40 सूरए मूमिन – पहला रूकू
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ حم
تَنزِيلُ الْكِتَابِ مِنَ اللَّهِ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ
غَافِرِ الذَّنبِ وَقَابِلِ التَّوْبِ شَدِيدِ الْعِقَابِ ذِي الطَّوْلِ ۖ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ إِلَيْهِ الْمَصِيرُ
مَا يُجَادِلُ فِي آيَاتِ اللَّهِ إِلَّا الَّذِينَ كَفَرُوا فَلَا يَغْرُرْكَ تَقَلُّبُهُمْ فِي الْبِلَادِ
كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ وَالْأَحْزَابُ مِن بَعْدِهِمْ ۖ وَهَمَّتْ كُلُّ أُمَّةٍ بِرَسُولِهِمْ لِيَأْخُذُوهُ ۖ وَجَادَلُوا بِالْبَاطِلِ لِيُدْحِضُوا بِهِ الْحَقَّ فَأَخَذْتُهُمْ ۖ فَكَيْفَ كَانَ عِقَابِ
وَكَذَٰلِكَ حَقَّتْ كَلِمَتُ رَبِّكَ عَلَى الَّذِينَ كَفَرُوا أَنَّهُمْ أَصْحَابُ النَّارِ
الَّذِينَ يَحْمِلُونَ الْعَرْشَ وَمَنْ حَوْلَهُ يُسَبِّحُونَ بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَيُؤْمِنُونَ بِهِ وَيَسْتَغْفِرُونَ لِلَّذِينَ آمَنُوا رَبَّنَا وَسِعْتَ كُلَّ شَيْءٍ رَّحْمَةً وَعِلْمًا فَاغْفِرْ لِلَّذِينَ تَابُوا وَاتَّبَعُوا سَبِيلَكَ وَقِهِمْ عَذَابَ الْجَحِيمِ
رَبَّنَا وَأَدْخِلْهُمْ جَنَّاتِ عَدْنٍ الَّتِي وَعَدتَّهُمْ وَمَن صَلَحَ مِنْ آبَائِهِمْ وَأَزْوَاجِهِمْ وَذُرِّيَّاتِهِمْ ۚ إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
وَقِهِمُ السَّيِّئَاتِ ۚ وَمَن تَقِ السَّيِّئَاتِ يَوْمَئِذٍ فَقَدْ رَحِمْتَهُ ۚ وَذَٰلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ
सूरए मूमिन मक्का में उतरी, इसमें 85 आयतें, नौ रूकू हैं.
-पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1)सूरए मूमिन का नाम सूरए ग़ाफ़िर भी है. यह सूरत मक्के में उतरी सिवाय दो आयतों के जो “अल्लज़ीना युजादिलूना फ़ी आयातिल्लाहे” से शुरू होती हैं. इस सूरत में नौ रूकू, पचासी आयतें, एक हज़ार एक सौ निनानवे कलिमे और चार हज़ार नौ सौ साठ अक्षर हैं.
हा मीम {1} यह किताब उतारना है अल्लाह की तरफ़ से जो इज़्ज़त वाला इल्म वाला {2} गुनाह बख़्शने वाला और तौबह क़ुबूल करने वाला(2)
(2)ईमानदारों की.
सख़्त अज़ाब करने वाला(3)
(3) काफ़िरों पर.
बड़े इनाम वाला (4)
(4) आरिफ़ों यानी अल्लाह को पहचानने वालों पर.
उसके सिवा कोई मअबूद नहीं, उसी की तरफ़ फिरना हैं (5){3}
(5) बन्दों को, आख़िरत में.
अल्लाह की आयतों में झगड़ा नहीं करते मगर काफ़िर (6)
(6) यानी क़ुरआने पाक में झगड़ा करना काफ़िर के सिवा मूमिन का काम नहीं. अबू दाऊद की हदीस में है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि क़ुरआन में झगड़ा करना कुफ़्र है. झगड़े और जिदाल से मुराद अल्लाह की आयतों में तअने करना और तकज़ीब (झुटलाने) और इन्कार के साथ पेश आना है. और मुश्किलों को सुलझाने और गहराई का पता चलाने के लिये इल्म और उसूल की बहसें झगड़ा नहीं बल्कि महानताअतों में से हैं. काफ़िरों का झगड़ा करना आयतों में यह था कि वो कभी क़ुरआन शरीफ़ को जादू कहते, कभी काव्य, कभी तांत्रिक विद्या, कभी क़िस्से कहानियाँ.
तो ऐ सुनने वाले तुझे धोखा न दे उनका शहरों में अहले गहले (इतराते) फिरना(7){4}
(7) यानी काफ़िरों का सेहत व सलामती के साथ मुल्क मुल्क तिजारतें करते फिरना और नफ़ा पाना तुम्हारे लिये चिंता का विषय न हो कि यह कुफ़्र जैसा महान जुर्म करने के बाद भी अज़ाब से अम्न में रहे, क्योंकि उनका अन्त ख़्वारी और अज़ाब है. पहली उम्मतों में भी ऐसे हालात गुज़र चुके हैं.
उनसे पहले नूह की क़ौम और उनके बाद के गिरोहों(8)
(8) आद व समूद व क़ौमे लूत वग़ैरह.
ने झुटलाया और हर उम्मत ने यह क़स्द किया कि अपने रसूल को पकड़ लें(9)
(9) और उन्हें क़त्ल और हलाक कर दें.
और बातिल (असत्य) के साथ झगड़े कि उससे हक़ को टाल दें(10)
(10) जिसको नबी लाए हैं.
तो मैं ने उन्हें पकड़ा, फिर कैसा हुआ मेरा अज़ाब(11) {5}
(11) क्या उनमें का कोई उससे बच सका.
और यूंही तुम्हारे रब की बात काफ़िरों पर साबित हो चुकी है कि वो दोज़ख़ी हैं {6} वो जो अर्श उठाते हैं(12)
(12) यानी अर्श उठाने वाले फ़रिश्ते जो क़ुर्ब वालों और फ़रिश्तों में बुज़ुर्गी व इज़्ज़त वाले हैं.
और जो उसके गिर्द हैं(13)
(13) यानी जो फ़रिश्ते कि अर्श की परिक्रमा करने वाले हैं, उन्हें करूबी कहते हैं और ये फ़रिश्तों में सरदारी पाए हुए हैं.
अपने रब की तअरीफ़ के साथ उसकी पाकी बोलते(14)
(14) और सुब्हानल्लाहे व बिहम्दिही कहते.
और उसपर ईमान लाते(15)
(15) और उसके एक होने की पुष्टि करते. शहर बिन होशब ने कहा कि अर्श उठाने वाले फ़रिश्ते आठ हैं उनमें से चार की तस्बीह यह है : “सुब्हानकल्लाहुम्मा व बिहम्दिका लकल हम्दो अला हिल्मिका बअदा इल्मिका”और चार की यह :”सुब्हानकल्लाहुम्मा व बिहम्दिका लकल हम्दो अला अफ़विका बअदा क़ुदरतिका”.
और मुसलमानों की मग़फ़िरत माँगते हैं(16)
(16) और अल्लाह की बारगाह में इस तरह अर्ज़ करते हैं.
ऐ रब हमारे तेरी रहमत व इल्म में हर चीज़ की समाई है(17)
(17) यानी तेरी रेहमत और तेरा इल्म हर चीज़ को वसीअ है. दुआ से पहले प्रशंसा के शब्द कहने से मालूम हुआ कि दुआ के संस्कारों में से यह है कि पहले अल्लाह तआला की स्तुति और तारीफ़ की जाए फिर अपनी मुराद अर्ज़ की जाए.
तो उन्हें बख़्श दे जिन्होंने तौबह की और तेरी राह पर चले (18)
(18) यानी दीने इस्लाम पर.
और उन्हें दोज़ख़ के अज़ाब से बचा ले{7} ऐ हमारे रब और उन्हें बसने के बाग़ों में दाख़िल कर जिनका तू ने उनसे वादा फ़रमाया है और उनको जो नेक हों उनके बाप दादा और बीबियों और औलाद में (19)
(19) उन्हें भी दाख़िल कर.
बेशक तूही इज़्ज़त व हिकमत वाला है {8} और उन्हें गुनाहों की शामत से बचा ले और जिसे तू उस दिन गुनाहों की शामत से बचाए तो बेशक तू ने उसपर रहम फ़रमाया, और यही बड़ी कामयाबी है{9}
40 सूरए मूमिन – दूसरा रूकू
إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا يُنَادَوْنَ لَمَقْتُ اللَّهِ أَكْبَرُ مِن مَّقْتِكُمْ أَنفُسَكُمْ إِذْ تُدْعَوْنَ إِلَى الْإِيمَانِ فَتَكْفُرُونَ
قَالُوا رَبَّنَا أَمَتَّنَا اثْنَتَيْنِ وَأَحْيَيْتَنَا اثْنَتَيْنِ فَاعْتَرَفْنَا بِذُنُوبِنَا فَهَلْ إِلَىٰ خُرُوجٍ مِّن سَبِيلٍ
ذَٰلِكُم بِأَنَّهُ إِذَا دُعِيَ اللَّهُ وَحْدَهُ كَفَرْتُمْ ۖ وَإِن يُشْرَكْ بِهِ تُؤْمِنُوا ۚ فَالْحُكْمُ لِلَّهِ الْعَلِيِّ الْكَبِيرِ
هُوَ الَّذِي يُرِيكُمْ آيَاتِهِ وَيُنَزِّلُ لَكُم مِّنَ السَّمَاءِ رِزْقًا ۚ وَمَا يَتَذَكَّرُ إِلَّا مَن يُنِيبُ
فَادْعُوا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ وَلَوْ كَرِهَ الْكَافِرُونَ
رَفِيعُ الدَّرَجَاتِ ذُو الْعَرْشِ يُلْقِي الرُّوحَ مِنْ أَمْرِهِ عَلَىٰ مَن يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ لِيُنذِرَ يَوْمَ التَّلَاقِ
يَوْمَ هُم بَارِزُونَ ۖ لَا يَخْفَىٰ عَلَى اللَّهِ مِنْهُمْ شَيْءٌ ۚ لِّمَنِ الْمُلْكُ الْيَوْمَ ۖ لِلَّهِ الْوَاحِدِ الْقَهَّارِ
الْيَوْمَ تُجْزَىٰ كُلُّ نَفْسٍ بِمَا كَسَبَتْ ۚ لَا ظُلْمَ الْيَوْمَ ۚ إِنَّ اللَّهَ سَرِيعُ الْحِسَابِ
وَأَنذِرْهُمْ يَوْمَ الْآزِفَةِ إِذِ الْقُلُوبُ لَدَى الْحَنَاجِرِ كَاظِمِينَ ۚ مَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ حَمِيمٍ وَلَا شَفِيعٍ يُطَاعُ
يَعْلَمُ خَائِنَةَ الْأَعْيُنِ وَمَا تُخْفِي الصُّدُورُ
وَاللَّهُ يَقْضِي بِالْحَقِّ ۖ وَالَّذِينَ يَدْعُونَ مِن دُونِهِ لَا يَقْضُونَ بِشَيْءٍ ۗ إِنَّ اللَّهَ هُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ
बेशक जिन्होंने कुफ़्र किया उनको निदा की जाएगी(1)
(1) क़यामत के दिन जबकि वो जहन्नम में दाख़िल होंगे और उनकी बदियाँ उनपर पेश की जाएंगी और वो अज़ाब देखेंगे तो फ़रिश्ते उनसे कहेंगे.
कि ज़रूर तुमसे अल्लाह की बेज़ारी इससे बहुत ज़्यादा है जैसे तुम आज अपनी जान से बेज़ार हो जबकि तुम(2)
(2) दुनिया में.
ईमान की तरफ़ बुलाए जाते तो तुम कुफ़्र करते{10} कहेंगे ऐ हमारे रब तूने हमें दोबारा मुर्दा किया और दोबारा ज़िन्दा किया(3)
(3) क्योंकि पहले बेजान नुत्फ़ा थे, इस मौत के बाद उन्हें जान देकर ज़िन्दा किया, फिर उम्र पूरी होने पर मौत दी, दोबारा उठाने के लिये ज़िन्दा किया.
अब हम अपने गुनाहों पर मुक़िर हुए (अड़ गए) तो आग से निकलने की भी कोई राह है(4){11}
(4) उसका जवाब यह होगा कि तुम्हारे दोज़ख़ से निकलने का कोई रास्ता नहीं और तुम जिस हाल में हो, जिस अज़ाब में गिरफ़्तार हो, और उससे रिहाई की कोई राह नहीं पा सकते.
यह उस पर हुआ कि जब एक अल्लाह पुकारा जाता तो तुम कुफ़्र करते(5)
(5) यानी इस अज़ाब और इसकी हमेशगी का कारण तुम्हारा यह कर्म है कि जब अल्लाह की तौहीद का ऐलान होता और लाइलाहा इल्लल्लाहो कहा जाता तो तुम उसका इन्कार करते और कुफ़्र इख़्तियार करते.
और उस का शरीक ठहराया जाता तो तुम मान लेते(6)
(6) और इस शिर्क की तस्दीक़ करते.
तो हुक्म अल्लाह के लिये है जो सब से बलन्द बड़ा {12} वही है कि तुम्हें अपनी निशानियां दिखाता है(7)
(7) यानी अपनी मसनूआत के चमत्कार जो उसकी भरपूर क़ुदरत के प्रमाण है जैसे हवा और बादल और बिजली वग़ैरह.
और तुम्हारे लिये आसमान से रोज़ी उतारता है(8),
(8) मेंह बरसा कर.
और नसीहत नहीं मानता(9)
(9) और उन निशानियों से नसीहत हासिल नहीं करता.
मगर जो रूजू लाए(10){13}
(10) सारे कामों में अल्लाह तआला की तरफ़ और शिर्क से तौबह करे.
तो अल्लाह की बन्दगी करो निरे उसके बन्दे होकर(11)
(11) शिर्क से अलग होकर.
पड़े बुरा माने काफ़िर {14} बलन्द दर्जे देने वाला(12)
(12) नबियों, वलियों और उलमा को, जन्नम में.
अर्श का मालिक, ईमान की जान वही डालता है अपन हुक्म से अपने बन्दों में जिस पर चाहे(13)
(13) यानी अपने बन्दों में से जिसे चाहता है नबुव्वत की उपाधि अता करता है और जिसको नबी बनाता है उसका काम होता है.
कि वह मिलने के दिन से डराए(14) {15}
(14) यानी सृष्टि को क़यामत का ख़ौफ़ दिलाए जिस दिन आसमान और ज़मीन वाले और अगले पिछले मिलेंगे और आत्माएं शरीरों से और हर कर्म करने वाला अपने कर्म से मिलेगा.
जिस दिन वो बिल्कुल ज़ाहिर हो जाएंगे(15)
(15)क़ब्रों से निकल कर और कोई ईमारत या पहाड़ और छुपने की जगह और आड़ न पाएंगे.
अल्लाह पर उनका कुछ हाल छुपा न होगा(16)
(16) न कहनी न करनी, न दूसरे हालात और अल्लाह तआला से तो कोई चीज़ कभी नहीं छुप सकती लेकिन यह दिन ऐसा होगा कि उन लोगों के लिये कोई पर्दा और आड़ की चीज़ न होगी जिसके ज़रिये से वो अपने ख़याल में भी अपने हाल को छुपा सके, और सृष्टि के नाश के बाद अल्लाह तआला फ़रमाएगा.
आज किस की बादशाही है (17)
(17) अब कोई न होगा कि जवाब दे. ख़ुद ही जवाब में फ़रमाएगा कि अल्लाह वाहिद व क़हहार की. और एक क़ौल यह है कि क़यामत के दिन जब सारे अगले पिछले हाज़िर होंगे तो एक पुकारने वाला पुकारेगा, आज किसकी बादशाही है? सारी सृष्टि जवाब देगी “लिल्लाहिल वाहिदिल क़हहार” अल्लाह वाहिद व क़हहार की जैसा कि आगे इरशाद होता है.
एक अल्लाह सब पर ग़ालिब की(18) {16}
(18) मूमिन तो यह जवाब बहुत मज़े के साथ अर्ज़ करेंगे क्योंकि वो दुनिया में यही अक़ीदा रखते थे. यही कहते थे और इसी की बदौलत उन्हें दर्जे मिले और काफ़िर ज़िल्लत और शर्मिन्दगी के साथ इसका इक़रार करेंगे और दुनिया में अपने इन्कारी रहने पर लज्जित होंगे.
आज हर जान अपने किये का बदला पाएगी (19)
(19) नेक अपनी नेकी का और बद अपनी बदी का.
आज किसी पर ज़ियादती नहीं, बेशक अल्लाह जल्द हिसाब लेने वाला है {17} और उन्हें डराओ उस नज़्दीक आने वाली आफ़त के दिन से(20)
(20) इससे क़यामत का दिन मुराद है.
जब दिल गलों के पास आ जाएंगे(21)
(21) ख़ौफ़ की सख़्ती से न बाहर ही निकल सकें न अन्दर ही अपनी जगह वापस जा सकें.
ग़म में भरे, और ज़ालिमों का न कोई दोस्त न कोई सिफ़रिशी जिस का कहा माना जाए(22){18}
(22) यानी काफ़िर शफ़ाअत से मेहरूम होंगे.
अल्लाह जानता है चोरी छुपे की निगाह(23)
(23) यानी निगाहों की ख़यानत और चोरी, ना-मेहरम को देखना और मना की हुई चीज़ों पर नज़र डालना.
और जो कुछ सीनों में छुपा है(24){19}
(24)यानी दिलों के राज़, सब चीजें अल्लाह तआला के इल्म में हैं.
और अल्लाह सच्चा फ़ैसला फ़रमाता है और उसके सिवा जिनको(25)
(25) यानी जिन बुतों को ये मुश्रिक लोग.
पूजते हैं वो कुछ फ़ैसला नहीं करते(26) ,
(26) क्योंकि न वो इल्म रखते हैं न क़ुदरत, तो उनकी इबादत करना और उन्हें ख़ुदा का शरीक ठहराना बहुत ही खुला हुआ असत्य है.
बेशक अल्लाह ही सुनता और देखता है(27) {20}
(27) अपनी मख़लुक़ की कहनी व करनी और सारे हालात को.
40 सूरए मूमिन – तीसरा रूकू
۞ أَوَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ كَانُوا مِن قَبْلِهِمْ ۚ كَانُوا هُمْ أَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً وَآثَارًا فِي الْأَرْضِ فَأَخَذَهُمُ اللَّهُ بِذُنُوبِهِمْ وَمَا كَانَ لَهُم مِّنَ اللَّهِ مِن وَاقٍ
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ كَانَت تَّأْتِيهِمْ رُسُلُهُم بِالْبَيِّنَاتِ فَكَفَرُوا فَأَخَذَهُمُ اللَّهُ ۚ إِنَّهُ قَوِيٌّ شَدِيدُ الْعِقَابِ
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مُوسَىٰ بِآيَاتِنَا وَسُلْطَانٍ مُّبِينٍ
إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَهَامَانَ وَقَارُونَ فَقَالُوا سَاحِرٌ كَذَّابٌ
فَلَمَّا جَاءَهُم بِالْحَقِّ مِنْ عِندِنَا قَالُوا اقْتُلُوا أَبْنَاءَ الَّذِينَ آمَنُوا مَعَهُ وَاسْتَحْيُوا نِسَاءَهُمْ ۚ وَمَا كَيْدُ الْكَافِرِينَ إِلَّا فِي ضَلَالٍ
وَقَالَ فِرْعَوْنُ ذَرُونِي أَقْتُلْ مُوسَىٰ وَلْيَدْعُ رَبَّهُ ۖ إِنِّي أَخَافُ أَن يُبَدِّلَ دِينَكُمْ أَوْ أَن يُظْهِرَ فِي الْأَرْضِ الْفَسَادَ
وَقَالَ مُوسَىٰ إِنِّي عُذْتُ بِرَبِّي وَرَبِّكُم مِّن كُلِّ مُتَكَبِّرٍ لَّا يُؤْمِنُ بِيَوْمِ الْحِسَابِ
तो क्या उन्होंने ज़मीन में सफ़र न किया कि देखते कैसा अंजाम हुआ उनसे अगलों का(1),
(1) जिन्हों ने रसूलों को झुटलाया था.
उनकी क़ुव्वत और ज़मीन में जो निशानियाँ छोड़ गए(2)
(2) क़िले और महल, नेहरें और हौज़, और बड़ी बड़ी इमारतें.
उनसे ज़्यादा तो अल्लाह ने उन्हें उनके गुनाहों पर पकड़ा, और अल्लाह से उनका कोई बचाने वाला न हुआ(3) {21}
(3) कि अल्लाह के अजाब से बचा सकता, समझदार का काम है कि दूसरे के हाल से इब्रत हासिल करे. इस एहद के काफ़िर यह हाल देखकर क्यों इब्रत हासिल नहीं करते, क्यों नहीं सोचते कि पिछली क़ौमें उनसे ज़्यादा मज़बूत और स्वस्थ, मालदार और अधिकार वाली होने के बावुजूद, इस इब्रत से भरपूर तरीक़े पर तबाह कर दी गई. यह क्यों हुआ.
यह इसलिये कि उनके पास उनके रसूल रौशन निशानियां लेकर आए(4)
(4) चमत्कार दिखाते.
फिर वो कुफ़्र करते तो अल्लाह ने उन्हें पकड़ा, बेशक अल्लाह ज़बरदस्त सख़्त अज़ाब वाला है {22} और बेशक हमने मूसा को अपनी निशानियों और रौशन सनद के साथ भेजा {23} फ़िरऔन और हामान और क़ारून की तरफ़ तो वो बोले जादूगर है बड़ा झूटा(5) {24}
(5) और उन्होंने हमारी निशानियाँ और प्रमाणों को जादू बताया.
फिर जब वह उनपर हमारे पास से हक़ (सच्चाई) लाया (6)
(6) यानी नबी होकर अल्लाह का संदेश लाए तो फ़िरऔन और उसकी क़ौम.
बोले जो इस पर ईमान लाए उनके बेटे क़त्ल करो और औरतें ज़िन्दा रखो(7)
(7) ताकि लोग हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के अनुकरण से बाज़ आएं.
और काफ़िरों का दाव नहीं मगर भटकता फिरता (8) {25}
(8) कुछ भी तो कारआमद नहीं, बिल्कुल निकम्मा और बेकार. पहले भी फ़िरऔनियों ने फ़िरऔन के हुक्म से हज़ारों क़त्ल किये मगर अल्लाह की मर्ज़ी होकर रही और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को रब ने फ़िरऔन के घर बार में पाला, उससे ख़िदमतें कराई. जैसा वह दाव फ़िरऔनियों का बेकार गया ऐसे ही अब ईमान वालों को रोकने के लिये फिर दोबारा क़त्ल शुरू करना बेकार है. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के दीन का प्रचलन अल्लाह तआला को मंज़ूर है, उसे कौन रोक सकता है.
और फ़िरऔन बोला(9)
(9) अपने गिरोह से.
मुझे छोड़ों मैं मूसा को क़त्ल करूं(10)
(10) फ़िरऔन जब कभी हजरत मूसा अलैहिस्सलाम के क़त्ल का इरादा करता तो उसकी क़ौम के लोग उसे इस से मना करते और कहते कि यह वह व्यक्ति नहीं है जिसका तुझे अन्देशा है. यह तो एक मामूली जादूगर है इसपर तो हम अपने जादू से ग़ालिब आ जाएंगे और अगर इसको क़त्ल कर दिया तो आम लोग शुबह में पड़ जाएंगे कि वह व्यक्ति सच्चा था, हक़ पर था, तू दलील से उसका मुक़ाबला करने में आजिज़ हुआ, जवाब न दे सका, तो तूने उसे क़त्ल कर दिया. लेकिन हक़ीक़त में फ़िरऔन का यह कहना कि मुझे छोड़ दो मैं मूसा को क़त्ल करूं, ख़ालिस धमकी ही थी. उसको ख़ुद आपके सच्चे नबी होने का यक़ीन था और वह जानता था कि जो चमत्कार आप लाए हैं वह अल्लाह की आयतें हैं, जादू नहीं. लेकिन यह समझता था कि अगर आप के क़त्ल का इरादा करेगा तो आप उसको हलाक करने में जल्दी फ़रमाएंगे, इससे यह बेहतर है कि बहस बढ़ाने में ज़्यादा वक़्त गुज़ार दिया जाए. अगर फ़िरऔन अपने दिल में आप को सच्चा नबी न समझता और यह न जानता कि अल्लाह की ताईदें जो आपके साथ हैं, उनका मुक़ाबला नामुमकिन है, तो आपके क़त्ल में हरगिज़ देरी न करता क्योंकि वह बड़ा खूंखार, सफ्फ़ाक़, ज़ालिम, बेदर्द था, छोटी सी बात में हज़ारहा ख़ून कर डालता था.
और वह अपने रब को पुकारे(11)
(11) जिसका अपने आप को रसूल बताता है ताकि उसका रब उसको हमसे बचाए. फ़िरऔन का यह क़ौल इसपर गवाह है कि उसके दिल में आपका और आपकी दुआओ का ख़ौफ़ था. वह अपने दिल में आप से डरता था. दिखावे की इज़्ज़त बनी रखने के लिये यह ज़ाहिर करता था कि वह क़ौम के मना करने के कारण हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को क़त्ल नहीं करता.
मैं डरता हूँ कहीं वह तुम्हारा दीन बदल दे(12)
(12) और तुम से फ़िरऔन परस्ती और बुत परस्ती छुड़ा दे.
या ज़मीन में फ़साद चमकाए(13) {26}
(13) जिदाल और क़िताल करके.
और मूसा ने (14),
(14) फ़िरऔन की धमकियाँ सुनकर.
कहा मैं तुम्हारे और अपने रब की पनाह लेता हूँ हर मुतकब्बिर (घमण्डी) से कि हिसाब के दिन पर यक़ीन नहीं लाता(15) {27}
(15) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़िरऔन की सख़्तियों के जवाब में अपनी तरफ़ से कोई कलिमा अतिश्योक्ति या बड़ाई का न फ़रमाया बल्कि अल्लाह तआला से पनाह चाही और उसपर भरोसा किया. यही ख़ुदा की पहचान वालों का तरीक़ा है और इसी लिये अल्लाह तआला ने आपको हर एक बला से मेहफ़ूज़ रखा. इन मुबारक जुमलों में कैसी बढ़िया हिदायतें है. यह फ़रमाना कि तुम्हारे और अपने रब की पनाह लेता हूँ और इसमें हिदायत है कि रब एक ही है. यह भी हिदायत है कि जो उसकी पनाह में आए उस पर भरोसा करे तो वह उसकी मदद फ़रमाए, कोई उसको हानि नहीं पहुंचा सकता. यह भी हिदायत है कि उसी पर भरोसा करना बन्दगी की शान है और तुम्हारे रब फ़रमाने में यह भी हिदायत है कि अगर तुम उस पर भरोसा करो तो तुम्हें भी सआदत नसीब हो.
40 सूरए मूमिन – चौथा रूकू
وَقَالَ رَجُلٌ مُّؤْمِنٌ مِّنْ آلِ فِرْعَوْنَ يَكْتُمُ إِيمَانَهُ أَتَقْتُلُونَ رَجُلًا أَن يَقُولَ رَبِّيَ اللَّهُ وَقَدْ جَاءَكُم بِالْبَيِّنَاتِ مِن رَّبِّكُمْ ۖ وَإِن يَكُ كَاذِبًا فَعَلَيْهِ كَذِبُهُ ۖ وَإِن يَكُ صَادِقًا يُصِبْكُم بَعْضُ الَّذِي يَعِدُكُمْ ۖ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي مَنْ هُوَ مُسْرِفٌ كَذَّابٌ
يَا قَوْمِ لَكُمُ الْمُلْكُ الْيَوْمَ ظَاهِرِينَ فِي الْأَرْضِ فَمَن يَنصُرُنَا مِن بَأْسِ اللَّهِ إِن جَاءَنَا ۚ قَالَ فِرْعَوْنُ مَا أُرِيكُمْ إِلَّا مَا أَرَىٰ وَمَا أَهْدِيكُمْ إِلَّا سَبِيلَ الرَّشَادِ
وَقَالَ الَّذِي آمَنَ يَا قَوْمِ إِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُم مِّثْلَ يَوْمِ الْأَحْزَابِ
مِثْلَ دَأْبِ قَوْمِ نُوحٍ وَعَادٍ وَثَمُودَ وَالَّذِينَ مِن بَعْدِهِمْ ۚ وَمَا اللَّهُ يُرِيدُ ظُلْمًا لِّلْعِبَادِ
وَيَا قَوْمِ إِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُمْ يَوْمَ التَّنَادِ
يَوْمَ تُوَلُّونَ مُدْبِرِينَ مَا لَكُم مِّنَ اللَّهِ مِنْ عَاصِمٍ ۗ وَمَن يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ
وَلَقَدْ جَاءَكُمْ يُوسُفُ مِن قَبْلُ بِالْبَيِّنَاتِ فَمَا زِلْتُمْ فِي شَكٍّ مِّمَّا جَاءَكُم بِهِ ۖ حَتَّىٰ إِذَا هَلَكَ قُلْتُمْ لَن يَبْعَثَ اللَّهُ مِن بَعْدِهِ رَسُولًا ۚ كَذَٰلِكَ يُضِلُّ اللَّهُ مَنْ هُوَ مُسْرِفٌ مُّرْتَابٌ
الَّذِينَ يُجَادِلُونَ فِي آيَاتِ اللَّهِ بِغَيْرِ سُلْطَانٍ أَتَاهُمْ ۖ كَبُرَ مَقْتًا عِندَ اللَّهِ وَعِندَ الَّذِينَ آمَنُوا ۚ كَذَٰلِكَ يَطْبَعُ اللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ قَلْبِ مُتَكَبِّرٍ جَبَّارٍ
وَقَالَ فِرْعَوْنُ يَا هَامَانُ ابْنِ لِي صَرْحًا لَّعَلِّي أَبْلُغُ الْأَسْبَابَ
أَسْبَابَ السَّمَاوَاتِ فَأَطَّلِعَ إِلَىٰ إِلَٰهِ مُوسَىٰ وَإِنِّي لَأَظُنُّهُ كَاذِبًا ۚ وَكَذَٰلِكَ زُيِّنَ لِفِرْعَوْنَ سُوءُ عَمَلِهِ وَصُدَّ عَنِ السَّبِيلِ ۚ وَمَا كَيْدُ فِرْعَوْنَ إِلَّا فِي تَبَابٍ
और बोला फ़िरऔन वालों में से एक मर्द मुसलमान कि अपने ईमान को छुपाता था क्या एक मर्द को इसपर मारे डालते हो कि वह कहता है मेरा रब अल्लाह है और बेशक वह रौशन निशानियाँ तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ़ से लाए(1)
(1) जिनसे उनकी सच्चाई ज़ाहिर हो गई यानी नबुव्वत साबित हो गई.
और अगर फ़र्ज़ करो वो ग़लत कहते हैं तो उनकी ग़लत गोई का वबाल उनपर, और अगर वो सच्चे हैं, तो तुम्हें पहुंच जाएगा कुछ वह जिसका तुम्हें वादा देते हैं(2)
(2) मतलब यह है कि दो हाल से ख़ाली नहीं या ये सच्चे होंगे या झूठे. अगर झूठे हों तो ऐसे मामले में झूट बोलकर उसके वबाल से बच नहीं सकते, हलाक हो जाएंगे. और अगर सच्चे हैं तो जिस अज़ाब का तुम्हें वादा देते हैं उसमें से बिल-फ़ेअल कुछ तुम्हें पहुंच ही जाएगा. कुछ पहुंचना इसलिये कहा कि आपका अज़ाब का वादा दुनिया और आख़िरत दोनों को आम था उसमें से बिलफ़ेअल दुनिया का अज़ाब ही पेश आना था.
बेशक अल्लाह राह नहीं देता उसे जो हद से बढ़ने वाला बड़ा झुटा हो(3) {28}
(3) कि ख़ुदा पर झूठ बांधे.
ऐ मेरी क़ौम आज बादशाही तुम्हारी है इस ज़मीन में ग़लबा रखते हो, (4)
(4) यानी मिस्र में तो ऐसा काम न करो कि अल्लाह का अज़ाब आए. अगर अल्लाह का अज़ाब आया.
तो अल्लाह के अज़ाब से हमें कौन बचा लेगा अगर हम पर आए, फ़िरऔन बोला मैं तो तुम्हें वही समझाता हूँ जो मेरी सूझ है (5)
(5) यानी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को क़त्ल कर देना.
और मैं तो तुम्हें वही बताता हूँ जो भलाई की राह है {29} और वह ईमान वाला बोला ऐ मेरी क़ौम मुझे तुम पर(6)
(6) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को झुटलाने और उनके पीछे पड़ने से.
अगले गिरोहों के दिन का सा डर है(7) {30}
(7) जिन्होंने रसूलों को झुटलाया.
जैसा दस्तूर गुज़रा नूह की क़ौम और आद और समूद और उनके बाद औरों का,(8)
(8) कि नबियों को झुटलाते रहे और हर एक को अल्लाह के अज़ाब ने हलाक किया.
और अल्लाह बन्दों पर ज़ुल्म नहीं चाहता(9){31}
(9) बग़ैर गुनाह के उनपर अज़ाब नहीं फ़रमाता और बिना हुज्जत क़ायम किये उनको हलाक नहीं करता.
और ऐ मेरी क़ौम मैं तुम पर उस दिन से डरता हूँ जिस दिन पुकार मचेगी (10){32}
(10) वह क़यामत का दिन होगा. क़यामत के दिन को यौमुत-तनाद यानी पुकार का दिन इसलिये कहा जाता है कि इस रोज़ तरह तरह की पुकारें मची होंगी, हर व्यक्ति अपने सरदार के साथ और हर जमाअत अपने इमाम के साथ बुलाई जाएगी. जन्नती दोज़ख़ियों को और दोज़ख़ी जन्नतियों को पुकारेंगे, सआदत और शक़ावत की निदाएं की जाएंगी कि अमुक ख़ुशनसीब हुआ अब कभी बदनसीब न होगा और अमुक व्यक्ति बदनसीब हो गया अब कभी सईद न होगा और जिस वक़्त मौत ज़िब्ह की जाएगी उस वक़्त निदा की जाएगी कि ऐ जन्नत वालो अब हमेशगी है, मौत नहीं और ऐ जहन्नम वालो, अब हमेशगी है, मौत नहीं.
जिस दिन पीठ देकर भागोगे,(11)
(11) हिसाब के मैदान से दोज़ख़ की तरफ़.
अल्लाह से(12)
(12) यानी उसके अज़ाब से.
तुम्हें कोई बचाने वाला नहीं, और जिसे अल्लाह गुमराह करे उसका कोई राह दिखाने वाला नहीं{33}और बेशक इससे पहले(13)
(13) यानी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से पहले.
तुम्हारे पास यूसुफ़ रौशन निशानियां लेकर आए तो तुम उनके लाए हुए से शक ही में रहे, यहां तक कि जब उन्होंने इन्तिक़ाल फ़रमाया तुम बोले हरगिज़ अब अल्लाह कोई रसूल न भेजेगा(14),
(14) यह बेदलील बात तुम ने यानी तुम्हारे पहलों ने ख़ुद गढ़ी ताकि हज़रत युसुफ़ अलैहिस्सलाम के बाद आने वाले नबियों को झुटलाओ और उनका इन्कार करो तो तुम कुफ्र पर क़ायम रहे, हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की नबुव्वत में शक करते रहे और बाद वालों की नबुव्वत के इन्कार के लिये तुम ने यह योजना बना ली कि अब अल्लाह तआला कोई रसूल ही न भेजेगा.
अल्लाह यूं ही गुमराह करता है उसे जो हद से बढ़ने वाला शक लाने वाला है(15) {34}
(15) उन चीज़ों में जिन पर रौशन दलीलें गवाह हैं.
वो जो अल्लाह की आयतों में झगड़ा करते हैं(16)
(16) उन्हें झुटला कर.
बे किसी सनद के कि उन्हें मिली हो, किस क़द्र सख़्त बेज़ारी की बात है अल्लाह के नज़्दीक और ईमान वालों के नज़्दीक, अल्लाह यूंही मुहर कर देता है मुतकब्बिर सरकश के सारे दिल पर(17){35}
(17) कि उसमें हिदायत क़ुबूल करने का कोई महल बाक़ी नहीं रहता.
और फ़िरऔन बोला(18)
(18)जिहालत और धोखे के तौर पर अपने वज़ीर से.
ऐ हामान मेरे लिये ऊंचा महल बना शायद मैं पहुंच जाऊं रास्तों तक {36} काहे के रास्ते आसमानों के तो मूसा के ख़ुदा को झाँक कर देखूं और बेशक मेरे गुमान में तो वह झूटा है(19)
(19) यानी मूसा मेरे सिवा और ख़ुदा बताने में और यह बात फ़िरऔन ने अपनी क़ौम को धोख़ा देने के लिये कही क्यों कि वह जानता था कि सच्चा मअबूद सिर्फ़ अल्लाह तआला है और फ़िरऔन अपने आपको धोख़ा धड़ी के लिये ख़ुदा कहलवाता है. (इस घटना का बयान सूरए क़सस में गुज़रा)
और यूंही फ़िरऔन की निगाह में उसका बुरा काम(20)
(20) यानी अल्लाह तआला के साथ शरीक करना और उसके रसूल को झुटलाना.
भला कर दिखाया गया(21)
(21) यानी शैतानों ने वसवसे डाल कर उसकी बुराइयाँ उसकी नज़र में भली कर दिखाई.
और वह रास्ते से रोका गया, और फ़िरऔन का दाँव(22)हलाक होने ही को था {37}
(22) जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की निशानियों को झूठा ठहराने के लिये उसने इख़्तियार किया.
40 सूरए मूमिन – पाँचवाँ रूकू
وَقَالَ الَّذِي آمَنَ يَا قَوْمِ اتَّبِعُونِ أَهْدِكُمْ سَبِيلَ الرَّشَادِ
يَا قَوْمِ إِنَّمَا هَٰذِهِ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا مَتَاعٌ وَإِنَّ الْآخِرَةَ هِيَ دَارُ الْقَرَارِ
مَنْ عَمِلَ سَيِّئَةً فَلَا يُجْزَىٰ إِلَّا مِثْلَهَا ۖ وَمَنْ عَمِلَ صَالِحًا مِّن ذَكَرٍ أَوْ أُنثَىٰ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَأُولَٰئِكَ يَدْخُلُونَ الْجَنَّةَ يُرْزَقُونَ فِيهَا بِغَيْرِ حِسَابٍ
۞ وَيَا قَوْمِ مَا لِي أَدْعُوكُمْ إِلَى النَّجَاةِ وَتَدْعُونَنِي إِلَى النَّارِ
تَدْعُونَنِي لِأَكْفُرَ بِاللَّهِ وَأُشْرِكَ بِهِ مَا لَيْسَ لِي بِهِ عِلْمٌ وَأَنَا أَدْعُوكُمْ إِلَى الْعَزِيزِ الْغَفَّارِ
لَا جَرَمَ أَنَّمَا تَدْعُونَنِي إِلَيْهِ لَيْسَ لَهُ دَعْوَةٌ فِي الدُّنْيَا وَلَا فِي الْآخِرَةِ وَأَنَّ مَرَدَّنَا إِلَى اللَّهِ وَأَنَّ الْمُسْرِفِينَ هُمْ أَصْحَابُ النَّارِ
فَسَتَذْكُرُونَ مَا أَقُولُ لَكُمْ ۚ وَأُفَوِّضُ أَمْرِي إِلَى اللَّهِ ۚ إِنَّ اللَّهَ بَصِيرٌ بِالْعِبَادِ
فَوَقَاهُ اللَّهُ سَيِّئَاتِ مَا مَكَرُوا ۖ وَحَاقَ بِآلِ فِرْعَوْنَ سُوءُ الْعَذَابِ
النَّارُ يُعْرَضُونَ عَلَيْهَا غُدُوًّا وَعَشِيًّا ۖ وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ أَدْخِلُوا آلَ فِرْعَوْنَ أَشَدَّ الْعَذَابِ
وَإِذْ يَتَحَاجُّونَ فِي النَّارِ فَيَقُولُ الضُّعَفَاءُ لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا إِنَّا كُنَّا لَكُمْ تَبَعًا فَهَلْ أَنتُم مُّغْنُونَ عَنَّا نَصِيبًا مِّنَ النَّارِ
قَالَ الَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا إِنَّا كُلٌّ فِيهَا إِنَّ اللَّهَ قَدْ حَكَمَ بَيْنَ الْعِبَادِ
وَقَالَ الَّذِينَ فِي النَّارِ لِخَزَنَةِ جَهَنَّمَ ادْعُوا رَبَّكُمْ يُخَفِّفْ عَنَّا يَوْمًا مِّنَ الْعَذَابِ
قَالُوا أَوَلَمْ تَكُ تَأْتِيكُمْ رُسُلُكُم بِالْبَيِّنَاتِ ۖ قَالُوا بَلَىٰ ۚ قَالُوا فَادْعُوا ۗ وَمَا دُعَاءُ الْكَافِرِينَ إِلَّا فِي ضَلَالٍ
और वह ईमान वाला बोला ऐ मेरी क़ौम मेरे पीछे चलो मैं तुम्हें भलाई की राह बताऊं {38} ऐ मेरी क़ौम यह दुनिया का जीना तो कुछ बरतना ही है(1)
(1) यानी थोड़ी मुद्दत के लिये नापायदार नफ़ा है जो बाक़ी रहने वाला नहीं है.
और बेशक वह पिछला हमेशा रहने का घर है(2){39}
(2) मुराद यह है कि दुनिया नष्ट हो जाने वाली है और आख़िरत बाक़ी रहने वाली, सदा ज़िन्दा रहने वाली और सदा ज़िन्दा रहना ही बेहतर. इसके बाद अच्छे और बुरे कर्मों और उनके परिणामों का बयान किया.
जो बुरा काम करे तो उसे बदल न मिलेगा मगर उतना ही और जो अच्छा काम करे मर्द चाहे औरत और हो मुसलमान(3)
(3) क्योंकि कर्मों की मक़बूलियत ईमान पर आधारित है.
तो वो जन्नत में दाख़िल किये जाएंगे वहाँ बेगिनती रिज़्क़ पाएंगे(4) {40}
(4) यह अल्लाह तआला की भारी मेहरबानी है.
और ऐ मेरी क़ौम मुझे क्या हुआ मैं तुम्हें बुलाता हूँ निजात की तरफ़ (5)
(5) जन्नत की तरफ़, ईमान और फ़रमाँबरदारी की सीख देकर.
और तुम मुझे बुलाते हो दोज़ख़ की तरफ़(6) {41}
(6) कुफ़्र और शिर्क की दावत देकर.
मुझे उस तरफ़ बुलाते हो कि अल्लाह का इन्कार करूं और ऐसे को उसका शरीक करूं जो मेरे इल्म में नहीं, और मैं तुम्हें उस इज़्ज़त वाले बहुत बख़्शने वाले की तरफ़ बुलाता हूँ {42} आप ही साबित हुआ कि जिसकी तरफ़ मुझे बुलाते हो(7)
(7) यानी बुत की तरफ़.
उसे बुलाना कहीं काम का नहीं दुनिया में न आख़िरत में(8)
(8) क्योंकि वह बेजान पत्थर है.
और यह हमारा फिरना अल्लाह की तरफ़ है(9)
(9) वही हमें जज़ा देगा.
और यह कि हद से गुज़रने वाले(10)
(10) यानी काफ़िर.
ही दोज़ख़ी हैं {43} तो जल्द वह वक़्त आता है कि जो मैं तुम से कह रहा हूँ उसे याद करोगे (11)
(11) यानी अज़ाब उतरने के वक़्त तुम मेरी नसीहतें याद करोगे और उस वक़्त का याद करना कुछ काम न आएगा. यह सुनकर उन लोगों ने उस मूमिन को धमकाया कि अगर तू हमारे दीन की मुख़ालिफ़त करेगा तो हम तेरे साथ बुरे पेश आएंगे. इसके जवाब में उसने कहा.
और मैं अपने काम अल्लाह को सौंपता हूँ, बेशक अल्लाह बन्दों को देखता है(12) {44}
(12) और उनके कर्मों और हालतों को जानता है. फिर वह मूमिन उन में से निकल कर पहाड़ की तरफ़ चला गया और वहाँ नमाज़ में मश्ग़ूल हो गया. फ़िरऔन ने हज़ार आदमी उसे ढूंढने को भेजे. अल्लाह तआला ने ख़तरनाक जानवर उसकी हिफ़ाज़त पर लगा दिये. जो फ़िरऔनी उसकी तरफ़ आया, जानवरों ने उसे हलाक किया और जो वापस गया और उसने फ़िरऔन से हाल बयान किया. फ़िरऔन ने उसे सूली दे दी ताकि यह हाल मशहूर न हो.
तो अल्लाह ने उसे बचा लिया उनके मक्र (कपट) की बुराईयों से(13)
(13) और उसने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के साथ होकर निजात पाई अगरचे वह फ़िरऔन की क़ौम का था.
और फ़िरऔन वालों को बुरे अज़ाब ने आ घेरा(14) {45}
(14) दुनिया में यह अज़ाब कि वह फ़िरऔन के साथ ग़र्क़ हो गए और आख़िरत में दोज़ख़.
आग जिसपर सुब्ह शाम पेश किये जाते हैं(15)
(15) उसमें जलाए जाते हैं. हज़रत इब्ने मसऊद रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया फ़िरऔनियों की रूहें काले पक्षियों के शरीर में हर दिन दो बार सुब्ह शाम आग पर पेश की जाती है. और उनसे कहा जाता है कि यह आग तुम्हारा ठिकाना है और क़यामत तक उनके साथ यही मअमूल रहेगा. इस आयत से क़ब्र के अज़ाब के सुबूत पर इस्तदलाल किया जाता है. बुख़ारी और मुस्लिम की हदीस में है कि हर मरने वाले पर उसका मक़ाम सुब्ह शाम पेश किया जाता है, जन्नती पर जन्नत का और जहन्नमी पर जहन्नम का और उससे कहा जाता है कि यह तेरा ठिकाना है, जब कि कि क़यामत के दिन अल्लाह तआला तुझे इसकी तरफ़ उठाए.
और जिस दिन क़यामत क़ायम होगी, हुक्म होगा, फ़िरऔन वालों को सख़्त तर अज़ाब में दाख़िल करो {46} और(16)
(16) ज़िक्र फ़रमाइये ऐ नबियों के सरदार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अपनी क़ौम से जहन्नम के अन्दर काफ़िरों के आपस में झगड़ने का हाल कि—-
जब वो आग में आपस में झगड़ेंगे तो कमज़ोर उनसे कहेंगे जो बड़े बनते थे हम तुम्हारे ताबे(अधीन) थे (17)
(17) दुनिया में और तुम्हारी बदौलत की काफ़िर बने.
तो क्या तुम हमसे आग का कोई हिस्सा घटा लोगे {47} वो तकब्बुर (घमण्ड) वाले बोले(18)
(18) यानी काफ़िरों के सरदार जवाब देंगे.
हम सब आग में हैं(19)
(19) हर एक अपनी मुसीबत में गिरफ़्तार, हम में से कोई किसी के काम नहीं आ सकता.
बेशक अल्लाह बन्दों में फ़ैसला फ़रमा चुका(20){48}
(20) ईमानदारों को उसने जन्नत में दाख़िल कर दिया और काफ़िरों को जहन्नम में. जो होना था हो चुका.
और जो आग में हैं उसके दारोग़ों से बोले अपने रब से दुआ करो हम पर अज़ाब का एक दिन हल्का कर दे(21){49}
(21) यानी दुनिया के एक दिन के बराबर हमारे अज़ाब में कमी रहे.
उन्होंने कहा क्या तुम्हारे पास तुम्हारे रसूल रौशन निशानियाँ न लाते थे(22)
(22) क्या उन्होंने खुले चमत्कार पेश न किये थे यानी अब तुम्हारे लिये बहानों की कोई जगह बाक़ी न रही.
बोले क्यों नहीं(23)
(23) यानी काफ़िर नबियों के आने और अपने कुफ़्र का इक़रार करेंगे.
बोले तो तुम्हीं दुआ करो(24) और काफ़िरों की दुआ नहीं मगर भटकते फिरने को{50}
(24) हम काफ़िर के हक़ में दुआ न करेंगे और तुम्हारा दुआ करना भी बेकार है.
40 सूरए मूमिन – छटा रूकू
إِنَّا لَنَنصُرُ رُسُلَنَا وَالَّذِينَ آمَنُوا فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَيَوْمَ يَقُومُ الْأَشْهَادُ
يَوْمَ لَا يَنفَعُ الظَّالِمِينَ مَعْذِرَتُهُمْ ۖ وَلَهُمُ اللَّعْنَةُ وَلَهُمْ سُوءُ الدَّارِ
وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْهُدَىٰ وَأَوْرَثْنَا بَنِي إِسْرَائِيلَ الْكِتَابَ
هُدًى وَذِكْرَىٰ لِأُولِي الْأَلْبَابِ
فَاصْبِرْ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ وَاسْتَغْفِرْ لِذَنبِكَ وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ بِالْعَشِيِّ وَالْإِبْكَارِ
إِنَّ الَّذِينَ يُجَادِلُونَ فِي آيَاتِ اللَّهِ بِغَيْرِ سُلْطَانٍ أَتَاهُمْ ۙ إِن فِي صُدُورِهِمْ إِلَّا كِبْرٌ مَّا هُم بِبَالِغِيهِ ۚ فَاسْتَعِذْ بِاللَّهِ ۖ إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ
لَخَلْقُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ أَكْبَرُ مِنْ خَلْقِ النَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ
وَمَا يَسْتَوِي الْأَعْمَىٰ وَالْبَصِيرُ وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَلَا الْمُسِيءُ ۚ قَلِيلًا مَّا تَتَذَكَّرُونَ
إِنَّ السَّاعَةَ لَآتِيَةٌ لَّا رَيْبَ فِيهَا وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يُؤْمِنُونَ
وَقَالَ رَبُّكُمُ ادْعُونِي أَسْتَجِبْ لَكُمْ ۚ إِنَّ الَّذِينَ يَسْتَكْبِرُونَ عَنْ عِبَادَتِي سَيَدْخُلُونَ جَهَنَّمَ دَاخِرِينَ
बेशक ज़रूर हम अपने रसूलों की मदद करेंगे और ईमान वालों की(1)
(1) उनको ग़लबा अता फ़रमाकर और मज़बूत तर्क देकर और उनके दुश्मनों से बदला लेकर.
दुनिया की ज़िन्दगी में और जिस दिन गवाह खड़े होंगे(2){51}
(2) वह क़यामत का दिन है कि फ़रिश्तों रसूलों की तबलीग़ और काफ़िरों के झुटलाने की गवाही देंगे.
जिस दिन ज़ालिमों को उनके बहाने कुछ काम न देंगे(3)
(3) और काफ़िरों का कोई बहाना क़ुबून न किया जाएगा.
और उनके लिये लअनत है और उनके लिये बुरा घर(4){52}
(4) यानी जहन्नम.
और बेशक हम ने मूसा को रहनुमाई अता फ़रमाई (5)
(5) यानी तौरात और चमत्कार.
और बनी इस्राईल को किताब का वारिस किया (6) {53}
(6) यानी तौरात का या उन नबियों पर उतरी तमाम किताबों का.
अक़्लमन्दों की हिदायत और नसीहत को {54} तो ऐ महबूब तुम सब्र करो(7)
(7) अपनी क़ौम की तकलीफ़ पर.
बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है(8)
(8) वह आपकी मदद फ़रमाएगा, आपके दीन को ग़ालिब करेगा, आपके दुश्मनों को हलाक करेगा. कलबी ने कहा कि सब्र की आयत जंग की आयत से मन्सूख़ हो गई.
और अपनों के गुनाहों की माफ़ी चाहो(9)
(9) यानी अपनी उम्मत के. (मदारिक)
और अपने रब की तारीफ़ करते हुए सुब्ह और शाम उसकी पाकी बोलो(10){55}
(10) यानी अल्लाह तआला की इबादत पर हमेशगी रखो और हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया इससे पाँचों नमाज़ें मुराद हैं.
वो जो अल्लाह की आयतों में झगड़ा करते हैं बे किसी सनद के जो उन्हें मिली हो(11)
(11) इन झगड़ा करने वालों से क़ुरैश के काफ़िर मुराद हैं.
उनके दिलों में नहीं मगर एक बड़ाई की हविस (12)
(12) और उनका यही घमण्ड उनके झुटलाने और इन्कार और कुफ़्र के अपनाने का कारण हुआ कि उन्होंने यह गवारा न किया कि कोई उनसे ऊंचा हो. इसलिये सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से दुश्मनों की, इस झूठे ख़याल से कि अगर आपको नबी मान लेंगे तो अपनी बड़ाई जाती रहेगी और उम्मती और छोटा बनना पड़ेगा और हविस रखते हैं बड़े बनने की.
जिसे न पहुंचेंगे(13)
(13) और बड़ाई मयस्सर न आएगी बल्कि हुज़ूर की मुख़ालिफ़त और इन्कार उनके हक़ में ज़िल्लत और रूस्वाई का कारण होगा.
तो तुम अल्लाह की पनाह मांगो(14)
(14)हासिदों के छलकपट से.
बेशक वही सुनता देखता है {56} बेशक आसमानों और ज़मीन की पैदायश आदमियों की पैदायश से बहुत बड़ी (15)
(15)यह आयत दोबारा उठाए जाने का इन्कार करने वालों के रद में उतरी. उनपर हुज्जत क़ायम की गई कि जब तुम आसमान और ज़मीन की पैदाइश पर उनकी इस विशालता और बड़ाई के बावुज़ूद अल्लाह तआला को क़ादिर मानते हो तो फिर इन्सान को दोबारा पैदा कर देना उसकी क़ुदरत से क्यों दूर समझते हो.
लेकिन बहुत लोग नहीं जानते(16){57}
(16) बहुत लोगों से मुराद यहाँ काफ़िर हैं और उनके दोबारा उठाए जाने के इन्कार का सबब उनकी अज्ञानता है कि वो आसमान और ज़मीन की पैदायश पर क़ादिर होने से दोबारा उठाए जाने पर इस्तिदलाल नहीं करते तो वो अन्धे की तरह हैं और जो मख़लूक़ात के वुजूद से ख़ालिक़ की क़ुदरत पर इस्तिदलाल करते हैं आँख वाले की तरह हैं.
और अंधा और अंखियारा बराबर नहीं(17)
(17) यानी जाहिल और आलिम एक से नहीं.
और न वो जो ईमान लाए और अच्छे काम किये और बदकार(18)
(18) यानी नेक ईमान वाला और बुरे काम करने वाला, ये दोनों भी बराबर नहीं.
कितना कम ध्यान करते हो {58} बेशक क़यामत ज़रूर आने वाली है इसमें कुछ शक नहीं लेकिन बहुत लोग ईमान नहीं लाते (19) {59}
(19) मरने के बाद ज़िन्दा किये जाने पर यक़ीन नहीं करते.
और तुम्हारे रब ने फ़रमाया मुझ से दुआ करो मैं क़ुबूल करूंगा (20) बेशक वो जो मेरी इबादत से ऊंचे खिंचते (घमण्ड करते) हैं बहुत जल्द जहन्नम में जाएंगे ज़लील होकर {60}
(20) अल्लाह तआला अपने बन्दों की दुआएं अपनी रहमत से क़ुबूल फ़रमाता है और उनके क़ुबूल के लिये कुछ शर्ते हैं एक इख़लास दुआ में, दूसरे यह कि दिल ग़ैर की तरफ़ न लगे, तीसरे यह कि वह दुआ किसी ग़लत मक़सद के लिये न हो, चौथे यह कि अल्लाह तआला की रहमत पर यक़ीन रखता हो, पाँचवे यह कि शिकायत न करे कि मैंने दुआ माँगी, क़ुबूल न हुई. जब इन शर्तों से दुआ की जाती है, क़ुबूल होती है. हदीस शरीफ़ में है कि दुआ करने वाले की दुआ क़ुबूल होती है. या तो उससे उसकी मुराद दुनिया ही में उसको जल्द दे दी जाती है या आख़िरत में उसके लिये जमा होती है या उसके गुनाहों का कफ़्फ़ारा कर दिया जाता है. इस आयत की तफ़सीर में एक क़ौल यह भी है कि दुआ से मुराद इबादत है और क़ुरआन करीम से दुआ इबादत के अर्थ में बहुत जगह आई है. हदीस शरीफ़ में है “अद-दुआओ हुवल इबादतो” (अबू दाऊद, तिरमिज़ी) इस सूरत में आयत के मानी ये होंगे कि तुम मेरी इबादत करो मैं तुम्हें सवाब दूंगा.
40 सूरए मूमिन – सातवाँ रूकू
اللَّهُ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ اللَّيْلَ لِتَسْكُنُوا فِيهِ وَالنَّهَارَ مُبْصِرًا ۚ إِنَّ اللَّهَ لَذُو فَضْلٍ عَلَى النَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَشْكُرُونَ
ذَٰلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍ لَّا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ فَأَنَّىٰ تُؤْفَكُونَ
كَذَٰلِكَ يُؤْفَكُ الَّذِينَ كَانُوا بِآيَاتِ اللَّهِ يَجْحَدُونَ
اللَّهُ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ قَرَارًا وَالسَّمَاءَ بِنَاءً وَصَوَّرَكُمْ فَأَحْسَنَ صُوَرَكُمْ وَرَزَقَكُم مِّنَ الطَّيِّبَاتِ ۚ ذَٰلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ ۖ فَتَبَارَكَ اللَّهُ رَبُّ الْعَالَمِينَ
هُوَ الْحَيُّ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ فَادْعُوهُ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ ۗ الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ
۞ قُلْ إِنِّي نُهِيتُ أَنْ أَعْبُدَ الَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِ اللَّهِ لَمَّا جَاءَنِيَ الْبَيِّنَاتُ مِن رَّبِّي وَأُمِرْتُ أَنْ أُسْلِمَ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ
هُوَ الَّذِي خَلَقَكُم مِّن تُرَابٍ ثُمَّ مِن نُّطْفَةٍ ثُمَّ مِنْ عَلَقَةٍ ثُمَّ يُخْرِجُكُمْ طِفْلًا ثُمَّ لِتَبْلُغُوا أَشُدَّكُمْ ثُمَّ لِتَكُونُوا شُيُوخًا ۚ وَمِنكُم مَّن يُتَوَفَّىٰ مِن قَبْلُ ۖ وَلِتَبْلُغُوا أَجَلًا مُّسَمًّى وَلَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ
هُوَ الَّذِي يُحْيِي وَيُمِيتُ ۖ فَإِذَا قَضَىٰ أَمْرًا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُ كُن فَيَكُونُ
अल्लाह है जिसने तुम्हारे लिये रात बनाई कि उसमें आराम पाओ और दिन बनाया आँखे खोलता(1)
(1) कि उसमें अपना काम इत्मीनान के साथ करो.
बेशक अल्लाह लोगों पर फ़ज़्ल (कृपा) वाला है लेकिन बहुत आदमी शुक्र नहीं करते {61} वह है अल्लाह तुम्हारा रब हर चीज़ का बनाने वाला, उसके सिवा किसी की बन्दगी नहीं तो कहां औंधे जाते हो(2){62}
(2) कि उसको छोड़कर बुतों को पूजते हो और उसपर ईमान नहीं लाते जबकि दलीलें क़ायम हैं.
यूंही औंधे होते हैं(3)
(3) और हक़ से फिरते हैं, दलीलें क़ायम होने के बावुजूद.
वो जो अल्लाह की आयतों का इन्कार करते हैं(4) {63}
(4) और उनमें सच्चाई जानने के लिये नज़र और ग़ौर नहीं करते.
अल्लाह है जिसने तुम्हारे लिये ज़मीन ठहराव बनाई (5)
(5) कि वह तुम्हारी क़रारगाह हो, ज़िन्दगी में भी और मौत के बाद भी.
और आसमान छत(6)
(6) कि उसको क़ुब्बे की तरह बलन्द फ़रमाया.
और तुम्हारी तस्वीर की, तो तुम्हारी सूरतें अच्छी बनाई (7)
(7) कि तुम्हें अच्छे डील डौल, नूरानी चेहरे और सुडौल किया, जानवरों की तरह न बनाया कि औंधे चलते.
और तुम्हें सुथरी चीज़ें(8)
(8) नफ़ीस खाने पीने की चीज़े.
रोज़ी दीं, यह है अल्लाह तुम्हारा रब, तो बड़ी बरकत वाला है अल्लाह रब सारे जगत का {64} वही ज़िन्दा है (9)
(9) कि उसकी फ़ना मुहाल है, असंभव है.
उसके सिवा किसी की बन्दगी नहीं तो उसे पूजो निरे उसी के बन्दे होकर, सब ख़ूबियां अल्लाह को जो सारे जगत का रब {65} तुम फ़रमाओ मैं मना किया गया हूँ कि उन्हें पूजूं जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पूजते हो (10)
(10) शरीर काफ़िरों ने जिहालत और गुमराही के तौर पर अपने झूठे दीन की तरफ़ हुज़ूर पुरनूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को दावत दी थी और आपसे बुत परस्ती की दरख़्वास्त की थी. इसपर यह आयत उतरी.
जब कि मेरे पास रौशन दलीलें (11)
(11) अक़्ल व वही की तौहीद पर दलालत करने वाली.
मेरे रब की तरफ़ से आईं और मुझे हुक्म हुआ है कि जगत के रब के हुज़ूर (समक्ष) गर्दन रखूं{66} वही है जिसने तुम्हें(12)
(12) यानी तुम्हारे अस्ल और तुम्हारे पितामह हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को.
मिट्टी से बनाया फिर (13)
(13)हज़रत आदम के बाद उनकी नस्ल को.
पानी की बूंद से(14)
(14) यानी मनी के क़तरे से.
फिर ख़ून की फुटक से फिर तुम्हें निकालता है बच्चा फिर तुम्हें बाक़ी रखता है कि अपनी जवानी को पहुंचो(15)
(15)और क़ुव्वत समपूर्ण हो.
फिर इसलिये कि बूढ़े हो और तुम में कोई पहले ही उठा लिया जाता है(16)
(16) यानी बुढ़ापे या जवानी के पहुंचने से पहले, यह इसलिये किया कि तुम ज़िन्दगानी करो.
और इसलिये कि तुम एक मुक़र्रर वादे तक पहुंचे (17)
(17)ज़िन्दगी के सीमित समय तक.
और इसलिये कि समझो(18){67}
(18) तौहीद की दलीलों को, और ईमान लाओ.
वही है कि जिलाता है और मारता है, फिर जब कोई हुक्म फ़रमाता है तो उससे यही कहता है कि होजा जभी वह हो जाता है (19){68}
(19)यानी चीज़ों का वुजूद उसके इरादे के आधीन है कि उसने इरादा फ़रमाया और चीज़ मौजूद हुई. न कोई कुलफ़त है न मशक़्क़त है न किसी सामान की हाजत, यह उसकी भरपूर क़ुदरत का बयान है.
40 सूरए मूमिन – आठवाँ रूकू
أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ يُجَادِلُونَ فِي آيَاتِ اللَّهِ أَنَّىٰ يُصْرَفُونَ
الَّذِينَ كَذَّبُوا بِالْكِتَابِ وَبِمَا أَرْسَلْنَا بِهِ رُسُلَنَا ۖ فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ
إِذِ الْأَغْلَالُ فِي أَعْنَاقِهِمْ وَالسَّلَاسِلُ يُسْحَبُونَ
فِي الْحَمِيمِ ثُمَّ فِي النَّارِ يُسْجَرُونَ
ثُمَّ قِيلَ لَهُمْ أَيْنَ مَا كُنتُمْ تُشْرِكُونَ
مِن دُونِ اللَّهِ ۖ قَالُوا ضَلُّوا عَنَّا بَل لَّمْ نَكُن نَّدْعُو مِن قَبْلُ شَيْئًا ۚ كَذَٰلِكَ يُضِلُّ اللَّهُ الْكَافِرِينَ
ذَٰلِكُم بِمَا كُنتُمْ تَفْرَحُونَ فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَبِمَا كُنتُمْ تَمْرَحُونَ
ادْخُلُوا أَبْوَابَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا ۖ فَبِئْسَ مَثْوَى الْمُتَكَبِّرِينَ
فَاصْبِرْ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ ۚ فَإِمَّا نُرِيَنَّكَ بَعْضَ الَّذِي نَعِدُهُمْ أَوْ نَتَوَفَّيَنَّكَ فَإِلَيْنَا يُرْجَعُونَ
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا رُسُلًا مِّن قَبْلِكَ مِنْهُم مَّن قَصَصْنَا عَلَيْكَ وَمِنْهُم مَّن لَّمْ نَقْصُصْ عَلَيْكَ ۗ وَمَا كَانَ لِرَسُولٍ أَن يَأْتِيَ بِآيَةٍ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ ۚ فَإِذَا جَاءَ أَمْرُ اللَّهِ قُضِيَ بِالْحَقِّ وَخَسِرَ هُنَالِكَ الْمُبْطِلُونَ
क्या तुमने उन्हें न देखा जो अल्लाह की आयतों में झगड़ते हैं(1)
(1) यानी क़ुरआने पाक में.
कहाँ फेरे जाते हैं(2){69}
(2) ईमान और सच्चे दीन से.
वो जिन्होंने झुटलाई किताब(3)
(3) यानी काफ़िर जिन्होंने क़ुरआन शरीफ़ को झुटलाया.
और जो हमने अपने रसूलों के साथ भेजा (4)
(4) उसको भी झुटलाया और उसके रसूलों के साथ जो चीज़ भेजी. इससे मुराद या तो वो किताबें हैं जो पहले रसूल लाए या वो सच्चे अक़ीदे जो तमाम नबियों ने पहुंचाए जैसे अल्लाह की वहदानियत और मरने के बाद उठाए जाने का अक़ीदा.
वो बहुत जल्द जान जाएंगे (5){70}
(5) अपने झुटलाने का परिणाम.
जब उनकी गर्दनों में तौक़ होंगे और ज़ंजीरें (6)
(6) और इन ज़ंजीरों से.
घसीटे जाएंगे {71} खौलते पानी में, फिर आग में दहकाए जाएंगे (7){72}
(7) और वह आग बाहर से भी उन्हें घेरे होगी और उनके अन्दर भी भरी होगी. (अल्लाह तआला की पनाह)
फिर उनसे फ़रमाया जाएगा कि कहाँ गए वो जो तुम शरीक बनाते थे(8){73}
(8) यानी वो बुत क्या हुए जिनकी तुम पूजा करते थे.
अल्लाह के मुक़ाबिल, कहेंगे वो तो हम से गुम गए(9)
(9) कहीं नज़र ही नहीं आते.
बल्कि हम पहले कुछ पूजते ही न थे(10)
(10) बुतों की पूजा का इन्कार कर जाएंगे. फिर बुत हाज़िर किये जाएंगे और काफ़िरों से फ़रमाया जाएगा कि तुम और तुम्हारे ये मअबूद सब जहन्नम का ईंधन हो. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि जहन्नमियों का यह कहना कि हम पहले कुछ पूजते ही न थे इसके यह मानी हैं कि अब हमें ज़ाहिर हो गया कि जिन्हें हम पूजते थे वो कुछ न थे कि कोई नफ़ा या नुक़सान पहुंचा सकते.
अल्लाह यूंही गुमराह करता है काफ़िरों को {74} यह (11)
(11) यानी यह अज़ाब जिसमें तुम गिरफ़्तार हो.
उसका बदला है जो तुम ज़मीन में बातिल पर ख़ुश होते थे(12)
(12) यानी शिर्क और बुत परस्ती और दोबारा उठाए जाने के इन्कार पर.
और उसका बदला है जो तुम इतराते थे {75} जाओ जहन्नम के दरवाज़ों में उसमें हमेशा रहने, तो क्या ही बुरा ठिकाना घमण्डियों का(13){76}
(13)जिन्होंने घमण्ड किया और हक़ को क़ुबूल न किया.
तो तुम सब्र करो बेशक अल्लाह का वादा(14)
(14)काफ़िरों पर अज़ाब फ़रमाने का.
सच्चा है, तो अगर हम तुम्हें दिखा दें(15)
(15) तुम्हारी वफ़ात से पहले.
कुछ वह चीज़ जिसका उन्हें वादा दिया जाता है(16)
(16) अज़ाब की क़िस्मों से, जैसे बद्र में मारे जाने के, जैसा कि यह वाक़े हुआ.
या तुम्हें पहले ही वफ़ात (मृत्यु) दें बहरहाल उन्हें हमारी ही तरफ़ फिरना(17){77}
(17) और सख़्त अज़ाब में गिरफ़्तार होना.
और बेशक हमने तुमसे पहले कितने ही रसूल भेजे कि जिन में किसी का अहवाल तुमसे बयान फ़रमाया (18)
(18) इस क़ुरआन में तफ़सील के साथ.
और किसी का अहवाल न बयान फ़रमाया (19),
(19) क़ुरआन शरीफ़ में तफ़सील से और खुला खुला (मिरक़ात) और उन तमाम नबियों को अल्लाह तआला ने निशानी और चमत्कार अता फ़रमाए और उनकी क़ौमों ने उनसे जंग की और उन्हें झुटलाया इसपर उन हज़रात ने सब्र किया. इस बयान से तात्पर्य नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तसल्ली है कि जिस तरह के वाक़िआत क़ौम की तरफ़ से आपको पेश आ रहे हैं जैसी तकलीफ़ें पहुंच रही है, पहले नबियों के साथ भी यही हालात गुज़र चुके हैं. उन्होंने सब्र किया. आप भी सब्र फ़रमाएं.
और किसी रसूल को नहीं पहुंचता कि कोई निशानी ले आए ख़ुदा के हुक्म के बिना, फिर जब अल्लाह का हुक्म आएगा(20)
(20) काफ़िरों पर अज़ाब उतारने के बारे में.
सच्चा फ़ैसला फ़रमा दिया जाएगा(21)और बातिल (असत्य) वालों का वहाँ ख़सारा{78}
(21) रसूलों के, और उनके झुटलाने वालों के बीच.
40 सूरए मूमिन – नवाँ रूकू
اللَّهُ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَنْعَامَ لِتَرْكَبُوا مِنْهَا وَمِنْهَا تَأْكُلُونَ
وَلَكُمْ فِيهَا مَنَافِعُ وَلِتَبْلُغُوا عَلَيْهَا حَاجَةً فِي صُدُورِكُمْ وَعَلَيْهَا وَعَلَى الْفُلْكِ تُحْمَلُونَ
وَيُرِيكُمْ آيَاتِهِ فَأَيَّ آيَاتِ اللَّهِ تُنكِرُونَ
أَفَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۚ كَانُوا أَكْثَرَ مِنْهُمْ وَأَشَدَّ قُوَّةً وَآثَارًا فِي الْأَرْضِ فَمَا أَغْنَىٰ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَكْسِبُونَ
فَلَمَّا جَاءَتْهُمْ رُسُلُهُم بِالْبَيِّنَاتِ فَرِحُوا بِمَا عِندَهُم مِّنَ الْعِلْمِ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ
فَلَمَّا رَأَوْا بَأْسَنَا قَالُوا آمَنَّا بِاللَّهِ وَحْدَهُ وَكَفَرْنَا بِمَا كُنَّا بِهِ مُشْرِكِينَ
فَلَمْ يَكُ يَنفَعُهُمْ إِيمَانُهُمْ لَمَّا رَأَوْا بَأْسَنَا ۖ سُنَّتَ اللَّهِ الَّتِي قَدْ خَلَتْ فِي عِبَادِهِ ۖ وَخَسِرَ هُنَالِكَ الْكَافِرُونَ
अल्लाह है जिसने तुम्हारे लिये चौपाए बनाए कि किसी पर सवार हो और किसी का गोश्त खाओ{79} और तुम्हारे लिये उनमें कितने ही फ़ायदे हैं (1)
(1) कि उनके दूध और ऊन वग़ैरह काम में लाते हो और उनकी नस्ल से नफ़ा उठाते हो.
और इसलिये कि तुम उनकी पीठ पर अपने दिल की मुरादों को पहुंचो(2)
(2) यानी अपने सफ़रों में अपने वज़नी सामान उनकी पीठों पर लादकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हो.
और उनपर(3)
(3) ख़ुश्की के सफ़रों में.
और किश्तियों पर(4)
(4) दरियाई सफ़रों में.
सवार होते हो {80} और वह तुम्हें अपनी निशानियां दिखाता है(5)
(5) जो उसकी क़ुदरत और वहदानियत पर दलालत करती हैं.
तो अल्लाह की कौन सी निशानी का इन्कार करोगे(6) {81}
(6) यानी वो निशानियाँ ऐसी ज़ाहिर व खुली हैं कि उनके इन्कार की कोई सूरत ही नहीं.
तो क्या उन्होंने ज़मीन में सफ़र न किया कि देखते उनसे अगलों का कैसा अंजाम हुआ, वो उनसे बहुत थे (7)
(7) उनकी संख्या अधिक थी.
और उनकी क़ुव्वत(8)
(8) और जिस्मानी ताक़त भी उनसे अधिक थी.
और ज़मीन में निशानियां उनसे ज़्यादा (9)
(9) यानी उनके महल और इमारतें वग़ैरह.
तो उनके क्या काम आया जो उन्हों ने कमाया(10){82}
(10) मानी ये हैं कि अगर ये लोग ज़मीन में सफ़र करते तो उन्हें मालूम हो जाता कि इन्कार और ज़िद करने वालों का क्या परिणाम हुआ और वो किस तरह हलाक और बर्बाद हुए और उनकी तादाद उनके ज़ोर उनके माल कुछ भी उनके काम न आ सके.
तो जब उनके पास उनके रसूल रौशन दलीलें लाए तो वो उसी पर ख़ुश रहे जो उनके पास दुनिया का इल्म था(11)
(11) और उन्होंने नबियों के इल्म की तरफ़ तवज्जह न की. उसे हासिल करने और उससे नफ़ा उठाने पर ध्यान न दिया बल्कि उसको तुच्छ जाना और उसकी हंसी बनाई और अपने दुनियावी इल्म को जो हक़ीक़त में जिहालत है, पसन्द करते रहे.
और उन्हीं पर उलट पड़ा जिसकी हंसी बनाते थे (12)
(12) यानी अल्लाह तआला का अज़ाब.
फिर जब उन्हों ने हमारा अज़ाब देखा बोले हम एक अल्लाह पर ईमान लाए और जो उसके शरीक करते थे उनसे इन्कारी हुए(13){83}
(13) यानी जिन बुतों को उसके सिवा पूजते थे उनसे बेज़ार हुए.
तो उनके ईमान ने उन्हें काम न दिया जब उन्होंने हमारा अज़ाब देख लिया, अल्लाह का दस्तूर जो उसके बन्दों में गुज़र चुका (14){84}
(14) यह है कि अज़ाब उतरने के वक़्त ईमान लाना नफ़ा नहीं देता उस वक़्त ईमान क़ुबूल नहीं किया जाता और यह भी अल्लाह तआला की सुन्नत है कि रसूलों के झुटलाने वालों पर अज़ाब उतरता है.
और वहाँ काफ़िर घाटे में रहे(15) {85}
(15) यानी उनका घाटा और टोटा अच्छी तरह ज़ाहिर हो गया.