55 सूरए रहमान – 55 Surah AR Rahmaan
सूरए रहमान मक्की है इसमें तीन रूकूअ, छिहत्तर या अठहत्तर आयतें, तीन सौ इक्यानवे कलिमे और एक हज़ार छ सौ छत्तीस अक्षर हैं.
55 सूरए रहमान – पहला रूकू
55|1|بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ الرَّحْمَٰنُ
55|2|عَلَّمَ الْقُرْآنَ
55|3|خَلَقَ الْإِنسَانَ
55|4|عَلَّمَهُ الْبَيَانَ
55|5|الشَّمْسُ وَالْقَمَرُ بِحُسْبَانٍ
55|6|وَالنَّجْمُ وَالشَّجَرُ يَسْجُدَانِ
55|7|وَالسَّمَاءَ رَفَعَهَا وَوَضَعَ الْمِيزَانَ
55|8|أَلَّا تَطْغَوْا فِي الْمِيزَانِ
55|9|وَأَقِيمُوا الْوَزْنَ بِالْقِسْطِ وَلَا تُخْسِرُوا الْمِيزَانَ
55|10|وَالْأَرْضَ وَضَعَهَا لِلْأَنَامِ
55|11|فِيهَا فَاكِهَةٌ وَالنَّخْلُ ذَاتُ الْأَكْمَامِ
55|12|وَالْحَبُّ ذُو الْعَصْفِ وَالرَّيْحَانُ
55|13|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|14|خَلَقَ الْإِنسَانَ مِن صَلْصَالٍ كَالْفَخَّارِ
55|15|وَخَلَقَ الْجَانَّ مِن مَّارِجٍ مِّن نَّارٍ
55|16|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|17|رَبُّ الْمَشْرِقَيْنِ وَرَبُّ الْمَغْرِبَيْنِ
55|18|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|19|مَرَجَ الْبَحْرَيْنِ يَلْتَقِيَانِ
55|20|بَيْنَهُمَا بَرْزَخٌ لَّا يَبْغِيَانِ
55|21|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|22|يَخْرُجُ مِنْهُمَا اللُّؤْلُؤُ وَالْمَرْجَانُ
55|23|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|24|وَلَهُ الْجَوَارِ الْمُنشَآتُ فِي الْبَحْرِ كَالْأَعْلَامِ
55|25|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
सूरए रहमान मदीने में उतरी, इसमें 78 आयतें, तीन रूकू हैं.
-पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए रहमान मक्की है इसमें तीन रूकूअ, छिहत्तर या अठहत्तर आयतें, तीन सौ इक्यानवे कलिमे और एक हज़ार छ सौ छत्तीस अक्षर हैं.
रहमान ने {1} अपने मेहबूब को क़ुरआन सिखाया(2){2}
(2) जब आयत “उस्जुदू लिर्रहमाने” यानी रहमान को सजदा करो (सूरए अलफ़ुरक़ान, आयत 60) उतरी, मक्के के काफ़िरों ने कहा, रहमान क्या है हम नहीं जानते, इसपर अल्लाह तआला ने अर्रहमान उतारी कि रहमान जिसका तुम इन्कार करते हो वही है जिसने क़ुरआन नाज़िल किया और एक क़ौल है कि मक्के वालों ने जब कहा कि मुहम्मद को कोई बशर सिखाता है तो यह आयत उतरी और अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि रहमान ने क़ुरआन अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को सिखाया. (ख़ाज़िन)
इन्सानियत की जान मुहम्मद को पैदा किया {3} माकाना व मायकून (जो हुआ और जो होने वाला है) का बयान उन्हें सिखाया(3){4}
(3) इन्सान से इस आयत में सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मुराद हैं. और बयान से मकाना वमा यकून का बयान क्योंकि नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम अगलों पिछलों की ख़बरें देते थे. (ख़ाज़िन)
सूरज और चांद हिसाब से हैं (4){5}
(4) कि निर्धारित तक़दीर के साथ अपने बुर्जों और मंज़िलों में यात्रा करते हैं और उसमें सृष्टि के लिये फ़ायदे हैं. औक़ात के हिसाब से बरसों और महीनों की गिनती उन्हीं पर है.
और सब्ज़े़ और पेड़ सज्दे करते हैं(5){6}
(5) अल्लाह के हुक्म के आधीन हैं.
और आसमानों को अल्लाह ने बलन्द किया(6)
(6) और अपने फ़रिश्तों का ठिकाना और अपने अहकाम का केन्द्र बनाया.
और तराज़ू रखी(7){7}
(7) जिससे चीज़ों का वज़न किया जाए और उनकी मात्राएं मालूम हों ताकि लैन दैन में न्याय हो सके.
कि तराज़ू में बेएतिदाली न करो(8){8}
(8) ताकि किसी का अधिकार न मारा जाए.
और इन्साफ़ के साथ तौल क़ायम करो और वज़न न घटाओ {9} और ज़मीन रखी मख़लूक़ के लिये (9){10}
(9) जो उसमें रहती बस्ती है ताकि उसमें आराम करें और फ़ायदे उठाएं.
उसमें मेवे और ग़लाफ़ वाली खजूरें (10){11}
(10) जिनमें बहुत बरकत है.
और भूस के साथ अनाज(11)
(11) गेहूँ जौ वग़ैरह के समान.
और ख़ुश्बू के फूल{12} तो ऐ जिन्न व इन्स (मानव), तुम दोनों अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे(12){13}
(12) इस सूरत में यह आयत 31 बार आई है. बारबार नेअमतों का ज़िक्र फ़रमाकर यह इरशाद फ़रमाया गया है कि अपने रब की कौन सी नेअमत को झुटलाओगे. यह हिदायत और सीख का बेहतरीन अन्दाज़ है ताकि सुनने वाले की अन्तरात्मा को तम्बीह हो और उसे अपने जुर्म और नाशुक्री का हाल मालूम हो जाए कि उसने कितनी नेअमतों को झुटलाया है और उसे शर्म आए और वह शुक्र अदा करने और फ़रमाँबरदारी की तरफ़ माइल हो और यह समझ ले कि अल्लाह तआला की अनगिन्त नेअमतें उस पर हें. हदीस शरीफ़ में है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि यह सूरत मैंने जिन्नात को सुनाई, वो तुमसे अच्छा जवाब देते थे. जब मैं आयत “तो तुम दोनो अपने रब की कौन सी नेअमत को झुटलाओगे” पढता, वो कहते ऐ रब हमारे हम तेरी किसी नेअमत को नहीं झुटलाते, तुझे हम्द है. (तिर्मिज़ी)
आदमी को बनाया बजती मिट्टी से जैसे ठीकरी(13){14}
(13) यानी सूखी मिट्टी से जो बजाने से बजे और कोई चीज़ खनखनाती आवाज़ दे. फिर उस मिट्टी को तर किया कि वह गारे की तरह हो गई फिर उसको गलाया कि वह काली कीच तरह हो गई.
और जिन्न को पैदा फ़रमाया आग के लूके (लपट) से(14){15}
(14) यानी ख़ालिस बग़ैर धुएं वाले शोले से.
तो तुम दोनों अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {16} दोनों पूरब का रब और दोनो पश्चिम का रब(15) {17}
(15) दोनो पूरब और दोनो पच्छिम से मुराद सूरज के उदय होने के दोनों स्थान हैं गर्मी के भी और जाड़े के भी. इसी तरह अस्त होने के भी दोनों स्थान हैं.
तो तुम दोनों अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे{18} उसने दो समन्दर बहाए(16)
(16) मीठा और खारी.
कि देखने में मालूम हो मिले हुए(17){19}
(17) न उनके बीच ज़ाहिर में कोई दीवार न कोई रोक.
और हैं उनमें रोक(18)
(18) अल्लाह तआला की क़ुदरत से.
कि एक दूसरे पर बढ़ नहीं सकता (19){20}
(19) हर एक अपनी सीमा पर रहता है और किसी का स्वाद नहीं बदलता.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {21} उनमें से मोती और मूंगा निकलता है{22} तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {23} और उसी की हैं वो चलने वालियाँ कि दरिया में उठी हुई हैं जैसे पहाड़ (20){24} तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे{25}
(20) जिन चीज़ों से वो किश्तियाँ बनाई गईं वो भी अल्लाह तआला ने पैदा कीं और उनको तर्कीब देने और किश्ती बनाने और सन्नाई करने की अक़ल भी अल्लाह तआला ने पैदा की और दरियाओं में उन किश्तियों का चलना और तैरना यह सब अल्लाह तआला की क़ुदरत से है.
55 सूरए रहमान -दूसरा रूकू
55|26|كُلُّ مَنْ عَلَيْهَا فَانٍ
55|27|وَيَبْقَىٰ وَجْهُ رَبِّكَ ذُو الْجَلَالِ وَالْإِكْرَامِ
55|28|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|29|يَسْأَلُهُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ كُلَّ يَوْمٍ هُوَ فِي شَأْنٍ
55|30|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|31|سَنَفْرُغُ لَكُمْ أَيُّهَ الثَّقَلَانِ
55|32|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|33|يَا مَعْشَرَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ إِنِ اسْتَطَعْتُمْ أَن تَنفُذُوا مِنْ أَقْطَارِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ فَانفُذُوا ۚ لَا تَنفُذُونَ إِلَّا بِسُلْطَانٍ
55|34|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|35|يُرْسَلُ عَلَيْكُمَا شُوَاظٌ مِّن نَّارٍ وَنُحَاسٌ فَلَا تَنتَصِرَانِ
55|36|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|37|فَإِذَا انشَقَّتِ السَّمَاءُ فَكَانَتْ وَرْدَةً كَالدِّهَانِ
55|38|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|39|فَيَوْمَئِذٍ لَّا يُسْأَلُ عَن ذَنبِهِ إِنسٌ وَلَا جَانٌّ
55|40|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|41|يُعْرَفُ الْمُجْرِمُونَ بِسِيمَاهُمْ فَيُؤْخَذُ بِالنَّوَاصِي وَالْأَقْدَامِ
55|42|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|43|هَٰذِهِ جَهَنَّمُ الَّتِي يُكَذِّبُ بِهَا الْمُجْرِمُونَ
55|44|يَطُوفُونَ بَيْنَهَا وَبَيْنَ حَمِيمٍ آنٍ
55|45|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
ज़मीन पर जितने हैं सब को फ़ना है(1){26}
(1) हर जानदार वगै़रह हलाक होने वाला है.
और बाक़ी है तुम्हारे रब की ज़ात अज़मत और बुज़ुर्गी वाला(2){27}
(2) कि वह सृष्टि के नाश के बाद उन्हें ज़िन्दा करेगा और हमेशा की ज़िन्दगी अता करेगा और ईमानदारों पर लुत्फ़ो करम करेगा.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {28} उसी के मंगता हैं जितने आसमानों और ज़मीन में हैं(3)
(3) फ़रिश्ते हों या जिन्न या इन्सान या और कोई प्राणी, कोई भी उससे बेनियाज़ नहीं. सब उसकी मेहरबानी के मोहताज हैं और हर सूरत में उसकी बारगाह में सवाली.
उसे हर दिन एक काम है (4) {29}
(4) यानी वह हर वक़्त अपनी क़ुदरत के निशान ज़ाहिर फ़रमाता है किसी को रोज़ी देता है, किसी को मारता है, किसी को जिलाता है, किसी को इज़्ज़त देता है, किसी को ज़िल्लत, किसी को ग़नी करता है, किसी को मोहताज, किसी के गुनाह बख़्शता है, किसी की तकलीफ़ दूर करता है. कहा गया है कि यह आयत यहूदियों के रद में उतरी जो कहते थे कि अल्लाह तआला सनीचर के दिन कोई काम नहीं करता. उनके क़ौल का खुला रद फ़रमाया गया. कहते हैं कि एक बादशाह ने अपने वज़ीर से इस आयत के मानी पूछे. उसने एक दिन का समय मांगा और बड़ी चिन्ता और दुख की हालत में अपने मकान पर आया. उसके एक हब्शी ग़ुलाम ने वज़ीर को परेशान देखकर कहा ऐ मेरे मालिक आपको क्या मुसीबत पेश आई. वज़ीर ने बयान किया तो ग़ुलाम ने कहा कि इसके मानी मैं बादशाह को समझा दूंगा. वज़ीर ने उसको बादशाह के सामने पेश किया तो ग़ुलाम ने कहा ऐ बादशाह अल्लाह की शान यह है कि वह रात को दिन में दाख़िल करता है और दिन को रात में और मुर्दे से ज़िन्दा निकालता है और ज़िन्दा से मुर्दे को और बीमार को स्वास्थ्य देता है और स्वस्थ को बीमार करता है. मुसीबत ज़दा को रिहाई देता है और बेग़मों को मुसीबत में जकड़ता है. इज़्ज़त वालों को ज़लील करता है और ज़लीलों को इज़्ज़त देता है, मालदारों को मोहताज करता है, मोहताजों को मालदार, बादशाह ने ग़ुलाम का जवाब पसन्द किया और वज़ीर को हुक्म दिया कि ग़ुलाम को विज़ारत का ख़िलअत पहनाए, ग़ुलाम ने वज़ीर से कहा ऐ आक़ा यह भी अल्लाह की एक शान है.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओंगे {30} ज़ल्द सब काम निपटाकर हम तुम्हारे हिसाब का क़स्द फ़रमाते हैं ऐ दोनो भारी गिरोह (5){31}
(5) जिन्न व इन्स के.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {32} ऐ जिन्न व इन्स के गिरोह, अगर तुम से हो सके कि आसमानों और ज़मीन के किनारों से निकल जाओ तो निकल जाओ, जहाँ निकल कर जाओगे उसी की सल्तनत है(6){33}
(6) तुम उससे कहीं भाग नहीं सकते.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {34} तुम पर(7)
(7) क़यामत के दिन जब तुम क़ब्रों से निकलोगे.
छोड़ी जाएगी बेधुंए की आग की लपट और बेलपट का काला धुंआं(8)
(8) इमाम अहमद रज़ा ने फ़रमाया लपट में धुवाँ हो तो उसके सब हिस्से जलाने वाले न होंगे कि ज़मीन के हिस्से शामिल हैं जिनसे धुंआँ बनता है और धुंऐं में लपट हो तो वह पूरा सियाह और अंधेरा न होगा कि लपट की रंगत शामिल है उनपर बेधुंवे की लपट भेजी जाएगी जिसके सब हिस्से जलाने वाले होंगे और बेलपट का धुवाँ जो सख़्त काला अंधेरा और उसी के करम की पनाह……
तो फिर बदला न ले सकोगे(9){35}
(9) उस अज़ाब से न बच सकोगे और आपस में एक दूसरे की मदद न कर सकोगे बल्कि यह लपट और धुवाँ तुम्हें मेहशर की तरफ़ ले जाएंगे. पहले से इसकी ख़बर दे देना यह भी अल्लाह तआला का करम है ताकि उसकी नाफ़रमानी से बाज़ रह कर अपने आपको उस बला से बचा सको.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {36} फिर जब आसमान फट जाएगा तो ग़ुलाब के फूल सा हो जाएगा (10)
(10) कि जगह जगह से शक़ और रंगत का सुर्ख़.
जैसे सुर्ख़ नरी (बकरे की रंगी हुई खाल) {37} तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे{38}
तो उस दिन(11)
(11) यानी जबकि मुर्दे क़ब्रों से उठाए जाएंगे और आसमान फटेगा.
गुनाहगार के गुनाह की पूछ न होगी किसी आदमी और जिन्न से(12){39}
(12) उस रोज़ फ़रिश्ते मुजरिमों से पूछेंगे नहीं, उनकी सूरतें ही देखकर पहचान लेंगे. और सवाल दूसरे वक़्त होगा जब मैदाने मेहशर में जमा होंगे.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {40} मुजरिम अपने चेहरे से पहचाने जाएंगे(13)
(13) कि उनके मुंह काले और आँखें नीली होंगी.
तो माथा और पाँव पकड कर जहन्नम में डाले जाएंगे(14){41}
(14) पाँव पीठे के पीछे से लाकर पेशानियों से मिला दिये जाएंगे और घसीट कर जहन्नम में डाले जाएंगे और यह भी कहा गया है कि कुछ लोग पेशानियों से घसीटे जाएंगे. कुछ पाँव से.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे (15) {42}
(15) और उनसे कहा जाएगा.
यह है वह जहन्नम जिसे मुजरिम झुटलाते हैं {43} फेरे करेंगे इसमें और इन्तिहा के जलते खौलते पानी में(16){44} तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे{45}
(16) कि जब जहन्नम की आग से जल भुनकर फ़रियाद करेंगे तो उन्हें जलता खौलता पानी पिलाया जाएगा और उसके अज़ाब में मुब्तिला किये जाएंगे. ख़ुदा की नाफ़रमानी के इस परिणाम से आगाह करना अल्लाह की नेअमत है.
सूरए रहमान -तीसरा रूकू
55|46|وَلِمَنْ خَافَ مَقَامَ رَبِّهِ جَنَّتَانِ
55|47|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|48|ذَوَاتَا أَفْنَانٍ
55|49|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|50|فِيهِمَا عَيْنَانِ تَجْرِيَانِ
55|51|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|52|فِيهِمَا مِن كُلِّ فَاكِهَةٍ زَوْجَانِ
55|53|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|54|مُتَّكِئِينَ عَلَىٰ فُرُشٍ بَطَائِنُهَا مِنْ إِسْتَبْرَقٍ ۚ وَجَنَى الْجَنَّتَيْنِ دَانٍ
55|55|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|56|فِيهِنَّ قَاصِرَاتُ الطَّرْفِ لَمْ يَطْمِثْهُنَّ إِنسٌ قَبْلَهُمْ وَلَا جَانٌّ
55|57|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|58|كَأَنَّهُنَّ الْيَاقُوتُ وَالْمَرْجَانُ
55|59|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|60|هَلْ جَزَاءُ الْإِحْسَانِ إِلَّا الْإِحْسَانُ
55|61|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|62|وَمِن دُونِهِمَا جَنَّتَانِ
55|63|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|64|مُدْهَامَّتَانِ
55|65|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|66|فِيهِمَا عَيْنَانِ نَضَّاخَتَانِ
55|67|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|68|فِيهِمَا فَاكِهَةٌ وَنَخْلٌ وَرُمَّانٌ
55|69|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|70|فِيهِنَّ خَيْرَاتٌ حِسَانٌ
55|71|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|72|حُورٌ مَّقْصُورَاتٌ فِي الْخِيَامِ
55|73|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|74|لَمْ يَطْمِثْهُنَّ إِنسٌ قَبْلَهُمْ وَلَا جَانٌّ
55|75|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|76|مُتَّكِئِينَ عَلَىٰ رَفْرَفٍ خُضْرٍ وَعَبْقَرِيٍّ حِسَانٍ
55|77|فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
55|78|تَبَارَكَ اسْمُ رَبِّكَ ذِي الْجَلَالِ وَالْإِكْرَامِ
और जो अपने रब के हुज़ूर (समक्ष) खड़े होने से डरे(1)
(1) यानी जिसे अपने रब के हुज़ूर क़यामत के दिन मेहशर के मैदान में हिसाब के लिये खड़े होने का डर हो और वह गुनाह छोड़ दे और अल्लाह के अहकाम पर अमल करे.
उसके लिये दो जन्नतें हैं(2){46}
(2) जन्नते अदन और जन्नते नईम और यह भी कहा गया है कि एक जन्नत रब से डरने का सिला और एक वासना त्यागने का इनआम.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे{47} बहुत सी डालों वालियाँ(3){48}
(3) और हर डाली में क़िस्म क़िस्म के मेवे.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे{49} उनमें दो चश्मे बहते हैं (4){50}
(4) एक मीठे पानी का और एक पवित्र शराब का या एक तस्नीम दूसरा सलसबील.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {51} उनमें हर मेवा दो दो क़िस्म का {52} तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {53} और ऐसे बिछौनों पर तकिया लगाए जिनका अस्तर क़नादीज़ का (5)
(5) यानी संगीन रेशम का जब अस्तर का यह हाल है तो अबरा कैसा होगा, सुब्हानल्लाह !
और दोनों के मेवे इतने झुके हुए कि नीचे से चुन लो (6){54}
(6) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि दरख़्त इतना क़रीब होगा कि अल्लाह तआला के प्यारे खड़े बैठे उसका मेवा चुन लेंगे.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {55} उन बिछौनों पर वो औरतें हैं कि शौहर के सिवा किसी को आँख उठा कर नहीं देखतीं(7)
(7) जन्नती बीबियाँ अपने शौहर से कहेंगी मुझे अपने रब के इज़्ज़तो जलाल की क़सम, जन्नत में मुझे कोई चीज़ तुझ से ज़्यादा अच्छी नहीं मालूम होती, तो उस ख़ुदा की हम्द है जिसने तुझे मेरा शौहर किया और मुझे तेरी बीबी बनाया.
उनसे पहले उन्हें न छुआ किसी आदमी और न जिन्न ने{56} तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {57} गोया वो लअल और याक़ूत और मूंगा हैं (8) {58}
(8) सफ़ाई और ख़ुशरंगी में. हदीस शरीफ़ में है कि जन्नती हूरों के शरीर की नफ़ासत का यह हाल है कि उनकी पिंडली का गूदा इस तरह नज़र आता है जिस तरह बिल्लौर की सुराही में लाल शराब.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {59} नेकी का बदला क्या है मगर नेकी (9){60}
(9) यानी जिसने दुनिया में नेकी की उसकी जज़ा आख़िरत में अल्लाह का एहसान है, हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि जो लाइलाहा इल्लल्लाह का क़ायल हो और शरीअते मुहम्मदिया पर आमिल, उसकी जज़ा जन्नत है.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {61} और इनके सिवा दो जन्नतें और हैं(10){62}
(10) हदीस शरीफ़ में है कि दो जन्नतें तो ऐसी हैं जिनके बर्तन और सामान चाँदी के हैं और दो जन्नतें ऐसी है जिनके सामान और बर्तन सोने के. और एक क़ौल यह भी है कि पहली दो जन्नते सोने और चाँदी की और दूसरी याक़ूत और ज़बरजद की.
तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {63} निहायत सब्ज़ी से सियाही की झलक दे रही है {64} तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे{65} उनमें दो चश्में हैं छलकते हुए {66} तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {67} उनमें मेवे और खजूरें और अनार हैं {68} तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {69} उनमें औरतें हैं आदत की नेक, सूरत की अच्छी {70} तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {71} हूरें हैं ख़ैमों में पर्दा नशीन(11){72}
(11) कि उन ख़ैमों से बाहर नहीं निकलतीं यह उनकी शराफ़त और करामत है. हदीस शरीफ़ में है कि अगर जन्नती औरतों में से किसी एक की झलक ज़मीन की तरफ़ पड़ जाए तो आसमान और ज़मीन के बीच की तमाम फ़ज़ा रौशन हो जाए और ख़ुश्बू से भर जाए और उनके ख़ैमे मोती और ज़बरजद के होंगे.
तो अपने रब की कौन सी नेअमतें झुटलाओगे {73} उनसे पहले उन्हें हाथ न लगाया किसी आदमी और जिन्न ने {74} तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे(12){75}
(12) और उनके शौहर जन्नत में ऐश करेंगे.
तकिया लगाए हुए सब्ज़ बिछौनों और मुनक़्क़श ख़ूबसूरत चांदनियों पर {76} तो अपने रब की कौन सी नेअमत झुटलाओगे {77} बड़ी बरकत वाला है तुम्हारे रब का नाम जो अज़मत और बुज़ुर्गी वाला {78} (13)