Tayammum Ka Tariqa

Tayammum Ka Tariqa

Table of Contents

तयम्मुम का तरीक़ा

जिस शख़्स का वुज़ू न हो या नहाने की ज़रूरत हो और पानी हासिल न कर सकता हो या पानी का इस्तेमाल नुक़सान करता हो तो वुज़ू और ग़ुस्ल की जगह तयम्मुम कर सकता है। तयम्मुम के बारे में ज़रूरी जानकारी इस तरह है।  

🎁 Ghusl Ka Tarika

 

तयम्मुम किन सूरतों में करना जाइज़ है ?

तयम्मुम इन सूरतों में करना जाइज़ है-

  1. ऐसी बीमारी जिसका वुज़ू या ग़ुस्ल करने से बढ़ने या देर में अच्छा होने का सही अन्देशा हो, चाहे उसने ख़ुद आज़माया हो या किसी मुसलमान अच्छे क़ाबिल परहेज़गार हकीम/डाक्टर ने पानी के इस्तेमाल को मना किया हो। अगर बीमारी़ बढ़ने का सिर्फ़ ख़्याल या किसी ग़ैर मुस्लिम या फ़ासिक़ (गुनाहों का आदी) या मामूली हकीम/डाक्टर ने मना किया हो तो ऐसी सूरत में तयम्मुम जाइज़ नहीं।
  2. अगर पानी से बीमारी को नुक़सान नहीं पहुँचता, मगर वुज़ू या ग़ुस्ल के लिये उठ नहीं सकता और कोई ऐसा भी नहीं जो वुज़ू करा दे तो तयम्मुम कर सकता है।
  3. बीमारी में अगर ठंडा पानी नुक़सान करता है और गर्म पानी से नुक़सान न हो तो गर्म पानी से वुज़ू और ग़ुस्ल ज़रूरी है तयम्मुम जाइज़ नहीं। लेकिन अगर गर्म पानी न मिल सके तो तयम्मुम जाइज़ है।
  4. अगर एक मील तक पानी मौजूद नहीं हो तब भी तयम्मुम कर सकता है।
  5. अगर यह गुमान हो कि एक मील के अन्दर पानी होगा तो तलाश करना ज़रूरी है बिना तलाश किये तयम्मुम जाइज़ नहीं फिर बग़ैर तलाश किये तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ ली और बाद में पानी मिल गया तो वुज़ू कर के नमाज़ का लौटाना ज़रूरी है और अगर न मिला तो नमाज़ हो गई।
  6. अगर ज़्यादा गुमान यह है कि एक मील के अन्दर पानी नहीं है तो तलाश करना ज़रूरी नहीं फिर अगर तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ ली और तलाश न किया और न कोई ऐसा है जिससे पूछे और बाद में मालूम हुआ कि पानी यहाँ से क़रीब है तो नमाज़ लौटाने की ज़रूरत नहीं मगर यह तयम्मुम अब जाता रहा और अगर कोई वहाँ था मगर उससे पूछा नहीं और बाद में पता चला कि पानी क़रीब है तो नमाज़ लौटाई जायेगी।
  7. ज़म-ज़म शरीफ़़ जो लोगों के लिये तबर्रुक या बीमार को पिलाने के लिये लेकर जा रहे हैं और इतना है कि वुज़ू हो जायेगा तो तयम्मुम जाइज़ नहीं।
  8. इतनी सर्दी हो कि नहाने से मर जाने या बीमार होने का सख़्त ख़तरा हो तो तयम्मुम जाइज़ है।
  9. दुश्मन, डाकू, बदमाश, साँप या किसी दरिन्दे जैसे शेर वग़ैरा (जिनसे जान, माल और इज़्ज़त या आबरू का ख़तरा हो) के डर से पानी तक नहीं पहुँच सकते तो तयम्मुम जाइज़ है।
  10. क़ैदी को जेलख़ाने वाले वुज़ू नहीं करने देते तो तयम्मुम करके पढ़ ले और रिहा होने पर नमाज़ दोहराये।
  11. अगर जंगल में कुँआ हो मगर डोल रस्सी नहीं कि पानी भरे तो तयम्मुम जाइज़ है।
  12. प्यास के डर से यानि किसी शख़्स के पास पानी है मगर वुज़ू या ग़ुस्ल करेगा तो ख़ुद या मुसलमान साथी या साथ का जानवर चाहे कुत्ता हो जिसका पालना जाइज़ है प्यासा रह जायेगा तो तयम्मुम जाइज़ है।
  13. पानी मौजूद है मगर आटा गूंधने की ज़रूरत है जब भी तयम्मुम जाइज़ है और शोरबे की ज़रूरत के लिये तयम्मुम जाइज़ नहीं।
  14. पानी मोल मिलता है मगर बहुत मंहगा है यानि वहाँ की आम क़ीमत से दुगुना हो या ख़रीदने लायक़ पैसे नहीं हों तो तयम्मुम जाइज़ है।
  15. पानी तलाश करने में साथियों के आगे निकल जाने का या रेल/बस छूट जाने का ग़ालिब गुमान हो तो तयम्मुम जाइज़ है।
  16. यह ख़तरा हो कि नहाने से ईद की नमाज़ जाती रहेगी चाहे इस तरह कि इमाम नमाज़ पढ़ कर फ़ारिग़ हो जायेगा या ज़वाल का वक़्त आ जायेगा तो इन दोनों सूरतों में तयम्मुम जाइज़ है।
  17. कोई आदमी वुज़ू कर के ईद या बक़रईद की नमाज़ पढ़ रहा था कि नमाज़ के बीच उसका वुज़ू टूट गया तो अगर वुज़ू करेगा तो नमाज़ का वक़्त जाता रहेगा या जमाअत हो चुकेगी तो तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ ले।
  18. वुज़ू करने से ज़ुहर या मग़रिब या इशा या जुमे की पिछली सुन्नतों का या चाश्त की नमाज़ का वक़्त जाता रहेगा तो तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ ले।
  19. ग़ैरे वली को जनाज़े की नमाज़ छूट जाने का ख़ौफ़ हो तो तयम्मुम जाइज़ है, वली को नहीं कि उसका लोग इंतज़ार करेंगे और लोग बिना उसकी इजाज़त के पढ़ भी लें तो यह दोबारा पढ़ सकता है।
  20. सलाम का जवाब देने, दुरूद शरीफ़़ पढ़ने, दूसरे वज़ीफ़ों के पढ़ने, सोने, बेवुज़ू को मस्जिद में जाने या ज़बानी क़ुरआन शरीफ़़ पढ़ने के लिये तयम्मुम जाइज़ है चाहे पानी हासिल कर सकता हो।
  21. कोई मस्जिद में सोया और नहाने की ज़रूरत हो गई तो आँख खुलते ही जहाँ सोया था वहीं फ़ौरन तयम्मुम करके निकल आये नापाकी की हालत में वहाँ ठहरना हराम है।
  22. वक़्त इतना कम है कि वुज़ू या ग़ुस्ल करेगा तो नमाज़ क़ज़ा हो जायेगी तो तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ ले और फिर वुज़ू या ग़ुस्ल करके नमाज़ का दोहराना लाज़िम है।
  23. अगर कोई ऐसी जगह है कि न पानी मिलता है और न पाक मिट्टी कि वुज़ू या तयम्मुम कर सके तो उसे चाहिये कि नमाज़ के वक़्त में नमाज़ी की तरह सूरत बनाये यानि नमाज़ की तमाम हरकतें बिना नमाज़ की नीयत से अदा कर ले।

तयम्मुम का हुक्म

अल्लाह तआला क़ुरआन पाक में फ़रमाता हैः-

وَ اِنۡ کُنۡتُمۡ مَّرْضٰۤی اَوْ عَلٰی سَفَرٍ اَوْجَآءَ اَحَدٌ مِّنۡکُمۡ مِّنَ الْغَآئِطِ اَوْ لٰمَسْتُمُ النِّسَآءَ

فَلَمْ تَجِدُوۡا مَآءً فَتَیَمَّمُوۡا صَعِیۡدًا طَیِّبًا فَامْسَحُوۡا بِوُجُوۡہِکُمْ وَاَیۡدِیۡکُمۡ مِّنْہُ

(और अगर तुम बीमार या सफ़र में हो या तुम में कोई रफ़ा-ए-हाजित (Toilet) से आया या तुमने औरतों से सोहबत की और इन सूरतों में पानी न पाया तो पाक मिट्टी से तयम्मुम करो तो अपने मुँह और हाथों का उससे मसह करो)

(सूरह अलमाइदा, आयत-6)

क़ुरआन पाक में दिये गये अल्लाह ﷻ के इस हुक्म के मुताबिक़ जिस शख़्स का वुज़ू न हो या नहाने की ज़रूरत हो और पानी हासिल न कर सकता हो या पानी का इस्तेमाल नुक़सान करता हो तो वुज़ू और ग़ुस्ल की जगह तयम्मुम कर सकता है।

 

तयम्मुम के फ़र्ज़

तयम्मुम में तीन फ़र्ज़ हैं।

  1. नीयत करना।
  2. सारे मुँह पर हाथ फेरना।
  3. दोनों हाथों का कुहनियों समेत मसह करना।

तयम्मुम का तरीक़ा

वुज़ू और ग़ुस्ल दोनों का तयम्मुम का तरीक़ा एक ही है।

  1. सबसे पहले दिल में यह इरादा करे कि वुज़ू या ग़ुस्ल (जो भी ज़रूरी है) की पाकी हासिल करने के लिये तयम्मुम करता हूँ।
  2. फिर दोनों हाथ की उंगलियाँ फैला कर हथेलियों की तरफ़ से पाक ज़मीन पर या किसी ऐसी चीज़ पर जो ज़मीन की क़िस्म से हो, मार कर सारे मुँह पर मल लें।
  3. अब फिर दोबारा इसी तरह ज़मीन पर हाथ मारकर दोनों हाथों के नाख़़ून से कोहनियों तक मसह करे।

 

🎁 ग़ुस्ल करने का तरीका हिंदी में

 

तयम्मुम के कुछ ज़रूरी मसाइल

तयम्मुम के कुछ ज़रूरी मसाइल इस तरह हैं-

  1. नीयत नहीं की तो तयम्मुम नहीं होगा ।
  2. नमाज़ उस तयम्मुम से जाइज़ होगी जो या तो ख़ास नमाज़ पढ़ने की नीयत से किया हो या किसी ऐसी इबादत के लिये किया गया हो जो बिना पाकी के जाइज़ नहीं।
  3. जिस पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ है वह क़ुरआन मजीद पढ़ने के लिये तयम्मुम करे तो उससे नमाज़ पढ़ सकता है और अगर किसी ने सजदा-ए-शुक्र की नीयत से तयम्मुम किया तो उससे नमाज़ नहीं होगी।
  4. जिस पर नहाना फ़र्ज़ है उसे यह ज़रूरी नहीं कि ग़ुस्ल और वुज़ू दोनों के लिये दो तयम्मुम करे बल्कि एक ही में दोनों की नीयत कर ले दोनों हो जायेंगे।
  5. सारे मुँह पर इस तरह हाथ फेरा जाये कि तयम्मुम की जगह का कोई हिस्सा बाक़ी न रह जाये अगर बाल बराबर भी कोई जगह रह गई तो तयम्मुम नहीं होगा।
  6. दाढ़ी, मूँछों और भँवों के बालों पर हाथ फेरना ज़रूरी है। मुँह की हद वुज़ू के बयान में बता दी गई है । भँवों और आँखों के बीच की जगह और नाक के निचले हिस्से का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है, अगर उन पर हाथ नहीं फिरा तो तयम्मुम नहीं होगा।
  7. अगर औरत नाक में फूल या नथनी पहने हो तो उसे उतार ले नहीं तो वह जगह बाक़ी रह जायेगी और तयम्मुम नहीं होगा।
  8. नथनों के अन्दर मसह ज़रूरी नहीं ।
  9. होंठ का वह हिस्सा जो मुँह बंद होने की हालत में दिखाई देता है उस पर भी हाथ फेरना ज़रूरी है अगर मसह करते वक़्त होंठों को ज़ोर से दबा लिया कि कुछ हिस्सा बाक़ी रह गया तो तयम्मुम नहीं होगा ऐसे ही अगर ज़ोर से आँखें बन्द कर ले जब भी तयम्मुम नहीं होगा।
  10. मूँछ के बाल ज़्यादा बढ़े हुए हों कि होंठ छिप गया तो उन बालों को उठा कर होंठ पर हाथ फेरना ज़रूरी है।
  11. यह भी ध्यान रखना ज़रूरी हे कि दोनों हाथों में बाल बराबर कोई जगह बाक़ी न रहे नहीं तो तयम्मुम नहीं होगा।
  12. अंगूठी या छल्ले पहने हो तो उन्हें उतार कर उनके नीचे हाथ फेरना फ़र्ज़ है। औरतों को इसमें ध्यान देना चाहिये कंगन, चूड़ियाँ, और जितने ज़ेवर औरत हाथ में पहने हों सब को हटाकर या उतार कर मसह करें।
  13. एक ही बार हाथ मार कर मुँह और हाथों पर मसह कर लिया तो तयम्मुम नहीं हुआ।

 

कौनसी चीज़ों से तयम्मुम जाइज़ है ?

🎁 Namaz Ka Tarika

वह चीज़ें जिनसे तयम्मुम जाइज़ है और जिनसे नहीं

  1. तयम्मुम उसी चीज़ से हो सकता है जो ज़मीन की क़िस्म से हो और जो चीज़ ज़मीन की क़िस्म से नहीं उससे तयम्मुम जाइज़ नहीं।
  2. जिस मिट्टी से तयम्मुम किया जाये उसका पाक होना ज़रूरी है।
  3. किसी चीज़ पर निजासत गिरी और सूख गई उस से तयम्मुम नहीं कर सकते चाहे निजासत का असर बाक़ी न हो।
  4. जो चीज़ आग से जल कर न राख होती है, न पिघलती है, न नर्म होती है वह ज़मीन की क़िस्म से है, उससे तयम्मुम जाइज़ है जैसे रेत, चूना, गेरू, पत्थर, अक़ीक़, और ज़मुर्रद वग़ैरा जवाहरात से तयम्मुम जाइज़ है चाहे उन पर धूल न हो।
  5. जो चीज़ आग से जल कर राख हो जाती हो जैसे लकड़ी, घास आदि या पिघल जाती हो या नर्म हो जाती हो जैसे चाँदी, सोना, ताँबा, पीतल, लोहा वग़ैरा धातें, वह ज़मीन की क़िस्म से नहीं उससे तयम्मुम जाइज़ नहीं।
  6. ज़मीन या पत्थर जल कर राख भी हो जायें तो उससे तयम्मुम जाइज़ है।
  7. जिस जगह से एक ने तयम्मुम किया दूसरा भी वहीं से तयम्मुम कर सकता है और यह जो मशहूर है कि मस्जिद की दीवार या ज़मीन से तयम्मुम नाजाइज़ या मकरूह है यह ग़लत है।

 

तयम्मुम किन चीज़ों से टूटता है

  1. जिन चीज़ों से वुज़ू टूटता है या नहाना वाजिब होता है उन से तयम्मुम भी जाता रहेगा और उनके अलावा पानी मिल जाने से भी तयम्मुम टूट जायेगा।
  2. मरीज़ ने ग़ुस्ल का तयम्मुम किया था और अब इतना तंदरुस्त हो गया कि नहाने से नुक़सान न पहुँचेगा तो ऐसी हालत में तयम्मुम टूट जायेगा।
  3. जिस हालत में तयम्मुम नाजाइज़ था अगर वह हालत तयम्मुम के बाद पाई गई तो तयम्मुम टूट जायेगा जैसे तयम्मुम वाले का ऐसी जगह गुज़र हुआ कि वहाँ से एक मील के अन्दर पानी है तो तयम्मुम जाता रहेगा यह ज़रूरी नहीं कि वह पानी के पास ही पहुँच जाये।

मोज़ों पर मसह का बयान

जो शख़्स मोज़ा पहने हुए हो उसे वुज़ू में पाँव धोने के बजाय मसह करना जाइज़ है लेकिन पाँव का धोना बेहतर है, इसका मतलब यह नहीं कि मसह के जाइज़ होने में कोई शक करे। मोज़ों पर मसह के जाइज़ होने के बारे में बहुत हदीसें हैं। मोज़ों पर मसह औरतों को भी जाइज़ है लेकिन जिस पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो वह मोज़ों पर मसह नहीं कर सकता।

मसह करने के लिये कुछ शर्ते हैं जो इस तरह हैं।

  1. मोज़े ऐसे हों कि टख़ने छिप जायें इससे ज़्यादा होने की ज़रूरत नहीं और अगर थोड़ा कम हों जब भी मसह सही है लेकिन एड़ी नहीं खुलनी चाहिये।
  2. मोज़ा पाँव से चिपटा हो ताकि उसको पहन कर आसानी से चल फिर सकें।
  3. मोज़ा चमड़े का होना चाहिये अगर सिर्फ़ तला चमड़े का हो और बाक़ी किसी और मोटी चीज़ का जैसे रैकसीन वग़ैरा तब भी सही है।

मोज़ों पर मसह के मसाइल

जो शख़्स मोज़ा पहने हुए हो उसे वुज़ू में पाँव धोने के बजाय मसह करना जाइज़ है लेकिन पाँव का धोना बेहतर है, इसका मतलब यह नहीं कि मसह के जाइज़ होने में कोई शक करे। मोज़ों पर मसह के जाइज़ होने के बारे में बहुत हदीसें हैं। मोज़ों पर मसह औरतों को भी जाइज़ है लेकिन जिस पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो वह मोज़ों पर मसह नहीं कर सकता।

मसह करने के लिये कुछ शर्ते हैं जो इस तरह हैं।

  1. आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले सूती, ऊनी या नायलान के मोज़ो पर मसह जाइज़ नहीं, उनको उतार कर पाँव धोना फ़र्ज़ है।
  2. मोज़ा वुज़ू कर के पहना हो अगर बे वुज़ू पहना तो मसह जाइज़ नहीं।
  3. जिस पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो और उसके लिये तयम्मुम किया और वुज़ू करके मोज़ा पहना तो मसह कर सकता है मगर जब जनाबत का तयम्मुम जाता रहा तो अब मसह जाइज़ नहीं।
  4. मोज़ों पर मसह करने की मुद्दत (Duration) मुक़ीम (रहने वाला) के लिये एक दिन और एक रात और मुसाफि़र के लिये तीन दिन और तीन रातें हैं।
  5. मोज़ा पहनने के बाद पहली बार जो हदस (यानि वह अमल जिससे वुज़ू ज़रूरी हो जाता है) हुआ उस वक़्त से मुद्दत मानी जायेगी जैसे सुबह के वक़्त मोज़ा पहना और ज़ुहर के वक़्त पहली बार हदस हुआ तो मुक़ीम दूसरे दिन की ज़ुहर तक जब भी वुज़ू करे पाँव धोने के बजाये मोज़ों पर मसह कर सकता है और मुसाफि़र चौथे दिन की ज़ुहर तक।
  6. अगर मोज़ा फटा हुआ या सिलाई खुली हुई हो तो वह पाँव की छोटी तीन उंगलियों के बराबर या उससे ज़्यादा फटा न हो वरना उस पर मसह जाइज़ नहीं।

मोज़ों पर मसह करने का तरीक़ा

  1. हाथ पानी से तर कर लें। उंगलियों का तर होना ज़रूरी है हाथ धोने के बाद जो तरी बाक़ी रह गई उससे मसह जाइज़ है मगर सिर का मसह करने के बाद हाथ में जो तरी मौजूद है उस से मसह जाइज़ नहीं।
  2. अब दाहिने हाथ की तीन उंगलियाँ दाहिने पाँव के ऊपरी हिस्से पर रखकर उंगलियों की तरफ़ से पिंडली की तरफ़ कम से कम तीन उंगलियों के बराबर फेरें मगर पिंडली तक फेरना सुन्नत है।
  3. फिर बायें हाथ की तीन उंगलियाँ बायें पाँव के ऊपरी हिस्से पर रखकर उंगलियों की तरफ़ से पिंडली की तरफ़ कम से कम तीन उंगलियों के बराबर फेरें ।

मसह में दो फ़र्ज़ हैं

  1. हर मोज़े का मसह हाथ की छोटी तीन उंगलियों के बराबर होना।
  2. मसह मोज़े की पीठ यानि पाँव के ऊपरी हिस्से पर होना चाहिये।

मसह किन चीज़ों से टूटता है

  1. जिन चीज़ों से वुज़ू टूटता है उनसे मसह भी जाता रहता है।
  2. मुद्दत पूरी हो जाने से मसह जाता रहता है और इस सूरत में अगर वुज़ू है तो सिर्फ़ पाँव धो लेना काफ़ी है फिर से पूरा वुज़ू करने की ज़रूरत नहीं और अच्छा यह है कि पूरा वुज़ू कर ले।
  3. मोज़े उतार देने से मसह टूट जाता है चाहे एक ही उतारा हो।
  4. ऐसे ही अगर एक पाँव आधे से ज़्यादा मोज़े से बाहर हो जाये तो मसह जाता रहता है।
  5. मोज़ा ढीला है कि चलने में मोज़े से एड़ी निकल जाती है तो मसह नहीं जाता। अगर उतारने की नीयत से बाहर की तो टूट जाता है।

 

🎁  Shab E Meraj Ki Nawafil Namaz

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