*169 वां यौम ए विलादत सरकार आला हज़रत (رضي الله ﺗﻌﺎﻟﯽٰ عنه) बहुत बहुत मुबारक हो*
*10 शव्वाल। पुरी पोस्ट ज़रूर पढ़े*
3 जून 2020 को शव्वाल की 10 तारीख़ है। आज का दिन आलमे इस्लाम के लिए बहुत ख़ास है। क्योंकि आज के दिन हमारे रहनुमा *सरकार आ़ला हज़रत रहमतुल्लाही तआ़ला अ़लेही* की पैदाइश हुई। जोके 14वीं सदी के अज़ीम मुजद्दिद हैं।
*पैदाइश-* 10 शव्वाल 1272 को बरेली शरीफ में सरकार आ़ला हज़रत की पैदाइश हुई।
*नाम और अलक़ाबात-* आपका नाम *अहमद रज़ा* है। लोग आपको इमामे अहले सुन्नत, आ़ला हज़रत, मुजद्दिदे आज़म, जैसे अलक़ाबात से याद करते हैं।
*खानदान-* आपके जद्दे आ़ला *सईदउल्ला खान* कंधार के पठान थे। जो मुगलिया सल्तनत के दौर में मोहम्मद शाह के साथ हिंदुस्तान तशरीफ लाए। हुकूमत के बड़े मनसब पर फ़ाइज़ रहे। लाहौर का शीश महल आप की जागीर था।
सईदउल्ला खान के बेटे *साद यार खां* को हुकूमत ने एक जंग करने के लिए रुहेलखंड भेजा। कामयाबी के बाद यह पूरा इलाका रुहेलखंड और बदायूं वगैरा आप ही को दे दिया गया।
आ़ला हज़रत के दादा *रज़ा अ़ली खां* ने बाक़ायदा हिंदुस्तान में पहला दारुल इफ़्ता क़ायम किया। 1857 की जंगे आज़ादी में हिस्सा भी लिया। जर्नल हेडसन आप के सर की कीमत ₹500 लगाई थी।
1865 में आ़ला हज़रत के दादा रज़ा अ़ली खां का इंतकाल हुआ। रज़ा अ़ली खां के बेटे *नक़ी अ़ली खां* हैं। जिन्होंने बेशुमार किताब लिखीं। नक़ी अ़ली खां के बेटे *सरकार आ़ला हज़रत* हुऐ।
*बचपन और तालीम-* सरकार आ़ला हज़रत बचपन से ही बड़े होशियार, समझदार और अक़लमंद रहे। 4 साल की उम्र में आपने क़ुरान मजीद का नाज़रा मुकम्मल किया।
आपने सारी तालीम घर की चारदीवारी में रहकर ही हासिल की। सिर्फ 8 साल की उम्र में एक अरबी ज़बान में किताब तहरीर फ़रमाई। 14 साल की उम्र जब के लोगों को जीने का सलीक़ा नहीं आता आप इस उम्र में मुफ्ती बन चुके थे।
आप दीनी उलूम के साथ-साथ दुनियावी उलूम मैथ, साइंस वगैरह में भी बड़े माहिर थे। इसका अंदाजा आप उस वाक्य से लगा सकते हैं जबकि आपने अपने दौर के बड़े साइंटिस्ट अल्बर्ट जैसे को भी धूल चटा दी थी।
आप उर्दू, अरबी, फ़ारसी ज़बान के बड़े ही माहिर थे। आपने इन तीनों जबानों में बहुत सारी किताबें और नातें भी लिखीं हैं। ज़रा सोचिए…! कि इतने बड़े आ़लिमे दीन के उस्तादों की फेहरिस्त देखी जाए। तो वह सिर्फ 5 से 6 की तादाद में हैं।
*आप की ख़िदमत-* आपने 50 से ज़्यादा सब्जेक्ट पर 1000 से ज़्यादा किताबें लिखीं। जिनमें क़ुरान शरीफ का उर्दू तर्जुमा *कंज़ुल इमान* के नाम से बहुत मशहूर है।
आपके फ़तवों का मजमुआ़ *फ़ताव रज़विया* उम्मते मुस्लिमा के लिए एक नायाब तोहफ़ा है। आपकी शायरी का दीवान *ह़दाइक़े बख़्शिश* के नाम से मशहूर है।
आप में एक बड़ा *ख़ास कमाल था।* आप दोनों हाथ से दो अलग-अलग पेज पर एक साथ लिखा करते थे। जब के इंटरनेट का दोर नहीं था। उस वक्त भी आपके इल्म का इतना चर्चा था। के लोग जर्मन वगैरा और भी दूरदराज़ मुल्कों से आप की बारगाह में सवाल लेकर आया करते थे।
बड़े से बड़े मुश्किल सवाल आप बड़ी आसानी के साथ चुटकियों में हल कर दे देते।
आपने अपनी पूरी जिंदगी दीने इस्लाम की खिदमत मैं गुज़ार दी।
आप नबी ﷺ के बड़े दीवाने थे।आपको जिंदगी में दो बार हज की सादत नसीब हुई। आप आसपास तो गरीबों का ख्याल रखते ही थे। साथ ही साथ दूरदराज ना जाने कितने घरों में डाक के जरिए मदद के तौर पर पैसे भिजवाया करते थे।
हम सूरज निकलने, डूबने, खत्म सेहरी, शुरू इफ़्तार, और पांचों नमाज़ के वक्त का जो नक्शा देखते हैं, यह सरकार आ़ला हज़रत ने ही तैयार फ़रमाया है। आप दिन में सूरज और रात में चांद तारे देखकर सही वक्त का पता लगा लिया करते थे। जिसमें के 1 सेकंड का भी फर्क नहीं होता था।
आज जो हमारे दिल में नबी ﷺ की मोहब्बत है। यह आप की मेहनत का नतीजा है। हम पर आपका बड़ा एहसान है।
आप तक़रीबन 65 साल की उम्र पाकर 25 सफ़र को दुनिया से रुखसत हो गए। आप का मज़ारे मुबारक बरेली शरीफ में ही है। बरेली शरीफ में 25 सफर को आपका उर्स मनाया जाता है। जिसमें लाखों की तादाद में लोग शिरकत करते हैं।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ﷻ सरकार आ़ला हज़रत के सदक़े हमारे ईमान की हिफ़ाज़त फरमाए। और हमें इश्क़े रसूल ﷺ अ़ता फरमाए।
*🤲 आमीन या रब्बुल आलमीन 🤲*