बीमारी और मुसीबत के वक्त सब्र

बीमारी और मुसीबत के वक्त सब्र

बीमारी और मुसीबत के वक्त सब्र करने वालों को अल्लाह महबूब रखता है

जो शख्स यह चाहता है कि वह अज़ाबे इलाही से छूट जाए. सवाब व रहमत को पाले और जन्नती होजाये उसे चाहिए कि वह अपने आप को दुनियावी ख़्वाहिशात से रोके और दुनिया की तकलीफ व परेशानियों पर सब्र करे। जैसा कि अल्लाह का फ़रमान है।

अल्लाह सब्र करने वालों को महबूब रखता है।

सब्र की किस्में

सब्र की कई किस्में हैं:- अल्लाह की इताअत पर सब्र करना, हराम चीज़ों से रुक जाना, तकलीफों पर सब्र करना और पहले सदमा पर सब्र करना वगैरह ।

जो शख्स अल्लाह की इबादत पर सब्र करता है और हर वक़्त इबादत में डूबा रहता है उसे कियामत के दिन अल्लाह तआला तीन सौ ऐसे दर्जात अता करेगा जिन में हर दर्जा का फासिला (दूरी) जमीन व आसमान के फासिले के बराबर होगा, जो अल्लाह तआला की हराम की हुई चीज़ों से सब्र करता है उसे छः सौ दर्जात अता होंगे जिन में हर दर्जा का फासिला सातवें आसमान से सातवीं ज़मीन के फासिला के बराबर होगा, जो मुसीबतों पर सब्र करता है उसे सात सौ दर्जात अता होंगे, हर दर्जा का सिला तहतुस्सरा से अर्शे उला के बराबर होगा।

हिकायत:- हज़रते जकरिया अलैहिस्सलाम जब यहूद के हमला की वजह से शहर से बाहर निकले कि कहीं रूपोश (छुप) होजायें और यहूद उन के पीछे भागे तो आपने अपने करीब एक दरख्त देख कर उसे कहा ऐ दरख़्त! मुझे अपने अन्दर छुपा ले। दरख्त चिर गया और आप उस में छुप गये। जब यहूद वहां पहुंचे तो शैतान ने उन्हें सारी बात बतला कर कहा इस दरख्त को आरी से दो टुकड़े कर दो। चुनान्चे उन्हों ने ऐसा ही किया और यह सिर्फ इस लिए हुआ कि हज़रते जकरिया अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की जात की बजाये अल्लाह की पैद की हुई चीज़ से पनाह तलब की थी. आप ने अपने वजूद को मुसीबत में डाला और आप के दो टुकड़े कर दिए गये।

हदीसे कुदसी में है अल्लाह तआला फ़रमाता है जब मेरा कोई बन्दा मुसीबतों में मुझ से सवाल करता है, मैं उसे मांगने से पहले दे देता हूं और उस की दुआ को क़बूल कर लेता हूं और जो बन्दा मुसीबतों के वक्त मेरी मख्लूक (पैदा की हुई चीज) से मदद मांगता है मैं उस पर आसमानों के दरवाज़े बन्द कर देता हूं।

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सख्त मुसीबत के वक़्त पढ़ने की दुआ

किसी शदीद मुसीबत में यह दुआ मस्जिद में जाकर पढ़ना अक्सीर है ।



ऐ अल्लाह! जो हमेशह ज़िन्दह रहने वाला है, ऐ वह ज़ात, जो काइनात का निज़ाम चलाने वाली और सब को क़ायम रखने वाली है अपनी रहमत की दुहाई से तू मेरे तमाम काम दुरुस्त कर दे और मुझे एक लम्हे के लिए भी मेरे नफ्स के हवाले ना कर।

(र्तिमिज़ी, अबू दाऊद)

फ़ाइदहः जंगे बद्र के मौक़ा पर सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह दुआ पढ़ी थी यहाँ तक कि जंग में फ़तेह व कामयाबी हासिल हुई ।

हज़रते जकरिया अलैहिस्सलाम को उफ़ करने की मनाही

कहते हैं कि जब आरी हजरते जकरिया अलैहिस्सलाम के दिमाग तक पहुंची तो आपने आह की, इरशादे इलाही हुआ ऐ जकरिया मुसीबतों पर पहले सब्र क्यों नहीं किया जो अब फरियाद करते हो। अगर दोबारा आह मुँह से निकाली तो सब्र करने वालों के दफ्तर से तुम्हारा नाम खारिज’ (निकाल) कर दिया जाएगा। तब हज़रत ने अपने होंटों को बन्द कर लिया, चिर कर दो टुकड़े होगये मगर उफ तक न की।

इस लिए हर अकलमन्द के लिए ज़रूरी है कि वह मुसीबतों पर सब्र करे और शिकायती हर्फ ज़बान पर न लाये ताकि दुनिया व आखिरत के अज़ाब से नजात हासिल करले क्योंकि इस दुनिया में मुसीबतें. अम्बिया अलैहिमुस्सलाम और औलिया अल्लाह ही पर ज्यादा डाली जाती हैं।

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सूफियों की नज़र में मुसीबतों की हक़ीक़त

हज़रते जुनैद बग़दादी रहमतुल्लाहि अलैह का कौल है। मुसीबतें आरिफीन का चराग, मुरीदीन की बेदारी, मोमिन की इस्लाह और गाफिलों के लिए हलाकत हैं. मोमिन मुसीबतों पर सब्र किये बगैर ईमान की हलावत (मिठास) पा नहीं सकता। हदीस शरीफ में है जो शख्स रात भर बीमार रहा और सब्र करके अल्लाह तआला की रजा का चाहने वाला हुआ तो वह शख्स गुनाहों से ऐसे पाक हो जाएगा जैसे कि अपनी पैदाइश के वक्त था इस लिए जब तुम बीमार हो जाओ तो आफियत की तमन्ना न करो।

जनाब जहाक कहते हैं जो शख़्स चालीस रातों में एक रात में भी मुसीबत व दुख में गिरिफ्तार न हुआ हो, अल्लाह तआला के यहां उस के लिए कोई खैर व भलाई नहीं है ।

मरीज़ बन्दए मोमिन के गुनाह नहीं लिखे जाते

हज़रते मआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है। जब बन्दए मोमिन किसी बीमारी में मुब्तला होजाता है तो उसके बायें शाने वाले फ़रिश्ते से कहा जाता है कि उसके गुनाहों को लिखना बन्द कर दो। दांयें शाने वाले से कहा जाता है उसके नमाए आमाल में वह बेहतरीन नेकियां लिखो जो उस से सरज़द हुई हैं।

हदीस शरीफ में है, जब कोई बन्दा बीमार हो जाता है तो अल्लाह तआला उस की तरफ दो फरिश्ते भेजता है कि जाकर देखो मेरा बन्दा क्या कहता है? अगर बीमार अल्हम्दुलिल्लाहिकहता है तो फ़रिश्ते अल्लाह की बारगाह में जाकर उस का कौल अर्ज करते हैं, अल्लाह का इरशाद होता है अगर मैं ने उस बन्दा को उस बीमारी में मौत दे दी तो उसे जन्नत में दाखिल करूंगा और अगर सेहत अता की तो उसे पहले से भी बेहतर परवरिश करने वाला गोश्त और ख़ून दूंगा और उसके गुनाहों को माफ कर दूंगा ।

शदीद बीमारी में यह दुआ पढ़े

शदीद बीमारी की वजह से जब ज़िन्दगी से मायूसी हो तो यह दुआ पढ़े

वाज़ेह रहे कि ज़िन्दगी से तंग आकर मौत के लिये दुआ करना तो दुरुस्त नहीं है, बल्की ममानिअत है, मगर मज़कूरह तरीके से दुआ करना जाइज़ है क्योंकि उस में क़तई तौर पर मरने की दुआ नहीं है बल्की अल्लाह तआला से दुआ की जाती है कि अगर ज़िन्दगी बेहतर है तो ज़िन्दगी इनायत की जाये और अगर मरने में बेहतरी है तो मौत दी जाये, तो दर अस्ल यह बेहतर सूरत की दुआ है।



ऐ अल्लाह तू मुझे ज़िन्दगी दे जब तक ज़िन्दगी मेरे लिये बेहतर हो और मौत दे जबकी मरना मेरे लिये बेहतर हो।

(बुख़ारी व मुस्लिम)

एक इबरत – अंगेज़ हिकायत

बनी इसराईल में एक निहायत ही फाजिर व फ़ासिक इन्सान था जो अपने बुरे कामों से कभी बाज न आता था, शहर वाले जब उसकी बदकारियों से महफूज रहने की दुआ मांगने लगे । अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम की तरफ वही की कि बनी इसराईल के फ़्लां शहर में एक बदकार जवान रहता है उसे शहर से निकाल दीजिए ताकि उस की बदकारियों की वजह से सारे शहर पर आग न बरसे, हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम वहां तशरीफ़ ले गये और उस को उस बस्ती से निकाल दिया, फिर अल्लाह का हुक्म हुआ कि उसे उस बस्ती से भी निकाल दीजिए, जब हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम ने उसको उस बस्ती से भी निकाल दिया तो उस ने एक ऐसे गार (गुफा) पर ठिकाना बनाया जहां न कोई इन्सान था और न ही किसी चरिन्द परिन्द का गुजर था, आस पास में न कहीं आबादी थी और न दूर दूर तक हरियाली का कोई पता था। उस गार में आकर वह जवान बीमार हो गया, उस की तीमारदारी (देख रेख) के लिए कोई शख्स भी उस के आस पास मौजूद न था जो उस की खिदमत करता, वह कमज़ोरी से ज़मीन पर गिर पड़ा और कहने लगा काश इस वक़्त अगर मेरी माँ मेरे पास मौजूद होती तो मुझ पर शफकत (मेहरबानी) करती और मेरी इस बेकसी और बे-बसी पर रोती, अगर मेरा बाप होता तो मेरी निगहबानी, निगहदाश्त (देख-रेख) और मदद करता, अगर मेरी बीवी होती तो मेरी जुदाई पर रोती, अगर मेरे बच्चे इस वक्त मौजूद होते तो कहते, ऐ रब हमारे आजिज़, गुनहगार, बदकार और मुसाफिर बाप को बख्श दे जिसे पहले तो शहर बदर किया गया और फिर दूसरी बस्ती से भी निकाल दिया गया था और अब वह गार में भी हर एक चीज़ से नाउम्मीद होकर दुनिया से आखिरत की तरफ चला है और वह मेरे जनाजा के पीछे रोते हुए चलते ।



फिर वह नौजवान कहने लगा ऐ अल्लाह! तू ने मुझे माँ बाप और बीवी बच्चों से तो दूर किया है मगर अपने फज्ल व करम से दूर न करना तू ने मेरा दिल अजीजों की जुदाई में जलाया है, अब मेरे सरापा को मेरे गुनाहों की वजह से जहन्नम की आग में न जलाना, उसी दम (वक्त) अल्लाह तआला ने एक फरिश्ता उसके बाप के हमशक्ल बना कर, एक हूर को उस की माँ और एक हूर को उसकी बीवी की हम शक्ल बना कर और गिल्माने जन्नत (जन्नत के खादिमों) को उस के बच्चों के रूप में भेज दिया, यह सब उसके करीब आकर बैठ गये और उस की बेहद तकलीफ पर अफ़सोस और आह व ज़ारी (रोना चिल्लाना) करने लगे। जवान उन्हें देख कर बहुत खुश हुआ और उसी खुशी में उसका इन्तेकाल हो गया, तब अल्लाह तआला ने हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम की तरफ वही की कि फलां गार की तरफ जाओ, वहां हमारा एक दोस्त मर गया है। तुम उस के दफ़न व कफ़न का इन्तेज़ाम करो ।

Namaz Rakat-Namaz Time
Namaz Rakat-Namaz Time

हुक्मे इलाही के मुताबिक हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम जब गार में पहुंचे तो उन्होंने वहां उसी जवान को मरा हुआ पाया। जिस को उन्हों ने पहले शहर और फिर दूसरी बस्ती से निकाला था, उस के पास हूरें तअज़ियत करने वालों की तरह बैठी हुई थीं । मूसा अलैहिस्सलाम ने बारगाहे इलाही में अर्ज की, ऐ रब्बुल इज्जत ! यह तो वही जवान है जिसे मैंने तेरे हुक्म से शहर और बस्ती से निकाल दिया था। रब्बुल इज़्ज़त ने फ़रमाया ऐ मूसा! मैंने उस के बहुत ज़्यादा रोने और अज़ीज़ों की जुदाई में तड़पने की वजह से उस पर रहम किया है और फ़रिश्ता को उस के बाप की और हूर व गिलमा को उस की माँ, बीवी और बच्चों के हम शक्ल बना कर भेजा है जो गुरबत में उस की तकलीफों पर रोते हैं, जब यह मरा तो उस की बेचारगी पर ज़मीन व आसमान वाले रोये और मैं अरहमर्राहिमीन फिर क्यों न उस के गुनाहों को माफ करता।

जब मुसाफ़िर मुसाफ़रत में इन्तेक़ाल करता है

जब किसी मुसाफिर पर नज़अ (दम निकलना) का आलम तारी होता है तो अल्लाह तआला फ़रिश्तों से फ़माता है यह बेचारा मुसाफ़िर है, अपने बाल बच्चों और माँ बाप वगैरह को छोड़ चुका है, जब यह मरेगा तो उस पर कोई अफ़सोस करने वाला भी न होगा। तब अल्लाह तआला फ़रिश्तों को उसके माँ बाप औलाद और दोस्त अहबाब | की शक्ल में भेजता है, जब वह उन्हें अपने करीब देखता है तो उन को अपने दोस्त व अहबाब समझ कर हद दर्जा खुश होता है और उसी खुशी में उस की रूह निकल जाती है, फिर वह फरिश्ते परेशान हाल होकर उस के जनाजा के पीछे पीछे चलते हैं और कियामत तक उस की बख्शिश की दुआ करते रहते हैं। अल्लाह का फ़मान है- अल्लाह अपने बन्दों पर मेहरबान है।

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इब्ने अता रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं:- इन्सान का सच व झूट उसकी मुसीबत व खुशी के वक्त जाहिर होता है, जो शख़्स खुशी व खुशहाली में तो अल्लाह तआला का शुक्र अदा करता है मगर मुसीबतों में फ़रियाद व फुगां करता है वह झूटा है। अगर किसी को दो आलम का इल्म अता कर दिया जाये, फिर उस पर मुसीबतों की यलगार और वह शिकवा व शिकायत करने लगे तो उसे उसका यह इल्म व अमल कोई फाइदा नहीं देगा (यह इल्म बेकार है)। हदीसे कुदसी है, अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है जो मेरी रज़ा पर राज़ी नहीं मेरी अता पर शुक्र नहीं करता वह मेरे सिवा कोई और रब तलाश करे।

हिकायतः- वहब बिन मम्बा कहते हैं अल्लाह के एक नबी ने पचास साल अल्लाह की इबादत की तब अल्लाह तआला ने उस नबी की तरफ वही फ्रमाई कि मैंने तुझे बख्श दिया है। नबी ने अर्ज़ की ऐ अल्लाह! मैंने तो कोई गुनाह ही नहीं किया, बख़्शा किस चीज़ को गया? अल्लाह तआला ने उन की एक रग को बन्द कर दिया जिस की वजह से वह सारी रात न सो सके, सुबह को जब उन के पास रिश्ता आया तो उन्होंने रग बन्द होजाने की शिकायत की, तब रिश्ता बोला, अल्लाह तआला फ़रमाता है तेरी पचास साल की इबादत से तेरी यह एक शिकायत अफ्ज़ू (ज्यादा) है। (उस इबादत पर तू नाज़ करता था?)

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