आला हजरत इमाम अहमद रज़ा खां रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फाजिले बरेलवी ने मजहब-ए-इस्लाम को कन्जुल ईमान (कुरान का अनुवाद) के रूप में एक अहम तोहफा अता किया। सन 1911 ई. बमुताबिक 1330 हिजरी में सदस्य शरिया हजरत मौलाना अमजद अली साहब की सिफारिश पर कुरान-ए-पाक का तर्जुमा उर्दू में चन्द माह की मुद्दत में कर दिया था। चूंकि दुनिया का कोई भी शख्स अपनी काबलियत की बुनियाद पर अरबी, फारसी, हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी व बांग्ला आदि भाषाओं का माहिर तो बन सकता है, वकील, डाक्टर, इंजीनियर की डिग्रियां हासिल कर सकता है। लेकिन कुरान-ए-पाक का तर्जुमा (अनुवाद) करना सबके बस की बात नहीं। कुरान की असल मंशा को समझने के साथ आयतें कुरानी के अंदाज को पहचानना उस आलिमेदीन का काम है जिसका दीनी निगाह बहुत तेज हो। आला हजरत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु तमाम खूबियों के मालिक थे।
Audio Quran Mp3 – Urdu Translation: Kanzul Iman
आला हजरत ने सदस्य शरिया से वायदा तो कर लिया, लेकिन दूसरे दीनी कामों की वजह से देरी होती रही। जब सदस्य शरिया की जानिब से सिफारिश बढ़ी तो आला हजरत ने फरमाया चूंकि अनुवाद के लिए मेरे पास मुस्तकिल वक्त नहीं है इसलिए आम सोने के वक्त या दिन में आराम के वक्त आ जाया करें। चुंनाचे यह दीनी काम शुरू हो गया। अनुवाद का तरीका यह था कि आला हजरत जुबानी तौर पर आयातें करीमा का अनुवाद करते और सदरूश शरिया उसको लिखते जाते। आला हजरत द्वारा लिखे कन्जुल ईमान से तो हमें पता चलता है कि यही अकेला ऐसा तर्जुमा (अनुवाद) है जो गलतियों से पाक है। कन्जुल ईमान में वह सारी खूबियां मिलती हैं जो अल्लाह और उसके रसूल की शान बढ़ाने के लिए होनी चाहिए।
Surah Yaseen IN HINDI English Arabic Kanzul Iman
सन् 1993 ई.में प्रो. डा. मजीवुल्ला कादरी ने डा. मसूद अहमद की निगरानी में कन्र्जुल ईमान पर कराची विश्वविद्यालय पाकिस्तान से पीएचडी की। कन्जुल ईमान पर अनुवाद कितनी ही जुबानों में पूरे विश्व में हो चुका है। जिसमें अंग्रेजी में प्रो.हनीफ अख्तर (इंग्लैण्ड), मौलाना हसनैन मियां नाजमी (काशीराम नगर), हिन्दी में मुफ्ती अब्दुल अजीज, बंगला में मौलाना अब्दुल मन्नान (चटगांव, बांग्लादेश), गुजराती में मौलाना हसन आदम गुजराती, सिंधि में मुफ्ती मोहम्मद रहीम सिकन्दरी (पाकिस्तान), तुर्की में मौलाना इस्माइल हक्की (तुर्की) मुख्य रूप से शामिल हैं।
अब से तीन साल पहले यानि 2009 ई. को उर्स-ए-रजवी के दौरान लाखों के मजमें में कन्जुल ईमान पर ज्यादा से ज्यादा तहरीक करने वालों को दरगाह के सज्जादानशीन हजरत मौलाना सुब्हान रजा खां (सुब्हानी मियां) ने अपने दस्त-ए-मुबारक (हाथों) से इनामात से नकारने के साथ उनकी हौंसला आफजाई की।
I need kanzul iman