44 सूरए दुख़ान – पहला रूकू
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ حم
وَالْكِتَابِ الْمُبِينِ
إِنَّا أَنزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةٍ مُّبَارَكَةٍ ۚ إِنَّا كُنَّا مُنذِرِينَ
فِيهَا يُفْرَقُ كُلُّ أَمْرٍ حَكِيمٍ
أَمْرًا مِّنْ عِندِنَا ۚ إِنَّا كُنَّا مُرْسِلِينَ
رَحْمَةً مِّن رَّبِّكَ ۚ إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
رَبِّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۖ إِن كُنتُم مُّوقِنِينَ
لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ يُحْيِي وَيُمِيتُ ۖ رَبُّكُمْ وَرَبُّ آبَائِكُمُ الْأَوَّلِينَ
بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ يَلْعَبُونَ
فَارْتَقِبْ يَوْمَ تَأْتِي السَّمَاءُ بِدُخَانٍ مُّبِينٍ
يَغْشَى النَّاسَ ۖ هَٰذَا عَذَابٌ أَلِيمٌ
رَّبَّنَا اكْشِفْ عَنَّا الْعَذَابَ إِنَّا مُؤْمِنُونَ
أَنَّىٰ لَهُمُ الذِّكْرَىٰ وَقَدْ جَاءَهُمْ رَسُولٌ مُّبِينٌ
ثُمَّ تَوَلَّوْا عَنْهُ وَقَالُوا مُعَلَّمٌ مَّجْنُونٌ
إِنَّا كَاشِفُو الْعَذَابِ قَلِيلًا ۚ إِنَّكُمْ عَائِدُونَ
يَوْمَ نَبْطِشُ الْبَطْشَةَ الْكُبْرَىٰ إِنَّا مُنتَقِمُونَ
۞ وَلَقَدْ فَتَنَّا قَبْلَهُمْ قَوْمَ فِرْعَوْنَ وَجَاءَهُمْ رَسُولٌ كَرِيمٌ
أَنْ أَدُّوا إِلَيَّ عِبَادَ اللَّهِ ۖ إِنِّي لَكُمْ رَسُولٌ أَمِينٌ
وَأَن لَّا تَعْلُوا عَلَى اللَّهِ ۖ إِنِّي آتِيكُم بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ
وَإِنِّي عُذْتُ بِرَبِّي وَرَبِّكُمْ أَن تَرْجُمُونِ
وَإِن لَّمْ تُؤْمِنُوا لِي فَاعْتَزِلُونِ
فَدَعَا رَبَّهُ أَنَّ هَٰؤُلَاءِ قَوْمٌ مُّجْرِمُونَ
فَأَسْرِ بِعِبَادِي لَيْلًا إِنَّكُم مُّتَّبَعُونَ
وَاتْرُكِ الْبَحْرَ رَهْوًا ۖ إِنَّهُمْ جُندٌ مُّغْرَقُونَ
كَمْ تَرَكُوا مِن جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ
وَزُرُوعٍ وَمَقَامٍ كَرِيمٍ
وَنَعْمَةٍ كَانُوا فِيهَا فَاكِهِينَ
كَذَٰلِكَ ۖ وَأَوْرَثْنَاهَا قَوْمًا آخَرِينَ
فَمَا بَكَتْ عَلَيْهِمُ السَّمَاءُ وَالْأَرْضُ وَمَا كَانُوا مُنظَرِينَ
सूरए दुख़ान मक्का में उतरी, इसमें 59 आयतें, तीन रूकू हैं.
-पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए दुख़ान मक्की है. इसमें तीन रूकू, सत्तावन या उनसठ आयतें है, तीन सौ छियालीस कलिमे और एक हज़ार चार सौ इकत्तीस अक्षर है.
हा-मीम{1} क़सम इस रौशन किताब की(2){2}
(2) यानी क़ुरआने पाक की जो हलाल और हराम वग़ैरह निर्देशों का बयान फ़रमाने वाला है.
बेशक हमने इसे बरकत वाली रात में उतारा (3)
(3) इस रात से या शबे क़द्र मुराद है या शबे बराअत. इस रात में क़ुरआने पाक पूरे का पूरा लौहे मेहफ़ूज़ से दुनिया के आसमान की तरफ़ उतारा गया फिर वहाँ से जिब्रीले अमीन तेईस साल के अर्से में थोड़ा थोड़ा लेकर उतरे. इस रात को मुबारक रात इसलिये फ़रमाया गया कि इसमें क़ुरआने पाक उतरा और हमेशा इस रात में भलाई और बरकत उतरती है. दुआएं क़ुबूल की जाती हैं.
बेशक हम डर सुनाने वाले हैं (4){3}
(4) अपने अज़ाब का.
इस में बाँट दिया जाता है हर हिकमत वाला काम (5){4}
(5) साल भर के रिज़्क़ और मौत और अहकाम.
हमारे पास के हुक्म से बेशक हम भेजने वाले हैं(6){5}
(6) अपने रसूल ख़ातमुल अंबिया मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और उनसे पहले नबियों को.
तुम्हारे रब की तरफ़ से रहमत, बेशक वही सुनता जानता है {6}वह जो रब है आसमानों और ज़मीन का और जो कुछ उनके बीच है अगर तुम्हें यक़ीन हो (7){7}
(7) कि वह आसमान और ज़मीन का रब है तो यक़ीन करो कि मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उसके रसूल है.
उसके सिवा किसी की बन्दगी नहीं वह जिलाए और मारे, तुम्हारा रब और तुम्हारे अगले बाप दादा का रब {8} बल्कि वो शक में पड़े खेल रहे हैं(8){9}
(8) उनका इक़रार इल्म और यक़ीन से नहीं बल्कि उनकी बात में हंसी और ठट्टा शामिल है और वो आपके साथ खिल्ली करते हैं. तो रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उन पर दुआ की कि या रब उन्हे ऐसे सात साल के दुष्काल में गिरफ़्तार कर जैसे सात साल का दुष्काल हज़रत युसूफ़ अलैहिस्सलाम के ज़माने में भेजा था. यह दुआ क़ुबूल हुई और हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से इरशाद फ़रमाया गया.
तो तुम उस दिन के मुन्तज़िर रहो (प्रतीक्षा करो) जब आसमान एक ज़ाहिर धुँआ लाएगा {10} कि लोगों को ढांप लेगा(9)
(9) चुनांन्चे क़ुरैश पर दुष्काल आया और यहाँ तक उसकी तेज़ी हुई कि लोग मुर्दार खा गए और भूख से इस हाल को पहुंच गए कि जब ऊपर को नज़र उठाते आसमान की तरफ़ देखते तो उनको धुआँ ही धुआँ मालूम होता यानी कमज़ोरी से निगाहों में ख़ीरगी आ गई थी. और दुष्काल से ज़मीन सूख गई, धूल उड़ने लगी, मिट्टी धुल ने हवा को प्रदूषित कर दिया. इस आयत की तफ़सीर में एक क़ौल यह भी है कि धुंए से मुराद वह धुआँ है जो क़यामत की निशानियों में से है और क़यामत के क़रीब ज़ाहिर होगा. पुर्व और पश्चिम उससे भर जाएंगे, चालीस दिन रात रहेगा. मूमिन की हालत तो उससे ऐसी हो जाएगी जैसे ज़ुकाम हो जाए और काफ़िर मदहोश हो जाएंगे. उनके नथनों और कानों और छेदों से धुआँ निकलेगा.
यह है दर्दनाक अज़ाब {11} उस दिन कहेंगे ऐ हमारे रब हम पर से अज़ाब खोल दे हम ईमान लाते हैं(10){12}
(10) और तेरे नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तस्दीक़ करते हैं.
कहां से हो उन्हें नसीहत मानना(11)
(11) यानी इस हालत में वो कैसे नसीहत मानेंगे.
हालांकि उनके पास साफ़ बयान फ़रमाने वाला रसूल तशरीफ़ ला चुका(12){13}
(12) और खुले चमत्कारों और साफ़ ज़ाहिर निशानियों को पेश फ़रमा चुका.
फिर उससे मुंह फेरे लिये और बोले सिखाया हुआ दीवना है (13){14}
(13)जिसको वही की ग़शी तारी होने के वक़्त जिन्नात ये कलिमे तलक़ीन कर जाते हैं. (मआज़ल्लाह)
हम कुछ दिनों को अज़ाब खोल देते हैं तुम फिर वही करोगे(14) {15}
(14) जिस कुफ़्र में थे उसी की तरफ़ लौटेंगे. चुनांन्चे ऐसा ही हुआ. अब फ़रमाया जाता है कि उस दिन को याद करो.
जिस दिन हम सबसे बड़ी पकड़ पकड़ेंगे (15)
(15) उस दिन से मुराद क़यामत का दिन है या बद्र का दिन.
बेशक हम बदला लेने वाले हैं {16} और बेशक हमने उनसे पहले फ़िरऔन की क़ौम को जांचा और उनके पास एक इज़्ज़त वाला रसूल तशरीफ़ लाया(16) {17}
(16) यानी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम.
कि अल्लाह के बन्दों को मुझे सुपुर्द कर दो(17)
(17)यानी बनी इस्राईल को मेरे हवाले कर दो और उनपर जो सख़्तियाँ करते हो, उससे रिहाई दो.
बेशक में तुम्हारे लिये अमानत वाला रसूल हूँ{18} और अल्लाह के मुक़ाबिल सरकशी न करो, मैं तुम्हारे पास एक रौशन सनद लाता हूँ (18){19}
(18)अपनी नबुव्वत और रिसालत की सच्चाई की. जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने यह फ़रमाया तो फ़िरऔनियों ने आपको क़त्ल की धमकी दी और कहा कि हम तुम्हें संगसार करेंगे. तो आपने फ़रमाया.
और मैं पनाह लेता हूँ अपने रब और तुम्हारे रब की इससे कि तुम मुझे संगसार करो (19){20}
(19)यानी मेरा भरोसा और ऐतिमाद उस पर है. मुझे तुम्हारी धमकी की कुछ पर्वाह नहीं. अल्लाह तआला मेरा रक्षक है.
और अगर तुम मेरा यक़ीन न लाओ तो मुझ से किनारे हो जाओ (20){21}
(20)मेरी तकलीफ़ के दर पै न हो. उन्होंने इसको भी न माना.
तो उसने अपने रब से दुआ की कि ये मुजरिम लोग हैं {22} हमने हुक्म फ़रमाया कि मेरे बन्दों(21)
(21) यानी बनी इस्राईल.
को रोतों रात ले निकल ज़रूर तुम्हारा पीछा किया जाएगा(22){23}
(22) यानी फ़िरऔन अपने लश्करों समेत तुम्हारे पीछे होगा. चुनांन्चे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम रवाना हुए और दरिया पर पहुंचकर आपने लाठी मारी. उसमें बारह रास्ते सूखे पैदा हो गए. आप बनी इस्राईल के साथ दरिया में से गुज़र गए. पीछे फ़िरऔन और उसका लश्कर आ रहा था. आपने चाहा कि फिर असा मारकर दरिया को मिला दें ताकि फ़िरऔन उसमें से न गुज़र सके. तो आपको हुक्म हुआ.
और दरिया को यूंही जगह जगह से खुला छोड़ दे(23)
(23) ताकि फ़िरऔनी इन रास्तों से दरिया में दाख़िल हो जाएं.
बेशक वह लश्कर डुबोया जाएगा (24) {24}
(24) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को इत्मीनान हो गया और फ़िरऔन और उसके लश्कर दरिया में डूब गए और उनकी सारी माल मत्ता और सामान यहीं रह गया.
कितने छोड़ गए बाग़ और चश्मे {25} और खेत और ऊमदा मकानात (25){26}
(25) सजे सजाए.
और नेअमतें जिनमें फ़ारिग़ुलबाल थे (26) {27}
(26) ऐश करते इतराते.
हमने यूंही किया और उनका वारिस दूसरी क़ौम को कर दिया(27) {28}
(27) यानी बनी इस्राईल को जो न उनके हम मज़हब थे न रिश्तेदार न दोस्त.
तो उन पर आसमान और ज़मीन न रोए (28)
(28) क्योंकि वो ईमानदार न थे और ईमानदार जब मरता है तो उसपर आसमान और ज़मीन चालीस रोज़ तक रोते हैं जैसा कि तिरमिज़ी की हदीस में है. मुजाहिद से कहा गया कि क्या मूमिन की मौत पर आसमान व ज़मीन रोते हैं. फ़रमाया ज़मीन क्यों न रोए उस बन्दे पर जो ज़मीन को अपने रूकू और सज्दों से आबाद रखता था और आसमान क्यों न रोए उस बन्दे पर जिसकी तस्बीह और तकबीर आसमान में पहुंचती थी. हसन का क़ौल है कि मूमिन की मौत पर आसमान वाले और ज़मीन वाले रोते हैं.
और उन्हें मुहलत न दी गई (29) {29}
(29)तौबह वग़ैरह के लिये अज़ाब में गिरफ़्तार करने के बाद.
44 सूरए दुख़ान – दूसरा रूकू
وَلَقَدْ نَجَّيْنَا بَنِي إِسْرَائِيلَ مِنَ الْعَذَابِ الْمُهِينِ
مِن فِرْعَوْنَ ۚ إِنَّهُ كَانَ عَالِيًا مِّنَ الْمُسْرِفِينَ
وَلَقَدِ اخْتَرْنَاهُمْ عَلَىٰ عِلْمٍ عَلَى الْعَالَمِينَ
وَآتَيْنَاهُم مِّنَ الْآيَاتِ مَا فِيهِ بَلَاءٌ مُّبِينٌ
إِنَّ هَٰؤُلَاءِ لَيَقُولُونَ
إِنْ هِيَ إِلَّا مَوْتَتُنَا الْأُولَىٰ وَمَا نَحْنُ بِمُنشَرِينَ
فَأْتُوا بِآبَائِنَا إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
أَهُمْ خَيْرٌ أَمْ قَوْمُ تُبَّعٍ وَالَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۚ أَهْلَكْنَاهُمْ ۖ إِنَّهُمْ كَانُوا مُجْرِمِينَ
وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا لَاعِبِينَ
مَا خَلَقْنَاهُمَا إِلَّا بِالْحَقِّ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ
إِنَّ يَوْمَ الْفَصْلِ مِيقَاتُهُمْ أَجْمَعِينَ
يَوْمَ لَا يُغْنِي مَوْلًى عَن مَّوْلًى شَيْئًا وَلَا هُمْ يُنصَرُونَ
إِلَّا مَن رَّحِمَ اللَّهُ ۚ إِنَّهُ هُوَ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ
और बेशक हमने बनी इस्राईल को ज़िल्लत के अज़ाब से निजात बख़्शी (1){30}
(1) यानी ग़ुलामी और सख़्त ख़िदमतों और मेहनतों से और औलाद के क़त्ल किये जाने से जो उन्हें पहुंचता था.
फ़िरऔन से बेशक वह मुतकब्बिर (घमण्डी) हद से बढ़ने वालों में से था {31} और बेशक हमने उन्हें(2)
(2) यानी बनी इस्राईल को.
जानकर चुन लिया उस ज़माने वालों से {32} और हमने उन्हें वो निशानियाँ अता फ़रमाई जिन में खुला इनाम था (3){33}
(3) कि उनके लिये दरिया में ख़ुश्क रस्ते बनाए बादल को सायबान किया, मन्न और सलवा उतारा, इसके अलावा और नेअमतें दीं.
बेशक ये (4)
(4) मक्के के काफ़िर.
कहते हैं {34} वह तो नहीं मगर हमारा एक बार का मरना (5)
(5) यानी इस ज़िन्दगानी के बाद सिवाय एक मौत के हमारे लिये और कोई हाल बाक़ी नहीं. इससे उनका तात्पर्य मौत के बाद ज़िन्दा किये जाने का इन्कार करना था जिसको अगले जुमले में साफ़ कर दिया. (कबीर)
और हम उठाए न जाएंगे (6){35}
(6) मौत के बाद ज़िन्दा करके.
तो हमारे बाप दादा को ले आओ अगर तुम सच्चे हो(7){36}
(7) इस बात में कि हम मरने के बाद ज़िन्दा करके उठाए जाएंगे. मक्के के काफ़िरों ने यह सवाल किया था कि क़ुसई बिन क्लाब को ज़िन्दा कर दो. अगर मौत के बाद किसी का ज़िन्दा होना संभव हो और यह उनकी जाहिलाना बात थी क्योंकि जिस काम के लिये समय निर्धारित हो उसका उस समय से पहले वुजूद में न आना उसके असंभव होने का प्रमाण नहीं है और न उसका इन्कार सही होता है. अगर कोई व्यक्ति किसी नए जमे हुए दरख़्त या पौधे को कहे कि इसमें से अभी फल निकालो वरना हम नहीं मानेंगे कि इस पेड़ से फल निकलता है तो उसको जाहिल क़रार दिया जाएगा और उसका इन्कार मात्र मूर्खता या हठधर्मी होगी.
क्या वो बेहतर हैं(8)
(8) यानी मक्के के काफ़िर ज़ोर और क़ुव्वत में.
या तुब्बा की क़ौम(9)
(9) तुब्बा हमीयरी, यमन के बादशाह ईमान वाले थे और उनकी क़ौम काफ़िर थी जो बहुत शक्तिशाली और बहुसंख्यक थी.
और जो उनसे पहले थे (10)
(10) काफ़िर उम्मतों में से.
हमने उन्हें हलाक कर दिया(11)
(11) उनके कुफ़्र के कारण.
बेशक वो मुजरिम लोग थे (12) {37}
(12) काफ़िर मरने के बाद ज़िन्दा किये जाने का इन्कारी.
और हमने न बनाए आसमान और ज़मीन और जो कुछ उनके बीच है खेल के तौर पर (13){38}
(13) अगर मरने के बाद उठना और हिसाब व सवाब न हो तो सृष्टि की पैदाइश मात्र फ़ना के लिये होगी और यह व्यर्थ है. तो इस दलील से साबित हुआ कि इस दुनियावी ज़िन्दगी के बाद आख़िरत की ज़िन्दगी ज़रूरी है जिसमें हिसाब और जज़ा हो.
हमने उन्हें न बनाया मगर हक़ (सत्य) के साथ(14)
(14) कि फ़रमाँबरदारी पर सवाब दें और गुनाहों पर अज़ाब करे.
लेकिन उनमें अक्सर जानते नहीं(15) {39}
(15) कि पैदा करने की हिकमत यह है और हिकमत वाले का काम बेवजह नहीं होता.
बेशक फ़ैसले का दिन(16)
(16) यानी क़यामत का दिन जिसमें अल्लाह तआला अपने बन्दों में फ़ैसला फ़रमाएगा.
उन सबकी मीआद है {40} जिस दिन कोई दोस्त किसी दोस्त के कुछ काम न आएगा(17)
(17) और रिश्तेदारी और महब्बत नफ़ा न देगी.
और न उनकी मदद होगी (18) {41}
(18) यानी काफ़िरों की.
मगर जिस पर अल्लाह रहम करे (19)
(19) यानी सिवाय मूमिनीन के कि वो अल्लाह तआला की इजाज़त से एक दूसरे की शफ़ाअत करेंगे. (जुमल)
बेशक वही इज़्ज़त वाला मेहरबान है {42}
44 सूरए दुख़ान – तीसरा रूकू
إِنَّ شَجَرَتَ الزَّقُّومِ
طَعَامُ الْأَثِيمِ
كَالْمُهْلِ يَغْلِي فِي الْبُطُونِ
كَغَلْيِ الْحَمِيمِ
خُذُوهُ فَاعْتِلُوهُ إِلَىٰ سَوَاءِ الْجَحِيمِ
ثُمَّ صُبُّوا فَوْقَ رَأْسِهِ مِنْ عَذَابِ الْحَمِيمِ
ذُقْ إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْكَرِيمُ
إِنَّ هَٰذَا مَا كُنتُم بِهِ تَمْتَرُونَ
إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي مَقَامٍ أَمِينٍ
فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ
يَلْبَسُونَ مِن سُندُسٍ وَإِسْتَبْرَقٍ مُّتَقَابِلِينَ
كَذَٰلِكَ وَزَوَّجْنَاهُم بِحُورٍ عِينٍ
يَدْعُونَ فِيهَا بِكُلِّ فَاكِهَةٍ آمِنِينَ
لَا يَذُوقُونَ فِيهَا الْمَوْتَ إِلَّا الْمَوْتَةَ الْأُولَىٰ ۖ وَوَقَاهُمْ عَذَابَ الْجَحِيمِ
فَضْلًا مِّن رَّبِّكَ ۚ ذَٰلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ
فَإِنَّمَا يَسَّرْنَاهُ بِلِسَانِكَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ
فَارْتَقِبْ إِنَّهُم مُّرْتَقِبُونَ
बेशक थूहड़ का पेड़(1){43}
(1) थूहड़ कि ख़बीस अत्यन्त कड़वा पेड़ है जो जहन्नम वालों की ख़ूराक होगा. हदीस शरीफ़ में है कि अगर एक क़तरा उस थूहड़ का दुनिया में टपका दिया जाए तो दुनिया वालों की ज़िन्दगी ख़राब हो जाए.
गुनहगारों की ख़ुराक है(2){44}
(2) अबू जहल की, और उसके साथियों की जो बड़े गुनहगार हैं.
गले हुए तांबे की तरह पेटों में जोश मारता है {45} जैसा खोलता पानी जोश मारे(3){46}
(3) जहन्नम के फ़रिश्तों को हुक्म दिया जाएगा कि—
उसे पकड़ो(4)
(4) यानी गुनहगार को.
ठीक भड़कती आग की तरफ़ ज़ोर से घसटते ले जाओ {47} फिर उसके सर के ऊपर खौलते पानी का अज़ाब डालो (5){48}
(5) और उस वक़्त दोज़ख़ी से कहा जाएगा कि—
चख(6)
(6) इस अज़ाब को.
हाँ हाँ तू ही बड़ा इज़्ज़त वाला करम वाला है (7){49}
(7) फ़रिश्ते यह कलिमा अपमान के लिये कहेंगे क्योंकि अबू जहल कहा करता था कि बतहा में मैं बड़े सम्मान वाला बुज़ुर्गी वाला हूँ. उसको अज़ाब के वक़्त यह तअना दिया जाएगा और काफ़िरों से यह भी कहा जाएगा कि—
बेशक यह है वह(8)
(8) अज़ाब. जो तुम देखते हो.
जिसमें तुम शुब्ह करते थे (9){50}
(9) और उस पर ईमान नहीं लाते थे. इसके बाद परहेज़गारों का ज़िक्र फ़रमाया जाता है.
बेशक डर वाले अमान की जगह में हैं(10){51}
(10) जहाँ कोई ख़ौफ़ नहीं.
बाग़ों और चश्मों में {52} पहनेंगे क़्रेब और क़नादीज़ (11)
(11) यानी रेशम के बारीक और मोटे लिबास.
आमने सामने (12) {53}
(12) कि किसी की पीठ किसी की तरफ़ न हो.
यूंही है और हमने उन्हें ब्याह दिया निहायत सियाह और रौशन बड़ी आँखों वालियों से {54} उसमें हर क़िस्म का मेवा मांगेंगे (13)
(13) यानी जन्नत में अपने जन्नती सेवकों को मेवे हाज़िर करने का हुक्म देंगे.
अम्न व अमान से(14) {55}
(14)कि किसी क़िस्म का अन्देशा ही न होगा. न मेवे की कमी का, न ख़त्म हो जाने का, न नुक़सान पहुंचाने का न और कोई.
उसमें पहली मौत के सिवा (15)
(15) जो दुनिया में हो चुकी.
फिर मौत न चखेंगे और अल्लाह ने उन्हें आग के अज़ाब से बचा लिया (16) {56}
(16) उससे निजात अता फ़रमाई.
तुम्हारे रब के फ़ज़्ल से, यही बड़ी कामयाबी है {57} तो हमने इस क़ुरआन को तुम्हारी ज़बान में (17)
(17) यानी अरबी में.
आसान किया कि वो समझे (18) {58}
(18) और नसीहत क़ुबूल करें और ईमान लाए, लेकिन लाएंगे नहीं.
तो तुम इन्तिज़ार करो (19)
(19)उनकी हलाकत और अज़ाब का.
वो भी किसी इन्तिज़ार में है(20){59}
(20) तुम्हारी मौत के (कहते है कि यह आयत आयते सैफ़ से मन्सूख़ हो गई)