क्या औरत फातिहा नही पढ़ सकती ?
फातिहा व ईसाले सवाब जिस तरह मर्दों के लिए जाइज है उसी तरह बिला शक औरतो के लिए भी जाइज है । लेकिन बाज़ औरतें बिला वजह परेशान होती है और फातिहा के लिए बच्चों को इधर उधर दौडाती है ।
हालांकि वह खुद भी फातिहा पढ सकती हैं।
कम अज़ कम अल्हम्दु शरीफ और कुल हुवल्लाहु शरीफ अक्सर औरतों को याद होती है। इसको पढ़कर खुदाए तआला से दुआ करें कि या अल्लाह तआला इसका सवाब और जो कुछ खाना या शीरीनी है उसको खिलाने और बाँटने का सवाब फलाँ फलाँ और फलाँ जिसको पहुँचाना हो,उसका नाम लेकर कहें उसकी रूह को अता फरमा दे।
यह फातिहा हो गई और बिल्कुल दुरुस्त और सही होगी ।
बाज़ औरतें और लड़कियां कुछ मर्द से ज़्यादा पढ़ी लिखी और पारसा होती हैं। ये अगर उनके बजाय खुद ही कुरआन पढ़कर ईसाले सवाब करें तो बेहतर है।
कुछ औरते किसी बुजुर्ग की फ़ातिहा दिलाने के लिए खाना वगैरह कोने में रखकर थोड़ी देर में उठा लेती हैं और कहती है कि उन्होने अपनी फातिहा खुद पढ़ ली। ये सब बेकार की बाते है जो जहालत की पैदावार है।
इन ख्वामख्वाह की बातों की बजाय उन्हें कुरआन की जो भी आयत याद हो , उसको पढ़कर ईसाले सवाब कर दे तो यही बेहतर है और यह बाक़ायदा फातिहा है।
हाँ इस बात का खयाल रखें की मर्द हो या औरत उतना ही कुरआन पढ़े जितना सही याद हो और सही मखारीज से पढ़े गलत पढ़ना हराम है और गलत पढ़ने का सवाब नही मिलेगा और जब सवाब मिला ही नहीं तो फिर बख्शा क्या जाएगा।
आजकल इस मसअले से अवाम तो अवाम बाज़ ख़्वास भी लापरवाही बरतते है।
( गलत फहमियां और उनकी इस्लाह ,पेज 60 )