इस करम का करूँ शुक्र कैसे अदा
जो करम मुझ पे मेरे नबी ﷺ कर दिया
मैं सजाता हूँ सरकार ﷺ की मेहफ़िलें
मुझ को हर ग़म से रब ﷻ ने बरी कर दिया
मेरी बात बन गई है तेरी ﷺ बात करते करते
तेरे शहर में मैं आऊं तेरी ﷺ नात पड़ते पड़ते
तेरे इश्क़ की बदौलत मुझे ज़िन्दगी मिली है
मुझे मौत आए आक़ा ﷺ ! तेरा ज़िक्र करते करते
मेरी बात बन गई है तेरी ﷺ बात करते करते
तेरे शहर में मैं आऊं तेरी ﷺ नात पड़ते पड़ते
मेरे सूने सूने घर में कभी रौनक़ें अता हो
सुना है आप ﷺ हर आशिक़ के घर तशरीफ़ लाते हैं
मेरे घर में भी हो जाए चराग़ाँ या रसूलल्लाह ﷺ
मेरे सूने सूने घर में कभी रौनक़ें अता हो
मैं दीवाना हो ही जाऊं तेरी ﷺ राह तकते तकते
मेरी बात बन गई है तेरी ﷺ बात करते करते
तेरे शहर में मैं आऊं तेरी ﷺ नात पड़ते पड़ते
किसी चीज़ की तलब है न है आरज़ू भी कोई
तूने इतना भर दिया है कश्कोल भरते भरते
मेरी बात बन गई है तेरी ﷺ बात करते करते
तेरे शहर में मैं आऊं तेरी ﷺ नात पड़ते पड़ते
मेरी ऐसी हाज़री हो के कभी न वापसी हो
मिले सदक़ा पंजतन का तेरी ﷺ नात पड़ते पड़ते
मेरी बात बन गई है तेरी ﷺ बात करते करते
तेरे शहर में मैं आऊं तेरी ﷺ नात पड़ते पड़ते
नातख्वां:
हाफ़िज़ ताहिर क़ादरी और अहसन क़ादरी