दो से लेकर 12 तक जितनी चाहें तहज्जुद की नीयत से पढ़ लिया करें। यह नमाज तहज्जुद के कायम मकाम है। मुसलमानें को चाहिए कि ख़ास कर रमज़ान शरीफ में जब सेहरी के लिए उठें हिम्मत कर के नमाज तहज्जुद पढ़ लिया करें।

Tahajjud Ki Namaz Ki Niyat

नीयत करता हूँ 2 रक्अत या 4 रक्अत रक्अत नमाज़ तहज्जुद की वास्ते अल्लाह के, रुख़ मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़ अल्लाहु अकबर।

Tahajjud Ki Namaz Ka Time

अफज़ल वक़्त रात का तिहाई हिस्सा है हो सके तो ईशा की नमाज के बाद आप फारिग होकर एक नींद ले ले और उसके बाद जब आपकी आंख खुले तब आप तहज्जुद की नमाज अदा करें या तो फिर आप यह नहीं कर सकते तो ईशा की नमाज़ के बाद आप इसे अदा कर सकते हैं।

Tahajjud Ki Namaz Ki Rakat

तहज्जुद की नमाज 2 रकात से लेकर 12 रकात तक आप पढ़ सकते हैं जितनी आपकी कूवत है उतनी आप अदा करें तहज्जुद की नमाज़ की बेशुमार फजीलत हदीस शरीफ में आई है हर मुसलमान भाई को चाहिए कि वह तहज्जुद की नमाज की आदत डालें।

Janaze Ki Namaz Ki Niyat

नमाज़े जनाजा फर्जे किफाया है कि एक ने भी पढ़ ली तो सब ज़िम्मेदारी से बरी हो गये वरना जिस-जिस को ख़बर पहुंची थी और न पढ़ी गुनहगार हुए।
इसके लिए जमाअत शर्त नहीं एक शख्स भी पढ़ ले फर्ज अदा हो गया।
नमाज़े जनाज़ा वाजिब होने के लिए वही शराइत हैं जो और नमाजों के लिये हैं यानी 1. कादिर 2. बालिग 3. आकिल मुसलमान होना। एक बात इसमें ज्यादा है यानी उस को मौत की ख़बर होना

Janaze Ki Namaz Ki Niyat: नीयत करता हूं मैं नमाज़ जनाजा की मय 4 तक्बीरों के वास्ते अल्लाह के, दुआ इस मययत ( मर्द या औरत ) के लिए रुख़ मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़ अल्लाहु अक्बर

Eid Ki Namaz Ki Niyat

पहले नमाज़ की नीयत दिल में करे, फिर जुबान से इस तरह कहे. नीयत की में ने दो रकअत नमाज़ ईदुल फित्र वाजिब ज़ाइद 6 तक्बीरों के वास्ते अल्लाह तआला के पीछे इस इमाम के रुख़ मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़ अल्लाहु अकबर।

कह कर कानों तक हाथ ले जा कर नीयत बांध ले और सना पढ़ कर फिर तक्बीर कह कर हाथ छोड़ दे. फिर तीसरी बार अल्लाहु अक्बार कह कर हाथ कानों तक ले जा कर बांध ले, फिर चुप होकर इमाम की किरात सुने और इमाम बाद किरात, रुकूअ, कियाम, और सज्दे वगैरह से फारिग हो कर फिर दूसरी रकअत की किरात शुरु करे। मुक्तदी चुपके से सुना करें। जब इमाम दूसरी रकअत की किरात कर चुकेगा तब तीन तक्बीरें इस तरह अदा करेगा, जिस को मुक्तदी भी अदा करे। तकबीरों में हाथ कानों तक उठा कर छोड़ दे। चौथी बार बगैर हाथ उठाए तक्बी कहे और रुकूअ में चला जाए। इमाम के साथ सज्दे अदा कर के नमाज़ पूरी करे और इमाम के साथ सलाम फेरे और खामोशी के साथ खुतबा सुनले ।

Note: ईदुल अज्जा और ईदुल फित्र की नीयत और तक्बीरे एक ही है। ईदुल फित्र के मौके पर ईदुल फित्र कहे और ईदुल अज़्हा के मौके पर ईदुल अज्जा कहे।

NAMAZ KI NIYAT–के मसअला

मसअला :- नियत दिल के पक्के इरादे को कहते हैं महज़ (सिर्फ) जानना नियत नहीं जब तक कि इरादा न हो। (तनवीरुल अबसार)

मसअला :- नियत में ज़बान का एतिबार नहीं यानी अगर दिल में मसलन जोहर का इरादा किया और ज़बान से लफ्ज़े अस्र निकला जोहर की नमाज़ हो गई। (दुर्रे मुख्तार, रद्दल मुहतार)

मसअला :- नियत का अदना (सबसे कम) दर्जा यह है कि अगर उस वक्त कोई पूछे कौन सी नमाज़ पढ़ता है तो फौरन बिला देर किए बता दे अगर हालत ऐसी है कि सोचकर बतायेगा तो नमाज़ न होगी। (दुर्रे मुख्तार)

मसअला :- ज़बान से कह लेना मुस्तहब है और इसमें कुछ अरबी की तख़सीस नहीं फारसी वग़ैरा में भी हो सकती है और तलफ्फुज में माजी का सीगा हो (यानी भूत काल (Past tense) में हो) मसलन नवैत या नियत की मैंने। (दुर्रे मुख्तार)

मसअला :- बेहतर यह है कि अल्लाहु अकबर कहते वक्त नियत हाजिर हो ।(मुनिया)

मसअला :- तकबीर से पहले नियत की और शुरू नमाज और नियत के दरमियान कोई अम्रे अजनबी (नमाज़ के खिलाफ कोई काम) मसलन खाना पीना कलाम वग़ैरा वह काम जो नमाज से गैर मुतअल्लिक हैं फासिल न हों नमाज़ हो जायगी अगर्चे तहरीमा के वक्त नियत हाज़िर न हो। (दुर्रे मुख्तार)

मसअला :- वुजू से पहले नियत की तो वुजू करना फासिले अजनबी नहीं नमाज हो जायेगी यानी ऐसा करने से नमाज में फ़र्क न आएगा, यूँही वजू के बाद नियत की उसके बाद नमाज के लिये चलना पाया गया नमाज़ हो जायेगी और यह चलना फासिले अजनबी नहीं। (गुनिया)

मुझे उम्मीद हैं की हमारे द्वारा दी गयी जानकारी ”NAMAZ KI NIYAT KA TARIKA IN HINDI” आपके लिए बेहतर साबित होगी। किसी प्रकार की सहायता के लिए कमेंट करें

Namaz Ka Tarika

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