Safar KI Dua With Quran | सफ़र की दुआ हिन्दी में
जब भी सफर का इरादा करो तो Safar Ki Dua जरूर पढ़ लिया करो क्योंकि इसकी बेशुमार फजीलत है
बहुत सारे लोग इसको नजरअंदाज करते हैं लेकिन शायद आप जानते नहीं कि Safar Ki Dua के कितने फायदे हैं सफर की दुआ पढ़ लेने से सफर में आने वाली हर मुसीबत व तकलीफ और परेशानी से मुसाफिर बच्च जाता है और मुसाफिर अल्लाह ताला के हिफ्ज़ो ओमान में रहता हैं चलिए देखते हैं Safar Ki Dua को और Safar Ki Dua Ka Tarika और साथी में सफर की नमाज की कुछ खास मालूमात
Safar Ki Dua कब पढ़नी चाहिऐ
शरअन मुसाफिर वह शख़्स है जो तीन दिन की राह तक जाने के इरादे से सफर करे तो Safar Ki Dua पढ़नी चाहिए।
Safar Ki Dua In Hindi
कुछ लोगों की दुआ ज़्यादा कुबूल होती है – रोज़ा दार की इफ़्तार के वक़्त, आदिल बादशाह की, मज़लूम इन्सान की, माँ- बाप की, मुसाफ़िर की, बीमार की, घर पहुंचने से पहले हाजी की, मुसलमान के लिये उसके पीछे दुआ. (मिश्कात शरीफ़)
सवारी पर सवार होते वक्त यह दुआ पढ़े
फजीलत :- यह दुआ पढ़ लेने से सफर में आसानी होगी।
Safar Ki Dua In Hindi Image
सफर में रवानगी के वक्त की दुआ
तर्जमा :- ऐ अल्लाह तेरी ही मदद से हमला करता हूं और तेरी ही मदद से फिरता हूं और तेरी ही मदद से चलता हूं।
मंजिल तक पहुंचने के बाद यह दुआ
तर्जमा :- ऐ अल्लाह मुझे बरकत के साथ याहां उतारा और तू बेहतर उतारने वाला है
या यह दुआ पढ़े
तर्जमा :- पनाह में अता हूं मैं खुदाए तअला की कामिल बातों की तमाम मख़लूक की बुराई से ।
सफर में रवाना होने के बाद की दुआ
तर्जमा :- ऐ अल्लाह आसान कर दे हम पर सफ़र को और तै करादे हम से दराज़ी उस की, ऐ अल्लाह तू ही रफीक है सफर में और ख़बर गीराँ है घर बार में या अल्लाह तेरी पनाह चाहता हूं में सफ़र की मशक्कत और बुरी हालत देखने से और वापस आकर बुरी हालत पाने से माल में घर में और बच्चों में
सफर से वापसी पर यह दुआ
तर्जमा :- हम सफर से आने वाले हैं, तोबा करने वाले हैं, इबादत करने वाले हैं, अपने परवरदिगार की हम्द करने वाले हैं।
Safar Ki Dua In Arabic
Travelling Dua With Quran In Arabic
Safar Ki Dua 1
AL Quran Az Zukhruf:- 43:13 – 14
Safar Ki Dua 2
Safar Se Wapsi Ki Dua In Arabic
कोई मुसलमान ऐसा नहीं जो अपने घर से सफ़र और किसी इरादे से निकले और निकलते वक़्त Safar Ki Dua पढ़े तो उसे भलाई से न नवाज़ा जाता हो ।
Dua for Returns to Travel
Dua 1
Dua 2
दावत कबूल करना – Accept The Invitation
दावत को कबूल करना सुन्नते मुवक्किदा है, बाज़ मवाकेअ पर इसे वाजिब भी कहा गया है।
नबीए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि अगर मुझे बकरी की पतली सी पिन्डली की भी दावत दी जाये तो मैं उसे कबूल कर लूंगा। मुझे जानवर का दस्त हदिया किया जाएगा तो मैं कबूल कर लूंगा।
Safar Ki Namaz Rakat
- नमाज़े फ़ज्र : 2 रकअत सुन्नत ए मोकादा, 2 फ़र्ज़ । (नमाज़े फज़्र 4 रकअतें )
- नमाज़े ज़ोहर : 4 रकअत सुन्नत ए मोकादा, 2 रकअत फ़र्ज़, 2 रकअत सुन्नत ए मोकादा, 2 रकअत नफ़्ल । (नमाज़े ज़ोहर 10 रकअतें )
- नमाज़े अस्र : 4 रकअत सुन्नत ग़ैर मोकादा, 2 फ़र्ज़ । (नमाजे अस्र 6 रकअतें )
- नमाज़े मगरिब : 3 फ़र्ज़, 2 रकअत सुन्नत ए मोकादा, 2 रकअत नफ़्ल । (नमाजे मगरिब 7 रकअतें )
- नमाज़े इशा : 4 रकअत सुन्नत ग़ैर मोकादा, 2 रकअत फ़र्ज़, 2 रकअत सुन्नत ए मोकादा, 2 रकअत नफ़्ल, 3 रकअत वित्र वाजिब, 2 रकअत नफ़्ल । (नमाज़े इशा 15 रकअतें)
यह भी पढ़े: नमाज़ में कितने फ़र्ज़ हैं
Safar Ki Hadees In Hindi
हदीस :- इब्ने माजा ने अब्दुल्लाह इब्ने उमर रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने नमाज़े सफ़र की दो रकअतें मुकर्रर फ़रमाईं और यह पूरी हैं कम नहीं यानी अगर्चे बज़ाहिर दो रकअतें कम हो गईं मगर सवाब में यह दो ही चार के बराबर हैं।
हदीस :- सहीहैन में उम्मुल मोमिनीन सिद्दीका रदियल्लाहु तआला अन्हा से मरवी फरमाती हैं नमाज़ दो रकअत फर्ज़ की गई फिर जब हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हिजरत फरमाई तो चार फर्ज़ कर दी गई और सफर की नमाज़ उसी पहले फर्ज़ पर छोड़ी गई ।
हदीस :- सही मुस्लिम शरीफ में अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से मरवी कहते हैं कि अल्लाह तआला ने नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ज़बानी हज़र में चार रकअतें फर्ज़ कीं और सफ़र में दो और खौफ में एक यानी इमाम के साथ।
Safar Ke Masail In Hindi
मसअला :- सुन्नतों में कस्र नहीं बल्कि पूरी पढ़ी जायेंगी अलबत्ता खौफ और रवारवी (जल्दी) की हालत में माफ हैं और अमन की हालत में पढ़ी जायें। (आलमगीरी)
मसअला :- मुसाफिर पर वाजिब है कि नमाज़ में कस्र करे यानी चार रकअत वाले फर्ज़ को दो पढ़े। उसके हक में दो ही रकअतें पूरी नमाज़ है और कसदन चार पढ़ीं और दो पर कादा किया तो फ़र्ज़ अदा हो गये और पिछली दो रकअतें नफ़्ल हुई मगर गुनाहगार व मुस्तहिक्के नार हुआ कि वाजिब को तर्क किया। लिहाज़ा तौबा करे और दो रकत पर कादा न किया तो फर्ज़ अदा न हुए और वह नमाज़ नफ्ल हो गई। हाँ अगर तीसरी रकअत का सजदा करने से पहले इकामत की नियत कर ली तो फर्ज़ बातिल न होंगे मगर कियाम व रुकू का इआदा करना ( लौटाना) होगा और अगर तीसरी के सजदे में नियत की । तो अब फर्ज़ जाते रहे। यूँही अगर पहली दोनों या एक में किरात न की नमाज़ फासिद हो गई। (हिदाया, आलमगीरी, दुर्रे मुख़्तार वग़ैरहुम)
मसअला :- मुसाफिर उस वक्त तक मुसाफिर है जब तक अपनी बस्ती में पहुँच न जाए या आबादी में पूरे पन्द्रह दिन ठहरने की नियत न करे। यह उस वक्त है जब तीन दिन की राह चल चुका हो और अगर तीन मन्जिल पहुँचने से पहले वापसी का इरादा कर लिया तो मुसाफिर न रहा अगर्चे जंगल में हो। (आलमगीरी, दुर्रे मुख़्तार)
मसअला :- मुसाफिर जब वतने असली में पहुँच गया सफ़र ख़त्म हो गया अगर्चे इकामत की नियत न की हो। (रद्दल मुहतार)
मसअला :- औरत बियाह कर सुसराल गई और यहीं रहने-सहने लगी तो मयका इसके लिए वतने असली न रहा यानी अगर सुसराल तीन मन्जिल पर है वहाँ से मयका आई और पन्द्रह दिन ठहरने की नियत न की तो कस्र पढ़े और अगर मयका रहना नहीं छोड़ा बल्कि सुसराल आरजी तौर पर गई तो मयका आते ही सफर ख़त्म हो गया नमाज पूरी पढ़े।
मसअला :- औरत को बगैर महरम के तीन दिन या ज्यादा राह जाना नाजाइज़ है बल्कि एक दिन की राह जाना भी नाबालिग बच्चे या कम अक्ल के साथ भी सफ़र नहीं कर सकती, साथ में बालिग़ महरम या शौहर का होना ज़रूरी है। (आलमगीरी वग़ैरा) महरम के लिए ज़रूर है कि सख़्त फासिक बेबाक ग़ैर मामून यानी बेहया या गलत हरकतें करने वाला न हो। (आलमगीरी)
मसअला :- यह रुख़सत कि मुसाफिर के लिये है मुतलक है (यानी मुसाफिर चाहे जिस काम के लिए सफर करे सिर्फ सफर करना काफी है) उसका सफ़र जाइज़ काम के लिए हो या नाजाइज़ के लिए बहरहाल मुसाफिर के अहकाम उसके लिये साबित होंगे। (आम्मए कुतुब)
मसअला :- सफ़र के लिए यह भी ज़रूरी है कि जहाँ से चला वहाँ से तीन दिन की राह का इरादा हो और अगर दो दिन के इरादे से निकला और वहाँ पहुँच कर दूसरी जगह का इरादा हुआ कि वह भी तीन दिन से कम का रास्ता है यूँही सारी दुनिया घूम आए मुसाफिर नहीं । (गुनिया, दुर्रे मुख्तार)
मेहमान की फजीलत – The Importance of Guests
नबीए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फ़मान है कि मेहमान के लिए तकल्लुफ न करो, तुम उसे दुश्मन समझोगे और जिसने उसे दुश्मन समझा उसने अल्लाह को दुश्मन समझा और जिसने अल्लाह तआला को दुश्मन समझा अल्लाह तआला ने उसे दुश्मन समझा।
फ़रमाने नबवी है कि उस शख्स के पास खैर व बरकत नहीं जिस में मेहमान नवाजी नहीं । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ऐसे शख्स से गुज़र हुआ जिसके पास बहुत से ऊँट और गायें थीं मगर उसने मेहमानी न की, और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ऐसी औरत से गुज़र हुआ जिसके पास छोटी-छोटी बकरियां थीं उसने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए एक बकरी जबह की तब आपने फ़रमाया इन दो को देखो अल्लाह तआला के हाथ में अखलाक हैं।
हज़रते अबू राफेअ रदियल्लाहु तआला अन्हु जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गुलाम थे, फ़रमाते हैं कि आपके यहां एक मेहमान उतरा, हुज़ूर ने फ्रमाया जाओ फुलां यहूदी से कहो कि मेरा मेहमान आया है, मुझे रजब के महीने तक के लिए कुछ आटा भेज दो, यहूदी यह पैगाम सुनकर बोला बख़ुदा मैं उनको कुछ नहीं दूंगा मगर यह कि कुछ रेहन रखा जाये, मैंने जाकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खबर दी, आपने फ़रमाया बख़ुदा मैं आसमानों में अमीन हूं, ज़मीन में अमीन हूं, अगर वह मुझे उधार देता तो ज़रूर अदा कर देता, जाओ मेरी जिरह ले जाओ और उसके पास रेहन रख दो।
हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम जब खाना खाने का इरादा फ़रमाते तो मील दो मील मेहमान की तलाश में निकल जाया करते थे। आप की कृन्नियत अबू जैफान थी और आपकी सिदके नीयत की वजह से आज तक उनकी जारी की हुई जियाफत मौजूद है, कोई रात न गुज़रती मगर आपके यहां तीन से लेकर दस और सौ के दर्मियान जमाअत खाना न खाती हो, उनके घर के निगहबान ने कहा कि उनकी कोई रात मेहमान से खाली नहीं रही।