37 Surah Al Saffat

37 Surah Al Saffat

37 सूरए साफ़्फ़ात – पहला रूकू

37 सूरए साफ़्फ़ात  – पहला रूकू

بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
وَٱلصَّٰٓفَّٰتِ صَفًّۭا
فَٱلزَّٰجِرَٰتِ زَجْرًۭا
فَٱلتَّٰلِيَٰتِ ذِكْرًا
إِنَّ إِلَٰهَكُمْ لَوَٰحِدٌۭ
رَّبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا وَرَبُّ ٱلْمَشَٰرِقِ
إِنَّا زَيَّنَّا ٱلسَّمَآءَ ٱلدُّنْيَا بِزِينَةٍ ٱلْكَوَاكِبِ
وَحِفْظًۭا مِّن كُلِّ شَيْطَٰنٍۢ مَّارِدٍۢ
لَّا يَسَّمَّعُونَ إِلَى ٱلْمَلَإِ ٱلْأَعْلَىٰ وَيُقْذَفُونَ مِن كُلِّ جَانِبٍۢ
دُحُورًۭا ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌۭ وَاصِبٌ
إِلَّا مَنْ خَطِفَ ٱلْخَطْفَةَ فَأَتْبَعَهُۥ شِهَابٌۭ ثَاقِبٌۭ
فَٱسْتَفْتِهِمْ أَهُمْ أَشَدُّ خَلْقًا أَم مَّنْ خَلَقْنَآ ۚ إِنَّا خَلَقْنَٰهُم مِّن طِينٍۢ لَّازِبٍۭ
بَلْ عَجِبْتَ وَيَسْخَرُونَ
وَإِذَا ذُكِّرُوا۟ لَا يَذْكُرُونَ
وَإِذَا رَأَوْا۟ ءَايَةًۭ يَسْتَسْخِرُونَ
وَقَالُوٓا۟ إِنْ هَٰذَآ إِلَّا سِحْرٌۭ مُّبِينٌ
أَءِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًۭا وَعِظَٰمًا أَءِنَّا لَمَبْعُوثُونَ
أَوَءَابَآؤُنَا ٱلْأَوَّلُونَ
قُلْ نَعَمْ وَأَنتُمْ دَٰخِرُونَ
فَإِنَّمَا هِىَ زَجْرَةٌۭ وَٰحِدَةٌۭ فَإِذَا هُمْ يَنظُرُونَ
وَقَالُوا۟ يَٰوَيْلَنَا هَٰذَا يَوْمُ ٱلدِّينِ
هَٰذَا يَوْمُ ٱلْفَصْلِ ٱلَّذِى كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ

सूरए साफ़्फ़ात मक्का में उतरी, इसमें 182 आयतें, पाँच रूकू हैं.

-पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए वस्साफ़्फ़ात मक्के में उतरी. इसमें पांच रूकू, एक सौ बयासी आयतें, आठ सौ साठ कलिमें तीन हज़ार आठ सौ छब्बीस अक्षर है.

क़सम उनकी कि बाक़ायदा सफ़ (क़तार) बांधे(2){1}
(2) इस आयत में अल्लाह तआला ने क़सम याद फ़रमाई कुछ गिरोहों की. या तो मुराद इससे फ़रिश्तों के समूह हैं जो नमाज़ियों की तरह क़तार बांधे उसके हुक्म के मुन्तज़िर रहते हैं, या उलमाए दीन के समूह जो तहज्जुद और सारी नमाज़ों में सफ़ें बांधकर इबादत में मसरूफ़ रहते हैं, या ग़ाजि़यों के समूह जो अल्लाह की राह में सफ़ें बांध कर हक़ के दुश्मनों के मुक़ाबिल होते हैं. (मदारिक)

फिर उनकी कि झिड़क कर चलाएं(3) {2}
(3) पहली तक़दीर पर झिड़क कर चलाने वालों से मुराद फ़रिश्ते हैं जो बादल पर मुक़र्रर हैं और उसको हुक्म देकर चलाते हैं और दूसरी तक़दीर पर वो उलमा जो नसीहत और उपदेश से लोगों को झिड़कर कर दीन की राह पर चलाते हैं, तीसरी सूरत में वो ग़ाज़ी जो घोड़ों को डपट कर जिहाद में चलाते हैं.

फिर उन जमाअतों की कि क़ुरआन पढ़ें{3} बेशक तुम्हारा मअबूद ज़रूर एक है {4} मालिक आसमानों और ज़मीन का और जो कुछ उनके बीच है और मालिक मशरिक़ों (पूर्वों) का(4) {5}
(4) यानी आसमान व ज़मीन और उनके बीच की सृष्टि और तमाम सीमाएं और दिशाएं सब का मालिक वही है तो कोई दूसरा किस तरह इबादत के लाइक़ हो सकता है लिहाज़ा वह शरीक से पाक है.

बेशक हमने नीचे के आसमान को (5)
(5) जो ज़मीन के मुक़ाबले आसमानों से क़रीब तर है.

तारों के सिंगार से सजाया {6} और निगाह रखने को हर शैतान सरकश से(6){7}
(6) यानी हमने आसमान को हर एक नाफ़रमान शैतान से मेहफ़ूज़ रखा कि जब शैतान आसमानों पर जाने का इरादा करें तो फ़रिश्ते शिहाब मारकर उनको दफ़ा करें. लिहाज़ा शैतान आसमानों पर नहीं जा सकते और—

आलमे बाला की तरफ़ कान नहीं लगा सकते(7)
(7) और आसमानों के फ़रिश्तों की बात नहीं सुन सकते.

और उनपर हर तरफ़ से मार फैंक होती है (8){8}
(8) अंगारों की, जब वो इस नियत से आसमान की तरफ़ जाएं.

उन्हें भगाने को और उनके लिये(9)
(9) आख़िरत में.

हमेशा का अज़ाब {9} मगर जो एक आध बार उचक ले चला (10)
(10) यानी अगर कोई शैतान फ़रिश्तों का कोई कलिमा कभी ले भागा.

तो रौशन अंगारा उसके पीछे लगा (11) {10}
(11) कि उसे जलाए और तकलीफ़ पहुंचाए.

तो उनसे पूछो(12)
(12) यानी मक्के के काफ़िरों से.

क्या उनकी पैदाइश ज़्यादा मज़बूत है या हमारी और मख़लूक़ आसमानों और फ़रिश्तों वग़ैरह की(13)
(13) तो जिस क़ादिरे बरहक़ को आसमान और ज़मीन जैसी अजीम मख़लूक़ का पैदा कर देना कुछ भी मुश्किल और दुशवार नहीं तो इन्सानों का पैदा करना उसपर क्या मुश्किल हो सकता है.

बेशक हमने उनको चिपकती मिट्टी से बनाया (14){11}
(14) यह उनकी कमज़ोरी की एक और शहादत है कि उनकी पैदाइश का अस्ल माद्दा मिट्टी है जो कोई शिद्दत और क़ुव्वत नहीं रखती और इस में उन पर एक और दलील क़ायम फ़रमाई गई है कि चिपकती मिट्टी उनकी उत्पत्ति का तत्व है तो अब फिर जिस्म के गल जाने और इन्तिहा यह है कि मिट्टी हो जाने के बाद उस मिट्टी से दोबारा पैदायश को वह क्यों असंभव जानते हैं. माद्दा यानी तत्व मौजूद, बनाने वाला मौजूद, फिर दोबारा पैदाइश कैसे असंभव हो सकती है.

बल्कि तुम्हें अचंभा आया(15)
(15) उनके झुटलाने से कि ऐसी खुली दलीलों, आयतों और निशानियों के बावुजूद वो किस तरह झुटलाते हैं.

और वो हंसी करते हैं (16) {12}
(16) आप से और आपके तअज्जुब से या मरने के बाद उठने से.

और समझाए नहीं समझते {13} और जब कोई निशानी देखते हैं (17)
(17) जैसे कि चाँद के दो टुकड़े होने वग़ैरह.

ठठ्ठा करते हैं {14} और कहते हैं ये तो नहीं मगर खुला जादू {15} क्या जब हम मर कर मिट्टी और हड्डियां हो जाएंगे क्या ज़रूर उठाए जाएंगे {16} और क्या हमारे अगले बाप दादा भी (18) {17}
(18) जो हम से ज़माने में आगे हैं. काफ़िरों के नज़्दीक़ उनके बाप दादा का ज़िन्दा किया जाना ख़ुद उनके ज़िन्दा किये जाने से ज़्यादा असंभव था इसलिये उन्होंने यह कहा. अल्लाह तआला अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से फ़रमाता है.

तुम फ़रमाओ हाँ यूं कि ज़लील होके {18} तो वह (19)
(19) यानी दुबारा ज़िन्दा किया जाना.

एक ही झिड़क है (20)
(20) एक ही हौलनाक आवाज़ है सूर के दो बारा फूंके जाने की.

जभी वो(21)
(21) ज़िन्दा होकर अपने कर्म और पेश आने वाले हालात.

देखने लगेंगे {19} और कहेंगे हाय हमारी ख़राबी, उनसे कहा जाएगा यह इन्साफ़ का दिन है (22){20}
(22) यानी फ़रिश्ते यह कहेंगे कि यह इन्साफ़ का दिन है, यह हिसाब और बदले का दिन है.

यह है वह फ़ैसले का दिन जिसे तुम झुटलाते थे (23) {21}
(23) दुनिया में, और फ़रिश्तों को हुक्म दिया जाएगा.

37 सूरए साफ़्फ़ात – दूसरा रूकू

37 सूरए साफ़्फ़ात  – दूसरा रूकू

۞ احْشُرُوا الَّذِينَ ظَلَمُوا وَأَزْوَاجَهُمْ وَمَا كَانُوا يَعْبُدُونَ
مِن دُونِ اللَّهِ فَاهْدُوهُمْ إِلَىٰ صِرَاطِ الْجَحِيمِ
وَقِفُوهُمْ ۖ إِنَّهُم مَّسْئُولُونَ
مَا لَكُمْ لَا تَنَاصَرُونَ
بَلْ هُمُ الْيَوْمَ مُسْتَسْلِمُونَ
وَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ يَتَسَاءَلُونَ
قَالُوا إِنَّكُمْ كُنتُمْ تَأْتُونَنَا عَنِ الْيَمِينِ
قَالُوا بَل لَّمْ تَكُونُوا مُؤْمِنِينَ
وَمَا كَانَ لَنَا عَلَيْكُم مِّن سُلْطَانٍ ۖ بَلْ كُنتُمْ قَوْمًا طَاغِينَ
فَحَقَّ عَلَيْنَا قَوْلُ رَبِّنَا ۖ إِنَّا لَذَائِقُونَ
فَأَغْوَيْنَاكُمْ إِنَّا كُنَّا غَاوِينَ
فَإِنَّهُمْ يَوْمَئِذٍ فِي الْعَذَابِ مُشْتَرِكُونَ
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَفْعَلُ بِالْمُجْرِمِينَ
إِنَّهُمْ كَانُوا إِذَا قِيلَ لَهُمْ لَا إِلَٰهَ إِلَّا اللَّهُ يَسْتَكْبِرُونَ
وَيَقُولُونَ أَئِنَّا لَتَارِكُو آلِهَتِنَا لِشَاعِرٍ مَّجْنُونٍ
بَلْ جَاءَ بِالْحَقِّ وَصَدَّقَ الْمُرْسَلِينَ
إِنَّكُمْ لَذَائِقُو الْعَذَابِ الْأَلِيمِ
وَمَا تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ
أُولَٰئِكَ لَهُمْ رِزْقٌ مَّعْلُومٌ
فَوَاكِهُ ۖ وَهُم مُّكْرَمُونَ
فِي جَنَّاتِ النَّعِيمِ
عَلَىٰ سُرُرٍ مُّتَقَابِلِينَ
يُطَافُ عَلَيْهِم بِكَأْسٍ مِّن مَّعِينٍ
بَيْضَاءَ لَذَّةٍ لِّلشَّارِبِينَ
لَا فِيهَا غَوْلٌ وَلَا هُمْ عَنْهَا يُنزَفُونَ
وَعِندَهُمْ قَاصِرَاتُ الطَّرْفِ عِينٌ
كَأَنَّهُنَّ بَيْضٌ مَّكْنُونٌ
فَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ يَتَسَاءَلُونَ
قَالَ قَائِلٌ مِّنْهُمْ إِنِّي كَانَ لِي قَرِينٌ
يَقُولُ أَإِنَّكَ لَمِنَ الْمُصَدِّقِينَ
أَإِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَإِنَّا لَمَدِينُونَ
قَالَ هَلْ أَنتُم مُّطَّلِعُونَ
فَاطَّلَعَ فَرَآهُ فِي سَوَاءِ الْجَحِيمِ
قَالَ تَاللَّهِ إِن كِدتَّ لَتُرْدِينِ
وَلَوْلَا نِعْمَةُ رَبِّي لَكُنتُ مِنَ الْمُحْضَرِينَ
أَفَمَا نَحْنُ بِمَيِّتِينَ
إِلَّا مَوْتَتَنَا الْأُولَىٰ وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ
إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ
لِمِثْلِ هَٰذَا فَلْيَعْمَلِ الْعَامِلُونَ
أَذَٰلِكَ خَيْرٌ نُّزُلًا أَمْ شَجَرَةُ الزَّقُّومِ
إِنَّا جَعَلْنَاهَا فِتْنَةً لِّلظَّالِمِينَ
إِنَّهَا شَجَرَةٌ تَخْرُجُ فِي أَصْلِ الْجَحِيمِ
طَلْعُهَا كَأَنَّهُ رُءُوسُ الشَّيَاطِينِ
فَإِنَّهُمْ لَآكِلُونَ مِنْهَا فَمَالِئُونَ مِنْهَا الْبُطُونَ
ثُمَّ إِنَّ لَهُمْ عَلَيْهَا لَشَوْبًا مِّنْ حَمِيمٍ
ثُمَّ إِنَّ مَرْجِعَهُمْ لَإِلَى الْجَحِيمِ
إِنَّهُمْ أَلْفَوْا آبَاءَهُمْ ضَالِّينَ
فَهُمْ عَلَىٰ آثَارِهِمْ يُهْرَعُونَ
وَلَقَدْ ضَلَّ قَبْلَهُمْ أَكْثَرُ الْأَوَّلِينَ
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا فِيهِم مُّنذِرِينَ
فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُنذَرِينَ
إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ

हांको ज़ालिमों और उनके जोड़ों को (1)
(1) ज़ालिमों से मुराद काफ़िर है और उनके जोड़ों से मुराद उनके शैतान जो दुनिया में उनके साथी और क़रीब रहते थे. हर एक काफ़िर अपने शैतान के साथ एक ही ज़ंजी़र में जकड़ दिया जाएगा. और हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि जोड़ों से मुराद अशबाह और इमसाल हैं यानी हर काफ़िर अपने ही क़िस्म के साथ काफ़िरों के साथ हाँका जाएगा, बुतों को पूजने वाले मुर्ति-पूजकों के साथ, आग के पुजारी आग के पुजारियों के साथ, इसी तरह दूसरे.

और जो कुछ वो पूजते थे {22} अल्लाह के सिवा, उन सबको हांको दोज़ख़ की राह की तरफ़{23} और उन्हें ठहराओ (2)
(2) सिरात के पास.

उनसे पूछना है(3) {24}
(3) हदीस शरीफ़ में है कि क़यामत के दिन बन्दा जगह से हिल न सकेगा जब तक चार बातें उससे न पूछ ली जाएं. एक उसकी उम्र कि किस काम में गुज़री, दूसरे उसका इल्म कि उसपर क्या अमल किया, तीसरे उसका माल कि कहाँ से कमाया कहाँ ख़्रर्च किया, चौथा उसका जिस्म कि उसको किस काम में लाया.

तुम्हें क्या हुआ एक दूसरे की मदद क्यों नहीं करते (4) {25}
(4) यह उनसे जहन्नम के ख़ाज़िन फटकार के तौर पर कहेंगे कि दुनिया में तो एक दूसरे की सहायता पर बहुत घमण्ड रखते थे आज देखो कैसे मजबूर हो, तुम में से कोई किसी की मदद नहीं कर सकता.

बल्कि वो आज गर्दन डाले हैं (5){26}
(5) मजबूर और ज़लील होकर.

और उनमें एक ने दूसरे की तरफ़ मुंह किया आपस में पूछते हुए बोले (6) {27}
(6) अपने सरदारों से जो दुनिया में बहकाते थे.

तुम हमारी दाईं तरफ़ से बहकाने आते थे (7){28}
(7) यानी क़ुव्वत के ज़ोर से हमें गुमराही पर आमादा करते थे, इसपर काफ़िरों के सरदार कहेंगे और—

जवाब देंगे तुम ख़ुद ही ईमान न रखते थे(8){29}
(8) पहले ही से काफ़िर थे और ईमान से अपनी मर्ज़ी से मुंह फेरते थे.

और हमारा तुम पर कुछ क़ाबू न था (9)
(9) कि हम तुम्हें अपने अनुकरण पर मजबूर करते.

बल्कि तुम सरकश लोग थे {30} तो साबित हो गई हम पर हमारे रब की बात (10)
(10) जो उसने फ़रमाई कि मैं ज़रूर जहन्नम को जिन्नों और इन्सानों से भरूंगा, लिहाज़ा—

हमें ज़रूर चखना है(11) {31}
(11) उसका अज़ाब, गुमराहों को भी और गुमराह करने वालों को भी.

तो हमने तुम्हें गुमराह किया कि हम ख़ुद गुमराह थे {32} तो उस दिन (12)
(12) यानी क़यामत के दिन.

वो सबके सब अज़ाब में शरीक हैं(13){33}
(13) गुमराह भी और उनके गुमराह करने वाले सरदार भी, क्योंकि ये सब दुनिया में गुमराही में शरीक थे.

मुजरिमों के साथ हम ऐसा ही करते हैं {34} बेशक जब उनसे कहा जाता था कि अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी नहीं तो ऊंची खींचते (घमन्ड करते) थे (14) {35}
(14)और तौहीद क़ुबूल न करते थे, शिर्क से न रूकते थे.

और कहते थे क्या हम अपने ख़ुदाओं को छोड़ दें एक दीवाने शायर के कहने से(15) {36}
(15)यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के फ़रमाने से.

बल्कि वो तो हक़ (सत्य) लाए हैं और उन्हों ने रसूलों की तस्दीक़ फ़रमाई (16) {37}
(16) दीन व तौहीद में, और शिर्क के इन्कार में.

बेशक तुम्हें ज़रूर दुख की मार चखनी है {38} तो तुम्हें बदला न मिलेगा मगर अपने किये का (17){39}
(17)उस शिर्क और झुटलाने का, जो दुनिया में कर आए हो.

मगर जो अल्लाह के चुने हुए बन्दे हैं (18) {40}
(18) ईमान और ख़ूलूस वाले.

उनके लिये वह रोज़ी है जो हमारे इल्म में है {41} मेवे (19)
(19) और बढिया और मज़ेदार नेअमतें, स्वादिष्ट, सुगंधित और सुन्दर.

और उनकी इज़्ज़त होगी {42} चैन के बाग़ों में {43} तख़्तों पर होंगे आमने सामने(20){44}
(20)एक दूसरे से मानूस और ख़ुश.

उन पर दौरा होगा निगाह के सामने बहती शराब के जाम का(21){45}
(21) जिसकी पाकीज़ा नेहरें निगाहों के सामने जारी होंगी.

सफ़ेद रंग(22)
(22) दूध से भी ज़्यादा सफ़ेद.

पीने वालों के लिये लज़्ज़त (23) {46}
(23) दुनिया की शराब के विपरीत जो बदबूदार और बुरे मज़े की होती है और पीने वाला उसको पीते वक़्त मुंह बिगाड़ बिगाड़ लेता है.

न उसमें ख़ुमार है(24)
(24) जिससे अक़्ल में ख़लल आए.

और न उससे उनका सर फिरे (25) {47}
(25) दुनिया की शराब के विपरीत जिसमें बहुत सी ख़राबियां और ऐब हैं. उससे पेट में भी दर्द होता है सर में भी, पेशाब में भी तकलीफ़ होती है, तबिअत में उल्टी जैसी महसूस होती है, सर चकराता है, अक़्ल ठिकाने नहीं रहती.

और उनके पास हैं जो शौहरों के सिवा दूसरी तरफ़ आँख उठा कर न देखेंगी (26) {48}
(26) कि उसके नज़्दीक़ उसका शौहर ही सबसे सुन्दर और प्यारा है.

बड़ी आँखों वालियाँ, मानो वो अन्डे है छुपे रखे हुए (27) {49}
(27) धूल मिट्टी से पाक साफ़ और दिलकश रंग.

तो उनमें(28)
(28) यानी एहले जन्नत में से.

एक ने दूसरे की तरफ़ मुंह किया पूछते हुए(29) {50}
(29) कि दुनिया में क्या हालात और वाक़आत पेश आए.

उनमें से कहने वाला बोला मेरा एक हमनशीन था (30) {51}
(30) दुनिया में जो मरने के बाद उठने का इन्कारी था और उसकी निस्बत व्यंग्य के तरीक़े पर.

मुझ से कहा करता क्या तुम इसे सच मानते हो (31) {52}
(31) यानी मरने के बाद उठने को.

क्या जब हम मर कर मिट्टी और हड्डियां हो जाएंगे तो क्या हमें जज़ा सज़ा दी जाएगी(32) {53}
(32) और हम से हिसाब लिया जाएगा. यह बयान करके उस जन्नती ने अपने जन्नती दोस्तों से.

कहा क्या तुम झांक कर देखोगे (33) {54}
(33) कि मेरे उस हमनशीन का जहन्नम में क्या हाल है.

फिर झांका तो उसे बीच भड़कती आग में देखा(34) {55}
(34) कि अज़ाब के अन्दर गिरफ़्तार है, तो उस जन्नती ने उस से.

कहा ख़ुदा की क़सम क़रीब था कि तू मुझे हलाक कर दे(35) {56}
(35) सीधी राह से बहका कर.

और मेरा रब फ़ज़्ल (कृपा) न करे (36)
(36) और अपनी रहमत और करम से मुझे तेरे बहकावे से मेहफ़ूज़ न रखता और इस्लाम पर क़ायम रहने की तौफ़ीक़ न देता.

तो ज़रूर मैं भी पकड़ कर हाज़िर किया जाता (37) {57}
(37) तेरे साथ जहन्नम में, और जब मौत ज़िब्ह कर दी जाएगी तो जन्नत वाले फ़रिश्तों से कहेंगे.

तो क्या हमें मरना नहीं {58} मगर हमारी पहली मौत (38)
(38) वही जो दुनिया मे हो चुकी.

और हम पर अज़ाब न होगा (39) {59}
(39) फ़रिश्ते कहेंगे नहीं, और जन्नत वालों का यह पूछना अल्लाह तआला की रहमत के साथ लज़्ज़त उठाना और हमेशा की ज़िन्दगी की नेअमत और अज़ाब से मेहफ़ूज़ होने के ऐहसान पर उसकी नेअमत का ज़िक्र करने के लिये है. और ज़िक्र से उन्हें सुरूर हासिल होगा.

बेशक यही बड़ी कामयाबी है {60} ऐसी ही बात के लिये कामियों को काम करना चाहिये {61} तो यह मेहमानी भली(40)
(40) यानी जन्नती नेअमतें और लज़्ज़तें और वहाँ के नफ़ीस और लतीफ़ खाने पीने और हमेशा के ऐश बेहद राहत और सुरूर.

या थूहड़ का पेड? (41) {62}
(41) निहायत कड़वा, अत्यन्त बदबूदार हद दर्जा का बदमज़ा सख़्त नागवार जिससे जहन्नमियों की मे़ज़बानी की जाएगी और उन को उसके खाने पर मजबूर किया जाएगा.

बेशक हमने उसे ज़ालिमों की जांच किया है(42) {63}
(42) कि दुनिया में काफ़िर उसका इन्कार करते हैं और कहते हैं कि आग दरख़्तों को जला डालती है तो आग में दरख़्त कैसे होगा.

बेशक वह एक पेड़ है कि जहन्नम की जड़ में निकलता है (43) {64}
(43) और उसकी शाख़ें जहन्नम के गढों में पहुंचती हैं.

उसका शग़ूफ़ा जैसे देवों के सर (44) {65}
(44) यानी बदसूरत और बुरा दिखने वाला.

फिर बेशक वो उसमें से खाएंगे (45)
(45) सख़्त भूख से मजबूर होकर.

फिर उससे पेट भरेंगे {66} फिर बेशक उनके लिये उस पर खौलते पानी की मिलौनी (मिलावट) है (46) {67}
(46) यानी जहन्नमी थूहड़ से उनके पेट भरेंगे, वह जलता होगा, पेटों को जलाएगा, उसकी जलन से प्यास का ग़लबा होगा और मुद्दत तक वो प्यास की तकलीफ़ में रखे जाएंगे फिर जब पीने को दिया जाएगा तो गर्म खौलता पानी उस गर्मी और जलन, उस थूहड़ की गर्मी और जलन से मिलकर और तकलीफ़ और बेचैनी बढ़ाएगी.

फिर उनकी बाज़गश्त (पलटना) ज़रूर भड़कती आग की तरफ़ है (47) {68}
(47) क्योंकि ज़क्क़ूम खिलाने और गर्म पानी पिलाने के लिये उनको अपने गढ़ों से दूसरे गढ़ों में ले जाया जाएगा. इसके बाद फिर अपने गढों की तरफ़ लौटाए जाएंगे. इसके बाद उनके अज़ाब का मुस्तहिक़ होने की इल्लत इरशाद फ़रमाई जाती है.

बेशक उन्होंने अपने बाप दादा गुमराह पाए{69} तो वो उन्हीं के क़दमों के निशान पर दौड़े जाते हैं (48) {70}
(48) और गुमराही में उनका अनुकरण करते हैं और सच्चाई के खुले सुबूतों से आँखें बन्द कर लेते हैं.

और बेशक उनसे पहले बहुत से अगले गुमराह हुए (49) {71}
(49) इसी वजह से कि उन्हों ने अपने बाप दादा की ग़लत राह न छोड़ी और हुज्जत और दलील से फ़ायदा न उठाया.

और बेशक हमने उनमें डर सुनाने वाले भेजे (50) {72}
(50) यानी नबी जिन्होंने उनको गुमराही और बदअमली के बुरे अंजाम का ख़ौफ़ दिलाया.

तो देखो डराए गयों का कैसा अंजाम हुआ (51) {73}
(51) कि वो अज़ाब से हलाक किये गए.

मगर अल्लाह के चुने हुए बन्दे (52) {74}
(52) ईमानदार जिन्हों ने अपने इख़लास के कारण निजात पाई.

37 सूरए साफ़्फ़ात – तीसरा रूकू

37 सूरए साफ़्फ़ात  – तीसरा रूकू

وَلَقَدْ نَادَانَا نُوحٌ فَلَنِعْمَ الْمُجِيبُونَ
وَنَجَّيْنَاهُ وَأَهْلَهُ مِنَ الْكَرْبِ الْعَظِيمِ
وَجَعَلْنَا ذُرِّيَّتَهُ هُمُ الْبَاقِينَ
وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِي الْآخِرِينَ
سَلَامٌ عَلَىٰ نُوحٍ فِي الْعَالَمِينَ
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ
إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِينَ
ثُمَّ أَغْرَقْنَا الْآخَرِينَ
۞ وَإِنَّ مِن شِيعَتِهِ لَإِبْرَاهِيمَ
إِذْ جَاءَ رَبَّهُ بِقَلْبٍ سَلِيمٍ
إِذْ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِ مَاذَا تَعْبُدُونَ
أَئِفْكًا آلِهَةً دُونَ اللَّهِ تُرِيدُونَ
فَمَا ظَنُّكُم بِرَبِّ الْعَالَمِينَ
فَنَظَرَ نَظْرَةً فِي النُّجُومِ
فَقَالَ إِنِّي سَقِيمٌ
فَتَوَلَّوْا عَنْهُ مُدْبِرِينَ
فَرَاغَ إِلَىٰ آلِهَتِهِمْ فَقَالَ أَلَا تَأْكُلُونَ
مَا لَكُمْ لَا تَنطِقُونَ
فَرَاغَ عَلَيْهِمْ ضَرْبًا بِالْيَمِينِ
فَأَقْبَلُوا إِلَيْهِ يَزِفُّونَ
قَالَ أَتَعْبُدُونَ مَا تَنْحِتُونَ
وَاللَّهُ خَلَقَكُمْ وَمَا تَعْمَلُونَ
قَالُوا ابْنُوا لَهُ بُنْيَانًا فَأَلْقُوهُ فِي الْجَحِيمِ
فَأَرَادُوا بِهِ كَيْدًا فَجَعَلْنَاهُمُ الْأَسْفَلِينَ
وَقَالَ إِنِّي ذَاهِبٌ إِلَىٰ رَبِّي سَيَهْدِينِ
رَبِّ هَبْ لِي مِنَ الصَّالِحِينَ
فَبَشَّرْنَاهُ بِغُلَامٍ حَلِيمٍ
فَلَمَّا بَلَغَ مَعَهُ السَّعْيَ قَالَ يَا بُنَيَّ إِنِّي أَرَىٰ فِي الْمَنَامِ أَنِّي أَذْبَحُكَ فَانظُرْ مَاذَا تَرَىٰ ۚ قَالَ يَا أَبَتِ افْعَلْ مَا تُؤْمَرُ ۖ سَتَجِدُنِي إِن شَاءَ اللَّهُ مِنَ الصَّابِرِينَ
فَلَمَّا أَسْلَمَا وَتَلَّهُ لِلْجَبِينِ
وَنَادَيْنَاهُ أَن يَا إِبْرَاهِيمُ
قَدْ صَدَّقْتَ الرُّؤْيَا ۚ إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ
إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ الْبَلَاءُ الْمُبِينُ
وَفَدَيْنَاهُ بِذِبْحٍ عَظِيمٍ
وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِي الْآخِرِينَ
سَلَامٌ عَلَىٰ إِبْرَاهِيمَ
كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ
إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِينَ
وَبَشَّرْنَاهُ بِإِسْحَاقَ نَبِيًّا مِّنَ الصَّالِحِينَ
وَبَارَكْنَا عَلَيْهِ وَعَلَىٰ إِسْحَاقَ ۚ وَمِن ذُرِّيَّتِهِمَا مُحْسِنٌ وَظَالِمٌ لِّنَفْسِهِ مُبِينٌ

और बेशक हमें नूह ने पुकारा(1)
(1) और हम से अपनी क़ौम के अज़ाब और हलाकत की दरख़ास्त की.

तो हम क्या ही अच्छे क़ुबूल फ़रमाने वाले(2){75}
(2) कि हम ने उनकी दुआ क़ुबूल की और उनके दुश्मनों के मुक़ाबले में मदद की और उनसे पूरा बदला लिया कि उन्हे डुबो कर हलाक कर दिया.

और हमने उसे और उसके घर वालों को बड़ी तकलीफ़ से निजात दी {76} और हमने उसी की औलाद बाक़ी रखी (3) {77}
(3) तो अब दुनिया में जितने इन्सान हैं सब हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की नस्ल से हैं. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा से रिवायत है कि हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के किश्ती से उतरने के बाद उनके साथियों में जिस क़दर मर्द और औरत थे सभी मर गए सिवा आपकी औलाद और उनकी औरतों के, उन्हीं से दुनिया की नस्लें चलीं. अरब और फ़ारस और रूम आपके बेटे साम की औलाद से हैं और सूदान के लोग आपके बेटे हाम की नस्ल से और तुर्क और याज़ूज़ माजूज वग़ैरह आपके साहिबज़ादे याफ़िस की औलाद से.

और हमने पिछलों में उसकी तारीफ़ बाक़ी रखी (4) {78}
(4) यानी उनके बाद वाले नबी और उनकी उम्मतों में हज़रत नूह अलैहिस्सलाम का ज़िक्रे जमील बाक़ी रखा.

नूह पर सलाम हो जगत वालों में(5){79}
(5) यानी फ़रिश्ते और जिन्न और इन्सान सब उन पर क़यामत तक सलाम भेजा करें.

बेशक हम ऐसा ही सिला देते हैं नेकों को {80} बेशक वह हमारे उत्तम दर्जे के ईमान के पूरे बन्दों में है {81} फिर हमने दूसरों को डुबो दिया (6) {82}
(6) यानी हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम के काफ़िरों को.

और बेशक उसी के गिरोह से इब्राहीम है (7){83}
(7) यानी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के दीनों मिल्लत और उन्हीं के तरीक़े और सुन्नत पर हैं. हज़रत नूह अलैहिस्सलाम और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बीच दो हज़ार छ सौ चालीस साल का अन्तर है और दोनों हज़रात के बीच जो समय गुज़रा उसमें सिर्फ़ दो नबी हुए, हज़रत हूद अलैहिस्सलाम और हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम.

जब कि अपने रब के पास हाज़िर हुआ ग़ैर से सलामत दिल लेकर(8){84}
(8) यानी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने दिल को अल्लाह तआला के लिये ख़ालिस किया और हर चीज़ से फ़ारिग़ कर लिया.

जब उसने अपने बाप और अपनी क़ौम से फ़रमाया (9)
(9) फटकार के तौर पर.

तुम क्या पूजते हो {85} क्या बोहतान से अल्लाह के सिवा और ख़ुदा चाहते हो {86} तो तुम्हारा क्या गुमान है सारे जगत के रब पर (10){87}
(10) कि जब तुम उसके सिवा दूसरे को पूजोगे तो क्या वह तुम्हें बेअज़ाब छोड़ देगा जबकि तुम जानते हो कि वही नेअमतें देने वाला सही मानी में इबादत का मुस्तहिक़ है. क़ौम ने कहा कि कल को हमारी ईद है, जंगल में मेला लगेगा. हम बढ़िया ख़ाने पकाकर बुतों के पास रख जाएंगे और मेले से वापस होकर तबर्रूक के तौर पर उनको खाएंगे आप भी हमारे साथ चलें और भीड़ और मेले की रौनक देखें. वहाँ से वापस आकर बुतों की ज़ीनत और सजावट और उनका बनाव सिंघार देखें. यह तमाशा देखने के बाद हम समझते हैं कि बुत परस्ती पर हमें मलामत न करेंगे.

फिर उसने एक निगाह सितारों को देखा (11) {88}
(11) जैसे कि सितारा शनास, नुजूम के माहिर सितारों के योग और प्रभाव को देखा करते हैं.

फिर कहा मैं बीमार होने वाला हूँ (12) {89}
(12) क़ोम ज्योतिष को बहुत मानती थी, वह समझी कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने सितारों से अपने बीमार होने का हाल मालूम कर लिया, अब यह किसी छूत की बमारी में मुब्तिला होने वाले हैं और छूत की बीमारी से वो लोग बहुत डरते थे. सितारों का इल्म सच्चा है और सीखने में मश्ग़ूल होना स्थगित हो चुका. शरीअत के अनुसार कोई बीमारी छूत की नहीं होती, यानी एक व्यक्ति की बीमारी उड़कर वैसी ही दूसरे में नहीं पहुंचती. तत्वों की ख़राबी और हवा वग़ैरह की हस्तियों के असर से एक वक़्त में बहुत से लोगों को एक तरह की बीमारी हो सकती है लेकिन बीमारी के कारण हर एक में अलग अलग हैं किसी की बीमारी किसी दूसरे में नहीं पहुंचती.

तो वो उस पर पीठ देकर फिर गए(13){90}
(13) अपनी ईद की तरफ़ और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को छोड़ गए, आप बुतख़ाने में आए.

फिर उनके ख़ुदाओ की तरफ़ छुप कर चला तो कहा क्या तुम नहीं खाते (14) {91}
(14) यानी उस खाने को जो तुम्हारे सामने रखा है, बुतों ने इसका कोई जवाब न दिया और वो जवाब ही क्या देते, तो आपने फ़रमाया.

तुम्हें क्या हुआ कि नहीं बोलते (15) {92}
(15) इसपर भी बुतों की तरफ़ से कुछ जवाब न हुआ वो बेजान पत्थर थे जवाब क्या देते.

तो लोगों की नज़र बचाकर उन्हें दाएं हाथ से मारने लगा (16) {93}
(16) और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने बुतों को मार मार कर टुकड़े टुकड़े कर दिया, जब काफ़िरों को इसकी ख़बर पहुंची.

तो काफ़िर उसकी तरफ़ जल्दी करते आए (17){94}
(17) और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से कहने लगे कि हम तो इन बुतों को पूजते हैं तुम इन्हें तोड़ते हो.

फ़रमाया क्या अपने अपने हाथ के तराशों को पूजते हो {95} और अल्लाह ने तुम्हें पैदा किया और तुम्हारे अअमाल (कर्मो) को(18) {96}
(18) तो पूजने का मुस्तहिक़ वह है न बुत. इसपर वो हैरान हो गए और उन से कोई जवाब न बन आया.

बोले इसके लिये एक ईमारत चुनो (19)
(19) पत्थर की तीस गज़ लम्बी, बीस गज़ चौड़ी चार दीवारी फिर उसको लकड़ियों से भर दो और उनमें आग लगा दो यहाँ तक कि आग ज़ोर पकड़े.

फिर इसे भड़कती आग में डाल दो {97} तो उन्होंने उसपर दाँव चलना चाहा हमने उन्हें नीचा दिखाया (20){98}
(20) हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को इस आग में सलामत रखकर, चुनांन्चे आग से आप सलामत बरामद हुए.

और कहा मैं अपने रब की तरफ़ जाने वाला हूँ (21)
(21) इस दारूल कुफ़्र से हिजरत करके जहाँ जाने का मेरा रब हुक्म दे.

अब वह मुझे राह देगा(22){99}
(22) चुनांन्चे अल्लाह के हुक्म से आप शाम प्रदेश में अर्ज़े मुक़द्दसा के मक़ाम पर पहुंचे तो आपने अपने रब से दुआ की.

इलाही मुझे लायक़ औलाद दे {100} तो हमने उसे ख़ुशख़बरी सुनाई एक अक़्लमन्द लड़के की {101} फिर जब वह उसके साथ काम के क़ाबिल हो गया कहा ऐ मेरे बेटे मैंने ख़्वाब देखा मैं तुझे ज़िब्ह करता हूँ (23)
(23) यानी तेरे ज़िब्ह का इन्तिज़ाम कर रहा हूँ और नबीयों का ख़्वाब सच्चा होता है और उनके काम अल्लाह के हुक्म से हुआ करते हैं.

अब तू देख तेरी क्या राय है(24)
(24) यह आपने इसलिये कहा था कि बेटे को ज़िब्ह से वहशत न हो और अल्लाह के हुक्म की इताअत के लिये वह दिल से तैयार हों चुनांन्चे इस सुपुत्र ने अल्लाह की रज़ा पर फ़िदा होने का भरपूर शौक़ से इज़हार किया.

कहा ऐ मेरे बाप कीजिये जिस बात का आपको हुक्म होता है, ख़ुदा ने चाहा तो क़रीब है कि आप मुझे साबिर पाएंगे {102} तो जब उन दोनों ने हमारे हुक्म पर गर्दन रखी और बाप ने बेटे को माथे के बल लिटाया, उस वक़्त का हाल न पूछ (25) {103}
(25) ये वाक़िआ मिना में वाक़े हुआ और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने बेटे के गले पर छुरी चलाई. अल्लाह की क़ुदरत की छुरी ने कुछ भी काम न किया.

और हमने उसे निदा फ़रमाई कि ऐ इब्राहीम {104} बेशक तूने ख़्वाब सच कर दिखाया (26)
(26) इताअत व फ़रमाँबरदारी चरम सीमा पर पहुंचा दी. बेटे को ज़िब्ह के लिये बिना हिचकिचाए पेश कर दिया. बस अब इतना काफ़ी है.

हम ऐसा ही सिला देते हैं नेकों को {105} बेशक यह रौशन जांच थी {106} और हमने एक बड़ा ज़बीहा उसके फ़िदये (बदले) में देकर उसे बचा लिया (27) {107}
(27) इसमें इख़्तिलाफ़ है कि यह बेटे हज़रत इस्माईल हैं या हज़रत इस्हाक़. लेकिन प्रमाणों की शक्ति यही बताती है कि ज़िब्ह होने वाले हज़रत इस्माईल ही हैं और फ़िदिये में जन्नत से बकरी भेजी गई थी जिसको हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने ज़िब्ह फ़रमाया.

और हमने पिछलों में उसकी तारीफ़ बाक़ी रखी {108} सलाम हो इब्राहीम पर(28) {109}
(28) हमारी तरफ़ से.

हम ऐसा ही सिला देते हैं नेको को {110} बेशक वो हमारे उत्तम दर्जे के ईमान के पूरे बन्दों में हैं {111} और हमने उसे ख़ुशख़बरी दी इस्हाक़ की कि ग़ैब की ख़बरें बताने वाला नबी हमारे ख़ास क़ुर्ब (समीपता) के सज़ावारों में (29) {112}
(29) ज़िब्ह के वाक़ए के बाद हज़रत इस्हाक़ की ख़ुशख़बरी इस की दलील है कि हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की ज़बीह है.

और हमने बरकत उतारी उसपर और इस्हाक़ पर(30)
(30) हर तरह की बरकत, दीनी भी और दुनियावी भी और ज़ाहिरी बरकत यह है कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की औलाद में बहुतात की और हज़रत इस्हाक़ अलैहिस्सलाम की नस्ल से बहुत से नबी किये. हज़रत यअक़ूब से लेकर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम तक.

और उनकी औलाद में कोई अच्छा काम करने वाला (31)
(31) यानी ईमान वाला.

और कोई अपनी जान पर खुला ज़ुल्म करने वाला (32) {113}
(32) यानी काफ़िर. इससे मालूम हुआ कि किसी बाप के बहुत सी फ़ज़ीलतों के मालिक होने से औलाद का भी वैसा ही होना लाज़िम नहीं. यह अल्लाह तआला की शानें हैं, कभी नेक से नेक पैदा करता है, कभी बद से बद, कभी बद से नेक. न औलाद का बद होना बापों के लिये ऐब हो, न बापों की बदी औलाद के लिये.

37 सूरए साफ़्फ़ात – चौथा रूकू

37 सूरए साफ़्फ़ात  – चौथा रूकू

وَلَقَدْ مَنَنَّا عَلَىٰ مُوسَىٰ وَهَارُونَ
وَنَجَّيْنَاهُمَا وَقَوْمَهُمَا مِنَ الْكَرْبِ الْعَظِيمِ
وَنَصَرْنَاهُمْ فَكَانُوا هُمُ الْغَالِبِينَ
وَآتَيْنَاهُمَا الْكِتَابَ الْمُسْتَبِينَ
وَهَدَيْنَاهُمَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ
وَتَرَكْنَا عَلَيْهِمَا فِي الْآخِرِينَ
سَلَامٌ عَلَىٰ مُوسَىٰ وَهَارُونَ
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ
إِنَّهُمَا مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِينَ
وَإِنَّ إِلْيَاسَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ
إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ أَلَا تَتَّقُونَ
أَتَدْعُونَ بَعْلًا وَتَذَرُونَ أَحْسَنَ الْخَالِقِينَ
اللَّهَ رَبَّكُمْ وَرَبَّ آبَائِكُمُ الْأَوَّلِينَ
فَكَذَّبُوهُ فَإِنَّهُمْ لَمُحْضَرُونَ
إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ
وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِي الْآخِرِينَ
سَلَامٌ عَلَىٰ إِلْ يَاسِينَ
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ
إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِينَ
وَإِنَّ لُوطًا لَّمِنَ الْمُرْسَلِينَ
إِذْ نَجَّيْنَاهُ وَأَهْلَهُ أَجْمَعِينَ
إِلَّا عَجُوزًا فِي الْغَابِرِينَ
ثُمَّ دَمَّرْنَا الْآخَرِينَ
وَإِنَّكُمْ لَتَمُرُّونَ عَلَيْهِم مُّصْبِحِينَ
وَبِاللَّيْلِ ۗ أَفَلَا تَعْقِلُونَ

और बेशक हमने मूसा और हारून पर एहसान फ़रमाया(1) {114}
(1) कि उन्हें नबुव्वत और रिसालत अता फ़रमाई.

और उन्हें और उनकी क़ौम (2)
(2) यानी बनी इस्राईल.

को बड़ सख़्ती से निजात बख़्शी (3) {115}
(3) कि फ़िरऔन और उसकी क़ौम के अत्याचारों से रिहाई दी.

और उनकी हमने मदद फ़रमाई(4)
(4) क़िब्तियों के मुक़ाबले में.

तो वही ग़ालिब हुए (5){116}
(5) फ़िरऔन और उसकी क़ौम पर.

और हमने उन दोनों को रौशन किताब अता फ़रमाई(6) {117}
(6) जिसका बयान विस्तृत और साफ़ और वो हुदूद और अहक़ाम वग़ैरा की सम्पूर्ण किताब. इस किताब से मुराद तौरात शरीफ़ है.

और उनको सीधी राह दिखाई{118} और पिछलों में उनकी तारीफ़ बाक़ी रखी {119} सलाम हो मूसा और हारून पर {120} बेशक हम ऐसा ही सिला देते हैं नेकों को {121} बेशक वो दोनों हमारे उत्तम दर्जे के ईमान के पूरे बन्दों में हैं {122} और बेशक इलियास पैग़म्बरों से है(7){123}
(7) जो बअलबक बना और उसके आस पास के लोगों की तरफ़ भेजे गए.

जब उसने अपनी क़ौम से फ़रमाया क्या तुम डरते नहीं(8){124}
(8) यानी क्या तुम्हे अल्लाह तआला का ख़ौफ़ नहीं.

क्या बअल को पूजते हो(9)
(9) बअल उनके बुत का नाम था जो सोने का था. उसकी लम्बाई बीस गज़ थी, चार मुंह थे. वो उसका बहुत सम्मान करते थे. जिस जगह वह था उसका नाम बक था इसलिये बअलबक बना. यह शाम प्रदेश में है.

और छोड़ते हो सबसे अच्छा पैदा करने वाले{125} अल्लाह को जो रब है तुम्हारा और तुम्हारे अगले बाप दादा का(10){126}
(10) उसकी इबादत छोड़ते हो.

फिर उन्होंने उसे झुटलाया तो वो ज़रूर पकड़े आएंगे(11) {127}
(11) जहन्नम में.

मगर अल्लाह के चुने हुए बन्दे(12) {128}
(12) यानी उस क़ौम में से अल्लाह तआला के बुज़ुर्ग बन्दे जो हज़रत इलियास अलैहिस्सलाम पर ईमान लाए उन्होंने अज़ाब से निजात पाई.

और हमने पिछलों में उसकी सना (प्रशंसा) बाक़ी रखी {129} सलाम हो इलियास पर {130} बेशक हम ऐसा ही सिला देते हैं नेकों को {131} बेशक वह हमारे उत्तम दर्जे के ईमान के पूरे बन्दों में है {132} और बेशक लूत पैग़म्बरों में है {133} जब कि हमने उसे और उसके सब घर वालों को निजात बख़्शी {134} मगर एक बुढ़िया कि रह जाने वालों में हुई (13){135}
(13) अज़ाब के अन्दर.

फिर दूसरों को हमने हलाक फ़रमा दिया (14) {136}
(14) यानी हज़रत लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम के काफ़रों को.

और बेशक तुम(15)
(15) ऐ मक्के वालों.

उन पर ग़ुजरते हो सुब्ह को {137} और रात में (16)
(16) यानी अपने सफ़रों में रात दिन तुम उनके खण्डहरों और मंज़िलों पर गुज़रते हो.

तो क्या तुम्हें अक़्ल नहीं(17){138}
(17) कि उनसे नसीहत पकड़ो.

37 सूरए साफ़्फ़ात  – पाँचवां रूकू

37 सूरए साफ़्फ़ात  – पाँचवां रूकू

وَإِنَّ يُونُسَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ
إِذْ أَبَقَ إِلَى الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ
فَسَاهَمَ فَكَانَ مِنَ الْمُدْحَضِينَ
فَالْتَقَمَهُ الْحُوتُ وَهُوَ مُلِيمٌ
فَلَوْلَا أَنَّهُ كَانَ مِنَ الْمُسَبِّحِينَ
لَلَبِثَ فِي بَطْنِهِ إِلَىٰ يَوْمِ يُبْعَثُونَ
۞ فَنَبَذْنَاهُ بِالْعَرَاءِ وَهُوَ سَقِيمٌ
وَأَنبَتْنَا عَلَيْهِ شَجَرَةً مِّن يَقْطِينٍ
وَأَرْسَلْنَاهُ إِلَىٰ مِائَةِ أَلْفٍ أَوْ يَزِيدُونَ
فَآمَنُوا فَمَتَّعْنَاهُمْ إِلَىٰ حِينٍ
فَاسْتَفْتِهِمْ أَلِرَبِّكَ الْبَنَاتُ وَلَهُمُ الْبَنُونَ
أَمْ خَلَقْنَا الْمَلَائِكَةَ إِنَاثًا وَهُمْ شَاهِدُونَ
أَلَا إِنَّهُم مِّنْ إِفْكِهِمْ لَيَقُولُونَ
وَلَدَ اللَّهُ وَإِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ
أَصْطَفَى الْبَنَاتِ عَلَى الْبَنِينَ
مَا لَكُمْ كَيْفَ تَحْكُمُونَ
أَفَلَا تَذَكَّرُونَ
أَمْ لَكُمْ سُلْطَانٌ مُّبِينٌ
فَأْتُوا بِكِتَابِكُمْ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
وَجَعَلُوا بَيْنَهُ وَبَيْنَ الْجِنَّةِ نَسَبًا ۚ وَلَقَدْ عَلِمَتِ الْجِنَّةُ إِنَّهُمْ لَمُحْضَرُونَ
سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ
إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ
فَإِنَّكُمْ وَمَا تَعْبُدُونَ
مَا أَنتُمْ عَلَيْهِ بِفَاتِنِينَ
إِلَّا مَنْ هُوَ صَالِ الْجَحِيمِ
وَمَا مِنَّا إِلَّا لَهُ مَقَامٌ مَّعْلُومٌ
وَإِنَّا لَنَحْنُ الصَّافُّونَ
وَإِنَّا لَنَحْنُ الْمُسَبِّحُونَ
وَإِن كَانُوا لَيَقُولُونَ
لَوْ أَنَّ عِندَنَا ذِكْرًا مِّنَ الْأَوَّلِينَ
لَكُنَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ
فَكَفَرُوا بِهِ ۖ فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ
وَلَقَدْ سَبَقَتْ كَلِمَتُنَا لِعِبَادِنَا الْمُرْسَلِينَ
إِنَّهُمْ لَهُمُ الْمَنصُورُونَ
وَإِنَّ جُندَنَا لَهُمُ الْغَالِبُونَ
فَتَوَلَّ عَنْهُمْ حَتَّىٰ حِينٍ
وَأَبْصِرْهُمْ فَسَوْفَ يُبْصِرُونَ
أَفَبِعَذَابِنَا يَسْتَعْجِلُونَ
فَإِذَا نَزَلَ بِسَاحَتِهِمْ فَسَاءَ صَبَاحُ الْمُنذَرِينَ
وَتَوَلَّ عَنْهُمْ حَتَّىٰ حِينٍ
وَأَبْصِرْ فَسَوْفَ يُبْصِرُونَ
سُبْحَانَ رَبِّكَ رَبِّ الْعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ
وَسَلَامٌ عَلَى الْمُرْسَلِينَ
وَالْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ

और बेशक यूनुस पैग़म्बरों से है {139} जब कि भरी किश्ती की तरफ़ निकल गया (1){140}
(1) हज़रत इब्ने अब्बास और वहब का क़ौल है कि हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम से अज़ाब का वादा किया था उसमें विलम्ब हुआ तो आप उनसे छुपकर निकल गए और आपने समुद्री सफ़र का इरादा किया. किश्ती पर सवार हुए. दरिया के बीच किश्ती ठहर गई और उसके ठहरने का कोई ज़ाहिरी कारण मौजूद न था. मल्लाहों ने कहा, इस किश्ती में अपने मालिक से भागा हुआ कोई ग़ुलाम है. लाटरी डालने से ज़ाहिर हो जाएगा. पर्चा डाला गया तो आप ही के नाम निकला. तो आपने फ़रमाया कि मैं ही वह ग़ुलाम हूँ और आप पानी में डाल दिये गए क्योंकि दस्तूर यही था कि जब तक भागा हुआ ग़ुलाम दरिया में न डुबा दिया जाए उस वक़्त तक किश्ती चलती न थी.

तो क़ुरआ डाला तो ढकेले हुओ में हुआ {141} फिर उसे मछली ने निगल लिया और वह अपने आप को मलामत करता था (2){142}
(2) कि क्यों निकलने में जल्दी की और क़ौम से अलग होने में अल्लाह के हुक्म का इन्तिज़ार न किया.

तो अगर वह तस्बीह करने वाला न होता(3) {143}
(3) यानी अल्लाह के ज़िक्र की कसरत करने वाला और मछली के पेट में “ला इलाहा इल्ला अन्ता सुब्हानका इन्नी कुन्तो मिनज़ ज़ालिमीन” पढ़ने वाला.

ज़रूर उसके पेट में रहता जिस दिन तक लोग उठाए जाएंगे(4) {144}
(4) यानी क़यामत के रोज़ तक.

फिर हमने उसे (5)
(5) मछली के पेट से निकाल कर उसी रोज़ या तीन रोज़ या सात रोज़ या चालीस रोज़ के बाद.

मैदान पर डाल दिया और वह बीमार था (6) {145}
(6) यानी मछली के पेट में रहने के कारण आप ऐसे कमज़ोर, दुबले और नाज़ुक हो गए थे जैसा बच्चा पैदाइश के वक़्त होता है. जिस्म की खाल नर्म हो गई थी, बदन पर कोई बाल बाक़ी न रहा था.

और हमने उसपर (7)
(7) साया करने और मक्खियों से मेहफ़ूज़ रखने के लिये.

कदू का पेड़ उगाया(8){146}
(8) कदू की बेल होती है जो ज़मीन पर फ़ैलती है मगर यह आपका चमत्कार था कि कदू का यह दरख़्त लम्बे दरख़्तों की तरह शाख़ रखता था और उसके बड़े बड़े पत्तों के साए में आप आराम करते थे और अल्लाह के हुक्म से रोज़ाना एक बकरी आती और अपना थन हज़रत के दहने मुबारक में देकर आपको सुबह शाम दूध पिला जाती यहाँ तक कि जिस्म की खाल मज़बूत हुई और अपने मौक़े से बाल जमे और जिस्म में ताक़त आई.

और हमने उसे(9)
(9) पहले की तरह मौसिल प्रदेश में नैनवा क़ौम के.

लाख आदमियों की तरफ़ भेजा बल्कि ज़्यादा {147} तो वो ईमान ले आए (10)
(10) अज़ाब के निशान देखकर (इस का बयान सूरए युनूस के दसवें रूकू में गुज़र चुका है और इस वाक़ए का बयान सूरए अम्बिया के छटे रूकू में भी आ चुका है.)

तो हमने उन्हे एक वक़्त तक बरतने दिया (11) {148}
(11) यानी उनकी आख़िर उम्र तक उन्हें आसायश के साथ रखा इस वाक़ए के बयान फ़रमाने के बाद अल्लाह तआला अपने हबीब अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से फ़रमाता है कि आप मक्के के काफ़िरों से दोबारा ज़िन्दा किये जाने का इन्कार करने की वजह पूछिये. चुनांन्चे इरशाद फ़रमाता है.
तो उनसे पूछो क्या तुम्हारे रब के लिये बेटियां हैं(12)
(12) जैसा कि जुहैना और बनी सलमा वग़ैरह काफ़िरों का अक़ीदा है कि फ़रिश्ते ख़ुदा की बेटियाँ हैं.

और उनके बेटे (13){149}
(13) यानी अपने लिये तो बेटियाँ गवारा नहीं करते, बुरी जानते हैं और फिर ऐसी चीज़ को ख़ुदा की तरफ़ निस्बत करते हैं.

या हमने मलायका (फ़रिश्तों) को औरतें पैदा किया और वो हाज़िर थे(14) {150}
(14) देख रहे थे, क्यों ऐसी बेहूदा बात कहते हैं.

सुनते हो बेशक वो अपने बोहतान से कहते हैं {151} कि अल्लाह की औलाद है और बेशक वो ज़रूर झूटे हें {152} क्या उसने बेटियाँ पसन्द की बेटे छोड़ कर {153} तुम्हें क्या है कैसा हुक्म लगाते हो(15) {154}
(15) फ़ासिद और बातिल.

तो क्या ध्यान नहीं करते(16) {155}
(16) और इतना नहीं समझते कि अल्लाह तआला औलाद से पाक और बेनियाज़ है.

या तुम्हारे लिये कोई खुली सनद है {156} तो अपनी किताब लाओ (17)
(17) जिसमें यह सनद हो.

अगर तुम सच्चे हो {157} और उसमें और जिन्नों में रिश्ता ठहराया(18)
(18) जैसा कि कुछ मुश्रिकों ने कहा था कि अल्लाह ने जिन्नों में शादी की उससे फ़रिश्ते पैदा हुए (मआज़ल्लाह) कैसे बड़े भारी कुफ़्र करने वाले हुए.

और बेशक जिन्नों को मालूम है कि वो (19)
(19) यानी इस बेहूदा बात के कहने वाले.

ज़रूर हाज़िर लाए जाएंगे(20){158}
(20) जहन्नम में अज़ाब के लिये.

पाकी है अल्लाह को उन बातों से कि ये बताते हैं {159} मगर अल्लाह के चुने हुए बन्दे(21){160}
(21) ईमानदार, अल्लाह तआला की पाकी बयान करते हैं उन तमाम बातों से, जो ये नाबकार काफ़िर कहते हैं.

तो तुम और जो कुछ अल्लाह के सिवा पूजते हो (22){161}
(22) यानी तुम्हारे बुत सबके सब वो और.

तुम उसके ख़िलाफ़ किसी को बहकाने वाले नहीं(23) {162}
(23) गुमराह नहीं कर सकते.

मगर उसे जो भड़कती आग में जाने वाला है(24){163}
(24) जिसकी क़िस्मत ही में यह है कि वह अपने बुरे चरित्र से जहन्नम का मुस्तहिक़ हो.

और फ़रिश्ते कहते हैं हम में हर एक का एक जाना हुआ मक़ाम है(25) {164}
(25) जिसमें अपने रब की इबादत करता है. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि आसमानों में बालिश्त भर भी जगह ऐसी नहीं है जिसमें कोई फ़रिश्ता नमाज़ नहीं पढ़ता हो या तस्बीह न करता हो.

और बेशक हम पर फैलाए हुक्म के मुन्तज़िर (प्रतीक्षा में) हैं{165} और बेशक हम उसकी तस्बीह करने वाले हैं {166} और बेशक वो कहते थे (26) {167}
(26) यानी मक्कए मुकर्रमा के काफ़िर और मुश्रिक सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के तशरीफ़ लाने से पहले कहा करते थे कि—

अगर हमारे पास अगलों की कोई नसीहत होती (27) {168}
(27) कोई किताब मिलती.

तो ज़रूर हम अल्लाह के चुने हुए बन्दे होते (28) {169}
(28) उसकी इताअत करते और इख़लास के साथ इबादत बजा लाते फिर जब तमाम किताबों से अफ़ज़ल और बुज़ुर्गी वाली चमत्कारिक किताब उन्हें मिली यानी क़ुरआने मजीद उतरा.

तो उसके इन्कारी हुए तो बहुत जल्द जान लेंगे(29) {170}
(29) अपने कुफ़्र का अंजाम.

और बेशक हमारा कलाम गुज़र चुका है हमारे भेजे हुए बन्दों के लिये {171} कि बेशक उन्हीं की मदद होगी {172} और बेशक हमारा ही लश्कर (30)
(30) यानी ईमान वाले.

ग़ालिब आएगा {173} तो एक वक़्त तुम उनसे मुंह फेर लो(31) {174}
(31) जब तक कि तुम्हें उनके साथ क़िताल यानी जंग करने का हुक्म दिया जाए.

और उन्हे देखते रहो कि बहुत जल्द वो देखेंगे(32) {175}
(32) तरह तरह के अज़ाब दुनिया और आख़िरत में. जब यह आयत नाज़िल हुई तो काफ़िरों ने मज़ाक उड़ाने के अन्दाज़ में कहा कि यह अज़ाब कब नाज़िल होगा. इसके जवाब में अगली आयत उतरी.

तो क्या हमारे अज़ाब की जल्दी करते हैं {176} फिर जब उतरेगा उनके आंगन में तो डराए गयों की क्या ही बुरी सुब्ह होगी {177} और एक वक़्त तक उनसे मुंह फेर लो {178} और इन्तिज़ार करो कि वो बहुत जल्द देखेंगे {179} पाकी है तुम्हारे रब को इज़्ज़त वाले रब को उनकी बातों से (33) {180}
(33) जो काफ़िर उसकी शान में कहते हैं और उसके लिये शरीक और औलाद ठहराते हैं.

और सलाम है पैग़म्बरों पर(34) {181} और सब ख़ूबियाँ अल्लाह को जो सारे जगत का रब है {182}
(34) जिन्होंने अल्लाह तआला की तरफ़ से तौहीद और शरीअत के अहकाम पहुंचाए. इन्सानी दर्जों में सब से ऊंचा दर्जा यह है कि ख़ुद कामिल हो और दूसरों की तकमील करे. यह नबियों की शान है, तो हर एक पर उन हज़रात का अनुकरण और उन्हें मानना लाज़िम है.

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