Namaz Ka Bayan

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Namaz Ka Bayan – नमाज़ का बयान

ईमान व तस्हीहे अकाइद मुताबिक़ मज़हबे ‘अहले सुन्नत व जमाअत’ के बाद नमाज़ तमाम फ़राइज़ में निहायत अहम व आज़म है। कुआन मजीद अहादीस नबीये करीम अलैहिस्सलातु वत्तस्लीम इसकी अहमियत से मालामाल हैं, जा-ब-जा इसकी ताकीद आई और इसके छोड़ने वाले पर वईद फ़रमाई यानी नमाज़ की बहुत ताकीद फरमाई गई और इसके तर्क करने पर अज़ाब की ख़बर दी गई। चन्द आयतें और हदीसें ज़िक्र की जाती हैं कि मुसलमान अपने रब तआला और प्यारे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इरशादात सुने और उसकी तौफीक से उस पर अमल करें।

Namaz Ka Bayan

तर्जमा :- यह किताब परहेज़गारों को हिदायत है जो गैब पर ईमान लाते और नमाज़ काइम रखते और हमने जो दिया उसमें से हमारी राह में खर्च करते हैं।

और फरमाता है

Namaz Ka Bayan

तर्जमा :- नमाज़ काइम करो और ज़कात दो और रुकू करने वालों के साथ नमाज़ पढ़ो यानी मुसलमानों के साथ कि रुकू हमारी ही शरीअत में है या बाजमाअत अदा करो।



और फरमाता है :

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तर्जमा :- तमाम नमाज़ों खुसूसन बीच वाली नमाज़ (अस्र) की मुहाफ़ज़त रखो और अल्लाह के हुजूर अदब से खड़े रहो।

और फरमाता है :

Namaz Ka Bayan

तर्जमा :- नमाज़ शाक है मगर खुशू करने वालों पर।

नमाज़ का मुतलकन तर्क तो सख्त हौलनाक चीज़ है। उसे कज़ा करके पढ़ने वालों को फ़रमाता है :

Namaz Ka Bayan

तर्जमा :- खराबी उन नमाजियों के लिए जो अपनी नमाज़ से बेखबर हैं वक़्त गुज़ार कर पढ़ने उठते हैं।

जहन्नम में एक वादी है जिसकी सख्ती से जहन्नम भी पनाह माँगता हैं उसका नाम वैल है कस्दन नमाज़ कज़ा करने वाले उसके मुस्तहक़ हैं।

और फ़रमाता है :

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तर्जमा :- उन के बाद कुछ नाख़लफ़ पैदा हुए जिन्होंने नमाजें ज़ाय कर दी और नफ्सानी ख्वाहिशों का इत्तेबा किया। अनकरीब उन्हें सख्त अज़ाबे तवील व शदीद से मिलना होगा।

गय्य जहन्नम में एक वादी है जिसकी गर्मी और गहराई सबसे ज्यादा है उसमें एक कुआँ है जिसका नाम हबहब है जब जहन्नम की आग बुझने पर आती है अल्लाह तआला उस कुँए को खोल देता है जिस से वह बदसतूर भड़कने लगती है। अल्लाह फ़रमाता है :

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तर्जमा :- जब बुझने पर आयेगी हम उन्हें और भड़क ज़्यादा करेंगे।



यह कुआँ बेनमाज़ियों और ज़ानियों और शराबियों और सूदखोरों और माँ बाप को ईजा देने वालों के लिए है। नमाज की अहमियत का इससे भी पता चलता है कि अल्लाह तआला ने सब अहकाम अपने हबीब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को जमीन पर भेजे और जब नमाज़ फ़र्ज़ करनी मन्जूर हुई हुजूर को अपने पास अर्शे आज़म पर बुलाकर उसे फ़र्ज़ किया और शबे असरा में तोहफा दिया।

अहादीस

हदीस न. 1 :- सही बुख़ारी व मुस्लिम में इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं इसलाम की बुनियाद पाँच चीजों पर है इस बात की शहादत देना कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा माआबूद (पूजने के काबिल) नहीं और मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम उस के ख़ास बन्दे और रसूल हैं और नमाज़ काइम करना और ज़कात देना और हज करना और माह रमज़ान का रोज़ा रखना।

हदीस न. 2 :- इमाम अहमद व इब्ने माजा रिवायत करते हैं कि हज़रत मआज रदियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सवाल किया वह अमल इरशाद हो कि मुझे जन्नत में ले जाए और जहन्नम से बचाये। फ़रमाया अल्लाह तआला की इबादत कर और उसके साथ किसी को शरीक न कर और नमाज़ काइम रख और ज़कात दे और रमज़ान का रोज़ा रख और बैतुल्लाह का हुज कर और इस हदीस में यह भी है कि इसलाम का सुतून नमाज़ है।



हदीस न. 3 :- सही मुस्लिम में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया पाँच नमाजें और जुमे से जुमे तक और रमज़ान से रमज़ान तक उन तमाम गुनाहों को मिटा देते हैं जो इन के दरमियान हों जब कि कबाएर (यानी गुनाहे कबीरा) से बचा जाए।

हदीस न. 4 :- सही हैन में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया बताओ तो किसी के दरवाजे पर नहर हो वह उस में हर रोज़ पाँच बार गुस्ल करे क्या उसके बदन पर मैल रह जाएगा। अर्ज कि न। फ़रमाया यही मिसाल पाँचों नमाजों की है कि अल्लाह तआला इनके सबब ख़ताओं को मिटा देता है।

हदीस न. 5 :- सहीहैन में इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि एक साहब से एक गुनाह सादिर हुआ। हाज़िर होकर अर्ज की। उस पर यह आयत नाज़िल हुई :

Namaz Ka Bayan

तर्जमा :– नमाज़ काइम कर दिन के दोनों किनारों और रात के कुछ हिस्से में बेशक नेकियाँ गुनाहों को दूर करती हैं यह नसीहत है नसीहत मानने वालों के लिए।

उन्होंने अर्ज़ की या रसूलल्लाह! क्या यह ख़ास मेरे लिए है। फ़रमाया मेरी सब उम्मत के लिए।



हदीस न. 6 :- सही बुख़ारी व मुस्लिम में है कि अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सवाल किया आमाल में अल्लाह तआला के नज़दीक सब से ज़्यादा महबूब क्या है। फ़रमाया वक्त के अन्दर नमाज़। मैंने अर्ज की फिर क्या। फरमाया माँ बाप के साथ नेकी करना। मैंने अर्ज की फिर क्या। फरमाया राहे ख़ुदा में जिहाद।

हदीस न. 7 :- बैहकी ने हज़रते उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि एक साहब ने अर्ज़ की या रसूलल्लाह! इसलाम में सबसे ज्यादा अल्लाह के नज़दीक महबूब क्या चीज़ है। फ़रमाया वक्त में नमाज़ पढ़ना और जिस ने नमाज़ छोड़ी उस का कोई दीन नहीं नमाज़ दीन का सुतून |

हदीस न. 8 :- अबू दाऊद ने बतरीके अम्र इब्ने शुऐब अन अबीहे अन जद्देही रिवायत की कि हुजूर ने फ़रमाया जब तुम्हारे बच्चे सात बरस के हों तो उन्हें नमाज़ का हुक्म दो और जब दस बरस के हो जायें तो मार कर पढ़ाओ।

हदीस न. 9 :- इमाम अहमद रिवायत करते हैं कि अबू ज़र रदियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जाड़ों में बाहर तशरीफ़ ले गये पतझड़ का ज़माना था दो टहनियाँ पकड़ ली, पत्ते गिरने लगे। फ़रमाया अबू ज़र। मैंने अर्ज की लब्बैक या रसूलल्लाह! फ़रमाया मुसलमान बन्दा अल्लाह के लिए नमाज़ पढ़ता है तो उससे गुनाह ऐसे गिरते हैं जैसे इस दरख़्त से यह पत्ते।



हदीस न. 10 :- सही मुस्लिम शरीफ़ में अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जो शख्स अपने घर में तहारत (वुजू व .गुस्ल) कर के फ़र्ज़ अदा करने के लिए मस्जिद को जाता है तो एक कदम पर एक गुनाह महव होता है यानी एक गुनाह मिट जाता है और एक दर्जा बलन्द होता है।

हदीस न. 11 :- इमाम अहमद जैद इब्ने ख़ालिद जुहनी रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने फ़रमाया जो दो रेकअत नमाज़ पढ़े और उन में सहव (भूल) न करे तो जो कुछ पेशतर उस के गुनाह

है अल्लाह तआला माफ फरमा देता है यानी सगाइर (छोटे गुनाह) हदीस न. 12 :- तबरानी अबू उमामा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने फ़रमाया कि बन्दा जब नमाज़ के लिए खड़ा होता है उसके लिए जन्नतों के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और उसके और परवर्दगार के दरमियान से हिजाब हटा दिये जाते हैं और हरें उसका इस्तकबाल करती हैं जब तक न नाक सिनके न खकारे।

हदीस न. 13 :- तबरानी औसत ने और जिया ने अनस रद्वियल्लाहु
तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर ने फरमाया सबसे पहले ‘कियामत के दिन बन्दे से नमाज़ का हिसाब लिया जायेगा अगर यह दुरुस्त हुई तो बाकी आमाल भी ठीक रहेंगे और यह बिगड़ी तो सभी बिगड़े और एक रिवायत में ‘है कि वह खाएब व खासिर हुआ।

हदीस न. 14 :- इमाम अहमद व अबू दाऊद व नसई व इब्ने माजा की रिवायत तमीम दारी रदियल्लाहु तआला अन्हु से यूँ है अगर नमाज़ ‘पूरी की है तो पूरी लिखी जाएगी और पूरी नहीं की (यानी उस में (नुकसान है) तो मलाइका से फ़रमाएगा देखो मेरे बन्दे के नवाफ़िल हों तो उन से फ़र्ज़ पूरे कर दो फिर ज़कात का इसी तरह हिसाब होगा फिर यूँ ही बाकी आमाल का।

हदीस न. 15 :- अबू दाऊद व इब्ने माजा अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया (जो मुसलमान जहन्नम में जायेगा वलइयाजुबिल्लाहि तआला) उसके पूरे बदन को आग खाएगी सिवाए आजाए सुजूद के, अल्लाह तआला ने उनका खाना आग पर हराम कर दिया है।



हदीस न. 16 :- तबरानी औसत में रावी कि हुजूर ने फ़रमाया अल्लाह तआला के नज़दीक़ बन्दे की यह हालत सबसे ज़्यादा पसंद है कि उसे सजदा करता देखे कि अपना मुँह ख़ाक पर रगड़ रहा है

हदीस न. 17 :- तबरानी औसत में अनस रदियल्लाहु अन्हु से रावी कि हुजूर ने फ़रमाया कोई सुबह व शाम नहीं मगर ज़मीन का एक ( टुकड़ा दूसरे को पुकारता है आज तुझ पर कोई नेक बन्दा गुज़रा जिसने तुझ पर नमाज़ पढ़ी या ज़िक्रे इलाही किया अगर वह हाँ कहे तो उसके लिए इस सबब से अपने उपर बुजुर्गी तसव्वुर करता है।

हदीस न. 18 :- सही मुस्लिम में जाबिर रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि हुजूर ने फ़रमाया जन्नत की कुंजी नमाज़ है और नमाज़ की कुंजी तहारत

हदीस न. 19 :- अबू दाऊद ने अबू उमामा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर ने फ़रमाया जो तहारत करके अपने घर से (फर्ज नमाज़ के लिए निकला उसका अज्र ऐसा है जैसा हज करने वाले (मुहरिम (इहराम बांधने वाला) का और जो चाश्त के लिए निकला उस का अज्र उमरा करने वाले की मिस्ल है और एक नमाज़ दूसरी नमाज़ (तक के दोनों के दम्मयान में कोई लगवियात न हो तो वह नमाज़ इल्लीयीन में लिखी हुई है यानी दर्जए कबूल को पहुँचती है।

हदीस न. 20, 21 :- इमाम अहमद व नसई व इब्ने माजा ने अबू अय्यूब अन्सारी व उकबा इब्ने आमिर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत की कि हुजूर ने फ़रमाया कि जिसने वुजू किया जैसा हुक्म है और नमाज़ पढ़ी जैसी नमाज़ का हुक्म है तो जो कुछ पहले किया है माफ हो गया।

हदीस न. 22 :- इमाम अहमद अबू ज़र रदियल्लाहु तआला अन्ह से रावी कि हुजूर ने फ़रमाया जो अल्लाह के लिए एक सजदा करता है उस के लिए एक नेकी लिखता है और एक गुनाह माफ़ करता है और एक दर्जा बलन्द करता है



हदीस न. 23 :- कन्जुल उम्माल में है कि फ़रमाया जो तन्हाई में दो रकअत नमाज़ पढ़े कि अल्लाह और फ़रिश्तों के सिवा कोई न देखे उस के लिए जहन्नम से बराअत लिख दी जाती है।

हदीस न. 24 :- मुन्यतुल मुसल्ली में कि इरशाद फरमाया हर शय के लिए एक अलामत होती है ईमान की अलामत नमाज़ है।

हदीस न. 25 :- मुन्यतुल मुसल्ली में है इरशाद फ़रमाया नमाज़ दीन का सुतून है जिसने इसे काइम रखा दीन को काइम रखा और जिसने इसे छोड़ दिया दीन को ढा दिया।

हदीस न. 26 :- इमाम अहमद व अबू दाऊद उबादा इब्ने सामित रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने फ़रमाया कि पाँच नमाजे अल्लाह तआला ने बन्दों पर फ़र्ज़ की, जिस ने अच्छी तरह वुजू किया और वक़्त में नमाजें पढ़ीं और रुकू व खुशूअ को पूरा किया तो उसके लिए अल्लाह तआला ने अपने ज़िम्मए करम पर अहद कर लिया कि उसे बख्श दे और जिसने न किया उस के लिए अहद नहीं चाहे बख़्श दे चाहे अज़ाब करे।

हदीस न. 27 :- हाकिम ने अपनी तारीख में उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत की कि हुजूर फरमाते हैं कि अल्लाह तआला फ़रमाता है कि अगर वक़्त में नमाज़ काइम रखे तो मेरे बन्दे का मेरे ज़िम्मए करम पर अहद है कि उसे अज़ाब न दूँ और बेहिसाब जन्नत में दाखिल करूँ।



हदीस न. 28 :- दैलमी अबू सईद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने फरमाया अल्लाह तआला ने कोई ऐसी चीज़ फर्ज न की जो तौहीद और नमाज़ से बेहतर हो अगर इससे बेहतर कोई चीज होती तो वह ज़रूर मलाएका पर फ़र्ज़ करता। उनमें कोई रुकू में है कोई सजदे में।

हदीस न. 29 :- अबू दाऊद व तियाल्सी अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने फरमाया जो बन्दा नमाज़ पढ़कर उस जगह जब तक बैठा रहता है फ़रिश्ते उसके लिए इस्तिग़फ़ार करते हैं उस वक्त तक कि बे-वुजू हो जाए या उठ खड़ा हो। मलाइका का इस्तिगफार उस के लिए यह है :

Namaz Ka Bayan

तर्जमा :- ऐ अल्लाह तू इसको बख़्श दे, ऐ अल्लाह तू इस पर रहम कर, ऐ अल्लाह इसकी तौबा कबूल कर।

और बहुत सी हदीसों में आया है कि जब तक नमाज़ के इन्तिज़ार में है उस वक़्त तक वह नमाज़ ही में है यह फ़जाएल मुतलकन नमाज़ के हैं और खास ख़ास नमाज़ों में मुतअल्लिक जो अहादीस वारिद हुईं उनमें यह हैं :

हदीस न. 30 :- तबरानी इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि हुजूर इरशाद फ़रमाते हैं जो सुबह की नमाज़ पढ़ता है वह शाम तक अल्लाह के ज़िम्मे में है। दूसरी रिवायत में है तुम अल्लाह का जिम्मा न तोड़ो जो अल्लाह का जिम्मा तोड़ेगा अल्लाह तआला उसे औंधा करके दोज़ख़ में डाल देगा।

हदीस न. 31 :- इब्ने माजा सलमान फ़ारसी रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूर ने फ़रमाया जो सुबह नमाज़ को गया ईमान के झन्डे के साथ गया।



हदीस न. 32 :- बैहक़ी ने शुअबुल ईमान में उसमान रदियल्लाहु तआला अन्हु से मौकूफ़न रिवायत की (जो रिवायत हुजूर का ज़िक्र छोड़ कर की जाए वह मौकूफ़न कहलाती है) जो सुबह की नमाज़ के लिए तालिबे सवाब होकर हाज़िर हुआ गोया उसने तमाम रात कियाम किया (इबादत की) और जो नमाज़ इशा के लिए हाज़िर हुआ गोया उसने निस्फ़ (आधी) शब कियाम किया।

हदीस न. 33 :- ख़तीब ने अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर ने फ़रमाया जिसने चालीस दिन नमाज़े फज्र व ईशा बाजमाअत पढ़ी उसको अल्लाह तआला दो बरआतें अता फ़रमायेगा एक नार से दूसरी निफ़ार्क से।

हदीस न. 34 :- इमाम अहम्द अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि फरमाते हैं रात और दिन के मलाइका नमाज़े फज्र व अम्र में जमा होते हैं जब वह जाते हैं तो अल्लाह तआला उनसे फ़रमाता है कहाँ से आये हालांकि वह जानता है। अर्ज करते हैं तेरे बंदो के पास से जहदीसब हम उन के पास गये तो वह नमाज़ पढ़ रहे थे और उन्हें नमाज़ पढ़ता छोड़कर तेरे पास हाज़िर हुए।

हदीस न. 35 :- इब्ने माजा इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि हुजूर फ़रमाते हैं जो मस्जिदे जमाअत में चालीस रातें नमाज़े इशा पढ़े कि रकअत ऊला फ़ौत न हो (यानी बिल्कुल शुरू से नमाज़ पाए छूटे नहीं) अल्लाह तआला उस के लिए दोज़ख़ से आज़ादी लिख देता है।



हदीस न. 36 :- तबरानी ने अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि हुजूर फ़रमाते हैं सब नमाज़ों में ज्यादा गिराँ मुनाफेकीन पर नमाज़ इशा व फज्र हैं और जो इनमें फ़जीलत है अगर जानते तो ज़रूर हाज़िर होते अगरचे सुरीन के बल घिसटते हुए यानी जैसे भी मुमकिन होता हाज़िर होते।

हदीस न. 37 :- बज्जाज़ ने इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत की कि हुजूर फ़रमाते हैं जो नमाजे इशा से पहले सोए, अल्लाह उसकी आँख को न सुलाए।

( 📚 बहारे शरीअत :- तीसरा हिस्सा /5,12 )

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