#अब्बू क्या आप मुझे क़त्ल करने_लगे हैं..?
एक शख़्स ने अर्ज़ की : या रसूलल्लाह ﷺ मैं जब से मुसलमान हुवा हूं मुझे इस्लाम की ह़लावत या’नी मिठास नसीब नहीं हुई,जमानए जाहिलिय्यत में मेरी एक बेटी थी, मैं ने अपनी बीवी को हुक्म दिया कि इसे (उ़ंम्दा लिबास वगैरा से) आरास्ता करे,फिर मैं उसे साथ ले कर घर से चला, एक गहरे गढे़ के पास पहुंच कर उसे अन्दर फेंकने लगा तो उस ने (बे क़रारी के साथ रोते हुए)कहा: #अब्बू !_क्या आप मुझे क़त्ल करने लगे हैं!!?…मगर मैं ने उसे उस गहरे गढ़े में फेंक दिया !!..या रसूलल्लाह ﷺ ! जब अपनी बेटी का यह जुम्ला (अब्बु ! क्या आप मुझे क़त्ल करने लगे हैं ? ) याद आता है तो बेचेन हो जाता हूं फिर मुझे किसी चीज़ में लुत्फ़ नहीं आता ! हुजूर ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया : इस्लाम ज़मानए जाहिलिय्यत में होेने वाले गुनाहों को मिटा देता है जब कि इस्लाम की हालात में (या’नी मुसलमान से ) होने वाले गुनाहों को इस्तिग़्फा़र मिटाता हैंं..!’
अल्लाह عزوجلचाहे तो बेटी दे या बेटा या कूछ न दे !! इस्लाम ने बेटी को अ़-ज़मत बख़्शी है और इस का वका़र बुलन्द किया है, बेटा मिले या बेटी या बै औलाद रहे हर हाल में इसे राज़ी ब रिज़ा रहना चाहिये
पारह 25 सू-रतुश्शरा की आयात 49,और 50 में इर्शाद होता है:
तरजमए कन्ज़ुल ईमान: अल्लाह عزوجلही के लिये है आस्मानों और ज़मीन की सल्तऩत,पैदा करता है जो चाहे, जिसे चाहे बेटियां अ़त़ा फ़रमाए और जिसे चाहे बेटे दे या दोनों मिला दे बेटे और बेटियां और जिसे चाहे बांझ कर दे , बेशक वोह इ़ल्म व कुदरत वाला है !.
बेटियों को बुरा मत समझो , बेशक वोह महब्बत करने वालियां हैं ! जिस शख़्स पर बेटियों की परवरिश का बोझ आ पडे और वोह उन के साथ हुस्ने (अच्छा बरताव ) सुलूक करे तो येह बेटियां उस के लिये जहन्ऩम से रोक बन जाएंगी !!..