निकाह मे होने वाली ज़ात बिरादरी की बन्दिश
अकसर लोग निकाह के लिये अपने ही बिरदरी मे लड़का या लड़की को पसन्द करते हैं और जब तक अपनी बिरादरी मे कोई नही मिलता निकाह नही करते| जिसके सबब अकसर अकसर दूसरे बिरादरी के लड़के और लड़किया बेनिकाह काफ़ी उम्र तक बैठे रहते हैं और कई तो ताज़िन्दगी बे निकाह रह जाते हैं और इसकी ज़िन्दा मिसाल हमारे मआशरे मे मौजूद हैं | अल्लाह ﷻ कुरान मे फ़रमाता हैं-
और उसने दो ज़ात बनाई एक मर्द और एक औरत
( सूरह कियामह सूरह नं 75 आयत नं 39 )
इस्लाम की ये खूबी हैं के इस्लाम मे इन्सान कि फ़ितरत के सबब हर मसले का हल रखा और किसी मसले के हल के लिये बस इन्सान को अल्लाह ﷻ और उसके रसूल के बताये एहकाम पर अमल करना हैं| बावजूद इसके लोग इस्लाम के बताये तरिको से फ़ायदा नही उठाते और नुकसान मे रहते हैं| अल्लाह ﷻ ने इन्सान की तख्लीक के लिये सिर्फ़ एक जोड़ा आदम علیہ السلام और बीवी हव्वा को बनाया और इनसे तमाम नस्ल इन्सानी की तख्लीक की अगर अल्लाह ﷻ ने ज़ात बिरादरी की बन्दीश को भी इन्सान के निकाह के शर्त के तौर पर लगाया होता तो आदम علیہ السلام और बीवी हव्वा के बाद दुनिया मे कोई इन्सान नही होता या अल्लाह ﷻ कई आदम علیہ السلام और हव्वा की तरह कई और जोड़े पैदा कर दुनिया मे एक सिस्टम बना देता के हर इन्सान अपनी ही पुरखो की नस्ल मे निकाह करे और कई और जोड़े आदम علیہ السلام और बीवी हव्वा की तरह पैदा करना अल्लाह ﷻ के लिये कोई मुश्किल काम नही| बावजूद इसके इन्सान इन तमाम बातो पर गौर फ़िक्र किये बिना ही इस अहम सुन्नत को अदा करने मे ताखिर करता हैं | अल्लाह ﷻ ने कुरान मे एक जगह और फ़रमाया-
ऐ लोगो अल्लाह ﷻ से डरो जिसने तुम्हे एक जान से पैदा किया और उसी मे से उसके लिये जोड़ा पैदा किया और उन दोनो से बहुत से मर्द और औरत फ़ैला दिये
( सूरह निसा सूरह नं 4 आयत नं 1 )
कुरान की इस आयत से साबित हैं के अल्लाह ﷻ ने हर मर्द और औरत का जोड़ा बनी आदम की औलादो मे से ही रखा हैं लिहाज़ा हर इन्सान को जो ईमानवाला मर्द या औरत मिले उसे बिना ताखिर के निकाह कर ले| क्योकि किसी इन्सान को खुद से ये हासिल नही के ज़ात बिरादरी मे बट जाये बल्कि ज़ात बिरादरी मे बाटना भी अल्लाह ﷻ ही का काम हैं जैसा के कुरान से साबित हैं-
अल्लाह ﷻ वही हैं जिसने इन्सान को पानी से पैदा किया| फ़िर उसे नस्ली और खान्दानी रिश्तो मे बाट दिया
( सूरह फ़ुरकान सूरह नं 25 आयत नं 54 )
लिहाज़ा जात बिरादरी की बन्दीश को निकाह जैसे नेक काम से जोड़ना सरासर गलत हैं क्योकि अल्लाह ﷻ ने नस्ल और खानदान सिर्फ़ इन्सान की पहचान बाकि रखने के लियेए किया न के निकाह के मौके पर अपने से दूसरे को नीचा या बड़ा खानदान तसव्वुर करना सरासर गलत हैं| बिरादरी का तसव्वुर सिर्फ़ इन्सान को बड़ा या छोटा साबित करता हैं जबकि ये अल्लाह ﷻ ही बेहतर जानता हैं कि उसके नज़दीक कौन बड़ा या छोटा हैं|
बिरादरी से बाहर निकाह करने की सबसे बड़ी हुज्जत हज़रत अबदुर्ररहमान बिन औफ़ का निकाह हैं जो कुरैश खानदान से थे और उन्होने अंसार की लड़की से निकाह किया था और खुद अल्लाह ﷻ के रसूल सल्लललाहो अलेहे वसल्लम ने हज़रत सफ़िया से निकाह किया था जो कुरैश खानदान से न थी !