क़ब्रिस्तान जाने की सुन्नतें​

क़ब्रिस्तान जाने की सुन्नतें​

#क़ब्रिस्तान जाने की सुन्नतें​

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि मैंने तुमको ज़ियारते क़ुबूर से मना किया था अब मैं तुमको इजाज़त देता हूं कि तुम क़ब्रों की ज़ियारत करो कि वो दुनिया से बे रग़बती और आखिरत की याद दिलाती है

? मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 682

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम खुद भी क़ब्रिस्तान तशरीफ ले जाया करते थे

? मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 680

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जो अपने वालिदैन में से किसी की ज़ियारत जुमा को करेगा तो उसकी मग़फिरत हो जायेगी और वो फरमा बरदार लिखा जायेगा

* जब क़ब्रिस्तान में जायें तो ये दुआ पढ़ें ​अस्सलामो अलैकुम या अहलल क़ुबूर यग़फिरुल्लाहो लना वलाकुम वअन्तुम सलाफोना वनाहनो बिल अस्रे​ यानि ऐ क़ब्र वालों अल्लाह की सलामती हो तुम पर अल्लाह तुम्हारी और हमारी मग्फिरत फरमाये और तुम हमसे पहले आ गये और हम तुम्हारे बाद आने वाले हैं

* जिसकी ज़ियारत को गया है तो दुनिया में उससे जितनी क़रीबी थी उतने का लिहाज़ रखे यानि उतना ही करीब रहे

* जब ज़ियारत को जायें तो 2 रकात नमाज़ घर से पढ़कर बख्शें और फिर जायें कि इससे क़ब्र में नूर पैदा होगा इसको भी बहुत अज्र मिलेगा

* जितना क़ुर्आन सही मखरज से पढ़ सकता हो पढ़े,वरना ऐसा कोई वज़ीफ़ा जो कच्ची ज़बान वाले पढ़ सकते हैं जैसे ​या करीमो या अल्लाहो​ इसको आसानी से अदा किया जा सकता है तो बेहतर है कि इसी को 100 बार या जितना भी पढ़ सकता हो पढ़ले और इसी का सवाब बख्श दे,मगर क़ुर्आन को मखरज से पढ़ना ज़रूर ज़रूर सीखें

? बहारे शरीयत,हिस्सा 16,सफह 241-242

* जनाजे को कंधा देना सुन्नते नबवी है और बेहतर है कि चारो तरफ से कन्धा देते वक़्त 10,10 क़दम चलें

* जनाज़े के साथ या क़ब्रिस्तान तक औरतों का जाना नाजायज़ है

* जनाज़े को देखकर बाज़ लोग खड़े हो जाते हैं इसकी कोई अस्ल नहीं

? बहारे शरीयत,हिस्सा 4,सफह 143—145

* क़ब्र पर बैठना,पैर रखना,उससे तक़िया लगाना और उन रास्तों पर चलना जो क़ब्रिस्तान में नए बनाए गयें हों हराम है

* क़ब्र में शजरह या अहद नामा रखना जायज़ है और मय्यत की पेशानी पर बिस्मिल्लाह शरीफ और सीने पर कल्मा शरीफ लिखना बाइसे निजात है,मगर उंगली से लिखे स्याही वग़ैरह इस्तेमाल ना करें

* मुर्दे या ज़िन्दे किसी को भी ईसाले सवाब किया जा सकता है और अपनी नमाज़ रोज़ा हज ज़कात व दीगर किसी भी नेक अमल का सवाब बख्श सकता है और उसके खुद के नामाये आमाल में हरगिज़ कमी ना होगी,बल्कि जितनो को सवाब बख्शेगा सबके टोटल के बराबर उसको सवाब मिलेगा मसलन किसी अमल पर 10 नेकी मिलती है और इसने ये 10 नेकी किसी एक को बख्श दी तो मुर्दे को 10 नेकियां पहुंची मगर खुद इसको 20 नेकियां मिलेगी और अगर 10 मुर्दों को बख्श दिया तो सबको तो 10,10 नेकियां ही पहुंचेगी मगर खुद इसको सबके टोटल के बराबर यानि 100 और 10 इसकी यानि 110 नेकी,अब अगर पूरी उम्मत को या कुल मुसलमानो को बख्श दिया तो अंदाज़ा लगाइये कि एक ही पढ़ने पर किस क़दर अज्र का मुस्तहिक़ हो रहा है

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जब तुम किसी को दफ्न करो तो उसके बाद तलक़ीन करो यानि उसको कल्मा वग़ैरह याद दिलाते रहो कि वो तुम्हारी हर बात सुनता समझता है

? बहारे शरीयत,हिस्सा 4,सफह 164-166
? अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 72

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