ह़ज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम ने एक चींटी से पूछा :तू
एक साल में कितना खा लेती हैं
अर्ज़ की : गेहूं का एक दाना !
आपने एक दाना शीशे में ड़ाल कर चींटी को भी उस में
ड़ाल दिया और शीशे को बन्द कर दिया..!
एक साल गुज़र जाने के बाद शीशे को खोल कर
देखा तो मालूम हुआ कि उस चींटी ने सिर्फ़
आधा दाना खाया हैं !
ह़ज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: तूने
आधा दाना क्यूं छोड़ दिया
चींटी बोली : पहले मेरा भरोसा अल्लाह तआला पर था,
मैं पूरा दाना खा लेती थी और ये जानती थी कि वोह मुझे
हरगिज़ फ़रामोश नही करेगा !
शीशे में बन्द होने के बाद मेरा भरोसा सिर्फ़ आप पर
रहा इसलिए मैने आधा दाना छोड़ दिया,
इस ख़याल से कि अगर इस साल आप मुझे भूल जाएंगे
तो बाक़ी आधा दाना अगले साल काम आएगा..!!!
(तोहफ़ातुल वाइज़ीन)
ज़रा ग़ौर करें
एक नन्ही सी चींटी को अपने रब पर
कितना भरोसा था कि मेरा रब हर साल मुझे
खाना अता करेगा ।
और एक हम हैं कि ज़रा सा काम बिगड़ने पर उसी रब पर
इल्ज़ाम आयद करते हैं।
अगर आप अल्लाह से कुछ माँगते हैं और
वो आपको नहीं मिलता तो ये न समझें
कि आपको नहीं मिला बल्कि ये सोच कर सब्र और शुक्र
करें कि क्या पता जो हम माँग रहे थे, उससे हमें आगे चल
कर कुछ नुकसान होता इसलिये अल्लाह ने हमें
अता नहीं किया।
याद रखें अल्लाह अपने किसी बन्दे को मायूस
नहीं करता पर देता वही है, जिस से आपका भला हो ।