Eid Milad Un Nabi मीलादे मुस्तफ़ा: ﷺ
मीलाद और क़ुरआन
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की विलादते पाक की खुशी मनाना जायज़ वोह दुरुस्त है आइये क़ुरआन की रौशनी में एक वाकिया पढ़ें और आप खुद फैसला करें
हजरत ईसा अलैहिस्सलाम के मानने वालों ने आप से सवाल किया कि क्या आप का रब आसमानों से पका पकाया खानों से भरा हुआ दस्तरखान भेजने पर कादिर है? ह़ज़रते ईसा अलैहिस्सलाम ने फरमाया अगर ईमान वाले हो तो अल्लाह से डरो मतलब यह कि ईमानदार होकर अल्लाह तआला की कुदरत का इंकार ना करो, ईसा अलैहिस्सलाम ने कहा हाँ मेरा अल्लाह ऐसा कर सकता है और फिर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने दुआ की, जिसका ज़िक्र क़ुरआन इस अन्दाज़ में कर रहा है अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है कि
क़ुरआन: तर्जुमा कंज़ुल ईमान:—- ईसा बिन मरियम ने अर्ज़ की ऐ मेरे अल्लाह आसमानों से हमारे लिए पके पकाए खानों से भरा हुआ दस्तरख्वान नाज़िल फरमा दे, ताकि हमारे लिए हम से पहेलों के लिए और बाद में आने वालों के लिए ईद हो जाए
📕📚पारा 7, सूरह माइदा, आयत 114
ह़ज़रते ईसा अलैहिस्सलाम की दुआ
अल्लाह तआला ने ह़ज़रते ईसा अलैहिस्सलाम की दुआ क़ुबूल करते हुए बेहतरीन खानों से भरा हुआ दस्तरखान उतार दिया और इस तरह हजरते ईसा अलैहिस्सलाम के मानने वालों की ईद हो गई, कुरान पाक की इस आयत से यह हकीकत पूरी तरह से वाज़ेह हो जाती है कि जिस दिन अल्लाह करीम की तरफ़ से कोई निअमत अता हो, इमान वालों के लिए वह ईद का दिन बन जाता है, और फिर ईद के दिन हर तरह की खुशी, हर तरह का जश्न ,हर किस्म की चहल-पहल मनाने के साथ-साथ साफ-सुथरे कपड़े पहनने, खुशबू लगानी, गुसल करना, दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलना, मिठाई तक्सीम करना, और हर एक को मुबारकबाद देना, हर लिहाज़ से जायज और दुरुस्त है
12 रबी उल अव्वल
इसी तरह 12 रबी उल अव्वल (Prophet’s ﷺ Birthday) शरीफ़ के मुबारक दिन में अल्लाह तआला की तरफ से सबसे बड़ी निअमत हम मुसलमानों को सय्यिदुल अम्बिया हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की नूरानी सूरत में सारी नस्ले इंसानी की हिदायत के लिए अहले ईमान को अता हुई, इसलिए बरेलवी ह़ज़रात इस निअमते उज़मा की खुशी में जश्ने ईद मिलादुन्नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि सल्लम मनाते हैं, मिठाई तक्सीम करते हैं ,बाजार सजाते हैं, खूबसूरत मेहराबें बनाते हैं, झन्डियां लगाते और लहराते हैं, एक-दूसरे को मुबारकबाद पेश करते हैं , नात ख़्वानी का लुत्फ़ उठाते हैं, और हुज़ूर की बारगाह में दुरुदो सलाम के फूल निछावर करते हैं, और फिर लुत्फ़ की बात तो यह कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की विलादते पाक के वक्त यह सब कुछ हुआ, झंडे खुदा के हुक्म पर जिब्राईल ने लहराए, दुरुदो सलाम फरिश्तों ने पढ़ा ,मुबारकबाद जानवरों ने दी, ऐलान नबियों ने किया, मुनादी जिब्रील ने सुनाई, और गवाही शजरो ह़जर ने दी,
आसमान से ख़्वान
आप खुद सोंचें कि जिस दिन आसमान से ख़्वान नाज़िल हुआ वो दिन इतवार का था और आज भी ईसाई इतवार के दिन खुशी यानि छुट्टी मनाते हैं सोचिए कि हजरते ईसा अलैहिस्सलाम ख़्वान के नाज़िल होने पर तो ईद का हुक्म दे रहे हैं तो क्या माज़अल्लाह हमारे नबी की विलादते पाक, एक खाने से भरे हुए तश्त से भी कम है, कि हम सुन्नी मुसलमान उस पर खुशी नहीं मना सकते, बेशक हमारे और आप सबके नबी दुनिया की सारी निअमतों से बढ़कर हैं, येह मैं अपनी तरफ़ से नहीं बल्कि खुद अल्लाह तआला क़ुरआन मजीद में इरशाद फरमा रहा है पढ़िए और फैसला करिये
Eid Milad Un Nabi
📕📚पारा 4, सूरह आले इमरान, आयत 164
बड़ी बड़ी निअमतें
अल्लाह तआला ने हम इंसानों को कितनी बड़ी बड़ी निअमतें अता फरमाई मसलन हम को आँख दिया, कान, नाक, मुंह, ज़बान, दिल, जिगर, हाथ, पैर, फिर सांसें, कहते हैं कि किसी मेडिकल रिसर्चर का बयान है कि एक इंसान के जितने भी आज़ा (अंग) हैं वैसे तो उनकी कोई कीमत ही नहीं सब अनमोल हैं लेकिन फिर भी मेडिकल सांइस एक इंसान को तक़रीबन 300 करोड़ रुपये की मिल्क समझती है, सुब्हानअल्लाह, हर इंसान 300, करोड़ रुपये का है फिर उस पर जो रब ने निअमतें दी जैसे ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए कितने ही साज़ो सामान दिया, फिर माँ, बाप, भाई, बहन, दोस्त, अहबाब, तमाम रिश्ते दार, उस्ताद, इतनी निअमतें अल्लाह ने दी है कि कोई शुमार ही नहीं कर सकता, मगर क़सम अल्लाह की पूरा क़ुरआन उठा कर देख लीजिए किसी भी निअमत पर अल्लाह ने अहसान नहीं जताया, अल्हमदू की अलिफ़ से वन्नास की सीन देख लें कहीं नहीं मिलेगा, मगर जब अपने महबूब सरवरे काएनात हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को जब बन्दों के दरमियान भेजा तब फरमाया मैंने अहसान किया मुसलमानों पर कि उन्में उन्हीं में से एक रसूल भेजा, ज़रा सोचिए कि हुज़ूर की विलादते पाक कितनी बड़ी निअमत है, अब आप फैसला करें कि हजरते ईसा अलैहिस्सलाम के मानने वालों के लिए आसमान से ख़्वान आने पर तो ईद मनाई गई तो फिर मुस्तफ़ा जाने रहमत सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के आने पर ईद मनाना शिर्क कैसे हो गया? जबकि अल्लाह ने तो खुद अपनी दी हुई निअमतों का चर्चा करने का हुक्म दे रहा है
क़ुरआन: तर्जुमा कंज़ुल ईमान:—- और अपने रब की निअमत का खूब चर्चा करो,
📕📚पारा 30, सूरह वद्दोहा, आयत 11
मैं तमाम बद अक़ीदों से पूछता हूँ कि क्या हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से बढ़कर भी कोई निअमत हो सकती है,? नहीं- नहीं – नहीं- हरगिज़ नहीं, तो हम सुन्नी बरेलवी जब रब की दी हुई अज़ीम निअमत का चर्चा करते हैं तो फिर हम ग़लत कैसे हो गये? सच तो येह है कि जो उसकी दी हुई निअमतों का चर्चा नहीं करते वोह एहसान फरामोश गद्दार हैं