तूफा़ने नूह علیہ السلام और एक बूढी औरत
हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने बहुक्मे इलाही जब कश्ती बनाना शुरु की तो एक मोमिन बुढिया ने हज़रत नूह अलैहिस्सलाम से पूछा कि आप यह कश्ती क्यों बना रहे हो…?
आपने फ़रमाया बडी बहन!…एक बहुत बड़ा पानी का तूफान आने वाला है जिसमें सब काफिर हलाक हो जायेंगे… मोमिन इस कश्ती के ज़रिये बच जायंगे…।
बुढिया ने अर्ज़ किया: हुजूर! जब तूफान आने वाला हो तो मुझे ख़बर कर दीजियेगा ताकि मैं भी कश्ती पर सवार हो जाऊँ… बुढिया की झोंपडी शहर के बाहर कुछ फा़ंसले पर थी… फिर जब तूफान का वक़्त आया तो हज़रत नूह अलैहिस्सलाम दूसरे लोगों को कश्ती पर चढाने में मश्गूल हो गये और उस बुढिया का ख्याल न रहा… हत्ता के खुदा का हौलनाक अजा़ब पानी के तूफान की शक्ल में आया और रुए ज़मीन के सब काफिर हलाक हो गये…।
जब यह अज़ाब थम गया और पानी रुक गया…कश्ती वाले कश्ती से उतरे तो वह बुढिया नूह अलैहिस्सलाम के पास हाजिर हुई और कहने लगी हज़रत! वह पानी का तूफान कब आयेगा…? मैं हर रोज़ इस इंतजार में हूं की कब आप कश्ती में सवार होने के लिए हुक्म फ़रमा दें…।
हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया, बडी बहन! तूफान तो आ भी चुका और काफ़िर सब हलक भी हो चुके… कश्ती के ज़रिये खुदा ने अपने मोमिन बंदो को बचा लिया… मगर तअज्जुब है कि तुम कैसे जिन्दा बच गईं…।
अर्ज़_किया : अच्छा यह बात है तो फिर उसी खुदा ने जिसने आपको कश्ती के ज़रिये बचा लिया मुझे मेरी टूटी फूटी झोपडी ही के ज़रिये बचा लिया…।
( रुहुल_ब्यान_जिल्द_२,_सफा ८५ )
जो खुदा का हो जाए ख़ुदा हर हाल में उसकी मदद फ़रमाता है और बगै़र किसी जा़हिर के उसके काम हो जाते हैं…।