Ye Chije Kabhi Fana Nahi Hogi

Ye Chije Kabhi Fana Nahi Hogi

 7 चीज़ें फ़ना नहीं होंगी

1. अर्श 2. कुर्सी 3. लौह 4. क़लम
5. रूह 6. जन्नत 7. दोज़ख

Table of Contents

📕 शराहुस सुदूर,सफह 133

अर्श

अर्श मख़लूक़ात में सबसे बड़ा जिस्म है जो कि हरकत व सुक़ून क़ुबूल करता है

📕 मवाहिबुल लदुनिया,जिल्द 1,सफह 118

सातों ज़मीन और आसमान कुर्सी के सामने ऐसे हैं जैसे कि एक बहुत बड़े मैदान में छोटा सा छल्ला पड़ा हो उसी तरह कुर्सी अर्श के सामने ऐसे ही है जैसे कि एक बहुत बड़े मैदान में छोटा सा छल्ला

📕 अलमलफ़ूज़,हिस्सा 4,सफह 64

अर्श को उठाने वाले 4 फ़रिश्ते علیہ السلام हैं जिनके पंजों से घुटनों तक का फासला 500 साल की राह है

📕 ख़ाज़िन,जिल्द 7,सफह 120

कुर्सी

कुर्सी सातवीं ज़मीन के ऊपर है जिसे 4 फ़रिश्ते علیہ السلام उठाये हुए हैं और उसके ऊपर अर्श है

📕 तफ़सीरे सावी,जिल्द 1,सफह 107

अर्श के उठाने वाले फरिश्तों علیہ السلام और कुर्सी के उठाने वाले फरिश्तों علیہ السلام के बीच 70 हिजाब तारीकी के और 70 हिजाब नूर के हैं और हर हिजाब की मोटाई 500 साल की राह है अगर ऐसा न होता तो कुर्सी के उठाने वाले फ़रिश्ते علیہ السلام
अर्श के उठाने वाले फरिश्तों علیہ السلام के नूर से जल जाते

📕 ख़ाज़िन,जिल्द 7,सफह 228

लौहे महफूज़

लौह सफ़ेद मोती से बना हुआ है अर्श से मिला हुआ उसकी दाहिनी तरफ़ से ऊपर का हिस्सा है और जिसका नीचे का हिस्सा एक फ़रिश्ते علیہ السلام की गोद में है, लौह को लौह इसलिये कहते हैं कि वो ज़्यादती व नुकसान व शैतान के तसर्रुफ़ से पाक है

📕 ख़ाज़िन,जिल्द 7,सफह 193

लौहे महफूज़ में लिखा हुआ क़ुरान का हर हुरूफ़ कोहे क़ाफ़ के जितना बड़ा है और उसके नीचे उसका माअना भी दर्ज है

📕 अलइतकान,जिल्द 1,सफह 58

लौह का इल्म अल्लाह ﷻ के सिवा उसके दिये से उसके
रसूलों علیہ السلام को और उसके वालियों  رضي الله عنه को भी है

📕 अलमलफ़ूज़,हिस्सा 1,सफह 66

लौह के बीचों बीच ये अलफ़ाज़ लिखे हैं जिनका तर्जुमा ये है कि अल्लाह ﷻ के सिवा कोई माबूद नहीं वो एक है उसका दीन इस्लाम है मुहम्मद ﷺ उसके बन्दे और रसूल ﷺ हैं,तो जो अल्लाह ﷻ पर ईमान लाएगा और उसके वादे की तस्दीक करेगा और उसके रसूलों علیہ السلام की पैरवी करेगा अल्लाह ﷻ उसे जन्नत में दाखिल करेगा

📕 हाशिया 9,जलालैन,सफह 496

क़लम

क़लम नूर का है इसकी लंबाई 500 साल की राह है सबसे पहले लौह पर बिसमिल्लाह शरीफ लिखा उसके बाद अल्लाह ﷻ की तौहीदो तारीफ़ लिखी फिर क़यामत तक जो कुछ होने वाला था सब लिख दिया,बाज़ रिवायतों में इसकी तादाद 12 आयी है जिनके अलग अलग नाम और मर्तबे हैं

📕 मदारेजुन नुबूव्वत,जिल्द 1,सफह 303

रूह

इसका सही इल्म तो अल्लाह ﷻ को ही है हां बाज़ किताबों में युं आता है कि रूह एक लतीफ़ जिस्म जो कि कसीफ़ जिस्मों के साथ मिली हुई है जैसे हरी लकड़ी में पानी

📕 शराहुस सुदूर,सफह 133

रूह के पैदा होने की कई रिवायत हैं आला हज़रत رضي الله عنه
जिस्म से 2000 साल पहले फरमाते हैं

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 65

इंसान के जिस्म में रूह बादशाह है जिसके 2 वज़ीर हैं एक नफ़्स जिसका मरकज़ नाफ़ के नीचे है और दूसरा क़ल्ब जिसका मरकज़ सीने के बाएं तरफ़ का वो हिस्सा जिसे दिल भी कहा जाता है

📕 अलमलफ़ूज़,हिस्सा 3,सफह 63

इंसान के अंदर 6 बार रूह दाखिल हुई या होगी

1. मीसाक के दिन दाखिल हुई जब अल्लाह ﷻ ने
आदम علیہ السلام की पुश्त से उनकी ज़ुर्रियत निकाली और सबसे अपनी रबूबियत का इक़रार लिया

2. जब हज़रत इब्राहीम علیہ السلام ने खानए काबा की तामीर की तो रब ﷻ के हुक्म पर आपने हज का एलान किया जिसे तमाम इन्सानों ने सुना जो पैदा नहीं हुए थे उन्हें भी मां के पेट में या बाप की पुश्त में थे उनमें भी रूह डालकर ये आवाज़ सुनवायी गयी

3.हज़रत मूसा علیہ السلام ने तौरेत शरीफ में उम्मते
मुहम्मदिया ﷺ का ज़िक्र पढ़ा तो आपने उनसे मुलाक़ात और उनकी आवाज़ें सुनने की ख्वाहिश जाहिर की तो रब ﷻ ने उम्मते मुहम्मदिया ﷺ की आवाज़ें उनके बापों की पुश्त में डालकर सुनवाई

4. मां के पेट में

5. क़ब्र में मुनकर नकीर علیہ السلام के सवालात के वक़्त

6. मैदाने महशर में

📕 तफ़सीरे अज़ीज़ी,सूरह बक़र,सफह 407
📕 तफ़सीरे नईमी,पारा 9,सफह 386

हर इंसान के जिस्म में 2 रूह होती है एक रूहे यक़्ज़ा यानि रूहे सैलानी जो कि नींद की हालत में निकल जाती है और घूमती फिरती है जिससे की हम ख्वाब देखते हैं और दूसरी रुहे हयात यानि रूहे सुल्तानी ये मौत के वक़्त निकलती है

📕 तफ़सीरे सावी,जिल्द 2,सफह 18

मरने के बाद मुसलमान की कुछ की रूहें क़ब्र पर कुछ की चाह ज़म-ज़म पर कुछ की आसमान व ज़मीन के बीच कुछ की इल्लीन में कुछ की सब्ज़ परिंदों में अर्श के नीचे और कुछ की जन्नत में हज़रत इब्राहीम علیہ السلام व हज़रते सारह की निगरानी में रहती हैं और काफ़िरों में कुछ की रूहें वादिये बरहूत के कुएं में कुछ की मरघट पर कुछ की सातों ज़मीन के नीचे तक कुछ की सिज्जीन में और कुछ की हज़रे मौत पर

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 4,सफह 125

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