45 Surah Al Jathiah

45 Surah Al Jathiah

45 सूरए जासियह – पहला रूकू

45 सूरए जासियह  – पहला रूकू

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ حم
تَنزِيلُ الْكِتَابِ مِنَ اللَّهِ الْعَزِيزِ الْحَكِيمِ
إِنَّ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ لَآيَاتٍ لِّلْمُؤْمِنِينَ
وَفِي خَلْقِكُمْ وَمَا يَبُثُّ مِن دَابَّةٍ آيَاتٌ لِّقَوْمٍ يُوقِنُونَ
وَاخْتِلَافِ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَمَا أَنزَلَ اللَّهُ مِنَ السَّمَاءِ مِن رِّزْقٍ فَأَحْيَا بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا وَتَصْرِيفِ الرِّيَاحِ آيَاتٌ لِّقَوْمٍ يَعْقِلُونَ
تِلْكَ آيَاتُ اللَّهِ نَتْلُوهَا عَلَيْكَ بِالْحَقِّ ۖ فَبِأَيِّ حَدِيثٍ بَعْدَ اللَّهِ وَآيَاتِهِ يُؤْمِنُونَ
وَيْلٌ لِّكُلِّ أَفَّاكٍ أَثِيمٍ
يَسْمَعُ آيَاتِ اللَّهِ تُتْلَىٰ عَلَيْهِ ثُمَّ يُصِرُّ مُسْتَكْبِرًا كَأَن لَّمْ يَسْمَعْهَا ۖ فَبَشِّرْهُ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ
وَإِذَا عَلِمَ مِنْ آيَاتِنَا شَيْئًا اتَّخَذَهَا هُزُوًا ۚ أُولَٰئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ مُّهِينٌ
مِّن وَرَائِهِمْ جَهَنَّمُ ۖ وَلَا يُغْنِي عَنْهُم مَّا كَسَبُوا شَيْئًا وَلَا مَا اتَّخَذُوا مِن دُونِ اللَّهِ أَوْلِيَاءَ ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ
هَٰذَا هُدًى ۖ وَالَّذِينَ كَفَرُوا بِآيَاتِ رَبِّهِمْ لَهُمْ عَذَابٌ مِّن رِّجْزٍ أَلِيمٌ

सूरए जासियह मक्का में उतरी, इसमें 37 आयतें, चार रूकू हैं.
पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) यह सूरए जासियह है. इसका नाम सूरए शरीअह भी है. यह सूरत मक्के में उतरी, सिवाय आयत “क़ुल लिल-लज़ीना आमनू यग़फ़िरू”  के. इस सूरत मे चार रूकू सैंतीस आयतें, चार सौ अठासी कलिमे और दो हज़ार एक सौ इक्यानवे अक्षर है.

हा-मीम {1} किताब का उतारना है अल्लाह इज़्ज़त व हिकमत वाले की तरफ़ से  {2} बेशक आसमानों और ज़मीन में निशानियाँ हैं ईमान वालो के लिये (2){3}
(2) अल्लाह तआला की क़ुदरत और उसके एक होने पर दलालत करने वाली.

और तुम्हारी पैदाइश में(3)
(3) यानी तुम्हारी पैदायश में भी उसकी क़ुदरत और हिकमत की निशानियाँ हैं कि नुत्फ़े को ख़ून बनाता है, ख़ून को बांधता है बंधे ख़ून को गोश्त का टुकड़ा, यहाँ तक कि पूरा इन्सान बना देता है.

और जो जो जानवर वह फैलाता है उनमें निशानियां हैं यक़ीन वालों के लिये {4} और रात और दिन की तब्दीलियों में (4)
(4) कि कभी घटते हैं कभी बढ़ते हैं और एक जाता है दूसरा आता है.

और इसमें कि अल्लाह ने आसमान से रोज़ी का साधन मेंह उतारा तो उससे ज़मीन को उसके मरे पीछे ज़िन्दा किया और हवाओ को गर्दिश में (5)
(5) कि कभी गर्म चलती है कभी ठण्डी, कभी दक्षिणी, कभी उत्तरी, कभी पुरवैया कभी पछारिया.

निशानियाँ हें अक़्लमन्दों के लिये {5} ये अल्लाह की आयतें हैं कि हम तुम पर हक़ के साथ पढ़ते हैं, फिर अल्लाह और उसकी आयतों को छोड़कर कौन सी बात पर ईमान लाएंगे {6} ख़राबी है हर बड़े बोहतानहाए गुनहगार के लिये (6) {7}
(6) यानी नज़र बिन हारिस के लिये, कहा गया है कि यह आयत नज़र बिन हारिस के बारे में उतरी जो अजम के क़िस्से कहानियाँ सुनाकर लोगों को क़ुरआने पाक सुनने से रोकता था और यह आयत हर ऐसे व्यक्ति के लिये आम है जो दीन को हानि पहुंचाए और ईमान लाने और क़ुरआन सुनने से घमण्ड करे.

अल्लाह की आयतों को सुनता है कि उसपर पढ़ी जाती हैं फिर हठ पर जमता है (7)
(7) यानी अपने कुफ़्र पर.

घमण्ड करता (8)
(8) ईमान लाने से.

मानो उन्हें सुना ही नहीं, तो उसे ख़ुशख़बरी सुनाओ दर्दनाक अज़ाब की {8} और जब हमारी आयतों में से किसी पर इत्तिला (सूचना) पाए उसकी हंसी बनाता है, उनके लिये ख़्वारी (ज़िल्लत) का अज़ाब {9} उनके पीछे जहन्नम है(9)
(9) यानी मौत के बाद उनका अंजामकार दोज़ख़ है.

और उन्हें कुछ काम न देगा उनका कमाया हुआ(10)
(10) माल जिस पर वो बहुत इतराते हैं.

और न वो जो अल्लाह के सिवा हिमायती ठहर रखे थे(11)
(11) यानी बुत, जिन को पूजा करते थे.

और उनके लिये बड़ा अज़ाब है {10} यह(12)
(12) क़ुरआन शरीफ़.
राह दिखाता है और जिन्होंने अपने रब की आयतों को न माना उनके लिये दर्दनाक अज़ाब में से सख़्त तर अज़ाब है {11}

45 सूरए जासियह – दूसरा रूकू

45 सूरए जासियह  – दूसरा रूकू

۞ اللَّهُ الَّذِي سَخَّرَ لَكُمُ الْبَحْرَ لِتَجْرِيَ الْفُلْكُ فِيهِ بِأَمْرِهِ وَلِتَبْتَغُوا مِن فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
وَسَخَّرَ لَكُم مَّا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا مِّنْهُ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ
قُل لِّلَّذِينَ آمَنُوا يَغْفِرُوا لِلَّذِينَ لَا يَرْجُونَ أَيَّامَ اللَّهِ لِيَجْزِيَ قَوْمًا بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ
مَنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِنَفْسِهِ ۖ وَمَنْ أَسَاءَ فَعَلَيْهَا ۖ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُمْ تُرْجَعُونَ
وَلَقَدْ آتَيْنَا بَنِي إِسْرَائِيلَ الْكِتَابَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ وَرَزَقْنَاهُم مِّنَ الطَّيِّبَاتِ وَفَضَّلْنَاهُمْ عَلَى الْعَالَمِينَ
وَآتَيْنَاهُم بَيِّنَاتٍ مِّنَ الْأَمْرِ ۖ فَمَا اخْتَلَفُوا إِلَّا مِن بَعْدِ مَا جَاءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ ۚ إِنَّ رَبَّكَ يَقْضِي بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ
ثُمَّ جَعَلْنَاكَ عَلَىٰ شَرِيعَةٍ مِّنَ الْأَمْرِ فَاتَّبِعْهَا وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَاءَ الَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ
إِنَّهُمْ لَن يُغْنُوا عَنكَ مِنَ اللَّهِ شَيْئًا ۚ وَإِنَّ الظَّالِمِينَ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ ۖ وَاللَّهُ وَلِيُّ الْمُتَّقِينَ
هَٰذَا بَصَائِرُ لِلنَّاسِ وَهُدًى وَرَحْمَةٌ لِّقَوْمٍ يُوقِنُونَ
أَمْ حَسِبَ الَّذِينَ اجْتَرَحُوا السَّيِّئَاتِ أَن نَّجْعَلَهُمْ كَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ سَوَاءً مَّحْيَاهُمْ وَمَمَاتُهُمْ ۚ سَاءَ مَا يَحْكُمُونَ

अल्लाह है जिसने तुम्हारे बस में दरिया कर दिया कि उसमें उसके हुक्म से क़िश्तियां चलें और इसलिये कि उसका फ़ज़्ल तलाश करो(1)
(1) समुद्री यात्राओ से और तिजारतों से और ग़ोता लगाने और मोती वग़ैरह निकालने से.

और इसलिये कि हक़ (सत्य) मानो(2) {12}
(2) उस के नेअमत व करम और कृपा तथा एहसान का.

और तुम्हारे लिय काम में लगाए जो कुछ आसमानों में है(3)
(3) सूरज चांद सितारे वग़ैरह.

और जो कुछ ज़मीन में (4)
(4) चौपाए दरख़्त नेहरें वग़ैरह.

अपने हुक्म से, बेशक इसमें निशानियां हैं सोचने वालों के लिये {13} ईमान वालों से फ़रमाओ दरगुज़र करें उनसे जो अल्लाह के दिनों की उम्मीद नहीं रखते (5)
(5) जो दिन कि उसने ईमान वालो के लिये निर्धारित किये. या अल्लाह तआला के दिनों से वो वाक़ए मुराद हैं जिनमें वह अपने दुश्मनों को गिरफ़्तार करता है. बहरहाल उन उम्मीद न रखने वालों से मुराद काफ़िर हैं और मानी ये हैं कि काफ़िरों से जो तकलीफ़ पहुंचे और उनकी बातें जो तकलीफ़ पहुंचाए, मुसलमान उन से दरगुज़र करें, झगड़ा न करें. (कहा गया है कि यह आयत क़िताल की आयत से मन्सूख़ कर दी गई) इस आयत के उतरने की परिस्थितियों के बारे में कई कथन हैं. एक यह कि ग़ज़वए बनी मुस्तलक में मुसलमान बीरे मरीसीअ पर उतरे. यह एक कुँवां था. अब्दुल्लाह बिन उबई मुनाफ़िक़ ने अपने ग़ुलाम को पानी के लिये भेजा. वह देर में आया तो उससे कारण पूछा. उसने कहा कि हज़रत उमर कुँए के किनारे पर बैठे हुए थे, जब तक नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की और हज़रत अबूबक्र की मश्क़ें न भर गईं, उस वक़्त तक उन्होंने किसी को पानी न भरने दिया. यह सुनकर उस बदबख़्त ने उन हज़रात की शान में गुस्ताख़ी के कलिमें कहे. हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो को इसकी ख़बर हुई तो आप तलवार लेकर तैयार हुए . इसपर यह आयत उतरी. इस सूरत में यह आयत मदनी होगी. मक़ातिल का क़ौल है कि क़बीलए बनी ग़िफ़ार के एक व्यक्ति ने मक्कए मुकर्रमा में हज़रत उमर रदियल्लहो अन्हो को गाली दी तो आपने उसको पकड़ने का इरादा किया इसपर यह आयत उतरी. और एक क़ौल यह है कि जब आयत “मन ज़ल-लज़ी युक़रिदुल्लाहा क़र्दन हसना” यानी है कोई जो अल्लाह को क़र्ज़े हसना दे. (सूरए बक़रह, आयत 245) उतरी तो फ़िनहास यहूदी ने कहा कि मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) का रब मोहताज हो गया (मआज़ल्लाह), इस को सुनकर हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो ने तलवार खींची और  उसकी तलाश में निकले. हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने आदमी भेज कर उन्हें वापस बुला लिया.

ताकि अल्लाह एक क़ौम से उसकी कमाई का बदला दे(6) {14}
(6) यानी उनके कर्मो का.

जो भला काम करे तो अपने लिये और बुरा करे तो अपने बुरे को(7)
(7) नेकी और बदी का सवाब और अज़ाब उसके करने वाले पर है.

फिर अपने रब की तरफ़ फेरे जाओगे(8){15}
(8) वह नेकों और बदों को उनके कर्मों का बदला देगा.

और बेशक हमने बनी इस्राईल को किताब (9)
(9) यानी तौरात.

और हुक़ुमत और नबुव्वत अता फ़रमाई(10)
(10) उनमें अधिकांश नबी पैदा करके.

और हमने उन्हें सुथरी रोज़ियाँ दीं(11)
(11) हलाल कुशायश के साथ, फ़िरऔन और उसकी क़ौम के माल और इलाकों का मालिक करके और मन्न व सलवा उतार कर.

और उन्हें उनके ज़माने वालों पर फ़ज़ीलत (बुज़ुर्गी) बख़्शी {16} और हमने उन्हें इस काम की(12)
(12) यानी दीन के काम और हलाल व हराम के बयान और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के तशरीफ़ लाने की.

रौशन दलीलें दी तो उन्हों ने इख़्तिलाफ़ न किया(13)
(13) हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के नबी बनाए जाने में.

मगर बाद उसके कि इल्म उनके पास आ चुका(14)
(14) और इल्म मतभेद मिटने का कारण होता है. यहाँ उन लोगों के लिये मतभेद का कारण हुआ. इसकी वजह यह है कि इल्म उनका लक्ष्य न था बल्कि उनका लक्ष्य जाहो रियासत की तलब थी, इसी लिये उन्होंने विरोध किया.

आपस के हसद से(15)
(15) कि उन्होंने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की जलवा- अफ़रोज़ी के बाद अपनी शानों शौकत और हुकूमत के अन्देशे से आपके साथ हसद और दुशानी की और काफ़िर हो गए.

बेशक तुम्हारा रब क़यामत के दिन उनमें फ़ैसला कर देगा जिस बात में इख़्तिलाफ़ करते हैं {17} फिर हमने उस काम के(16)
(16) यानी दीन के.

ऊमदा रास्ते पर तुम्हें किया(17)
(17) ऐ हबीब मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.

तो उसी राह चलो और नादानों की ख़्वाहिशों का साथ न दो (18) {18}
(18) यानी क़ुरैश के सरदारों की जो अपने दीन की तरफ़ बुलाते हैं.

बेशक वो अल्लाह के मुक़ाबिल तुम्हें कुछ काम न देंगे, और बेशक ज़ालिम एक दूसरे के दोस्त हैं (19)
(19) सिर्फ़ दुनिया में, और आख़िरत में उनका कोई दोस्त नहीं.

और डर वालों का दोस्त अल्लाह (20){19}
(20)दुनिया में भी, और आख़िरत में भी. डर वालों से मुराद ईमान वाले हैं और आगे क़ुरआन पाक के बारे में इरशाद होता है.

यह लोगों की आँखे खोलना है(21)
(21) कि इससे उन्हें दीन की बातों में नज़र हासिल होती है.

और ईमान वालों के लिये हिदायत व रहमत {20} क्या जिन्होंने बुराईयों का इर्तिकाब किया(22)
(22) कुफ़्र और गुमराही का.

यह समझते हैं कि हम उन्हें उन जैसा कर देंगे जो ईमान लाए और अच्छे काम किये कि इनकी उनकी ज़िन्दगी और मौत बराबर हो जाए(23)
(23) यानी ईमान वालों और काफ़िरों की ज़िन्दगी बराबर हो जाए ऐसा हरगिज़ न होगा क्योंकि ईमानदार ज़िन्दगी में ताअत पर क़ायम रहे और काफ़िर बुराईयों में डूबे रहे तो उन दोनों की ज़िन्दगी बराबर न हुई. ऐसे ही मौत भी एक सी नहीं कि ईमान वाले की मौत ख़ुशख़बरी व रहमत और बुज़ुर्गी पर होती है और काफ़िर की रहमत से निराशा और शर्मिन्दगी पर. मक्के के मुश्रिकों की एक जमाअत ने मुसलमानों से कहा था कि अगर तुम्हारी बात सत्य हो और मरने के बाद उठना हो तो भी हम ही अफ़ज़ल रहेंगे जैसा कि दुनिया में हम तुमसे बेहतर रहे. उनके रद में यह आयत उतरी.

क्या ही बुरा हुक्म लगाते हैं (24) {21}
(24) मुख़ालिफ़ सरकश, मुख़लिस फ़रमाँबरदार के बराबर कैसे हो सकता है. ईमान वाले जन्नत के ऊंचे दर्जों में इज़्ज़त बुज़ुर्गी और राहतें पाएंगे और काफ़िर जहन्नम के निचले दर्जों में ज़िल्लत और रूस्वाई के साथ सख़्त तरीन अज़ाब में गिरफ़्तार होंगे.

45 सूरए जासियह – तीसरा रूकू

45 सूरए जासियह  – तीसरा रूकू

وَخَلَقَ اللَّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِالْحَقِّ وَلِتُجْزَىٰ كُلُّ نَفْسٍ بِمَا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ
أَفَرَأَيْتَ مَنِ اتَّخَذَ إِلَٰهَهُ هَوَاهُ وَأَضَلَّهُ اللَّهُ عَلَىٰ عِلْمٍ وَخَتَمَ عَلَىٰ سَمْعِهِ وَقَلْبِهِ وَجَعَلَ عَلَىٰ بَصَرِهِ غِشَاوَةً فَمَن يَهْدِيهِ مِن بَعْدِ اللَّهِ ۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ
وَقَالُوا مَا هِيَ إِلَّا حَيَاتُنَا الدُّنْيَا نَمُوتُ وَنَحْيَا وَمَا يُهْلِكُنَا إِلَّا الدَّهْرُ ۚ وَمَا لَهُم بِذَٰلِكَ مِنْ عِلْمٍ ۖ إِنْ هُمْ إِلَّا يَظُنُّونَ
وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ آيَاتُنَا بَيِّنَاتٍ مَّا كَانَ حُجَّتَهُمْ إِلَّا أَن قَالُوا ائْتُوا بِآبَائِنَا إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
قُلِ اللَّهُ يُحْيِيكُمْ ثُمَّ يُمِيتُكُمْ ثُمَّ يَجْمَعُكُمْ إِلَىٰ يَوْمِ الْقِيَامَةِ لَا رَيْبَ فِيهِ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ

और अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन को हक़ (सत्य) के साथ बनाया(1)
(1) कि उसकी क़ुदरत और वबदानियत की दलील हो.

और इसलिये कि हर जान अपने किये का बदला पाए(2)
(2) नेक नेकी का और बद बदी का. इस आयत से मालूम हुआ कि इस सृष्टि की उत्पत्ति से इन्साफ़ और रहमत का इज़हार करना मक़सूद है और यह पूरी तरह क़यामत में ही हो सकता है कि सच्चाई वालों और बुराई वालों में पूरा पूरा फ़र्क़ हो. मूमिने मुख़लिस जन्नत के दर्जो में हों और नाफ़रमान काफ़िर जहन्नम कें गढ़ों में.

और उनपर ज़ुल्म न होगा {22} भला देखो तो वह जिसने अपनी ख़्वाहिशों को अपना ख़ुदा ठहरा लिया(3)
(3) और अपनी इच्छा का ग़ुलाम हो गया जिसे नफ़्स ने चाहा पूजने लगा. मुश्रिकों का यही हाल था कि वो पत्थर और सोने चांदी वग़ैरह को पूजते थे. जब कोई चीज़ उन्हें पहली चीज़ से अच्छी मालूम होती थी तो पहली को तोड़ देते फैंक देते और दूसरी को पूजने लगते.

और अल्लाह ने उसे इल्म होने के बावजूद गुमराह किया (4)
(4) कि उस गुमराह ने हक़ को जान पहचान कर बेराही अपनाई . मुफ़स्सिरों ने इसके ये मानी भी बयान किये हैं कि अल्लाह तआला ने उसके अन्त और उसके बदनसीब और शक़ी होने को जानते हुए उसे गुमराह किया यानी अल्लाह तआला पहले से जानता था कि यह अपनी मर्ज़ी से सच्चाई की राह से फिरेगा और ग़लत राह अपनाएगा.

और उसके कान और दिल पर मोहर लगा दी और उस की आँखों पर पर्दा डाला (5)
(5) तो उसने हिदायत और उपदेश को न सुना और न समझा और सच्चाई की राह को न देखा.

तो अल्लाह के बाद उसे कौन राह दिखाए, तो क्या तुम ध्यान नहीं करते {23} और बोले(6)
(6) मरने के बाद उठाए जाने का इन्कार करने वाले.

तो वो नहीं मगर यही हमारी दुनिया की ज़िन्दगी(7)
(7) यानी इस ज़िन्दगी के अलावा और कोई ज़िन्दगी नहीं.

मरते हैं और जीते हैं (8)
(8) यानी कुछ मरते हैं और कुछ पैदा होते है.

और हमें हलाक नहीं करता मगर ज़माना (9)
(9) यानी रात दिन का चक्र. वो इसी को प्रभावी मानते थे और मौत के फ़रिश्ते का और अल्लाह के हुक्म से रूह निकाले जाने का इन्कार करते थे और हर एक घटना को दुनिया और ज़माने के साथ निस्बत देते थे. अल्लाह तआला फ़रमाता है.

और उन्हें इसका इल्म नहीं(10)
(10) यानी वो यह बात बेइल्मी से कहते हैं.

वो तो निरे गुमान दौड़ाते हैं (11) {24}
(11) वास्तविकता से दूर. घटनाओ को ज़माने की तरफ़ मन्सूब करना और दुर्घटना होने पर ज़माने को बुरा कहना मना है. हदीसों में इसकी मनाही आई है.

और जब उनपर हमारी रौशन आयतें पढ़ी जाएं(12)
(12) यानी क़ुरआने पाक की वो आयतें जिनमें अल्लाह तआला के मौत के बाद उठाने पर क़ादिर होने की दलीलें बयान की गई हैं. जब काफ़िर उनके जवाब से लाचार हो जाते हैं.

तो बस उनकी हुज्जत यह होती है कि कहते हैं हमारे बाप दादा को ले आओ (13)
(13) ज़िन्दा करके.

तुम अगर सच्चे हो (14) {25}
(14) इस बात में कि मु्र्दे ज़िन्दा करके उठाए जाऐंगे.

तुम फ़रमाओ अल्लाह तुम्हें जिलाता है (15)
(15) दुनिया में, इसके बाद कि तुम बेजान नुत्फ़ा थे.

फिर तुमको मारेगा(16)
(16) तुम्हारी उम्रे पूरी होने के वक़्त.

फिर तुम सब को इकट्ठा करेगा(17)
(17) ज़िन्दा करके, तो जो रब ऐसी क़ुदरत वाला है वह तुम्हारे बाप दादा के ज़िन्दा करने पर भी यक़ीनन क़ादिर है वह सब को ज़िन्दा करेगा.

क़यामत के दिन जिसमें कोई शक नहीं लेकिन बहुत आदमी नहीं जानते (18) {26}
(18)  इसको कि अल्लाह तआला मुर्दों को ज़िन्दा करने पर क़ादिर है और उनका न जानना दलीलों की तरफ़ ग़ौर न करने के कारण हैं.

45 सूरए जासियह – चौथा रूकू

45 सूरए जासियह  – चौथा रूकू

وَلِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ يَوْمَئِذٍ يَخْسَرُ الْمُبْطِلُونَ
وَتَرَىٰ كُلَّ أُمَّةٍ جَاثِيَةً ۚ كُلُّ أُمَّةٍ تُدْعَىٰ إِلَىٰ كِتَابِهَا الْيَوْمَ تُجْزَوْنَ مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
هَٰذَا كِتَابُنَا يَنطِقُ عَلَيْكُم بِالْحَقِّ ۚ إِنَّا كُنَّا نَسْتَنسِخُ مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فَيُدْخِلُهُمْ رَبُّهُمْ فِي رَحْمَتِهِ ۚ ذَٰلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْمُبِينُ
وَأَمَّا الَّذِينَ كَفَرُوا أَفَلَمْ تَكُنْ آيَاتِي تُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ فَاسْتَكْبَرْتُمْ وَكُنتُمْ قَوْمًا مُّجْرِمِينَ
وَإِذَا قِيلَ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ وَالسَّاعَةُ لَا رَيْبَ فِيهَا قُلْتُم مَّا نَدْرِي مَا السَّاعَةُ إِن نَّظُنُّ إِلَّا ظَنًّا وَمَا نَحْنُ بِمُسْتَيْقِنِينَ
وَبَدَا لَهُمْ سَيِّئَاتُ مَا عَمِلُوا وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ
وَقِيلَ الْيَوْمَ نَنسَاكُمْ كَمَا نَسِيتُمْ لِقَاءَ يَوْمِكُمْ هَٰذَا وَمَأْوَاكُمُ النَّارُ وَمَا لَكُم مِّن نَّاصِرِينَ
ذَٰلِكُم بِأَنَّكُمُ اتَّخَذْتُمْ آيَاتِ اللَّهِ هُزُوًا وَغَرَّتْكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا ۚ فَالْيَوْمَ لَا يُخْرَجُونَ مِنْهَا وَلَا هُمْ يُسْتَعْتَبُونَ
فَلِلَّهِ الْحَمْدُ رَبِّ السَّمَاوَاتِ وَرَبِّ الْأَرْضِ رَبِّ الْعَالَمِينَ
وَلَهُ الْكِبْرِيَاءُ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ

और अल्लाह ही के लिये है आसमानों और ज़मीन की सल्तनत और जिस दिन क़यामत होगी बातिल वालों की उस दिन हार है(1){27}
(1) यानी उस दिन काफ़िरों का टोटे में होना ज़ाहिर होगा.

और तुम हर गिरोह(2)
(2) यानी हर दीन वाले.

को देखोगे ज़ानू के बल गिरे हुए, हर गिरोह अपने आमाल नामे की तरफ़ बुलाया जाएगा(3)
(3) और फ़रमाया जाएगा.

आज तुम्हें तुम्हारे किये का बदला दिया जाएगा {28} हमारा यह नविश्ता तुम पर हक़ (सत्य) बोलता है हम लिखते रहे थे (4)
(4) यानी हमने फ़रिश्तों को तुम्हारे कर्म लिखने का हुक्म दिया था.

जो तुमने किया {29} तो वो जो ईमान लाए और अच्छे काम किये उनका रब उन्हें अपनी रहमत में लेगा (5)
(5) जन्नत में दाख़िल फ़रमाएगा.

यही खुली कामयाबी है {30} और जो काफ़िर हुए उनसे फ़रमाएगा जाएगा क्या न था कि मेरी आयतें तुम पर पढ़ी जाती थीं तो तुम घमण्ड करते थे (6)
(6) और उनपर ईमान न लाते थे.

और तुम मुजरिम लोग थे {31} और जब कहा जाता बेशक अल्लाह का वादा(7)
(7) मु्र्दों को ज़िन्दा करने का.

सच्चा है और क़यामत में शक नहीं  (8)
(8) वह ज़रूर आएगी, तो—

तुम कहते हम नहीं जानते क़यामत क्या चीज़ है हमें तो यूंही कुछ गुमान सा होता है और हमें(9)
(9) क़यामत के आने का.

यक़ीन नहीं {32} और उनपर खुल गई (10)
(10) यानी काफ़िरों पर आख़िरत में.

उनके कामों की बुराइयाँ (11)
(11) जो उन्हों ने दुनिया में किये थे, और उनकी सज़ाएं.

और उन्हें घेर लिया उस अज़ाब ने जिसकी हंसी बनाते थे {33} और फ़रमाया जाएगा आज हम तुम्हें छोड़ देंगे(12)
(12) दोज़ख़ के अज़ाब में.

जैसे तुम अपने इस दिन के मिलने को भुले हुए थे (13)
(13) कि ईमान और फ़रमाँबरदारी छोड़ बैठे.

और तुम्हारा ठिकाना आग है और तुम्हारा कोई मददगार नहीं (14) {34}
(14) जो तुम्हें उस अज़ाब से बचा सके.

यह इसलिये कि तुमने अल्लाह की आयतों का ठट्टा बनाया और दुनिया की ज़िन्दगी ने तुम्हें धोखा दिया (15)
(15) कि तुम उसके दीवाने हो गए और तुमने मरने के बाद उठाए हाने और हिसाब का इन्कार कर दिया.

तो आज न वो आग से निकाले जाएं और न उनसे कोई मनाना चाहे(16) {35}
(16) यानी अब उनसे यह भी नहीं चाहिये कि वो तौबह करके और ईमान व फ़रमाँबरदारी इख़्तियार करके अपने रब को राज़ी करें क्योंकि उस दिन कोई बहाना क़ुबूल नहीं.
तो अल्लाह ही के लिये सब ख़ूबियां हैं आसमानों का रब  और ज़मीन का रब और सारे जगत का रब {36} और उसी के लिये बड़ाई है आसमानों और ज़मीन में और वही इज़्ज़त व हिकमत {बोध} वाला है {37}

पारा पच्चीस समाप्त

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