Namaz Me Kitne Farz Hai

Namaz Me Kitne Farz Hai

Namaz Me Kitne Farz Hai

नमाज हर मुसलमान मर्द और औरत पर दिन में 5 बार फर्ज है लेकिन बहुत सारे लोग यह नहीं जानते कि Namaz Me Kitne Farz Hai जो नहीं जानते हैं उन्हें हम बता दे के नमाज में सात चीजें फ़र्ज़ है जिसका अदा हो ना बहुत ही जरूरी है अगर इसमें से एक भी फ़र्ज़ हमसे छूट जाता है तो हमारी नमाज नहीं होती है आजकल देखा गया बहुत सारे लोग मसले और मसाईल से कोसों दूर है बहुत सारे लोग अपना सबसे ज्यादा वक्त इंटरनेट पर बिताते है इसीलिए हमने सोचा कि क्यों ना मुकम्मल तरीके से नमाज के फराइज़े यहां पे लिखे जाए जिसे हमने नीचे मुकम्मल तरीके से लिखने की कोशिश की है

आसान जबान में नमाज़ के सात फ़र्ज़

  1. तकबीरे तहरीमा
  2. कियाम
  3. किरात
  4. रुकू
  5. सजदा
  6. कादए अखीरा
  7. सलाम फेरना या खुरूज बेसुनएही

Namaz Ke saato Farzo ka matalab kya hai

फराइज़े नमाज़: सात चीजें नमाज़ में फ़र्ज़ हैं 1. तकबीरे तहरीमा ( नमाज़ शुरू करने के लिए जो तकबीर कहते हैं उसे तकबीरे तहरीमा कहते हैं) 2. कियाम ( नमाज़ में खड़े होने की हालत को क़ियाम कहते हैं) 3. किरात 4. रुकू 5. सजदा 6. कादए अखीरा ( नमाज़ में बैठने की हालत को क़ादा कहते हैं। यह दो होते हैं एक कादए ऊला दूसरा कादए अख़ीरा जिस कादे के बाद सलाम फेरना हो उसे कादए अख़ीरा और जिसके बाद सलाम नहीं फेरना हो उसे कादए ऊला कहते हैं) 7. सलाम फेरना या खुरूज बेसुनएही (यानी अपने इरादे से नमाज़ ख़त्म करना)

Namaz Rakat

  1. नमाज़े फ़ज्र : 2 सुन्नतें, 2 फ़र्ज़ । (नमाज़े फज़्र कुल 4 रकअतें है )
  2. नमाज़े ज़ोहर : 4 सुन्नतें 4 फ़र्ज़ 2 सुन्नतें 2 नफ़्ल । (नमाज़े ज़ोहर कुल 12 रकअतें है )
  3. नमाज़े अस्र : 4 सुन्नतें 4 फ़र्ज़ । (नमाजे अस्र कुल 8 रकअतें है )
  4. नमाज़े मगरिब : 3 फ़र्ज़ 2 सुन्नतें 2 नफ़्ल । (नमाजे मगरिब कुल 7 रकअतें है )
  5. नमाज़े इशा : 4 सुन्नतें 4 फ़र्ज़ 2 सुन्नतें 2 नफ़्ल 3 वित्र वाजिब 2 नफ़्ल। (नमाज़े इशा कुल 17 रकअतें है )

Namaz Ka Farz 1: Takbeere Tehrima

1. तकबीरे तहरीमा :- हक़ीक़तन यह शराइते नमाज़ से है मगर चूँकि अफ़आले नमाज़ से इसको बहुत ज़्यादा नज़दीकी हासिल है (यानी तकबीरे तहरीमा नमाज़ से बहुत क़रीब और बिल्कुल मिली हुई है) इस वजह से फ़राइज़े नमाज़ में इसका शुमार हुआ ।

मसअला :- नमाज़ के शराइत यानी तहारत व इस्तिकबाल व सत्रे औरत व वक़्त तकबीरे तहरीमा के लिये शराइत हैं यानी तकबीर कहने से पहले इन सब शराइत का पाया जाना ज़रूरी है अगर अल्लाहु अकबर कह चुका और कोई शर्त मफ़कूद ( कम ) है नमाज़ न होगी । (यानी कोई शर्त न पाई गई या छूट गई तो नमाज़ न होगी) (दुर्रे मुख़्तार, रद्दल मुहतार)

मसअला :- जिन नमाज़ों में कियाम फ़र्ज़ है उनमें तकबीरे तहरीमा के लिये कियाम फ़र्ज़ है तो अगर बैठकर अल्लाहु अकबर कहा फिर खड़ा हो गया नमाज़ शुरू ही न हुई । (दुर्रे मुख्तार, आलमगीरी)

मसअला :- इमाम को रुकू में पाया और तकबीरे तहरीमा कहता हुआ रुकू में गया यानी तकबीर उस वक़्त ख़त्म की कि हाथ बढ़ाये तो घुटने तक पहुँच जायें नमाज़ न हुई ( आलमगीरी, रद्दल मुहतार) नफ़्ल के लिये तकबीरे तहरीमा रुकू में कही नमाज़ न हुई और बैठकर कहता तो हो जाती। (रहुल मुहतार)

मसअला :- मुक्तदी ने लफ़्ज़े अल्लाह इमाम के साथ कहा मगर अकबर को इमाम से पहले ख़त्म कर चुका नमाज़ न हुई । (दुर्रे मुख़्तार )

मसअला :- इमाम को रुकू में पाया और अल्लाहु अकबर खड़े होकर कहा मगर उस तकबीर से तकबीरे रुकू की नियत की नमाज़ शुरू हो गई और यह नियत बेकार है । (दुर्रे मुख़्तार )

मसअला :- इमाम से पहले तकबीरे तहरीमा कही अगर इकतिदा की नियत है नमाज़ में न आया वर्ना शुरू हो गई मगर इमाम की नमाज़ में शिर्कत न हुई बल्कि अपनी अलग। (आलमगीरी)

मसअला :- इमाम की तकबीर का हाल मालूम नहीं कि कब कही तो अगर ग़ालिब गुमान है कि इमाम से पहले कही, न हुई और अगर ग़ालिब गुमान है कि इमाम से पहले न कही तो हो गई और अगर किसी तरफ. ग़ालिब गुमान न हो तो एहतियात यह है कि नियत तोड़ दे और फिर से तकबीरे तहरीमा कह कर नियत बांधे। (दुर्रेमुख़्तार, रहुलमुहतार)

मसअला :- जो शख़्स तकबीरे तलफ्फुज़ पर कादिर न हो मसलन गूंगा हो या किसी और वजह से जुबान बंद हो उस पर तलफ्फुज़ वाजिब नहीं दिल में इरादा काफी है । (दुर्रे मुख़्तार )

मसअला :- अगर तअज्जुब के तौर पर अल्लाहु अकबर कहा या मोअज़्ज़िन के जवाब में कहा और इसी तकबीर से नमाज़ शुरू कर दी नमाज़ न हुई । (दुर्रे मुख्तार)

मसअला :- अल्लाहु अकबर की जगह कोई और लफ़्ज़ जो ख़ालिस ताज़ीमे इलाही के अल्फाज़ हों मसलन :- ‘अल्लाहु अजल्ल’ या ‘अल्लाहु अअज़म’ या ‘अल्लाहु कबीरुन’ या ‘अल्लाहुल अकबर’ या ‘अल्लाहुल कबीर’ या ‘अर्रहमानु अकबर’ या ‘अल्लाहु इलाहुन’ या ‘ला इला-ह इल्लल्लाह’ या ‘सुब्हानल्लाह’ या ‘अलहम्दुलिल्लाह’ या ‘ला इला – ह ग़ैरुह’ या ‘तबारकल्लाह’ वग़ैरा अल्फाज़े ताज़ीमी कहे तो इन से भी इब्तिदा हो जायेगी मगर यह तब्दील मकरूहे तहरीमी है और अगर दुआ या तलबे हाजत के लफ़्ज़ हों मसलन :- ‘अल्लाहुम्मग़फ़िरली’ या ‘अल्लाहुम्मरहूमनी’ या ‘अल्लाहुम्मर्जुकनी’ वग़ैरा अलफ़ाज़े दुआ कहे तो नमाज़ शुरू न हुई। यूँही अगर सिर्फ ‘अकबर’ या ‘अजल’ कहा इस के साथ लफ़्ज़ ‘अल्लाह’ न मिलाया जब भी न हुई। यूँही अगर ‘अस्तग़फिरुल्लाह ‘ या ‘अऊज़ुबिल्लाह’ या ‘इन्नालिल्लाह’ या ‘लाहौ-ल वलाकुव्व-त इल्ला बिल्लाह’ या ‘माशा अल्लाहु का न’ या बिस्मिल्लाह ए रहमान ए रहीम कहा तो नमाज़ शुरू न हुई और अगर सिर्फ ‘अल्लाह’ कहा या ‘या अल्लाह’ या ‘अल्लाहुम-म’ कहा हो जायेगी । (आलमगीरी, दुर्रे मुख़्तार, रहुल मुहतार)

मसअला :- लफ्ज़े अल्लाह को आल्लाहु या अकबर को आकबर या अकबार कहा नमाज़ न होगी बल्कि अगर उनके ग़लत मअना समझ कर कसदन कहे तो काफ़िर है । (दुर्रे मुख़्तार )

मसअला :- पहली रकअत का रुकू मिल गया तो तकबीरे ऊला की फ़ज़ीलत पा गया । (आलमगीरी)

Namaz Ki Sharte
Namaz Ki Sharte

यह भी पढ़े: नमाज़ की शर्ते कितने हैं?

Namaz Ka Farz 2: Kiyaam

2. कियाम :- कमी की जानिब इसकी हद यह है कि हाथ फैलाये तो घुटनों तक न पहुँचें और पूरा कियाम यह है कि सीधा खड़ा हो । दुर्रे मुख़्तार, रद्दल मुहतार )

मसअला :- क़ियाम उतनी देर तक है जितनी देर किरात है यानी जितनी किरात फ़र्ज़ है उतनी देर कियाम फ़र्ज़ है और जितनी किरात वाजिब है उतनी देर कियाम वाजिब है और जितनी किरात सुन्नत है उतनी देर कियाम सुन्नत है। (दुर्रे मुख़्तार ) यह हुक्म पहली रकअत के सिवा और रकअतों का है पहली रकअत में कियामे फर्ज़ में मिकदारे तकबीरे तहरीमा भी शामिल होगी और कियामे मसनून यानी जितनी देर खड़ा होना सुन्नत है उस में सना और अऊज़ुबिल्लाह और बिस्मिल्लाह की मिकदार भी सुन्नत है । (रजा)

मसअला :- कियाम व किरात का वाजिब व सुन्नत होने का यह मअना है कि उस के तर्क पर तर्फे वाजिब व सुन्नत का हुक्म दिया जायेगा वर्ना बजा लाने में जितनी देर तक कियाम किया और जो कुछ किरात की सब फ़र्ज़ ही है फ़र्ज़ का सवाब मिलेगा (दुर्रे मुख़्तार, रद्दल मुहतार)

मसअला :- फ़र्ज़ व वित्र व ईदैन व सुन्नते फज्र में कियाम फ़र्ज़ है कि बिला सही उज़्र के बैठकर यह नमाजें पढ़ेगा न होंगी ।(दुर्रे मुख्तार, रद्दल मुहतार )

मसअला :- एक पांव पर खड़ा होना यानी दूसरे को ज़मीन से उठा लेना मकरूहे तहरीमी है और अगर उज़्र की वजह से ऐसा किया तो हरज नहीं । (आलमगीरी)

मसअला :- अगर क़ियाम पर कादिर है मगर सजदा नहीं कर सकता तो उसे बेहतर यह है कि बैठकर इशारे से पढ़े और खड़े होकर भी पढ़ सकता है। (दुर्रे मुख्तार)

मसअला :- जो शख़्स सजदा कर तो सकता है मगर सजदा करने से ज़ख़्म बहता है जब भी उसे बैठकर इशारे से पढ़ना मुस्तहब है और खड़े होकर इशारे से पढ़ना भी जाइज़ है। (दुर्रे मुख्तार)

मसअला :- जिस शख़्स को खड़े होने से क़तरा आता है या ज़ख़्म बहता है और बैठने से नहीं तो उसे फ़र्ज़ है कि बैठकर पढ़े अगर और तौर पर उस की रोक न कर सके। यूंही खड़ा होने से चौथाई सतर खुल जायेगा या किरात बिल्कुल न कर सकेगा तो बैठकर पढ़े और अगर खड़े होकर कुछ भी पढ़ सकता है तो फ़र्ज़ है कि जितनी पर क़ादिर हो खड़े होकर पढ़े बाकी बैठकर । (दुर्रेमुख़्तार रहुलमुहतार )

मसअला :- अगर इतना कमज़ोर है कि मस्जिद में जमाअत के लिये जाने के बाद खड़े होकर न पढ़ सकेगा और घर में पढ़े तो खड़ा होकर पढ़ सकता है तो घर में पढ़े जमाअत मुयस्सर हो तो जमाअत से वर्ना तन्हा। (दुर्रे मुख्तार, रद्दल मुहतार)

मसअला :- खड़े होने से महज़ कुछ तकलीफ़ होना उज़्र नहीं बल्कि कियाम उस वक़्त साकित होगा ( यानी माफ होगा) कि खड़ा न हो सके या सजदा न कर सके या खड़े होने या सजदा करने में ज़ख़्म बहता है या खड़े होने में कतरा आता है या चौथाई सत्र खुलता है या किरात से मजबूरे महज़ हो जाता है। यूंही खड़ा हो सकता है मगर उससे मरज़ में ज़्यादती होती या देर में अच्छा होगा या नाकाबिले बर्दाश्त तकलीफ़ होगी तो बैठ कर पढ़े।(गुनिया)

मसअला :- अगर लाठी या ख़ादिम या दीवार पर टेक लगाकर खड़ा हो सकता है तो फ़र्ज़ है कि खड़ा होकर पढ़े। (गुनिया) मसअला अगर कुछ देर भी खड़ा हो सकता है अगर्चे इतना ही :- कि खड़ा होकर अल्लाहु अकबर कह ले तो फ़र्ज़ है कि खड़ा होकर इतना कह ले फिर बैठ जाये। (गुनिया)

तम्बीहे ज़रूरी :- आजकल उमूमन यह बात देखी जाती है कि जहाँ ज़रा बुखार आया या ख़फ़ीफ़ सी तकलीफ हुई बैठकर नमाज़ शुरू कर दी हालांकि वही लोग उसी हालत में दस-दस पन्द्रह – पन्द्रह मिनट बल्कि ज़्यादा खड़े होकर इधर उधर की बातें कर लिया करते हैं। उनको चाहिये कि इन मसाइल से आगाह हों और जितनी नमाजें बावुजूद कुदरते कियाम बैठकर पढ़ीं हों उनका लौटाना फ़र्ज़ है। यूँही अगर वैसे खड़ा न हो सकता था मगर लाठी या दीवार या आदमी के सहारे से खड़ा होना मुमकिन था तो वह नमाजें भी न हुईं उन का फेरना फ़र्ज़। अल्लाह तआला तौफ़ीक़ अता फरमाये।

मसअला :- कश्ती पर सवार है और वह चल रही है तो बैठकर उस पर नमाज़ पढ़ सकता है (गुनिया) यानी जबकि चक्कर आने का गुमान ग़ालिब हो और किनारे पर उतर न सकता हो ।

Namaz Ka Farz 3: Qirat

3. किरात :- किरात इसका नाम है कि तमाम हुरूफ़ मख़ारिज से अदा किये जायें कि हर हर्फ़ गौर से सही तौर पर मुमताज़ हो जाये (मतलब यह कि हर हर्फ़ को उनके सही मख़ारिज से पढ़े) और आहिस्ता पढ़ने में भी इतना होना ज़रूर है कि खुद सुने अगर हुरूफ़ को सही तो किया मगर इस कद्र आहिस्ता कि खुद न सुना और कोई बात ऐसी भी नहीं जो सुनने में रुकावट होती मसलन शोर गुल तो नमाज़ न होगी । (आलमगीरी)

मसअला :- यूँही जिस जगह कुछ पढ़ना या कहना मुकर्रर किया गया है उससे यही मकसद है कि कम से कम इतना हो कि खुद सुन सके मसलन तलाक़ देने, आज़ाद करने, जानवर जबह करने में। (आलमगीरी)

मसअला :- मुतलकुन एक आयत पढ़ना फ़र्ज़ की दो रकअतों में और वित्र व नवाफ़िल की हर रकअत में इमाम व मुनफरिद पर फर्ज है और मुक़तदी को किसी नमाज़ में किरात जाइज़ नहीं । न फ़ातिहा न आयत न आहिस्ता की नमाज़ में न जहर की नमाज़ में इमाम की किरात मुक्तदी के लिये भी काफी है। (आम्मए कुतुब )

मसअला :- फ़र्ज़ की किसी रकअत में किरात न की या फ़क़त एक में की, नमाज़ फ़ासिद हो गई । (आलमगीरी)

मसअला :- सूरतों के शुरू में बिस्मिल्लाह ए रहमान ए रहीम ۞ एक पूरी आयत है मगर सिर्फ इस के पढ़ने से फ़र्ज़ अदा न होगा। (दुर्रे मुख्तार)

मसअला :- किराते शाज़्ज़ह यानी मशहूर किरात के अलावा किरात से फ़र्ज़ अदा न होगा। यूँही बजाय किरात आयत की हिज्जे की नमाज़ न होगी । (दुर्रे मुख्तार)

Namaz Ka Farz 4: Ruku

4. रुकू :- इतना झुकना कि हाथ बढ़ाये तो घुटने को पहुँच जाये यह रुकू का अदना दर्जा है (दुर्रे मुख़्तार वग़ैरा) और पूरा यह कि पीठ सीधी बिछा दे ।

Ruku Ki Dua

सुबहान रब्बी अल अज़ीम (कम से कम 3 बार पढ़े)

Ruku Se Uthne Ki Dua

समीअल्लाहु लिमन हमीदा (खड़े होते टाइम 1 बार पढ़े)

Ruku Se Uthne Ke Baad Ki Dua

रब्बना व लकल हम्द (खड़े होने के बाद 1 बार पढ़े)

मसअला :- कुबड़ा शख़्स कि उस का कुब हद्दे रुकू को पहुँच गया हो, रुकू के लिये सर से इशारा करे । (आलमगीरी)

Namaz Ka Farz 5: Sajda

5. सुजूद :- हदीस में है सब से ज़्यादा कुर्ब बन्दे को ख़ुदा से उस हालत में है कि सजदा में हो। लिहाजा दुआ ज़्यादा करो। इस हदीस को मुस्लिम ने अबू हुरैरह रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत किया। पेशानी का ज़मीन पर जमना सजदे की हक़ीक़त है और पाँव की एक उंगली का पेट लगना शर्त तो अगर किसी ने इस तरह सजदा किया कि दोनों पाँव ज़मीन से उठे रहे नमाज़ न हुई बल्कि अगर सिर्फ उंगली की नोक ज़मीन से लगी जब भी न हुई इस मसअले से बहुत लोग ग़ाफ़िल हैं।(दुर्रे मुख्तार, फतावए रजविया)

Sajde Ki Dua

सुबहान रब्बी अल आला (कम से कम 3 बार पढ़े)

मसअला :- अगर किसी उज़्र के सबब पेशानी ज़मीन पर नहीं लगा : सकता तो सिर्फ नाक से सजदा करे फिर भी फ़क्त नाक की नोक लगना काफी नहीं बल्कि नाक की हड्डी ज़मीन पर लगना ज़रूरी है।(आलमगीरी, रद्दल मुहतार)

मसअला :- रुख़सार (गाल ) या ठोड़ी ज़मीन पर लगाने से सजदा न होगा ख़्वाह उज़्र के सबब हो या बिना उज्र अगर उज़्र हो तो इशारे का हुक्म है। (आलमगीरी)

मसअला :- हर रकअत में दो बार सजदा फ़र्ज़ है ।

मसअला :- किसी नर्म चीज़ मसलन घास, रूई, कालीन वग़ैरह पर सजदा किया तो अगर पेशानी जम गई यानी इतनी दबी कि अब दबाने से न दबे तो जाइज़ है वर्ना नहीं (आलमगीरी) बाज़ जगह जाड़ों में मस्जिद में कालीन बिछाते हैं उन लोगों को सजदा करने में इसका लिहाज़ बहुत ज़रूरी है कि अगर पेशानी ख़ूब न दबी तो नमाज़ न हुई और नाक हड्डी तक न दबी तो मकरूहे तहरीमी वाजिबुल इआदा हुई । कमानी दार गद्दे जैसे आजकल स्पंचदार गद्दे पर सजदे में पेशानी खूब नहीं दबती। लिहाज़ा नमाज़ न होगी। रेल के बाज़ दर्जो में बाज़ गाड़ियों में इस किस्म के गद्दे होते हैं, उस गद्दे से उतर कर नमाज़ पढ़नी चाहिये ।

मसअला :- दोपहिया गाड़ी यक्का वग़ैरा पर सजदा किया तो अगर उसका जुवा या बम बैल और घोड़े पर है सजदा न हुआ और ज़मीन पर रखा है तो हो गया (आलमगीरी) बहली खटोला अगर बानों से बुना हुआ हो और इतना सख़्त बुना हो कि सर ठहर जाये दबाने से अब न दबे तो नमाज़ हो जाएगी वर्ना न होगी ।

मसअला :- ज्वार बाजरा वग़ैरा छोटे दानों जिन पर पेशानी न जमे सजदा न होगा अलबत्ता अगर बोरी वग़ैरा में ख़ूब कस कर भर दिये गये कि पेशानी जमने में रुकावट न हो तो हो जायेगा । (आलमगीरी)

मसअला :- अगर किसी उज़्र मसलन भीड़ की वजह से अपनी रान पर सजदा किया जाइज़ है और बिला उज़्र बातिल और घुटने पर उज़्र व बिला उज़्र किसी हालत में नहीं हो सकता। (दुर्रेमुख़्तार, आलमगीरी)

मसअला :- भीड़-भाड़ की वजह से दूसरे की पीठ पर सजदा किया और वह नमाज़ में इस का शरीक है तो जाइज़ है वर्ना नाजाइज़ ख़्वाह वह नमाज़ ही में न हो या नमाज़ में तो है मगर इसका शरीक न हो यानी दोनों अपनी अपनी पढ़ते हों । ( आलमगीरी वग़ैरह)

मसअला :- हथेली या आस्तीन या इमामा के पेच या किसी और कपड़े पर जिसे पहने है सजदा किया और नीचे की जगह नापाक है तो सजदा न हुआ। हाँ इन सब सूरतों में जबकि फिर पाक जगह पर सजदा कर लिया तो हो गया । (दुर्रे मुख्तार)

मसअला :- इमामे के पेच पर सजदा किया अगर माथा ख़ूब जम गया सजदा हो गया और माथा न जमा बल्कि फ़क्त छू गया कि दबाने से दबेगा या सर का कोई हिस्सा लगा तो न हुआ । (दुर्रे मुख़्तार )

मसअला :- ऐसी जगह सजदा किया कि क़दम की बनिसबत बारह उंगल से ज़्यादा ऊँचा है सजदा न हुआ वर्ना हो गया । (दुर्रे मुख़्तार )

मसअला :- किसी छोटे पत्थर पर सजदा किया अगर ज़्यादा हिस्सा पेशानी का लग गया हो गया वर्ना नहीं । (आलमगीरी)

Namaz Ka Farz 6: Kaade Akheera

6. कादए अखीरा :- नमाज़ की रकअतें पूरी करने के बाद इतनी देर तक बैठना कि पूरी अत्तहीय्यात यानी रसूलुह’ तक पढ़ ली जाये फर्ज़ है।

मसअला :- चार रकअत पढ़ने के बाद बैठा फिर यह गुमान करके कि तीन ही हुईं खड़ा हो गया फिर याद करके कि चार रकअतें हो चुकीं बैठ गया फिर सलाम फेर दिया अगर दोनों बार का बैठना मजमूअतन यानी दोनों को मिलाकर अत्तहीय्यात के मिकदार हो गया तो फ़र्ज़ अदा हो गया वर्ना नहीं । (दुर्रे मुख़्तार )

मसअला :- पूरा कादए अखीरा सोते में गुज़र गया जागने के बाद अत्तहीय्यात के मिकदार बैठना फ़र्ज़ है वर्ना नमाज़ न होगी। यूँही कियाम किरात रुकूं सुजूद में अव्वल से आखिर तक सोता ही रहा तो जागने के बाद उनका लौटाना फ़र्ज़ है वर्ना नमाज़ न होगी और सजदए सहव भी करे लोग इस से ग़ाफ़िल हैं, खुसूसन तरावीह में खुसूसन गर्मियों में । ( रद्दल मुहतार)

मसअला :- पूरी रकअत सोते में पढ़ ली तो नमाज़ फ़ासिद हो गई। (दुर्रे मुख्तार)

मसअला :- चार रकअत वाले फ़र्ज़ में चौथी रकअत के बाद कादा न किया तो जब तक पाँचवीं का सजदा न किया हो बैठ जाये और पाँचवीं का सजदा कर लिया या फज्र में दूसरी पर नहीं बैठा और तीसरी का सजदा कर लिया या मग़रिब में तीसरी पर न बैठा और चौथी का सजदा कर लिया तो इन सब सूरतों में फ़र्ज़ बातिल हो गये मग़रिब के सिवा और नमाज़ों में एक रकअत और मिला ले। (गुनिया)

मसअला :- अत्तहीय्यात के मिकदार बैठने के बाद याद आया कि सजदए तिलावत या नमाज़ का कोई सजदा करना है और कर लिया तो फ़र्ज़ है कि सजदे के बाद फिर अत्तहीय्यात के मिकदार बैठे वह पहला क़ादा जाता रहा, कादा न करेगा तो नमाज़ न होगी । (गुनिया )

मसअला :- सजदए सहव करने से पहला क़ादा बातिल न हुआ मगर अत्तहीय्यात वाजिब है यानी अगर सजदए सहव करके सलाम फेर दिया तो फ़र्ज़ अदा हो गया मगर गुनहगार हुआ लौटाना वाजिब है। ( रद्दल मुहतार)

Namaz Ka Farz 7: Khurooz Besunahee

7. खुरूज बेसुन्एही (यानी अपने इरादे से नमाज़ ख़त्म करना) :- यानी कादए अखीरा के बाद सलाम कलाम वग़ैरह कोई ऐसा फेल जिससे नमाज़ जाती रहे बकस्द यानी जानबूझ कर करना मगर सलाम के अलावा कोई दूसरा मुनाफ़ी कसदन पाया गया तो नमाज़ वाजिबुल इआदा हुई और बिला कस्द कोई मुनाफ़ी पाया गया तो नमाज़ बातिल मसलन अत्तहीय्यात के मिकदार बैठने के बाद तयम्मुम वाला पानी पर क़ादिर हुआ या मोज़े पर मसह किये हुये था और मुद्दत पूरी हो गई या अमले कलील के साथ मोज़ा उतार दिया या बिल्कुल बे पढ़ा था और कोई आयत बे किसी के पढ़ाये महज़ सुनने से याद हो गई या नंगा था अब पाक कपड़ा बकद्रे सत्र किसी ने लाकर दे दिया जिस से नमाज़ हो सके यानी नमाज़ न होने के मिकदार उस में नजासत न हो या हो तो उस के पास कोई चीज़ ऐसी है जिस से पाक कर सके या यह भी नहीं मगर उस कपड़े की चौथाई या ज़्यादा पाक है या इशारे से पढ़ रहा है अब रुकू व सुजूद पर कादिर हो गया या साहिबे तरतीब को याद आया कि इस से पहले की नमाज़ नहीं पढ़ी है अगर वह साहिबे तरतीब इमाम है तो मुक्तदी की भी गई या इमाम को हदस हुआ और उम्मी को ख़लीफ़ा किया और अत्तहीय्यात के बाद ख़लीफ़ा किया तो नमाज़ हो गई या नमाज़े फज्र में आफ़ताब तुलू कर आया या नमाज़े जुमा में अस्र का वक़्त आ गया या ईदैन में निस्फ़ुन्नहारे शरई हो गया या पट्टी पर मसह किये हुये था और ज़ख़्म अच्छा होकर वह गिर गई या साहिबे उज़्र था अब उज़्र जाता रहा यानी इस वक़्त से हदस मौकूफ़ हुआ यहाँ तक कि इस के बाद का दूसरा वक़्त पूरा खाली रहा या नजिस कपड़े में नमाज़ पढ़ रहा था और उसे कोई चीज़ मिल गई जिस से तहारत हो सकती है या क़ज़ा पढ़ रहा था और वक्ते मकरूह आ गया या बांदी सर खोले नमाज़ पढ़ रही थी और आज़ाद हो गई और फ़ौरन सर न ढाँका इन सब सूरतों में नमाज़ बातिल हो गई। (आम्मए कुतुब )

मसअला :- मुक्तदी उम्मी था और इमाम कारी और नमाज़ में उसे कोई आयत याद हो गई तो नमाज़ बातिल न होगी । (दुर्रे मुख्तार)

मसअला :- क़ियाम व रुकू व सुजूद व कादए अखीरा में तरतीब फ़र्ज़ है अगर क़ियाम से पहले रुकू कर लिया फिर क़ियाम किया तो वह रुकू जाता रहा अगर कियाम के बाद फिर रुकू करेगा नमाज़ हो जायेगी वर्ना नहीं, यूँही रुकू से पहले सजदा करने के बाद अगर रुकू किया फिर सजदा कर लिया हो जायेगी वर्ना नहीं । ( रद्दल मुहतार)

मसअला :- जो चीजें फ़र्ज़ हैं उन में इमाम की इत्तिबा मुक्तदी पर फर्ज़ है यानी उन में का कोई फेल इमाम से पेशतर अदा कर चुका और इमाम के साथ या इमाम के अदा करने के बाद अदा न किया तो नमाज़ न होगी मसलन इमाम से पहले रुकू या सजदा कर लिया और इमाम रुकू या सजदा में अभी आया भी न था कि उसने सर उठा लिया तो अगर इमाम के साथ या बाद को अदा कर लिया, हो गई वरना नहीं । (दुर्रे मुख्तार)

Namaz Me Kitne Farz Hai

इस तरह, नमाज में कुल सात फर्ज होते हैं जो एक मुसलमान को पूरी नमाज में पूरा करने होते हैं। ये फर्ज नमाज के रुकन होते हैं और मुसलमान की इबादत को पूरा करने में मदद करते हैं।

यह भी पढ़े: नमाज़ में वाजिब कितने हैं?

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