हुजूर की हुकूमत - Huzoor Ki Hukumat

हुजूर की हुकूमत – Huzoor Ki Hukumat

हुजूर की हुकूमत – Huzoor Ki Hukumat

सहाबा किराम मुश्किल के वक़्त हुजूर ही की बारगाह में फ़रियाद लेकर आते थे। उनका यकीन था कि हर मुश्किल यहीं हल होती है। वाकई वहीं हल होती रही है। इसी तरह आज भी हम हुजूर के मोहताज हैं। बग़ैर हुजूर के वसीला के हम अल्लाह से कुछ भी नहीं पा सकते।

बादलों पर हुजूर की हुकूमत

मदीना मुनव्वरा में एक मर्तबा बारिश नहीं हुई थी। कहत का-सा आलम था। लोग बड़े परेशान थे। एक जुमा के रोज़ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जबकि वअज फ़रमा रह थे, एक आराबी उठा और अर्ज़ करने लगा या रसूलल्लाह! माल हलाक हो गया और औलाद फाका करने लगी। दुआ फ़रमाइए बारिश हो ।

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसी वक़्त अपने प्यारे-प्यारे नूरानी हाथ उठाए। रावी का ब्यान है कि आसमान बिल्कुल साफ़ था, अब्र (बादल) का नाम व निशान तक न था। मगर मदनी सरकार के हाथ मुबारक उठे ही थे कि पहाड़ों की मानिंद अब्र छा गये और छाते ही मेंह बरसने लगा। हुजूर मिंबर पर ही तशरीफ़ फ़रमा थे कि मेंह शुरू हो गया इतना बरसा कि छत टपकने लगी। हुजूर की रेश अनवर से पानी के क़तरे गिरते हमने देखे। फिर यह मेंह बंद नहीं हुआ बल्कि हफ्ता को भी बरसता रहा। फिर अगले दिन भी और फिर उससे अगले दिन भी हत्ता कि लगातार अगले जुमा तक बरसता ही रहा।

हुजूर जब दूसरे जुमा का वअज फ़रमाने उठे तो वही आराबी जिसने पहले जुमा में बारिश न होने की तकलीफ़ अर्ज की थी उठा और अर्ज़ करने लगा या रसूलल्लाह ! अब तो माल गर्क होने लगा और मकान गिरने लगे। अब फिर हाथ उठाइए कि यह बारिश बंद भी हो। चुनांचे हुजूर ने फिर उसी वक्त अपने प्यारे-प्यारे नूरानी हाथ उठाए और अपनी उंगली मुबारक से इशारा फ़रमाकर दुआ फ़माई कि ऐ अल्लाह ! हमारे इर्द गिर्द बारिश हो, हम पर न हो, हुजूर का यह इशारा करना ही था कि जिस जिस तरफ हुजूर की उंगली गई उस तरफ़ से बादल फटता गया और मदीना मुनव्वरा के ऊपर सब आसमान साफ़ हो गया। (मिश्कात शरीफ, सफा 528)

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चांद पर हुजूर की हुकूमत

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दुशमनों ने बिलखुसूस अबू जहल ने एक मर्तबा हुजूर से कहा कि अगर तुम खुदा के रसूल हो तो आसमान पर जो चांद है उसके दो टुकड़े करके दिखाओ। हुजूर ने फ़रमायाः लो यह भी करके दिखा देता हूं। चुनांचे आपने चांद की तरफ अपनी उंगली मुबारक से इशारा फ़रमाया तो चांद के दो टुकड़े हो गये। यह देखकर अबू जहल हैरान हो गया। मगर बे-ईमान माना भी नहीं और हुजूर को जादूगर ही कहता रहा। (हुज्जतुल्लाह सफा 366 बुखारी शरीफ हिस्सा 2 सफा 271 )

सबक : हमारे हुजूर की हुकूमत चांद पर भी जारी है। बावजूद इतने बड़े इख़्तियार के बे-ईमान अफराद हुजूर के इख़्तियार व तसर्रफ को फिर भी नहीं मानते।



सूरज पर हुजूर की हुकूमत

एक रोज़ मकामे सहबा में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज जुहर अदा की और फिर हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को किसी काम के लिये रवाना फ़रमाया। हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के वापस आने तक हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज अस्र भी अदा फ़रमा ली। जब हज़रत अली वापस आये तो उनकी आगोश में अपना सर रखकर हुजूर सो गये।

हज़रत अली ने अभी तक नमाज़े अस्र अदा न की थी। उधर सूरज को देखा तो गुरूब होने वाला था। हज़रत अली सोचने लगे। इधर रसूले ख़ुदा आराम फ़रमा हैं और उधर नमाज़े ख़ुदा का वक्त हो रहा है। रसूले खुदा का ख्याल रखूं तो नमाज जाती है और नमाज़ का ख्याल करूं तो रसूले खुदा की नींद में खलल वाके होता है। करूं तो क्या करूं? आखिर मौला अली शेरे खुदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने फैसला किया कि नमाज को कजा होने दो मगर हुजूर की नींद मुबारक में खलल न आए। चुनांचे सूरज डूब गया और अस्र का वक्त जाता रहा।

हुजूर उठे तो हज़रत अली को मगमूम देखकर वजह दर्याफ़्त की तो हज़रत अली ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ! मैंने आपकी इस्तिराहत के पेशे नजर अभी तक नमाजे अस्र नहीं पढ़ी। सूरज गुरूब हो गया है। हुजूर ने फरमाया : तो गम किस बात का? लो! अभी सूरज वापस आता है। फिर उसी मकाम पर आकर रुकता है जहां वक्ते अस्र होता । चुनांचे हुजूर ने दुआ फ़रमाई तो गुरूब-शुदा सूरज फिर निकला और उल्टे कदम उसी जगह आकर ठहर गया जहां अस्र का वक्त होता है। हज़रत अली ने उठकर अस्र की नमाज़ पढ़ी तो सूरज गुरूब हो गया। (हुज्जतुल्लाह अलल-आलमीन सफा 368 )

सबक: हमारे हुजूर की हुकूमत सूरज पर भी जारी है। आप काइनात के हर ज़र्रा के हाकिम व मुख्तार हैं। आप जैसा न कोई हुआ न होगा और न हो सकता है।

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ज़मीन पर हुजूर की हुकूमत

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत सिद्दीक अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु की मइय्यत में जब मक्का से हिजरत फ़माई तो कुरैशे मक्का ने एलान किया कि जो कोई मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) और उसके साथी (सिद्दीक अकबर रज़ियल्लाहु अन्हु) को गिरफ़्तार करके लायेगा उसे सौ ऊंट इनाम में दिये जायेंगे! सुराका बिन जअशम ने यह एलान सुना तो अपना तेज़ रफ़्तार घोड़ा निकाला और उस पर बैठकर कहने लगा कि मेरा यह तेज़ रफ़्तार घोड़ा मुहम्मद और अबू-बक्र का पीछा कर लेगा। मैं अभी उन दोनों को पकड़ कर लाता हूं चुनांचे उसने अपने घोड़े को दौड़ाया। थोड़ी देर में हुजूर के करीब पहुंच गया।

सिद्दीक़ अकबर ने जब देखा कि सुराका घोड़े पर सवार हमारे पीछे आ रहा है। हम तक पहुंचने ही वाला है। तो अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ! सुराका ने हमें देख लिया है और वह देखिए हमारे पीछे आ रहा है। हुजूर ने फ़रमाया: ऐ सिद्दीक़ ! कोई फिक्र न करो अल्लाह हमारे साथ है। इतने में सुराका बिल्कुल करीब आ पहुंचा तो हुजूर ने दुआ फ़रमाई। ज़मीन ने फौरन सुराका के घोड़े को पकड़ लिया और उसके चारों पैर पेट तक ज़मीन में धंस गए। सुराका यह मंज़र देखकर घबराया और अर्ज़ करने लगा-या मुहम्मद! मुझे और मेरे घोड़े को इस मुसीबत से नजात दिलाइए ।

मैं आपसे वादा करता हूं कि मैं पीछे मुड़ जाऊंगा। जो कोई आपका पीछा करता हुआ आपकी तलाश में इधर आ रहा होगा उसे भी वापस ले जाऊंगा । आप तक न आने दूंगा चुनांचे हुजूर के हुक्म से ज़मीन ने उसे छोड़ दिया ।

सबक: हमारे हुजूर का हुक्म व फ़रमान ज़मीन पर भी जारी है और काइनात की हर चीज़ अल्लाह ने हुजूर के ताबे कर दिया है। फिर जिस शख़्स की अपनी बीवी भी उसकी ताबे न हो वह अगर हुजूर की मिस्ल बनने लगे तो वह किस कद्र अहमक व बेवकूफ़ है ।



दरख्तों पर हुजूर की हुकूमत

एक मर्तबा एक आराबी ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहा- ‘ऐ मुहम्मद! अगर आप अल्लाह के रसूल हैं तो कोई निशानी दिखाइए । हुजूर ने फ़रमाया: अच्छा तो देखो! वह जो सामने दरख्त खड़ा है उसे जाकर इतना कह दो कि तुम्हें अल्लाह का रसूल बुलाता है। चुनांचे वह आराबी उस दरख्त के पास गया और उससे कहा, तुम्हें अल्लाह का रसूल बुलाता है। वह दरख़्त यह बात सुनकर अपने आगे पीछे और दायें बायें पीछे गिरा और अपनी जड़ें ज़मीन से उखाड़कर ज़मीन पर चलते हुए हुजूर की खिदमत में हाज़िर हो गया। अर्ज़ करने लगा अस्सलामु अलैकुम या रसूलल्लाह ! वह आराबी हुजूर से कहने लगा अब इसे हुक्म दीजिये कि यह फिर अपनी जगह पर चला जाये। चुनांचे हुजूर ने उससे फ़रमाया कि जाओ। वापस चले जाओ। वह दरख्त यह सुनकर पीछे मुड़ गया और अपनी जगह जाकर कायम हो गया।

आराबी यह मोजिज़ा देखकर मुसलमान हो गया और हुजूर को सज्दा करने की इजाज़त चाही। हुजूर ने फ़रमाया सज्दा करना जायज़ नहीं। फिर उसने हुजूर के हाथ पैर मुबारक चूमने की इजाजत चाही तो हुजूर ने फ़रमाया हां! यह बात जायज़ है। उसने हुजूर के हाथ और पैर मुबारक चूम लिये | (हुज्जतुलल्लाहु अलल – आलमीन, सफा 441)

सबक: हमारे हुजूर का हुक्म दरख्तों पर भी जारी है। यह भी मालूम हुआ कि बुजुर्गों के हाथ पैर चूमने जायज़ हैं। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इससे मना नहीं फ़रमाया ।

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