ख़्वाहिशाते नफ़्सानी – Khahishate Nafsani
शहवात, बादशाहों को फ़क़ीर और सब्र फकीरों को बादशाह बना देता है। आपने हज़रते यूसुफ अलैहिस्सलाम और जुलैखा का किस्सा नहीं पढ़ा? यूसुफ अलैहिस्सलाम सब्र की बदौलत मिस्र के बादशाह हुए और ज़ुलैखा ख़्वाहिशों की वजह से आजिज़ व रुसवा और बसारत से महरूम बुढ़िया बन गई इसलिए कि जुलैखा ने हज़रते यूसुफ अलैहिस्सलाम की मुहब्बत में सब्र नहीं किया था-
मूसा अलैहिस्सलाम को दुरूद पढ़ने का हुक्म
अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम पर वही नाज़िल फ़रमाई कि ऐ मूसा! अगर तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी ज़बान पर तुम्हारे कलाम से, तुम्हारे दिल में ख़्यालात से, तुम्हारे बदन में तुम्हारी रूह से, तुम्हारी आंखों में नूरे बसारत से और तुम्हारे कानों में सुनने की ताक़त से ज़्यादा क़रीब रहूं तो फिर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कसरत से दुरूद भेज़ो
अस्सलातु वस्सलामु अलै-क या रसूलल्लाहि
फ़रमाने इलाही है
हर नफ्स यह देखे कि उसने कियामत के लिए क्या अमल किए हैं। ऐ इन्सान! अच्छी तरह समझ ले कि तुझे बुराई की तरफ़ लेजाने वाला तेरा नफ़्स तेरे शैतान से भी बड़ा दुश्मन है और शैतान को तुझ पर तेरी ख़्वाहिशात की बदौलत ग़लबा हासिल होता है लिहाज़ा तुझे तेरा नफ्स झूटी उम्मीदों और धोके में डाले है, जो शख़्स बे ख़ौफ़ हुआ और ग़फ़लत में गिरिफ़्तार हुआ, अपने नफ़्स की पैरवी करता है, उस इन्सान का हर दावा झूटा है, अगर तू नफ़्स की रज़ा में उस की ख़्वाहिशों की पैरवी करेगा तो हलाक हो जाएगा और अगर उस के मुहासबा से ग़ाफ़िल होगा तो गुनाहों के समुन्दर में डूब जाएगा।
अगर तू उस की मुख़ालिफ़त से आजिज़ आकर उसकी ख़्वाहिशों की पैरवी करेगा तो यह तुझे जहन्नम की तरफ़ खींच ले जाएगा। नफ़्स का लौटना भलाई की तरफ नहीं है बल्कि यह मुसीबतों की जड़, शर्मिन्दगी की कान, इबलीस का ख़ज़ाना और बुराई का ठिकाना है और इस की फ़ितना अंगेज़ियों को सिवाये आलिमे खैर व शर के यानी अल्लाह तआला के इलावा कोई नहीं जानता। फ़रमाने इलाही है
‘और अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह तुम्हारे तमाम आमाल से बाख़बर है ।
तफ़सीर अबिल्लैस रहमतुल्लाह अलैह में है, जब कोई बन्दा आख़िरत की चाहत की वजह से अपनी गुज़री हुई ज़िन्दगी पर गौर व फिक्र करता है तो यह फ़िक्र करना उस के दिल के लिए गुस्ल का काम देता है जैसा कि फ़रमाने नबवी है, एक घड़ी का तफ़क्कुर साल भर की इबादत से बेहतर है। लिहाज़ा हर अक़लमन्द के लिए ज़रूरी है कि अपने पिछले गुनाहों की मग़फिरत तलब करे, जिन चीज़ों का इक़रार करता है
उन में तफ़क्कुर करे और क़ियामत के दिन के लिए तोशा बनाये, उम्मीदों को कम करे, तौबा में जल्दी करे, अल्लाह तआला का ज़िक्र करता रहे, हराम चीज़ों से बचे और नफ़्स को सब्र पर आमादा करे । नफ़्स की ख़्वाहिशों की पैरवी न करे क्योंकि नफ़्स एक बुत की तरह है जो नफ़्स की पैरवी करता है वह गोया बुत की इबादत करता है और जो इख़्लास से अल्लाह की इबादत करता है, वह अपने नफ़्स पर जब्र करता है।
हज़रते मालिक बिन दीनार ने इंजीर खाना चाहा
जनाबे मालिक इब्ने दीनार रहमतुल्लाह अलैह एक दिन बसरां के बाज़ार से गुज़र रहे थे कि आप को इंजीर नज़र आये, दिल में उन्हें खाने की ख़्वाहिश हुई, दुकानदार के पास पहुंचे और कहा मेरे इन जूतों के बदले इंजीर दे दो, दुकानदार ने जूतों को पुराना देख कर कहा इन के बदले में कुछ नहीं मिल सकता, आप यह जवाब सुन कर चल पड़े किसी ने दुकानदार से कहा, जानते हो यह बुज़ुर्ग कौन थे? वह बोला नहीं, उस ने कहा यह मशहूर मदनी हज़रते मालिक बिन दीनार रज़ियल्लाहु अन्हु थे, दुकानदार ने जब यह सुना तो अपने गुलाम को एक टोकरी इंजीरों से भर कर दी और कहा अगर जनाब मालिक बिन दीनार रज़ियल्लाहु अन्हु तुझ से यह टोकरी क़बूल कर लें तो इस ख़िदमत के बदले तू आज़ाद है । गुलाम भागा भागा आप की ख़िदमत में आया और अर्ज की हुजूर यह क़बूल फ़रमाइए, आप ने कहा मैं नहीं लेता, गुलाम बोला अगर आप इसे क़बूल कर लें तो मैं आज़ाद हो जाऊंगा, आप ने जवाब दिया इस में तेरे लिए तो आज़ादी है मगर मेरे लिए हलाकत है जब ग़ुलाम ने इसरार किया तो आप ने फ़रमाया कि मैं ने कसम खाई है कि दीन के बदले में मैं इंजीर नहीं खाऊंगा और मरते दम तक कभी भी इंजीर नहीं लूंगा।
ज़िन्दगी की आख़िरी घड़ी में सब्र
हज़रते मालिक बिन दीनार रज़ियल्लाहु अन्हु को मर्ज़े वफ़ात में इस बात की ख़्वाहिश हुई कि मैं गर्म रोटी का सरीद बनाकर खाऊँ जिस में दूध और शहद शामिल हो चुनान्चे आपके हुक्म से ख़ादिम यह तमाम चीजें लेकर हाज़िर हुआ। आप कुछ देर उन चीज़ों को देखते रहे, फिर बोले ऐ नफ़्स! तूने तीस साल लगातार सब्र किया है अब ज़िन्दगी की इस आख़िरी घड़ी में क्या सब्र नहीं कर सकता? यह कहा और प्याला छोड़ दिया और उसी तरह सब्र करते हुए वासिले ब-हक़ हो गए। हक़ीक़त यह है कि अल्लाह के नेक बन्दों में यानी अम्बिया, औलिया, सिद्दीकीन, आशिक़ीन और जाहिदीन के हालात ऐसे ही थे।
हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम का क़ौल है कि जिस शख़्स ने अपने नफ़्स पर काबू पाया, वह उस शख़्स से ज़्यादा ताक़तवर है जो तने तन्हा एक शहर को फ़तह कर लेता है ।
हज़रते अली रज़ियल्लाहु अन्हु का क़ौल है कि मैं अपने नफ़्स के साथ बकरियों के झुन्ड पर ऐसे एक जवान की तरह हूं कि जब वह एक तरफ़ उन्हें इकट्ठा करता है तो वह दूसरी तरफ् फैल जाती हैं ।
जो शख़्स अपने नफ़्स को फ़ना (मिटा) कर देता है उसे रहमत के कफ़न में लपेट कर करामत की ज़मीन में दफ़न किया जाता है और जो शख़्स अपने ज़मीर (कल्ब) को ख़त्म कर देता है उसे लानत के कफ़न में लपेट कर अज़ाब की ज़मीन में दफ़न किया जाता है।
जनाब यह्या बिऩ मआज़ राज़ी रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं कि अपने नफ़्स का ताअत व बन्दगी कर के मुकाबला करो । रियाज़त, शब-बेदारी (रात को जागना), क़लील गुफ्तगू (कम बोलना), लोगों की तकलीफ़ों को बरदाश्त करना, और कम खाने का नाम है, कम सोने से ख़्यालात पाकीज़ा होते हैं, कम बोलने से इन्सान आफ्तों से महफ़ूज़ रहता है । तकलीफें बरदाश्त करने से दर्जे बुलन्द होते हैं और कम खाने से शहवाते नफ़्सानी ख़त्म हो जाती हैं क्योंकि बहुत खाना दिल की स्याही और उसे गिरिफ्तारे .ज़ुल्मत करना है, भूक हिकमत का नूर है और सैर होना अल्लाह तआला से दूर कर देता है।
फ़रमाने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैअपने दिलों को भूक से रौशन करो अपने नफ़्स का भूक प्यास से मुक़ाबला करो और हमेशा भूक के वसीले से जन्नत का दरवाजा खटखटाते रहो, भूके रहने वाले को अल्लाह के रास्ते में लड़ने वाले के सवाब के बराबर सवाब मिलता है और अल्लाह तआला के-नज़दीक भूके प्यासे रहने से बेहतर कोई अमल नहीं, आसमान के फ़रिश्ते उस इन्सान के पास बिल्कुल नहीं आते जिसने अपना पेट भर कर इबादत का मज़ा खो दिया हो।
मिन्हाजुल आबिदीन में हज़रते अबू बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु का यह क़ौल मज़कूर है कि मैं जब से ईमान लाया हूं, कभी पेट भर कर खाना नहीं खाया ताकि मैं अपने रब की इबादत का मज़ा हासिल कर सकूं और अपने रब के शौके दीदार की वजह से कभी सैर होकर पानी नहीं पिया है इस लिए कि बहुत खाने से इबादत में कमी वाक़ेअ हो जाती है क्योंकि जब इन्सान ख़ूब सैर होकर खा लेता है तो उस का जिस्म भारी और आंखें नींद से बोझल हो जाती हैं उस के बदन के आज़ा ढीले पड़ जाते हैं फिर वह कोशिश के बावजूद कोशिश के सिवाए नींद के कुछ भी हासिल नहीं कर पाता और इस तरह वह उस मुर्दार की तरह बन जाता है जो रास्ते में पड़ा हो ।
मुन्यतुल मुफ़्ती में है कि जनाब लुक़मान हकीम ने अपने बेटे से कहा खाना और सोना कम करो क्यों कि जो शख्स ज़्यादा खाता और ज़्यादा सोता है वह क़ियामत के दिन नेक कामों से खाली हाथ होगा।
नबीए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फ़मान है कि अपने दिलों को ज़्यादा खाने पीने से हलाक न करो, जिस तरह ज़्यादा पानी से खेती तबाह होजाती है उसी तरह ज़्यादा खाने पीने से दिल हलाक हो जाता है।
नेक लोगों ने मेअदा को ऐसी हांडी से मिसाल दी है जो उबलती रहती है और उस के बुख़ारात (भाप) बराबर दिल पर पहुंचते रहते हैं, फिर उन्हीं भापों की ज़्यादती दिल को गंन्दा और मैला बना देता है, ज़्यादा खाने से इल्म व फ़िक्र में कमी वाक़े हो जाती है और शिकम पुरी (पेट भरना), अकलमन्दी व ज़ेहानत को बरबाद कर देती है।
हिकायतः हज़रते यह्या बिन जकरिया अलैहिस्सलाम ने शैतान को देखा वह बहुत से दाम (फन्दा, जाल) उठाए हुए था, आपने पूछा यह क्या हैं? शैतान ने कहा यह ख़्वाहिशात हैं, जिन से मैं इब्ने आदम को कैद करता हूं। आप ने फ़रमाया मेरे लिए भी कोई फन्दा है? शैतान बोला नहीं मगर एक रात आपने मेट भर कर खाना खा लिया था जिस से आप को नमाज़ में सुस्ती पैदा हो गई थी, तब हज़रते यह्या अलैहिस्सलाम बोले, आइन्दा मैं कभी भी पेट भर कर खाना नहीं खाऊंगा, शैतान बोला अगर यह बात है तो मैं भी आइन्दा किसी को नसीहत नहीं करूंगा।
यह उस मुक़द्दस हस्ती का हाल है जिस ने सारी उम्र में सिर्फ एक रात पेट भर कर खाना खाया था, उस शख़्स का क्या हाल होगा जो उम्र भर कभी भी भूका नहीं रहता और पेट भर कर खाना खाता है और उस पर वह चाहता है कि वह इबादत गुज़ार बन जाए ।
हिकायतः हज़रते यह्या अलैहिस्सलाम ने एक रात जौ की रोटी पेट भर कर खाली और इबादते इलाही में हाज़िर न हुए अल्लाह तआला ने वही की ऐ यह्या! क्या तू ने इस दुनिया को आख़िरत से बेहतर समझा है या मेरे जवारे रहमत से बेहतर तू ने कोई और जवार पा लिया है। मुझे इज्ज़त व जलाल की क़सम आगर तू जन्नतुल फ्रिदौस का नज़ारा कर ले और जहन्नम को देख ले तो आंसूओं के बदले ख़ून रोये और इस अच्छे लिबास की जगह लोहे का लिबास पहने।