वाक़या एक पारसी और सैय्यदज़ादी का
हेरात में एक सैय्यद फैमली रहती थी उनके शौहर का इंतेक़ाल हो गया तो वो बेवा सैय्यदज़ादी ग़रीबी और फाक़ों से मजबुर हो कर समरक़ंद की तरफ चल पडीं वो बेवा ख़ातुन समरक़ंद पहुंची तो उनके साथ में उनकी बच्चियां थी कोई बेटा न था,
ख़ातुन ने लोगों से पुछा तो पता चला के समरकंद में दो लोग बहुत रईस हैं पहला रईस मुसलमान था और दुसरा रईस एक पारसी था
ख़ातुन ने सोंचा के पहले मुसलमान के पास चलती हुं, जब वो रईस मुसलमान के पास पहुंची तो ख़ातुन ने अपनी परीशानी उन्हें बताई, और कहा के मैं सैय्यदज़ादी हुं मेरे शौहर का इंतेक़ाल हो चुका है ‘ मैं बहुत मजबुर हो कर आपके पास आई हुं
रईस मुसलमान शख़्स कहने लगा कोई शिजरा है तो दिखाओ या कोई सबुत दो के तुम सैय्यदज़ादी हो, वो ख़ातुन कहने लगी मैं बहुत मुसीबत में आपके पास बडी उम्मीद ले कर आई हुं, इस मुसीबत के घडी में अपने साथ शिजरा ले कर कहां फिरती रहुं मैं, मगर उस रईस मुसलमान के दिल पर कोई असर न हुआ और उसने अपना दरवाज़ा बंद कर लिया
बेवा ख़ातुन ने मजबुरन रईस पारसी की तरफ जाने का इरादा किया के शायद वहां से कोई मदद मिल जाए, ख़ातुन सैय्यदज़ादी ने उस पारसी के दरवाज़े पर पहुंच कर अपनी मजबुरी बयान करने लगी, ख़ातुन ने कहा मैं मुसलमानों के रसुल ﷺ की औलाद में से हुं मेरे शौहर का इंतेक़ाल हो चुका है अब मुझे यहां रहने के लिये कोई ठिकाना चाहिये
पारसी ने ये सुना तो फौरन रहने के लिये एक घर दे दिया और अपनी बीवी से बोला चलो इनकी बेटियों को सराय से ले कर आतें हैं,
मुसलमान रईस जब रात को सोया तो ख़्वाब में देखा के वो जन्नत में एक महल के दरवाज़े पर खडा है और सामने हुज़ुर अकरम ﷺ खडे हैं
मुसलमान रईस पुछता है या अल्लाह ﷻ के रसुल ﷺ ये महल किसका है..? , हुज़ुर अकरम ﷺ ने फरमाया ये एक ईमान वाले के लिये है
या अल्लाह ﷻ के रसुल ﷺ मैं भी एक ईमान वाला हुं ये महल आप मुझे इनायत किजिये, हुज़ुर अकरम ﷺ ने फरमाया अगर तु ईमान वाला है तो गवाह पेश कर, कोई सबुत पेश कर के तु ईमान वाला है, मेरी बेटी तेरे दरवाज़े पर गई थी तो तुने सय्यदज़ादी होने का सबुत मांगा था न अब तेरे पास ईमान वाला होने का कोई सबुत है तो पेश कर
उसका आंख खुली तो बहुत परीशान हुआ नौकरों से पुछा के वो ख़ातुन सैय्यदज़ादी किधर गई , तो नौकरों ने बताया के वो पारसी के पास गई है
उस रईस मुसलमान ने सरदियों में जुते पहने न कपडे बस दौड लगा दी और पारसी के दरवाज़े पर पहुंच कर दरवाज़ा खटखटाने लगा, पारसी बाहर निकला तो मुसलमान ने कहा मेरी मेहमान वापिस करो
परसी कहने लगा हुज़ुर वो तो अब मेरी मेहमान है, तो रईस कहने लगा मेरा सारा सरमाया ले लो मेरी सारी दौलत ले लो बस मेरा मेहमान मुझे वापस करदो
पारसी ने रोते हुए कहा हुज़ुर बिना देखे सौदा किया था अब जब देख चुका हुं तो हरगिज़ वापस नही कर सकता, जिस ख़्वाब में तुझको धक्के मिले हैं उसी ख़्वाब को मैंने भी देखा है अल्लाह ﷻ के नबी ﷺ ने तुझको दुर किया और मेरी तरफ देख कर बोले तुने मेरी बेटी को ठिकाना दिया है तुझे और तेरी नस्ल को जन्नत मुबारक हो, पारसी कहने लगा मैं तो कलमा पढ कर ईमान ला चुका हुं और अलहमदोलिल्लाह अब मैं मुसलमान हुं
हुज़ुर अकरम ﷺ ने फरमाया है के जिसने मिरी औलाद पर एहसान किया, और मेरी औलाद ग़रीबी की वजह से उस एहसान का बदला न चुका सकी तो क़यामत के रोज़ मैं उस एहसान का बदला चुकाउंगा