* मकड़ी का घर *
कंज़ुल ईमान-उनकी मिसाल जिन्होंने अल्लाह के सिवा और मालिक बना लिए हैं,मकड़ी की तरह हैं,उसने जाले का घर बनाया,और बेशक सब घरों में कमज़ोर घर मकड़ी का घर,क्या अच्छा होता अगर जानते
📕 पारा 20,सूरह अनकबूत,आयत 41
एक अल्लाह को छोड़कर बहुत सारे माअबूद बना लिए और उनकी मदद और अयानत पर भरोसा करते हैं,तो मौला ने उनकी इसी हिमाक़त का इज़हार युं कर दिया और सबकी कलई खोल कर रख दी कि जो लोग अल्लाह के सिवा किसी और को खुदा समझते हैं वो निरे जाहिल हैं और वो अपने एतेमाद से जिनको खुदा समझ रहे हैं और जिस पर भरोसा कर रहे हैं वो उनके लिए मकड़ी के घर की तरह है कि जिस तरह मकड़ी अपने घर में बैठकर ये सोचती है कि ये घर मुझको हर मुसीबत से बचा लेगा हालांकि मकड़ी का घर ना धूप से बचा सकता है ना बारिश से और ना हवा के झोंको से उसी तरह ये भी अपने खुदाओं पर भरोसा करके बैठे हैं कि ये उनको बचा लेंगे हालांकि उनके ये माअबूद खुद मजबूर महज़ हैं कि खुद अपनी मदद नहीं कर सकते तो वो दूसरों की मदद क्या करेंगे,वो लोग जो कुफ्र की दलदल से निकालकर ईमान की दौलत पा गए वो सबसे बड़े खुश नसीब हैं और जो इस्लाम को जानने से इनकार करते हैं या जानकर भी उससे बचने की कोशिश करते हैं तो मौला उनके लिए फरमाता है
कंज़ुल ईमान-बहरे गूंगे अंधे तो वो फिर आने वाले नहीं
📕 पारा 1,सूरह बक़र,आयत 18
यानि आंख तो है मगर हक़ देखते नहीं ज़बान तो है मगर हक़ बोलते नहीं और कान तो है मगर हक़ सुनते नहीं,इससे ये पता चलता है कि कोई भी चीज़ उसी वक़्त तक अपनी पहचान बना रख पायेगी जब तक कि वो जिस काम के लिए बनी है करती रहे और जिस दिन उसने वो काम छोड़ा तो उसका वुजूद भी खत्म जैसा कि मौला तआला आंख वालों को अंधा कान वालों को बहरा और ज़बान वालो को गूंगा कह रहा है मतलब साफ है कि उनके वो आज़ा ठीक से काम नहीं कर रहे लिहाज़ा उनका होना ना होना सब बराबर,एक बात और अर्ज कर दूं कि जिस तरह वो लोग खुश नसीब हैं जो ईमान की दौलत पा गए उसी तरह वो लोग उतने ही बड़े बद नसीब हैं जिनको ईमान की दौलत तो मिली मगर अपनी जिहालत से या कमज़र्फी से उस दौलत को गंवा रहे हैं,मौला ऐसों को हिदायत अता फरमाये |
आमीन