43 Surah Al Zukhruf

43 Surah Al Zukhruf

43 सूरए ज़ुख़रूफ़  – पहला रूकू

43 सूरए ज़ुख़रूफ़  – पहला रूकू

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ حم
وَالْكِتَابِ الْمُبِينِ
إِنَّا جَعَلْنَاهُ قُرْآنًا عَرَبِيًّا لَّعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ
وَإِنَّهُ فِي أُمِّ الْكِتَابِ لَدَيْنَا لَعَلِيٌّ حَكِيمٌ
أَفَنَضْرِبُ عَنكُمُ الذِّكْرَ صَفْحًا أَن كُنتُمْ قَوْمًا مُّسْرِفِينَ
وَكَمْ أَرْسَلْنَا مِن نَّبِيٍّ فِي الْأَوَّلِينَ
وَمَا يَأْتِيهِم مِّن نَّبِيٍّ إِلَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ
فَأَهْلَكْنَا أَشَدَّ مِنْهُم بَطْشًا وَمَضَىٰ مَثَلُ الْأَوَّلِينَ
وَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ لَيَقُولُنَّ خَلَقَهُنَّ الْعَزِيزُ الْعَلِيمُ
الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ مَهْدًا وَجَعَلَ لَكُمْ فِيهَا سُبُلًا لَّعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ
وَالَّذِي نَزَّلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً بِقَدَرٍ فَأَنشَرْنَا بِهِ بَلْدَةً مَّيْتًا ۚ كَذَٰلِكَ تُخْرَجُونَ
وَالَّذِي خَلَقَ الْأَزْوَاجَ كُلَّهَا وَجَعَلَ لَكُم مِّنَ الْفُلْكِ وَالْأَنْعَامِ مَا تَرْكَبُونَ
لِتَسْتَوُوا عَلَىٰ ظُهُورِهِ ثُمَّ تَذْكُرُوا نِعْمَةَ رَبِّكُمْ إِذَا اسْتَوَيْتُمْ عَلَيْهِ وَتَقُولُوا سُبْحَانَ الَّذِي سَخَّرَ لَنَا هَٰذَا وَمَا كُنَّا لَهُ مُقْرِنِينَ
وَإِنَّا إِلَىٰ رَبِّنَا لَمُنقَلِبُونَ
وَجَعَلُوا لَهُ مِنْ عِبَادِهِ جُزْءًا ۚ إِنَّ الْإِنسَانَ لَكَفُورٌ مُّبِينٌ

सूरए ज़ुख़रूफ़ मक्का में उतरी, इसमें 89 आयतें, सात रूकू हैं.
 -पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए ज़ुख़रूफ़ मक्के में उतरी. इस में सात रूकू, नवासी आयतें, और तीन हज़ार चार सौ अक्षर हैं.

हा-मीम {1} रौशन किताब की क़सम (2){2}
(2) यानी क़ुरआन शरीफ़ की, जिसमें हिदायत और गुमराही की राहें अलग अलग और साफ़ कर दीं और उम्मत की सारी शरई ज़रूरतों का बयान फ़रमा दिया.

हमने इसे अरबी क़ुरआन उतारा कि तुम समझो(3) {3}
(3) उसके मानी और आदेशों को.

और बेशक यह अस्ल किताब में(4)
(4) अस्ल किताब से मुराद लौहे मेहफ़ूज़ है. क़ुरआने करीम इसमें दर्ज है.

हमारे पास ज़रूर बलन्दी व हिकमत (बोध) वाला है {4} तो क्या हम तुम से ज़िक्र का पहलू फेर दें इस पर कि तुम लोग हद से बढ़ने वाले हो (5){5}
(5) यानी तुम्हारे कुफ़्र में हद से बढ़ने की वजह से क्या हम तुम्हें बेकार छोड़ दें और तुम्हारी तरफ़ से क़ुरआन की वही का रूख़ फेर दें और तुम्हें न कोई हुक्म दे और न किसी बात से रोकें. मानी ये है कि हम ऐसा न करेंगे. हज़रत क़तादह ने कहा कि ख़ुदा की क़सम अगर यह क़ुरआने पाक उठा लिया जाता उस वक़्त जबकि इस उम्मत के पहले लोगों ने इस से मुंह फेरा था तो वो सब हलाक हो जाते लेकिन उसने अपनी रहमत और करम से इस क़ुरआन का उतारना जारी रखा.

और हमने कितने ही ग़ैब बताने वाले (नबी) अगलों में भेजे{6} और उनके पास जो ग़ैब बताने वाला (नबी) आया उसकी हंसी ही बनाया किये(6) {7}
(6) जैसा कि आपकी क़ौम के लोग करते  हैं.  काफ़िरों का पहले से यह मामूल चला आया है.

तो हमने वो हलाक कर दिये जो उनसे भी पकड़ में सख़्त थे और अगलों का हाल गुज़र चुका है(7){8}
(7) और हर तरह का ज़ोर व क़ुव्वत रखते थे. आपकी उम्मत के लोग जो पहले के काफ़िरों की चालें चलते हैं उन्हे डरना चाहिये कि कहीं उनका भी वही अंजाम न हो जो उनका हुआ कि ज़िल्लत और रूस्वाई की मुसीबतों से हलाक किये गए.

और अगर तुम उनसे पूछो(8)
(8) यानी मुश्रिक लोगों से.

कि आसमान और ज़मीन किसने बनाए तो ज़रूर कहेंगे उन्हें बनाया उस इज़्ज़त वाले इल्म वाले ने(9){9}
(9) यानी इक़रार करेंगे कि आसमान व ज़मीन को अल्लाह तआला ने बनाया और यह भी मानेंगे कि वह इज़्जत और इल्म वाला है. इस इक़रार के बावुजूद दोबारा उठाए जाने का इन्कार कैसी इन्तिहा दर्जे की जिहालत है. इस के बाद अल्लाह तआला अपनी क़ुदरत के इज़हार के लिये अपनी सृजन-शक्ति का ज़िक्र फ़रमाता है और अपने औसाफ़ और शान का इज़हार करता है.

वह जिसने तुम्हारे लिये ज़मीन को बिछौना किया और तुम्हारे लिये उसमें रास्ते किये कि तुम राह पाओ (10){10}
(10) सफ़रों में अपनी मंज़िलों और उद्देश्यों की तरफ़.

और वह जिसने आसमान से पानी उतारा एक अन्दाज़े से,(11)
(11) तुम्हारी हाजतों की क़द्र, न इतना कम कि उससे तुम्हारी हाजतें पूरी न हों न इतना ज़्यादा कि क़ौमे नूह की तरह तुम्हें हलाक कर दे.

तो हमने उस से एक मुर्दा शहर ज़िन्दा फ़रमा दिया, यूं ही तुम निकाले जाओगे(12) {11}
(12) अपनी क़ब्रों से ज़िन्दा करके.

और जिसने सब जोड़े बनाए (13)
(13) यानी सारी अस्नाफ़ और क़िस्में. कहा गया है कि अल्लाह तआला तन्हा है, ज़िद और बराबरी और ज़ौजियत से पाक है उसके सिवा ख़ल्क़ में जो है, जोड़े से है.

और तुम्हारे लिये किश्तियाँ और चौपायों से सवारियाँ बनाई {12} कि तुम उनकी पीठों पर ठीक बैठो(14)
(14) ख़ुश्की और तरी के सफ़र में.

फिर अपने रब की नेअमत याद करो जब उस पर ठीक बैठ लो और यूं कहो पाकी है उसे जिसने इस सवारी को हमारे बस में कर दिया और यह हमारे बूते की न थी {13} और बेशक हमें अपने रब की तरफ़ पलटना है (15) {14}
(15) अन्त में, मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम जब सफ़र में तशरीफ़ ले जाते तो अपनी ऊंटनी पर सवार होते वक़्त पहले अल्हम्दु लिल्लाह पढ़ते फिर सुब्हानल्लाह और अल्लाहो अकबर. ये सब तीन तीन बार फिर यह आयत पढ़ते “सुब्हानल्लज़ी सख़्ख़रा लना हाज़ा व मा कुन्ना लहू मुक़रिनीन, व इन्ना इला रब्बिना ल मुन्क़लिबून” यानी पाकी है उसे जिसने इस सवारी को हमारे बस में कर दिया और यह हमारे बूते न थी और बेशक हमें अपने रब की तरफ़ पलटना है. (सूरए ज़ुख़रूफ़, आयत 13) और इसके बाद और दुआएं पढ़ते और जब हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम किश्ती में सवार होते तो फ़रमाते “बिस्मिल्लाहे मजरीहा व मुरसाहा इन्ना रब्बी ल ग़फ़ूरूर रहीम”यानी अल्लाह के नाम पर उसका चलना और उसका ठहरना बेशक मेरा रब ज़रूर बख़्शने वाला मेहरबान है. (सूरए हूद, आयत 41)

और उसके लिये उसके बन्दों में से टुकड़ा ठहराया, (16)
(16) यानी काफ़िरों ने इस इक़रार के बावुजूद कि अल्लाह तआला आसमान व ज़मीन का ख़ालिक़ है यह सितम किया कि फ़रिश्तों को अल्लाह तआला की बेटियाँ बताया और औलाद साहिबे औलाद का हिस्सा होती है. ज़ालिमों ने अल्लाह तआला के लिये हिस्सा क़रार दिया कैसा भारी जुर्म है.

बेशक आदमी (17)
(17) जो ऐसी बातों को मानता है.

खुला नाशुक्रा है (18) {15}
(18) उसका कुफ़्र ज़ाहिर है.

43 सूरए ज़ुख़रूफ़  – दूसरा रूकू

43 सूरए ज़ुख़रूफ़  – दूसरा रूकू

أَمِ اتَّخَذَ مِمَّا يَخْلُقُ بَنَاتٍ وَأَصْفَاكُم بِالْبَنِينَ
وَإِذَا بُشِّرَ أَحَدُهُم بِمَا ضَرَبَ لِلرَّحْمَٰنِ مَثَلًا ظَلَّ وَجْهُهُ مُسْوَدًّا وَهُوَ كَظِيمٌ
أَوَمَن يُنَشَّأُ فِي الْحِلْيَةِ وَهُوَ فِي الْخِصَامِ غَيْرُ مُبِينٍ
وَجَعَلُوا الْمَلَائِكَةَ الَّذِينَ هُمْ عِبَادُ الرَّحْمَٰنِ إِنَاثًا ۚ أَشَهِدُوا خَلْقَهُمْ ۚ سَتُكْتَبُ شَهَادَتُهُمْ وَيُسْأَلُونَ
وَقَالُوا لَوْ شَاءَ الرَّحْمَٰنُ مَا عَبَدْنَاهُم ۗ مَّا لَهُم بِذَٰلِكَ مِنْ عِلْمٍ ۖ إِنْ هُمْ إِلَّا يَخْرُصُونَ
أَمْ آتَيْنَاهُمْ كِتَابًا مِّن قَبْلِهِ فَهُم بِهِ مُسْتَمْسِكُونَ
بَلْ قَالُوا إِنَّا وَجَدْنَا آبَاءَنَا عَلَىٰ أُمَّةٍ وَإِنَّا عَلَىٰ آثَارِهِم مُّهْتَدُونَ
وَكَذَٰلِكَ مَا أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ فِي قَرْيَةٍ مِّن نَّذِيرٍ إِلَّا قَالَ مُتْرَفُوهَا إِنَّا وَجَدْنَا آبَاءَنَا عَلَىٰ أُمَّةٍ وَإِنَّا عَلَىٰ آثَارِهِم مُّقْتَدُونَ
۞ قَالَ أَوَلَوْ جِئْتُكُم بِأَهْدَىٰ مِمَّا وَجَدتُّمْ عَلَيْهِ آبَاءَكُمْ ۖ قَالُوا إِنَّا بِمَا أُرْسِلْتُم بِهِ كَافِرُونَ
فَانتَقَمْنَا مِنْهُمْ ۖ فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذِّبِينَ

क्या उसने अपने लिये अपनी मख़लूक़ (सृष्टि) में से बेटियाँ लीं और तुम्हें बेटों के साथ ख़ास किया(1) {16}
(1) अदना अपने लिये और आला तुम्हारे लिये, कैसे जाहिल हो, क्या बकते हो.

और जब उनमें किसी को ख़ुशख़बरी दी जाए उस चीज़ की(2)
(2) यानी बेटी की कि तेरे घर में बेटी पैदा हुई है.

जिसका वस्फ़ रहमान के लिये बता चुका है(3)
(3) कि मआज़ल्लाह वह बेटी वाला है.

तो दिन भर उसका मुंह काला रहे और ग़म खाया करे  (4){17}
(4) और बेटी का होना इस क़द्र नागवार समझे, इसके बावुजूद अल्लाह तआला के लिये बेटियाँ बताए.

और क्या (5)
(5) काफ़िर हज़रते रहमान के लिये औलाद की क़िस्मों में से तजवीज़ करते हैं.

वह जो गहने(जे़वर) में पर्वान चढ़े(6)
(6) यानी ज़ेवरों की सजधज में नाज़ और नज़ाकत के साथ पले बढ़े. इससे मालूम हुआ कि ज़ेवर से श्रंगार नुक़सान की दलील है तो मर्दों को इस से परहेज़ करना चाहिये. परहेज़गारी से अपनी ज़ीनत करें. अब आगे आयत में लड़की की एक और कमज़ोरी का इज़हार फ़रमाया जाता है.

और बहस में साफ़ बात न करे(7){18}
(7) यानी अपनी हालत की कमज़ोरी और अक़्ल की कमी की वजह से. हज़रत क़तादह रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि औरत जब बातचीत करती है और अपनी ताईद में कोई दलील पेश करना चाहती है तो अक्सर ऐसा होता है कि वह अपने ही ख़िलाफ़ दलील पेश कर देती है.

और उन्होंने फ़रिश्तों को कि रहमान के बन्दे हैं औरतें ठहराया(8)
(8) हासिल यह है कि फ़रिश्तों को ख़ुदा की बेटियाँ बताने में बेदीनों ने तीन कुफ़्र किये, एक तो अल्लाह तआला की तरफ़ औलाद की निस्बत, दूसरे उस ज़लील चीज़ को उसकी तरफ़ जोड़ना जिस को वो ख़ुद बहुत ही तुच्छ समझते हैं और अपने लिये गवारा नहीं करते, तीसरे फ़रिश्तों की तौहीन, उन्हें बेटियाँ बताना (मदारिक) अब उसका रद फ़रमाया जाता है.

क्या उनके बनाते वक़्त ये हाज़िर थे(9)
(9)  फ़रिश्तों का नर या मादा होना ऐसी चीज़ तो है नहीं जिसपर कोई अक़ली दलील क़ायम हो सके और उनके पास ख़बर आई नहीं तो जो काफ़िर उनको मादा क़रार देते हैं उनकी जानकारी का ज़रिया क्या है, क्या उनकी पैदायश के वक़्त मौजूद थे और उन्होंने अवलोकन कर लिया है. जब यह भी नहीं तो केवल जिहालत वाली गुमराही की बात है.

अब लिखली जाएगी उनकी गवाही (10)
(10) यानी काफ़िरों का फ़रिश्तों के मादा होने पर गवाही देना लिखा जाएगा.

और उन से जवाब तलब होगा(11) {19}
(11) आख़िरत में और उसपर सज़ा दी जाएगी. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने काफ़िरो से पूछा कि तुम फ़रिश्तों को ख़ुदा की बेटियाँ किस तरह कहते हो. तुम्हारी जानकारी का स्रोत क्या है. उन्हों ने कहा हमने अपने बाप दादा से सुना है और हम गवाही देते हैं वो सच्चे थे. इस गवाही को अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि लिखी जाएगी और उस पर जवाब तलब होगा.

और बोले अगर रहमान चाहता हम इन्हें न पूजते, (12)
(12) यानी फ़रिश्तों को. मतलब यह था कि अगर फ़रिश्तों की पूजा करने से अल्लाह तआला राज़ी न होता तो हम पर अज़ाब उतारता और जब अज़ाब न आया तो हम समझते हैं कि वह यही चाहता हे. यह उन्होंने ऐसी ग़लत बात कही जिससे लाज़िम आए कि सारे जुर्म जो दुनिया में होते हैं उनसे ख़ुदा राज़ी है. अल्लाह तआला उन्हें झुटलाता है.

उन्हें इसकी हक़ीक़त कुछ मालूम नहीं (13)
(13) वो अल्लाह की रज़ा के जानने वाले ही नहीं.

यूंही अटकलें दौड़ाते हैं (14) {20}
(14) झूट बकते हैं.

या इससे पहले हमने उन्हें कोई किताब दी है जिसे वो थामे हुए हैं(15) {21}
(15) और उसमें ग़ैर ख़ुदा की पूजा की इजाज़त है ऐसा नहीं यह बातिल हैं और इसके सिवा भी उनके पास कोई हुज्जत नहीं है.

बल्कि बोले हमने अपने बाप दादा को एक दीन पर पाया और हम उनकी लकीर पर चल रहे हैं(16){22}
(16) आँखें मीच कर, बे सोचे समझे उनका अनुकरण करते हैं. वो मख़लूक़ परस्ती किया  करते थे. मतलब यह है कि उसकी कोई दलील इसके अलावा नहीं है कि यह काम वो अपने बाप दादा के अनुकरण में करते हैं. अल्लाह तआला फ़रमाता है कि उनसे पहले भी ऐसा ही कहा करते थे.

और ऐसे ही हमने तुम से पहले जब किसी शहर में कोई डर सुनाने वाला भेजा वहाँ के आसूदों ने यही कहा कि हमने अपने बाप दादा को एक दीन पर पाया और हम उनकी लकीर के पीछे हैं(17){23}
(17) इससे मालूम हुआ कि बाप दादा की अन्धे बन कर पैरवी करना काफ़िरों की पुरानी बीमारी है. और उन्हें इतनी तमीज़ नहीं कि किसी का अनुकरण या पैरवी करने के लिये यह देख लेना ज़रूरी है कि वह सीधी राह पर हो, चुनांन्चे—

नबी ने फ़रमाया और क्या जब भी कि मैं तुम्हारे पास वह (18)
(18) सच्चा दीन.

लाऊं जो सीधी राह हो उससे  (19)
(19) यानी उस दीन से.

जिसपर तुम्हारे बाप दादा थे, बोले जो कुछ तुम लेकर भेजे गए हम उसे नहीं मानते(20){24}
(20) अगरचे तुम्हारा दीन सच्चा और अच्छा हो मगर हम अपने बाप दादा का दीन छोड़ने वाले नहीं  चाहे वह कैसा ही हो. इसपर अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है.

तो हमने उनसे बदला लिया(21) तो देखो झुटलाने वालों का कैसा अंजाम हुआ {25}
(21) यानी रसूलों के न मानने वालों और उन्हे झुटलाने वालों से.

43 सूरए ज़ुख़रूफ़  – तीसरा रूकू

43 सूरए ज़ुख़रूफ़  – तीसरा रूकू

وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِ إِنَّنِي بَرَاءٌ مِّمَّا تَعْبُدُونَ
إِلَّا الَّذِي فَطَرَنِي فَإِنَّهُ سَيَهْدِينِ
وَجَعَلَهَا كَلِمَةً بَاقِيَةً فِي عَقِبِهِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ
بَلْ مَتَّعْتُ هَٰؤُلَاءِ وَآبَاءَهُمْ حَتَّىٰ جَاءَهُمُ الْحَقُّ وَرَسُولٌ مُّبِينٌ
وَلَمَّا جَاءَهُمُ الْحَقُّ قَالُوا هَٰذَا سِحْرٌ وَإِنَّا بِهِ كَافِرُونَ
وَقَالُوا لَوْلَا نُزِّلَ هَٰذَا الْقُرْآنُ عَلَىٰ رَجُلٍ مِّنَ الْقَرْيَتَيْنِ عَظِيمٍ
أَهُمْ يَقْسِمُونَ رَحْمَتَ رَبِّكَ ۚ نَحْنُ قَسَمْنَا بَيْنَهُم مَّعِيشَتَهُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۚ وَرَفَعْنَا بَعْضَهُمْ فَوْقَ بَعْضٍ دَرَجَاتٍ لِّيَتَّخِذَ بَعْضُهُم بَعْضًا سُخْرِيًّا ۗ وَرَحْمَتُ رَبِّكَ خَيْرٌ مِّمَّا يَجْمَعُونَ
وَلَوْلَا أَن يَكُونَ النَّاسُ أُمَّةً وَاحِدَةً لَّجَعَلْنَا لِمَن يَكْفُرُ بِالرَّحْمَٰنِ لِبُيُوتِهِمْ سُقُفًا مِّن فِضَّةٍ وَمَعَارِجَ عَلَيْهَا يَظْهَرُونَ
وَلِبُيُوتِهِمْ أَبْوَابًا وَسُرُرًا عَلَيْهَا يَتَّكِئُونَ
وَزُخْرُفًا ۚ وَإِن كُلُّ ذَٰلِكَ لَمَّا مَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۚ وَالْآخِرَةُ عِندَ رَبِّكَ لِلْمُتَّقِينَ

और जब इब्राहीम ने अपने बाप और अपनी क़ौम से फ़रमाया मैं बेज़ार हूँ तुम्हारे मअबूदों से {26} सिवा उसके जिसने मुझे पैदा किया कि ज़रूर वह बहुत जल्द मुझे राह देगा {27} और उसे(1)
(1) यानी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने उस तौहीदी कलिमें को जो फ़रमाया था कि मैं बेज़ार हूँ तुम्हारे मअबूदों से सिवाय उसके जिसने मुझे पैदा किया.

अपनी नस्ल में बाक़ी कलाम रखा(2)
(2)  तो आपकी औलाद में एक अल्लाह को मानने वाले तौहीद के दावेदार हमेशा रहेंगे.

कि कहीं वो बाज़ आएं(3) {28}
(3) शिर्क से और ये सच्चा दीन क़ुबूल करें. यहाँ हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का ज़िक्र फ़रमाने में चेतावनी है कि ऐ मक्का वालो अगर तुम्हें अपने बाप दादा का अनुकरण करना ही है तो तुम्हारे बाप दादा में जो सब से बेहतर हैं हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम, उनका अनुकरण करो और शिर्क छोड़ दो और यह भी देखो कि उन्हों ने अपने बाप और अपनी क़ौम को सीधी राह पर नहीं पाया तो उनसे बेज़ारी का ऐलान फ़रमा दिया. इससे मालूम  हुआ कि जो बाप दादा सीधी राह पर हों, सच्चा दीन रखते हों, उनका अनुकरण किया जाए और जो बातिल पर हों, गुमराही में हों उनके तरीक़े से बेज़ारी का इज़हार किया जाए.

बल्कि मैं ने उन्हें (4)
(4) यानी मक्का के काफ़िरों को.

और उनके बाप दादा को दुनिया के फ़ायदे दिये  (5)
(5) लम्बी उम्रें अता फ़रमाई और उनके कुफ़्र के कारण उनपर अज़ाब उतारने में जल्दी न की.

यहाँ तक कि उनके पास हक़(6)
(6) यानी क़ुरआन शरीफ़.

और साफ़ बताने वाला रसूल तशरीफ़ लाया (7){29}
(7) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम सबसे ज़्यादा रौशन आयतों और चमत्कारों के साथ तशरीफ़ लाए और अपनी शरीअत के अहकाम खुले तौर पर बयान फ़रमा दिये और हमारे इस इनाम का हक़ यह था कि उस रसूले मुकर्रम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की बात मानते लेकिन उन्होंने ऐसा न किया.

और जब उनके पास हक़ (सत्य) आया बोले यह जादू है और हम इसके इन्कारी हैं {30} और बोले क्यों न उतारा गया ये क़ुरआन इन दो शहरों (8)
(8) मक्कए मुकर्रमा और ताइफ़.

के किसी बड़े आदमी पर (9){31}
(9) जो मालदार जत्थेदार हो, जैसे कि मक्कए मुकर्रमा में वलदर बिन मुग़ीरह और ताइफ़ में अर्वा बिन मसऊद सक़फ़ी. अल्लाह तआला उनकी इस बात का रद फ़रमाता है.

क्या तुम्हारे रब की रहमत वो बाँटते हैं, (10)
(10) यानी क्या नबुव्वत की कुंजियाँ उनके हाथ में हैं कि जिसको चाहे दे दें. कितनी जिहालत वाली बात कहते हैं.

हमने उनमें उनकी ज़िन्दगी का सामान दुनिया की ज़िन्दगी में बाँटा (11)
(11) तो किसी को मालदार किया. किसी को फ़कीर, किसी को ताक़तवर किया, किसी को कमज़ोर. मख़लूक़ में कोई हमारे हुक्म को बदलने और हमारे लिखे से बाहर निकलने की ताक़त नहीं रखता. तो जब दुनिया जैसी साधारण चीज़ में किसी को ऐतिराज़ की ताक़त नहीं तो नबुव्वत जैसी ऊंची उपाधि में किसी को दम मारने का क्या मौक़ा है? हम जिसे चाहते हैं ग़नी करते हैं, जिसे चाहते हैं ख़ादिम बनाते हैं. जिसे चाहते हैं नबी बनाते हैं जिसे चाहते हैं उम्मती बनाते हैं. अमीर क्या कोई अपनी योग्यता से हो जाता है? हमारी अता है जिसे जो चाहे करें.

और उनमें एक दूसरे पर दर्जो बलन्दी दी(12)
(12) क़ुव्वत व दौलत वग़ैरह दुनियावी नेअमत में.

कि उनमें एक दूसरे की हंसी बनाए,(13)
(13) यानी मालदार फ़क़ीर की हंसी करे, यह क़रतबी की तफ़सीर के मुताबिक है और दूसरे मुफ़स्सिरों ने हंसी बनाने के मानी में नहीं लिया है बल्कि अअमाल व अशग़ाल के मुसख़्ख़र बनाने के मानी में लिया है. उस सूरत में मानी ये होंगे कि हमने दौलत और माल में लोगों को अलग किया ताकि एक दूसरे से माल के ज़रिये ख़िदमत लें और दुनिया का निज़ाम मज़बूत हो. ग़रीब को रोज़ी का साधन हाथ आए और मालदार को काम करने वाले उपलब्ध हों. तो इसपर कौन ऐतिराज़ कर सकता है कि इस आदमी को क्यों मालदार किया और उसको फ़क़ीर. और जब दुनिया के कामों में कोई व्यक्ति दम नहीं मार सकता तो नबुव्वत जैसे ऊंचे रूत्बे में किसी को ज़बान खोलने की क्या ताक़त और ऐतिराज़ का क्या हक़. उसकी मर्ज़ी जिसको चाहे सरफ़राज़ फ़रमाए.

और तुम्हारे रब की रहमत(14)
(14) यानी जन्नत.

उनकी जमा जथा से बेहतर (15) {32}
(15) यानी उस माल से बेहतर है जिसको दुनिया में काफ़िर जमा कर के रखते हैं.

और अगर यह न होता कि सब लोग एक दीन पर हो जाएं (16)
(16) यानी अगर इसका लिहाज़ न होता कि काफ़िरों को ख़ुशहाली में देखकर सब लोग काफ़िर हो जाएंगे.

तो हम ज़रूर रहमान का इन्कार करने वालों के लिये चांदी की छतें और सीढ़ियाँ बनाते जिनपर चढ़ते {33} और उनके घरो कें लिये चांदी के दरवाज़ें और चांदी के तख़्त जिन पर तकिया लगाते {34} और तरह तरह की आरायश, (17)
(17) क्योंकि दुनिया और उसके सामान की हमारे नज़्दीक कुछ क़ीमत नहीं. वह पतनशील है, जल्दी ख़त्म हो जाने वाला है.

और यह जो कुछ है जीती दुनिया ही का सामान है, और आख़िरत तुम्हारे रब के पास परहेज़गारों के लिये है(18) {35}
(18) जिन्हें दुनिया की चाहत नहीं. तिरमिज़ी की हदीस में है कि अगर अल्लाह तआला के नज़्दीक दुनिया मच्छर के घर के बराबर भी क़ीमत रखती तो काफ़िर को उससे एक घूंट पानी न देता, दूसरी हदीस में है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम नियाज़मन्दों की एक जमाअत के साथ तशरीफ़ ले जाते थे. रास्ते में एक मुर्दा बकरी देखी फ़रमाया देखते हो इसके मालिकों ने इसे बहुत बेक़दरी से फ़ैंक दिया. दुनिया की अल्लाह तआला के नज़्दीक इतनी भी क़दर नहीं जितनी बकरी वालों के नज़्दीक इस मरी बकरी की हो. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि जब अल्लाह तआला अपने किसी बन्दे पर मेहरबानी फ़रमाता है तो उसे दुनिया से ऐसा बचाता है जैसा तुम अपने बीमार को पानी से बचाओ. हदीस में है दुनिया मूमिन के लिये क़ैद ख़ाना और काफ़िर के लिये जन्नत है.

43 सूरए ज़ुख़रूफ़  – चौथा रूकू

43 सूरए ज़ुख़रूफ़  – चौथा रूकू

وَمَن يَعْشُ عَن ذِكْرِ الرَّحْمَٰنِ نُقَيِّضْ لَهُ شَيْطَانًا فَهُوَ لَهُ قَرِينٌ
وَإِنَّهُمْ لَيَصُدُّونَهُمْ عَنِ السَّبِيلِ وَيَحْسَبُونَ أَنَّهُم مُّهْتَدُونَ
حَتَّىٰ إِذَا جَاءَنَا قَالَ يَا لَيْتَ بَيْنِي وَبَيْنَكَ بُعْدَ الْمَشْرِقَيْنِ فَبِئْسَ الْقَرِينُ
وَلَن يَنفَعَكُمُ الْيَوْمَ إِذ ظَّلَمْتُمْ أَنَّكُمْ فِي الْعَذَابِ مُشْتَرِكُونَ
أَفَأَنتَ تُسْمِعُ الصُّمَّ أَوْ تَهْدِي الْعُمْيَ وَمَن كَانَ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ
فَإِمَّا نَذْهَبَنَّ بِكَ فَإِنَّا مِنْهُم مُّنتَقِمُونَ
أَوْ نُرِيَنَّكَ الَّذِي وَعَدْنَاهُمْ فَإِنَّا عَلَيْهِم مُّقْتَدِرُونَ
فَاسْتَمْسِكْ بِالَّذِي أُوحِيَ إِلَيْكَ ۖ إِنَّكَ عَلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ
وَإِنَّهُ لَذِكْرٌ لَّكَ وَلِقَوْمِكَ ۖ وَسَوْفَ تُسْأَلُونَ
وَاسْأَلْ مَنْ أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ مِن رُّسُلِنَا أَجَعَلْنَا مِن دُونِ الرَّحْمَٰنِ آلِهَةً يُعْبَدُونَ

और जिसे रतौंद आए रहमान के ज़िक्र से(1)
(1) यानी क़ुरआने पाक से अन्धा बन जाए कि उसकी हिदायतों को न देखे और उनसे फ़ायदा न उठाए.

हम उस पर एक शैतान तैनात करें कि वह उसका साथी रहे {36} और बेशक वो शयातीन उनको(2)
(2) यानी अन्धा बनने वालों को.

राह से रोकते हैं और(3)
(3) वो अन्धा बनने वाले गुमराह होने के बावुजूद.

समझते यह हैं कि वो राह पर हैं {37} यहाँ तक कि जब (4)
(4) क़यामत के दिन.

काफ़िर हमारे पास आएगा अपने शैतान से कहेगा हाय किसी तरह मुझ में तुझ में पूरब पश्चिम का फ़ासला होता तू क्या ही बुरा साथी है {38} और हरगिज़ तुम्हारा उस  (5)
(5) हसरत और शर्मिन्दगी.

से भला न होगा आज जब कि(6)
(6) ज़ाहिर और साबित हो गया कि दुनिया में शिर्क करके.

तुमने ज़ुल्म किया कि तुम सब अज़ाब में शरीक हो {39} तो क्या तुम बहरों को सुनाओगे(7)
(7) जो क़ुबूल करने वाले कान नहीं रखते.

या अंधों को राह दिखाओगे(8)
(8) जो सच्चे देखने वाली आँख से मेहरूम हैं.

और उन्हें जो खुली गुमराही में हैं(9){40}
(9) जिनके नसीब में ईमान नहीं.

तो अगर हम तुम्हें ले जाएं(10)
(10) यानी उन्हें अज़ाब करने से पहले तुम्हें वफ़ात दें.

तो उनसे हम ज़रूर बदला लेंगे(11){41}
(11) आपके बाद.

या तुम्हें दिखा दें(12)
(12)  तुम्हारी ज़िन्दगी में उनपर अपना वह अज़ाब.

जिसका उन्हें हमने वादा दिया हैं तो हम उनपर बड़ी क़ुदरत वाले हैं {42} तो मज़बूत थामे रहो उसे जो तुम्हारी तरफ़ वही की गई(13)
(13)हमारी किताब क़ुरआने मजीद.

बेशक तुम सीधी राह पर हो {43} और बेशक वह (14)
(14) क़ुरआन शरीफ़

शरफ़ (बुज़ुर्गी) है तुम्हारे लिये (15)
(15)कि अल्लाह तआला ने तुम्हें नबुव्वत व हिकमत अता की.

और तुम्हारी क़ौम के लिये(16)
(16) यानी उम्मत के लिये, कि उन्हें उससे हिदायत फ़रमाई.

और बहुत जल्द तुम से पूछा जाएगा (17){44}
(17)क़यामत के दिन कि तुम ने क़ुरआन का क्या हक़ अदा किया. उसकी क्या ताज़ीम की. उस नेअमत का क्या शुक्र बजा लाए.

और उनसे पूछो जो हमने तुमसे पहले रसूल भेजे क्या हमने रहमान के सिवा कुछ और ख़ुदा ठहराए जिनको पूजा हो (18){45}
(18) रसूलों से सवाल करने के मानी ये हैं कि उनके दीनों और मिल्लतों को तलाश करो, क्या कहीं भी किसी नबी की उम्मत में बुत परस्ती रवा रखी गई है. और अकसर मुफ़स्सिरों ने इसके मानी ये बयान किये हैं कि किताब वालों के मूमिनों से पूछों कि क्या कभी किसी नबी ने अल्लाह के अलावा किसी ग़ैर की इबादत की इजाज़त दी, ताकि मुश्रिकों पर साबित हो जाए कि मख़लूक़ परस्ती न किसी रसूल ने बताई न किसी किताब में आई. यह भी एक रिवायत है कि मेअराज की रात में सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने सारे नबियों की बैतुल मक़दिस में इमामत फ़रमाई. जब हुज़ूर नमाज़ से फ़ारिग़ हुए, जिब्रीले अमीन ने अर्ज़ किया कि ऐ सरवरे अकरम, अपने से पहले नबियों से पूछ लीजिये कि क्या अल्लाह तआला ने अपने सिवा किसी और की इबादत की इजाज़त दी. हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि इस सवाल की कुछ हाजत नहीं, यानी इसमें कोई शक हीनहीं कि तमाम नबी तौहीद की दावत देते आए, सब ने मख़लूक़ परस्ती से मना फ़रमाया है.

43 सूरए ज़ुख़रूफ़  – पांचवाँ रूकू

43 सूरए ज़ुख़रूफ़  – पांचवाँ रूकू

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مُوسَىٰ بِآيَاتِنَا إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَمَلَئِهِ فَقَالَ إِنِّي رَسُولُ رَبِّ الْعَالَمِينَ
فَلَمَّا جَاءَهُم بِآيَاتِنَا إِذَا هُم مِّنْهَا يَضْحَكُونَ
وَمَا نُرِيهِم مِّنْ آيَةٍ إِلَّا هِيَ أَكْبَرُ مِنْ أُخْتِهَا ۖ وَأَخَذْنَاهُم بِالْعَذَابِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ
وَقَالُوا يَا أَيُّهَ السَّاحِرُ ادْعُ لَنَا رَبَّكَ بِمَا عَهِدَ عِندَكَ إِنَّنَا لَمُهْتَدُونَ
فَلَمَّا كَشَفْنَا عَنْهُمُ الْعَذَابَ إِذَا هُمْ يَنكُثُونَ
وَنَادَىٰ فِرْعَوْنُ فِي قَوْمِهِ قَالَ يَا قَوْمِ أَلَيْسَ لِي مُلْكُ مِصْرَ وَهَٰذِهِ الْأَنْهَارُ تَجْرِي مِن تَحْتِي ۖ أَفَلَا تُبْصِرُونَ
أَمْ أَنَا خَيْرٌ مِّنْ هَٰذَا الَّذِي هُوَ مَهِينٌ وَلَا يَكَادُ يُبِينُ
فَلَوْلَا أُلْقِيَ عَلَيْهِ أَسْوِرَةٌ مِّن ذَهَبٍ أَوْ جَاءَ مَعَهُ الْمَلَائِكَةُ مُقْتَرِنِينَ
فَاسْتَخَفَّ قَوْمَهُ فَأَطَاعُوهُ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ
فَلَمَّا آسَفُونَا انتَقَمْنَا مِنْهُمْ فَأَغْرَقْنَاهُمْ أَجْمَعِينَ
فَجَعَلْنَاهُمْ سَلَفًا وَمَثَلًا لِّلْآخِرِينَ

और बेशक हमने मूसा को अपनी निशानयों के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों की तरफ़ भेजा तो उसने फ़रमाया बेशक मैं उसका रसूल हूँ जो सारे जगत का मालिक है {46} फिर जब वह उनके पास हमारी निशानियाँ लाया(1)
(1) जो मूसा अलैहिस्सलाम की रिसालत को प्रमाणित करती थीं.

जभी वो उनपर हंसने लगे(2){47}
(2) और उनको जादू बताने लगे.

और हम उन्हें जो निशानी दिखाते वह पहले से बड़ी होती(3)
(3) यानी हर एक निशानी अपनी विशेषता में दूसरी से बढ़ी चढ़ी थी. मुराद यह है कि एक से एक उत्तम थी.

और हमने उन्हें मुसीबत में गिरफ़्तार किया कि वो बाज़ आएं (4){48}
(4) कुफ़्र से ईमान की तरफ़ और यह अज़ाब दुष्काल और तुफ़ान और टिड्डी वग़ैरह से किये गए. ये सब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की निशानियाँ थीं जो उनके नबी होने की दलील थीं और उनमें एक से एक उत्तम थी.

और बोले (5)
(5) अज़ाब देखकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से.

कि ऐ जादूगर (6)
(6) ये कलिमा उनकी बोली और मुहावरे से बहुत आदर और सम्मान का था. वो आलिम व माहिर और हाज़िक़े कामिल को जादूगर कहा करते थे और इसका कारण यह था कि उनकी नज़र में जादू की बहुत अज़मत थी और वो इसको प्रशंसा की बात समझते थे. इसलिये उन्होंने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को इल्तिजा के समय इस कलिमे से पुकारा, कहा.

हमारे लिये अपने रब से दुआ कर उस एहद के कारण जो उसका तेरे पास है(7)
(7) वह एहद या तो यह है कि आपकी दुआ क़ुबूल है या नबुव्वत या ईमान लाने वालों और हिदायत क़ुबूल करने वालों पर से अज़ाब उठा लेना.

बेशक हम हिदायत पर आएंगे(8){49}
(8) ईमान लाएंगे, चुनांन्वे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने दुआ की और उनपर से अज़ाब उठा लिया गया.

फिर जब हमने उनसे वह मुसीबत टाल दी जभी वो एहद तोड़ गए(9){50}
(9) ईमान न लाए, कुफ़्र पर अड़े रहे.

और फ़िरऔन अपनी क़ौम में(10)
(10) बहुत गर्व से.

पुकारा कि ऐ मेरी क़ौम क्या मेरे लिये मिस्र की सल्तनत नहीं और ये नहरें कि मेरे नीचे बहती हैं (11)
(11) ये नील नदी से निकली हुई बड़ी बड़ी नेहरें थी जो फ़िरऔन के महल के नीचे जारी थीं.

तो क्या तुम देखते नहीं(12) {51}
(12) मेरी महानता और क़ुव्वत और शानों शौकत. अल्लाह तआला की अजीब शान है. ख़लीफ़ा रशीद ने जब यह आयत पढ़ी और मिस्त्र की हुकूमत पर फ़िरऔन का घमण्ड देखा तो कहा कि मैं वह  मिस्त्र अपने मामूली ग़ुलाम को दे दूंगा. चुनांन्वे उन्होंने मिस्त्र ख़सीब को दे दिया जो उनका ग़ुलाम था और वुज़ू कराने की ख़िदमत पर था.

या मैं बेहतर हूँ (13)
(13) यानी क्या तुम्हारे नज़्दीक साबित हो गया और तुमने समझ लिया कि मै बेहतर हूँ.

उससे कि ज़लील है(14)
(14) यह उस बेईमान घमण्डी ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की शान में कहा.

और बात साफ़ करता मालूम नहीं होता(15) {52}
(15) ज़बान में गिरह होने की वजह से जो बचपन में आग मुंह मे रखने के कारण पड़ गई थी और यह उस मलऊन ने झूठ कहा क्योंकि आपकी दुआ से अल्लाह तआला ने ज़बान की वह गिरह ज़ायल कर दी थी लेकिन फ़िरऔनी पहले ही ख़याल में थे. आगे फिर उसी फ़िरऔन का कलाम ज़िक्र फ़रमाया जाता है.

तो उस पर क्यों न डाले गए सोने के कंगन(16)
(16) यानी अगर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम सच्चे है और अल्लाह तआला ने उनको सरदार बनाया है तो उन्हें सोने का कंगन क्यों नहीं पहनाया. यह बात उसने अपने ज़माने के दस्तूर के अनुसार कही कि उस ज़माने में जिस किसी को सरदार बनाया जाता था उसे सोने के कंगन और सोने का तौक़ पहनाया जाता था.

या उसके साथ फ़रिश्ते आते कि उसके पास रहते (17){53}
(17) और उसकी सच्चाई की गवाही देते.

फिर उसने अपनी क़ौम को कम अक़्ल कर लिया (18)
(18) उन जाहिली की अक़्ल भ्रष्ट कर दी और उन्हें बहला फुसला लिया.

तो वो उसके कहने पर चले (19)
(19) और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को झुटलाने लगे.

बेशक वो बेहुक्म लोग थे {54} फिर जब उन्होंने वह किया जिसपर हमारा ग़ज़ब (प्रकोप) उनपर आया हमने उनसे बदला लिया तो हमने उन सबको डुबो दिया {55} उन्हें हमने कर दिया अगली दास्तान और कहावत पिछलों के लिये(20) {56}
(20) कि बाद वाले उनके हाल से नसीहत और इब्रत हासिल करें.

43 सूरए ज़ुख़रूफ़  – छटा रूकू

43 सूरए ज़ुख़रूफ़  – छटा रूकू

۞ وَلَمَّا ضُرِبَ ابْنُ مَرْيَمَ مَثَلًا إِذَا قَوْمُكَ مِنْهُ يَصِدُّونَ
وَقَالُوا أَآلِهَتُنَا خَيْرٌ أَمْ هُوَ ۚ مَا ضَرَبُوهُ لَكَ إِلَّا جَدَلًا ۚ بَلْ هُمْ قَوْمٌ خَصِمُونَ
إِنْ هُوَ إِلَّا عَبْدٌ أَنْعَمْنَا عَلَيْهِ وَجَعَلْنَاهُ مَثَلًا لِّبَنِي إِسْرَائِيلَ
وَلَوْ نَشَاءُ لَجَعَلْنَا مِنكُم مَّلَائِكَةً فِي الْأَرْضِ يَخْلُفُونَ
وَإِنَّهُ لَعِلْمٌ لِّلسَّاعَةِ فَلَا تَمْتَرُنَّ بِهَا وَاتَّبِعُونِ ۚ هَٰذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيمٌ
وَلَا يَصُدَّنَّكُمُ الشَّيْطَانُ ۖ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِينٌ
وَلَمَّا جَاءَ عِيسَىٰ بِالْبَيِّنَاتِ قَالَ قَدْ جِئْتُكُم بِالْحِكْمَةِ وَلِأُبَيِّنَ لَكُم بَعْضَ الَّذِي تَخْتَلِفُونَ فِيهِ ۖ فَاتَّقُوا اللَّهَ وَأَطِيعُونِ
إِنَّ اللَّهَ هُوَ رَبِّي وَرَبُّكُمْ فَاعْبُدُوهُ ۚ هَٰذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيمٌ
فَاخْتَلَفَ الْأَحْزَابُ مِن بَيْنِهِمْ ۖ فَوَيْلٌ لِّلَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْ عَذَابِ يَوْمٍ أَلِيمٍ
هَلْ يَنظُرُونَ إِلَّا السَّاعَةَ أَن تَأْتِيَهُم بَغْتَةً وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ
الْأَخِلَّاءُ يَوْمَئِذٍ بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ إِلَّا الْمُتَّقِينَ

और जब मरयम के बेटे की मिसाल बयान की जाए जभी तुम्हारी क़ौम उससे हंसने लगते हैं(1){57}
(1) जब सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने क़ुरैश के सामने यह आयत “वमा तअबुदूना मिन दूनिल्लाहे हसबो जहन्नमा” पढ़ी जिसके मानी ये हैं कि ऐ मुश्रिको, तुम और जो चीज़ अल्लाह के सिवा तुम पूजते हो सब जहन्नम का ईधन है, यह सुनकर मुश्रिकों को बहुत ग़ुस्सा आया और इब्ने ज़ुबअरी कहने लगा या मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) क्या यह ख़ास हमारे और हमारे मअबूदों ही के लिये है या हर उम्मत और गिरोह के लिये ? सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि यह तुम्हारे और तुम्हारे मअबूदों के लिये भी है और सब उम्मतों के लिये भी. इस पर उसने कहा कि आपके नज़्दीक ईसा बिन मरयम नबी हैं और आप उनकी और उनकी वालिदा की तारीफ़ करते हैं और आपको मालूम है कि ईसाई इन दोनों को पूजते हैं और हज़रत उज़ैर और फ़रिश्ते भी पूजे जाते हैं यानी यहूदी वग़ैरह उनको पूजते हैं तो अगर ये हज़रात (मआज़अल्लाह) जहन्नम में हों तो हम राज़ी हैं कि हम और हमारे मअबूद भी उनके साथ हों और यह कह कर काफ़िर ख़ूब हंसे.  इस पर अल्लाह तआला ने यह आयत उतारी “इन्नल लज़ीना सबक़त लहुम मिन्नल हुस्ना उलाइका अन्हा मुब्अदून” यानी बेशक वो जिनके लिये हमारा वादा भलाई का हो चुका वो जहन्नम से दूर रखे गए हैं. (सूरए अंबिया, आयत 101) और यह आयत उतरी “व लम्मा दुरिबबनो मरयमा मसलन इज़ा क़ौमुका मिन्हो यसिद्दून” यानी जब इबने मरयम की मिसाल बयान की जाए जभी तुम्हारी क़ौम (के लोग) उससे हंसने लगते हैं. (सूरए ज़ुख़रूफ़, आयत 57) जिसका मतलब यह है कि जब इब्ने ज़ुबअरी ने अपने मअबूदों के लिये हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की मिसाल बयान की और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से झगड़े कि ईसाई उन्हें पूजते हैं तो क़ुरैश उसकी इस बात पर हंसने लगे.

और कहते हैं क्या हमारे मअबूद बेहतर हैं या वो (2)
(2) यानी हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम, मतलब यह था कि आपके नज़्दीक हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम बेहतर है तो अगर (मआज़ल्लाह) वह जहन्नम में हुए तो हमारे मअबूद यानी बुत भी हुआ करें कुछ पर्वाह नहीं. इस पर अल्लाह तआला फ़रमाता है.

उन्होंने तुम से यह न कही मगर नाहक़ झगड़े को(3)
(3) यह जानते हुए भी कि वो जो कुछ कह रहे हैं बातिल है और आयत “इन्नकुम वमा तअबुदूना मिन दूनिल्लाहे” से सिर्फ बुत मुराद हैं हज़रत ईसा व हज़रत उज़ैर और फ़रिश्ते कोई मुराद नहीं लिये जा सकते. इब्ने ज़ुबअरी अरब था ज़बान का जानने वाला था यह उसको ख़ूब मालूम था कि “मा-तअबुदना” मैं जो “मा” है उसके मानी चीज़ के हैं इससे बेज़ान बेअक़ल मुराद होते हैं लेकिन इसके बावुजूद उसका अरब की ज़बान के उसूल से जाहिल बनकर हज़रत ईसा और हज़रत उज़ैर और फ़रिश्तों को उसमें दाख़िल करना कट हुज्जती और अज्ञानता है.

बल्कि वो हैं झगड़ालू लोग  (4) {58}
(4) बातिल के दरपै होने वाले. अब हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की निस्बत इरशाद फ़रमाया जाता है.

वह तो नहीं मगर एक बन्दा जिस पर हमने एहसान फ़रमाया (5)
(5) नबुव्वत अता फ़रमा कर.

और उसे हमने बनी इस्राईल के लिये अजीब नमूना बनाया(6) {59}
(6) अपनी क़ुदरत का कि बिना बाप के पैदा किया.

और अगर हम चाहते तो (7)
(7) ऐ मक्का वालों हम तुम्हें हलाक कर देते और —

ज़मीन में तुम्हारे बदले फ़रिश्ते बसाते(8){60}
(8) जो हमारी इबादत और फ़रमाँबरदारी करते.

और बेशक ईसा क़यामत की ख़बर है(9)
(9) यानी हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का आसमान से उतरना क़यामत की निशानियों में से है.

तो हरगिज़ क़यामत में शक न करना और मेरे पैरो (अनुयायी) होना (10)
(10) यानी मेरी हिदायत व शरीअत का पालन करना.

यह सीधी राह है {61} और हरगिज़ शैतान तुम्हें न रोक दे(11)
(11) शरीअत के पालन या क़यामत के यक़ीन या दीने इलाही पर क़ायम रहने से.

बेशक वह तुम्हारा खुला दुश्मन है {62} और जब ईसा रौशन निशानियाँ (12)
(12) यानी चमत्कार.

लाया उसने फ़रमाया मैं तुम्हारे पास हिकमत (बोध) लेकर आया(13)
(13) यानी नबुव्वत और इन्जील के आदेश.

और इस लिये मैं तुम से बयान कर दूं कुछ वो बातें जिन में तुम इख़्तिलाफ़ रखते हो(14)
(14) तौरात के आदेशों में से.

तो अल्लाह से डरो और मेरा हुक्म मानो {63} बेशक अल्लाह मेरा रब और तुम्हारा रब तो उसे पूजो, यह सीधी राह है (15) {64}
(15) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का कलामे मुबारक पूरा हो चुका. आगे ईसाईयों के शिर्को का बयान किया जाता है.

फिर वो गिरोह आपस में मुख़्तलिफ़ हो गए(16)
(16) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बाद उनमें से किसी ने कहा कि ईसा ख़ुदा थे किसी ने कहा कि ख़ुदा के बेटे, किसी ने कहा तीन में के तीसरे. ग़रज़ ईसाई फ़िर्क़ों में बट गए यअक़ूबी, नस्तूरी, मलकानी, शमऊनी.

तो ज़ालिमों की ख़राबी है(17)
(17) जिन्हों ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में कुफ़्र की बातें कहीं.

एक दर्दनाक दिन के अज़ाब से (18) {65}
(18) यानी क़यामत के दिन के.

काहे के इन्तिज़ार में हैं मगर क़यामत के कि उनपर अचानक आ जाए और उन्हें ख़बर न हो {66} गहरे दोस्त उस दिन एक दूसरे के दुश्मन होंगे मगर परहेज़गार (19) {67}
(19) यानी दीनी दोस्ती और वह महब्बत जो अल्लाह तआला के लिये है, बाक़ी रहेगी. हज़रत अली मुर्तजा़ रदियल्लाहो अन्हो से इस आयत की तफ़सीर में रिवायत है आपने फ़रमाया दो दोस्त मूमिन और दो दोस्त काफ़िर, मूमिन दोस्तों में एक मर जाता है तो अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ करता है या रब फ़लाँ मुझे तेरी और तेरे रसूल की फ़रमाँबरदारी का और नेकी करने का हुक्म देता था और मुझे बुराई से रोकता था और ख़बर देता था कि मुझे तेरे हुज़ूर हाज़िर होना है. यारब उसको मेरे बाद गुमराह न कर और उसको हिदायत दे जैसी मेरी हिदायत फ़रमाई और उसका सम्मान कर जैसा मेरा सम्मान फ़रमाया. जब उसका मूकिन दोस्त मर जाता है तो अल्लाह तआला दोनों को जमा करता है और फ़रमाता है कि तुम में हर एक दूसरे की तारीफ़ करे तो हर एक कहता है कि यह अच्छा भाई है अच्छा दोस्त है अच्छा साथी है. और दो काफ़िर दोस्तों में से जब एक मर जाता है तो दुआ करता है यारब फ़लाँ मुझे तेरी और तेरे रसूल की फ़रमाँबरदारी से मना करता था और बुराई का हुक्म देता था नेकी से रोकता था और ख़बर देता था कि मुझे तेरे समक्ष हाज़िर नहीं होना है तो अल्लाह तआला फ़रमाता है कि तुम में से हर एक दूसरे की तारीफ़ करे तो उनमें से एक दूसरे को कहता है बुरा भाई बुरा दोस्त बुरा साथी.

43 सूरए ज़ुख़रूफ़  – सातवाँ रूकू

43 सूरए ज़ुख़रूफ़  – सातवाँ रूकू

يَا عِبَادِ لَا خَوْفٌ عَلَيْكُمُ الْيَوْمَ وَلَا أَنتُمْ تَحْزَنُونَ
الَّذِينَ آمَنُوا بِآيَاتِنَا وَكَانُوا مُسْلِمِينَ
ادْخُلُوا الْجَنَّةَ أَنتُمْ وَأَزْوَاجُكُمْ تُحْبَرُونَ
يُطَافُ عَلَيْهِم بِصِحَافٍ مِّن ذَهَبٍ وَأَكْوَابٍ ۖ وَفِيهَا مَا تَشْتَهِيهِ الْأَنفُسُ وَتَلَذُّ الْأَعْيُنُ ۖ وَأَنتُمْ فِيهَا خَالِدُونَ
وَتِلْكَ الْجَنَّةُ الَّتِي أُورِثْتُمُوهَا بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
لَكُمْ فِيهَا فَاكِهَةٌ كَثِيرَةٌ مِّنْهَا تَأْكُلُونَ
إِنَّ الْمُجْرِمِينَ فِي عَذَابِ جَهَنَّمَ خَالِدُونَ
لَا يُفَتَّرُ عَنْهُمْ وَهُمْ فِيهِ مُبْلِسُونَ
وَمَا ظَلَمْنَاهُمْ وَلَٰكِن كَانُوا هُمُ الظَّالِمِينَ
وَنَادَوْا يَا مَالِكُ لِيَقْضِ عَلَيْنَا رَبُّكَ ۖ قَالَ إِنَّكُم مَّاكِثُونَ
لَقَدْ جِئْنَاكُم بِالْحَقِّ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَكُمْ لِلْحَقِّ كَارِهُونَ
أَمْ أَبْرَمُوا أَمْرًا فَإِنَّا مُبْرِمُونَ
أَمْ يَحْسَبُونَ أَنَّا لَا نَسْمَعُ سِرَّهُمْ وَنَجْوَاهُم ۚ بَلَىٰ وَرُسُلُنَا لَدَيْهِمْ يَكْتُبُونَ
قُلْ إِن كَانَ لِلرَّحْمَٰنِ وَلَدٌ فَأَنَا أَوَّلُ الْعَابِدِينَ
سُبْحَانَ رَبِّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ رَبِّ الْعَرْشِ عَمَّا يَصِفُونَ
فَذَرْهُمْ يَخُوضُوا وَيَلْعَبُوا حَتَّىٰ يُلَاقُوا يَوْمَهُمُ الَّذِي يُوعَدُونَ
وَهُوَ الَّذِي فِي السَّمَاءِ إِلَٰهٌ وَفِي الْأَرْضِ إِلَٰهٌ ۚ وَهُوَ الْحَكِيمُ الْعَلِيمُ
وَتَبَارَكَ الَّذِي لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا وَعِندَهُ عِلْمُ السَّاعَةِ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ
وَلَا يَمْلِكُ الَّذِينَ يَدْعُونَ مِن دُونِهِ الشَّفَاعَةَ إِلَّا مَن شَهِدَ بِالْحَقِّ وَهُمْ يَعْلَمُونَ
وَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّنْ خَلَقَهُمْ لَيَقُولُنَّ اللَّهُ ۖ فَأَنَّىٰ يُؤْفَكُونَ
وَقِيلِهِ يَا رَبِّ إِنَّ هَٰؤُلَاءِ قَوْمٌ لَّا يُؤْمِنُونَ
فَاصْفَحْ عَنْهُمْ وَقُلْ سَلَامٌ ۚ فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ

उनसे फ़रमाया जाएगा ऐ मेरे बन्दो आज न तुम पर ख़ौफ़ न तुम को ग़म हो {68} वो जो हमारी आयतों पर ईमान लाए और मुसलमान थे {69} दाख़िल हो जन्नत में तुम और तुम्हारी बीबियाँ  और तुम्हारी ख़ातिरें होतीं (1) {70}
(1) यानी जन्नत में तुम्हारा सम्मान, नेअमतें दी जाएंगी, ऐसे ख़ुश किये जाओगे कि तुम्हारे चेहरों पर ख़ूशी के आसार नमूदार होंगे.

उन पर दौरा होगा सोने के प्यालों और जामों का और उसमें जो जी चाहे और जिससे आँख को लज़्ज़त पहुंचे(2)
(2) तरह तरह की नेअमतें.

और तुम उसमें हमेशा रहोगे {71} और यह है वह जन्नत जिसके तुम वारिस किये गए अपने कर्मों से {72} तुम्हारे लिये इसमें बहुत मेवे हैं कि उनमें से खाओ (3) {73}
(3) जन्नती दरख़्त फलदार सदा बहार हैं उनकी ताज़गी और ज़ीनत में फ़र्क़ नहीं आता. हदीस शरीफ़ में है कि अगर कोई उनसे एक फल लेगा तो दरख़्त में उसकी जगह दो फल निकल आएंगे.

बेशक मुजरिम  (4)
(4) यानी काफ़िर.

जहन्नम के अज़ाब में हमेशा रहने वाले हैं {74} वह कभी उनपर से हलका न पड़ेगा और वो उसमें बेआस रहेंगे  (5){75}
(5) रहमत की उम्मीद भी न होगी.

और हमने उनपर कुछ ज़ुल्म न किया हाँ वो ख़ुद ही ज़ालिम थे(6) {76}
(6) कि सरकशी और नाफ़रमानी करके इस हाल को पहुंचे.

और वो पुकारेंगे(7)
(7) जहन्नम के दारोग़ा को कह.

ऐ मालिक तेरा रब हमें तमाम कर चुके(8)
(8) यानी मौत दे दे. मालिक से प्रार्थना करेंगे कि वह अल्लाह तबारक व तआला से उनकी मौत की दुआ करे.

वह फ़रमाएगा(9)
(9) हज़ार बरस बाद.

तुम्हें तो ठहरना है (10){77}
(10) अज़ाब में हमेशा, कभी उससे रिहाई न पाओगे, न मौत से और न और किसी प्रकार. इसके बाद अल्लाह तआला मक्का वालों से ख़िताब फ़रमाता है.

बेशक हम तुम्हारे पास हक़ लाए(11)
(11) अपने रसूलों द्वारा.

मगर तुम में अक्सर को हक़ नागवार है {78} क्या उन्होंने(12)
(12) यानी मक्के के काफ़िरों ने.

अपने ख़याल में कोई काम पक्का कर लिया है(13){79}
(13) नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के साथ छल करने और धोखे से तकलीफ़ पहुंचाने का और वास्तव में ऐसा ही था कि क़ुरैश दारून-नदवा में जमा होकर हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को तकलीफ़ें देने के तरीक़े सोचते थे.

तो हम अपना काम पक्का करने वाले हैं(14)
(14) उनके इस छलकपट का बदला जिसका अन्त उनकी हलाकत है.

क्या इस घमण्ड में हैं कि हम उनकी आहिस्ता बात और उनकी मशविरत (सलाह) नहीं सुनते, हाँ क्यों नहीं(15)
(15)हम ज़रूर सुनते हैं और छुपी खुली हर बात जानते हैं. हम से कुछ भी नहीं छुप सकता.

और हमारे फ़रिश्ते उनके पास लिख रहे हैं {80} तुम फ़रमाओ फ़र्ज़ करो रहमान के कोई बच्चा होता तो सब से पहले मैं पूजता (16) {81}
(16) लेकिन उसके बच्चा नहीं है और उसके लिये औलाद असंभव है, किसी सूरत मुमकिन नहीं. नज़र बिन हारिस ने कहा था कि फ़रिश्ते ख़ुदा की बेटियाँ हैं. इसपर यह आयत उतरी तो नज़र कहने लगा देखते हो क़ुरआन में मेरी तस्दीक़ आ गई. वलीद ने कहा कि तेरी तस्दीक़ नहीं हुई बल्कि यह फ़रमाया गया है कि रहमान के बेटा नहीं है और मैं मक्का वालों में से पहला व्यक्ति हूँ जो अल्लाह के एक होने में यक़ीन रखता हूँ और उसके औलाद होने का इन्कार करता हूँ. इसके बाद अल्लाह तआला की तन्ज़ीह का बयान है.

पाकी है आसमानों और ज़मीन के रब को अर्श के रब को उन बातों से जो ये बनाते हैं(17){82}
(17) और उसके लिये औलाद क़रार देते हैं.

तो तुम उन्हें छोड़ो कि बेहूदा बातें करें और खेलें (18)
(18)यानी जिस बेहूदगी और बातिल में हैं उसी में पड़े रहें.

यहाँ तक कि अपने उस दिन को पाएं जिसका उनसे वादा है (19){83}
(19) जिसमें अज़ाब किये जाएंगे, और वह क़यामत का दिन है.

और वही आसमान वालों का ख़ुदा(20)
(20)यानी वही मअबूद है आसमान और ज़मीन में. उसी की इबादत की जाती है उसके सिवा कोई पूजनीय नहीं.

और ज़मीन वालों का ख़ुदा, और वही हिकमत (बोध) व इल्म वाला है {84} और बड़ी बरकत वाला है वह कि उसी के लिये हैं सल्तनत आसमानों और ज़मीन की और जो कुछ उनके बीच है और उसी के पास है क़यामत का इल्म, और तुम्हें उसी की तरफ़ फिरना {85} और जिनको ये अल्लाह के सिवा पूजते हैं शफ़ाअत का इख़्तियार नहीं रखते हाँ शफ़ाअत का इख़्तियार उन्हें हैं जो हक़ की गवाही दें (21)
(21) यानी अल्लाह के एक होने की.

और इल्म रखें (22){86}
(22) इसका कि अल्लाह उनका रब है. ऐसे मक़बूल बन्दे ईमानदारों की शफ़ाअत करेंगे.

और अगर तुम उनसे पूछो (23)
(23) यानी मुश्रिकों से.

कि उन्हें किसने पैदा किया तो ज़रूर कहेंगे अल्लाह ने(24)
(24) और अल्लाह तआला के जगत का पैदा करने वाला होने का इक़रार करेंगे.

तो कहाँ औंधे जाते हैं (25) {87}
(25) और इस इक़रार के बावजुद उसकी तौहीद से फिरते हैं.

मुझे रसूल(26)
(26) सैयदे आलम मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.

के इस कहने की क़सम(27)
(27) अल्लाह तआला का हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के क़ौले मुबारक की क़सम याद फ़रमाना हुज़ूर के सम्मान और हुज़ूर की दुआ और इल्तिज़ा के सम्मान का इज़हार है.

कि ऐ मेरे रब ये लोग ईमान नहीं लाते {88} तो इन से दरगुज़र करो (छोड़ दो) (28)
(28) और उन्हें छोड़ दो.

और फ़रमाओ बस सलाम है, (29)
(29) यह सलाम बेज़ारी का है इसके मानी ये है कि हम तुम्हें छोड़ते हैं और तुम से अम्न में रहना चाहते हैं.

कि आगे जान जाएंगे(30){89}
(30) अपना अन्त या अंजाम.

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