48-Surah-Fatah

48-Surah-Fatah

48 सूरए फ़त्ह – 48 Surah-Fatah

सूरए फ़त्ह मदनी सूरत है इसमें चार रूकू, उन्तीस आयतें, पाँच सौ अड़सठ

48 सूरए फ़त्ह – पहला रूकू

48 सूरए फ़त्ह – पहला रूकू

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
إِنَّا فَتَحْنَا لَكَ فَتْحًا مُّبِينًا
لِّيَغْفِرَ لَكَ اللَّهُ مَا تَقَدَّمَ مِن ذَنبِكَ وَمَا تَأَخَّرَ وَيُتِمَّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكَ وَيَهْدِيَكَ صِرَاطًا مُّسْتَقِيمًا
وَيَنصُرَكَ اللَّهُ نَصْرًا عَزِيزًا
هُوَ الَّذِي أَنزَلَ السَّكِينَةَ فِي قُلُوبِ الْمُؤْمِنِينَ لِيَزْدَادُوا إِيمَانًا مَّعَ إِيمَانِهِمْ ۗ وَلِلَّهِ جُنُودُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا
لِّيُدْخِلَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَيُكَفِّرَ عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ ۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عِندَ اللَّهِ فَوْزًا عَظِيمًا
وَيُعَذِّبَ الْمُنَافِقِينَ وَالْمُنَافِقَاتِ وَالْمُشْرِكِينَ وَالْمُشْرِكَاتِ الظَّانِّينَ بِاللَّهِ ظَنَّ السَّوْءِ ۚ عَلَيْهِمْ دَائِرَةُ السَّوْءِ ۖ وَغَضِبَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ وَلَعَنَهُمْ وَأَعَدَّ لَهُمْ جَهَنَّمَ ۖ وَسَاءَتْ مَصِيرًا
وَلِلَّهِ جُنُودُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا
إِنَّا أَرْسَلْنَاكَ شَاهِدًا وَمُبَشِّرًا وَنَذِيرًا
لِّتُؤْمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَتُعَزِّرُوهُ وَتُوَقِّرُوهُ وَتُسَبِّحُوهُ بُكْرَةً وَأَصِيلًا
إِنَّ الَّذِينَ يُبَايِعُونَكَ إِنَّمَا يُبَايِعُونَ اللَّهَ يَدُ اللَّهِ فَوْقَ أَيْدِيهِمْ ۚ فَمَن نَّكَثَ فَإِنَّمَا يَنكُثُ عَلَىٰ نَفْسِهِ ۖ وَمَنْ أَوْفَىٰ بِمَا عَاهَدَ عَلَيْهُ اللَّهَ فَسَيُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا

सूरए फ़त्ह मदीने में उतरी, इसमें 29 आयतें, चार रूकू हैं.

-पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए फ़त्ह मदनी सूरत है इसमें चार रूकू, उन्तीस आयतें, पाँच सौ अड़सठ कलिमे और दो हज़ार पाँच सौ उन्सठ अक्षर है.

बेशक हमने तुम्हारे लिये रौशन फ़त्ह फ़रमा दी(2){1}
(2) इन्ना फतहना हुदैबिय्यह से वापस होते हुए हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर नाज़िल हुई. हुज़ूर को इसके नाज़िल होने से बहुत ख़ुशी हुई और सहाबा ने हुज़ूर को मुबारक बादे दीं. (बुख़ारी, मुस्लिम, तिरमिज़ी) हुदैबिय्यह एक कुंआ है मक्कए मुकर्रमा के नज़्दीक. संक्षिप्त विवरण यह है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने ख़्वाब देखा कि हुज़ूर अपने सहाबा के हमराह अम्न के साथ मक्कए मुकर्रमा में दाख़िल हुए. कोई सर मुँडाए, कोई बाल छोटे कराए हुए, काबए मुअज़्ज़मा मे दाख़िल हुए और काबे की कुंजी ली. तवाफ़ फ़रमाया, उमरा किया. सहाबा को इस ख़्वाब की ख़बर दी. सब ख़ुश हुए. फिर हुज़ूर ने उमरे का इरादा किया और एक हज़ार चार सौ सहाबा के साथ पहली ज़िलक़अदा सन छ हिजरी को रवाना हुए. ज़ुल हलीफ़ा में पहुंचकर वहाँ मस्जिद में दो रकअतें पढ़कर उमरे का एहराम बाँधा और हुज़ूर के साथ अक्सर सहाबा ने भी. कुछ सहाबा ने जोहफ़ा से एहराम बाँधा . राह में पानी ख़त्म हो गया. सहाबा ने अर्ज़ किया कि पानी लश्कर में बिल्कुल नहीं है सिवाय हुज़ूर के आफ़ताबे यानी लोटे के कि उसमे थोड़ा पानी बाक़ी है. हुज़ूर ने अफ़ताबे में दस्ते मुबारक डाला तो नूरानी उंगलियों से चश्मे फूट निकले. तमाम लश्कर ने पिया, वुज़ू किया. जब उस्फ़ान मक़ाम पर पहुंचे तो ख़बर आई कि कुफ़्फ़ारे क़ुरैश बड़ी तैयारी से जंग के लिये उतावले हैं. जब हुदैबिय्यह पहुंचे तो उसका पानी ख़त्म हो गया. एक बूंद न रहा. गर्मी बहुत सख़्त थी. हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने कुंएं में कुल्ली फ़रमाई. उसकी बरकत से कुंआ पानी से भर गया, सब ने पिया, ऊंटों को पिलाया. यहाँ कुफ़्फ़ारे क़ुरैश की तरफ़ से हाल मालूम करने के लिये कई व्यक्ति भेजे गए. सबने जाकर यही बयान किया कि हुज़ूर उमरे के लिये आए हैं. जंग का इरादा नहीं है. लेकिन उन्हें यक़ीन न आया आख़िरकार उन्होंने अर्वा बिन मसऊद सक़फ़ी को जो ताइफ़ के बड़े सरदार और अरब के बहुत मालदार आदमी थे, हालात की जांच के लिये भेजा. उन्होंने आकर देखा कि हुज़ूर दस्ते मुबारक धोते हैं तो सहाबा तबर्रूक के लिये वह धोवन हासिल करने को टूट पड़ते हैं. अगर हुज़ूर कभी थूकते हैं तो लोग उसे हासिल करने की कोशिश करते हैं और जिसको वह मिल जाता है वह अपने चेहरे और बदन पर बरकत के लिये मलता है. कोई बाल हुज़ूर का गिरने नहीं पाता. सहाबा उसको बहुत अदब के साथ लेते और जान से ज़्यादा अज़ीज़ रखते हैं. जब हुज़ूर कलाम फ़रमाते हैं तो सब साकित हो जाते हैं. हुज़ूर के अदब और सम्मान के कारण कोई व्यक्ति नज़र ऊपर को नहीं उठाता. अर्वा ने क़ुरैश से जाकर यह सारा हाल बयान किया और कहा कि मैं फ़ारस, रोम और मिस्र के दरबारों में गया हूँ मैं ने किसी बादशाह की यह महानता नहीं देखी जो मुहम्मद की उन सहाबा में है. मुझे डर है कि तुम उनके मुक़ाबले में सफल न हो सकोगे. क़ुरैश ने कहा ऐसी बात मत कहो. हम इस साल उन्हें वापस कर देंगे. वो अगले साल आएं. अर्वा ने कहा मुझे डर है कि तुम्हें कोई मुसीबत पहुंचे. यह कहकर वह अपने साथियों समेत ताइफ़ चले गए और इस घटना के बाद अल्लाह तआला ने उन्हें इस्लाम से नवाज़ा. यहीं हुज़ूर ने अपने सहाबा से बैअत ली, इसको बैअते रिज़वान कहते हैं. बैअत की ख़बर से काफ़िर बहुत भयभीत हुए और उनके सलाहकारों ने यही मुनासिब समझा कि सुलह कर लें. चुनांन्चे सुलहनामा लिखा गया और अगले साल हुज़ूर का तशरीफ़ लाना क़रार पाया और यह सुलह मुसलमानों के हित में बड़ी लाभदायक साबित हुई बल्कि नतीजों के अनुसार विजयी सिद्ध हुई. इसी लिये अक्सर मुफ़स्सिरीन फ़त्ह से सुलह हुदैबिय्यह मुराद लेते हैं और कुछ इस्लाम की सारी फ़ूतूहात, जो आगे आने वाली थीं और भूतकाल की क्रिया से उनका ज़िक्र उनके निश्चित होने की वजह से है. (ख़ाज़िन और रूहुल बयान)

ताकि अल्लाह तुम्हारे कारण से गुनाह बख़्शे तुम्हारे अगलों के और तुम्हारे पिछलों के (3)
(3) और तुम्हारी बदौलत उम्मत की मग़फ़िरत फ़रमाए.(ख़ाज़िन और रूहुल बयान)

और अपनी नेअमतें तुम पर पूरी कर दे (4)
(4) दुनियावी भी और आख़िरत का भी.

और तुम्हें सीधी राह दिखा दे (5){2}
(5) रिसालत की तबलीग़ और रियासत के कामों की मज़बूती में (बैज़ावी)

और अल्लाह तुम्हारी ज़बरदस्त मदद फ़रमाए(6){3}
(6) दुश्मनों पर भरपूर ग़लबा अता करे.

वही है जिसने ईमान वालों के दिलों में इत्मीनान उतारा ताकि उन्हें यक़ीन पर यक़ीन बढ़े(7)
(7) और भरपूर अक़ीदे के बावुजूद नफ़्स का इत्मीनान हासिल हो.

और अल्लाह ही की मिल्क (स्वामित्व में) हैं तमाम लश्कर आसमानों और ज़मीन के(8)
(8) वह क़ादिर है जिससे चाहे अपने रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की मदद फ़रमाए. आसमान ज़मीन के लश्करों से या तो आसमान और ज़मीन के फ़रिश्ते मुराद है या आसमानों के फ़रिश्ते और ज़मीन के जानदार.
और अल्लाह इल्म व हिकमत (बोध) वाला है(9){4}
(9) उसने ईमान वालों के दिलों को तसल्ली और विजय का वादा फ़रमाया.

ताकि ईमान वाले मर्दों और ईमान वाली औरतों को बाग़ों में ले जाए जिनके नीचे नेहरें बहे हमेशा उनमें रहें और उनकी बुराइयाँ उनसे उतार दे, और यह अल्लाह के यहाँ बड़ी कामयाबी है{5} और अज़ाब दे मुनाफ़िक़ (दोग़ले) मर्दों और मुनाफ़िक़ औरतों और मुश्रिक मर्दों और मुश्रिक औरतों को जो अल्लाह पर गुमान रखते हैं(10)
(10) कि वह अपने रसूल सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और उनपर ईमान लाने वालों की मदद न फ़रमाएगा.

उन्हीं पर है बड़ी गर्दिश (मुसीबत) (11)
(11) अज़ाब और हलाकत का.

और अल्लाह ने उन पर ग़ज़ब फ़रमाया और उन्हें लअनत की और उनके लिये जहन्नम तैयार फ़रमाया, और वह क्या ही बुरा अंजाम {6} और अल्लाह ही की मिल्क में आसमानों और ज़मीन के सब लश्कर, और अल्लाह इज़्ज़त व हिकमत (बोध) वाला है {7} बेशक हमने तुम्हें भेजा हाज़िर व नाज़िर (सर्व द्ष्टा) (12)
(12) अपनी उम्मत के कर्मों और हालात का. ताकि क़यामत के दिन उनकी गवाही दो.

और ख़ुशी और डर सुनाता (13){8}
(13) यानी सच्चे ईमान वालों को जन्नत की ख़ुशी और नाफ़रमानों को दोज़ख़ के अज़ाब का डर सुनाता.

ताकि ऐ लोगों तुम अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और रसूल की तअज़ीम व तौक़ीर (आदर व सत्कार) करो, और सुबह शाम अल्लाह की पाकी (प्रशंसा) बोलो(14) {9}
(14) सुब्ह की तस्बीह में नमाज़े फ़ज्र और शाम की तस्बीह में बाक़ी चारों नमाज़ें दाख़िल हैं.

वो जो तुम्हारी बैअत करते (अपना हाथ तुम्हारे हाथ में देते) हैं(15)
(15) इस बैअत से मुराद बैअते रिज़वान है जो नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हुदैबिय्यह में ली थी.

वो तो अल्लाह ही से बैअत करते हैं(16)
(16) क्योंकि रसूल से बैअत करना अल्लाह तआला ही से बैअत करना है जैसे कि रसूल की इताअत अल्लाह तआला की इताअत है.

उनके हाथों पर(17)
(17) जिनसे उन्होंने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की बैअत का सम्मान प्राप्त किया.

अल्लाह का हाथ है, तो जिसने एहद तोड़ा उसने अपने बड़े एहद को तोड़ा, (18)
(18) इस एहद तोड़ने का वबाल उसी पर पड़ेगा.

और जिसने पूरा किया वह एहद जो उसने अल्लाह से किया था तो बहुत जल्द अल्लाह उसे बड़ा सवाब देगा (19) {10}
(19) यानी हुदैबिय्यह से तुम्हारी वापसी के वक़्त.

48 सूरए फ़त्ह – दूसरा रूकू

48 सूरए फ़त्ह – दूसरा रूकू

سَيَقُولُ لَكَ الْمُخَلَّفُونَ مِنَ الْأَعْرَابِ شَغَلَتْنَا أَمْوَالُنَا وَأَهْلُونَا فَاسْتَغْفِرْ لَنَا ۚ يَقُولُونَ بِأَلْسِنَتِهِم مَّا لَيْسَ فِي قُلُوبِهِمْ ۚ قُلْ فَمَن يَمْلِكُ لَكُم مِّنَ اللَّهِ شَيْئًا إِنْ أَرَادَ بِكُمْ ضَرًّا أَوْ أَرَادَ بِكُمْ نَفْعًا ۚ بَلْ كَانَ اللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا
بَلْ ظَنَنتُمْ أَن لَّن يَنقَلِبَ الرَّسُولُ وَالْمُؤْمِنُونَ إِلَىٰ أَهْلِيهِمْ أَبَدًا وَزُيِّنَ ذَٰلِكَ فِي قُلُوبِكُمْ وَظَنَنتُمْ ظَنَّ السَّوْءِ وَكُنتُمْ قَوْمًا بُورًا
وَمَن لَّمْ يُؤْمِن بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ فَإِنَّا أَعْتَدْنَا لِلْكَافِرِينَ سَعِيرًا
وَلِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ يَغْفِرُ لِمَن يَشَاءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَاءُ ۚ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا
سَيَقُولُ الْمُخَلَّفُونَ إِذَا انطَلَقْتُمْ إِلَىٰ مَغَانِمَ لِتَأْخُذُوهَا ذَرُونَا نَتَّبِعْكُمْ ۖ يُرِيدُونَ أَن يُبَدِّلُوا كَلَامَ اللَّهِ ۚ قُل لَّن تَتَّبِعُونَا كَذَٰلِكُمْ قَالَ اللَّهُ مِن قَبْلُ ۖ فَسَيَقُولُونَ بَلْ تَحْسُدُونَنَا ۚ بَلْ كَانُوا لَا يَفْقَهُونَ إِلَّا قَلِيلًا
قُل لِّلْمُخَلَّفِينَ مِنَ الْأَعْرَابِ سَتُدْعَوْنَ إِلَىٰ قَوْمٍ أُولِي بَأْسٍ شَدِيدٍ تُقَاتِلُونَهُمْ أَوْ يُسْلِمُونَ ۖ فَإِن تُطِيعُوا يُؤْتِكُمُ اللَّهُ أَجْرًا حَسَنًا ۖ وَإِن تَتَوَلَّوْا كَمَا تَوَلَّيْتُم مِّن قَبْلُ يُعَذِّبْكُمْ عَذَابًا أَلِيمًا
لَّيْسَ عَلَى الْأَعْمَىٰ حَرَجٌ وَلَا عَلَى الْأَعْرَجِ حَرَجٌ وَلَا عَلَى الْمَرِيضِ حَرَجٌ ۗ وَمَن يُطِعِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ يُدْخِلْهُ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۖ وَمَن يَتَوَلَّ يُعَذِّبْهُ عَذَابًا أَلِيمًا

अब तुम से कहेंगे जो गंवार पीछे रह गए थे(1)
(1) क़बीलए ग़िफ़ार और मुज़ैय्यिनह व जुहैनह व अशजअ व असलम के, जब कि रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हुदैबिय्यह के साल उमरा की नियत से मक्कए मुकर्रमा का इरादा फ़रमाया तो मदीने के आस पास के गाँवों वाले और सहराओ में रहने वाले क़ुरैश के डर से आपके साथ जाने से रूके जबकि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उमरे का एराम बाँधा था और कर्बानी के जानवर साथ थे और इससे साफ़ ज़ाहिर था कि जंग का इरादा नहीं है फिर भी बहुत से लोगों पर जाना बोझ हुआ और वो काम का बहाना करके रह गए और उनका गुमान यह था कि क़ुरैश बहुत ताक़तवर हैं. मुसलमान उनसे बचकर न आएंगे सब वही हलाक हो जाएंगे. अब जबकि अल्लाह की मदद से मामला उनके गुमान के बिल्कुल विपरीत हुआ तो उन्हें अपने न जाने पर अफ़सोस होगा और मुअज़िरत करेंगे.

कि हमें हमारे माल और हमारे घर वालों ने जाने से मश्ग़ूल रखा(2)
(2) क्योंकि औरतें और बच्चे अकेले थे और उनका कोई ख़बरगीरी करने वाला न था इसलिये हम बेबस हो गए.

अब हुज़ूर हमारी मग़फ़िरत चाहें(3)
(3) अल्लाह उनको झुटलाता है.

अपनी ज़बानों से वो बात कहते हैं जो उनके दिलों में नहीं (4)
(4) यानी वो बहाना बनाने और माफ़ी मांगने में झूटे हैं.

तुम फ़रमाओ तो अल्लाह के सामने किसे तुम्हारा कुछ इख़्तियार है अगर वह तुम्हारा बुरा चाहे या तुम्हारी भलाई का इरादा फ़रमाए बल्कि अल्लाह को तुम्हारे कामों की ख़बर है {11} बल्कि तुम तो ये समझे हुए थे कि रसूल और मुसलमान हरगिज़ घरों को वापस न आएंगे (5)
(5) दुश्मन उन सबका वहीं ख़ात्मा कर देंगे.

और उसी को अपने दिलों में भला समझे हुए थे और तुमने बुरा गुमान किया(6)
(6) कुफ़्र और फ़साद के ग़लबे का और अल्लाह के वादे के पूरा न होने का.

और तुम हलाक होने वाले लोग थे(7){12}
(7) अल्लाह के अज़ाब के हक़दार.

और जो ईमान न लाए अल्लाह और उसके रसूल पर (8)
(8) इस आयत में चुनौती है कि जो अल्लाह तआला पर और उसके रसूल पर ईमान न लाए, उनमें से किसी एक का भी इन्कारी हों, वह काफ़िर है.

तो बेशक हमने काफ़िरों के लिये भड़कती आग तैयार कर रखी है {13} और अल्लाह ही के लिये है आसमानों और ज़मीन की सल्तनत जिसे चाहे बख़्शे और जिसे चाहे अज़ाब करे (9)
(9) यह सब उसकी मर्ज़ी और हिकमत पर है.

और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है{14} अब कहेंगे पीछे बैठ रहने वाले(10)
(10) जो हुदैबिय्यह की हाज़िरी से लाचार रहे, ऐ ईमान वालों.

जब तुम ग़नीमतें लेने चलो(11)
(11) ख़ैबर की. इसका वाकिआ यह था कि जब मुसलमान सुलह हुदैबिय्यह से फ़ारिग़ होकर वापस हुए तो अल्लाह तआला ने उनसे ख़ैबर की विजय का वादा फ़रमाया और वहाँ की ग़नीमतें हुदैबिय्यह में हाज़िर होने वालों के लिये मख़सूस कर दीं गई. जब मुसलमानों के ख़ैबर की तरफ़ रवाना होने का वक़्त आया तो उन लोगों को लालच आया और उन्होंने ग़नीमत के लालच में कहा.

तो हमें भी अपने पीछे आने दो(12)
(12) यानी हम भी ख़ैबर को तुम्हारे साथ चलें और जंग में शरीक हों अल्लाह तआला फ़रमाता है.

वो चाहते हैं अल्लाह का कलाम बदल दें(13)
(13)यानी अल्लाह तआला का वादा तो जो हुदैबिय्यह वालों के लिये फ़रमाया था कि ख़ैबर की ग़नीमत ख़ास उनके लिये है.

तुम फ़रमाओ हरगिज़ तुम हमारे साथ न आओ अल्लाह न पहले से यूंही फ़रमा दिया है (14)
(14) यानी हमारे मदीना आने से पहले.

तो अब कहेंगे बल्कि तुम हमसे जलते हो(15)
(15) और यह गवारा नहीं करते कि हम तुम्हारे साथ ग़नीमतें पाएं. अल्लाह तआला फ़रमाता है.

बल्कि वो बात न समझते थे(16)
(16) दीन की.

मगर थोड़ी (17){15}
(17) यानी मात्र दुनिया की. यहाँ तक कि उनका ज़बानी इक़रार भी दुनिया ही की ग़रज़ से था और आख़िरत की बातों को बिल्कुल नहीं समझते थे. (जुमल)

उन पीछे रह गए हुए गंवारों से फ़रमाओ (18)
(18) जो विभिन्न क़बीलों के लोग हैं और उनमें कुछ ऐसे भी हैं जिनके तौबह करने की आस की जाती है. कुछ ऐसे भी हैं जो दोहरी प्रवृत्ति या दोग़लेपन में बहुत पुख़्ता और सख़्ता हैं. उन्हें आज़माइश में डालना मन्ज़ूर है ताकि तौबह करने वालों और न करने वालों में फ़र्क़ हो जाए इसलिये हुक्म हुआ कि उनसे फ़रमा दीजिये.

बहुत जल्द तुम एक सख़्त लड़ाई वाली क़ौम की तरफ़ बुलाए जाओगे (19)
(19) इस क़ौम से बनी हनीफ़ा यमामह के रहने वाले जो मुसैलिमा कज़्ज़ाब की क़ौम के लोग हैं वो मुराद हैं जिनसे हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहो अन्हो ने जंग फ़रमाई और यह भी कहा गया है कि उनसे मुराद फ़ारस और रोम के लोग हैं जिनसे जंग के लिये हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो ने दावत दी.

कि उनसे लड़ो या वो मुसलमान हो जाएं, फिर अगर तुम फ़रमान मानोगे अल्लाह तुम्हें अच्छा सवाब देगा(20)
(20) यह आयत हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ और हज़रत उमर फ़ारूक़ रदियल्लाहो अन्हुमा की ख़िलाफ़त की सच्चाई की दलील है कि उन हज़रात की इताअत पर जन्नत का और उनकी मुख़ालिफ़त पर जहन्नम का वादा किया गया.

और अगर फिर जाओगे जैसे पहले फिर गए(21)
(21) हुदैबिय्यह के मौक़े पर.

तो तुम्हें दर्दनाक अज़ाब देगा {16} अंधे पर तंगी नहीं (22)
(22) जिहाद से रह जाने में, जब ऊपर की आयत उतरी तो जो लोग अपंग और मजबूर थे उन्होंने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम, हमारा क्या हाल होगा. इसपर यह आयत उतरी.

और न लंगड़े पर मुज़ायक़ा और न बीमार पर मुआख़िज़ा(23)
(23) कि ये उज्र ज़ाहिर हैं और जिहाद में हाज़िर न होना उन लोगों के लिये जायज़ है क्योंकि न ये लोग दुश्मन पर हमला करने की ताक़त रखते हैं न उनके हमले से बचने और भागने की. उन्हीं के हुक्म में दाख़िल है वो बूढे दुर्बल जिन्हें उठने बैठने की ताक़त नहीं या जिन्हें दमा और खाँसी है या जिनकी तिल्ली बहुत बढ़ गई है और उन्हें चलना फिरना कठिन है. ज़ाहिर है कि ये मजबूरियाँ जिहाद से रोकने वाली हैं. उनके अलावा और भी मजबूरियाँ है जैसे बहुत ज़्यादा मोहताजी और सफ़र की ज़रूरी हाजतों पर क़ुदरत न रखना या ऐसे ज़रूरी काम जो सफ़र से रोकते हों जैसे किसी ऐसे बीमार की ख़िदमत जिसकी नेअमतें देखभाल उस पर वाजिब है और उसके सिवा कोई करने वाला नहीं.

और जो अल्लाह और उसके रसूल का हुक्म माने अल्लाह उसे बाग़ों में ले जाएगा जिनके नीचे नहरें बहें, और जो फिर जाएगा (24)
(24) ताअत से मुंह फेरेगा और कोई कुफ़्र और दोग़लेपन पर रहेगा.
उसे दर्दनाक अज़ाब फ़रमाएगा {17}

48 सूरए फ़त्ह – तीसरा रूकू

48 सूरए फ़त्ह – तीसरा रूकू

۞ لَّقَدْ رَضِيَ اللَّهُ عَنِ الْمُؤْمِنِينَ إِذْ يُبَايِعُونَكَ تَحْتَ الشَّجَرَةِ فَعَلِمَ مَا فِي قُلُوبِهِمْ فَأَنزَلَ السَّكِينَةَ عَلَيْهِمْ وَأَثَابَهُمْ فَتْحًا قَرِيبًا
وَمَغَانِمَ كَثِيرَةً يَأْخُذُونَهَا ۗ وَكَانَ اللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا
وَعَدَكُمُ اللَّهُ مَغَانِمَ كَثِيرَةً تَأْخُذُونَهَا فَعَجَّلَ لَكُمْ هَٰذِهِ وَكَفَّ أَيْدِيَ النَّاسِ عَنكُمْ وَلِتَكُونَ آيَةً لِّلْمُؤْمِنِينَ وَيَهْدِيَكُمْ صِرَاطًا مُّسْتَقِيمًا
وَأُخْرَىٰ لَمْ تَقْدِرُوا عَلَيْهَا قَدْ أَحَاطَ اللَّهُ بِهَا ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرًا
وَلَوْ قَاتَلَكُمُ الَّذِينَ كَفَرُوا لَوَلَّوُا الْأَدْبَارَ ثُمَّ لَا يَجِدُونَ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا
سُنَّةَ اللَّهِ الَّتِي قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلُ ۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّةِ اللَّهِ تَبْدِيلًا
وَهُوَ الَّذِي كَفَّ أَيْدِيَهُمْ عَنكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ عَنْهُم بِبَطْنِ مَكَّةَ مِن بَعْدِ أَنْ أَظْفَرَكُمْ عَلَيْهِمْ ۚ وَكَانَ اللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرًا
هُمُ الَّذِينَ كَفَرُوا وَصَدُّوكُمْ عَنِ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَالْهَدْيَ مَعْكُوفًا أَن يَبْلُغَ مَحِلَّهُ ۚ وَلَوْلَا رِجَالٌ مُّؤْمِنُونَ وَنِسَاءٌ مُّؤْمِنَاتٌ لَّمْ تَعْلَمُوهُمْ أَن تَطَئُوهُمْ فَتُصِيبَكُم مِّنْهُم مَّعَرَّةٌ بِغَيْرِ عِلْمٍ ۖ لِّيُدْخِلَ اللَّهُ فِي رَحْمَتِهِ مَن يَشَاءُ ۚ لَوْ تَزَيَّلُوا لَعَذَّبْنَا الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا
إِذْ جَعَلَ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي قُلُوبِهِمُ الْحَمِيَّةَ حَمِيَّةَ الْجَاهِلِيَّةِ فَأَنزَلَ اللَّهُ سَكِينَتَهُ عَلَىٰ رَسُولِهِ وَعَلَى الْمُؤْمِنِينَ وَأَلْزَمَهُمْ كَلِمَةَ التَّقْوَىٰ وَكَانُوا أَحَقَّ بِهَا وَأَهْلَهَا ۚ وَكَانَ اللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمًا

बेशक अल्लाह राज़ी हुआ ईमान वालों से जब वो उस पेड़ के नीचे तुम्हारी बैअत करते थे(1)
(1) हुदैबिय्यह में चूंकि उन बैअत करने वालों को अल्लाह की रज़ा की ख़ुशख़बरी दी गई इसलिये उस बैअत को बैअते रिज़वान कहते हैं. इस बैअत का ज़ाहिरी कारण यह हुआ कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हुदैबिय्यह से हज़रत उसमाने ग़नी रदियल्लाहो अन्हो को क़ुरैश के सरदारों के पास मक्कए मुकर्रमा भेजा कि उन्हें ख़बर दें कि हम बैतुल्लाह की ज़ियारत और उमरे की नियत से आए हैं हमारा इरादा जंग का नहीं है. और यह भी फ़रमा दिया था कि जो कमज़ोर मुसलमान वहाँ हैं उन्हें इत्मीनान दिला दें कि मक्कए मुकर्रमा बहुत जल्द फ़त्ह होगा और अल्लाह तआला अपने दीन को ग़ालिब फ़रमाएगा. क़ुरैश इस बात पर सहमत रहे कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम इस साल न आएं और हज़रत उस्माने ग़नी रदियल्लाहो अन्हो से कहा कि अगर आप काबे का तवाफ़ करना चाहें तो करलें. हज़रत उस्माने ग़नी ने फ़रमाया ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के बिना तवाफ़ करूं. यहाँ मुसलमानों ने कहा कि उस्माने ग़नी रदियल्लाहो अन्हो बड़े ख़ुशनसीब हैं जो काबए मुअज़्ज़मा पहुंचे और तवाफ़ से मुशर्रफ़ हुए. हुज़ूर ने फ़रमाया मैं जानता हूँ कि वो हमारे बग़ैर तवाफ़ न करेंगे. हज़रत उस्माने गनी रदियल्लाहो अन्हो ने मक्के के कमज़ोर मुसलमानों को आदेशनुसार फ़त्ह की ख़ुशख़बरी भी पहुंचाई फिर क़ुरैश ने हज़रत उस्माने ग़नी को रोक लिया. यहाँ यह ख़बर मशहूर हो गई कि उस्माने ग़नी रदियल्लाहो अन्हो शहीद कर दिये गए. इसपर मुसलमानों को बहुत जोश आया और रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने सहाबा से काफ़िरों के मुक़ाबले में जिहाद में डटे रहने पर बैअत ली. यह बैअत एक बड़े काँटेदार दरख़्त के नीचे हुई जिसको अरब में समुरह कहते हैं. हुज़ूर ने अपना बायां दस्ते मुबारक दाएं दस्ते अक़दस में लिया और फ़रमाया कि यह उस्मान (रदियल्लाहो अन्हो) की बैअत है और फ़रमाया यारब उस्मान तेरे और तेरे रसूल के काम में हैं. इस घटना से मालूम होता है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को नबुव्वत के नूर से मालूम था कि हज़रत उस्मान रदियल्लाहो अन्हो शहीद नहीं हुए जभी तो उनकी बैअत ली. मुश्रिकों में इस बैअत का हाल सुनकर डर छा गया और उन्होंने हज़रत उस्माने ग़नी रदियल्लाहो अन्हो को भेज दिया. हदीस शरीफ़ में है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया जिन लोगों ने दरख़्त के नीचे बैअत ली थी उनमें से कोई भी दोज़ख़ में दाख़िल न होगा. (मुस्लिम शरीफ़) और जिस दरख़्त के नीचे बैअत की गई थी अल्लाह तआला ने उसको आँखों से पोशीदा कर दिया सहाबा ने बहुत तलाश किया किसी को उसका पता न चला.

तो अल्लाह ने जाना जो उनके दिलों में है(2)
(2) सच्चाई, सच्ची महब्बत और वफ़ादारी.

तो उनपर इत्मीनान उतारा और उन्हें ज़ल्द आने वाली फ़त्ह का इनाम दिया(3){18}
(3) यानी ख़ैबर की विजय का जो हुदैबिय्यह से वापस होकर छ माह बाद हासिल हुई.

और बहुत सी ग़नीमतें(4)
(4) ख़ैबर की और ख़बर वालों के माल कि रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने तक़सीम फ़रमाए.

जिन को लें, और अल्लाह इज़्ज़त व हिकमत वाला है {19} और अल्लाह ने तुम से वादा किया है बहुत सी ग़नीमतों का कि तुम लोगे (5)
(5) और तुम्हारी विजय होती रहेगी.

तो तुम्हें वह ज़ल्द अता फ़रमा दी और लोगों के हाथ तुमसे रोक दिये(6)
(6) कि वो डर कर तुम्हारे बाल बच्चों को हानि न पहुंचा सके. इसका वाक़िआ यह था कि जब मुसलमान ख़ैबर की जंग के लिये रवाना हुए तो ख़ैबर वासियों के हलीफ़ बनी असद और ग़ितफान ने चाहा कि मदीनए तैय्यिबह पर हमला करके मुसलमानों के बाल बच्चों को लूट लें. अल्लाह तआला ने उनके दिलों में रोब डाला और उनके हाथ रोक दिये.

और इसलिये कि ईमान वालों के लिये निशानी हो(7)
(7) यह ग़नीमत देना और दुश्मनों के हाथ रोक देना.

और तुम्हें सीधी राह दिखा दे(8){20}
(8) अल्लाह तआला पर तवक्कुल करने और काम उस पर छोड़ देने की जिससे बसीरत और यक़ीन ज़्यादा हो.

और एक और (9)
(9) फ़त्ह.

जो तुम्हारे बल की न थी (10)
(10) मुराद इससे फ़ारस और रूम की ग़नीमतें हैं या ख़ैबर की जिसका अल्लाह तआला ने पहले से वादा फ़रमाया था और मुसलमानों को कामयाबी की उम्मीद थी. अल्लाह तआला ने उन्हें विजय दिलाई. और एक क़ौल यह है कि वह फ़त्हे मक्का है. और एक यह क़ौल है कि वह हर फ़त्ह है जो अल्लाह तआला ने मुसलमानों को अता फ़रमाई.

वह अल्लाह के क़ब्ज़े में है, और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है {21} और अगर काफ़िर तुम से लड़ें(11)
(11) यानी मक्के वालों या ख़ैबर वासियों के सहयोगी असद, ग़ित्फ़ान.

तो ज़रूर तुम्हारे मुक़ाबले से पीठ फेर देंगे(12)
(12) पराजित होंगे और उन्हें मुंह की खानी पड़ेगी.

फिर कोई हिमायती न पाएंगे न मददगार {22} अल्लाह का दस्तूर है कि पहले से चला आता है(13)
(13) कि वह ईमान वालों की मदद फ़रमाता है और काफ़िरों को ज़लील करता है.

और हरगिज़ तुम अल्लाह का दस्तूर बदलता न पाओगे {23} और वही है जिसने उनके हाथ (14)
(14) यानी काफ़िरों के.

तुम से रोक दिये और तुम्हारे हाथ उनसे रोक दिये मक्का की घाटी में (15)
(15) मक्का की विजय का दिन. एक क़ौल यह है कि बत्ने मक्का से हुदैबिय्यह मुराद है और इस आयत के उतरने की परिस्थितियों में हज़रत अनस रदियल्लाहो अन्हो कहते हैं कि मक्के वालों में से अस्सी हथियार बन्द जवान जबले तनईम से मुसलमानों पर हमला करने के इरादे से उतरे. मुसलमानों ने उन्हें गिरफ़्तार करके सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर किया. हुज़ूर ने माफ़ फ़रमा दिया और उन्हें जाने दिया.

बाद इसके कि तुम्हें उनपर क़ाबू दे दिया था और अल्लाह तुम्हारे काम देखता है(16){24}
(16)मक्के के काफ़िर.

वो हैं जिन्होंने कुफ़्र किया और तुम्हें मस्जिदें हराम से(17)
(17) वहाँ पहुंचने से और उसका तवाफ़ करने से.

रोका और क़ुरबानी के जानवर रूके पड़े अपनी जगह पहुंचने से (18)
(18) यानी ज़िब्ह के मक़ाम से जो हरम में है.

और अगर यह न होता कुछ मुसलमान मर्द और कुछ मुसलमान औरतें (19)
(19) मक्कए मुकर्रमा में है.

जिनकी तुम्हें ख़बर नहीं(20)
(20) तुम उन्हें पहचाने नहीं.

कहीं तुम उन्हें रौंदे डालो(21)
(21) काफ़िरों से जंग करने में.

तो तुम्हें उनकी तरफ़ से अनजानी में कोई मकरूह पहुंचे तो हम तुम्हें उनके क़िताल की इजाज़त देते उनका यह बचाव इसलिये है कि अल्लाह अपनी रहमत में दाख़िल करें जिसे चाहे, अगर वो जुदा हो जाते(22)
(22) यानी मुसलमान काफ़िरों से मुम्ताज़ हो जाते.

तो हम ज़रूर उनमें के काफ़िरों को दर्दनाक अज़ाब देते(23) {25}
(23) तुम्हारे हाथ से क़त्ल कराके और तुम्हारी कै़द में लाके.

जब कि काफ़िरों ने अपने दिलों में आड़ रखी है वही अज्ञानता के ज़माने की आड़ (24)
(24) कि रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और हुज़ूर के सहाबा को काबए मुअज़्ज़मा से रोका.

तो अल्लाह ने अपना इत्मीनान अपने रसूल और ईमान वालों पर उतारा (25)
(25) कि उन्होंने अगले साल आने पर सुलह की, अगर वो भी क़ुरैश के काफ़िरों की तरह ज़िद करते तो ज़रूर जंग हो जाती.

और परहेज़गारी का कलिमा उनपर अनिवार्य फ़रमाया(26)
(26) कलिमए तक़वा यानी परहेज़गारी के कलिमे से मुराद “ला इलाहा इल्लल्लाहे मुहम्मदुर रसूलुल्लाह” है.

और वो उसके ज़्यादा सज़ावार और उसके योग्य थे (27)
(27) क्योंकि अल्लाह तआला ने उन्हें अपने दीन और अपने नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की सोहबत से नवाज़ा.

और अल्लाह सब कुछ जानता है (28) {26}
(28)काफ़िरों का हाल भी जानता है, मुसलमानों का भी, कोई चीज़ उससे छुपी नहीं है.

48 सूरए फ़त्ह – चौथा रूकू

48 सूरए फ़त्ह -चौथा रूकू

لَّقَدْ صَدَقَ اللَّهُ رَسُولَهُ الرُّؤْيَا بِالْحَقِّ ۖ لَتَدْخُلُنَّ الْمَسْجِدَ الْحَرَامَ إِن شَاءَ اللَّهُ آمِنِينَ مُحَلِّقِينَ رُءُوسَكُمْ وَمُقَصِّرِينَ لَا تَخَافُونَ ۖ فَعَلِمَ مَا لَمْ تَعْلَمُوا فَجَعَلَ مِن دُونِ ذَٰلِكَ فَتْحًا قَرِيبًا
هُوَ الَّذِي أَرْسَلَ رَسُولَهُ بِالْهُدَىٰ وَدِينِ الْحَقِّ لِيُظْهِرَهُ عَلَى الدِّينِ كُلِّهِ ۚ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ شَهِيدًا
مُّحَمَّدٌ رَّسُولُ اللَّهِ ۚ وَالَّذِينَ مَعَهُ أَشِدَّاءُ عَلَى الْكُفَّارِ رُحَمَاءُ بَيْنَهُمْ ۖ تَرَاهُمْ رُكَّعًا سُجَّدًا يَبْتَغُونَ فَضْلًا مِّنَ اللَّهِ وَرِضْوَانًا ۖ سِيمَاهُمْ فِي وُجُوهِهِم مِّنْ أَثَرِ السُّجُودِ ۚ ذَٰلِكَ مَثَلُهُمْ فِي التَّوْرَاةِ ۚ وَمَثَلُهُمْ فِي الْإِنجِيلِ كَزَرْعٍ أَخْرَجَ شَطْأَهُ فَآزَرَهُ فَاسْتَغْلَظَ فَاسْتَوَىٰ عَلَىٰ سُوقِهِ يُعْجِبُ الزُّرَّاعَ لِيَغِيظَ بِهِمُ الْكُفَّارَ ۗ وَعَدَ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ مِنْهُم مَّغْفِرَةً وَأَجْرًا عَظِيمًا

बेशक अल्लाह ने सच कर दिया अपने रसूल का सच्चा ख़्वाब (1)
(1) रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हुदैबिय्यह का इरादा फ़रमाने से पहले मदीनए तैय्यिबह में ख़्वाब देखा था कि आप सहाबा के साथ मक्कए मुअज़्ज़मा में दाख़िल हुए और सहाबा ने सर के बाल मुंडाए, कुछ ने छोटे करवाए. यह ख़्वाब आपने अपने सहाबा से बयान किया तो उन्हें ख़ुशी हुई और उन्होंने ख़याल किया कि इसी साल वो मक्कए मुकर्रमा में दाख़िल होंगे. जब मुसलमान हुदैबिय्यह से सुलह के बाद वापस हुए और उस साल मक्कए मुकर्रमा में दाख़िला न हुआ तो मुनाफ़िक़ों ने मज़ाक़ किया, तअने दिये और कहा कि वह ख़्वाब क्या हुआ. इस पर अल्लाह तआला ने यह आयत उतारी और उस ख़्वाब के मज़मून की तस्दीक़ फ़रमाई कि ज़रूर ऐसा होगा. चुनांन्चे अगले साल ऐसा ही हुआ और मुसलमान अगले साल बड़ी शान व शौकत के साथ मक्कए मुकर्रमा में विजेता के रूप में दाख़िल हुए.

बेशक तुम ज़रूर मस्जिदे हराम में दाख़िल होंगे अगर अल्लाह चाहे अम्नो अमान से अपने सरों के(2)
(2) सारे.

बाल मुंडाते या(3)
(3) थोड़े से.

तरशवाते बेख़ौफ़, तो उसने जाना जो तुम्हे मालूम नहीं(4)
(4) यानी यह कि तुम्हारा दाख़िल होना अगले साल है और तुम इसी साल समझे थे और तुम्हारे लिये यह देरी बेहतर थी कि इसके कारण वहाँ के कमज़ोर मुसलमान पामाल होने से बच गए.

तो उससे पहले (5)
(5) यानी हरम में दाख़िले से पहले.

एक नज़्दीक़ आने वाली फ़त्ह रखी(6) {27}
(6) ख़ैबर की विजय, कि वादा की गई विजय के हासिल होने तक मुसलमानों के दिल इस से राहत पाएं. उसके बाद जब अगला साल आया तो अल्लाह तआला ने हुज़ूर के ख़्वाब का जलवा दिखाया और घटनाएं उसी के अनुसार घटीं. चुनांन्वे इरशाद फ़रमाता है.
वही है जिसने अपने रसूल को हिदायत और सच्चे दीन के साथ भेजा कि उसे सब दीनों पर ग़ालिब करे(7)
(7) चाहे वो मुश्रिकों के दीन हों या एहले किताब के. चुनांन्चे अल्लाह तआला ने यह नेअमत अता फ़रमाई और इस्लाम को तमाम दीनों पर ग़ालिब फ़रमा दिया.

और अल्लाह काफ़ी है गवाह (8){28}
(8) अपने हबीब मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की.

मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं और उनके साथ वाले (9)
(9) यानी उसके साथी.

काफ़िरों पर सख़्त हैं(10)
(10) जैसा कि शेर शिकार पर, और सहाबा की सख़्ती काफ़िरों के साथ इस क़द्र थीं कि वो लिहाज़ रखते थे कि उनका बदन किसी काफ़िर के बदन से न छू जाए और उनके कपड़े पर किसी काफ़िर का कपड़ा न लगने पाए. (मदारिक)

और आपस में नर्म दिल (11)
(11) एक दूसरे पर मेहरबानी करने वाले कि जैसे बाप बेटे में हो और यह महब्बत इस हद तक पहुंच गई कि जब एक मूमिन दूसरे को देखे तो महब्बत के जोश से हाथ मिलाए और गले से लगाए.

उन्हें देखेगा रूकू करते सज्दे में गिरते(12)
(12) बहुतान से नमाज़े पढ़ते, नमाज़ों पर हमेशगी करते.

अल्लाह का फ़ज़्ल और रज़ा चाहते, उनकी निशानी उनके चेहरों में है सज्दों के निशान से(13)
(13) और यह अलामत वह नूर है जो क़यामत के दिन उनके चेहरों पर चमकता होगा उससे पहचाने जाएंगे कि उन्होंने दुनिया में अल्लाह तआला के लिये बहुत सज्दे किये हैं और यह भी कहा गया है कि उनके चेहरों में सज्दे की जगह चौदहवीं के चाँद की तरह चमकती होगी. अता का क़ौल है कि रात की लम्बी नमाज़ों से उनके चेहरों पर नूर नुमायाँ होता है जैसा कि हदीस शरीफ़ में है कि जो रात को नमाज़ की बहुतात रखता है सुब्ह को उसका चेहरा ख़ूबसूरत हो जाता है यह भी कहा गया है कि मिट्टी का निशान भी सज्दे की अलामत है.

यह उनकी सिफ़त (विशेषता) तौरात में है और उनकी सिफ़त इंजील में हैं(14)
(14) यह बयान किया गया है कि.

जैसे एक खेती उसने अपना पट्ठा निकाला फिर उसे ताक़त दी फिर दबीज़ (मोटी) हुई फिर अपनी पिंडली पर सीधी खड़ी हुई किसानों को भली लगती है (15)
(15) यह उदाहरण इस्लाम की शुरूआत और उसकी तरक़्की की बयान की गई कि नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अकेले उठे फिर अल्लाह तआला ने आप को आपके सच्चे महब्बत रखने वाले साथियों से क़ुव्वत अता फ़रमाई. क़तादह ने कहा कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सहाबा की मिसाल इन्जील में यह लिखी है कि एक क़ौम खेती की तरह पैदा होगी और वो नेकियों का हुक्म करेंगे, बुराईयों से रोकेंगे, कहा गया है कि खेती हुज़ूर है और उसकी शाख़े सहाबा और ईमान वाले.

ताकि उनसे काफ़िरों के दिल जलें, अल्लाह ने वादा किया उनसे जो उनमें ईमान और अच्छे कामों वाले हैं (16)
(16) सहाबा सबके सब ईमान वाले और नेक कर्मों वाले हैं इसलिये यह वादा सभी से है.
बख़्शिश और बड़े सवाब का{29}

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating / 5. Vote count:

No votes so far! Be the first to rate this post.

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top