* ईमान क्या है *
ईमान सिर्फ कुर्ता पैजामा पहनने दाढ़ी रखने या टोपी लगाने का नाम नहीं है बल्कि ईमान सिर्फ और सिर्फ ये हैं कि अपने नबी ﷺ से अपनी जान से भी ज़्यादा मुहब्बत की जाये.
ये मैं नहीं कह रहा बल्कि खुद हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि
तुम में से कोई उस वक़्त तक मुसलमान नहीं होगा जब तक कि मैं उसे उसके मां-बाप उसकी औलाद और सबसे ज़्यादा महबूब ना हो जाऊं.
📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 7
और मुहब्बत में सबसे खास बात क्या होती है जानते हैं ये कि मोहिब अपने महबूब की सारी कमियां नज़र अंदाज़ करके फक़त उसकी खूबियां ही बयान करता है हालांकि ये आम मुहिब और उनके महबूब सब के सब सर से लेकर पैरों तक ऐबों का मुजस्समा होते हैं,मगर रब के वो महबूब हमारे और आपके आक़ा जनाबे मुहम्मदुर रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम जो कि हर ऐब से पाक और मासूम पैदा किये गए हैं मगर कुछ हरामखोर उनके अंदर भी ऐब तलाश करते फिरते हैं और दावा मुसलमान होने का करते हैं,जबकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि.
खुदा की कसम खाते हैं कि उन्होंने नबी की शान में गुस्ताखी नहीं की अल्बत्ता बेशक वो ये कुफ्र का बोल बोले और मुसलमान होकर काफिर हो गए
📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत 74
अब हर पढ़े लिखे और बे पढ़े लिखे से ये सवाल है कि नीचे वहाबियों की किताबों से दी गई इबारतें पढ़ें या पढ़वाकर सुनले और अक़्ल से फैसला करे कि क्या ये कलिमात हुज़ूर ﷺ की शान में गुस्ताखी के नहीं हैं और क्या ऐसा कहने वालों या ऐसा कहने वालों को जो सही कहे क्या उन्हें मुसलमान समझा जा सकता है,पढ़िए.
📕तक़वियतुल ईमान सफह 27 पे* *_हुज़ूर को चमार से ज़्यादा ज़लील लिखा,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है_*
📕तक़वियतुल ईमान सफह 56 पे* *_लिखा कि नबी को किसी बात का इख़्तियार नहीं है,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है_*
📕तक़वियतुल ईमान सफह 75 पे* *_लिखा कि नबी के चाहने से कुछ नहीं होता,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है_*
📕तहज़ीरुन्नास सफह 8* *_पे लिखा कि उम्मती भी नबी से अमल में आगे बढ़ जाते हैं,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है_*
📕तहज़ीरुन्नास सफह 43 पे* *_लिखा कि हुज़ूर खातेमुन नबीयीन नहीं है,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है_*
📕बराहीने कातिया सफह 122 पे* *_लिखा कि हुज़ूर का इल्म शैतान से भी कम है,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है_*
📕हिफज़ुल ईमान सफह 7* *_पे लिखा कि हुज़ूर का इल्म तो जानवरों की तरह है,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है_
📕सिराते मुस्तक़ीम सफह 148 पे* *लिखा कि नबी का ख्याल नमाज़ में लाना गधे और बैल से भी बदतर है,माज़ अल्लाह,क्या ये गुस्ताखी नहीं है*
अगर ये सब बातें इन वहाबियों के बाप-दादा की शान में की जाए तो क्या वो इसे अच्छा समझेंगे नहीं और यक़ीनन नहीं तो फिर कैसे एक मुसलमान इन काफिरों को अच्छा समझे,जिसने मेरे आक़ा की शान में गुस्ताखी की और उन्हें ईज़ा दी तो उसके लिए रब का ये फरमान है,पढ़ लें.
वो जो रसूल अल्लाह को ईज़ा देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है
📕 पारा 10,सूरह तौबा,आयत,61
और फुक़्हा का ऐसे बद बख्तों के बारे में क्या कहना है ये भी पढ़ें
जो किसी नबी की गुस्ताखी के सबब काफिर हुआ तो किसी भी तरह उसकी तौबा क़ुबूल नहीं और जो कोई उसके कुफ्र में या अज़ाब में शक करे वो खुद काफिर है
📕 रद्दुल मुख़्तार,जिल्द 3,सफह 317
और मेरे आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि
*_किसी भी काफिर की तौबा क़ुबूल है मगर जो हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी करके काफिर हुआ तो किसी भी अइम्मा के नज़दीक उसकी तौबा क़ुबूल नहीं,अगर इस्लामी हुक़ूमत हो तो ऐसो को क़त्ल ही किया जाए अगर चे उनकी तौबा सच्ची ही क्यों ना हो अगर तौबा सही हुई तो क़यामत के दिन बख्शा जायेगा मगर यहां उसकी सज़ा मौत ही है.
📕 तम्हीदे ईमान,सफह 42
अब सोचिये खुदा और रसूल के ये मुजरिम जो क़त्ल के मुस्तहिक़ हो चुके उनसे बात करना उनसे सलाम जवाब करना उनके साथ खाना पीना उनके यहां रिश्तेदारी करना किस हद तक शर्म की बात है,और क्या इस मेल-जोल पर हम खुदा का क़हर मोल नहीं ले रहे हैं ये आखिरी रिवायत पढ़ लीजिए समझदार के लिए बहुत है.
मौला ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि फलां बस्ती पर अज़ाब नाज़िल करदे तो जिब्रील अलैहिस्सलाम बोले कि मौला उस बस्ती में तेरा एक नेक बन्दा है जो एक आन के लिए भी तेरी इबादत से ग़ाफिल ना रहा,मौला फरमाता है कि फिर भी सब पर अज़ाब नाज़िल कर बल्कि पहले उस नेक पर अज़ाब नाज़िल कर क्योंकि उसने गुनाह को देखकर भी अनदेखा कर दिया.
📕 अशअतुल लमआत,जिल्द 4,सफह 183
जब कोई क़ौम में गुनाह होता है और कोई नेक बन्दा रोकने की ताक़त रखने के बावजूद भी उसे ना रोके तो सब अज़ाबे इलाही के मुस्तहिक़ होंगे
📕 मिश्कात,सफह 437
अस्तग़फ़ेरुल्लाह, क्या ही इबरतनाक रिवायत है,सिर्फ गुनाह को गुनाह और मुजरिम को मुजरिम ना समझने पर अज़ाब की वईद आई है तो अंदाजा लगाइये कि जो खुद उस गुनाह में शामिल हो जाए वो कैसे मौला के अज़ाब से बचेगा,
और आजकल तो ऐसे मुसलमानों की कसरत है जो दुश्मनाने रसूल ﷺ को दुश्मन ही नहीं समझते हालांकि अगर कोई उनके मां-बाप को गाली देदे तो हाथा पाई पर उतर आएंगे मगर जो नबी ﷺ की शान में गुस्ताखियां करते फिरते हैं उन्हें अपना अज़ीज़ समझते हैं,
मौला तआला से दुआ है कि मुसलमानों को अपने हबीब से सच्ची मोहब्बत करने की तौफीक़ अता फरमाए. और हम सबको मसलके आलाहज़रत पर क़ायम रखे और इसी पर मौत नसीब अता फरमाये-आमीन