हुज़ूर ﷺ ऐसा कोई इंतिज़ाम हो जाए
सलाम के लिये हाज़िर ग़ुलाम हो जाए
मैं सिर्फ़ देख लूँ एक बार सुब्ह तयबा को
कज़ा से फिर मेरी दुनिया में शाम हो जाए
तजल्लियात से भर लूँ मैं कासा-ए-दिल-ओ-जां
कभी जो उन की गली में क़याम हो जाए
हुज़ूर ﷺ आप जो सुन लें तो बात बन जाए
हुज़ूर आप जो कह दें तो काम हो जाए
हुज़ूर ﷺ आप जो चाहें तो कुछ नहीं मुश्किल
सिमट के फासला ये चंद गाम हो जाए
नसीब वालो में मेरा भी नाम हो जाए
जो ज़िंदगी की मदीने में शाम हो जाए
मज़ा तो जब है फ़रिश्ते ये क़ब्र में कह दें
सबीह ! मिदहत-ए-ख़ैरुल-अनाम हो जाए
शायर:
सबीह रहमानी