57-Surah Al-Hadeed

57-Surah Al-Hadeed

57 सूरए हदीद – 57 Surah Al Hadeed

सूरए हदीद मक्की है या मदनी, इस में चार रूकू, उन्तीस आयतें, पांच सौ चवालीस कलिमे, दो हज़ार चार सौ छिहत्तर अक्षर हैं.

57 सूरए हदीद – पहला रूकू

57 सूरए हदीद – पहला रूकू

सूरए हदीद मदीने में उतरी, इसमें 29 आयतें, चार रूकू हैं.

57|1|بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ سَبَّحَ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
57|2|لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ يُحْيِي وَيُمِيتُ ۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
57|3|هُوَ الْأَوَّلُ وَالْآخِرُ وَالظَّاهِرُ وَالْبَاطِنُ ۖ وَهُوَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ
57|4|هُوَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَىٰ عَلَى الْعَرْشِ ۚ يَعْلَمُ مَا يَلِجُ فِي الْأَرْضِ وَمَا يَخْرُجُ مِنْهَا وَمَا يَنزِلُ مِنَ السَّمَاءِ وَمَا يَعْرُجُ فِيهَا ۖ وَهُوَ مَعَكُمْ أَيْنَ مَا كُنتُمْ ۚ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
57|5|لَّهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَإِلَى اللَّهِ تُرْجَعُ الْأُمُورُ
57|6|يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ ۚ وَهُوَ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ
57|7|آمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَأَنفِقُوا مِمَّا جَعَلَكُم مُّسْتَخْلَفِينَ فِيهِ ۖ فَالَّذِينَ آمَنُوا مِنكُمْ وَأَنفَقُوا لَهُمْ أَجْرٌ كَبِيرٌ
57|8|وَمَا لَكُمْ لَا تُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ ۙ وَالرَّسُولُ يَدْعُوكُمْ لِتُؤْمِنُوا بِرَبِّكُمْ وَقَدْ أَخَذَ مِيثَاقَكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
57|9|هُوَ الَّذِي يُنَزِّلُ عَلَىٰ عَبْدِهِ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ لِّيُخْرِجَكُم مِّنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ ۚ وَإِنَّ اللَّهَ بِكُمْ لَرَءُوفٌ رَّحِيمٌ
57|10|وَمَا لَكُمْ أَلَّا تُنفِقُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَلِلَّهِ مِيرَاثُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ لَا يَسْتَوِي مِنكُم مَّنْ أَنفَقَ مِن قَبْلِ الْفَتْحِ وَقَاتَلَ ۚ أُولَٰئِكَ أَعْظَمُ دَرَجَةً مِّنَ الَّذِينَ أَنفَقُوا مِن بَعْدُ وَقَاتَلُوا ۚ وَكُلًّا وَعَدَ اللَّهُ الْحُسْنَىٰ ۚ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए हदीद मक्की है या मदनी, इस में चार रूकू, उन्तीस आयतें, पांच सौ चवालीस कलिमे, दो हज़ार चार सौ छिहत्तर अक्षर हैं.

अल्लाह की पाकी बोलता है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है(2)
(2) जानदार हो या बेजान.

और वही इज़्ज़त व हिकमत (बोध) वाला है{1}उसी के लिये है आसमानों और ज़मीन की सल्तनत, जिलाता है(3)
(3) मख़लूक़ को पैदा करके या ये मानी हैं कि मुर्दां को ज़िन्दा करता है.

और मारता(4)
(4) यानी मौत देता है ज़िन्दों को.

और वह सब कुछ कर सकता है {2} वही अव्वल (आदि) (5)
(5) क़दीम, हर चीज़ को पहल से पहले, यानी आदि, बेइब्तिदा, कि वह था और कुछ न था.

वही आख़िर (अनन्त) (6)
(6) हर चीज़ की हलाकत और नाश होने के बाद रहने वाला यानी अनंत, सब फ़ना हो जाएंगे और वह हमेशा रहेगा उसके लिये अंत नहीं.

वही ज़ाहिर(7)
(7) दलीलों और निशानियों से, या ये मानी कि ग़ालिब हर चीज़ पर.

वही बातिन(8)
(8) हवास उसे समझने से मजबूर या ये मानी कि हर चीज़ का जानने वाला.

और वही सब कुछ जानता है {3} वही है जिसने आसमान और ज़मीन छ दिन में पैदा किये(9)
(9) दुनिया के दिनों से कि पहला उनका यकशम्बा और पिछला जुमआ है. हसन रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि वह अगर चाहता तो आनन फ़ानन पैदा कर देता लेकिन उसकी हिकमत यही थी कि छ को अस्ल बनाए और उनपर मदार रखे.

फिर अर्श पर इस्तिवा फ़रमाया जैसा कि उसकी शान के लायक़ है जानता है जो ज़मीन के अन्दर जाता है (10)
(10) चाहे वह दाना हो या क़तरा या ख़ज़ाना हो या मुर्दा.

और जो उससे बाहर निकलता है(11)
(11) चाहे वह नबात हो या धात या और कोई चीज़.

और जो आसमान से उतरता है (12)
(12) रहमत व अज़ाब और फ़रिश्ते और बारिश.

और जो उसमें चढ़ता है(13)
(13) आमाल और दुआएं.

और वह तुम्हारे साथ है(14)
(14) अपने इल्म और क़ुदरत के साथ आम तौर से, और फ़ज़्ल व रहमत के साथ ख़ास तौर पर.

तुम कहीं हो, और अल्लाह तुम्हार काम देख रहा है(15) {4}
(15) तो तुम्हें कर्मो के अनुसार बदला देगा.

उसी की है आसमानों और ज़मीन की सल्तनत और अल्लाह ही की तरफ़ सब कामों की रूजू{5} रात को दिन के हिस्से में लाता है(16)
(16) इस तरह कि रात को घटाता है और दिन की मिक़दार बढ़ाता है.

और दिन को रात के हिस्से में लाता है(17)
(17) दिन घटाकर और रात की मिक़दार बढ़ा कर.

और वह दिलों की बात जानता है (18){6}
(18) दिल के अक़ीदे और राज़ सबको जानता है.

अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसकी राह में कुछ वह ख़र्च करो जिसमें तुम्हें औरों का जानशीन किया (19)
(19) जो तुमसे पहले थे और तुम्हारा जानशीन करेगा तुम्हारे बाद वालों को. मानी ये हैं कि जो माल तुम्हारे क़ब्ज़े में हैं सब अल्लाह तआला के हैं उसने तुम्हें नफ़ा उठाने के लिये दिये हैं. तुम अस्ल में इन के मालिक नहीं हो बल्कि नायब और वकील की तरह हो. इन्हें ख़ुदा की राह में खर्च करो और जिस तरह नायब और वकील को मालिक के हुक्म से ख़र्च करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती, तुम्हें भी कोई हिचकिचाहट न हो.

तो जो तुम में ईमान लाए और उसकी राह में ख़र्च किया उनके लिये बड़ा सवाब है {7} और तुम्हें क्या है कि अल्लाह पर ईमान न लाओ, हालांकि ये रसूल तुम्हें बुला रहे हैं कि अपने रब पर ईमान लाओ(20)
(20) और निशानियाँ और हुज्जतें पेश करते हैं और अल्लाह की किताब सुनाते हैं तो अब तुम्हें क्या उज्र हो सकता है.

और बेशक वह
(21)
(21) यानी अल्लाह तआला.

तुमसे पहले ही एहद ले चुका है(22)
(22) जब उसने तुम्हें आदम अलैहिस्सलाम की पुश्त से निकाला था. कि अल्लाह तआला तुम्हारा रब है उसके सिवा कोई मअबूद नहीं.

अगर तुम्हें यक़ीन हो {8} वही है कि अपने बन्दे पर(23)
(23) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर.

रौशन आयतें उतारता है ताकि तुम्हें अंधेरियों से(24)
(24) कुफ़्र और शिर्क की.

उजाले की तरफ़ ले जाए (25)
(25) यानी ईमान के नूर की तरफ़.

और बेशक अल्लाह तुम पर ज़रूर मेहरबान रहम वाला {9} और तुम्हें क्या है कि अल्लाह की राह में ख़र्च न करो हालांकि आसमानों और ज़मीन में सब का वारिस अल्लाह ही है(26)
(26) तुम हलाक हो जाओगे और माल उसी की मिल्क रह जाएंगे और तुम्हें ख़र्च करने का सवाब भी न मिलेगा और अगर तुम ख़ुदा की राह में ख़र्च करो तो सवाब भी पाओ.

तुम में बराबर नहीं वो जिन्हों ने मक्के की विजय से पहले ख़र्च और जिहाद किया(27)
(27) जबकि मुसलमान कम और कमज़ोर थे, उस वक़्त जिन्होंने ख़र्च किया और जिहाद किया वो मुहाजिरीन व अन्सार में से साबिक़ीने अव्वलीन हैं. उनके हक़ में नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि अगर तुममें से कोई उहद पहाड़ के बराबर सोना ख़र्च कर दे तो भी उनके एक मुद की बराबर न हो न आधे मुद की. मुद एक पैमाना है जिससे जौ नापे जाते हैं. कलबी ने कहा कि यह आयत हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रदियल्लाहो अन्हो के हक़ में उतरी क्यों कि आप पहले वो शख़्स हैं जिसने ख़ुदा की राह में माल ख़र्च किया और रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की हिमायत की.

वो मर्तबे में उनसे बड़े हैं जिन्होंने विजय के बाद ख़र्च और जिहाद किया और उन सबसे(28)
(28) यानी पहले ख़र्च करने वालो से भी फ़त्ह के बाद ख़र्च करने वालों से भी.

अल्लाह जन्नत का वादा फ़रमा चुका(29)
(29) अलबत्ता दर्जो में अन्तर है. फ़त्ह से पहले खर्च करने वालों का दर्जा ऊंचा है.
और अल्लाह को तुम्हार कामों की ख़बर है{10}

57 सूरए हदीद – दूसरा रूकू

57 सूरए हदीद -दूसरा रूकू

57|11|مَّن ذَا الَّذِي يُقْرِضُ اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا فَيُضَاعِفَهُ لَهُ وَلَهُ أَجْرٌ كَرِيمٌ
57|12|يَوْمَ تَرَى الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ يَسْعَىٰ نُورُهُم بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَبِأَيْمَانِهِم بُشْرَاكُمُ الْيَوْمَ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ ذَٰلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ
57|13|يَوْمَ يَقُولُ الْمُنَافِقُونَ وَالْمُنَافِقَاتُ لِلَّذِينَ آمَنُوا انظُرُونَا نَقْتَبِسْ مِن نُّورِكُمْ قِيلَ ارْجِعُوا وَرَاءَكُمْ فَالْتَمِسُوا نُورًا فَضُرِبَ بَيْنَهُم بِسُورٍ لَّهُ بَابٌ بَاطِنُهُ فِيهِ الرَّحْمَةُ وَظَاهِرُهُ مِن قِبَلِهِ الْعَذَابُ
57|14|يُنَادُونَهُمْ أَلَمْ نَكُن مَّعَكُمْ ۖ قَالُوا بَلَىٰ وَلَٰكِنَّكُمْ فَتَنتُمْ أَنفُسَكُمْ وَتَرَبَّصْتُمْ وَارْتَبْتُمْ وَغَرَّتْكُمُ الْأَمَانِيُّ حَتَّىٰ جَاءَ أَمْرُ اللَّهِ وَغَرَّكُم بِاللَّهِ الْغَرُورُ
57|15|فَالْيَوْمَ لَا يُؤْخَذُ مِنكُمْ فِدْيَةٌ وَلَا مِنَ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ مَأْوَاكُمُ النَّارُ ۖ هِيَ مَوْلَاكُمْ ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ
57|16|۞ أَلَمْ يَأْنِ لِلَّذِينَ آمَنُوا أَن تَخْشَعَ قُلُوبُهُمْ لِذِكْرِ اللَّهِ وَمَا نَزَلَ مِنَ الْحَقِّ وَلَا يَكُونُوا كَالَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ مِن قَبْلُ فَطَالَ عَلَيْهِمُ الْأَمَدُ فَقَسَتْ قُلُوبُهُمْ ۖ وَكَثِيرٌ مِّنْهُمْ فَاسِقُونَ
57|17|اعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ يُحْيِي الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ قَدْ بَيَّنَّا لَكُمُ الْآيَاتِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ
57|18|إِنَّ الْمُصَّدِّقِينَ وَالْمُصَّدِّقَاتِ وَأَقْرَضُوا اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا يُضَاعَفُ لَهُمْ وَلَهُمْ أَجْرٌ كَرِيمٌ
57|19|وَالَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ أُولَٰئِكَ هُمُ الصِّدِّيقُونَ ۖ وَالشُّهَدَاءُ عِندَ رَبِّهِمْ لَهُمْ أَجْرُهُمْ وَنُورُهُمْ ۖ وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا أُولَٰئِكَ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ

कौन है जो अल्लाह को क़र्ज़ दे अच्छा क़र्ज़(1)
(1) यानी ख़ुशदिली के साथ ख़ुदा की राह में ख़र्च करे. इस ख़र्च को इस मुनासिबत से फ़र्ज़ फ़रमाया गया है कि इसपर जन्नत का वादा फ़रमाया गया है.

तो वह उस के लिये दूने करे और उसको इज़्ज़त का सवाब है{11} जिस दिन तुम ईमान वाले मर्दों और ईमान वाली औरतों को(2)
(2) पुले सिरात पर.

देखोगे कि उनका नूर है 3)
(3) यानी उनके ईमान और ताअत का नूर.

उनके आगे और उनके दाएं दौड़ता है (4)
(4) और जन्नत की तरफ़ उनका मार्गदर्शन करता है.

उनसे फ़रमाया जा रहा है कि आज तुम्हारी सब से ज़्यादा ख़ुशी की बात वो जन्नतें हैं जिनके नीचे नेहरें बहें, तुम उनमें हमेशा रहो यही बड़ी कामयाबी है {12} जिस दिन मुनाफ़िक़ (दोग़ले) मर्द और मुनाफ़िक़ औरतें मुसलमानों से कहेंगे कि हमें एक निगाह देखो कि हम तुम्हारे नूर से कुछ हिस्सा लें, कहा जाएगा अपने पीछे लौटो (5)
(5) जहाँ से आए थे यानी हश्र के मैदान की तरफ़ जहाँ हमें नूर दिया गया वहाँ नूर तलब करो या ये मानी हैं कि तुम हमारा नूर नहीं पा सकते, नूर की तलब के लिये पीछे लौट जाओ फिर वो नूर की तलाश में वापस होंगे और कुछ न पाएंगे तो दोबारा मूमिनीन की तरफ़ फिरेंगे.

वहाँ नूर ढूंढो वो लौटेंगे, जभी उनके (6)
(6) यानी मूमिनीन और मुनाफ़िक़ीन के.

बीच दीवार खड़ी कर दी जाएगी(7)
(7) कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा कि वही अअराफ़ है.

जिसमें एक दरवाज़ा है(8)
(8) उससे जन्नती जन्नत में दाख़िल होंगे.

उसके अन्दर की तरफ़ रहमत (9)
(9) यानी उस दीवार के अन्दूरूनी जानिब जन्नत.

और उसके बाहर की तरफ़ अज़ाब {13} मुनाफ़िक़ (10)
(10) उस दीवार के पीछे से.

मुसलमानों को पुकारेंगे क्या हम तुम्हारे साथ न थे(11)
(11) दुनिया में नमाज़ें पढ़ते, रोज़ा रखते.

वो कहेंगे क्यों नहीं मगर तुमने तो अपनी जानें फ़ित्ने में डालीं(12)
(12) दोग़लेपन और कुफ़्र को अपना कर.

और मुसलमानों की बुराई तकते और शक रखते (13)
(13)इस्लाम में.

और झूटे लालच ने तुम्हें धोखा दिया(14)
(14) और तुम बातिल उम्मीदों में रहे कि मुसलमानों पर हादसे आएंगे, वो तबाह हो जाएंगे.

यहाँ तक कि अल्लाह का हुक्म आ गया (15)
(15)यानी मौत.

और तुम्हें अल्लाह के हुक्म पर उस बड़े फ़रेबी ने घमण्डी रखा(16){14}
(16) यानी शैतान ने धोखा दिया कि अल्लाह तआला बड़ा हिलम वाला है तुम पर अज़ाब न करेगा और न मरने के बाद उठना न हिसाब. तुम उसके इस फ़रेब में आ गए.

तो आज न तुमसे कोई फ़िदिया लिया जाए(17)
(17) जिसको देकर तुम अपनी जानें अज़ाब से छुड़ा सको. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया मानी ये हैं कि आज न तुम से ईमान क़ुबूल किया जाए, न तौबह.

और न खुले काफ़िरों से, तुम्हारा ठिकाना आग है, वह तुम्हारी रफ़ीक़ है, और क्या ही बुरा अंजाम {15} क्या ईमान वालों को अभी वह वक़्त न आया कि उनके दिल झुक जाएं अल्लाह की याद और उस हक़ के लिये जो उतरा (18)
(18) हज़रत उम्मुल मूमिनीन आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहो अन्हा से रिवायत है कि नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम दौलतसरा से बाहर तशरीफ़ लाए तो मुसलमानों को देखा कि आपस में हंस रहे हैं फ़रमाया तुम हंसते हो, अभी तक तुम्हारे रब की तरफ़ से अमान नहीं आई और तुम्हारे हंसने पर यह आयत उतरी. उन्होंने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम, इस हंसी का कफ़्फ़ारा क्या है? फ़रमाया इतना ही रोना. और उतरने वाले हक़ से मुराद क़ुरआन शरीफ़ है.

और उन जैसे न हों जिन को पहले किताब दी गई (19)
(19)यानी यहूदी और ईसाईयों के तरीक़े इख़्तियार न करें.

फिर उन पर मुद्दत दराज़ हुई(20)
(20) यानी वह ज़माना जो उनके और उन नबियों के बीच था.

तो उनके दिल सख़्त हो गए(21)
(21) और अल्लाह की याद के लिये नर्म न हुए दुनिया की तरफ़ माइल हो गए और नसीहतों उपदेशों से मुंह फेरा.

और उनमें बहुत फ़ासिक़ हैं(22){16}
(22) दीन से निकल जाने वाले.

जान लो कि अल्लाह ज़मीन को ज़िन्दा करता है उसके मरे पीछे,(23)
(23) मेंह बरसाकर सब्ज़ा उगा कर. बाद इसके कि ख़ुश्क हो गई थी. ऐसे ही दिलों को सख़्त हो जाने के बाद नर्म करता है और उन्हें इल्म व हिकमत से ज़िन्दगी अता फ़रमाता है. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि यह मिसाल है ज़िक्र के दिलों में असर करने की जिस तरह बारिश से ज़मीन को ज़िन्दगी हासिल होती है ऐसे ही अल्लाह के ज़िक्र से दिल ज़िन्दा होते हैं.

बेशक हमने तुम्हारे लिये निशानियाँ, बयान फ़रमा दीं कि तुम्हें समझ हो {17} बेशक सदक़ा देने वाले मर्द और सदक़ा देने वाली औरतें और वो जिन्हों ने अल्लाह को अच्छा क़र्ज़ दिया(24)
(24) यानी ख़ुशदिली और नेक नियत के साथ मुस्तहिक़्क़ों को सदक़ा दिया और ख़ुदा की राह में ख़र्च किया.

उनके दूने हैं और उनके लिये इज़्ज़त का सवाब है(25){18}
(25) और वह जन्नत है.

और वो जो अल्लाह और उसके सब रसूलों पर ईमान लाएं वही हैं पूरे सच्चे और औरों पर(26)
(26) गुज़री हुई उम्मतों में से.

गवाह अपने रब के यहाँ, उनके लिये उनका सवाब(27)
(27) जिसका वादा किया गया.

और उनका नूर है(28)और जिन्होंने कुफ़्र किया और हमारी आयतें झुटलाईं दोज़ख़ी हैं {19}
(28) जो हश्र में उनके साथ होगा.

57 सूरए हदीद – तीसरा रूकू

57 सूरए हदीद – तीसरा रूकू

57|20|اعْلَمُوا أَنَّمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا لَعِبٌ وَلَهْوٌ وَزِينَةٌ وَتَفَاخُرٌ بَيْنَكُمْ وَتَكَاثُرٌ فِي الْأَمْوَالِ وَالْأَوْلَادِ ۖ كَمَثَلِ غَيْثٍ أَعْجَبَ الْكُفَّارَ نَبَاتُهُ ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَاهُ مُصْفَرًّا ثُمَّ يَكُونُ حُطَامًا ۖ وَفِي الْآخِرَةِ عَذَابٌ شَدِيدٌ وَمَغْفِرَةٌ مِّنَ اللَّهِ وَرِضْوَانٌ ۚ وَمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلَّا مَتَاعُ الْغُرُورِ
57|21|سَابِقُوا إِلَىٰ مَغْفِرَةٍ مِّن رَّبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا كَعَرْضِ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ أُعِدَّتْ لِلَّذِينَ آمَنُوا بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ ۚ ذَٰلِكَ فَضْلُ اللَّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَاءُ ۚ وَاللَّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ
57|22|مَا أَصَابَ مِن مُّصِيبَةٍ فِي الْأَرْضِ وَلَا فِي أَنفُسِكُمْ إِلَّا فِي كِتَابٍ مِّن قَبْلِ أَن نَّبْرَأَهَا ۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ
57|23|لِّكَيْلَا تَأْسَوْا عَلَىٰ مَا فَاتَكُمْ وَلَا تَفْرَحُوا بِمَا آتَاكُمْ ۗ وَاللَّهُ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُورٍ
57|24|الَّذِينَ يَبْخَلُونَ وَيَأْمُرُونَ النَّاسَ بِالْبُخْلِ ۗ وَمَن يَتَوَلَّ فَإِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ
57|25|لَقَدْ أَرْسَلْنَا رُسُلَنَا بِالْبَيِّنَاتِ وَأَنزَلْنَا مَعَهُمُ الْكِتَابَ وَالْمِيزَانَ لِيَقُومَ النَّاسُ بِالْقِسْطِ ۖ وَأَنزَلْنَا الْحَدِيدَ فِيهِ بَأْسٌ شَدِيدٌ وَمَنَافِعُ لِلنَّاسِ وَلِيَعْلَمَ اللَّهُ مَن يَنصُرُهُ وَرُسُلَهُ بِالْغَيْبِ ۚ إِنَّ اللَّهَ قَوِيٌّ عَزِيزٌ

जान लो कि दुनिया की ज़िन्दगी तो नहीं मगर खेल कूद(1)
(1) जिस में वक़्त नष्ट के सिवा कुछ हासिल नहीं.
और आराइश और तुम्हारी आपस में बड़ाई मारना और माल और औलाद में एक दूसरे पर ज़ियादती चाहना(2)
(2) और उन चीज़ों में मश्ग़ूल रहना और उनसे दिल लगाना दुनिया है, लेकिन ताअतें और इबादतें और जो चीज़ें कि ताअत पर सहायक हों और वो आख़िरत के कामें में से हैं. अब इस दुनिया की ज़िन्दगानी की एक मिसाल इरशाद फ़रमाई जाती है.

उस मेंह की तरह जिसका उगाया सब्ज़ा किसानों को भाया फिर सूखा(3)
(3) उसकी सब्ज़ी जाती रही, पीला पड़ गया, किसी आसमानी आफ़त या ज़मीनी मसीबत से.

कि तू उसे ज़र्द देखे फिर रौंदन हो गया (4)
(4) कण कण, यही हाल दुनिया की ज़िन्दगी का है जिसपर दुनिया का तालिब बहुत ख़ुश होता है और उसके साथ बहुत सी उम्मीदें रखता है. वह निहायत जल्द गुज़र जाती है.

और आख़िरत में सख़्त अज़ाब है (5)
(5) उसके लिये जो दुनिया का तालिब हो और ज़िन्दगी लहव व लईब में गुज़ारे और वह आख़िरत की परवाह न करे ऐसा हाल काफ़िर का होता है.

और अल्लाह की तरफ़ से बख़्शिश और उसकी रज़ा (6)
(6) जिसने दुनिया को आख़िरत पर प्राथमिकता न दी.

और दुनिया का जीना तो नहीं मगर धोखे का माल (7){20}
(7) यह उसके लिये है जो दुनिया ही का हो जाए और उस पर भरोसा करले और आख़िरत की फ़िक्र न करे और जो शख़्स दुनिया में आख़िरत का तालिब हो और दुनियवी सामान से भी आख़िरत ही के लिये इलाक़ा रखे तो उसके लिये दुनिया की कामयाबी आख़िरत का ज़रिया है. हज़रत ज़ुन्नून मिस्त्री रज़ियल्लहो अन्हो ने फ़रमाया कि ऐ मुरीदों के गिरोह, दुनिया तलब न करो और अगर तलब करो तो उससे महब्बत न करो. तोशा यहाँ से लो, आरामगाह और है.

बढ़कर चलो अपने रब की बख़्शिश और उस जन्नत की तरफ़(8)
(8) अल्लाह की रज़ा के तालिब बनो, उसकी फ़रमाँबरदारी इख़्तियार करो और उसकी इताअत बजा लाकर जन्नत की तरफ़ बढ़ो.

जिसकी चौड़ाई जैसे आसमान और ज़मीन का फैलाव(9)
(9) यानी जन्नत की चौड़ाई ऐसी है कि सातों आसमान और सातों ज़मीनों के वरक़ बनाकर आपस में मिला दिये जाएं जितने वो हों उतनी जन्नत की चौड़ाई, फिर लम्बाई की क्या इन्तिहा.

तैयार हुई है उनके लिये जो अल्लाह और उसके सब रसूलों पर ईमान लाए, यह अल्लाह का फ़ज़्ल है जिसे चाहे दे, और अल्लाह बड़े फ़ज़्ल वाला है {21} नहीं पहुंचती कोई मुसीबत ज़मीन में (10)
(10) दुष्काल की, कम वर्षा की, पैदावर न होने की, फलों की कमी की, खेतियों के तबाह होने की.

और न तुम्हारी जानों में (11)
(11) बीमारियों की और औलाद के दुखों की.

मगर वह एक किताब में है(12)
(12) लौहे मेहफ़ूज़ में.

पहले इसके कि हम उसे पैदा करें(13)
(13) यानी ज़मीन को या जानों को या मुसीबत को.

बेशक यह (14)
(14) यानी इन बातों का कसरत के बावुजुद लौह में दर्ज फ़रमाना.

अल्लाह को आसान है {22} इसलिये कि ग़म न खाओ उस(15)
(15) दुनिया की माल मत्ता.

पर जो हाथ से जाए और ख़ुश न हो(16)
(16) यानी न इतराओ.

उसपर जो तुम को दिया(17)
(17) दुनिया की माल मत्ता, और यह समझ लो कि जो अल्लाह तआला ने मुक़द्दर फ़रमाया है ज़रूर होता है, न ग़म करने से कोई गई हुई चीज़ वापस मिल सकती है न फ़ना होने वाली चीज़ इतराने के लायक़ है तो चाहिये कि ख़ुशी की जगह शुक्र और ग़म की जगह सब्र इख़्तियार करो. ग़म से मुराद यहाँ इन्सान की वह हालत है जिसमें सब्र और अल्लाह की मर्ज़ी से राज़ी रहना और सवाब की उम्मीद बाक़ी न रहे और ख़ुशी से वह इतराना मुराद है जिसमें मस्त होकर आदमी शुक्र से ग़ाफ़िल हो जाए और वह ग़म और रंज जिसमें बन्दा अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जह हो और उसकी रज़ा पर राज़ी हो. ऐसे ही वह ख़ुशी जिस पर अल्लाह तआला का शुक्र गुज़ार हो, मना नहीं है. हज़रत इमाम जअफ़रे सादिक़ रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया ऐ आदम के बेटे, किसी चीज़ के न होने पर ग़म क्यों करता है यह उसको तेरे पास वापस न लाएगा और किसी मौजूद चीज़ पर क्यों इतराता है मौत उसको तेरे हाथ में न छोड़ेगी.

और अल्लाह को नहीं भाता कोई इतरौना बड़ाई मारने वाला {23} वो जो आप बुख़्ल (कंजूसी) करें (18)
(18) और अल्लाह की राह और भलाई के कामों में ख़र्च न करें और माली हुक़ूक़ की अदायगी से क़ासिर (असमर्थ) रहें.

और औरों से बुख़्ल को कहें (19)
(19) इसकी तफ़सीर में मुफ़स्सिरों का एक क़ौल यह भी है कि यहूदियों के हाल का बयान है और कंजूसी से मुराद उनका सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के उन गुणों को छुपाना है जो पिछली किताबों में दर्ज थे.

और जो मुंह फेरे(20)
(20) ईमान से या माल ख़र्च करने से या ख़ुदा और रसूल की फ़रमाँबरदारी से.

तो बेशक अल्लाह ही बेनियाज़ है सब ख़ूबियों सराहा {24} बेशक हमने अपने रसूलों को दलीलों के साथ भेजा और उनके साथ किताब (21)
(21) अहकाम और क़ानून की बयान करने वाली.

और इन्साफ़ की तराज़ू उतारी(22)
(22) तराज़ू से मुराद इन्साफ़ है. मानी ये है कि हम ने इन्साफ़ का हुक्म दिया और एक क़ौल यह है कि तराज़ू से वज़न का आला ही मुराद है कि हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के पास तराज़ू लाए और फ़रमाया कि अपनी क़ौम को हुक्म दीजिये कि इससे वज़न करें.

कि लोग इन्साफ़ पर क़ायम हों(23)
(23) और कोई किसी का हक़ न मारे.

और हमने लोहा उतारा(24)
(24) कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि उतारना यहाँ पैदा करने के मानी में हैं. मुराद यह है कि हमने लोहा पैदा किया और लोगों के लिये खानों से निकाला और उन्हें उसकी सनअत का इल्म दिया और यह भी रिवायत है अल्लाह तआला ने चार बरकत वाली चीज़ें आसमान से ज़मीन की तरफ़ उतारीं, लोहा, आग, पानी और नमक.

उसमें सख़्त आंच नुक़सान (25)
(25) और निहायत क़ुव्वत कि उससे जंग के हथियार बनाए जाते हैं.

और लोगों के फ़ायदे(26)
(26) कि सनअतों और हिरफ़तों में वह बहुत काम आता है. ख़ुलासा यह कि हमने रसूलों को भेजा और उनके साथ इन चीज़ों को उतारा ताकि लोग सच्चाई और इन्साफ़ का मामला करें.

और इसलिये कि अल्लाह देखे उसको जो बे देखे उसकी(27)
(27) यानी उसके दीन की.

और उसके रसूलों की मदद करता है, बेशक अल्लाह क़ुव्वत वाल ग़ालिब है(28) {25}
(28) उसको किसी की मदद दरकार नहीं. दीन की मदद करने का जो हुक्म दिया गया है उन्हीं के नफ़े के लिये है.

57 सूरए हदीद – चौथा रूकू

57 सूरए हदीद – चौथा रूकू

57|26|وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا نُوحًا وَإِبْرَاهِيمَ وَجَعَلْنَا فِي ذُرِّيَّتِهِمَا النُّبُوَّةَ وَالْكِتَابَ ۖ فَمِنْهُم مُّهْتَدٍ ۖ وَكَثِيرٌ مِّنْهُمْ فَاسِقُونَ
57|27|ثُمَّ قَفَّيْنَا عَلَىٰ آثَارِهِم بِرُسُلِنَا وَقَفَّيْنَا بِعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ وَآتَيْنَاهُ الْإِنجِيلَ وَجَعَلْنَا فِي قُلُوبِ الَّذِينَ اتَّبَعُوهُ رَأْفَةً وَرَحْمَةً وَرَهْبَانِيَّةً ابْتَدَعُوهَا مَا كَتَبْنَاهَا عَلَيْهِمْ إِلَّا ابْتِغَاءَ رِضْوَانِ اللَّهِ فَمَا رَعَوْهَا حَقَّ رِعَايَتِهَا ۖ فَآتَيْنَا الَّذِينَ آمَنُوا مِنْهُمْ أَجْرَهُمْ ۖ وَكَثِيرٌ مِّنْهُمْ فَاسِقُونَ
57|28|يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَآمِنُوا بِرَسُولِهِ يُؤْتِكُمْ كِفْلَيْنِ مِن رَّحْمَتِهِ وَيَجْعَل لَّكُمْ نُورًا تَمْشُونَ بِهِ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ۚ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
57|29|لِّئَلَّا يَعْلَمَ أَهْلُ الْكِتَابِ أَلَّا يَقْدِرُونَ عَلَىٰ شَيْءٍ مِّن فَضْلِ اللَّهِ ۙ وَأَنَّ الْفَضْلَ بِيَدِ اللَّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَاءُ ۚ وَاللَّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ

और बेशक हमने नूह और इब्राहीम को भेजा और उनकी औलाद में नबुव्वत और किताब रखी(1)
(1) यानी तौरात व इंजील और ज़ुबूर और क़ुरआन.

तो उनमें(2)
(2) यानी उनकी सन्तान में जिनमें नबी और किताबें भेजीं.

कोई राह पर आया, और उनमें बहुतेरे फ़ासिक़ हैं {26} फिर हमने उनके पीछे(3)
(3) यानी हज़रत नूह और इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बाद हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के ज़माने तक एक के बाद दूसरा.

उसी राह पर अपने रसूल भेजे और उनके पीछे मरयम के बेटे ईसा को भेजा और उसे इन्जील अता फ़रमाई और उसके अनुयाइयों के दिल में नर्मी और रहमत रखी (4)
(4) कि वो आपस में एक दूसरे के साथ महब्बत और शफ़क़त रखते.

और राहिब बनना (5)
(5) पहाड़ों और ग़ारों और अकेले मकानों में एकान्त में बैठना और दुनिया वालों से रिश्ते तोड़ लेना और इबादतों में अपने ऊपर अतिरिक्त मेहनतें बढ़ा लेना, सन्यासी हो जाना, निकाह न करना, खुरदुरे कपड़े पहन्ना, साधारण ग़िज़ा निहायत कम मात्रा में खाना.

तो यह बात उन्होंने दीन में अपनी तरफ़ से निकाली हमने उनपर मुक़र्रर न की थी हाँ यह बिदअत उन्होंने अल्लाह की रज़ा चाहने को पैदा की फिर उसे न निबाहा, जैसा उसके निबाहने का हक़ था(6)
(6) बल्कि उसको ज़ाया कर दिया और त्रिमूर्ति और इल्हाद में गिरफ़तार हुए और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के दीन से मुंह फेर कर अपने बादशाहों के दीन में दाख़िल हुए और कुछ लोग उनमें से मसीही दीन पर क़ायम और साबित भी रहे और हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के मुबारक ज़माने को पाया तो हुज़ूर पर ईमान भी लाए. इस आयत से मालूम हुआ कि बिदअत यानी दीन में किसी नई बात का निकालना, अगर वह बात नेक हो और उससे अल्लाह की रज़ा मक़सूद हो, तो बेहतर है, उस पर सवाब मिलता है और उसको जारी रखना चाहिये. ऐसी बिदअत को बिदअते हसना कहते हैं अलबत्ता दीन में बुरी बात निकालना बिदअते सैइय्या कहलाता है और वह ममनूअ और नाजायज़ है. और बिदअते सैइय्या हदीस शरीफ़ में वह बताई गई है जो सुन्नत के खिलाफ़ हो उसके निकालने से कोई सुन्नत उठ जाए. इससे हज़ारों मसअलों का फ़ैसला हो जाता है. जिनमें आजकल लोग इख़्तिलाफ़ करते हैं और अपनी हवाए नफ़्सानी से ऐसे भले कामों को बिदअत बताकर मना करते हैं जिनसे दीन की तक़वियत और ताईद होती है और मुसलमानों को आख़िरत के फ़ायदे पहुंचते हैं और वो ताअतों और इबादतों में ज़ौक़ और शौक़ से मश्ग़ूल रहते हैं. ऐसे कामों को बिदअत बताना क़ुरआन मजीद की इस आयत के ख़िलाफ़ है.

तो उनके ईमान वालों को(7)
(7) जो दीन पर क़ायम रहे थे.

हमने उनका सवाब अता किया, और उनमें से बहुतेरे(8)
(8) जिन्होंने सन्यास को छोड़ दिया और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के दीन से कट गए.

फ़ासिक़ हैं {27} ऐ ईमान वालो(9)
(9) हज़रत मूसा और ईसा अलैहिस्सलाम पर. यह ख़िताब किताब वालों को है उनसे फ़रमाया जाता है.

अल्लाह से डरो और उसके रसूल (10)
(10) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम

पर ईमान लाओ वह अपनी रहमत के दो हिस्से तुम्हें अता फ़रमाएगा(11)
(11) यानी तुम्हें दुगना अज्र देगा क्योंकि तुम पहली किताब और पहले नबी पर ईमान लाए और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और क़ुरआने पाक पर भी.

और तुम्हारे लिये नूर कर देगा(12)
(12) सिरात पर.

जिसमें चलो और तुम्हें बख़्श देगा, और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है {28} यह इसलिये कि किताब वाले काफ़िर जान जाएं कि अल्लाह के फ़ज़्ल पर उनका कुछ क़ाबू नहीं(13)और यह कि फ़ज़्ल अल्लाह के हाथ है देता है जिसे चाहे, और अल्लाह बड़े फ़ज़्ल वाला है{29}
(13)वो उसमें से कुछ नहीं पा सकते न दुगना अज्र, व नूर, मग़फ़िरत, क्योंकि वो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर ईमान न लाए तो उनका पहले नबियों पर ईमान लाना भी लाभदायक न होगा. जब ऊपर की आयत उतरी और उसमें किताब वालों के मूमिनों को सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के ऊपर ईमान लाने पर दुगने अज्र का वादा दिया गया तो एहले किताब के काफ़िरों ने कहा कि अगर हम हुज़ूर पर ईमान लाएं तो दुगना अज्र मिले और न लाएं तो एक अज्र तब भी रहेगा. इस पर यह आयत उतरी और उनके इस ख़याल को ग़लत क़रार दिया गया.

पारा सत्ताईस समाप्त

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