Namaz Me Wajib Kitne Hain
मेरे प्यारे भाइयों और बहनों, अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातहू, आज हम Namaz Me Wajib Kitne Hain सीखेंगे. इस पोस्ट में मैं कुछ हदीस ए पाक और कुछ मसले और मसाइल पेश करूँगा इंशाअल्लाह। और मुकम्मल तरीके से देखेंगे कि नमाज के अंदर कितने वाजिब है अगर हम नमाज में किसी भी एक वाजिब को छोड़ देते हैं तो हमारी नमाज नहीं होती है वाजिब फर्ज के बराबर होता है इसीलिए हमें वाजिब को तर्क नहीं करना चाहिए तो चलिए देखते हैं मुकम्मल तरीके से Namaz Me Wajib Kitne Hain है।
नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का फरमान है, मेरी उम्मत के दो आदमी नमाज पढ़ेंगे, उन के रूकूअ. सुजूद एक जैसे होंगे मगर उन की नमाजों में जमीन आसमान का फर्क होगा। एक में खुशूअ होगा और दूसरी बगैर खुशूअ होगी। नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का फरमान है. अल्लाह तआला कियामत के दिन उस बन्दे पर रहमत की नज़र नहीं डालेगा जिसने रुकूअ और सज्दा के दर्मियान अपनी पीठ को सीधा नहीं किया।
फरमाने नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम है, जिसने वक्त पर नमाज पढ़ी. वुजू सही किया और रुकूअ व सुजूद को खुशूअ व खुजूअ से पायए तकमील तक पहुँचाया, उस की नमाज़ सफेद बुराक की सूरत में आसमानों की तरफ जाती है और कहती है, ऐ बन्दे ! जैसे तूने मेरी मुहाफ़जत की उसी तरह अल्लाह तआला तुझे महफूज रखे। लेकिन जिस ने नमाज वक्त पर न पढ़ी न वज़ू सही किया और अपने रुकूअ व सुजूद को खुशूअ से आरास्ता न किया, उसकी नमाज काली शक्ल में ऊपर जाती है और कहती है, जैसे तूने मुझे खराब किया अल्लाह तआला तुझे भी खराब करे, यहाँ तक की उसे पुराने कपड़े की तरह लपेट कर उस के मुँह पर मारा जाता है।
नमाज़ में वाजिब कितने हैं?
- 1. तकबीरे तहरीमा में लफ्जे अल्लाहु अकबर होना।
- 2. सूरह फातिहा पढ़ना यानी उस की सातों आयतें कि हर आयत मुस्तकिल वाजिब है इन में एक आयत बल्कि एक लफ्ज़ का तर्क भी तर्के वाजिब है।
- 3. सूरह फातिहा के बाद कोई भी सूरत मिलाके पढ़ना जैसे के सूरे इखलास या सूरे फ़लक या फिर सूरे नास या कोई और सूरत जो आप को याद हो ।
- 4. नमाज़े फर्ज में दो पहली रकअतों में किरात वाजिब है।
- 5. सूरह फातिहा और उसके साथ सूरत मिलाना फर्ज को दो पहली रकअतों में और नफ़्ल व वित्र की हर रकअत में वाजिब है।
- 6. सूरह फातिहा का सूरत से पहले होना।
- 7. हर रकअत में सूरत से पहले एक ही बार सूरह फातिहा पढ़ना।
- 8. सूरह फातिहा व सूरत के दरमियान किसी गैर चीज़ का फासिल न होना आमीन सूरह फातिहा के ताबेअ है और बिस्मिल्लाह सूरत के ताबेअ है यह गैर चीज़ नहीं।
- 9. किरात के बाद मुत्तसिलन यानी फौरन रुकू करना।
- 10. एक सजदे के बाद दूसरा सजदा होना कि दोनों के दरमियान कोई रुक्न फासिल न हो।
- 11. तादीले अरकान (इत्मिनान से अरकान अदा करना) यानी रुकू व सुजूद व कौमा व जलसा में कम अज कम एक बार सुव्हानल्लाह कहने की कद्र ठहरना।
- 12. यूँही कौमा यानी रुकू से सीधा खड़ा होना।
- 13. जलसा यानी दो सजदों के दरमियान सीधा बैठना।
- 14. कादए ऊला अगर्चे नमाज़े नफल हो ।
- 15. और फर्ज़ व वित्र व सुनने रवातिव (मुअक्कदा) में कादए ऊला में अत्तहीय्यात पर कुछ न बढ़ाना।
- 16. दोनों कादों में पूरी अत्तहीय्यात पढ़ना यूँही जितने कादे करने पड़ें सब में पूरी अत्तहीय्यात वाजिब है एक लफ्ज़ भी अगर छोड़ेगा तर्के वाजिब होगा।
- 17. लफ्जे ‘अस्सलामु’ दो बार वाजिब है और लफ्जे ‘अलैकुम वाजिब नहीं।
- 18. वित्र में दुआए कुनूत पढ़ना ।
- 19. तकबीरे कुनूत यानी दुआए कुनूत से पहले जो तकबीर कहते हैं।
- 20. ईदैन की छओं (6) तकबीरें।
- 21. ईदैन में दूसरी रकअत के रुकू की तकबीर ।
- 22. इस तकबीर के लिये लफ्ज़े अल्लाहु अकबर होना ।
- 23. हर जहरी नमाज़ में इमाम को जहर (यानी आवाज़) से किरात करना।
- 24. गैर जहरी में आहिस्ता यानी जिन नमाजों में जहरी का हुक्म नहीं उनमें आहिस्ता पढ़ना वाजिब है।
- 25. वाजिब व फ़ज़ों का उसकी जगह पर होना ।
- 26. रुकू का हर रकअत में एक ही बार होना मतलब एक से ज्यादा रुकू न करना।
- 27. सुजूद का दो ही बार होना यानी दो से ज़्यादा सजदे न करना ।
- 28. दूसरी रकअत से पहले कादा न करना ।
- 29. चार रकअत वाली में तीसरी पर कादा न होना ।
- 30. आयते सजदा पढ़ी हो तो सजदए तिलावत करना ।
- 31. सहव हुआ हो तो सजदए सहव करना ।
- 32. दो फर्ज़ या दो वाजिब या वाजिब व फ़र्ज़ के दरमियान तीन तस्बीह की कद्र वक्फा न होना यानी इनके दरमियान इतनी देर न ठहरे जितनी देर में तीन बार सुबहानल्लाह कह ले ।
- 33. इमाम जब किरात करे बलन्द आवाज़ से हो ख़्वाह आहिस्ता उस वक्त मुक्तदी का चुप रहना।
- 34. सिवा किरात के तमाम वाजिबात में इमाम की मुताबअत (पैरवी) करना।
वाजिबाते नमाज़ क्या है?
मसअला : किसी कादा में अत्तहीय्यात का कोई हिस्सा भूल जाये तो सजदए सहव वाजिब है। (दुरें मुख्तार)
मसअला : आयते सजदा पढ़ी और सजदा करने में सहवन (भूल से) तीन आयत या ज्यादा की देर हुई तो सजदए सहव करे। (गुनिया)
मसअला : सूरत पहले पढ़ी उसके बाद सूरह फातिहा या सूरह फातिहा व सूरत के दरमियान देर तक यानी तीन बार सुब्हानल्लाह कहने की कद्र चुप रहा यानी इतनी देर तक चुप रहा कि जितनी देर में तीन मरतबा सुब्हानल्लाह कह ले तो सजदए सहव वाजिब है। (दुर्रे मुख्तार)
मसअला : सूरह फातिहा का एक लफ्ज़ भी रह गया तो सजदए सहव करे। (दुर्रे मुख्तार)
मसअला : जो चीजें फर्ज व वाजिब हैं मुक्तदी पर वाजिब है कि इमाम के साथ उन्हें अदा करे बशर्ते कि किसी वाजिब का तआरुज (टकराव) न पड़े और तआरुज़ हो तो उसे फौत न करे बल्कि उस का अदा करके मुताबअत (पैरवी) करे मसलन इमाम अत्तहीय्यात पढ़ कर खड़ा हो गया और मुकतदी ने अभी पूरी नहीं पढ़ी तो मुक्तदी को वाजिब है कि पूरी करके खड़ा हो और सुन्नत में मुताबअत सुन्नत है बशर्ते कि तआरुज़ न हो और तआरुज हो तो उस को तर्क करे और इमाम की मुताबअत करे मसलन रुकू या सजदे में उसने तीन तस्बीह न कही थी कि इमाम ने सर उठा लिया तो यह भी उठा ले। (रद्दल मुहतार)
मसअला : एक सजदा किसी रकअत का भूल गया तो जब याद आये करे अगर्चे सलाम के बाद बशर्ते कि कोई फेल मुनाफी न सादिर हुआ हो यानी ऐसा फेल न हो जिससे नमाज जाती रहे और सजदए सहव करे। (दुर्रे मुख्तार)
मसअला : अल्फाजे अत्तहीय्यात से उन के मआनी का कस्द (इरादा) और इनशा ज़रूरी है गोया अल्लाह तआला के लिए तहीय्यत करता है और नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और अपने ऊपर और औलिया अल्लाह पर सलाम भेजता है न यह कि वाकिया मेराज की हिकायत मद्देनज़र हो । (आलमगीरी, दुर्रे मुख्तार)
मसअला : फर्ज व वित्र व सुन्नते मुअक्कदा के कादए ऊला में अगर अत्तहीय्यात के बाद इतना कह लिया “अल्लाहुम-म सल्लि अला मुहम्मदिन” या “अल्लाहुम-म सल्लि अला सय्यिदिना” तो अगर भूल कर कहा हो तो सजदए सहव कर ले और अगर जानबूझ कर हो तो लौटाना वाजिब है। (दुर्रे मुख्तार, रद्दल मुहतार)
मसअला : मुक्तदी कादए ऊला में इमाम से पहले अत्तहीय्यात पढ़ चुका तो सुकूत करे यानी ख़ामोश रहे दुरूद व दुआ कुछ न पढ़े और मसबूक (जिसे शुरू से जमाअत न मिली यानी जिसकी रकअत छूट गई हो) को चाहिये कि कादए अखीरा में ठहर ठहर कर पढ़े कि इमाम के सलाम के वक्त फारिग हो और सलाम से पेशतर फारिग हो चुका तो कलिमाए शहादत की तकरार करे। (दुर्रे मुख्तार)