51 सूरए ज़ारियात – पहला रूकू
51|1|بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ وَالذَّارِيَاتِ ذَرْوًا
51|2|فَالْحَامِلَاتِ وِقْرًا
51|3|فَالْجَارِيَاتِ يُسْرًا
51|4|فَالْمُقَسِّمَاتِ أَمْرًا
51|5|إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَصَادِقٌ
51|6|وَإِنَّ الدِّينَ لَوَاقِعٌ
51|7|وَالسَّمَاءِ ذَاتِ الْحُبُكِ
51|8|إِنَّكُمْ لَفِي قَوْلٍ مُّخْتَلِفٍ
51|9|يُؤْفَكُ عَنْهُ مَنْ أُفِكَ
51|10|قُتِلَ الْخَرَّاصُونَ
51|11|الَّذِينَ هُمْ فِي غَمْرَةٍ سَاهُونَ
51|12|يَسْأَلُونَ أَيَّانَ يَوْمُ الدِّينِ
51|13|يَوْمَ هُمْ عَلَى النَّارِ يُفْتَنُونَ
51|14|ذُوقُوا فِتْنَتَكُمْ هَٰذَا الَّذِي كُنتُم بِهِ تَسْتَعْجِلُونَ
51|15|إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ
51|16|آخِذِينَ مَا آتَاهُمْ رَبُّهُمْ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا قَبْلَ ذَٰلِكَ مُحْسِنِينَ
51|17|كَانُوا قَلِيلًا مِّنَ اللَّيْلِ مَا يَهْجَعُونَ
51|18|وَبِالْأَسْحَارِ هُمْ يَسْتَغْفِرُونَ
51|19|وَفِي أَمْوَالِهِمْ حَقٌّ لِّلسَّائِلِ وَالْمَحْرُومِ
51|20|وَفِي الْأَرْضِ آيَاتٌ لِّلْمُوقِنِينَ
51|21|وَفِي أَنفُسِكُمْ ۚ أَفَلَا تُبْصِرُونَ
51|22|وَفِي السَّمَاءِ رِزْقُكُمْ وَمَا تُوعَدُونَ
51|23|فَوَرَبِّ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ إِنَّهُ لَحَقٌّ مِّثْلَ مَا أَنَّكُمْ تَنطِقُونَ
सूरए ज़ारियात मक्के में उतरी, इसमें 60 आयतें, तीन रूकू हैं
-पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए ज़ारियात मक्की है इसमें तीन रूकू, साठ आयतें, तीन सौ साठ कलिमे और एक हज़ार दो सौ उन्त्तालीस अक्षर हैं.
क़सम उनकी जो बिखेर कर उड़ाने वालियाँ (2){1}
(2) यानी वो हवाएं जो ख़ाक वग़ैरह को उड़ाती हैं.
फिर बोझ उठाने वालियाँ (3){2}
(3) यानी वो घटाएं और बदलियाँ जो बारिश का पानी उठाती हैं.
फिर नर्म चलने वालियां (4){3}
(4) वो किश्तियाँ जो पानी में आसानी से चलती है.
फिर हुक्म से बाँटने वालियां (5){4}
(5) यानी फ़रिश्तों की वो जमाअतें जो अल्लाह के हुक्म से बारिश और रिज़्क़ वग़ैरह की तक़सीम करती हैं और जिनको अल्लाह तआला ने संसार का बन्दोबस्त करने पर लगाया है और इस दुनिया के निज़ाम को चलाने और उसमें रद्दोबदल का इख़्तियार अता फ़रमाया है. कुछ मुफ़स्सिरों का क़ौल है कि ये तमाम विशेषताएं हवाओ की हैं कि वो धूल भी उड़ाती हैं, बादलों को भी उठाए फिरती हैं, फिर उन्हें लेकर बसहूलत चलती हैं, फिर अल्लाह तआला के शहरों में उसके हुक्म से बारिश तक़सीम करती हैं. क़सम का उद्देश्य उस चीज़ की महानता बयान करता है जिसके साथ क़सम याद फ़रमाई गई क्योंकि ये चीज़ें अल्लाह की बेपनाह क़ुदरत पर दलील लाने वाली हैं. समझ वालों को मौक़ा दिया जाता है कि वो इनमें नज़र करके मरने के बाद उठाए जाने और कर्मों का बदला दिये जाने को प्रमाणित करें कि वो क़ुदरत वाला रब ऐसी अनोखी बातों पर क़ुदरत रखता है वह अपनी पैदा की हुई चीज़ों को नष्ट करने के बाद दोबारा अस्तित्व में लाने पर बेशक क़ादिर है.
बेशक जिस बात का तुम्हें वादा दिया जाता है(6)
(6) यानी दोबारा ज़िन्दगी दिये जाने और कर्मों का बदला दिये जाने.
ज़रूर सच है {5} और बेशक इन्साफ़ ज़रूर होना (7){6}
(7) और हिसाब के बाद नेकी बदी का बदला ज़रूर मिलता.
आरायश वाले आसमान की क़सम(8){7}
(8) जिसको सितारों से सजाया है कि मक्के वाले नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की शान में और क़ुरआन पाक के बारे में.
तुम मुख़्तलिफ़ बात में हो(9){8}
(9) कभी रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को जादूगर कहते हो, कभी शायर, कभी तांत्रिक, कभी पागल (मआज़ल्लाह) इसी तरह क़ुरआने पाक को भी कभी जादू बताते हो कभी शायरी, कभी तंत्र विद्या की अगलों की कहानियाँ.
इस क़ुरआन से वही औंधा किया जाता है जिसकी क़िस्मत ही में औंधाया जाना हो(10){9}
(10) और जो हमेशा का मेहरूम है, इस सआदत से मेहरूम रहता है और बहकाने वालों के बहकावे में आ जाता है. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के ज़मान के काफ़िर जब किसी को देखते कि ईमान लाने का इरादा करता है तो उससे नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की निस्बत कहते कि उनके पास क्यों जाता है, वह तो शायर हैं, जादूगर हैं, तांत्रिक हैं, झूटे हैं (मआज़ल्लाह) और इसी तरह क़ुरआन शरीफ़ को शायरी, जादू और झूट बताते (मआज़ल्लाह).
मारे जाएं दिल से तराशने वाले {10} जो नशे में भूले हुए हैं(11){11}
(11) यानी जिहालत के नशे में आख़िरत को भूले हुए हैं.
पूछतें हैं(12)
(12) नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से मज़ाक उड़ान के तौर पर.
इन्साफ़ का दिन कब होगा(13){12}
(13) उनके जवाब में फ़रमाया जाता है.
उस दिन होगा जिस दिन वो आग पर तपाए जाएंगे(14){13}
(14) और उन्हें अज़ाब दिया जाएगा.
और फ़रमाया जाएगा चखो अपना तपना यह है वह जिसकी तुम्हें जल्दी थी(15) {14}
(15) और दुनिया में मज़ाक के तौर पर कहा करते थे कि वह अज़ाब जल्दी लाओ जिसका वादा देते हो.
बेशक परहेज़गार बाग़ों और चश्मों में हैं(16){15}
(16) यानी अपने रब की नेअमत में हैं बाग़ों के अन्दर जिनमें लतीफ़ चश्मे जारी हैं.
अपने रब की अताएं लेते हुए, बेशक वो उससे पहले(17)
(17) दुनिया में.
नेकी करने वाले थे {16} वो रात में कम सोया करते थे(18){17}
(18) और ज़्यादा हिस्सा रात का नमाज़ में गुज़ारते.
और पिछली रात इस्तिग़फ़ार (गुनाहों से माफ़ी मांगा) करते (19){18}
(19) यानी रात तहज्जुद और जागने में गुज़ारते हैं और बहुत थोड़ी देर सोते और रात का पिछला हिस्सा इस्तिग़फ़ार में गुज़ारते हैं और इतने सो जाने को भी गुनाह समझते हैं.
और उनके मालों में हक़ था मंगता और बेनसीब का(20){19}
(20) मंगता तो वह जो अपनी हाजत के लिये लोगो से सवाल करे और मेहरूम वह कि हाजतमन्द हो और शर्म से सवाल भी न करे.
और ज़मीन में निशानियाँ हैं यक़ीन वालों को(21){20}
(21) जो अल्लाह तआला के एक होने और उसकी क़ुदरत और हिकमत को प्रमाणित करती है.
और ख़ुद तुम में(22)
(22) तुम्हारी पैदाइश में और तुम्हारे परिवर्तन में और तुम्हारे ज़ाहिर और बातिन में अल्लाह तआला की क़ुदरत के ऐसे बेशुमार अजूबे और चमत्कार हैं जिससे बन्दे को उसके रब होने की शान मालूम होती है.
तो क्या तुम्हें सूझता नहीं {21} और आसमान में तुम्हारा रिज़्क़ है(23)
(23) कि उसी तरफ़ से बारिश करके ज़मीन को पैदावार से मालामाल किया जाता है.
और जो तुम्हें वादा दिया जाता है (24){22}तो आसमान और ज़मीन के रब की क़सम बेशक यह क़ुरआन हक़ है वैसी ही ज़बान में जो तुम बोलते हो{23}
(24) आख़िरत के सवाब और अज़ाब का, वह सब आसमान में लिखा हुआ है.
51 सूरए ज़ारियात – दूसरा रूकू
51|24|هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ ضَيْفِ إِبْرَاهِيمَ الْمُكْرَمِينَ
51|25|إِذْ دَخَلُوا عَلَيْهِ فَقَالُوا سَلَامًا ۖ قَالَ سَلَامٌ قَوْمٌ مُّنكَرُونَ
51|26|فَرَاغَ إِلَىٰ أَهْلِهِ فَجَاءَ بِعِجْلٍ سَمِينٍ
51|27|فَقَرَّبَهُ إِلَيْهِمْ قَالَ أَلَا تَأْكُلُونَ
51|28|فَأَوْجَسَ مِنْهُمْ خِيفَةً ۖ قَالُوا لَا تَخَفْ ۖ وَبَشَّرُوهُ بِغُلَامٍ عَلِيمٍ
51|29|فَأَقْبَلَتِ امْرَأَتُهُ فِي صَرَّةٍ فَصَكَّتْ وَجْهَهَا وَقَالَتْ عَجُوزٌ عَقِيمٌ
51|30|قَالُوا كَذَٰلِكِ قَالَ رَبُّكِ ۖ إِنَّهُ هُوَ الْحَكِيمُ الْعَلِيمُ
51|31|۞ قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ أَيُّهَا الْمُرْسَلُونَ
51|32|قَالُوا إِنَّا أُرْسِلْنَا إِلَىٰ قَوْمٍ مُّجْرِمِينَ
51|33|لِنُرْسِلَ عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِّن طِينٍ
51|34|مُّسَوَّمَةً عِندَ رَبِّكَ لِلْمُسْرِفِينَ
51|35|فَأَخْرَجْنَا مَن كَانَ فِيهَا مِنَ الْمُؤْمِنِينَ
51|36|فَمَا وَجَدْنَا فِيهَا غَيْرَ بَيْتٍ مِّنَ الْمُسْلِمِينَ
51|37|وَتَرَكْنَا فِيهَا آيَةً لِّلَّذِينَ يَخَافُونَ الْعَذَابَ الْأَلِيمَ
51|38|وَفِي مُوسَىٰ إِذْ أَرْسَلْنَاهُ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ
51|39|فَتَوَلَّىٰ بِرُكْنِهِ وَقَالَ سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ
51|40|فَأَخَذْنَاهُ وَجُنُودَهُ فَنَبَذْنَاهُمْ فِي الْيَمِّ وَهُوَ مُلِيمٌ
51|41|وَفِي عَادٍ إِذْ أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمُ الرِّيحَ الْعَقِيمَ
51|42|مَا تَذَرُ مِن شَيْءٍ أَتَتْ عَلَيْهِ إِلَّا جَعَلَتْهُ كَالرَّمِيمِ
51|43|وَفِي ثَمُودَ إِذْ قِيلَ لَهُمْ تَمَتَّعُوا حَتَّىٰ حِينٍ
51|44|فَعَتَوْا عَنْ أَمْرِ رَبِّهِمْ فَأَخَذَتْهُمُ الصَّاعِقَةُ وَهُمْ يَنظُرُونَ
51|45|فَمَا اسْتَطَاعُوا مِن قِيَامٍ وَمَا كَانُوا مُنتَصِرِينَ
51|46|وَقَوْمَ نُوحٍ مِّن قَبْلُ ۖ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ
ऐ मेहबूब क्या तुम्हारे पास इब्राहीम के इज़्ज़त वाले मेहमानों की ख़बर आई(1){24}
(1) जो दस या बारह फ़रिश्ते थे.
जब वो उसके पास आकर बोले सलाम, कहा सलाम, नाशनासा लोग हैं(2){25}
(2) यह बात आपने अपने दिल में फ़रमाई.
फिर अपने घर गया तो एक मोटा ताज़ा बछड़ा ले आया(3){26}
(3) नफ़ीस भुना हुआ.
फिर उसे उनके पास रखा(4)
(4) कि खाएं और ये मेज़बान के आदाब में से है कि मेहमान के सामने खाना पेश करे. जब उन फ़रिश्तों ने खाया तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने —
कहा क्या तुम खाते नहीं {27} तो अपने जी में उनसे डरने लगा(5)
(5) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि आपके दिल में बात आई कि ये फ़रिश्ते हैं और अज़ाब के लिये भेजे गए हैं.
वो बोले डरिये नहीं(6)
(6) हम अल्लाह तआला के भेजे हुए हैं.
और उसे एक इल्म वाले लड़के की खु़शख़बरी दी {28} इस पर उसकी बीबी (7)
(7) यानी हज़रत सारा.
चिल्लाती आई फिर अपना माथा ठोंका और बोली क्या बुढिया बांझ (8){29}
(8) जिसके कभी बच्चा नहीं हुआ नव्वे या निनानवे साल की उम्र हो चुकी. मतलब यह था कि ऐसी उम्र और ऐसी हालत में बच्चा होना अत्यन्त आशचर्य की बात हैं.
उन्होंने कहा तुम्हारे रब ने यूंही फ़रमा दिया है, और वही हकीम दाना (जानने वाला) है{30}
पारा छब्बीस समाप्त
सत्ताईसवां पारा-क़ाला फ़माख़त्बुकुम
(सूरए ज़ारियात जारी)
इब्राहीम ने फ़रमाया, तो ऐ फ़रिश्तों तुम किस काम से आए(9){31}
(9) यानी सिवाय इस ख़ुशख़बरी के तुम्हारा और क्या काम है.
बोले हम एक मुजरिम क़ौम की तरफ़ भेजे गए हैं(10){32}
(10) यानि क़ौमे लूत की तरफ़.
कि उनपर गारे के बनाए हुए पत्थर छोड़ें {33} जो तुम्हारे रब के पास हद से बढ़ने वालों के लिये निशान किये रखे हैं(11) {34}
(11) उन पत्थरों पर निशान थे जिनसे मालूम होता था कि ये दुनिया के पत्थरों में से नहीं हैं. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि हर एक पत्थर पर उसका नाम लिखा था जो उससे हलाक किया जाने वाला था.
तो हमने उस शहर में जो ईमान वाले थे निकाल लिये {35} तो हमने वहाँ एक ही घर मुसलमान पाया(12){36}
(12) यानी एक ही घर के लोग और वो हज़रत लूत अलैहिस्सलाम और आपकी दोनों बेटियाँ हैं.
और हमने उसमें (13)
(13) यानी क़ौमे लूत के उस शहर में काफ़िरों को हलाक करने के बाद.
निशानी बाक़ी रखी उनके लिये जो दर्दनाक अज़ाब से डरते हैं(14){37}
(14) ताकि वो इबरत हासिल करें और उनके जैसे कामों से बाज़ रहें और वह निशानी उनके उजड़े हुए शहर थे या वो पत्थर जिनसे वो हलाक किये गए या वह काला बदबूदार पानी जो उस धरती से निकला था.
और मूसा में(15)
(15) यानी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के वाक़ए में भी निशानी रखी.
जब हमने उसे रौशन सनद लेकर फ़िरऔन के पास भेजा(16) {38}
(16) रौशन सनद से मुराद हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के चमत्कार हैं जो आपने फ़िरऔन और उसके लोगों पर पेश फ़रमाए.
तो अपने लश्कर समेत फिर गया(17)
(17) यानी फ़िरऔन ने अपनी जमाअत के साथ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर ईमान लाने से इन्कार किया.
और बोला जादूगर है या दीवाना {39} तो हमने उसे और उसके लश्कर को पकड़ कर दरिया में डाल दिया इस हाल में कि वह अपने आपको मलामत कर रहा था(18){40}
(18) कि क्यों वह हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर ईमान न लाया और क्यों उन्हें बुरा भला कहा.
और आद में(19)
(19) यानी क़ौमे आद के हलाक करने में इबरत वाली निशानियाँ हैं.
जब हमने उनपर ख़ुश्क़ आंधी भेजी(20){41}
(20) जिसमें कुछ भी ख़ैरो बरकत न थी. यह हलाक करने वाली हवा थी.
जिस चीज़ पर गुज़रती उसे गली हुई चीज़ की तरह कर छोड़ती(21){42}
(21) चाहे वो आदमी हों या जानवर या और अमवाल, जिस चीज़ को छू गई उसको हलाक करके ऐसा कर दिया मानों वह मुद्दतों की नष्ट की हुई है.
और समूद में(22)
(22) यानी क़ौमे समूद की हलाकत में भी निशानियाँ हैं.
जब उनसे फ़रमाया गया एक वक़्त तक बरत लो(23){43}
(23) यानी मौत के वक़्त तक दुनिया में जी लो तो यही ज़माना तुम्हारी मोहलत का है.
तो उन्होंने अपने रब के हुक्म से सरकशी की(24)
(24) और हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम को झुटलाया और ऊंटनी की कूंचें कांटीं.
तो उनकी आंखों के सामने उन्हें कड़क ने आ लिया(25){44}
(25) और भयानक आवाज़ के अज़ाब से हलाक कर दिये गए.
तो वो न खड़े हो सके(26) और न वो बदला ले सकते थे {45} और उनसे पहले नूह की क़ौम को हलाक फ़रमाया, बेशक वो फ़ासिक़ लोग थे{46}
(26) अज़ाब उतरते समय न भाग सके.
51 सूरए ज़ारियात -तीसरा रूकू
51|47|وَالسَّمَاءَ بَنَيْنَاهَا بِأَيْدٍ وَإِنَّا لَمُوسِعُونَ
51|48|وَالْأَرْضَ فَرَشْنَاهَا فَنِعْمَ الْمَاهِدُونَ
51|49|وَمِن كُلِّ شَيْءٍ خَلَقْنَا زَوْجَيْنِ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ
51|50|فَفِرُّوا إِلَى اللَّهِ ۖ إِنِّي لَكُم مِّنْهُ نَذِيرٌ مُّبِينٌ
51|51|وَلَا تَجْعَلُوا مَعَ اللَّهِ إِلَٰهًا آخَرَ ۖ إِنِّي لَكُم مِّنْهُ نَذِيرٌ مُّبِينٌ
51|52|كَذَٰلِكَ مَا أَتَى الَّذِينَ مِن قَبْلِهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا قَالُوا سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ
51|53|أَتَوَاصَوْا بِهِ ۚ بَلْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُونَ
51|54|فَتَوَلَّ عَنْهُمْ فَمَا أَنتَ بِمَلُومٍ
51|55|وَذَكِّرْ فَإِنَّ الذِّكْرَىٰ تَنفَعُ الْمُؤْمِنِينَ
51|56|وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ
51|57|مَا أُرِيدُ مِنْهُم مِّن رِّزْقٍ وَمَا أُرِيدُ أَن يُطْعِمُونِ
51|58|إِنَّ اللَّهَ هُوَ الرَّزَّاقُ ذُو الْقُوَّةِ الْمَتِينُ
51|59|فَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا ذَنُوبًا مِّثْلَ ذَنُوبِ أَصْحَابِهِمْ فَلَا يَسْتَعْجِلُونِ
51|60|فَوَيْلٌ لِّلَّذِينَ كَفَرُوا مِن يَوْمِهِمُ الَّذِي يُوعَدُونَ
और आसमान को हमने हाथों से बनाया(1)
(1) अपने दस्ते क़ुदरत से.
और बेशक हम वुसअत देने वाले हैं(2){47}
(2) उसको इतनी कि ज़मीन अपनी फ़ज़ा के साथ उसके अन्दर इस तरह आजाए जैसे कि एक चौड़े मैदान में गैंद पड़ी हो या ये मानी हैं कि हम अपनी सृष्टि पर रिज़्क़ फैलाने वाले हैं.
और ज़मीन को हमने फ़र्श किया तो हम क्या ही अच्छे बिछाने वाले {48} और हमने हर चीज़ के दो जोड़े बनाए(3)
(3) आसमान और ज़मीन और सूरज और चाँद और रात और दिन और ख़ुश्की और तरी और गर्मी व सर्दी और जिन्न व इन्स और रौशनी और अंधेरा और ईमान व कुफ़्र और सआदत व शक़ावत और हक़ व बातिल और नर व मादा की तरह.
कि तुम ध्यान करो (4){49}
(4) और समझो कि उन तमाम जोड़ों को पैदा करने वाली एक ही हस्ती है, न उसका नज़ीर है, न शरीक, न ज़िद न बराबर. वही इबादत के लायक़ है.
तो अल्लाह की तरफ़ भागो (5)
(5) उसके मासिवा को छोड़ कर उसकी इबादत इख़्तियार करो.
बेशक मैं उसकी तरफ़ से तुम्हारे लिये साफ़ डर सुनाने वाला हूँ {50} और अल्लाह के साथ और मअबूद न ठहराओ, बेशक मैं उसकी तरफ़ से तुम्हारे लिये खुला डर सुनाने वाला हूँ {51}यूंही (6)
(6) जैसे कि उन काफ़िरों ने आपको झुटलाया और आपको जादूगर और दीवाना कहा, ऐसे ही.
जब उनसे अगलों के पास कोई रसूल तशरीफ़ लाया तो यही बोले कि जादूगर है या दीवाना {52} क्या आपस में एक दूसरे को यह बात कह मरे हैं, बल्कि वो सरकश लोग हैं(7){53}
(7) यानी पहले काफ़िरों ने अपने पिछलों को यह वसीयत तो नहीं की कि तुम नबियों को झुटलाना और उनकी शान में इस तरह की बातें बनाना लेकिन चूंकि सरकशी और बग़ावत की इल्लत दोनों में है इसलिये गुमराही में एक दूसरे के मुवाफ़िक़ रहे.
तो ऐ मेहबूब, तुम उनसे मुंह फेर लो तो तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं(8){54}
(8) क्योंकि आप रिसालत की तबलीग़ फ़रमा चुके और दावत व हिदायत में काफ़ी मेहनत कर चुके और आपने अपनी कोशिश में कोई कसर उठा न रखी. जब यह आयत उतरी तो रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ग़मगीन हुए और आपके सहाबा को रंज हुआ कि जब रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को मुंह फेरने का हुक्म हो गया तो अब वही क्यों आएगी और जब नबी ने उम्मत को तबलीग़ पूरे तौर पर फ़रमादी और उम्मत सरकशी से बाज़ न आई और रसूल को उनसे मुंह फेरने का हुक्म मिल गया तो वक़्त आ गया कि उन पर अज़ाब उतरे. इस पर वह आयत उतरी जो इस आयत के बाद है और उसमें तस्कीन दी गई कि वही का सिलसिला टूटा नहीं है. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नसीहत सआदतमन्दों के लिये जारी रहेगी चुनांन्वे इरशाद हुआ.
और समझाओ कि समझाना मुसलमानों को फ़ायदा देता है{55} और मैंने जिन्न और आदमी इतने ही के लिये बनाए कि मेरी बन्दगी करें(9){56}
(9) और मेरी मअरिफ़त यानी पहचान हो.
मैं उनसे कुछ रिज़्क़ नहीं मांगता(10)
(10) कि मेरे बन्दों को रोज़ी दें या सब की नहीं तो अपनी ही रोज़ी ख़ुद पैदा करें क्योंकि रिज़्क़ देने वाला मैं हूँ और सब की रोज़ी का मैं ही पूरा करने वाला हूँ.
और न यह चाहता हूँ कि वो मुझे खाना दें(11){57}
(11) मेरी सृष्टि के लिये.
बेशक अल्लाह ही बड़ा रिज़्क़ देने वाला क़ुव्वत वाला क़ुदरत वाला है(12){58}
(12) सबको वही देता, वही पालता है.
तो बेशक उन ज़ालिमों के लिये(13)
(13) जिन्होंने रसूले पाक सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को झुटलाकर अपनी जानों पर ज़ुल्म किया.
अज़ाब की एक बारी है(14)
(14) हिस्सा है नसीब है.
जैसे उनके साथ वालों के लिये एक बारी थी(15)
(15) यानी पिछली उम्मतों के काफ़िरों के लिये जो नबीयों को झुटलाने में इनके साथी थे. उनका अज़ाब और हलाकत में हिस्सा था.
तो मुझसे जल्दी न करें(16){59}
(16) अज़ाब नाज़िल करने की.
तो काफ़िरों की ख़राबी है उनके उस दिन से जिसका वादा दिये जाते हैं(17){60}
(17) और वह क़यामत का दिन है.