मुसाफ़िर की नमाज़ | Mushafir ki namaz
जो शख्स तकरीबन 92 किलोमीटर की दूरी के सफर का इरादा करके घर से निकला और अपनी बस्ती से बाहर चला गया तो शरीअत में यह शख्स मुसाफिर हो गया । अब उस पर वाजिब है कि कसर करे । यानी जुहर व अस्त्र व इशा में चार रकअत वाली फ़र्ज़ नमाज़ों को दो ही रकअत पढ़े । क्योंकि उसके हक में दो ही रकअत पूरी नमाज है । ( दुर्रे मुख्तार स . 525 )
मसलाः – अगर मुसाफिर ने कस्दन चार रकअत पढ़ी और दोनों कअदा किया तो फ़र्ज़ अदा हो गया और आखिरी दो रकअतें नफ़्ल हो गई , मगर गुनहगार हुआ । और अगर दो रकअत पर कअदा नहीं किया तो फ़र्ज़ अदा न हुआ । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1 स . 530 )
मसलाः – मुसाफ़िर जब तक किसी जगह पर पन्द्रह दिन या उस से ज्यादा ठहरने की नीयत न करे या अपनी बस्ती में न पहुंच जाये कसर करता रहेगा । मसलाः – मुसाफिर अगर मुकीम इमाम के पीछे नमाज़ पढ़े तो चार रकअत पूरी पढ़े । कसर न करे ।
मसलाः – मुकीम अगर मुसाफ़िर इमाम के पीछे नमाज़ पढ़े तो इमाम मुसाफ़िर होने की वजह से दो ही रकअत पर सलाम फेर देगा । अब मुकीम मुकतदियों को चाहिए कि इमाम के सलाम फेर देने के बाद अपनी बाकी दो रकअतें पढ़ें और उन दोनों रकअतों में किरअत न करें बल्कि सूरह फातिहा पढ़ने की मिकदार चुप चाप खड़े रहें । ( दुर्रे मुख्तार जि . 1स . 530 )
मसला : – फज्र व मगरिब व अस्त्र में कसर नहीं ।
मसला : – सुन्नतों मे कसर नहीं । अगर मौका हो तो पूरी पढ़ें वरना माफ हैं । ( दुर्रे मुख़्तार स . 530 )
मसला : – मुसाफिर अपनी बस्ती से बाहर निकलते ही कसर शुरू कर देगा । और जब तक अपनी बस्ती में दाखिल न हो जाये या किसी बस्ती में पन्द्रह दिन या उससे ज्यादा दिनों ठहरने की नीयत न करे बराबर कसर ही करता रहेगा । ( दुर्रे मुख़्तार व आम्मए कुतुबे फिकह )