54 Surah Al-Qamar

54 Surah Al-Qamar

54 सूरए क़मर – 54 Surah Al Qamar

सूरए क़मर मक्की है सिवाय आयत “सयुह़ज़मुल जमओ”  के. इस में तीन रूकू, पचपन आयतें और तीन सौ बयालीस कलिमे और एक हज़ार चार सौ तेईस अक्षर हैं.

54 सूरए क़मर – पहला रूकू

54 सूरए  क़मर – पहला रूकू

54|1|بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ اقْتَرَبَتِ السَّاعَةُ وَانشَقَّ الْقَمَرُ
54|2|وَإِن يَرَوْا آيَةً يُعْرِضُوا وَيَقُولُوا سِحْرٌ مُّسْتَمِرٌّ
54|3|وَكَذَّبُوا وَاتَّبَعُوا أَهْوَاءَهُمْ ۚ وَكُلُّ أَمْرٍ مُّسْتَقِرٌّ
54|4|وَلَقَدْ جَاءَهُم مِّنَ الْأَنبَاءِ مَا فِيهِ مُزْدَجَرٌ
54|5|حِكْمَةٌ بَالِغَةٌ ۖ فَمَا تُغْنِ النُّذُرُ
54|6|فَتَوَلَّ عَنْهُمْ ۘ يَوْمَ يَدْعُ الدَّاعِ إِلَىٰ شَيْءٍ نُّكُرٍ
54|7|خُشَّعًا أَبْصَارُهُمْ يَخْرُجُونَ مِنَ الْأَجْدَاثِ كَأَنَّهُمْ جَرَادٌ مُّنتَشِرٌ
54|8|مُّهْطِعِينَ إِلَى الدَّاعِ ۖ يَقُولُ الْكَافِرُونَ هَٰذَا يَوْمٌ عَسِرٌ
54|9|۞ كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ فَكَذَّبُوا عَبْدَنَا وَقَالُوا مَجْنُونٌ وَازْدُجِرَ
54|10|فَدَعَا رَبَّهُ أَنِّي مَغْلُوبٌ فَانتَصِرْ
54|11|فَفَتَحْنَا أَبْوَابَ السَّمَاءِ بِمَاءٍ مُّنْهَمِرٍ
54|12|وَفَجَّرْنَا الْأَرْضَ عُيُونًا فَالْتَقَى الْمَاءُ عَلَىٰ أَمْرٍ قَدْ قُدِرَ
54|13|وَحَمَلْنَاهُ عَلَىٰ ذَاتِ أَلْوَاحٍ وَدُسُرٍ
54|14|تَجْرِي بِأَعْيُنِنَا جَزَاءً لِّمَن كَانَ كُفِرَ
54|15|وَلَقَد تَّرَكْنَاهَا آيَةً فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
54|16|فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
54|17|وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
54|18|كَذَّبَتْ عَادٌ فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
54|19|إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا صَرْصَرًا فِي يَوْمِ نَحْسٍ مُّسْتَمِرٍّ
54|20|تَنزِعُ النَّاسَ كَأَنَّهُمْ أَعْجَازُ نَخْلٍ مُّنقَعِرٍ
54|21|فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
54|22|وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ

सूरए क़मर मक्के में उतरी, इसमें 55 आयतें, तीन रूकू हैं.
-पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए क़मर मक्की है सिवाय आयत “सयुह़ज़मुल जमओ”  के. इस में तीन रूकू, पचपन आयतें और तीन सौ बयालीस कलिमे और एक हज़ार चार सौ तेईस अक्षर हैं.

पास आई क़यामत और(2)
(2) उसके नज़्दीक़ होने की निशानी ज़ाहिर हुई है कि नबिये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के चमत्कार से…

शक़ हो गया (चिर गया) चांद(3) {1}
(3) दो टुकड़े हो कर. शक़्क़ुल क़मर जिसका इस आयत में बयान है नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के खुले चमत्कारों में से है. मक्के वालों ने हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से एक चमत्कार की मांग की थी तो हुज़ूर ने चाँद टुकड़े करके दिखाया. चाँद के दो हिस्से हो गए एक हिस्सा दूसरे से अलग हो गया और फ़रमाया कि गवाह रहो. क़ुरैश ने कहा कि मुहम्मद ने जादू से हमारी नज़र बन्दी कर दी है. इसपर उन्हीं की जमाअत के लोगों ने कहा कि अगर यह नज़र बन्दी है तो बाहर कहीं भी किसी को चाँद के दो हिस्से नज़र न आए होंगे. अब तो काफ़िले आने वाले हैं उनकी प्रतीक्षा करो और मुसाफ़िरों से पूछो. अगर दूसरी जगहों पर भी चाँद शक़ होना देखा गया है तो बेशक चमत्कार है. चुनांन्चे सफ़र से आने वालों से पूछा. उन्होंने बयान किया कि हम ने देखा कि उस रोज़ चाँद के दो हिस्से हो गए थे. मुश्रिकों को इन्कार की गुन्जाइश न रही वो जिहालत के तौर पर जादू ही जादू कहते रहे. सही हदीसों में इस महान चमत्कार का बयान है और ख़बर इस दर्जा शोहरत को पुहुंच गई है कि इसका इन्कार करना अक़्ल और इन्साफ़ से दुश्मनी और बेदीनी है.

और अगर देखें (4)
(4) मक्के वाले नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नबुव्वत और उनकी सच्चाई पर दलालत करने वाली.

कोई निशानी तो मुंह फेरते(5)
(5) उसकी तस्दीक़ और नबी अलैहिस्सलातो वस्सलाम पर ईमान लाने से.

और कहते हैं यह तो जादू है चला आता {2} और उन्हों ने झुटलाया(6)
(6) नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की और उन चमत्कारों को जो अपनी आँखों से देखे.

और अपनी ख़्वाहिशों के पीछे हुए (7)
(7) उन बातिल बातों के जो शैतान ने उनके दिल में बिठा रखी थीं कि अगर नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के चमत्कारों की तस्दीक़ की तो उनकी सरदारी सारे जगत में सर्वमान्य हो जाएगी और क़ुरैश की कुछ भी इज़्ज़त और क़द्र बाक़ी न रहेगी.

और हर काम क़रार पा चुका है(8){3}
(8) वह अपने वक़्त पर ही होने वाला है कोई उसको रोकने वाला नहीं. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का दीन ग़ालिब होकर रहेगा.

और बेशक उनके पास वो ख़बरें आई(9)
(9) पिछली उम्मतों की जो अपने रसूलों को झुटलाने के कारण हलाक किये गए.

जिनमें काफ़ी रोक थी(10){4}
(10) कुफ़्र और झुटलाने से और इन्तिहा दर्जे को नसीहत.

इन्तिहा को पहुंची हुई हिकमत, फिर क्या काम दें डर सुनाने वाले {5} तो तुम उनसे मुंह फेर लो(11)
(11) क्योंकि वो नसीहत और डराने से सबक़ सीखने वाले नहीं.

जिस दिन बुलाने वाला(12)
(12) यानी हज़रत इस्राफ़ील अलैहिस्सलाम बैतुल मक़दिस के गुम्बद पर खड़े होकर.

एक सख़्त बे पहचानी बात की तरफ़ बुलाएगा(13){6}
(13) जिसकी तरह की सख़्ती कभी न देखी होगी और वह क़यामत और हिसाब की दहशत है.

नीची आँखें किये हुए क़ब्रों से निकलेंगे गोया वो टिड्डी हैं फैली हुई (14) {7}
(14) हर तरफ़ ख़ौफ़ से हैरान, नहीं जानते कहाँ जाएं.

बुलाने वाले की तरफ़ लपकते हुए(15)
(15) यानी हज़रत इस्राफ़ील अलैहिस्सलाम की आवाज़ की तरफ़.

काफ़िर कहेंगे यह दिन सख़्त है {8} उनसे(16)
(16) यानी क़ुरैश से.

पहले नूह की क़ौम ने झुटलाया तो हमारे बन्दे(17)
(17) नूह अलैहिस्सलाम.

को झूटा बताया और बोले यह मजनून (पागल) है और उसे झिड़का(18){9}
(18) और धमकाया कि अगर तुम अपनी नसीहत और उपदेश और दावत से बाज़ न आए तो तुम्हें हम क़त्ल कर देंगे संगसार कर डालेंगे.

तो उसने अपने रब से दुआ की कि मैं मग़लूब हूँ तो मेरा बदला ले{10} तो हमने आसमान के दरवाज़े खोल दिये ज़ोर के बहते पानी से (19){11}
(19) जो चालीस रोज़ तक न थमा.

और ज़मीन चश्मे करके बहा दी(20)
(20) यानी ज़मीन से इतना पानी निकला कि सारी ज़मीन चश्मों की तरह हो गई.

तो दोनों पानी(21)
(21) आसमान से बरसने वाले और ज़मीन से उबलने वाले.

मिल गए उस मिक़दार (मात्रा) पर जो मुक़द्दर थी(22){12}
(22) और लौहे मेहफ़ूज़ में लिखा था कि तूफ़ान इस हद तक पहुंचेगा.

और हमने नूह को सवार किया(23)
(23) एक किश्ती.

तख़्तों और कीलों वाली पर{13} कि हमारी निगाह के रूबरू बहती(24)
(24) हमारी हिफ़ाज़त में.

उसके सिले में(25)
(25) यान हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के.

जिसके साथ कुफ़्र किया गया था {14} और हमने उसे (26)
(26) यानी उस वाक़ए को कि काफ़िर डुबो कर हलाक कर दिये गए और हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को निजात दी गई और कुछ मुफ़स्सिरों के नज़्दीक “तरकनाहा” की ज़मीर किश्ती की तरफ़ पलटती है. क़तादह से रिवायत है कि अल्लाह तआला ने उस किश्ती को सरज़मीने जज़ीरा में और कुछ के नज़्दीक जूदी पहाड़ पर मुद्दतों बाक़ी रखा. यहाँ तक कि हमारी उम्मत के पहले लोगों ने उसको देखा.

निशानी छोड़ा तो है कोई ध्यान करने वाला(27){15}
(27) जो नसीहत माने और इबरत हासिल करे.

तो कैसा हुआ मेरा अज़ाब और मेरी धमकियाँ {16} और बेशक हमने क़ुरआन याद करने के लिये आसान फ़रमा दिया तो है कोई याद करने वाला (28){17}
(28) इस आयत में क़ुरआन शरीफ़ की तालीम और तअल्लुम और उसके साथ लगे रहने और उसको कन्ठस्त करने की तर्ग़ीब है और यह भी मालूम होता है कि क़ुरआन याद करने वाले की अल्लाह तआला की तरफ़ से मदद होती है. और इसका याद करना आसान बना देने का ही फल है कि बच्चे तक इसको याद कर लेते हैं सिवाय इसके कोई मज़हबी किताब ऐसी नहीं है जो याद की जाती हो और सहूलत से याद हो जाती हो.

आद ने झुटलाया(29)
(29) अपने नबी हज़रत हूद अलैहिस्सलाम को. इसपर वह अज़ाब में जकड़े गए.

तो कैसा हुआ मेरा अज़ाब और मेरे डर दिलाने के फ़रमान(30){18}
(30)जो अज़ाब उतरने से पहले आ चुके थे.

बेशक हमने उनपर एक सख़्त आंधी भेजी (31)
(31)बहुत तेज़ चलने वाली निहायत ठण्डी सख़्त सन्नाटे वाली.

ऐसे दिन में जिसकी नहूसत उनपर हमेशा के लिये रही(32) {19}
(32) यहाँ तक कि उनमें कोई न बचा, सब हलाक हो गए और वह दिन महीने का पिछला बुध था.
लोगों को यूं दे मारती थी कि मानो वो उखड़ी हुई खजूरों के डुन्ड (सूखे तने) हैं {20} तो कैसा हुआ मेरा अज़ाब और डर के फ़रमान {21} और बेशक हमने आसान किया क़ुरआन याद करने के लिये तो है कोई याद करने वाला{22}

54 सूरए क़मर – दूसरा रूकू

54 सूरए   क़मर – दूसरा रूकू

54|23|كَذَّبَتْ ثَمُودُ بِالنُّذُرِ
54|24|فَقَالُوا أَبَشَرًا مِّنَّا وَاحِدًا نَّتَّبِعُهُ إِنَّا إِذًا لَّفِي ضَلَالٍ وَسُعُرٍ
54|25|أَأُلْقِيَ الذِّكْرُ عَلَيْهِ مِن بَيْنِنَا بَلْ هُوَ كَذَّابٌ أَشِرٌ
54|26|سَيَعْلَمُونَ غَدًا مَّنِ الْكَذَّابُ الْأَشِرُ
54|27|إِنَّا مُرْسِلُو النَّاقَةِ فِتْنَةً لَّهُمْ فَارْتَقِبْهُمْ وَاصْطَبِرْ
54|28|وَنَبِّئْهُمْ أَنَّ الْمَاءَ قِسْمَةٌ بَيْنَهُمْ ۖ كُلُّ شِرْبٍ مُّحْتَضَرٌ
54|29|فَنَادَوْا صَاحِبَهُمْ فَتَعَاطَىٰ فَعَقَرَ
54|30|فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ
54|31|إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ صَيْحَةً وَاحِدَةً فَكَانُوا كَهَشِيمِ الْمُحْتَظِرِ
54|32|وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
54|33|كَذَّبَتْ قَوْمُ لُوطٍ بِالنُّذُرِ
54|34|إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ حَاصِبًا إِلَّا آلَ لُوطٍ ۖ نَّجَّيْنَاهُم بِسَحَرٍ
54|35|نِّعْمَةً مِّنْ عِندِنَا ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِي مَن شَكَرَ
54|36|وَلَقَدْ أَنذَرَهُم بَطْشَتَنَا فَتَمَارَوْا بِالنُّذُرِ
54|37|وَلَقَدْ رَاوَدُوهُ عَن ضَيْفِهِ فَطَمَسْنَا أَعْيُنَهُمْ فَذُوقُوا عَذَابِي وَنُذُرِ
54|38|وَلَقَدْ صَبَّحَهُم بُكْرَةً عَذَابٌ مُّسْتَقِرٌّ
54|39|فَذُوقُوا عَذَابِي وَنُذُرِ
54|40|وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ

समूद ने रसूलों को झुटलाया(1){23}
(1) अपने नबी हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम का इन्कार करके और उनपर ईमान न लाकर.

तो बोले क्या हम अपने में के एक आदमी की ताबेदारी करें(2)
(2) यानी हम बहुत से होकर एक आदमी के ताबे हो जाएं. हम ऐसा न करेंगे क्योंकि अगर ऐसा करें.

जब तो हम ज़रूर गुमराह और दीवाने हैं(3){24}
(3) यह उन्होंने हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम का कलाम लौटाया. आपने उनसे फ़रमाया था कि अगर तुमने मेरा इत्तिबाअ न किया तो तुम गुमराह और नासमझ हो.

क्या हम सब में से उस पर (4)
(4) यानी हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम पर.

ज़िक्र उतारा गया (5)
(5) वही नाज़िल की गई और कोई हम में इस क़ाबिल ही न था.

बल्कि यह सख़्त झूटा इतरौना (शैख़ीबाज़) है(6) {25}
(6) कि नबुव्वत का दावा करके बड़ा बनना चाहता है. अल्लाह तआला फ़रमाता है.

बहुत जल्द कल जान जाएंगे(7)
(7) जब अज़ाब में जकड़े जाएंगे.

कौन था बड़ा झूटा इतरौना {26} हम नाक़ा भेजने वाले हैं उनकी जांच को(8)
(8) यह उस पर फ़रमाया गया कि हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम ने आप से कहा था कि आप पत्थर से एक ऊंटनी निकाल दीजिये. आपने उनसे ईमान की शर्त करके यह बात मंजूर कर ली थी. चुनांन्चे अल्लाह तआला ने ऊंटनी भेजने का वादा फ़रमाया और हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम से इरशाद किया.

तो ऐ सालेह तू राह देख(9)
(9) कि वो क्या करते हैं और उनके साथ क्या किया जाता है.

और सब्र कर(10){27}
(10) उनकी यातना पर.

और उन्हें ख़बर दे दे कि पानी उनमें हिस्सों से है(11)
(11) एक दिन उनका, एक दिन ऊंटनी का.

हर हिस्से पर वह हाज़िर हो जिसकी बारी है(12){28}
(12) जो दिन ऊंटनी का है उस दिन ऊंटनी हाज़िर हो और जो दिन क़ौम को है उस दिन क़ौम पानी पर हाज़िर हो.

तो उन्होंने अपने साथी को(13)
(13)यानी क़दार बिन सालिफ़ को ऊंटनी को क़त्ल करने के लिये.

पुकारा तो उसने (14)
(14)तेज़ तलवार.

लेकर उसकी कूंचे काट दीं(15) {29}
(15) और उसको क़त्ल कर डाला.

फिर कैसा हुआ मेरा अज़ाब और डर के फ़रमान (16){30}
(16) जो अज़ाब उतरने से पहले मेरी तरफ़ से आए थे और अपने वक़्त पर वाक़े हुए.

बेशक हमने उनपर एक चिंघाड़ भेजी (17)
(17) यानी फ़रिश्ते की हौलनाक आवाज़.

जभी वो हो गए जैसे घेरा बनाने वाले की बची हुई घास सूखी रौंदी हुई (18){31}
(18) यानी जिस तरह चर्वाहे जंगल में अपनी बकरियों की हिफ़ाज़त के लिये घास काँटों का घेरा बना लेते हैं उसमें से कुछ घास बच रह जाती है और वह जानवरों के पाँव में रूंध कर कण कण हो जाती है. यह हालत उनकी हो गई.

और बेशक हमने आसान किया क़ुरआन याद करने के लिये तो है कोई याद करने वाला {32} लूत की क़ौम ने रसूलों को झुटलाया {33} बेशक हमने उनपर (19)
(19) इस झुटलाने की सज़ा में.

पथराव भेजा (20)
(20) यानी उनपर छोटे छोटे संगरेज़े बरसाए.

सिवाय लूत के घर वालों के (21)
(21) यानी हज़रत लूत अलैहिस्सलाम और उनकी दोनो साहिबज़ादियाँ इस अज़ाब से मेहफ़ूज़ रहीं.

हमने उन्हें पिछले पहर(22)
(22) यानी सुबह होने से पहले.

बचा लिया {34} अपने पास की नेअमत फ़रमा कर, हम यूंही सिला देते हैं उसे जो शुक्र करे(23)
{35}
(23) अल्लाह तआला की नेअमतों का और शुक्रगुज़ार वह है जो अल्लाह पर और उसके रसूलों पर ईमान लाए और उनकी फ़रमाँबरदारी करे.

और बेशक उसने(24)
(24) यानी हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने.

उन्हें हमारी गिरफ़्त से(25)
(25) हमारे अज़ाब से.

डराया तो उन्होंने डर के फ़रमानों में शक किया(26) {36}
(26) और उनकी तस्दीक़ न की.

उन्होंने उसे उसके मेहमानों से फुसलाना चाहा(27)
(27) और हज़रत लूत अलैहिस्सलाम से कहा कि आप हमारे और अपने मेहमानों के बीच न पड़ें और उन्हें हमारे हवाले कर दें और यह उन्होंने ग़लत नीयत और बुरे इरादे से कहा था और मेहमान फ़रिश्ते थे उन्होंने हज़रत लूत अलैहिस्सलाम से कहा कि आप उन्हें छोड़ दीजिये,घर में आने दीजिये. जभी वो घर में आए तो हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने एक दस्तक दी.

तो हमने उनकी आँखों मेट दीं (चौपट कर दीं) (28)
(28) और वो फ़ौरन अन्धे हो गए और आँखें ऐसी नापैद हो गई कि निशान भी बाक़ी न रहा. चेहरे सपाट हो गए. आश्चर्य चकित मारे मारे फिरते थे दरवाज़ा हाथ न आता था. हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने उन्हें दरवाज़े से बाहर किया.

फ़रमाया चखो मेरा अज़ाब और डर के फ़रमान(29) {37}
(29)जो तुम्हें हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने सुनाए थे.

और बेशक सुबह तड़के उनपर ठहरने वाला अज़ाब आया(30) {38}
(30) जो अज़ाब आख़िरत तक बाक़ी रहेगा.
तो चखो मेरा अज़ाब और डर के फ़रमान{39} और बेशक हमने आसान किया क़ुरआन याद करने के लिये तो है कोई याद करने वाला{40}

54 सूरए क़मर – तीसरा रूकू

54 सूरए   क़मर – तीसरा रूकू

وَلَقَدْ جَاءَ آلَ فِرْعَوْنَ النُّذُرُ
كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا كُلِّهَا فَأَخَذْنَاهُمْ أَخْذَ عَزِيزٍ مُّقْتَدِرٍ
أَكُفَّارُكُمْ خَيْرٌ مِّنْ أُولَٰئِكُمْ أَمْ لَكُم بَرَاءَةٌ فِي الزُّبُرِ
أَمْ يَقُولُونَ نَحْنُ جَمِيعٌ مُّنتَصِرٌ
سَيُهْزَمُ الْجَمْعُ وَيُوَلُّونَ الدُّبُرَ
بَلِ السَّاعَةُ مَوْعِدُهُمْ وَالسَّاعَةُ أَدْهَىٰ وَأَمَرُّ
إِنَّ الْمُجْرِمِينَ فِي ضَلَالٍ وَسُعُرٍ
يَوْمَ يُسْحَبُونَ فِي النَّارِ عَلَىٰ وُجُوهِهِمْ ذُوقُوا مَسَّ سَقَرَ
إِنَّا كُلَّ شَيْءٍ خَلَقْنَاهُ بِقَدَرٍ
وَمَا أَمْرُنَا إِلَّا وَاحِدَةٌ كَلَمْحٍ بِالْبَصَرِ
وَلَقَدْ أَهْلَكْنَا أَشْيَاعَكُمْ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ
وَكُلُّ شَيْءٍ فَعَلُوهُ فِي الزُّبُرِ
وَكُلُّ صَغِيرٍ وَكَبِيرٍ مُّسْتَطَرٌ
إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَنَهَرٍ
فِي مَقْعَدِ صِدْقٍ عِندَ مَلِيكٍ مُّقْتَدِرٍ

और बेशक फ़िरऔन वालों के पास रसूल आएं(1){41}
(1) हज़रत मूसा और हज़रत हारून अलैहिस्सलाम, तो फ़िरऔनी उनपर ईमान न लाए.

उन्होंने हमारी सब निशानियाँ झुटलाई(2)
(2) जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को दी गई थीं.

तो हमने उनपर (3)
(3) अज़ाब के साथ.

गिरफ़्त की जो एक इज़्ज़त वाले और अज़ीम क़ुदरत वाले की शान थी{42} क्या (4)
(4) ऐ मक्के वालों.

तुम्हारे काफ़िर उनसे बेहतर हैं (5)
(5) यानी उन क़ौमों से ज़्यादा क़वी और मज़बूत हैं या कुफ़्र और दुश्मनी में कुछ उनसे कमे हैं.

या किताबों में तुम्हारी छुट्टी लिखी हुई है(6){43}
(6) कि तुम्हारे कुफ़्र की पकड़ न होगी और तुम अल्लाह के अज़ाब से अम्न में रहोगे.

या ये कहते हैं(7)
(7) मक्के के काफ़िर.

कि हम सब मिलकर बदला ले लेंगे(8){44}
(8) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से.

अब भगाई जाती है यह जमाअत(9)
(9) मक्के के काफ़िरों की.

और पीठें फेर देंगे(10){45}
(10) और इस तरह भागेंगे कि एक भी क़ायम न रहेगा. बद्र के रोज़ जब अबू जहल ने कहा कि हमसब मिलकर बदला ले लेंगे, तब यह आयत उतरी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने ज़िरह पहन कर यह आयत तिलावत फ़रमाई. फिर ऐसा ही हुआ कि रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की फ़त्ह हुई और काफ़िर परास्त हुए.

बल्कि उनका वादा क़यामत पर है(11)
(11)  यानी उस अज़ाब के बाद उन्हें क़यामत के दिन के अज़ाब का वादा है.

और क़यामत निहायत (अत्यन्त) कड़वी और सख़्त कड़वी(12){46}
(12) दुनिया के अज़ाब से उसका अज़ाब बहुत ज़्यादा सख़्त है.

बेशक मुजरिम गुमराह और दीवाने हैं(13){47}
(13)न समझते है न राह पाते हैं. (तफ़सीरे कबीर)

जिस दिन आग में अपने मुंहों पर घसीटे जाएंगे, और फ़रमाया जाएगा चखों दोज़ख़ की आंच {48} बेशक हम ने हर चीज़ एक अन्दाज़े से पैदा फ़रमाई (14){49}
(14) अल्लाह की हिकमत के अनुसार. यह आयत क़दिरयों के रद में उतरी जो अल्लाह की क़ुदरत के इन्कारी हैं और दुनिया में जो कुछ होता है उसे सितारों वगै़रह की तरफ़ मन्सूब करते हैं. हदीसों में उन्हें इस उम्मत का मजूस कहा गया है और उनके पास उठने बैठने और उनके साथ बात चीत करने और वो बीमार हो जाएं तो उनकी पूछ ताछ करने और मर जाएं तो उनके जनाज़े में शरीक होने से मना फ़रमाया गया है और उन्हें दज्जाल का साथी फ़रमाया गया. वो बदतरीन लोग हैं.

और हमारा काम तो एक बात की बात है जैसे पलक मारना(15) {50}
(15) जिस चीज़ के पैदा करने का इरादा हो वह हुक्म के साथ ही हो जाती है.

और बेशक हमने तुम्हारी वज़अ के(16)
(16) काफ़िर पहली उम्मतों के.

हलाक कर दिये तो है कोई ध्यान करने वाला(17){51}
(17) जो इब्रत हासिल करें और नसीहत माने.

और उन्होंने जो कुछ किया सब किताबों में है (18){52}
(18)यानी बन्दों के सारे कर्म आमाल के निगहबान फ़रिश्तो के लेखों में है.

और हर छोटी बड़ी चीज़ लिखी हुई है (19){53}
(19) लौहे मेहफ़ूज़ में.

बेशक परहेज़गार बाग़ों और नहर में हैं{54} सच की मजलिस में अज़ीम क़ुदरत वाले बादशाह के हुज़ूर(20){55}
(20) यानी उसकी बारगाह के प्यारे चहीते हैं.

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